मथुरा और आगरा के आसपास बोली जाने वाली उपभाषा कौन है - mathura aur aagara ke aasapaas bolee jaane vaalee upabhaasha kaun hai

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हिंदी की बोलियाँ और उपभाषा व बोलियों का परिचय

मथुरा और आगरा के आसपास बोली जाने वाली उपभाषा कौन है - mathura aur aagara ke aasapaas bolee jaane vaalee upabhaasha kaun hai

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 हिंदी की बोलियों को जानने से पूर्व हमें यह जान लेना चाहिए कि बोलीउपभाषा, और भाषा में क्या अंतर होता है? सर्वप्रथम बोली वह होती है जो एक सीमित क्षेत्र के भीतर बोली जाती है। यह बस एक आम बोलचाल की भाषा होती है। जो किसी कस्बे, गांव व देहाती इलाकों में बोली जाती है। और इसमें साहित्यिक रचना नहीं की जा सकती है। अब हम जानते हैं कि उपभाषा क्या होती है? यदि किसी बोली में साहित्यिक रचना होने लगती है (अर्थात उस बोली का प्रभाव बढ़ने लगता है) इस प्रकार वह बोली से उपभाषा बन जाती है। अंतिम भाषा वह होती है जब साहित्यकार किसी उपभाषा में साहित्य को डालकर या परिनिष्ठित कर उसे सर्वमान्य रूप दे देता है तो उसका और क्षेत्र बढ़ जाता है। जो बड़े स्तर पर होता है और वहां भाषा बन जाती है एक भाषा के अंतर्गत कई उप भाषाएं होती है।  और  एक उपभाषा के अंतर्गत कई बोलिया होती हैं। 

हिंदी भाषा का क्षेत्र

हिंदी भारत के पश्चिम में अंबाला हरियाणा से लेकर पूर्व में बिहार तक। और उत्तर में उत्तराखंड से लेकर दक्षिण में मध्य प्रदेश तक बोली जाती है। भारत में 9 राज्य और 1 केंद्र शासित प्रदेश ऐसे हैं जहां हिंदी को प्राथमिकता दी गई है वह इस प्रकार हैं-

  1. हिमाचल प्रदेश
  2. उत्तराखंड
  3. राजस्थान
  4. मध्य प्रदेश
  5. बिहार
  6. हरियाणा
  7. छत्तीसगढ़
  8. झारखंड
  9. उत्तर प्रदेश

10 वा दिल्ली है जो केंद्र शासित प्रदेश हैं। इस प्रकार भारत में हिंदी भाषी राज्यों की जनसंख्या लगभग 55 करोड़ के आसपास है। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में 43% लोगों की मातृभाषा हिंदी है। 
हिंदी की बोलियां और उपभाषा के वर्गीकरण में बहुत से बुद्धिजीवियों ने अपना मत प्रस्तुत किया। जिसमें जॉर्ज अब्राहिम ग्रियर्सन, सुनीति कुमार चटर्जी, धीरेंद्र शर्मा प्रमुख थे।

जॉर्ज अब्राहम ग्रियर्सन : सर्वप्रथम इस अंग्रेज अधिकारी ने ‘मॉडर्न वर्नाक्यूलर लिटरेचर ऑफ हिंदुस्तान' मैं हिंदी की बोलियों और उप भाषाओं का वर्गीकरण प्रस्तुत किया। बाद में उन्होंने इसके बारे में जांच पड़ताल की। और उन्होंने ग्रंथ लिखा ‘लिंग्विस्टिक सर्वे ऑफ इंडिया' इसमें उन्होंने हिंदी क्षेत्र की बोलियों को पांच भागों में विभाजित कर उसका विस्तार प्रस्तुत किया।

सुनीति कुमार चटर्जी : इन्होंने बांग्ला भाषा का उद्भव और विकास में हिंदी का उपभाषा और बोलियों में वर्गीकरण प्रस्तुत किया। लेकिन इन्होंने पहाड़ी भाषाओं को छोड़ दिया क्योंकि वे इनको भाषा के रूप में मानते थे।

धीरेंद्र शर्मा : इन्होंने भी अपना मत सुनीति कुमार चटर्जी के पक्ष में दिया परंतु इन्होंने सुनीति कुमार चटर्जी के वक्तव्य में कुछ उलटफेर किया जो पहाड़ी भाषाओं को उन्होंने शामिल नहीं किया था धीरेंद्र शर्मा ने पहाड़ी भाषाओं को भी उपभाषा के रूप में शामिल किया।

इसके साथ साथ कहीं विद्वानों ने अपना वर्गीकरण प्रस्तुत किया परंतु अंत में हिंदी की उपभाषा और सत्र बोलियों को मान्यता मिली। हिंदी क्षेत्र के सभी बोलियों को 5 वर्ग में बांटा गया। इन वर्गों को उपभाषा कहा गया। जो निम्नलिखित इस प्रकार हैं 

उपभाषा 

बोलियाँ 

मुख्य क्षेत्र 

राजस्थानी 

मारवाड़ी 

जयपुरी 

मेवाती 

मालवी 

राजस्थान

पश्चमी हिंदी 

खड़ी बोली 

हरियाणवी 

ब्रजभाषा 

बुंदेली 

कन्नोजी 

हरियाणाउत्तर प्रदेश के आस-पास 

पूर्वी हिंदी 

अवधी 

बघेली 

छत्तीसग़ढी 

मध्य प्रदेश

छत्तीसगढ़,

उत्तरप्रदेश 

बिहारी 

भोजपुरी 

मगही 

मैथली 

बिहार 

पहाड़ी 

कुमाऊनी 

गढ़वाली 

उत्तराखंड

विभाषा क्या है?

अनेक बोलियां राजनीतिक व सांस्कृतिक आधार पर अपना क्षेत्र विस्तार कर लेती है। और साहित्यिक रचना के आधार पर वह अपना स्थान बोली से ऊपर कर विभाषा के रूप में कर लेती है। विभाषा का क्षेत्र बोली की अपेक्षा ज्यादा बड़ा होता है। यह एक प्रांत या उप प्रांत मैं प्रचलित होती है। इसमें साहित्यिक रचनाएं भी होती है। जैसे- हिंदी की विभाषा है ब्रजभषा, अवधी, खड़ी बोली, मैथिली, भोजपुरी। विभाषा स्तर प्रचलित होने पर ही राजनीतिक या सांस्कृतिक गौरव के कारण भाषा का स्थान प्राप्त कर लेती है। जैसे खड़ी बोली मेरठ बिजनौर आदि के आसपास के क्षेत्रों में बोली जाती है भाषा होते हुए भी राष्ट्रीय पद पर विद्यमान है।

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प्रमुख बोलियों का परिचय

खड़ी बोली - इसका पहले नाम कोरवी था बाद में साहित्यिक भाषा बनने से इसका नाम खड़ी बोली पड़ा। इस भाषा को और किन किन नामों से जाना जाता है वह इस प्रकार है- बोलचाल की हिंदुस्तानी, सरहिंद, व खड़ी बोली। इस भाषा का केंद्र मेरठ दिल्ली के आसपस के क्षेत्र में है। यह  बोली एक बड़े भूभाग में बोली जाती है। और यह बोली अपने ठेठ पन काफी प्रसिद्ध है। यह मुख्यतः मेरठ मुरादाबाद रामपुर दिल्ली देहरादून और  अंबाला के जिलों में बोली जाती है। और इस बोली को बोलने वाले लोगों की संख्या लगभग तीन से चार करोड़ है। मूल कौरवी मैं लोक साहित्य उपलब्ध है। जिसमें गीत, लोक कथा, पहेली, गप्प आदि हैं। आज जो हिंदी बोली जाती है वह खड़ी बोली पर आधारित है। खड़ी बोली किस प्रकार बोली जाती है उसकी कुछ पंक्तियां निम्नलिखित इस प्रकार है-कोई बादशाह था। साहब उसके दो रानियां थी। वह एक रोज अपनी रान्नी से केने लगा मेरे समान और कोई बादशाह है बी। तो बड़ी बोले कि राजा तुम समान और कौन होगा। छोटी से पूच्छा तो की हया की एक विजाण शहर है उस के किल्ले में जितनी तुम्हारी सारी हैसियत है उतनी एक ईट लगी है। ओ इसमें मेरी लाज ना रक्खी। इसको निर्वासित करना चाहिए।उस्कु निर्वासित कर दिया। और बड़ी को सव राज का मालक बना दिया।

ब्रजभाषा - इस बोली का प्रमुख केंद्र मथुरा है। मथुरा और उसके आसपास के क्षेत्र में यह बोली बहुत अधिक मात्रा में बोली जाती है। इस बोली के मुख्यतः क्षेत्र इस प्रकार हैं-मथुरा, आगरा, अलीगढ़, धौलपुरिया, मैनपुरी, एटा, बदायूं, बरेली के आसपास के क्षेत्र हैं। इस बोली को बोलने वाले लोगों की संख्या लगभग 3 से 4 करोड़ है। यह बोली देश के बाहर भी बोली जाती है। जिस देश में यह बोली बोली जाती है उसका नाम है ताज्जुबेकिस्तान।इस बोली का साहित्य में काफी प्रभाव पड़ा। कृष्ण भक्ति काव्य की एक मातृ भाषा लगभग सारा रीतिकाल इसी बोली में लिखा गया है। तभी साहित्यिक महत्व के कारण इसे बोली की संज्ञा ना देकर ब्रजभाषा की संज्ञा दी गई है। मध्य काल में इस भाषा ने अखिल भारतीय विस्तार पाया। बंगाल में इस भाषा से एक भाषा बनी जिसका ‘नाम ब्रजबुलि' पड़ा। और असम में ब्रजभाषा ‘ ब्रज जावली' कहलाई। आधुनिक काल तक इस भाषा में साहित्य का निर्माण होता रहा। परंतु बाद में ब्रजभाषा का स्थान खड़ी बोली ने ले लिया। भक्ति काल में इस भाषा  के रचनाकार : सूरदास, नंददास आदि। वह रीतिकाल में इस भाषा के रचनाकार : बिहारी, मतिराम, भूषण, देव हुए। और इसके अतिरिक्त आधुनिक काल में भारतेंदु हरिश्चंद्र जगन्नाथदास रत्नाकर जैसे महान लेख हुए। यह भाषा कैसे बोली जाती है इसके कुछ पंक्तियां निम्नलिखित इस प्रकार हैं- एक मथुरा जी के चौबे हे, जो डिल्ली सैहर कौ चले। गाड़ी वारे बनिया से चौबे जी की भेंट है गई। तो वे चौबे बोले, अरे भैया सेठ कहां जाएगा। वौ बोला महाराजा दिल्ली जाऊंगौ। तो चौबे बोले भैया हम हूं बैठाल्लैय। बनिया बोला,₹4 चलेंगे भाड़े के। चौबे बोले अच्छा भैया 4 दिन गै।

अवधी - इस इस भाषा का या बोली का प्रमुख केंद्र अयोध्या /अवध है। और इस भाषा का प्रयोग क्षेत्र लखनऊ, इलाहाबाद, फतेहपुर, मिर्जापुर, उन्नाव, रायबरेली, सीतापुर, फैजाबाद, गोंडा, बस्ती, बहराइच, सुल्तानपुर, प्रतापगढ़, बाराबंकी आदि है यह भाषा अधिकतर उत्तर प्रदेश में बोली जाती है। भाषा को बोलने वाले लोगों की संख्या 2.5 करोड़ के आसपास है। देश के बाहर यह भाषा फिजी में सबसे ज्यादा बोली जाती है। इस भाषा में सूफी काव्य, राम भक्ति काव्य मैं साहित्य का प्रयोग हुआ। अवधि में प्रबंध काव्य भी विकसित किया गया। इस भाषा के प्रमुख रचनाकार हुए - मुरला दाऊद, मलिक मोहम्मद जायसी, कुतुब बन, तुलसीदास, उस्मान। यह भाषा स्वयं में विख्यात थी। तुलसीदास ने संपूर्ण राम चरित मानस की रचना इसी भाषा में की। यह भाषा कैसे बोली जाती है इसके लिए निम्नलिखित कुछ पंक्तियां इस प्रकार हैएक गांव मां एक अहीर रहा। ऊं बड़ा भोग रहा। सवेरे जब सोए के उठे तो पहले अपने महतारी का चार कन्नी धमका दिए तब कौनो काम करत रहा। बेचारी बहुत पुसनिया रही

भोजपुरी - इसका केंद्र भोजपुर (बिहार) है। और इस भाषा का प्रयोग क्षेत्र जहां जहा का प्रयोग होता है या बोली जाती है- जौनपुर, मिर्जापुर, गाजीपुर, बलिया, गोरखपुर, देवरिया, आजमगढ़, बस्ती, भोजपुर, बक्सर, रोहतास, पूर्वी चंपारण, पश्चिमी चंपारण इस भाषा का विस्तार क्षेत्र उत्तर प्रदेश, राजस्थान आदि है। इस भाषा को बोलने वाले लोगों की संख्या लगभग 4 करोड़ है जो हिंदी बोलियो की दृष्टि से सबसे ज्यादा बोली जाती है। यह बोली भारत के बाहर सूरीनाम, मॉरीशस, गयाना आदि देशों में बोली जाती है इसे अंतरराष्ट्रीय बोली भी घोषित कर दिया गया है। भोजपुरी में लिखित साहित्य बहुत कम है जो भोजपुरी के साहित्यकार थे उन्होंने मध्यकाल में ब्रजभाषा और अवधी और आधुनिक काल में हिंदी लेखन पर जोर दिया इस प्रकार इस भाषा के उतने अवशेष नहीं है। भोजपुरी साहित्य को ऊंचाई देने का काम संत कवियों के बाद जिन लोगों ने किया उसमें भिखारी ठाकुर और महेंद्र मिसिर का महत्वपूर्ण योगदान है इसके साथ साथ सिनेमा जगत में भी है भोजपुरी का एक बहुत बड़ा नाम है आज भोजपुरी में काफी फिल्में बनती है

मैथिली -स भाषा की लिपि तिरहुता व देवनागरी है। और इस भाषा का प्रमुख केंद्र मिथिला या विदेह है। इस भाषा को बोलने वाले लोगों की संख्या लगभग 1 करोड़ है। साहित्य की दृष्टि से मैथिली भाषा काफी संपन्न भाषा है। इस भाषा के प्रमुख रचनाकार हुए- विद्यापति, यह नाम अपने आप में विख्यात है। यदि ब्रजभाषा को सूरदास ने और अवधी भाषा को तुलसीदास ने एक चरमोत्कर्ष पर पहुंचाया तो मैथिली को विद्यापति द्वारा चरमोत्कर्ष पर पहुंचाने का बड़ा हाथ है। इसके साथ साथ मैथिली में उपन्यासकार हरिमोहन झा, नागार्जुन आदि प्रमुख हुए।

आठवीं अनुसूची में 92 वां संविधान संशोधन अधिनियम 2003 के द्वारा संविधान को आठवीं अनुसूची में 4 भाषाओं को स्थान मिला है। मैथिली हिंदी क्षेत्र की बोलियों में से स्थान पाने वाली एकमात्र है। फिर इस प्रकार विभिन्न बोलियों का विकास होता रहा। और वहां अपने क्षेत्र में एक प्रसिद्ध बोली बनकर लोगों द्वारा बोली जाने लगी।  

मथुरा और आगरा के आसपास बोली जाने वाली उपभाषा कौन है from Hindi?

ब्रजभाषा - इस बोली का प्रमुख केंद्र मथुरा है। मथुरा और उसके आसपास के क्षेत्र में यह बोली बहुत अधिक मात्रा में बोली जाती है। इस बोली के मुख्यतः क्षेत्र इस प्रकार हैं-मथुरा, आगरा, अलीगढ़, धौलपुरिया, मैनपुरी, एटा, बदायूं, बरेली के आसपास के क्षेत्र हैं। इस बोली को बोलने वाले लोगों की संख्या लगभग 3 से 4 करोड़ है।

झाँसी और ग्वालियर के आसपास बोली जाने वाली उपभाषा कौन सी है?

बुंदेली – बुंदेली या बुंदेलखण्डी पश्चिमी हिंदी - वर्ग की चतुर्थ बोली है। शौरसेनी अपभ्रंश से यह विकसित है । क्षेत्र - बुंदेलखंड की बोली 'बुंदेली' है। झांसी, ग्वालियर, ओड़छा, सागर, सिवनी, होशंगाबाद तथा आसपास बुंदेली का क्षेत्र है।

उपभाषाएँ कितनी है?

आज इस बात को लेकर आम सहमति है कि हिन्दी जिस भाषा–समूह का नाम है, उसमें 5 उपभाषाएँ वर 17 बोलियाँ हैं।

पूर्वी हिंदी उपभाषा की बोली कौन सी है?

अवधी पूर्वी हिंदी (purvi hindi) की प्रमुख बोली है जो अवध प्रदेश के अन्तर्गत बोली जाती है। ऐसा माना जाता है कि अयोध्या से अवध शब्द विकसित हुआ और इसी के आधार पर इस बोली को awadhi (अवधी) कहा गया। जार्ज ग्रियर्सन ने इसे अर्धमागधी अपभ्रंश से उद्भूत माना है, परन्तु डॉ. बाबूराम सक्सेना इसमें पालि से अधिक समानता पाते हैं।