प्राचीन भारत के परमाणु वैज्ञानिक कौन थे? - praacheen bhaarat ke paramaanu vaigyaanik kaun the?

पाश्चात्य वैज्ञानिकों के बारे मे विश्व के अधिकाँश लोगों को काफी जानकारी है। विद्यालयों मे भी इस विषय पर काफी कुछ पढ़ाया जाता है। पर बड़े खेद की बात है कि प्राचीन भारत के महान वैज्ञानिकों के बारे मे आज भी संसार बहुत कम जानता है। हमारे देश के विद्यार्थियों को भी अपने देश के चरक, सुश्रुत, आर्यभट तथा भास्कराचार्य आदि चोटी के प्राचीन वैज्ञानिकों के कृतित्व की जानकारी शायद नहीं होगी। आचार्य कणाद परमाणु संरचना पर सर्वप्रथम प्रकाश डालने वाले महापुरूष आचार्य कणाद का जन्म ६०० ईसा पूर्व हुआ थाI उनका नाम आज भी डॉल्टन के साथ जोडा जाता हैं, क्योंकि पहले कणाद ने बताया था कि पदार्थ अत्यन्त सूक्ष्म कणों से बना हुआ हैंI उनका यह विचार दार्शनिक था, उन्होंने इन सूक्ष्म कणों को परमाणु नाम दियाI बाद में डॉल्टन ने परमाणु का सिद्धांत प्रस्तुत कियाI परमाणु को अंग्रेजी भाषा में एटम कहते हैंI कणाद का कहना था– "यदि किसी पदार्थ को बार-बार विभाजित किया जाए और उसका उस समय तक विभाजन होता रहे, जब तक वह आगे विभाजित न हो सके, तो इस सूक्ष्म कण को परमाणु कहते हैंI परमाणु स्वतंत्र रूप से नहीं रह सकतेI परमाणु का विनाश कर पाना भी सम्भव नहीं हैंI"

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बौधायन,

चरक,

कौमारभृत्य जीवक,

सुश्रुत,

आर्यभट,

वराह मिहिर,

ब्रह्मगुप्त,

वाग्भट,

नागार्जुन

भास्कराचार्य

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

  • प्राचीन भारतीय विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी
  • भारतीय गणितज्ञ सूची

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]

  • प्राचीन भारत के वैज्ञानिक कर्णधार (गूगल पुस्तक; लेखक - सत्यप्रकाश सरस्वती)

  • दक्षिण एशिया तथा
भारतीय उपमहाद्वीप का इतिहास
प्राचीन भारत के परमाणु वैज्ञानिक कौन थे? - praacheen bhaarat ke paramaanu vaigyaanik kaun the?

पाषाण युग (७०००–३००० ई.पू.)

  • निम्न पुरापाषाण (२० लाख वर्ष पूर्व)
  • मध्य पुरापाषाण (८० हजार वर्ष पूर्व)
  • मध्य पाषाण (१२ हजार वर्ष पूर्व)
  • (नवपाषाण)
  •  – मेहरगढ़ संस्कृति (७०००–३३०० ई.पू.)
  • ताम्रपाषाण (६००० ई.पू.)

कांस्य युग (३०००–१३०० ई.पू.)

  • सिन्धु घाटी सभ्यता (३३००–१३०० ई.पू.)
  •  – प्रारंभिक हड़प्पा संस्कृति (३३००–२६०० ई.पू.)
  •  – परिपक्व हड़प्पा संस्कृति (२६००–१९०० ई.पू.)
  •  – गत हड़प्पा संस्कृति (१७००–१३०० ई.पू.)
  • गेरूए रंग के मिट्टी के बर्तनों संस्कृति (२००० ई.पू. से)
  • गांधार कब्र संस्कृति (१६००–५०० ई.पू.)

लौह युग (१२००–२६ ई.पू.)

  • वैदिक सभ्यता (२०००–५०० ई.पू.)
  •  – जनपद (१५००-६०० ई.पू.)
  •  – काले और लाल बर्तन की संस्कृति (१३००–१००० ई.पू.)
  •  – धूसर रंग के बर्तन की संस्कृति (१२००–६०० ई.पू.)
  •  – उत्तरी काले रंग के तराशे बर्तन (७००–२०० ई.पू.)
  •  – मगध महाजनपद (५००–३२१ ई.पू.)
  • प्रद्योत वंश (७९९–६८४ ई.पू.)
  • हर्यक राज्य (६८४–४२४ ई.पू.)
  • तीन अभिषिक्त साम्राज्य (६०० ई.पू.-१६०० ई.)
  • महाजनपद (६००–३०० ई.पू.)
  • रोर राज्य (४५० ई.पू.–४८९ ईसवी)
  • शिशुनागा राज्य (४१३–३४५ ई.पू.)
  • नंद साम्राज्य (४२४–३२१ ई.पू.)
  • मौर्य साम्राज्य (३२१–१८४ ई.पू.)
  • पाण्ड्य साम्राज्य (३०० ई.पू.–१३४५ ईसवी)
  • चेर राज्य (३०० ई.पू.–११०२ ईसवी)
  • चोल साम्राज्य (३०० ई.पू.–१२७९ ईसवी)
  • पल्लव साम्राज्य (२५० ई.पू.–८०० ईसवी)
  • महा-मेघा-वाहन राजवंश (२५० ई.पू.–४०० ईसवी)

मध्य साम्राज्य (२३० ई.पू.–१२०६ ईसवी)

  • सातवाहन साम्राज्य (२३० ई.पू.–२२० ईसवी)
  • कूनिंदा राज्य (२०० ई.पू.–३०० ईसवी)
  • मित्रा राजवंश (१५० ई.पू.-५० ई.पू.)
  • शुंग साम्राज्य (१८५–७३ ई.पू.)
  • हिन्द-यवन राज्य (१८० ई.पू.–१० ईसवी)
  • कानवा राजवंश (७५–२६ ई.पू.)
  • हिन्द-स्क्य्थिंस राज्य (२०० ई.पू.–४०० ईसवी)
  • हिंद-पार्थियन राज्य (२१–१३० ईसवी)
  • पश्चिमी क्षत्रप साम्राज्य (३५–४०५ ईसवी)
  • कुषाण साम्राज्य (६०–२४० ईसवी)
  • भारशिव राजवंश (१७०-३५० ईसवी)
  • पद्मावती के नागवंश (२१०-३४० ईसवी)
  • हिंद-सासनिद् राज्य (२३०–३६० ईसवी)
  • वाकाटक साम्राज्य (२५०–५०० ईसवी)
  • कालाब्रा राज्य (२५०–६०० ईसवी)
  • गुप्त साम्राज्य (२८०–५५० ईसवी)
  • कदंब राज्य (३४५–५२५ ईसवी)
  • पश्चिम गंग राज्य (३५०–१००० ईसवी)
  • कामरूप राज्य (३५०–११०० ईसवी)
  • विष्णुकुंड राज्य (४२०–६२४ ईसवी)
  • मैत्रक राजवंश (४७५–७६७ ईसवी)
  • हुन राज्य (४७५–५७६ ईसवी)
  • राय राज्य (४८९–६३२ ईसवी)
  • चालुक्य साम्राज्य (५४३–७५३ ईसवी)
  • शाही साम्राज्य (५००–१०२६ ईसवी)
  • मौखरी राज्य (५५०–७०० ईसवी)
  • हर्षवर्धन साम्राज्य (५९०–६४७ ईसवी)
  • तिब्बती साम्राज्य (६१८-८४१ ईसवी)
  • पूर्वी चालुक्यों राज्य (६२४–१०७५ ईसवी)
  • गुर्जर-प्रतिहार राज्य (६५०–१०३६ ईसवी)
  • पाल साम्राज्य (७५०–११७४ ईसवी)
  • राष्ट्रकूट साम्राज्य (७५३–९८२ ईसवी)
  • परमार राज्य (८००–१३२७ ईसवी)
  • यादवों राज्य (८५०–१३३४ ईसवी)
  • सोलंकी राज्य (९४२–१२४४ ईसवी)
  • प्रतीच्य चालुक्य राज्य (९७३–११८९ ईसवी)
  • लोहारा राज्य (१००३-१३२० ईसवी)
  • होयसल राज्य (१०४०–१३४६ ईसवी)
  • सेन राज्य (१०७०–१२३० ईसवी)
  • पूर्वी गंगा राज्य (१०७८–१४३४ ईसवी)
  • काकतीय राज्य (१०८३–१३२३ ईसवी)
  • ज़मोरीन राज्य (११०२-१७६६ ईसवी)
  • कलचुरी राज्य (११३०–११८४ ईसवी)
  • शुतीया राजवंश (११८७-१६७३ ईसवी)
  • देव राजवंश (१२००-१३०० ईसवी)

देर मध्ययुगीन युग (१२०६–१५९६ ईसवी)

  • दिल्ली सल्तनत (१२०६–१५२६ ईसवी)
  •  – ग़ुलाम सल्तनत (१२०६–१२९० ईसवी)
  •  – ख़िलजी सल्तनत (१२९०–१३२० ईसवी)
  •  – तुग़लक़ सल्तनत (१३२०–१४१४ ईसवी)
  •  – सय्यद सल्तनत (१४१४–१४५१ ईसवी)
  •  – लोदी सल्तनत (१४५१–१५२६ ईसवी)
  • आहोम राज्य (१२२८–१८२६ ईसवी)
  • चित्रदुर्ग राज्य (१३००-१७७९ ईसवी)
  • रेड्डी राज्य (१३२५–१४४८ ईसवी)
  • विजयनगर साम्राज्य (१३३६–१६४६ ईसवी)
  • बंगाल सल्तनत (१३५२-१५७६ ईसवी)
  • गढ़वाल राज्य (१३५८-१८०३ ईसवी)
  • मैसूर राज्य (१३९९–१९४७ ईसवी)
  • गजपति राज्य (१४३४–१५४१ ईसवी)
  • दक्खिन के सल्तनत (१४९०–१५९६ ईसवी)
  •  – अहमदनगर सल्तनत (१४९०-१६३६ ईसवी)
  •  – बेरार सल्तनत (१४९०-१५७४ ईसवी)
  •  – बीदर सल्तनत (१४९२-१६९९ ईसवी)
  •  – बीजापुर सल्तनत (१४९२-१६८६ ईसवी)
  •  – गोलकुंडा सल्तनत (१५१८-१६८७ ईसवी)
  • केलाड़ी राज्य (१४९९–१७६३)
  • कोच राजवंश (१५१५–१९४७ ईसवी)

प्रारंभिक आधुनिक काल (१५२६–१८५८ ईसवी)

  • मुग़ल साम्राज्य (१५२६–१८५८ ईसवी)
  • सूरी साम्राज्य (१५४०–१५५६ ईसवी)
  • मदुरै नायक राजवंश (१५५९–१७३६ ईसवी)
  • तंजावुर राज्य (१५७२–१९१८ ईसवी)
  • बंगाल सूबा (१५७६-१७५७ ईसवी)
  • मारवा राज्य (१६००-१७५० ईसवी)
  • तोंडाइमन राज्य (१६५०-१९४८ ईसवी)
  • मराठा साम्राज्य (१६७४–१८१८ ईसवी)
  • सिक्खों की मिसलें (१७०७-१७९९ ईसवी)
  • दुर्रानी साम्राज्य (१७४७–१८२३ ईसवी)
  • त्रवनकोर राज्य (१७२९–१९४७ ईसवी)
  • सिख साम्राज्य (१७९९–१८४९ ईसवी)

औपनिवेशिक काल (१५०५–१९६१ ईसवी)

  • पुर्तगाली भारत (१५१०–१९६१ ईसवी)
  • डच भारत (१६०५–१८२५ ईसवी)
  • डेनिश भारत (१६२०–१८६९ ईसवी)
  • फ्रांसीसी भारत (१७५९–१९५४ ईसवी)
  • कंपनी राज (१७५७–१८५८ ईसवी)
  • ब्रिटिश राज (१८५८–१९४७ ईसवी)
  • भारत का विभाजन (१९४७ ईसवी)

श्रीलंका के राज्य

  • टैमबापन्नी के राज्य (५४३–५०५ ई.पू.)
  • उपाटिस्सा नुवारा का साम्राज्य (५०५–३७७ ई.पू.)
  • अनुराधापुरा के राज्य (३७७ ई.पू.–१०१७ ईसवी)
  • रोहुन के राज्य (२०० ईसवी)
  • पोलोनारोहवा राज्य (३००–१३१० ईसवी)
  • दम्बदेनिय के राज्य (१२२०–१२७२ ईसवी)
  • यपहुव के राज्य (१२७२–१२९३ ईसवी)
  • कुरुनेगाल के राज्य (१२९३–१३४१ ईसवी)
  • गामपोला के राज्य (१३४१–१३४७ ईसवी)
  • रायगामा के राज्य (१३४७–१४१२ ईसवी)
  • कोटि के राज्य (१४१२–१५९७ ईसवी)
  • सीतावाखा के राज्य (१५२१–१५९४ ईसवी)
  • कैंडी के राज्य (१४६९–१८१५ ईसवी)
  • पुर्तगाली सीलोन (१५०५–१६५८ ईसवी)
  • डच सीलोन (१६५६–१७९६ ईसवी)
  • ब्रिटिश सीलोन (१८१५–१९४८ ईसवी)

राष्ट्र इतिहास

  • अफ़्गानिस्तान
  • बांग्लादेश
  • भूटान
  • भारत
  • मालदीव
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्रीलंका

क्षेत्रीय इतिहास

  • असम
  • बिहार
  • बलूचिस्तान
  • बंगाल
  • हिमाचल प्रदेश
  • महाराष्ट्र
  • मध्य भारत
  • उत्तर प्रदेश
  • पंजाब
  • ओड़िशा
  • सिंध
  • दक्षिण भारत
  • तिब्बत

विशेष इतिहास

  • सिक्का
  • राजवंशों
  • आर्थिक
  • इंडोलॉजी
  • भाषाई
  • साहित्य
  • सेना
  • विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी
  • समयचक्र

  • दे
  • वा
  • सं

प्राचीन भारतीय विज्ञान तथा तकनीक को जानने के लिये प्राचीन साहित्य और पुरातत्व का सहारा लेना पड़ता है। प्राचीन भारत का साहित्य अत्यन्त विपुल एवं विविधता सम्पन्न है। इसमें धर्म, दर्शन, भाषा, शिक्षा आदि के अतिरिक्त गणित, ज्योतिष, सैन्य विज्ञान, आयुर्वेद, रसायन, धातुकर्म, आदि भी वर्ण्यविषय रहे हैं।[1]

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में प्राचीन भारत के कुछ योगदान निम्नलिखित हैं-[2][3]

  • गणित - वैदिक साहित्य शून्य के कांसेप्ट, बीजगणित की तकनीकों तथा कलन-पद्धति, वर्गमूल, घनमूल के कांसेप्ट से भरा हुआ है।
  • खेल - शतरंज, लुडो, साँप-सीढ़ी एवं ताश के खेलों का जन्म प्राचीन भारत में ही हुआ।
  • ललित कला - वेदों का पाठ किया जाता था जो सस्वर एवं शुद्ध होना आवश्यक था। इसके फलस्वरूप वैदिक काल में ही ध्वनि एवं ध्वनिकी का सूक्ष्म अध्ययन आरम्भ हुआ।
  • ज्योतिष -
  • खगोलविज्ञान - ऋग्वेद (1500 ईसापूर्व) में खगोलविज्ञान का उल्लेख है।
  • भौतिकी - ६०० ईसापूर्व के भारतीय दार्शनिक ने परमाणु एवं आपेक्षिकता के सिद्धान्त का स्पष्ट उल्लेख किया है।
  • रसायन विज्ञान - इत्र का आसवन, गन्दहयुक्त द्रव, वर्ण एवं रंजकों (dyes and pigments) का निर्माण, शर्करा का निर्माण
  • आयुर्विज्ञान एवं आयुर्वेद - लगभग ८०० ईसापूर्व भारत में चिकित्सा एवं शल्यकर्म पर पहला ग्रन्थ का निर्माण हुआ था।
  • सैन्य विज्ञान
  • सिविल इंजीनियरी एवं वास्तुशास्त्र - मोहनजोदड़ो एवं हड़प्पा से प्राप्त नगरीय सभयता उस समय में उन्नत सिविल इंजीनियरी एवं आर्किटेक्चर के अस्तित्व कको प्रमाणित करती है।
  • यांत्रिक एवं वाहन प्रौद्योगिकी - यान-निर्माण एवं नौवहन (Shipbuilding & navigation) - संस्कृत एवं पालि ग्रन्थों में अनेक क्रियाकलापों के उल्लेख मिलते हैं।
  • धातुकर्म - ग्रीक इतिहासकारों ने लिखा है कि चौथी शताब्दी ईसापूर्व में भारत में कुछ धातुओं का प्रगलन (स्मेल्टिंग) की जाती थी।

प्राचीन भारत के प्रमुख शास्त्र[संपादित करें]

प्राचीन समय में न आफसेट प्रिंटिंग की मशीने थीं, न स्क्रिन प्रिटिंग की मशीनें। न ही इंटरनेट था जहां किसी भी विषय पर असंख्य सूचनाएं उपलब्ध होती हैं। फिर भी प्राचीन काल के ऋषि-मुनियों ने अपने पुरुषार्थ, ज्ञान और शोध की मदद से कई शास्त्रों की रचना की और उसे विकसित भी किया। इनमें से कुछ प्रमुख शास्त्रों का विवेचन प्रस्तुत है-

आयुर्वेदशास्त्र[संपादित करें]

आयुर्वेद शास्त्र का विकास उत्तरवैदिक काल में हुआ। इस विषय पर अनेक स्वतंत्र ग्रंथों की रचना हुई। भारतीय परम्परा के अनुसार आयुर्वेद की रचना सबसे पहले ब्रह्मा ने की। ब्रह्मा ने प्रजापति को, प्रजापति ने अश्विनी कुमारों को और फिर अश्विनी कुमारों ने इस विद्या को इन्द्र को प्रदान किया। इन्द्र के द्वारा ही यह विद्या सम्पूर्ण लोक में विस्तारित हुई। इसे चार उपवेदों में से एक माना गया है।

कुछ विद्वानों के अनुसार यह ऋग्वेद का उपवेद है तो कुछ का मानना है कि यह ‘अथर्ववेद’ का उपवेद है। आयुर्वेद की मुख्य तीन परम्पराएं हैं- भारद्वाज, धनवन्तरि और काश्यप। आयुर्वेद विज्ञान के आठ अंग हैं- शल्य, शालाक्य, कायचिकित्सा, भूतविधा, कौमारमृत्य, अगदतन्त्रा, रसायन और वाजीकरण। चरक संहिता, सुश्रुत संहिता, काश्यप संहिता इसके प्रमुख ग्रंथ हैं जिन पर बाद में अनेक विद्वानों द्वारा व्याख्याएं लिखी गईं।

आयुर्वेद के सबसे महत्वपूर्ण ग्रन्थ चरकसंहिता के बारे में ऐसा माना जाता है कि मूल रूप से यह ग्रन्थ आत्रेय पुनर्वसु के शिष्य अग्निवेश ने लिखा था। चरक ऋषि ने इस ग्रन्थ को संस्कृत में रूपांतरित किया। इस कारण इसका नाम चरक संहिता पड़ गया। बताया जाता है कि पतंजलि ही चरक थे। इस ग्रन्थ का रचनाकाल ईं. पू. पांचवी शताब्दी माना जाता है।

रसायनशास्त्र[संपादित करें]

रसायनशास्त्र का प्रारंभ वैदिक युग से माना गया है। प्राचीन ग्रंथों में रसायनशास्त्र के ‘रस’ का अर्थ होता था-पारद। पारद को भगवान शिव का वीर्य माना गया है। रसायनशास्त्र के अंतर्गत विभिन्न प्रकार के खनिजों का अध्ययन किया जाता था। वैदिक काल तक अनेक खनिजों की खोज हो चुकी थी तथा उनका व्यावहारिक प्रयोग भी होने लगा था। परंतु इस क्षेत्र में सबसे ज्यादा काम नागार्जुन नामक बौद्ध विद्वान ने किया। उनका काल लगभग 280-320 ई. था। उन्होंने एक नई खोज की जिसमें पारे के प्रयोग से तांबा इत्यादि धातुओं को सोने में बदला जा सकता था।

रसायनशास्त्र के कुछ प्रसिद्ध ग्रंथों में एक है रसरत्नाकर। इसके रचयिता नागार्जुन थे। इसके कुल आठ अध्याय थे परंतु चार ही हमें प्राप्त होते हैं। इसमें मुख्यत: धातुओं के शोधन, मारण, शुद्ध पारद प्राप्ति तथा भस्म बनाने की विधियों का वर्णन मिलता है।

प्रसिद्ध रसायनशास्त्री श्री गोविन्द भगवतपाद जो शंकराचार्य के गुरु थे, द्वारा रचित ‘रसहृदयतन्त्र’ ग्रंथ भी काफी लोकप्रिय है। इसके अलावा रसेन्द्रचूड़ामणि, रसप्रकासुधाकर रसार्णव, रससार आदि ग्रन्थ भी रसायनशास्त्र के ग्रन्थों में ही गिने जाते हैं।

ज्योतिषशास्त्र[संपादित करें]

ज्योतिष वैदिक साहित्य का ही एक अंग है। इसमें सूर्य, चन्द्र, पृथ्वी, नक्षत्र, ऋतु, मास, अयन आदि की स्थितियों पर गंभीर अध्ययन किया गया है। इस विषय में हमें ‘वेदांग ज्योतिष’ नामक ग्रंथ प्राप्त होता है। इसके रचना का समय 1200 ई. पू. माना गया है। आर्यभट्ट ज्योतिष गणित के सबसे बड़े विद्वान के रूप में माने जाते हैं। एक अनुमान के अनुसार इनका जन्म 476 ई. में पटना (कुसुमपुर) में हुआ था। मात्र 23 वर्ष की उम्र में इन्होंने ‘आर्यभट्टीय’ नामक प्रसिद्ध ज्योतिष ग्रंथ की रचना की। इस ग्रंथ में पूरे 121 श्लोक हैं। इसे चार खण्डों में बांटा गया है- गीतिकापाद, गणितपाद, कालक्रियापाद और गोलपाद।

वराहमिहिर के उल्लेख के बिना तो भारतीय ज्योतिष की चर्चा अधूरी है। इनका समय छठी शताब्दी ई. के आरम्भ का है। इन्होंने चार प्रसिद्ध ग्रंथों की रचना की- पंचसिद्धान्तिका, वृहज्जातक, वृहदयात्रा तथा वृहत्संहिता जो ज्योतिष को समझने में मदद करती हैं।

गणितशास्त्र[संपादित करें]

प्राचीन काल से ही भारत में गणितशास्त्र का विशेष महत्व रहा है। यह सभी जानते हैं कि शून्य एवं दशमलव की खोज भारत में ही हुई। यह भारत के द्वारा विश्व को दी गई अनमोल देन है। इस खोज ने गणितीय जटिलताओं को खत्म कर दिया। गणितशास्त्र को मुख्यत: तीन भागों में बांटा गया है। अंकगणित, बीजगणित और रेखागणित।

वैदिक काल में अंकगणित अपने विकसित स्वरूप में स्थापित था। ‘यजुर्वेद’ में एक से लेकर 10 खरब तक की संख्याओं का उल्लेख मिलता है। इन अंकों को वर्णों में भी लिखा जा सकता था।

बीजगणित का साधारण अर्थ है, अज्ञात संख्या का ज्ञात संख्या के साथ समीकरण करके अज्ञात संख्या को जानना। अंग्रेजी में इसे ही अलजेब्रा कहा गया है। भारतीय बीजगणित के अविष्कार पर विवाद था। कुछ विद्वानों का मानना था इसके अविष्कार का श्रेय यूनानी विद्वान दिये फान्तस को है। परंतु अब यह साबित हो चुका है कि भारतीय बीजगणित का विकास स्वतंत्र रूप से हुआ है और इसका श्रेय भारतीय विद्वान आर्यभट (446 ई.) को जाता है।

रेखागणित का अविष्कार भी वैदिक युग में ही हो गया था। इस विद्या का प्राचीन नाम है- शुल्वविद्या या शुल्वविज्ञान। अनेक पुरातात्विक स्थलों की खुदाई में प्राप्त यज्ञशालाएं, वेदिकाएं, कुण्ड इत्यादि को देखने तथा इनके अध्ययन करने पर हम पाते हैं कि इनका निर्माण रेखागणित के सिद्धांत पर किया गया है। ब्रह्मस्फुट सिद्धांत, नवशती, गणिततिलक, बीजगणित, गणितसारसंग्रह, गणित कौमुदी इत्यादि गणित शास्त्र के प्रमुख ग्रन्थ हैं।

कामशास्त्र[संपादित करें]

भारतीय समाज में पुरुषार्थ का काफी महत्व है। पुरुषार्थ चार हैं- धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष। काम का इसमें तीसरा स्थान है। सर्वप्रथम नन्दी ने 1000 अध्यायों का ‘कामशास्त्र’ लिखा जिसे बाभ्रव्य ने 150 अध्यायों में संक्षिप्त रूप में लिखा। कामशास्त्र से संबंधित सबसे प्रसिद्ध ग्रंथ है ‘कामसूत्र’ जिसकी रचना वात्स्यायन ने की थी। इस ग्रंथ में 36 अध्याय हैं जिसमें भारतीय जीवन पद्धति के बारे में बताया गया है। इसमें 64 कलाओं का रोचक वर्णन है। इसके अलावा एक और प्रसिद्ध ग्रंथ है ‘कुहनीमत’ जो एक लघुकाव्य के रूप में है। कोक्कक पंडित द्वारा रचित रतिरहस्य को भी बेहद पसंद किया जाता है।

संगीतशास्त्र[संपादित करें]

भारतीय परंपरा में भगवान शिव को संगीत तथा नृत्य का प्रथम अचार्य कहा गया है। कहा जाता है के नारद ने भगवान शिव से ही संगीत का ज्ञान प्राप्त किया था। इस विषय पर अनेक ग्रंथ प्राप्त होते हैं जैसे नारदशिक्षा, रागनिरूपण, पंचमसारसंहिता, संगीतमकरन्द आदि।

संगीतशास्त्र के प्रसिद्ध आचार्यों में मुख्यत: उमामहेश्वर, भरत, नन्दी, वासुकि, नारद, व्यास आदि की गिनती होती है। भरत के नाटयशास्त्र के अनुसार गीत की उत्पत्ति जहां सामवेद से हुई है, वहीं यजुर्वेद ने अभिनय (नृत्य) का प्रारंभ किया।

धर्मशास्त्र[संपादित करें]

प्राचीन काल में शासन व्यवस्था धर्म आधारित थी। प्रमुख धर्म मर्मज्ञों वैरवानस, अत्रि, उशना, कण्व, कश्यप, गार्ग्य, च्यवन, बृहस्पति, भारद्वाज आदि ने धर्म के विभिन्न सिद्धांतों एवं रूपों की विवेचना की है। पुरुषार्थ के चारों चरणों में इसका स्थान पहला है।

उत्तर काल में लिखे गये संग्रह ग्रंथों में तत्कालीन समय की सम्पूर्ण धार्मिक व्यवस्था का वर्णन मिलता है। स्मृतिग्रंथों में मनुस्मृति, याज्ञवल्कय स्मृति, पराशर स्मृति, नारदस्मृति, बृहस्पतिस्मृति में लोकजीवन के सभी पक्षों की धार्मिक दृष्टिकोण से व्याख्या की गई है तथा कुछ नियम भी प्रतिपादित किये गये हैं।

अर्थशास्त्र[संपादित करें]

चार पुरुषार्थो में अर्थ का दूसरा स्थान है। महाभारत में वर्णित है कि ब्रह्मा ने अर्थशास्त्र पर एक लाख विभागों के एक ग्रंथ की रचना की। इसके बाद शिव (विशालाक्ष) ने दस हजार, इन्द्र ने पांच हजार, बृहस्पति ने तीन हजार, उशनस ने एक हजार विभागों में इसे संक्षिप्त किया।

अर्थशास्त्र के अंतर्गत केवल वित्त संबंधी चर्चा का ही उल्लेख नहीं किया गया है। वरन राजनीति, दण्डनीति और नैतिक उपदेशों का भी वृहद वर्णन मिलता है। अर्थशास्त्र का सबसे प्रसिद्ध ग्रंथ है कौटिल्य का अर्थशास्त्र। इसकी रचना चाणक्य ने की थी। चाणक्य का जीवन काल चतुर्थ शताब्दी के आस-पास माना जाता है।

कौटिल्य अर्थशास्त्र में धर्म, अर्थ, राजनीति, दण्डनीति आदि का विस्तृत उपदेश है। इसे 15 अधिकरणों में बांटा गया है। इसमें वेद, वेदांग, इतिहास, पुराण, धार्मशास्त्र, अर्थशास्त्र, ज्योतिष आदि विद्याओं के साथ अनेक प्राचीन अर्थशास्त्रियों के मतों के साथ विषय को प्रतिपादित किया गया है। इसके अलावा अन्य महत्वपूर्ण ग्रंथ है कामन्दकीय नीतिसार, नीतिवाक्यामृत, लघुअर्थनीति इत्यादि।

प्रौद्योगिकी ग्रन्थ[संपादित करें]

'भृगुशिल्पसंहिता' में १६ विज्ञान तथा ६४ प्रौद्योगिकियों का वर्णन है। इंजीनियरी प्रौद्योगिकियों के तीन 'खण्ड' होते थे। 'हिन्दी शिल्पशास्त्र' नामक ग्रन्थ में कृष्णाजी दामोदर वझे ने ४०० प्रौद्योगिकी-विषयक ग्रन्थों की सूची दी है, जिसमें से कुछ निम्नलिखित हैं-

विश्वमेदिनीकोश, शंखस्मृति, शिल्पदीपिका, वास्तुराजवल्लभ, भृगुसंहिता, मयमतम्, मानसार, अपराजितपृच्छा, समरांगणसूत्रधार, कश्यपसंहिता, वृहतपराशरीय-कृषि, निसारः, शिगृ, सौरसूक्त, मनुष्यालयचंद्रिका, राजगृहनिर्माण, दुर्गविधान, वास्तुविद्या, युद्धजयार्णव।

प्रौद्योगिकी से सम्बन्धित १८ प्राचीन संस्कृत ग्रन्थों में से 'कश्यपशिल्पम्' सर्वाधिक प्राचीन मानी जाती है।

प्राचीन खनन एवं खनिकी से सम्बन्धित संस्क्रित ग्रन्थ हैं- 'रत्नपरीक्षा', लोहार्णणव, धातुकल्प, लोहप्रदीप, महावज्रभैरवतंत्र तथा पाषाणविचार।

'नारदशिल्पशास्त्रम' शिल्पशास्त्र का ग्रन्थ है।

अन्य शास्त्र[संपादित करें]

न्यायशास्त्र, योगशास्त्र, वास्तुशास्त्र, नाट्यशास्त्र, काव्यशास्त्र, अलंकारशास्त्र, नीतिशास्त्र आदि।

प्राचीन भारतीय गणित, विज्ञान और प्रौद्योगिकी पर अनुसन्धान[संपादित करें]

प्राचीन भारतीय ग्रन्थों में ऐसे ग्रन्थों की संख्या लाखों में है जिनका सम्बन्ध धर्म या आध्यात्म से न होकर मानव के दैनन्दिन जीवन तथा उससे जुड़े गणित, विज्ञान और प्रौद्योगिकी से है। इसी तथ्य को देखते हुए कई संस्थानों ने इस दिशा में अनुसन्धान कार्य आरम्भ किया है। मई २०१८ में आई आई टी खडगपुर ने एक ऐसा ही पाठ्यक्रम आरम्भ किया है।[4]

सन्दर्भ ग्रन्थ[संपादित करें]

  • प्रियंका चौहान (2012). वैदिक वाड्मय में विज्ञान और प्रौद्योगिकी. बरेली: प्रकाश बुक डिपो. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-8179774434.

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. nda, Meera (16 September 2016), "Hindutva's science envy", Frontline, मूल से 17 जुलाई 2017 को पुरालेखित, अभिगमन तिथि 14 October 2016
  2. "Science, Medicine, Technology in Ancient India". मूल से 5 मई 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 1 मई 2016.
  3. "अखण्ड शास्त्र". मूल से 11 अक्तूबर 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 14 सितंबर 2016.
  4. "IIT Kharagpur Is Connecting The Dots Between Ancient India And Modern Science!". मूल से 27 मई 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 26 मई 2018.

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

  • भारतीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी का इतिहास
  • प्राचीन भारत के वैज्ञानिक
  • भारतीय गणितज्ञ सूची
  • भारतीय गणित
  • रसविद्या
  • आयुर्वेद
  • धनुर्वेद
  • वैमानिक शास्त्र

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]

  • संस्कृत के तकनीकी शब्द
  • भारत का वैज्ञानिक चिन्तन (प्राचीन एवं मध्यकालीन भारत की वैज्ञानिक उपलब्धियों को प्रकाशित करता हिन्दी चिट्ठा)
  • Math, Science, and Technology in India: From the Ancient to the Recent (Dr Roddam Narasimha)
  • A brief introduction to technological brilliance of Ancient India (इण्डियन इंस्टिट्यूट ऑफ साइंटिफिक हेरिटेज)
  • प्राचीन भारत के वैज्ञानिक कर्णधार (गूगल पुस्तक ; लेखक - स्वामी सत्यप्रकाश सरस्वती)
  • प्राचीन भारत में रसायन का विकास (गूगल पुस्तक; लेखक - स्वामी सत्यप्रकाश सरस्वती)
  • भारतीय वैज्ञानिक (गूगल पुस्तक ; लेखक - के एल एम श्रीवास्तव)
  • गणित शास्त्र के विकास की भारतीय परम्परा (गूगल् पुस्तक ; लेखक - सुद्युम्न आचार्य)
  • भारत और विश्व विज्ञान - कहॉं है हमारा स्थान?
  • e-Anveshan attempt to explore great Indian ancient sciences
  • Advanced Scientific Concepts in Hindu Literature (Hindu wisdom)
  • Science and Technology in Ancient India (Dr VS Prasad's blog)
  • Ancient India's Contribution to Our World's Material (Temporal) Culture
  • भारत में गणित का इतिहास
  • प्राचीन भारत में भौतिकी
  • विश्व को भारत की वैज्ञानिक देन (स्टार न्यूज एजेंसी)
  • History of the Physical Sciences in India
  • कौटिल्य के अर्थशास्त्र में सैन्य विज्ञान
  • Science and Technology in Ancient India
  • India: Science and technology, U.S. Library of Congress.
  • Pursuit and promotion of science: The Indian Experience, Indian National Science Academy.
  • भारतीय इतिहास के गौरवपूर्ण तथ्य
  • आश्चर्यचकित करतीं हैं भारतीय भट्ठियाँ[मृत कड़ियाँ] (पाञ्चजन्य ; डॉ ओम प्रभात अग्रवाल)
  • जैनधर्म में विज्ञान (गूगल पुस्तक ; नारायण लाल कछारा)
  • भारत में विज्ञान का इतिहास और भौतिकवाद[मृत कड़ियाँ] (संचिका)
  • PRIDE OF INDIA[मृत कड़ियाँ] (A Glimpse into India's Scientific Heritage) - २१० पृष्ट का विस्तृत विवरण
  • हमारे पूर्वजों की उपलब्धियां : एक नजर में (हिन्दी में)
  • Landmarks of Science in Early India
  • Bibliography: sourced from "Science and Technology in Ancient India" article -- प्राचीन भारतीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी पर शोधपत्रों का संकलन