नियोजन के क्या लक्षण होते हैं? - niyojan ke kya lakshan hote hain?

नियोजन” का अर्थ किसी कार्य को करने के लिए पहले से सोची गई युक्ति या विधि से होता है । अतः आर्थिक नियोजन से तात्पर्य देश की आर्थिक उन्‍नति के लिए पहले से सोची एवं निश्चित य्की गर्ड युक्ति या विधि से होता है ॥ प्रत्येक देश अधिकतम सामाजिक लाभ तथा भविष्य में अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए अपने स्रीमित साधनों एवं शक्तियों का निश्चित योजना के अनुसार उपयोग करता है एवं वर्तमान साधनों को अधिक विकसित करने का भी प्रयत्न करता है। इस प्रकार प्रो. एल. रोबिन्स के मतानुसार, “सही शाब्दों में सम्पूर्ण आर्थिक जीवन में नियोजन की आवश्यकता होती है योजना तैयार करना किसी उद्देश्य से कार्य करना है और चुनाव ही आर्थिक क्रियाओं का सार है

आर्थिक नियोजन की परिभाषाएँ-

विभिन्‍न अर्थशास्त्रियों ने आर्थिक नियोजन की भिन्न-भिन्न परिभाषाएँ दी हैं-

    1. डाल्टन के अनुसार – “व्यापक अर्थ में आर्थिक नियोजन विशाल साधनों के संरक्षक व्यक्तियों द्वारा निश्चित लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए आर्थिक क्रियाओं का इच्छित निर्देशन है ।
    2. प्रो . एच .डी. डिकिन्सन के अनुसार- “आर्थिक नियोजन प्रमुख आर्थिक निर्णयों का मार्ग है, जिसमें सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था में व्यापक सर्वेक्षण के आधार पर एक निर्धारित सत्ता द्वारा सोच-विचार कर यह निर्णय लिया जाता है कि क्या और कितना उत्पादन किया जाएगा और उसका वितरण किसकोहोगा
    3. भारतीय योजना आयोग के अनुसार– “आर्थिक नियोजन अनिवार्य रूप से सामाजिक उद्देश्यों के अनुरुप साधनों को अधिकतम लाभ के लिए संगठन एवं उपयोग करने के एक मार्ग है। नियोजनके विचार के दो प्रमुख अंग हैं(अ) उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए अपनाई गई प्रणाली एवं (ब) उपलब्ध साधनों एवं उनके अधिकतम आगयंटन के सम्बन्ध में ज्ञान |
    4. प्रो . हायेक के शब्दों में- “आर्थिक नियोजन का आशय किसी केन्द्रीय सत्ता द्वारा उत्पादन क्रियाओं का निर्देशन है ।
    5. श्रीमती वी. वूटन के अनुसार- ‘“किसी सार्वजनिक सत्ता द्वारा सुविचारित और विवेकपूर्ण ढंगसे आर्थिक प्राथमिकताओं का अयन ही नियोजन है
    6. गुन्नार मिर्डल के शब्दों मे – “ आर्थिक नियोजन राष्ट्रीय सरकार की रीति-नीति से संबंधित वह कार्यक्रम है, जिसमें बाजार की शक्तियों के कार्य-कलापों में राजकीय हस्तक्षेप की प्रणाली को सामाजिक प्रक्रिया के ऊपर ले जाने हेतु लागू किया जाता है।”’

सरल परिभाषा– आर्थिक नियोजन वह संगठित आर्थिक प्रयास है, जिसमें एक निश्चित अवधि में पूर्व निर्धारित एवं सुपरिभाषित सामाजिक आर्थिक लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए आर्थिक साधनों का विवेकपूर्ण ढंग से समन्वय एवं नियन्त्रण किया जाता है। इस प्रकार आर्थिक नियोजन

      1. निश्चित लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए आर्थिक क्रियाओं का निर्देशन है।
      2. यह एक पद्धति है, जिसमें बाजार-तंत्र को एक निश्चित ढाँचे की प्राप्ति के लिए जानबूझकर काम में लाया जाता है।
      3. यह सरकार के कार्यक्रम की रणनीति है।
      4. इसमें राजकीय हस्तक्षेप किया जाता है।
      5. इसका उद्देश्ये सामाजिक प्रक्रिया को ऊपर उठाना होता है।

यह साधनों के अधिकतम ब श्रेष्ठतम उपयोग करने का तरीका है, ताकि सामाजिक उद्देश्यों की प्राप्ति हो सके ।

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नियोजन की विशेषताएँ या लक्षण-

आर्थिक नियोजन की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

    1. केन्द्रीय सत्ता की स्थापना– आर्थिक नियोजन में एक केन्द्रीय नियोजन सत्ता (आयोग) की स्थापना की जाती है। यह आयोग देश में उपलब्ध सीमित साधनों का सर्वेक्षण करती है और तदनुसार साधनों एवं उद्देश्यों को ध्यान में रखकर देश के विकास कार्यक्रमों को निश्चित करके एक संगठन बनाती है। इस प्रकार नियोजित अर्थव्यवस्था में अर्थव्यवस्था का संचालन एक केन्द्रीय सत्ता द्वारा किया जाता है।
    2. सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था में लागू होना– आर्थिक नियोजनकी दूसरी विशेषता यह है कि नियोजन देश के किसी एक भाग में लागू नहीं होता, बल्कि यह सम्पूर्ण देश में लागू होता है, ताकि पूरे देश का विकास नियोजित हो सके। न
    3. साथनों का अधिकतम लाभ हेतु उपयोग– आर्थिक नियोजन में देश में उपलब्ध साधनों का उपयोग सम्पूर्ण देश के अधिकतम लाभ को ध्यान में रखकर किया जाता है, किसी एक क्षेत्र विशेष के लिए नहीं।
    4. पूर्व निर्धारित उद्देश्य तथा उद्देश्यों की प्राप्ति – आर्थिक नियोजन में योजना बनाते समय ही उद्देश्यों को निश्चित कर लेते हैं, जिससे देश का आर्थिक विकास अधिक हो सके | उदाहरण के लिए, रोजगार के अवससों में वृद्धि, प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि, राष्ट्रीय आय में वृद्धि आदि उद्देश्यों को ध्यान में रखकर ही योजनाओं की रूपरेखा बनाई जाती है और उन्हें निश्चित समण में पर्ण करने की तरफ विशेष ध्यान दिया जाता है।
    5. आर्थिक सगठन की प्रणाली–आर्थिक नियोजन आर्थिक संगठन के बिने। सम्भव नहीं है। अत यह एक आर्थिक स्ंग5की प्रणाली है।
    6. दीर्घकालीन व्यवस्था– आर्थिक नियोजन प्राय: दीर्घकालीन योजनाओं के लिए किया जाता है। कभी-कभी इसमें अल्पकालीन योजनाओं का भी समावेश कर लिया जाता है।
    7. अर्थव्यवस्था में संरचनात्मक परिवर्तन– आर्थिक नियोजन में. देश की अर्थव्यवस्था में निर्धारित उद्देश्यों के अनुरूप संरचनात्मक परिवर्तन कर दिए जाते हैं जिससे योजना का लक्ष्य प्राप्त करके देश का आर्थिक विकास निश्चित समय पर किया जा सके।
    8. राज्य द्वारा हस्तक्षेप– योजना की सफलता हेतु ग़ज़कीय हस्तक्षेप आवश्यक है, देशवासियों को योजना की सफलता के लिए व्यक्तिगत हितों का त्याग करना पड़ता है तथा अधिक श्रम करना पड़ता है। बिना कष्ट उठाएं योजना की सफलतादुर्लभ है।
    9. मूल्यांकन तंत्र की आवश्यकता- योजना की सफलता हेतुनिष्पक्ष मूल्यांकन तंत्र की आवश्यकता है।
    10. समय सीमा- आर्थिक नियोजन के उद्देश्यों एवं लक्ष्यों को एक निश्चित समयमें पूरा करना आवश्यक है।
    11. प्राथमिकताओं का निर्धारण- नियोजित अर्थव्यवस्था में उद्देश्यों केमध्य प्राथमिकताएँ निर्धारित की जाती हैं।
    12. सन्तुलित आर्थिक विकास- नियोजित अर्थव्यवस्था में विभिन क्षेत्रों, उद्योगों एवं विकास की गति में सन्तुलन स्थापित कर देश के सवागीण आर्थिक विकास काप्रयत्न किया जाता है।

आर्थिक नियोजन के उद्देश्य-

प्रत्येक देश में योजना के उद्देश्य भिन्न-भिन्न होते हैं। वे वहाँ की परिस्थिति, प्राकृतिक साधनों की उपलब्ध मात्रा तथा आर्थिक स्थिति पर निर्भर करते हैं। आर्थिक योजना के प्रमुख उद्देश्यों को तीन प्रमुख भागों में बाँट सकते हैं-

आर्थिक उद्देश्य-

आर्थिक नियोजन के आर्थिक निम्नलिखित हैं-
  1. देश का सन्तुलित विकास करना- देश के आर्थिक विकास को सन्तुलित करने हेतु नियोजन की सतत्‌ आवश्यकता होती है। विभिन्न योजनाओं के समन्वय से ही देश का संतुलित एवं समुचित विकास सम्भव हो सकता है। जैसेसिंचाई के साधन, कृषि के लिए बिजली उत्पादन, परिवहन के साधन, शिक्षा आदि का विकास |
  2. राष्ट्रीय आय एवं प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि – नियोजन का प्रमुख उद्देश्य राष्ट्रीय आय में वृद्धि करना होता है। राष्ट्रीय आय में वृद्धि होने से ही प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि होगी, जिससे कि जनता के रहन-सहन का स्तर भी ऊँचा उठ सके।
  3. आय का समान वितरण – आर्थिक नियोजन का उद्देश्य आय की असमानता को दूर करना -है। यह अमीरों पर कर अधिक मात्रा में लगाकर तथा गरीबों को अनेक प्रकार की सुविधाएँ देकर किया जा सकता है।
  4. आर्थिक स्थिरता – देश में आर्थिक अस्थिरता योजनाबद्ध बिकास द्वारा ही सम्भव है। योजना के अभाव में तेजी या मंदी की स्थिति में जैसेमूल्य वृद्धि, बस्तुओं में कमी, रोजगार के अवसरों में कमी आदि से देश का सन्तुलन बिगड़ सकता है, जिससे जन-जीवन प्रभावित होगा। अतः देश की समस्याओं को ध्यान में रखकर योजनाएँ बनाकर कार्यान्वित की जाएँ तो देश में आर्थिक स्थिरता आ सकती है।
  5. देश के प्राकृतिक साधनों का उपयोग– नियोजन से देश में उपलब्ध साधनों का अधिकतम उपयोग करके कम कीमत से अधिक उत्पादन सम्भब हो सकता है। ऐसे उद्योगों की स्थापना उचित है, जिससे विदेशी मुद्रा की बचत हो तथा बस्तुओं के निर्यात से बिदेशी मुद्रा की प्राप्ति हो सके ।
  6. रोजगार के अवसरों में वृद्धि– देश में विभिन्‍न योजनाओं के क्रियान्वयन से नये-नये उद्योग कल-कारखाने खुलते हैं, जिनमें बेरोजगारों को काम मिलता है।
  7. पिछड़े क्षेत्रों का विकास– अर्द्ध विकसित एवं अल्पविकसित राष्ट्रों में पिछड़े क्षेत्रों का विकास योजनाओं के माध्यम से ही सम्भव है, जिससे देश का सन्तुलित विकास होकर अधिकतम सामाजिक कल्याण को प्राप्त किया जा सकता है। आर्थिक नियोजन के माध्यम से पिछड़े क्षेत्रों में उद्योग-धन्धों का विकास किया जाता है, जिससे वहाँ के लोगों की प्रतिव्यक्ति आय में वृद्धि होती है।
  8. आर्थिक सुरक्षा- देश में आर्थिक नियोजन से ही उत्पत्ति के विभिन्न साधनों को अत्यधिक सुविधाएँ दी जाती हैं, जिससे कि सभी साधनों को अपने परिश्रम का उचित प्रतिफल प्राप्त हो जाता है।
  9. अधिक उत्पादन- नियोजन का उद्देश्य अधिक उत्पादन होता है, जिससे जन-साधारण को वस्तुएँ सरलता से एवं उचित दामों पर प्राप्त हो सके और उनका जीवन-स्तर ऊँचा उठ सके।
  10. तकनीकी बिकास- आर्थिक नियोजन का उद्देश्य देश में तकनीकी विकास करना भी है। उत्पादन की नवीनतम वैज्ञानिक विधियों, तकनीकी अनुसंधान, नवप्रवर्तन आदि के माध्यम से पिछड़ी अर्थव्यवस्था को उन्नत करने में सहायता मिलती है तथा विश्व के अन्य देशों से प्रतिस्पर्द्धा की क्षमता में वृद्धि होती है।
  11. पूँजी निर्माण की गति त्तेज करना– आर्थिक नियोजन की सफलता पूँजी की पर्याप्तता पर निर्भर करती है। पूँजी निर्माण के लिए बचत तथा विनियोग को प्रोत्साहन देना जरूरी है। आर्थिक नियोजन की व्यूह रचना ऐसी होनी चाहिए कि लोगों में बचत करने तथा विनियोग करने के लिए प्रोत्साहन मिले। पूँजी निर्माण की गति तेज होने पर ही उद्योगों का बांछित विकास सम्भव है।
  12. अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में वृद्धि– आर्थिक नियोजन का एक उद्देश्य यह भी है कि देश में निर्मित माल का अधिक से अधिक निर्यात किया जाये और बाहर से होने वाले आयात में कमी की जाये | यह तभी सम्भव है, जब हम न्यूनतम लागत पर श्रेष्ठ किस्म का उत्पादन करें | उदारीकरण के इस युग में वही देश सफल हो सकता है, जिसके उत्पादन की लागत न्यूनतम हो तथा उत्पादन की किस्म उत्तम हो।
  13. कल्याणकारी राज्य की स्थापना- आर्थिक नियोजन के कार्यक्रमों के माध्यम से जनकल्याणकारी राज्य की स्थापना में मदद मिलती है। गरीबों तथा कम आय बाले लोगों के सर्वागीण उन्‍नति के लिए विभिन्‍न कार्यक्रम लागू करके उनका सामाजिक तथा आर्थिक स्तर उन्नत किया जा सकता है। सामाजिक सुरक्षा, श्रमकल्याण, वृद्धावस्था पेंशन, बेरोजगार लोगों को रोजगार के अवसर आदि प्रदान करके जीवनस्तर उन्नत किया जा सकता है। राज्य का यह दायित्य होता है कि समाज के पिछड़े विपनन तथा बेरोजगार लोगों के कल्याण की विभिन्‍न योजनाएँ लागू करके उनका स्तर ऊँचा उठाए। आर्थिक नियोजन के माध्यम से यह सम्भव होता है। अर्थात्‌ कल्याणकारी राज्य की स्थापना आर्थिक नियोजन का मुख्य ध्येय होना चाहिए।

 सामाजिक उद्देश्य-

सामाजिक नियोजन के उद्देश्य निम्नलिखित हैं-

    1. सामाजिक सुरक्षा- आर्थिक नियोजन का उद्देश्य देश में सामाजिक सुरक्षा की व्यवस्था करना होता है, जिससे जनता अधिक मेहनत व लगन से कार्य करके अधिकतम उत्पादन कर सके। सरकार बीमारी, बेकारी, अकस्मात मृत्यु, वृद्धावस्था, औद्योगिक उतार-चढ़ाव के समय पेंशन सामाजिक, बीमा चिकित्सा व्यवस्था, आश्रितों को लाभ आदि देकर सुरक्षा प्रदान कर सकती है
    2. अधिकतम सामाजिक लाभ- आर्थिक नियोजन में जनता के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य, मनोरंजन की ऐसी अनेक योजनाएँ प्रारम्भ की जाती हैं, जिससे कि अधिकतम सामाजिक लाभ प्राप्त हो सके।
    3. जनसंख्या वृद्धि पर नियन्त्रण- देश में तीत्र गति से बढ़ती हुई जनसंख्या पर रोक लगाने का उद्देश्य एक प्रमुख सामाजिक उद्देश्य होना चाहिए। इसके लिए योजना में आवश्यक प्रावधान किए जाने चाहिए। विकास की गति तेज करने के साथ-साथ वृद्धि की गति पर प्रभावपूर्ण नियंत्रण नहीं लगाया जाता है, तो आर्थिक विकास में वृद्धि को जनसंख्या वृद्धि निष्फल कर देती है।
    4. सामाजिक समानता- देश के सर्वांगीण तथा समुचित विकास हेतु नियोजन में सामाजिक समानता लाने हेतु विशेष योजनाओं का ध्यान रखना पड़ता है, जिससे अमीर और गरीब के बीच की दूरी कम हो तथा प्रत्येक व्यक्ति को अपनी योग्यता के अनुसार अपना विकास करने के समुचित अवसर प्राप्त हो सकें।

राजनैतिक उद्देश्य-

राजनैतिक नियोजन के  उद्देश्य निम्नलिखित हैं-

  1. सुरक्षा- देश में नियोजन का प्रमुख उद्देश्य देश को सुरक्षा की दृष्टि से शक्तिशाली बनाना है, जिससे दूसरे देशों द्वारा आक्रमण किए जाने पर अपनी सुरक्षा की जा सके । अतः सुरक्षा उद्योगों के उत्पादन को बढ़ाने तथा उनमें आत्मनिर्भर बनने हेतु योजनाएँ बनाई जाती हैं।
    2. शान्ति व्यवस्थां- नियोजन के माध्यम से देश एवं विदेशों में शान्ति व्यवस्था बनाये रखने पर विशेष ध्यान दिया जाने लगा है। योजनाबद्ध विकास के द्वारा ही देश में शान्ति की व्यवस्था सम्भव है। आन्तरिक शान्ति तथा बाह्य शान्ति दोनों ही आवश्यक है। विदेशों के साथ मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध स्थापित करना तथा देश के भीतर शान्ति की व्यवस्था बनाए रखना हमारा लक्ष्य होना चाहिए, ताकि आर्थिक विकास के कार्यक्रम निर्बाध गति से पूरे हो सकें ।
    3. अन्तर्राष्ट्रीय सौहाद– वर्तमान उदारीकरण के युग में साग् विश्व एक परिवार के रूप में विकसित हो रहा है। अतः हमें सभी देशों के साथ व्यापारिक सम्बन्ध स्थापित करना आवश्यक है। यह तभी सम्भव है, जब प्रत्येक देश शीतयुद्ध को टालने, बाजार हथियाने तथा एकाधिकार स्थापित करने का प्रयास नहीं करे । मुक्त व्यापार की नीति को अन्तर्राष्ट्रीय सौहा्द के माध्यम से ही क्रियान्वित किया जा सकता है।

आर्थिक नियोजन के लाभ तथा महत्व-

आर्थिक नियोजन आर्थिक क्रियाओं को संचालित करने की एक श्रेष्ठ प्रणाली है। सभी देश में इसका अत्यधिक महत्व रहता है। इससे कई लाभ होते हैं, जो कि इस प्रकार है –
1. सामाजिक समानता- सामाजिक समानता की स्थापना में नियोजन सहायक होता है | नियोजन में सीमित साधनों के उपयोग से कम समय में अधिकतम सन्तुष्टि प्राप्त करने का एवं गरीबों तथा अमीरों के बीच की असमानता को दूर करने का प्रयत्न किया जाता है।
2. संगठित आर्थिक जीवन- नियोजन में साधनों का उपयोग प्तमाज के अधिकतम लाभ के लिए सोच-समझकर किया ज़ाता है, जिससे आर्थिक जीवन के सम्पूर्ण अंग मंगठित हो जाते हैं।
3. आर्थिक क्रियाओं का ‘सावधानीपूर्वक सम्पादन- पूर्व निर्धारित लक्ष्यों को निश्चित समय में पूरा करने के लिए आर्थिक क्रियाओं का सम्पादन सावधानीपूर्वक किया जौता है।
4. बचत एवं उत्पादन में सम्बन्ध- बचत का उचित विनियोग आवश्यक है। विनियोग से अधिकतम उत्पादन प्राप्त करने हेतु इनमें उपयुक्त सम्बंन्ध स्थापित किए जा सकते हैं।
5. उत्पादन के साधनों की क्षमता में वृद्धि-नियोजन काल में उत्पादन के साधनों की क्षमता में वृद्धि करके कम लागत में अधिक उत्पादन प्राप्त करने का प्रयत्न किया जा सकता है। अतः ऊँचचतम संतुलित विनियोग से उत्पादन के साधनों की क्षमता बढ़ने लगती है।
6. व्यापारिक चक्र से सुरक्षा- नियोजित अर्थव्यवस्था में पूर्णरूपेण योजनाबद्ध तरीके से किया जाता है। निजी लाभ पर विचार न आर्थिक क्रियाओं का संचालन पूर्णरूपे’ करके राष्ट्रीय विकास पर विचार केद्द्रित रहता है। सभी आर्थिक तत्वों को सन्तुलित करके व्यापारिक चक्रों को रोकने का प्रयत्न किया जा सकता है।
7. सामाजिक शोषण का अन्त एवं रोजगार में वृद्धि- नियोजित अर्थव्यवस्था में सामाजिक शोषण का अन्त हो जाता है। साधनों के सन विनियोग के कारण विकास में तीत्रता के साथ-साथ रोजगार में वृद्धि होती है।
8. प्रतियोगिता के दोषों का अन्त- व्यक्तिगत लाभ की समाप्ति के कारण दोषयुक्त प्रतियोगिता प्रणाली भी समाप्त हो जाती है।
9. पूँजी निर्माण दर में वृद्धि- उत्पादन में वृद्धि के लक्ष्य को ध्यान में रखकर साधनों का आदर्श उपयोग किया जाता है तथा कृत्रिम कमी पर नियन्त्रण रखा जाता है।
10. सामाजिक कल्याण के कार्यों में वृद्धि- नियोजित अर्थ-व्यवस्था में सामाजिक सुरक्षा जन कल्याण के कार्यों को भी सम्पन्न किया जाता है।
11. संकटकालीन स्थिति हेतु नियोजन- संकटकालीन स्थिति में विभिन्‍न क्षेत्रों में केन्द्रीय नियन्त्रण लाभदायक होता है।
12. देश का सनन्‍तुलित विकास– नियोजन से देश के समस्त क्षेत्रों मे चहुँमुखी सनन्‍्तुलित विकास होता है। विकास का आधार सुदृढ़ होता है।
13. आत्मनिर्भरता- आर्थिक विकास के माध्यम से देश की स्थिति सुदृढ होती है और वह धीरे-धीरे आत्मनिर्भरता की अवस्था प्राप्त कर सकता है। किसी भी बात के लिए उसे किसी दुसरे देश पर निर्भर नहीं रहना पड़ता है।
14. राजनैतिक स्थिरिता- आर्थिक नियोजन का एक लाभ यह भी है कि विकास की गति तेज होने, लोगों का जीवन-स्तर ऊँचा उठने, रोजगार के अवसर बढ़ने तथा उद्योगों का विकास होने से राजनैतिक स्थिरता आती है, बार-बार सत्ता परिवर्तन नहीं होते हैं। बस्तुत: आर्थिक स्थिरता से डी राजनैतिक स्थिरता आती है।

 

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नियोजन के क्या लक्षण हैं?

भारत में नियोजन के लक्षण (Characteristics of planning in India In Hindi).
उपलब्ध संसाधनो का अधिकतम प्रयोग.
औद्योगीकरण में क्रमबद्ध वृद्धि..
कृषि एवं पशुपालन का समानांतर विकास..
इलेक्ट्रॉनिक एवं संप्रेषण क्षेत्र में तीव्र गति से आगे बढ़ाना..
शासकीय कार्यतंत्र / नौकरशाही में पारदर्शिता लाना..

नियोजन की विशेषता क्या है?

नियोजन की विशेषताएँ नियोजन संगठन, निर्देशन एवं नियन्त्रण की अगुवाई करता है यह प्रबन्ध के अन्य सभी कार्यो के लिए आधार प्रस्तुत करता है। सर्वव्यापी कार्य (Pervasive Function) - नियोजन संस्था के प्रत्येक विभाग के प्रत्येक स्तर पर किया जाता है। संस्था के संगठन, अभिप्रेरणा एवं नियंत्रण की प्रक्रिया मे भी नियोजन आवश्यक है।

नियोजन के प्रकार क्या है?

नियोजन के प्रकार दीर्घकालीन नियोजन, दीर्घकालीन उद्देश्यों की पूर्ति के लिए किया जाता है। जैसे पूंजीगत सम्पत्तियों की व्यवस्था करना, कुशल कार्मिकों की व्यवस्था करना, नवीन पूंजीगत योजनाओं को कार्यान्वित करना, स्वस्थ प्रतिस्पर्द्धा बनाये रखना आदि। 2. अल्पकालीन नियोजन - यह नियोजन अल्पअवधि के लिये किया जाता है।

नियोजन क्या अर्थ है?

वर्तमान परिस्थितियों को ध्यान में रखकर किसी लक्ष्य की प्राप्ति के लिए भविष्य की रुपरेखा तैयार करने के लिए आवश्यक क्रियाकलापों के बारे में चिन्तन करना आयोजन या नियोजन (Planning) कहलाता है। यह प्रबन्धन का प्रमुख घटक है