मौद्रिक और राजकोषीय नीतियों की भूमिका को परिभाषित करें - maudrik aur raajakosheey neetiyon kee bhoomika ko paribhaashit karen

राजकोषीय और मौद्रिक व्यवस्था में आमूल-चूल बदलाव की तैयारी

  • 06 Oct 2018
  • 7 min read

राजकोषीय एवं मौद्रिक नीतियों का प्रयोग सरकार तथा रिजर्व बैंक द्वारा अर्थव्यवस्था को विनियमित या नियंत्रित करने के लिये किया जाता है। इन दोनों ही नीतियों के माध्यम से कर व्यवस्था, मुद्रास्फीति आदि को नियंत्रित किया जाता है। अंततः सरकार व रिजर्व बैंक का उद्देश्य एक ही रहता है कि विकास दर और महँगाई में संतुलन बना रहे।

चर्चा में क्यों?

  • मौद्रिक नीति की नई व आधुनिक व्यवस्था लागू करने के उद्देश्य से वित्त विधेयक-2016 के जरिये रिजर्व बैंक अधिनियम, 1934 में बदलाव किया गया है। बदलाव यह है कि मौद्रिक नीति का दारोमदार अब एक समिति पर होगा। जिस तरह वर्तमान में USA में है।
  • रिजर्व बैंक के गर्वनर की अगुआई वाली मौद्रिक नीति समिति में 6 सदस्य होंगे इनमें से 3 रिजर्व बैंक के होंगे जबकि 3 केन्द्र सरकार की ओर से नियुक्त होंगे। ये सदस्य 4 साल के लिये नियुक्त किये जाएंगे।
  • मौद्रिक नीति समिति किसी भी मुद्दे पर बहुमत के आधार पर फैसला करेगी। हर सदस्य को एक-एक मत का अधिकार मिलेगा। बराबर मत की स्थिति में रिजर्व बैंक गवर्नर का मत निर्णायक होगा।

नई मौद्रिक नीति व्यवस्था की आवश्यकता

  • इस नई व्यवस्था की शुरुआत रिजर्व बैंक एवं सरकार के बीच मतभेद को दूर करने एवं महँगाई दर के लक्ष्य के निर्धारण में सरकार की मजबूत भूमिका सुनिश्चित करने के लिये की गई है।
  • इससे पहले रिजर्व बैंक अपने स्तर पर महँगाई दर का लक्ष्य तय करता था और उसी हिसाब से मौद्रिक नीति का रुख तय करता था लेकिन बीते कुछ सालों के दौरान ऐसे कई मौके आए जब महँगाई दर के साए में विकास बनाम ब्याज दर को लेकर तीखी बहस हुई और कुछ मौकों पर तो केन्द्र सरकार ने नीतिगत ब्याज दर में कमी नहीं किये जाने को लेकर अप्रत्यक्ष रूप से रिजर्व बैंक के प्रति नाराजगी भी जताई।
  • सरकार द्वारा जारी एक अधिसूचना के मुताबिक, दो परिस्थितियों में कहा जाएगा कि महँगाई दर का लक्ष्य हासिल नहीं हो सका। पहली बार, जब लगातार तीन तिमाही तक औसत महँगाई दर लक्ष्य की ऊपरी सीमा से कहीं अधिक है। दूसरी बार, जब लगातार तीन तिमाही तक निचली सीमा से कम है।
  • भारत में महँगाई दर को मापने के लिये 1 अप्रैल, 2014 से थोक महँगाई दर की बजाय खुदरा महँगाई दर को प्रमुख आधार बनाया गया है।
  • अभी तक रिजर्व बैंक साल में 6 बार मौद्रिक नीति की समीक्षा करता रहा है, लेकिन नई मौद्रिक नीति की व्यवस्था में 4 बार मौद्रिक नीति की समीक्षा की जाएगी।

मौद्रिक नीति बनाम राजकोषीय नीति

  • आमतौर पर यह माना जाता है कि मौद्रिक व्यवस्था का दारोमदार देश के केन्द्रीय बैंक, जबकि राजकोषीय व्यवस्था की जवाबदेही सरकार पर होती है। मौद्रिक व्यवस्था जहाँ बाजार में नकदी पर नियंत्रण कर कीमतों को स्थिर बनाने का प्रयास करती है, वहीं राजकोषीय व्यवस्था कर के माध्यम से सरकार के लिये आय जुटाने और जनहित में खर्च करने पर ध्यान देती है। किंतु दोनों का लक्ष्य आर्थिक विकास ही है।
  • ऐसी कोई अर्थव्यवस्था नहीं है जो राजकोषीय नीति और मौद्रिक नीति के बिना चल सकती है, पर बहस इस बात की है कि आर्थिक प्रबंधन के लिये दोनों में कौन-सी नीति की भूमिका मुख्य होनी चाहिये। राजकोषीय नीति युद्ध और शांति के समय भिन्न-भिन्न होती है, जैसे युद्ध के समय सेना पर होने वाले खर्च की भरपाई के लिये टैक्स अधिक लगाने के बजाय ऋण लेकर काम चलाया जाए, जबकि मौद्रिक नीति निर्धारित लक्ष्यों के हिसाब से चलती है, जैसे कितनी मुद्रास्फीति होनी चाहिये, ब्याज दरों का कौन-सा उचित स्तर होना चाहिये इत्यादि।
  • मौद्रिक नीति की कामयाबी तथा वांछनीय आर्थिक विकास के लिये दोनों ही नीतियों (मौद्रिक और राजकोषीय नीति) में बेहतर संयोजन ज़रूरी है।

आगे की राह

  • एफआरबीएम कानून में बदलाव के लिये सरकार ने एन.के.सिंह की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया जिसने अपनी रिपोर्ट जनवरी 2017 में वित्त मंत्री को सौंप दी।
  • इस समिति ने एफआरबीएम द्वारा किये गए काम-काज की समीक्षा और इसमें सुधार की रणनीति बतायी/समिति ने इसके लक्ष्यों से जुड़े विभिन्न पक्षों पर गौर किया।
  • इस समिति द्वारा राजकोषीय घाटे के लक्ष्य के रूप में मौजूदा तय संख्या (जीडीपी का अनुपात) के स्थान पर लक्ष्य के रूप में राजकोषीय घाटे की रेंज तय करने की जरूरत पर भी बल दिया।
  • राजकोषीय घाटे को रेंज में रखने का सबसे बड़ा फायदा ये होगा कि सरकार पर खर्चों और आमतौर पर योजना व्यय में भारी कमी करके एक नियत संख्या में राजकोषीय घाटे का लक्ष्य हासिल करने का दबाव नहीं होगा।
  • मौद्रिक नीति की नई व्यवस्था और एफआरबीएम एक्ट में बदलाव देश के आर्थिक विकास को गति देने की दिशा में महत्त्वपूर्ण योगदान देंगे।
  • राजकोषीय घाटे को नियंत्रण में रखने का सबसे बड़ा फायदा ये होगा कि सरकार पर खर्चों और खासतौर पर योजना व्यय में भारी कमी करके एक नियत संख्या में राजकोषीय घाटे का लक्ष्य हासिल करने का दबाव नहीं होगा।

लोक वित्त
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नीतियाँ

  • कृषिक
  • आर्थिक
  • ऊर्जा
  • औद्योगिक
  • निवेश
  • सामाजिक
  • व्यापार
  • राजकोषीय
  • मौद्रिक
  • नीति मिश्रण

राजकोषीय नीति

  • बजट
    • नीति
  • ऋण
    • बाह्य
    • आंतरिक
  • घाटा / अधिशेष
  • वित्त मंत्रालय
  • राजकोषीय संघ
  • आय
  • व्यय
    • घाटा
  • कर

मौद्रिक नीति

  • बैंक भण्डार (आवश्यकताएँ)

  • छूट खिड़की
  • स्वर्ण भण्डार
  • ब्याज दर
  • मौद्रिक प्राधिकारी

    • केन्द्रीय बैंक
    • मौद्रिक मंडल

  • मौद्रिक आधार
  • मौद्रिक (मुद्रा) संघ
  • मुद्रा आपूर्ति

व्यापार नीति

  • व्यापार संतुलन
  • मुक्त व्यापार
  • व्यापार से लाभ
  • निःप्रशुल्क अवरोध
  • संरक्षणवाद
  • प्रशुल्क
  • व्यापार गुट
  • व्यापार निर्माण
  • व्यापार diversion
  • व्यापार / वाणिज्य मंत्रालय

  • आय
  • व्यय

  • अकर आय
  • कर आय
  • विवेकाधीन व्यय
  • अनिवार्य व्यय

अनुकूलतम

  • संतुलित बजट (राजकोषीय)
  • वृद्धि (व्यापार और निवेश)
  • मूल्य स्थिरता (मौद्रिक)

सुधार

  • राजकोषीय समायोजन
  • मौद्रिक सुधार

  • दे
  • वा
  • सं

अर्थनीति के सन्दर्भ में, सरकार के राजस्व संग्रह (करारोपण) तथा व्यय के समुचित नियमन द्वारा अर्थव्यवस्था को वांछित दिशा देना राजकोषीय नीति (fiscal policy) कहलाता है। अतः राजकोषीय नीति के दो मुख्य औजार हैं - कर स्तर एवं ढांचे में परिवर्तन तथा विभिन्न मदों में सरकार द्वारा व्यय में परिवर्तन।

परिचय[संपादित करें]

ऐसी कोई अर्थव्यवस्था नहीं है जो राजकोषीय नीति या मौद्रिक नीति के बिना चल सकती हो। पर बहस इस बात की है कि आर्थिक प्रबंधन के लिए दोनों में कौन सी नीति की भूमिका मुख्य होनी चाहिए। सरकारी निर्माण परियोजनाओं, जम कर टैक्स लगाने और आर्थिक जीवन में अन्य हस्तक्षेपों के ज़रिये माँग और रोज़गार बढ़ाने के पक्षधर राजकोषीय नीतियों के विवेकसम्मत इस्तेमाल को आर्थिक वृद्धि की चालक शक्ति मानते हैं। घाटे की अर्थव्यवस्था को यह विचार मुख्यतः कींसियन अर्थशास्त्र की देन है। यह रवैया राजकोषीय नीतियों को प्रमुखता प्रदान करता है। कींसियन अर्थशास्त्र का बोलबाला होने से पहले मौद्रिक नीति के ज़रिये आर्थिक प्रबंधन करने का चलन था। साठ के दशक में पश्चिमी अर्थव्यवस्थाएँ एक बार फिर मौद्रिक नीति को मुख्य उपकरण बनाने की तरफ़ झुकीं। उन्होंने कींसियन दृष्टिकोण की आलोचना की। मौद्रिक नीति के समर्थकों की मान्यता है कि टैक्स कम लगाने चाहिए और मौद्रिक नीति को सरकार के विवेक के भरोसे छोड़ने के बजाय कुछ निश्चित नियम-कानूनों के तहत चलाया जाना चाहिए। केवल इसी तरह से अर्थव्यवस्था का बेहतर प्रबंधन हो सकता है और राजकोषीय घाटे को नियंत्रण में रखा जा सकता है। अर्थशास्त्र की भाषा में इस विचार को मौद्रिकवाद या मोनेटरिज़म की संज्ञा दी जाती है।

मौद्रिक नीति का संचालन मुख्यतः अर्थव्यवस्था के केंद्रीय बैंक (जैसे भारत का रिज़र्व बैंक) द्वारा किया जाता है। यह बैंक तयशुदा समष्टिगत आर्थिक नीतियों के तहत सरकार के कहने पर भी कदम उठाता है और सरकार से स्वतंत्र निर्णय भी लेता है। शुरू में मौद्रिक नीति आम तौर पर केवल ब्याज दरों में परिवर्तन और खुले बाज़ार के कामकाज के आधार पर ही चलती थी। बाद में मुद्रा बाज़ार का अनुभव और अन्य मौद्रिक उपकरणों के विकास के बाद मौद्रिक नीति का संचालन उत्तरोत्तर परिष्कृत होता चला गया। अमेरिका में गवर्नरों के फ़ेडरल रिज़र्व बोर्ड ने 1913 से ही आरक्षित मुद्रा की आवश्यकताओं और अर्थव्यवस्था में सकल मुद्रा की वृद्धि का जिम्मा सँभाल रखा है। बैंक ऑफ़ इंग्लैण्ड ने 1951 के बाद से मौद्रिक नीति के संबंध में कई तरह के प्रयोग किये हैं जिनमें उपभोक्ताओं को दिये जाने वाले ऋण के नियम निर्धारित करना, अर्थव्यवस्था में तरलता (नकदी की मात्रा) को समग्र रूप से देखना और मौद्रिक आधार को नियंत्रित करना शामिल है।

मौद्रिक नीति निर्धारित लक्ष्यों के हिसाब से चलती है। जैसे, कितनी मुद्रास्फीति होनी चाहिए, ब्याज दरों का कौन सा स्तर उचित होगा, बेरोज़गारी घटाने का समष्टिगत उद्देश्य कैसे पूरा किया जाए, सकल घरेलू उत्पाद कैसे बढ़ाया जाए, अर्थव्यवस्था की दीर्घकाल तक कैसे स्थिर रखा जाए, वित्तीय क्षेत्र की स्थिरता के उपाय कैसे किये जाएँ, उत्पादन और दामों की स्थिरता कैसे कायम रखी जाए। मौद्रिकवाद के पैरोकार चाहते हैं कि सरकारी ख़र्च में कटौती की जाए और अर्थव्यवस्था पर लगे हुए नियंत्रण हटाये जाएँ। इनका दावा है कि अगर इतने महत्त्वपूर्ण लक्ष्यों को वेधने के लिए नीति के साथ अक्सर छेड़-छाड़ की जाएगी तो परिणामों की आकस्मिकता अस्थिरता पैदा कर सकती है। इसलिए ऐसे नियम बनाये जाने चाहिए कि सरकार न तो उधार ले सके और न ही बाज़ार में मनी की सप्लाई बढ़ा सके। इन अर्थशास्त्रियों को लगता है कि मौद्रिक नीति के संचालन में सरकार और राजनेताओं को कोई हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। लेकिन, ऐसा होना व्यावहारिक रूप से सम्भव नहीं होता। मोनेटरी पॉलिसी कमेटी के सदस्यों की नियुक्तियों के ज़रिये सरकार इस नीति को प्रभावित करती रहती है। सरकार नीतिगत उद्देश्यों में तब्दीली करके और समष्टिगत नीतियों को अपने हिसाब से बदल कर स्वतंत्र मौद्रिक नीति के आग्रह को पनपने नहीं देती।

मौद्रिकवाद के मुख्य प्रणेता अमेरिकी अर्थशास्त्री मिल्टन फ़्रीडमैन और उनकी साथी अन्ना श्वार्ज़ हैं। इन दोनों ने अर्थव्यवस्था में धन की मात्रा से संबंधित सिद्धांतों के आधार पर दीर्घावधि में होने वाली मनी सप्लाई और आर्थिक गतिविधियों के बीच संबंध का अध्ययन करके अपने निष्कर्ष निकाले हैं। लेकिन, जब मौद्रिकवाद के सिद्धांत अमेरिकी, ब्रिटिश और अन्य युरोपीय देशों में लागू किये गये तो कई तरह की दिक्कतें सामने आयीं। धनापूर्ति (मनी सप्लाई) को परिभाषित करना बहुत मुश्किल साबित हुआ। देखा गया कि अर्थव्यवस्था में धन की आपूर्ति का लक्ष्य बार-बार गड़बड़ा जाता है इसलिए हर बार नयी परिभाषा की ज़रूरत पड़ती है। धन के परिसंचरण और फैलाव की रक्रतार उतनी स्थिर और निरंतर साबित नहीं हुई जितना पहले समझा जा रहा था। राजकोषीय नीति का मतलब है सरकार अपने ख़जाने से क्या ख़र्च करना चाहती है और किस तरह के टैक्स लगा कर राजस्व हासिल करने की इच्छुक है। इसी नीति के साथ सरकार की ऋण नीति भी जुड़ी होती है ताकि अगर पर्याप्त राजस्व न प्राप्त होने की दशा में कर्ज़ उगाहे जा सकें। राजकोषीय नीति के आधार पर तय किया जाता है कि राष्ट्रीय आमदनी का कितना प्रतिशत कराधान से उगाहा जाना चाहिए। इसी के साथ सवाल जुड़ा रहता है कि कम टैक्स लगा कर उद्यमशीलता को बढ़ावा दिया जाए या ज़्यादा टैक्स लगा कर लोकोपकारी परियोजनाएँ चलायी जाएँ जिससे आमदनी का समतामूलक पुनर्वितरण किया जा सके। राजकोषीय नीति का दूसरा सरोकार यह होता है कि टैक्स लगाये जाएँ तो किस प्रकार के। प्रत्यक्ष कर (जैसे आय कर) लगाये जाएँ या फिर बिक्री, माल और मूल्यवर्धन जैसे अप्रत्यक्ष कर लगाए जाएँ। अप्रत्यक्ष करों का प्रभाव सभी लोगों की आमदनी पर पड़ता है। वह राजकोषीय नीति तटस्थ समझी जाती है जिसके कारण एक समूह के उपभोग दूसरे की अपेक्षा प्रभावित नहीं होता।

राजकोषीय नीति युद्ध और शांति के समय भिन्न- भिन्न होती है। युद्ध के समय सेना पर होने वाले ख़र्च की भरपाई के लिए उतने ही टैक्स लगाने के बजाय लोभ यह होता है कि ऋण लेकर काम चलाया जाए। दूसरी तरफ़ अगर सरकार के ऊपर काफ़ी कर्ज लदा हुआ है तो शांतिकाल में वह लोकोपकारी योजनाएँ चलाने के लिए राजस्व की जुगाड़ करने के बजाय कर्ज़ उतारने में धन ख़र्चर् करती नज़र आयेगी। राजकोषीय नीति के ज़रिये बुद्धिमान सरकारें राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था को स्थिर करने की भूमिका निभा सकती हैं। मसलन, अगर मंदी का दौर चल रहा है तो सरकार कम टैक्स लगाने और अधिक ख़र्चे करने का फ़ैसला ले सकती है। तेज़ी के दौर में ज़्यादा टैक्स लगाये जा सकते हैं और ख़र्चा कम करके सार्वजनिक वित्त यानी सरकारी खज़ाने की हालत सुधारी जा सकती है।

राजकोषीय संघवाद इसी नीति का अंग है। इसके तहत राष्ट्रीय, प्रादेशिक और शहर के स्तर पर अलग-अलग कराधान और व्यय संबंधी नीतियाँ अपनायी जाती हैं।

सन्दर्भ[संपादित करें]

1. ए. पीकॉक और जी.के. शॉ (1971), द इकॉनॉमिक थियरी ऑफ़ फ़िश्कल पॉलिसी, जॉर्ज एलेन और अनविन, लंदन.

2. पी. बोफिंगर (2001), मोनेटरी पॉलिसी : गोल्स, इंस्टीट्यूशंस, स्ट्रैटजीज़ ऐंड इंस्ट्रूमेंट्स, ऑक्सफ़र्ड युनिवर्सिटी प्रेस, ऑक्सफ़र्ड.

3. एम. ब्लॉग वग़ैरह (1995), द क्वांटिटी थियरी ऑफ़ मनी फ़्रॉम लॉक टू कींस ऐंड फ़्रीडमैन, एडवर्ड एलगर, एल्डरशॉट.

4. मिल्टन फ़्रीडमैन (1968), ‘रोल ऑफ़ मोनेटरी पॉलिसी’, अमेरिकन इकॉनॉमिक रिव्यू, 58.

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

  • 2000 के अंत के लिए राष्ट्रिय राजकोषीय नीति प्रतिक्रिया

ग्रंथ सूची[संपादित करें]

  • हेने, पी. टी. बोटके, पी. जे., प्रिकितको, डी. एल.(2002): द इकोनोमिक वे ऑफ़ थिंकिंग (10 वां संस्करण). प्रेंटिस हॉल.

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]

  • स्टीमुलसवॉच
  • अर्थशास्त्र का संक्षिप्त विश्वकोश
  • राजकोषीय नीति का उपयोग
  • राजकोषीय नीति की सीमाएं
  • अमेरिका - बाहरी ऋण अर्थात बचत की दर बाहरी ऋण की तुलना बचत की दर से करना- 1995 के बाद से (ऐसे कौन से दो घटक हैं जो राजकोषीय नीति को वित्त पोषित करते हैं)
  • राजकोषीय नीति क्या है?

मौद्रिक नीति और राजकोषीय नीति से आप क्या समझते हैं?

जैसे मौद्रिक नीति को भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) बनाता है, ठीक वैसे ही राजकोषीय नीति सरकार बनाती है. राजकोषीय नीति (Fiscal Policy) का आशय वित्त प्रबंधन के लिए खास उपायों के अपनाने से है. इसकी मदद से सरकार खर्चों के स्तर और टैक्स की दरों को एडजस्ट करती है. इसका अर्थव्यवस्था पर व्यापक असर पड़ता है.

मौद्रिक नीति की परिभाषा क्या है?

मौद्रिक नीति एक ऐसी नीति होती है जिसके माध्यम से किसी देश का मौद्रिक प्राधिकरण खासकर उस देश का सेंट्रल बैंक उस देश की अर्थव्यवस्था के अन्दर ब्याज़ की दरों के नियंत्रण के माध्यम से मुद्रा की पूर्ति को नियमित और नियंत्रित करता है ताकि वस्तुओं के दामों में बढ़ोत्तरी से बचा जा सके और अर्थव्यवस्था को विकास की तरफ अग्रसर ...

मौद्रिक नीति से आप क्या समझते हैं मौद्रिक नीति के विभिन्न उद्देश्यों पर चर्चा करें?

मौद्रिक नीति सरकार एवं केन्द्रीय बैंक द्वारा सोच समझकर उपयोग में लायी गई मुद्रा की पूर्ति में वृद्धि या कमी लाने की शक्ति है। यह शक्ति सरकार की आर्थिक नीति के उद्देश्यों की विस्तृत रूपरेखा को ध्यान में रखकर निवेश, आय व रोजगार को प्रभावित करने और कीमतों में स्थिरता लाने के लिये प्रयोग की जाती है।

मंदी के समय राजकोषीय नीति की क्या भूमिका होती है?

संकुचनकारी राजकोषीय नीति में सरकारी खर्च को कम करना और करों में वृद्धि करना शामिल है। (जब इस प्रकार की राजकोषीय नीति को आर्थिक मंदी के दौरान लागू किया जाता है, तो इसे "तपस्या नीति" कहा जाता है जो सरकारों को पैसे बचाने में सक्षम बनाता है।)