पैरोल और जमानत के बीच का अंतर - pairol aur jamaanat ke beech ka antar

जमानत बनाम पैरोल

जमानत और पैरोल दो शर्तें हैं जो अक्सर कानूनी कार्यवाही में उपयोग किया जाता है जो एक दूसरे के साथ भ्रमित होने में आसान होता है कानूनी कार्यवाही के दौरान जो एक दूसरे के साथ भ्रमित होने में आसान हो। हालांकि, जमानत और पैरोल के बीच अंतर जानने के लिए कानूनी प्रणाली में बहुत आवश्यक अंतर्दृष्टि उधार देगा, जिससे कार्यवाही को बेहतर ढंग से समझने में मदद मिलेगी।

जमानत क्या है?

जमानत किसी जेल से संदिग्ध को जेल से मुक्त करने के लिए दोषी ठहराए जाने से पहले नकदी या किसी प्रकार की संपत्ति जमा करने का कार्य है, यह समझने पर कि वह जमानत को जब्त करने के लिए मुकदमा वापस करेगा। अधिकतर मामलों में, यदि संदिग्ध ने अदालत की सभी शर्तों का अनुपालन किया है और मुकदमे के अंत में, सभी अदालतों का पालन किया है, भले ही संदिग्ध दोषी पाया गया हो या नहीं, चाहे जमानत की राशि वापस लौटा दी जाए। न्यायाधीश कुछ निश्चित जमानत निर्धारित कर सकता है जो मूल रूप से गंभीरता पर निर्भर करता है और जिस प्रकार की अपराध की गई है।

बांड को अपने स्वयं के पैसे से या बांड के जरिए जमा किया जा सकता है, इस मामले में, ब्याज का भुगतान भी किया जाना चाहिए। ऐसे मामलों में शुल्क और ब्याज का भुगतान नहीं किया जा सकता है।

पैरोल क्या है?

पैरोल आसानी से उसकी अधिकतम सजा से पहले जेल से जल्दी रिहाइंड के रूप में परिभाषित किया जा सकता है बशर्ते कैदी कुछ शर्तों से सहमत हो ऐसा तब होता है जब कैदी ने कुछ समय जेल में बिताया है जिसके बाद उसे पैरोल के लिए भेजा जाता है। इस प्रक्रिया के दौरान, लोगों का एक समूह अपनी सजा के दौरान कैदी के व्यवहार के आधार पर जल्दी से जेल से रिहा नहीं जाए या नहीं, यह निर्धारित करेगा। शब्द 'पैरोल' फ्रांसीसी शब्द 'पैरोल' से आता है जो स्वयं को 'आवाज' या 'बोले गए शब्द' में तब्दील करते हैं 'यह मध्य युग के दौरान अपने शब्द पर जारी किए गए कैदियों के साथ मिलकर अस्तित्व में आया। हालांकि, अगर कोई पैरोल पर बाहर जाता है, तो कैदी पूरी तरह से स्वतंत्र नहीं है। उसे या तो यह सुनिश्चित करने के लिए पैरोल अधिकारी से बात करना आवश्यक है कि उपयुक्त नियम और नियमों का पालन समय के दौरान किया जाता है। यह उसकी स्वतंत्रता को बाधित किए बिना व्यक्ति के पूर्ण पुनर्वास को सुनिश्चित करने के लिए किया जाता है। हालांकि, अगर उचित प्रक्रिया का पालन किया जाता है और व्यक्ति अच्छा व्यवहार में है, तो पैरोल को पैरोल पर सेट किया जाता है

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जमानत और पैरोल के बीच अंतर क्या है?

आपराधिक आरोपों का सामना करना काफी गंभीर मामला है। जबकि दोषी ठहराए जाने के परिणाम बहुत गंभीर हो सकते हैं, हालाँकि कम से कम नुकसान की वजह से स्थिति को प्रबंधित करने के तरीके और साधन हैं। जमानत और पैरोल ऐसे दो तरीके हैं, जो अक्सर उनकी एक जैसी प्रकृति की वजह से एक दूसरे के साथ भ्रमित होने के खतरे में हैं।

• जुर्माने के पूर्व जुर्माने को तैनात किया गया है। दंडनीय होने के बाद पैरोल दिया जाता है। यह बेहतर व्यवहार पर जेल से जल्दी रिहाई के रूप में परिभाषित किया गया है।

• सिर्फ इसलिए जमानत पर पोस्ट किया जाता है इसका अर्थ यह नहीं है कि संदिग्ध को जारी किया गया है। हालांकि, पैरोल अनुदानी को स्वतंत्रता देता है

• जमानत में दोषी होने से पहले संदिग्ध की रिहाई के बदले जमानत में संपत्ति के कुछ फार्म जमा करना शामिल है। पैरोल किसी भी संपत्ति के जमा शामिल नहीं है

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Author: Manoj KumarPublish Date: Mon, 07 Feb 2022 04:20 PM (IST)Updated Date: Mon, 07 Feb 2022 04:32 PM (IST)

Difference between parole furlough राम रहीम गुरमीत सिंह को 21 दिन की फरलो मिली है। मगर करीब साढ़े चार साल में ऐसा पहली बार हुआ है। मगर बहुत से लोगों के मन में यह सवाल बना हुआ है कि आखिर फरलो और पैरोल में अंतर क्‍या है।

मनोज कौशिक, हिसार। दुष्‍कर्म और हत्‍या के केस में सजा काट रहे राम रहीम गुरमीत सिंह को 21 दिन की फरलो मिली है। मगर करीब साढ़े चार साल में ऐसा पहली बार हुआ है। इससे पहले वे पैरोल तो ले चुके हैं मगर उन्‍हें फरलो पहली बार मिली है। मगर बहुत से लोगों के मन में यह सवाल बना हुआ है कि आखिर फरलो और पैरोल में अंतर क्‍या है। या नहीं भी है। मगर इन दोनों चीजों में अंतर है और वह भी बड़ा अंतर है। इस अच्‍छे से समझने के लिए पढ़ें ये पूरी खबर....

क्या होता है फरलो

दरअसल, फरलो, पैरोल से थोड़ा अलग होता है। फरलो का मतलब जेल से मिलने वाली छुट्‌टी से है। यह पारिवारिक, व्यक्तिगत और सामाजिक जिम्मेदारियां पूरी करने के लिए दी जाती है। एक साल में कोई कैदी तीन बार फरलो ले सकता है। परोल के लिए कारण बताना जरूरी होता है जबकि फरलो सजायाफ्ता कैदियों के मानसिक संतुलन को बनाए रखने के लिए और समाज से संबंध जोड़ने के लिए दिया जाता है पैरोल की अवधि एक महीने तक बढ़ाई जा सकती है जबकि फरलो ज्यादा से ज्यादा 14 दिन के लिए दिया जा सकता है। हालांकि पहली बार फरलो 21 दिन की दी गई है।

क्‍या होती है पैरोल, मिलने को लेकर क्‍या है नियम

कारागार में बंद विचाराधीन व सजायाफ्ता कैदियों को दो तरह से रियायत दी जाती है। पहली पैरोल तथा दूसरी फरलो। कैदी को पैरोल तभी दी जाती है जब उसकी सजा का एक साल पूरा हो जाता है। फरलो उसी सूरत में दी जाती है जब सजा के तीन साल पूरे हो चुके हो। इसमें शर्त यह भी होती है कि कैदी का चाल चलन जेल के भीतर ठीक रहा हो। पैरोल की कई श्रेणी बनाई गई हैं। खेती के लिए छह सप्ताह की पैरोल दिए जाने का प्रावधान है। यह साल में एक बार ही मिल सकती है। बच्चों के स्कूल में दाखिले के लिए चार सप्ताह की पैरोल दी जा सकती है। यह भी साल में एक बार दी जा सकती है। मकान बनाने या उसकी मरम्मत के लिए तीन साल में एक बार पैरोल का प्रावधान है। यह तीन सप्ताह की अधिकतम हो सकती है। पैरोल की खास बात है कि यह सजा में नहीं जुड़ती है। यानी कैदी जितना समय पैरोल पर रहेगा उतनी सजा उसे काटनी होगी।

फरलो को लेकर ये है नियम

फरलो के बारे में अलग से नियम हैं। तीन साल की सजा पूरी होने के बाद यह शुरू होती है। पहली दफा इसकी अवधि 21 दिन की होती है तो उसके बाद यह सिमटकर 4 दिनों की रह जाती है। फरलो की खास बात है कि यह अवधि सजा में जुड़ जाती है। यानी जितनी अवधि इस कैटेगरी में कैदी जेल से बाहर रहा उतनी सजा कम हो जाएगी।

इन कैदियों को पांच साल बाद दी जाती है पैरोल

1 अक्टूबर 2012 से सरकार ने हार्डकोर कैदियों की परिभाषा दी थी। इसमें काट्रेक्ट किलिंग, फिरौती, लड़की बेचने, पैरोल से भगोड़े, देशद्रोह,, 376 जी (सामूहिक दुष्‍कर्म), डकैती के साथ हत्या, अपहरण के साथ हत्या के मामलों के विचाराधीन तथा सजायाफ्ता कैदियों को इस श्रेणी में शामिल किया था। नाबालिग के साथ दुष्‍कर्म के मामलों के आरोपित व सजायाफ्ता को भी इस श्रेणी में डाला जाता है। हार्डकोर की श्रेणी में आने वाले कैदियों को पुलिस कस्टडी में ही पैरोल दी जाती है। इन कैदियों को दो तरह की पैरोल दी जाती है। पहली नजदीकी रिश्तेदारों की शादी में शामिल होने के लिए और दूसरी परिजन के मौत पर। कैदियों को 6 घंटे से 96 घंटे के बीच पैरोल दी जाती है। इसका निर्णय जेल प्रशासन, डीसी व एसपी के द्वारा लिया जाता है।

आवेदन के बाद पांच दिनों के अंदर लेना पड़ता है निर्णय

कैदियों द्वारा आवेदन के बाद जेल प्रबंधन को पांच दिनों के अंदर पैरोल संबंधी निर्णय लेना पड़ता है। किन कैदियों को पैरोल दी जा सकती है और किनको नहीं। इसके बाद डीसी द्वारा इसपर निर्णय लिया जाता है कि पैरोल के बाद कहीं शाति को भंग नहीं होगी। इसी प्रकार यह फाइल कमिश्नर के पास पहुंचती है।

Edited By: Manoj Kumar