निर्देशन एवं परामर्श में शिक्षक की भूमिका - nirdeshan evan paraamarsh mein shikshak kee bhoomika

(i) विद्यालय निर्देशन कार्यक्रम में अध्यापक की भूमिका (Role of the Teacher in the School Guidance Programme) –  विद्यालय के निर्देशन कार्यक्रम में शिक्षक का सहयोग अत्यधिक महत्वपूर्ण है, क्योंकि सीखने सिखाने की प्रक्रिया में शिक्षक ही एक ऐसा व्यक्ति है, जो विद्यार्थियों के अधिक तथा निकट सम्पर्क में आता है। वह विद्यार्थियों का जितना अधिक अवलोकन तथा निरीक्षण करता है, उतना कोई भी कर्मचारी नहीं करता। इसलिए शिक्षक के सहयोग के बिना निर्देशनात्मक सेवाओं का गठन असम्भव है। निर्देशन-व्यवस्था के संचालन में शिक्षक निम्नलिखित कार्य कर सकता है-

  1. विद्यार्थियों का विभिन्न परिस्थितियों-पढ़ते समय, खेलते समय और अन्य कार्य करते समय में अवलोकन करना तथा उसका रिकार्ड रखना।
  2. विद्यार्थियों से निकट सम्पर्क स्थापित करना ।
  3. विद्यार्थियों का समय-समय पर परीक्षण तथा मूल्यांकन करना।
  4. विद्यार्थियों से अनौपचारिक बातचीत द्वारा उनकी रुचियों तथा अभिरुचियों को जानना।
  5. अपने शिक्षण विषय से सम्बन्धित रोजगार तथा उच्च शिक्षा के अवसरों की जानकारी प्रदान करना।
  6. विद्यार्थियों के माता-पिता से समय-समय पर मिलते रहना और उनकी उन्नति एवं समस्याओं के सम्बन्ध में विचार-विमर्श करते रहना।
  7. प्रतिभाशाली तथा कम बुद्धि वाले विद्यार्थियों की पहचान करके उनके विकास के लिए उचित व्यवस्था करना ।
  8. निर्देश-व्यवस्था को सफलता हेतु परामर्शदाता की सहायता करना ।

कक्षा-शिक्षक के दायित्व (Responsibilities of a Class-teacher) – वैसे निर्देशित व्यवस्था के सुप्रबन्ध तथा सुसंचालन में प्रत्येक विषय शिक्षक की आवश्यकता होती है, परन्तु कक्षा-शिक्षक (Class-Teacher) इसमें विशेष भूमिका निभाता है। कक्षा-शिक्षक के मुख्य कार्य निम्नलिखित हैं-

  1. प्रत्येक विद्यार्थी के संचित-अभिलेख-पत्र (Cumulative Record Card) को सम्भाल कर रखना तथा उसमें वांछित प्रविष्टियाँ समय-समय पर करते रहना।
  2. उन विद्यार्थियों की निशानदेही करना, जिन्हें कक्षा में समस्याओं का सामना करना पड़ता है। उन समस्याओं के समाधान तथा प्रचार में परामर्शदाता को सहयोग प्रदान करना ।
  3. प्रत्येक विद्यार्थी के समायोजन (Adjustment) पर नजर रखना किसी विद्यार्थी को समायोजन में कठिनाई आ रही हो तो उसे तत्काल दूर करने का प्रयत्न करना ।
  4. प्रत्येक विद्यार्थी को साथियों तथा अवकाश-क्रियाओं से परिचित रहना और उसके विकास पर उनके प्रभाव का अध्ययन करके अपने विचारों से परामर्शदाता तथा अभिभावकों को परिचित कराना।

संक्षेप में, कहा जा सकता है कि ‘निर्देश व्यवस्था’ की विभिन्न सेवाओं के कुशल प्रबन्ध तथा संचालन में शिक्षक चाहे वह विषय-शिक्षक हो या कक्षा शिक्षक अत्यन्त महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। अतः उसके सहयोग को सुनिश्चित बनाना चाहिये ।

(ii) शैक्षिक तथा व्यावसायिक सूचनाओं की उपयोगिता (Uses of Educational and Vocational Information)

(क) शैक्षिक सूचनाओं की उपयोगिता (Uses of Educational Information)– शैक्षिक सूचनाओं की मुख्य उपयोगिता विद्यार्थियों को उनकी रुचियों, बौद्धिक योग्यताओं तथा शारीरिक क्षमताओं के अनुरूप विभिन्न विषयों तथा पाठ्य-कोर्सों का चुनाव करने में सहायता प्रदान करना है।

‘शैक्षिक सूचनाओं’ में विभिन्न विद्यालयों में पढ़ाये जाने वाले पाठ्य- कोर्सों, विषयों तथा उनमें प्रचलित पाठ्य-सहायक क्रियाओं की जानकारी एकत्रित की जाती है। इसके अतिरिक्त शैक्षिक मार्गदर्शन के लिए भावी अध्ययन कोर्सों, विशिष्ट संस्थाओं के प्रवेश तथा उनके वातावरण, योग्य विद्यार्थियों को मिलने वाली छात्रवृत्तियों, निःशुल्क शिक्षा तथा अन्य आर्थिक सहायता से सम्बन्धित सूचनायें भी ‘शैक्षिक सूचनाओं’ में सम्मिलित हैं। इन सूचनाओं की सहायता से मार्गदर्शन में अग्रलिखित लाभ होते हैं-

  1. विद्यार्थियों को ठीक अध्ययन कोर्स तथा विषय चुनने में सहायता प्राप्त होती है।
  2. शिक्षा में अपव्यय तथा अवरोधन (Wastage and Stagnation) को रोकने में सहायता प्राप्त होती है।
  3. विद्यार्थियों को उचित शैक्षणिक समायोजन में सहायता प्राप्त होती है।
  4. विद्यार्थियों को उनकी रुचियों के अनुसार विभिन्न क्रियाओं में संलग्न करने में सहायता प्राप्त होती है।
  5. शिक्षा के उद्देश्यों की पूर्ति में सहायता प्राप्त होती है।

(ख) व्यावसायिक सूचनाओं की उपयोगिता (Uses of Vocational Information) – सामाजिक जटिलताओं तथा विज्ञान एवं टैक्नॉलोजी के प्रसार के व्यवसाय उत्पन्न हो रहे हैं। ‘व्यवसायिक सूचनाओं में विभिन्न व्यवसायों की पूरी जानकारी सम्मिलित की जाती है। व्यावसायिक निर्देशन के दृष्टिकोण से इन सूचनाओं की मुख्य उपयोगितायें निम्नलिखित हैं-

(i) व्यक्ति को अपनी शारीरिक तथा बौद्धिक क्षमताओं के अनुरूप व्यवसाय चुनने में सहायता मिलती है।

(ii) व्यक्ति को अपने चुने हुए व्यवसाय में उन्नति की स्थितियों की जानकारी प्राप्त होती है और इस जानकारी से वह उन्नति के उच्चतम शिक्षर पर पहुँचने के लिए प्रयत्नशील रहता है।

(iii) व्यक्ति को अपनी रुचियों के अनुसार व्यवसाय चुन लेने पर और उन्नति की ओर अग्रसर होने से उसे आत्म सन्तोष की प्राप्ति होती है।

(iv) व्यावसायिक सूचनायें ‘व्यावसायिक निर्देशन’ को अद्यतन (Up-to-date) बनाती हैं। विज्ञान और तकनीक प्रगति के कारण व्यावसायिक स्थितियों में कई प्रकार के परिवर्तन हो रहे हैं। इन परिवर्तनों की नवीनतम सूचनाओं से ‘व्यावसायिक निर्देशन’ (Vocational Guidance) को अधिक सार्थक तथा उद्देश्यपूर्ण बनाने में सहायता मिलती है।

(v) देश की व्यापक आर्थिक योजनाओं तथा रोजगार के अवसरों को सार्थक बनाने के लिए इनसे सम्बन्धित सूचनाओं को विद्यार्थियों तक पहुँचाना अत्यधिक आवश्यक है। इन सूचनाओं में न केवल नवयुवकों की बेकारी की समस्या हल होने में सहायता प्राप्त होती है, बल्कि विभिन्न योजनाओं को सफल बनाने से भी सहायता प्राप्त होती है।

(vi) व्यावसायिक सूचनाओं के माध्यम से व्यक्ति अपनी व्यावसायिक योजनाओं को अधिक सार्थक बना सकता है और उत्साहपूर्वक उन योजनाओं को क्रियान्वित कर सकता है।

(vii) व्यावसायिक सूचनायें व्यक्ति को व्यावसायिक साहित्य पढ़ने के लिए उत्साहित करती हैं। उपर्युक्त विवेचन से हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि शैक्षिक तथा व्यावसायिक सूचनायें ‘शैक्षिक एवं व्यावसायिक’ निर्देशन का आधार हैं। इन्हीं की सहायता से विद्यालय में ‘शैक्षिक एवं व्यावसायिक’ व्यवस्था को अधिक सार्थक, उद्देश्यपूर्ण तथा उपयोगी बनाया जा सकता है, इन्हीं की सहायता से देश की प्रतिभा के अपव्यय को रोका जा सकता है और इन्हीं की सहायता से प्रत्येक विद्यार्थी को उसकी कार्य क्षमताओं तथा बौद्धिक योग्यताओं के अनुरूप व्यवसाय चुनने और उसमें प्रगति करने के अवसर प्रदान किये जा सकता हैं। अतः ‘शैक्षिक एवं व्यावसायिक निर्देशन’ की कुशल व्यवस्था के लिए शैक्षिक एवं व्यावसायिक सूचनाओं का एकीकरण, अध्ययन तथा वितरण अत्यधिक आवश्यक है।

सूचनायें कहाँ से प्राप्त की जाये (Sources of Information) – शैक्षिक तथा व्यावसायिक सूचनाओं का महत्व इस बात की माँग करता है कि शिक्षा एवं व्यवसायों से सम्बन्धित हर प्रकार की जानकारी को प्राप्त करते रहना चाहिये, परन्तु प्रश्न यह उठता है कि ये सूचनायें कहाँ से प्राप्त की जायें।

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निर्देशन में शिक्षक की क्या भूमिका है?

परामर्श एवं निर्देशन मे शिक्षक की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है । बालक को प्रत्येक स्थिति पर निर्देशन की आवश्यकता होती है , और बालक के शैक्षिक विकास की जानकारी सबसे ज़्यादा एक अध्यापक को होती है , अत एक शिक्षक है जो अपने बालक को सबसे सही निर्देशन दे सकती है।

परामर्शदाता की क्या भूमिका होती है?

परामर्शदाता एक प्रशिक्षित एवं सक्षम व्यक्ति होता है। पर परामर्श प्रार्थी की विभिन्न व्यक्तिगत समस्याओं को दूर करने में सहायता प्रदान करता है। परामर्श प्रक्रिया का उद्देश्य छात्र को अपनी समस्यायें स्वतंत्र रूप से हल करने योग्य बनाना है।

निर्देशन एवं परामर्श क्या है?

निर्देशन के द्वारा व्यक्ति में आत्म अवलोकन एवं सुधार के लिए सुझाव दिया जाता है यह व्यक्ति में ऐसी क्षमता विकसित करता है जिससे व्यक्ति स्वयं अपनी समस्याओं का समाधान कर सके। परामर्श केवल व्यक्तिगत होता है। निर्देशन व्यक्तिगत तथा सामूहिक दोनों प्रकार का हो सकता है। परामर्श समस्या समाधान पर केंद्रित होता है।

शिक्षा में परामर्श की क्या उपयोगिता है?

परामर्श की आवश्यकता छात्रों में, विशिष्ट योग्यताओं एवं सही दृष्टिकोणों को प्रोत्साहित तथा विकसित करना। छात्रों की स्वयं की योग्यताओं, रूचियों, एवं अवसरों आदि को समझकर स्वयं को और भली प्रकार समझने में सहायता करना। छात्रों की स्वयं की कठिनाइयों को हल करने की योजना बनाने में सहायता करना।