प्रेम विवाह के योग कैसे बनते हैं? - prem vivaah ke yog kaise banate hain?

आनंद जौहरी
आध्यात्मिक व ज्योतिषीय चिंतक

प्रेम हृदय की एक ऐसी अनुभूति है जो हमें जन्म से ही ईश्वर की ओर से उपहार स्वरूप प्राप्त होती है। आगे चलकर यही प्रेम अपने वृहद स्वरूप में प्रकट होता है। प्रेम किसी के लिए भी प्रकट हो सकता है। वह ईश्वर, माता-पिता, गुरु, मित्र, किसी के लिए भी उत्पन्न हो सकता है।

लेकिन आज के समाज में सिर्फ विपरीत लिंगी के लिए प्रकट अनुभूतियों को ही प्रेम समझा जाता है। सारा संसार जानता है कि मीरा का प्रेम कृष्ण के लिए सर्वश्रेष्ठ प्रेम था। यूं तो ढेरों भक्त कवियों ने भी कृष्ण से अपने प्रेम का वर्णन किया है। जैसे- सुरदास इत्यादि।

ज्योतिष में प्रेम- संबंधों और प्रेम-विवाह को लेकर हमेश से ही दिलचस्पी रही है। ज्योतिषी शास्त्र में कई ऐसी ग्रह दशाओं और योगों का वर्णन है, जिनकी वजह से व्यक्ति प्रेम करता है और स्थिति प्रेम-विवाह तक पहुंच जाती है।

– प्रेम विवाह में कारक ग्रहों के साथ यदि अशुभ व क्रूर ग्रह बैठ जाते हैं तो प्रेम-विवाह में बाधा आ जाती है। यदि प्रेम-विवाह का कुण्डली में योग न हो तो प्रेम-विवाह नहीं होता। आइए, जानें ऐसे कुछ ज्योतिषीय योगों के बारे में-

प्रेम-विवाह के ज्योतिषीय योग-
1. जन्म पत्रिका में मंगल यदि राहू या शनि से युति बना रहा हो तो प्रेम-विवाह की संभावना होती है।

2. जब राहू प्रथम भाव यानी लग्न में हो परंतु सातवें भाव पर बृहस्पति की दृष्टि पड़ रही हो तो व्यक्ति परिवार के विरुद्ध जाकर प्रेम-विवाह की तरफ आकर्षित होता है।

3. जब पंचम भाव में राहू या केतु विराजमान हो तो व्यक्ति प्रेम-प्रसंग को विवाह के स्तर पर ले जाता है।

4. जब राहू या केतु की दृष्टि शुक्र या सप्तमेश पर पड़ रही हो तो प्रेम-विवाह की संभावना प्रबल होती है।

5. पंचम भाव के मालिक के साथ उसी भाव में चंद्रमा या मंगल बैठे हों तो प्रेम-विवाह हो सकता है।

6. सप्तम भाव के स्वामी के साथ मंगल या चन्द्रमा सप्तम भाव में हो तो भी प्रेम-विवाह का योग बनता है।
7. पंचम व सप्तम भाव के मालिक या सप्तम या नवम भाव के स्वामी एक-दूसरे के साथ विराजमान हों तो प्रेम-विवाह का योग बनता है।

8. जब सातवें भाव का स्वामी सातवें में हो तब भी प्रेम-विवाह हो सकता है।

9. शुक्र या चन्द्रमा लग्न से पंचम या नवम हों तो प्रेम विवाह कराते हैं।

10. लग्न व पंचम के स्वामी या लग्न व नवम के स्वामी या तो एकसाथ बैठे हों या एक-दूसरे को देख रहे हों तो प्रेम-विवाह का योग बनाते हैं यह।

11. सप्तम भाव में यदि शनि या केतु विराजमान हों तो प्रेम-विवाह की संभावना बढ़ती है।

12. जब सातवें भाव के स्वामी यानी सप्तमेश की दृष्टि द्वादश पर हो या सप्तमेश की युति शुक्र के साथ द्वादश भाव में हो तो प्रेम-विवाह की उम्मीद बढ़ती है।

Navbharat Times News App: देश-दुनिया की खबरें, आपके शहर का हाल, एजुकेशन और बिज़नेस अपडेट्स, फिल्म और खेल की दुनिया की हलचल, वायरल न्यूज़ और धर्म-कर्म... पाएँ हिंदी की ताज़ा खबरें डाउनलोड करें NBT ऐप

लेटेस्ट न्यूज़ से अपडेट रहने के लिए NBT फेसबुकपेज लाइक करें

अनेक जातक-जातिका जानना चाहते हैं कि प्रेम विवाह होगा या नहीं, कहीं हमारा विवाह असफल तो नहीं होगा या तीसरे व्यक्ति के कारण जीवन में संघर्ष तो शुरू नहीं हो जाएगा।

जब तक 2 लोगों के मंगल व शुक्र में आकर्षण नहीं होगा, तब तक उनमें प्रेम नहीं होगा। अगर किसी एक का ग्रह दूसरे के ग्रह को देखता है लेकिन दूसरे का ग्रह पहले को नहीं देखता है तो प्रेम एकतरफा ही होगा। 

जन्म कुंडली में विवाह कारक ग्रह पंचम के साथ संबंध बनाता हो अथवा 5 का 2, 7, 11 से संबंध हो तो विवाह होता है। प्रेम विवाह कारक ग्रह 1, 4, 6, 8, 10, 12 से जुड़ा हो तो प्रेम विवाह नहीं होता है अथवा विवाह कारक एवं अकारक दोनों से संबंध हो तो विवाह के बाद दूसरा विवाह होता है। ऐसा प्रेम विवाह नहीं चलता है।

सप्तम का सब लॉर्ड पंचम का प्रबल कार्येश हो तो प्रेम विवाह अवश्य होता है। प्रेम विवाह कारक का संबंध यदि 6, 8, 12 से बनता है तो ऐसे विवाह से परिजन की हानि के योग बनते हैं।

नई दिल्लीः Kundali: जीवन में कई लोग प्रेम विवाह करना चाहते हैं, लेकिन कुछ सफल हो जाते हैं तो कुछ के प्रेम विवाह में बाधाएं आ जाती हैं. ऐसे में जानिए कुंडली में प्रेम विवाह का योग कब बनता है? आचार्य विक्रमादित्य दे रहे हैं इसका जवाब:

कुंडली में सप्तम स्थान होता है विवाह का
कटिहार से मनीष कुमार पूछते हैं कि प्रेम विवाह का योग कुंडली में कब बनता है. इस पर आचार्य विक्रमादित्य बताते हैं कि जन्म कुंडली का सप्तम स्थान विवाह स्थान होता है, जब सप्तम या सप्तमेष का संबंध 3, 5, 9, 11 और 12वें भाव के मालिक के साथ बनता है, तब जातक प्रेम विवाह करता है.

इन संबंधों में दृष्टी युति के अतिरिक्त त्रिकोण तथा केंद्र संबंधों को भी महत्वपूर्ण माना जाता है. सप्तमेश यदि पंचम स्थान के मालिक के साथ 3, 5, 7, 11 और 12वें भाव में स्थित हो तो जातक प्रेम विवाह अवश्य करता है. पंचम स्थान प्रेम संबंध तथा मित्रों का माना जाता है. ऐसे में सप्तमेष का संबंध पंचमेश से हो जाए तो व्यक्ति के प्रेम विवाह करने के योग बनते हैं.

भूख नहीं लग रही है तो करें इस मुद्रा का अभ्यास
इसी तरह भिवानी से सूरज पाल पूछते हैं कि उन्हें पिछले कुछ दिनों से भूख नहीं लग रही है. बहुत बेचैनी भी हो रही है. क्या करें. कोई उपाय बतायें? इस पर आचार्य बताते हैं कि आप नियमित तौर पर सूर्य मुद्रा का अभ्यास करें. इससे आपको लाभ होगा.

निरंतर इसके आपके अभ्यास से आपके शरीर पर आश्चर्यजनक प्रभाव दिखेंगे. आपको भूख लगनी शुरू हो जायेगी. मानसिक शांति भी मिलेगी. आप सूर्य मुद्रा का अभ्यास करके देखिए.

यह भी पढ़ें: Dream Jyotish: खुद को प्रेग्नेंट देखने का क्या है मतलब, जानिए इसे लेकर क्या कहता है ज्योतिष शास्त्र

Zee Hindustan News App: देश-दुनिया, बॉलीवुड, बिज़नेस, ज्योतिष, धर्म-कर्म, खेल और गैजेट्स की दुनिया की सभी खबरें अपने मोबाइल पर पढ़ने के लिए डाउनलोड करें ज़ी हिंदुस्तान न्यूज़ ऐप.  

प्रेम विवाह होगा या नहीं कैसे जाने?

सप्तम भाव के स्वामी के साथ मंगल या चन्द्रमा सप्तम भाव में हो तो भी प्रेम-विवाह का योग बनता है। 7. पंचम व सप्तम भाव के मालिक या सप्तम या नवम भाव के स्वामी एक-दूसरे के साथ विराजमान हों तो प्रेम-विवाह का योग बनता है।

कुंडली में प्रेम विवाह योग कैसे बनता है?

जन्म कुंडली में पंचम भाव, सप्तम भाव तथा एकादश भाव के स्वामियों में परस्पर संबंध हो तो प्रेम विवाह योग होता है। पंचम भाव और सप्तम भाव के स्वामियों का परिवर्तन योग, पंचमेश और सप्तमेश की युति तथा पंचमेश और सप्तमेश में दृष्टि संबंध हो तो प्रेम विवाह योग होता है

प्रेम विवाह कब होता है?

पंचमेश एवं सप्तमेश की युति का पंचम या सप्तम भाव में होना या फिर दोनों का राशि परिवर्तन करना, प्रेम विवाह की संभावना दर्शाता है. इसी तरह, लग्नेश एवं सप्तमेश का स्थान बदलना भी प्रेम विवाह का कारण होता है. आपकी कुंडली अगर ये दिखाती है कि आपके लग्न मे लग्नेश व चन्द्रमा है- तो यही आपका प्रेम विवाह होगा.

प्रेम विवाह कैसे करे?

ऐसे में यदि आप प्रेम विवाह करना चाहते हैं, लेकिन कोई न कोई समस्या आ रही है तो किसी विद्वान या ज्योतिषी की सलाह से हीरा या ओपल रत्न धारण करना शुभ हो सकता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, प्रेम विवाह के लिए तीन माह तक लगातार हार गुरुवार को किसी भी मंदिर में जाकर प्रसाद चढ़ाएं और फिर उस भोग को लोगों में भी बांटें।