1 Crore+ students have signed up on EduRev. Have you? Show लघु उत्तरीय प्रश्न प्रश्न 2:
लोटा बिकने की स्थिति में सबसे अधिक फायदे में कौन रहा? प्रश्न 3: ‘‘उस दिन रात्रि में बिलवासी जी को देर तक नींद नहीं आई’’ समस्या झाऊलाल की थी और नींद बिलवासी की उड़ी तो क्यों? लिखिए। प्रश्न 4: पंडित जी ने अंग्रेज को लोटे की क्या कथा बताई? प्रश्न 5: बिलवासी जी ने जिस तरीके से रुपयों का प्रबन्ध किया, वह सही था या गलत? दीर्घ उत्तरीय प्रश्न प्रश्न
2: बिलवासी मिश्र की चारित्रिक विशेषताएँ लिखिए। प्रश्न 3: लाला जी को अंग्रेज से किसने बचाया और
कैसे? प्रश्न 4: लाला जी को बिलवासी जी पर गुस्सा क्यों आ रहा था? प्रश्न 5: बिलवासी जी ने रुपयों का प्रबंध किस प्रकार किया था? मूल्यपरक
प्रश्न The document Important Questions: अकबरी लोटा Notes | Study Hindi Class 8 - Class 8 is a part of the Class 8 Course Hindi Class 8. All you need of Class 8 at this link: Class 8 पं बिलवासी मिश्र ने अपने मित्र लाला झाऊलाल की सहायता के लिए रुपयों का प्रबंध कैसे किया?प्रश्न 5: बिलवासी जी ने रुपयों का प्रबंध किस प्रकार किया था? उत्तर: बिलवासी जी ने अपने मित्र लाला झाऊलाल की रुपयों की समस्या का समाधान करने के लिए अपनी पत्नी के गले में पड़ी चाबी रात में सोते समय निकालकर उसके संदूक में पड़े रुपयों को निकाल लिया और लाला जी के घर उसे देने पहुँच गए।
अकबरी लोटा पाठ में बिलवासी जी ने झाऊलाल की कैसे मदद की थी आप उनके स्थान पर होते तो क्या करते?लाला झाऊलाल जब तब दौड़कर नीचे उतरे तब तक एक भारी भीड़ उनके आँगन में घुस आई। दूसरे पैर पर नाच रहा है। उसी के पास अपराधी लोटे को भी देखकर लाला झाऊलाल जी ने फौरन दो और दो जोड़कर स्थिति को समझ लिया। गिरने के पूर्व लोटा एक दुकान के सायबान से टकराया।
लोटा प्रकरण में पंडित बिलवासी मिश्र ने अपनी क्या भूमिका निभाई?यह सुनकर अंग्रेज़ लोटा खरीदने हेतु लालायित हो उठा और उसने पाँच सौ रुपए मैं उसे खरीद लिया। लालाजी को तो अपनी पत्नी को देने के लिए ढाई सौ रुपयों की जरूरत थी जबकि बिलवासी जी ने उन्हें पाँच सौ रुपए थमा दिए। “लाला ने लोटा ले लिया, बोले कुछ नहीं, अपनी पत्नी का अदब मानते थे।” लाला झाऊलाल को बेढंगा लोटा बिलकुल पसंद नहीं था।
लाला झाउलाल कहाँ रहते थे और उनकी आय का स्रोत क्या था?Answer: लाला झाऊलाल काशी के ठठेरी बाज़ार में रहते थे। उन्हें दुकानों से करीब एक सौ रुपये किराया मिल जाता था जो उनकी आय का साधन था।
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