नाई को ठाकुर क्यों कहते हैं - naee ko thaakur kyon kahate hain

छठ पूजा आए बनकर उजाला खुल जाये आप की किस्मत का ताला हमेशा आप पर रहे मेहरबान ऊपर वाला यही दुआ करता है आपका ये चाहने वाला छठ पूजा 2022 की हार्दिक शुभकामनाएं

नाई को ठाकुर क्यों कहते हैं - naee ko thaakur kyon kahate hain
Jankaritoday.com अब Google News पर। अपनेे जाति के ताजा अपडेट के लिए Subscribe करेेेेेेेेेेेें।


 

Last Updated on 21/08/2021 by Sarvan Kumar

आज हम यही समझते हैं की नाई मतलब हजाम (Barber), यानि बाल काटने वाला लेकिन ऐसा नहीं है। नाई समाज का इतिहास काफी गौरवशाली रहा है। प्राचिन भारत में नाई ब्राह्मण वर्ण में आते थे और इनका काम सिर्फ बाल काटना ही नही बल्कि इससे कहीं ज्यादा और था। आइए जानते है नाई जाति का इतिहास , नाई  शब्द की उत्पति कैसे हुई?

नाई शब्द के पर्यावाची शब्द

नाई शब्द के कई पर्यावाची शब्द हैं जैसे हज्जाम, नाऊ, क्षौरिक, नापित, मुंडक, मुण्डक, भांडिक इत्यादि। नाई समाज को हम नाइस, सैन, सेन, सविता-समाज, मंगला इत्यादि से भी जानते हैं। बाल काटने वाले को हम अंग्रेजी में हेयर ड्रेसर कहते हैं।आज यह कोई जरूरी नही की हेयर ड्रेसर नाई जाति के ही हो, दुसरे धर्म -जाति के लोग भी अब इस प्रोफेशन को अपना रहे है और काफी अच्छा कर रहे हैं। प्रत्येक क्षेत्र में नाई के लिए एक अलग नाम है। पंजाब में नाई को प्यार से राजा कहा जाता है; हिमाचल प्रदेश में कुलीन; राजस्थान में खवास, हरियाणा में सेन समाज या नपित, राजा या उस्ताद (विशेषज्ञ); और दिल्ली में नाई-ठाकुर या सविता समाज। मुस्लिम नाई को हज्जाम कहा जाता है। प्रत्येक क्षेत्र में नाई के लिए एक अलग नाम है।

नाई को ठाकुर क्यों कहते हैं - naee ko thaakur kyon kahate hain

नाई जाति किस कैटिगरी में आते हैं?

भारतीय संविधान के अनुसार नाई जाति को विभिन्न राज्यों में OBC( Other Backwards Caste)  अंतर्गत सुचित किया गया है। ये राज्य हैं आंध्र प्रदेश, असम, बिहार, चंडीगढ़, छत्तीसगढ़, दादरा और नगर हवेली, दमन और दीव, दिल्ली एनसीआर,  गोवा,  गुजरात, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, मध्यप्रदेश, वेस्ट बंगाल, पंजाब, हरियाणा, उत्तरप्रदेश इत्यादि।

नाई शब्द की उत्पति कैसे हुई ? न्यायी” से बना “नाई “

श्री तुलसी प्रसाद ठाकुर इस कुल को “नाय” कुल बतलाते हैं। ” नाई ” शब्द की उत्पत्ति संस्कृत भाषा के ‘नाय’ से मानी गयी है, जिसका हिन्दी अर्थ है- नेतृत्व करने वाला  अर्थात् वह जो समाज का नेतृत्व करे या न्यायी – न्याय करे।

नाई समाज का इतिहास

ब्राह्मण हैं नाई?

प्राचीन काल में जो बड़े विद्वान व तर्कशास्त्र के जानने वाले थे उनका नाम न्यायी रखा गया था, इसका बिगड़ा हुआ रूप नायी या नाई है। इनकी विद्या -बुद्धि के कारण लड़के, लड़की का विवाह, शादी सगाई आदि इन्हीं की सहमति के अनुसार होते थे। आइए जानते हैं उन तथ्यों को इससे साबित होता है की नाई ब्राह्मण वर्ण के हैं।

नाई को ठाकुर क्यों कहते हैं - naee ko thaakur kyon kahate hain
A Nai is shaving his Customer

1. विवाह संस्कार में मुख्य नेता न्यायी होता है जो कन्या के लिए वर खोजता है, वर की योग्यता की बहु विधि परीक्षा करता है। वाग्दान संस्कार करता है और प्रत्येक कार्य उसी की सहमति से होता है और इसी कारण सबसे प्रथम नाई को पंचवस्त्र पहनाए जाते हैं। वेद में अनेक स्थानों पर नाई को सविता कहा गया है।

“ओं आयमगन्तसविता क्षुरेणोष्णेन वाय उदकेनेहि।। ” अथर्ववेद का‌.6।सू.68 म. 1।।

2.ब्राह्मण निर्णय के अनुसार नाई पांडे कान्यकुब्ज ब्राह्मणों का एक भेद है। जो विद्याहीन था वह एक उस्तरा व कटोरी की पूजन करता था जो परस्पर स्वजाति वर्ग की हजामत भी करने लगा, जिससे वह नाई पांडे कहलाने लगे। इस तरह यह लोग परस्पर हजामत करते कराते अन्य उच्च जातियों की भी नाईयों की तरह हजामत करने लगे। ये लोग उत्तरप्रदेश के फर्रुखाबाद कानपुर तथाप्र यागादि जिलों मैं है।

3. इतिहासकार H. H. Risley  की पुस्तक “the tribes and cast by Risley” के अनुसार-
The  cast is clearly of functional group formed in in probability from the the respectable cast”अर्थात नाई जाति कदाचित उच्च जाति के परिवारों से बना हुआ परिश्रमी समुदाय है।

नाई को ठाकुर क्यों कहते हैं - naee ko thaakur kyon kahate hain

4.लोक व्यवहार में तो अभी तक यह देखने में आता है कि कान्यकुब्ज ब्राह्मण जो उत्तम ब्राह्मणों में गिने जाते हैं एक दूसरे ब्राह्मण के हाथ का नहीं खाते परंतु नाई का छुआ खा लेंगे।  राजपूताने में तो नाई के हाथ की कच्ची रसोई क्षत्रिय खाते थे और ब्राह्मण के समान उनके रसोई घर के कर्ताधर्ता यही नाई ही होते थे।

5. संपूर्ण पवित्र कार्यों में नाई का सर्वत्र ही प्रवेश है। जहां कहीं भी ब्राह्मण का काम होता है वहीं -वहीं नाई भी साथ -साथ ही रहता है कोई भी ऐसा शुभ कर्म नहीं है जिसमें ब्राह्मण  हो और नाई  ना हो।

6. वेद छूरे को ब्रह्मा से उपमा देता है और नाई को बृहस्पति, अग्नि ,वायु ,इंद्र आदि के जीवन कल्याण ,सुख और आयु का धारण करने वाला और पोषण करने वाला बताया है।

7.बीकानेर रियासत में जब कोई मर जाता था तो ब्राह्मण लोग रथी उठाने वाले चार नाईयो को जनेऊ पहना देते थे। दाह कर्म करके, स्नान करने के पश्चात तीन जनों का जनेऊ तो उतार देते थे पर चौथे को त्रयोदशी तक पहनाए रखा जाता था। पंजाब में प्रायः सभी नाइयों का विवाह संस्कार के समय  जनेऊ होता था।

8.प्रथम अखिल भारतवर्षीय नाई जाति  महासम्मेलन आगरा में 26, 27, 28 दिसंबर 1921 में हुआ। मद्रास निवासी श्री पंडित एस. एस.आनंदम महाशय ने अपने व्याख्यान में कहा कि-

“दक्षिण भारत में हम अपने आपको अमात्य ब्राह्मण कहते हैं। हमारे सजातीय मनुष्य दक्षिण भारत में राज करने वाले पांड्या, चोला और चेरा राज्यों के राजाओं के यहां अति उच्च पदों पर नियुक्त थे।”

9. शर्म ब्राह्मणस्य गृह्म सूत्र में लिखा है कि शर्मा ब्राह्मण की उपाधि है, पूर्व काल में नाई की भी शर्मा उपाधि थी।

10. जब विवाहिता कन्या ससुराल जाती थी तो नाई कि स्त्री उसके साथ जाती थी और यदि नाई की कन्या पतिगृह को जाती थी तो उसके साथ ब्राह्मणी जाती थी।

नाई किस धर्म को मानते हैं?

नाई हिंदू हैं और सभी हिंदू देवी-देवताओं की पूजा करते हैं। वे शिव और सेन भगत, अपनी ही जाति के एक संत के लिए बहुत श्रद्धा रखते हैं।

बद्री नारायण,विष्णु महापात्र,अनन्त राम मिश्रा द्वारा लिखी पुस्तक “उपेक्षित समुदाय का आत्मविश्वास” के अनुसार ,महर्षि वायु, महर्षि सविता, इत्यादि नाई (नायी) समुदाय से ही थे।

अधिकांश नाई लोग हनुमान जी के उपासक हैं और जगह-जगह हनुमान जी के मंदिर बनवा रखा है। दक्षिण भारत में आज भी लोग अपना नाम मारुती रखते हैं। श्री पंडित नर सुंदर शर्मा, श्री सेन महाराज, श्री मनिकावसगर  संसार में अपने अक्षय कृति छोड़ गए हैं।

नाई क्यों अपने आपको सेन समाज कहती हैं?

सेन महाराज नाई थे और कहते हैं कि वे एक राजा के पास काम करते थे। उनका काम राजा वीरसिंह की मालिश करना, बाल और नाखून काटना था। उस दौरान भक्तों की एक मं‍डली थी। सेन महाराज उस मंडली में शामिल हो गए और भक्ति में इतने लीन हो गए कि एक बार राजा के पास जाना ही भूल गए। कहते हैं कि उनकी जगह स्वयं भगवान ही राजा के पास पहुंच गए। भगवान ने राजा की इस तरह से सेवा की कि राजा बहुत ही प्रसन्न हो गए और राजा की इस प्रसन्नता और इसके कारण की चर्चा नगर में फैल गई।

चिकित्सक थे नाई?

अथर्ववेद में लिखा है अदिति अर्थात अखंड (जो टूटा हुआ या भोथरा ना हो) और ठीक फौलाद का बना हो छुरा से केश काटे, जल  के साथ भिगोए और दीर्घायु और सब का कल्याण करने के लिए चिकित्सा करो।

पहले कुछ अपने पास कैंची आदि रखकर लोगो के घायलावस्था मे उनके बालो की सफाई करके मरहम-पट्टी का कार्य किया करते थे. ये लोग राजा के महल पर अधिकतर अपनी सेवा देते थे और इन्हे आयुर्वेदिक या सिद्धा डोक्टर कहा जाता था. इनके परम गुरु धनवन्तरि और चरक थे।

ब्रिटिश काल मे, एलोपैथी चिकित्सा आने, शिक्षा को बढावा मिलने और बालो को कटवाने का फैशन बन जाने के कारण इन डॅक्टरों का विभाजन दो भागो मे हो गया-
शिक्षित डॉक्टर अशिक्षित डोक्टर समय बीतने के साथ ही ये अशिक्षित डॉक्टर ”नाई” कहलाए जाने लगे.

नाई को ठाकुर क्यों कहते हैं - naee ko thaakur kyon kahate hain

नाई का पेशा

नाई के अन्य कार्य भी होते हैं , नाई धर्म का नेता तो था ही पर इस समुदाय के अनेक लोग उपदेशक, गुरु, राजा, पुरोहित प्रधान सचिव आदि रह चुके हैं। अभी भी बहुत से अध्यापक, उपदेशक, ज्योतिषी, डॉक्टर,  बिजनेसमैन,  इंडस्ट्रियलिस्ट आदि नाई जाति से हैं।

क्या नाई क्षत्रिय हैं?

नंदवंश प्राचीन भारत का सर्वाधिक शक्तिशाली एवं महान नाई  राजवंश था। जिसने पाँचवीं-चौथी शताब्दी ईसा पूर्व उत्तरी भारत के विशाल भाग पर शासन किया। नंदवंश की स्थापना प्रथम चक्रवर्ती सम्राट महापद्मनंद ने की थी। भारतीय इतिहास में पहली बार एक ऐसे साम्राज्य की स्थापना हुई जिसकी सीमाएं गंगा के मैदानों को लांघ गई। जैन ग्रंथों में लिखा है कि समुद्र तक समूचा देश नंद के मंत्री ने अपने अधीन कर लिया था।
“समुद्र वसनां शेभ्य:है आस मुदमपि श्रिय:। उपाय हस्तेैरा कृष्य:तत:शोडकृत नंदसात।।”
नंदों की सेना में दो लाख पैदल, 20 हजार घुड़सवार, दो हजार चार घोड़ेवाले रथ और तीन हजार हाथी थे।

इन सब बातों से यह निष्कर्ष निकलता है कि भारत में नाई  ब्राह्मण प्रथम है और क्षत्रिय बाद में क्योकि पूरे भारत मे पूजा-पाठ करने वाले ब्राह्मणो का मुख्य सहयोगी, नाई ही रहा है।

नाई” जाति क्षत्रिय वर्ण की चन्द्रवंश शाखा के अन्तर्गत वर्गीकृत है और वैदिक क्षत्रिय है, जो वैदिक कालीन शासक जाति है

नाई को ठाकुर क्यों कहते हैं - naee ko thaakur kyon kahate hain

 

Disclaimer: Is content में दी गई जानकारी Internet sources, Digital News papers, Books और विभिन्न धर्म ग्रंथो के आधार पर ली गई है. Content  को अपने बुद्धी विवेक से समझे। jankaritoday.com, content में लिखी सत्यता को प्रमाणित नही करता। अगर आपको कोई आपत्ति है तो हमें लिखें , ताकि हम सुधार कर सके। हमारा Mail ID है . अगर आपको हमारा कंटेंट पसंद आता है तो कमेंट करें, लाइक करें और शेयर करें। धन्यवाद Read Legal Disclaimer 

 

सबसे पहले नाई कौन थे?

सेन राजवंश.

क्या नाई ब्राह्मण है?

ब्राह्मण निर्णय के अनुसार नाई पांडे कान्यकुब्ज ब्राह्मणों का एक भेद है। जो विद्याहीन था वह एक उस्तरा व कटोरी की पूजन करता था जो परस्पर स्वजाति वर्ग की हजामत भी करने लगा, जिससे वह नाई पांडे कहलाने लगे।

नाई की जाति क्या है?

जो दूसरों के बाल काटता एवं सवांरता है उसे नाई (barber) कहते हैं। भारत में यह एक जाति भी है जिसके सदस्य मुख्यत: बाल काटने एवं हिन्दू संस्कारों में मुख्य सहायक का काम करते आये हैं।

नाई का नाम कैसे पड़ा?

" नाई " शब्द की उत्पत्ति संस्कृत भाषा के 'नाय' से मानी गयी है, जिसका हिन्दी अर्थ है- नेतृत्व करने वाला अर्थात् वह जो समाज का नेतृत्व करे या न्यायी - न्याय करे ।