इस नियम का प्रतिपादन सन् 1833 में हिनरिक लेंज (Heinrich Lenz) ने किया था। उदहारण के लिए यदि हम एक चुम्बक के उत्तरी ध्रुव को किसी कुण्डली के समीप लाये तो कुण्डली में प्रेरित धारा की दिशा इस प्रकार होती है कि कुण्डली का वह सीरा जो चुम्बक के ओर है उत्तरी ध्रुव बन जाता है अर्थात इधर से देखने पर धारा वामावर्त प्रवाहित होती है । उत्तरी ध्रुव बन जाने से यह सीरा आने वाले चुम्बक के प्रतिकर्षण बल लगता है। यह प्रतिकर्षण बल बल ही चुम्बक की गति (पास आने) का विरोध करता है। अब यदि हम चुम्बक को कुंडली से दूर ले जाए तो कुण्डली में प्रेरित धारा की दिशा बदल जाती है तथा कुंडली का चुम्बक के पास वाला सीरा दक्षीणी ध्रुव बन जाता है जो चुम्बक को अपनी ओर आकर्षित करता है अतः चुम्बक की गति का पुनः विरोध होता है। Show
चेतावनी: इस टेक्स्ट में गलतियाँ हो सकती हैं। सॉफ्टवेर के द्वारा ऑडियो को टेक्स्ट में बदला गया है। ऑडियो सुन्ना चाहिये। प्रेरित धारा की दिशा देखा जाए तो फ्लेमिंग के दाएं हाथ के नियम में फ्लेमिंग राइट हैंड थंब रूल के द्वारा इसकी ज्ञान की जाति prerit dhara ki disha dekha jaaye toh flaming ke dayen hath ke niyam mein flaming right hand thumb rule ke dwara iski gyaan ki jati प्रेरित धारा की दिशा देखा जाए तो फ्लेमिंग के दाएं हाथ के नियम में फ्लेमिंग राइट हैंड थंब र 1 320prerit vidyut dhara ki disha ko kis niyam dwara darshaya jata hai ; prerit dhara kise kahate hain ;This Question Also Answers: Vokal App bridges the knowledge gap in India in Indian languages by getting the best minds to answer questions of the common man. The Vokal App is available in 11 Indian languages. 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Download the Vokal App! मानव-जीवन के आदिकाल में अनुशासन की कोई संकल्पना नहीं थी और न आज की भाँति बङे-बङे नगर या राज्य ही थे। मानव जंगल में रहता था। ’जिसकी लाठी उसकी भैंस’ वाली कहावत उसके जीवन पर पूर्णतः चरितार्थ होती थी। व्यक्ति पर किसी भी नियम का बंधन या किसी प्रकार के कर्तव्यों का दायित्व नहीं था, किन्तु इतना स्वतंत्र और निरंकुश होते हुए भी मानव प्रसन्न नहीं था। आपसी टकराव होते थे, अधिकारों-कर्त्तव्यों में संघर्ष होता था और नियमों की कमी उसे खलती थी। धीरे-धीरे उसकी अपनी ही आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए समाज और राज्य का उद्भव और विकास हुआ। अपने उद्देश्य की सिद्धि एवं आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए मानव ने अन्ततः कुछ नियमों का निर्माण किया। उनमें से कुछ नियमों के पालन करवाने का अधिकार राज्य को और कुछ समाज को दे दिया गया। व्यक्ति के बहुमुखी विकास में सहायक होने वाले इन नियमों का पालन ही अनुशासन कहलाता है। अनुभव सबसे बङा शिक्षक होता है। समाज ने प्रारंभ में अपने अनुभवों से ही अनुशासन के इन नियमों को सीखा, विकसित किया और सुव्यवस्थित किया होगा। 1. इस गद्यांश का सर्वाधिक उपयुक्त शीर्षक हो सकता है – 2. ’अनुशासन’ से अभिप्रेत है – 3. इस गद्यांश का प्रतिपाद्य है कि मनुष्य को – 4. आदिकाल से मानव प्रसन्न नहीं था, क्योंकि – 5. गद्यांश में रेखांकित शब्द से आशय ऐसे व्यक्ति से है – हिंदी गद्यांश-2 (Hindi paragraph-2)समय प्रकृति का दिया हुआ सबसे अधिक मूल्यवान उपहार है। उससे उत्तम कोई धन नहीं है। समय का सदा सदुपयोग करना चाहिए। बीता हुआ समय कभी लौटाया नहीं जा सकता है। जीवन में अनेक लोगों को शिकायत होती है कि समय नहीं था या वे कामना करते हैं कि काश मेरे पास कुछ समय ओर होता। बहुत से व्यक्ति समय निकलने पर पछताते हुए देखे जा सकते हैं। यह सत्य है कि इन लोगों को कुछ समय और मिल जाता तो परिणाम कुछ और ही होता लेकिन यह संभव नहीं है कि बीते हुए समय को फिर लौटाया जाये। यदि वे अपने कार्य को कुछ समय पहले ही शुरू कर देते तो फिर उन्हें पछताना नहीं पङता। प्रत्येक सफल कार्य का विश्लेषण करने पर ज्ञात होगा कि समय के सदुपयोग ने उस कार्य की सफलता में सर्वाधिक योग दिया है। समय पर कार्य करने वाले व्यक्ति को कभी निराशा का मुँह नहीं देखना पङता है। समय पर पढ़ने वाला विद्यार्थी असफल नहीं होता है। समय पर किया गया हर कार्य सफलता में परिवर्तित हो जाता है जबकि समय बीतने पर विशेष प्रयत्नों के बाद भी उसे सिद्ध नहीं किया जा सकता है। समय के मूल्य को विपत्तिकाल में ही पहचाना जाता है। यदि समय रहते कार्य किया जाये तो विपत्ति को दूर से ही टाला जा सकता है। इसलिए समय के मूल्य को समझकर कार्य करना चाहिए। अपने जीवन में समय को नष्ट नहीं करना चाहिए। 1. इस अवतरण का सर्वाधिक उपयुक्त शीर्षक है – 2. समय का मूल्य कब पहचाना जाता है? 3. ’’समय पर कार्य करने वाला व्यक्ति कभी……. नहीं होता’’ 4. समय किसके द्वारा प्रदत्त मूल्यवान उपहार है – हिंदी गद्यांश-3 (Hindi paragraph-3)पाश्चात्य सभ्यता एवं संस्कृति में बहुत-सी अच्छी बातें होते हुए भी वह मूलतः अधिकार प्रधान, भोग प्रधान हैं। उसमें अपने सुख की प्रवृत्ति प्रधान है। इसलिए यहाँ प्रधान जोर शरीर-सुख-भोग तथा उसके निमित्त अगणित साधन जुटाने की ओर है, जबकि भारतीय संस्कृति अनेक बुराइयों के होते हुए भी मुख्यतः धर्म प्रधान, कर्तव्य प्रधान, त्याग और तपस्या प्रवृत्ति-मूलक संस्कृति है। विश्व-मानवता एवं संस्कृति का निर्माण तभी सम्भव है जब मनुष्य अपने शरीर का विचार इस सीमा तक न करे कि उस प्रयत्न में वह आत्मा, वह प्राण ज्योति ही तिरोहित हो जाए जिससे मानव, मानव है। स्पष्टतः भारतीय संस्कृति में, अहिंसक जीवन निर्माण की दूसरों के लिए जीने की सम्भवनाएं अधिक होने से गांधी जी की श्रद्धा थी भारतीय संस्कृति ही हमारे जीवन का दीप है और वह विश्व-संस्कृति या विश्व-मानवता की आधारशिला बन सकती है। 1. पाश्चात्य संस्कृति के सम्बन्ध में सत्य है – 2. इनमें से कौन-सा कथन सत्य है? 3. मानव, मानव नहीं रह जाता जब – 4. परदुखकातरता से सम्बन्धित कथन है – 5. उपर्युक्त गद्यांश का सर्वाधिक उपयुक्त शीर्षक है – हिंदी गद्यांश-4 (Hindi paragraph-4)राजा रवि वर्मा को बचपन से ही प्रकति से प्यार था। वे जब छोटे थे तभी वे अक्सर नीले आकाश को निहारा करते थे। नीला-नीला आकाश। उसमें हाथियों के झुंड की तरह डोलते बादल। रवि वर्मा को सूर्याेदय देखना बहुत भाता था। वे सुबह-सुबह उठकर आकाश में सूर्य का उदय होना देखते रहते। इसी तरह सूर्यास्त भी उन्हें आकर्षित करता था। संध्या होते ही वे एक स्थल पर बैठ जाते। पश्चिम में धीरे-धीरे उतरते सूर्य को देखते रहते। एक ओर बढ़ता अंधकार दूसरी ओर क्षितिज पर डूबते सूर्य की सिंदूरी ललाई। सूर्यास्त के समय आकाश में तरह-तरह के रंग जैसे बिखर पङते। रवि वर्मा कभी-कभी सूर्याेदय और सूर्यास्त की भी तुलना करते। कितना अंतर है दोनों में। वे आश्चर्य करते। रात होती तो आकाश के मैदान में तारों की टोलियां आ धमकतीं। रवि वर्मा इन तारों को घंटों निहारा करते। प्रकृति उन्हें प्रफुल्लित करती। उन्हें कल्पना के लोक में ले जाती। यही कारण है कि रवि वर्मा जीवन भर प्रकृति से प्यार करते रहे। वे जानते थे कि प्रकृति से हम बहुत कुछ सीख सकते हैं। उससे बहुत कुछ पा सकते हैं। वे देखते थे कि उनके मामा प्रकृति से मिली चीजों से ही रंग बनाते हैं। राजा रवि वर्मा फूलों से, वनस्पतियों से तरह-तरह के रंग बनाते थे। वे तरह-तरह के रंगों की मिट्टी भी एकत्र करवाते। फिर बङे मनोयोग से रंग बनाते। 1. राजा रवि वर्मा अक्सर नीले आकाश को देखा करते थे, क्योंकि – 2. आकाश में तरह-तरह के रंग कब बिखर पङते थे? 3. राजा रवि वर्मा को कल्पना-लोक में कौन ले जाती थी? 4. राजा रवि वर्मा, रवि वर्मा के क्या थे? 5. इस अनुच्छेद का उचित शीर्षक होगा? हिंदी गद्यांश-5 (Hindi paragraph-5)वास्तव में हृदय वही है जो कोमल भावों और स्वदेश प्रेम से ओत प्रोत हो। प्रत्येक देशवासी को अपने वतन से प्रेम होता है। चाहे उसका देश सूखा, गर्म या दलदलों से युक्त हो। देश-प्रेम के लिए किसी आकर्षण की आवश्यकता नहीं होती, बल्कि वह तो अपनी भूमि के प्रति मनुष्य मात्र की स्वाभाविक ममता है। मानव ही नहीं पशु-पक्षियों तक को अपना देश प्यारा होता है। संध्या-समय पक्षी अपने नीङ की ओर उङे चले जाते हैं। देश प्रेम का अंकुर सभी में विद्यमान है। कुछ लोग समझते हैं कि मातृभूमि के नारे लगाने से ही देश-प्रेम व्यक्त होता है। दिन भर वे त्याग, बलिदान और वीरता की कथा सुनाते नहीं थकते। लेकिन परीक्षा की घङी आने पर भाग खङे होते हैं। ऐसे लोग स्वार्थ त्यागकर, जान जोखिम में डालकर देश की सेवा क्यों करेंगे? आज ऐसे लोगों की आवश्यकता नहीं है। 1. देश-प्रेम का अभिप्राय है – 2. सच्चा देश-प्रेमी- 3. देश-प्रेम का अंकुर विद्यमान है – 4. वही देश महान है जहां के लोग – 5. संध्या समय पक्षी अपने घोंसलों में वापस चले जाते हैं, क्योंकि – Apathit Gadyansh in Hindiहिंदी गद्यांश-6 (Hindi paragraph-6)हमारे देश में प्रौढ़ समुदाय का एक बहुत बङा भाग निरक्षर एवं अशिक्षित है। उनकी यह अवस्था एक बहुत बङी समस्या प्रस्तुत करती है। प्रौढ़ शिक्षा के लिए हमारे यहाँ शिक्षकों का अभाव है। उम्र बढ़ जाने पर प्रौढ़ों में सीखने की इच्छा में भी कमी आ जाती है। कक्षा में बैठकर पढ़ने में संकोच होता है। समय अभाव के कारण भी प्रौढ़ शिक्षा लेने में कष्ट अनुभव करते हैं। हमारे किसान एवं कामगारों का जीवन बहुत ही कठिन एवं श्रम साध्य है। उन्हें भी आराम एवं मनोरंजन की आवश्यकता होती है जो प्रायः गाँवों में उपलब्ध नहीं है। प्रौढ़ शिक्षा केन्द्रों पर जो कुछ सिखाया तथा पढ़ाया जाता है। उसका उनके जीवन में कितना उपयोग हैं। प्रौढ़ शिक्षा का नवीनीकरण तथा उसकी उपयोगिता को सामाजिक बनाना आवश्यक है। किसानों को कृषि संबंधित नई जानकारी देना जरूरी है। कामगारों को नए उद्योगों एवं तकनीकी शिक्षा आवश्यक है। प्रौढ़ शिक्षा को पढ़ाई के साथ-साथ कमाई से जोङना भी आवश्यक है। आज अधिकतर उद्योग एवं कारखाने नगरों में लगे हैं। सरकारी कामकाज के कार्यालय भी नगरों में है। अधिकतर गाँवों में परिवहन एवं संचार साधन भी नगरों में है। अधिकतर गाँवों में परिवहन एवं संचार साधन भी उपलब्ध नहीं है। साक्षरता एवं शिक्षा के प्रचार-प्रसार हेतु यह आवश्यक है कि उद्योग एवं सरकारी गाँवों की ओर चले। यदि ऐसा होता है तो एक नहीं अनेक हरित क्रांतियाँ देश को खुशहाल बनाएँगी। 1. प्रौढ़ किसानों को किस की आवश्यकता है? 2. हमारे देश का प्रौढ़ समुदाय – 3. प्रौढ़ शिक्षा में निम्न में से कौनसी जानकारी देना आवश्यक है? 4. प्रौढ़ साक्षरता के लिए क्या आवश्यक है? हिंदी गद्यांश-7 (Hindi paragraph-7)आज के शिक्षाक्रम में चरित्र गठन का कोई स्थान नहीं है और न उसे कोई महत्त्व दिया जाता है। हमारी संस्कृति में गुरु और शिष्य का संबंध बहुत ही सुन्दर और मीठा हुआ करता था। इसका कारण यही था कि दोेनों का एक दूसरे पर विश्वास हुआ करता था। गुरु शिष्यों को पुत्रवत् मानते थे और उन पर स्नेह रखते थे। शिष्य गुरु को पितातुल्य और विश्वसनीय समझते थे। गुरु का शिष्य के जीवन पर गहरा प्रभाव पङा करता था और गुरु और शिष्य के बीच केवल व्यापारिक संबंध जिसमें पैसे के बदले कुछ पुस्तकें पढ़ा देने मात्र का एक सम्पर्क होता है, न रहकर आध्यात्मिक संबंध हो जाता था जो घनिष्ठ हुए बिना नहीं रह सकता था। आज आये दिन समाचार-पत्रों में पढ़ने को मिलता है कि कहीं विद्यार्थियों ने शिक्षकों के विरुद्ध हङताल कर दी तो कहीं शिक्षकों में भी दल-बंदियाँ हो गई और विद्यार्थी भी कुछ एक दल में शामिल हो गये तथा एक या दूसरे का समर्थन करने लगे। हाल ही में एक भयंकर दुर्घटना भी पढ़ने में आई कि शिक्षक की परीक्षा संबंधी कङाई करने से असंतुष्ट होकर कुछ विद्यार्थियों ने शिक्षक के ही प्राण ले लिये। यदि कोई स्कूल का विद्यार्थी ऐसी बात करें तो वह समझ में आ सकती है पर जब किसी यूनिवर्सिटी या काॅलेज का विद्यार्थी ऐसे काम करता है तो यह चिंता का विषय हो जाता है। जहाँ तक समझ में आता है, इसका मौलिक कारण चरित्र गठन पर ध्यान न देना और छात्रों पर शिक्षक वर्ग के नैतिक प्रभाव का न होना ही है। यह समस्या साधारणतया सारे देश में विद्यमान है। 1. उक्त गद्यांश में लेखक ने किस विषय पर विचार प्रकट किए हैं – 2. देश में शिक्षा से संबंधित किस समस्या पर ध्यान खींचा गया है – 3. लेखक गुरु और शिष्यों के बीच किस तरह के संबंध पसंद करता है – 4. भारतीय संस्कृति में गुरु और शिष्य के संबंध मधुर होते थे, क्योंकि – 5. उक्त गद्यांश के विषय से संबंधित सर्वाधिक उचित शीर्षक है –
हिंदी गद्यांश-8 (Hindi paragraph-8)जिन्दगी के असली मजे उनके लिए नहीं हैं, जो फूलों की छांह के नीचे खेलते और सोते हैं। बल्कि फूलों की छांह के नीचे अगर जीवन का कोई स्वाद छिपा है, तो वह भी उन्हीं के लिए है, जो दूर रेगिस्तान से आ रहे हैं, जिनका कंठ सूखा हुआ है, ओठ फटे हुए हैं और सारा बदन पसीने से तर है। पानी में जो अमृत-वाला तत्त्व है, उसे वह जानता है, जो धूप में खूब सूख चुका है, वह नहीं, जो रेगिस्तान में कभी पङा ही नहीं है। 1. प्रस्तुत गद्यांश किस लेखक द्वारा लिखा गया है – 2. जिंदगी के असली मजे किनके लिए हैं – 3. गद्यांश में किस बात का महत्त्व बताया गया है – 4. ’जो धूप में खूब सूख चुका है’ से अभिप्राय है – 5. ’अमृतवाला तत्त्व’ का तात्पर्य है – हिंदी गद्यांश-9 (Hindi paragraph-9)पुरुषार्थ दार्शनिक विषय है, पर दर्शन का जीवन से घनिष्ठ सम्बन्ध है। वह थोङे-से विद्यार्थियों का पाठ्य विषय मात्र नहीं है। प्रत्येक समाज को एक दार्शनिक मत स्वीकार करना होता है। उसी के आधार पर उसकी राजनीतिक, सामाजिक और कौटुम्बिक व्यवस्था का व्यूह खङा होता है। जो समाज अपने वैयक्तिक और सामूहिक जीवन को केवल प्रतीयमान उपयोगिता के आधार पर चलाना चाहेगा उसको बङी कठिनाइयों का सामना करना पङेगा। एक विभाग के आदर्श दूसरे विभाग के आदर्श से टकराएँगे। जो बात एक क्षेत्र में ठीक जँचेगी वही दूसरे क्षेत्र में अनुचित कहलाएगी और मनुष्य के लिए अपना कर्तव्य स्थिर करना कठिन हो जाएगा। इसका परिणाम आज दिख रहा है। चोरी करना बुरा है, पर पराए देश का शोषण करना बुरा नहीं है। झूठ बोलना बुरा है, पर राजनीतिक क्षेत्र में सच बोलने पर अङे रहना मूर्खता है। घर वालों के साथ, देशवासियों के साथ और परदेशियों के साथ बर्ताव करने के लिए अलग-अलग आचारावालियाँ बन गई हैं। इससे विवेकशील मनुष्य को कष्ट होता है। 1. सामाजिक व्यवस्था को चलाने के लिए आवश्यकता होती है- 2. समाज के लिए दर्शन महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि- 3. समाज में जीवन प्रतीयमान उपयोगिता के आधार पर नहीं चल सकता, क्योंकि- 4. विवेकशील मनुष्य को कष्ट पहुँचाने वाले विरोधाभास हैं- 5. प्रस्तुत गद्यांश का सर्वाधिक उपयुक्त शीर्षक क्या हो सकता है? 6. ’अनुचित’ में कौन-सा उपसर्ग है? हिंदी गद्यांश-10 (Hindi paragraph-10)देश-प्रेम को किसी विशेष क्षेत्र एवं सीमा में नहीं बाँधा जा सकता। हमारे जिस कार्य से देश की उन्न्ति हो, वही देश-प्रेम की सीमा में आता है। अपने प्रजातन्त्रात्मक देश में, हम अपने मताधिकार का प्रयोग करते हुए ईमानदार एवं देशभक्त जनप्रतिनिधि का चयन कर देश को जाति, सम्प्रदाय तथा प्रान्तीयता की राजनीति से मुक्त कर इसके विकास में सहयोग कर सकते हैं। जाति-प्रथा, दहेज-प्रथा, अन्धविश्वास, छुआछूत इत्यादि कुरीतियाँ जो देश के विकास में बाधा हैं, इत्यादि को दूर करने में अपना योगदान कर हम देश-सेवा का फल प्राप्त कर सकते हैं। अशिक्षा, निर्धनता, बेरोजगारी, व्यभिचार एवं भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग छेङकर हम अपने देश को प्रगति के पथ पर अग्रसर कर सकते हैं। हम समय पर टैक्स का भुगतान कर देश की प्रगति में सहायक हो सकते है। इस तरह किसान, मजदूर, शिक्षक, सरकारी कर्मचारी, चिकित्सक, सैनिक और अन्य सभी पेशेवर लोगों के साथ-साथ देश के हर नागरिक द्वारा अपने कर्तव्यों का समुचित रूप से पालन करना ही सच्ची देश-भक्ति है। 1. निम्नलिखित में से किसकी चर्चा देश-प्रेम के एक रूप के तौर पर नहीं की गई है? 2. राष्ट्रीय एकता में सबसे बङी बाधा क्या है? 3. राष्ट्रीय एकता की आवश्यकता क्यों है? 4. प्रस्तुत गद्यांश में किस पेशेवर की चर्चा नहीं की गई है? 5. प्रस्तुत गद्यांश का सर्वाधिक उपयुक्त शीर्षक निम्नलिखित में से कौन-सा होगा? 6. ’इत्यादि’ का सन्धि-विच्छेद है- 7. प्रगति के पथ पर अग्रसर रहता है- 8. सर्वोपरि है- 9. ’अग्रसर’ का तात्पर्य है- हिंदी गद्यांश-11 (Hindi paragraph-11)सत् और चरित्र इन दो शब्दों के मेल से सच्चरित्र शब्द बना है तथा इस शब्द में ता प्रत्यय लगने से सच्चरित्रता शब्द बना है तथा इस शब्द में ता प्रत्यय लगने से सच्चरित्रता शब्द की उत्पत्ति हुई है। सत् का अर्थ होता है अच्छा एवं चरित्र का तात्पर्य है आचरण, चाल-चलन, स्वभाव, गुण-धर्म इत्यादि। इस तरह सच्चरित्रता का तात्पर्य है अच्छा चाल-चलन, अच्छा स्वभाव, सदाचार इत्यादि। मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है अतः परस्पर सहोपकारिता द्वारा ही उसका जीवन-यापन सम्भव है। इसके लिए व्यक्ति में ऐसे गुणों का होना आवश्यक है जिनके द्वारा वह समाज में शान्तिपूर्वक रहते हुए देश की प्रगति में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान दे सके। काम, क्रोध, लोभ, सन्ताप, निर्दयता एवं ईष्र्या जैसे अवगुण मनुष्य के सामाजिक जीवन में अशान्ति उत्पन्न करते हैं। अतः ऐसे अवगुणों से युक्त व्यक्ति को दुराचारी संज्ञा दी जाती है जबकि इसके विपरीत निष्ठा, ईमानदारी, लगनशीलता, संयम, सहोपकारिता इत्यादि सच्चरित्रता की पहचान हैं। इन सबके अतिरिक्त उदारता, विनम्रता, सहिष्णुता, सत्यभाषण, उद्यमशीलता सच्चरित्रता की अन्य विशेषताएँ हैं। 1. परस्पर सहोपकारिता द्वारा ही मनुष्य का जीवन-यापन क्यों सम्भव है? 2. सच्चरित्रता की विशेषताओं के रूप में निम्नलिखित में से किसकी चर्चा नहीं की गई है? 3. प्रस्तुत गद्यांश का सर्वाधिक उपयुक्त शीर्षक निम्नलिखित में से कौन-सा होगा? 4. मनुष्य के सामाजिक जीवन में अशान्ति उत्पन्न करने वाले अवगुणों के रूप में निम्नलिखित में से किसकी चर्चा प्रस्तुत गद्यांश में नहीं की गई है? 5. निम्नलिखित में से दुश्चरित्र व्यक्ति कौन नहीं है? 6. ’सच्चरित्रता’ का सन्धि-विच्छेद है- हिंदी गद्यांश-12 (Hindi paragraph-12)ग्रामीण क्षेत्र के लिए अनेक रोजगारोन्मुख योजनाएँ चलाए जाने के बावजूद बेरोजगारी की समस्या का पूर्ण समाधान नहीं हो रहा है। ऐसी स्थिति के कई कारण है। कभी-कभी योजनाओं को तैयार करने की दोषपूर्ण प्रक्रिया के कारण इनका क्रियान्वयन ठीक से नहीं हो पाता या ग्रामीणों के अनुकूल नहीं हो पाने के कारण भी कई बार ये योजनाएँ कारगर साबित नहीं हो पातीं। प्रशासनिक खामियों के कारण भी योजनाएँ या तो ठीक ढंग से क्रियान्वित नहीं होती या ये इतने देर से प्रारम्भ होती हैं कि इनका पूरा-पूरा लाभ ग्रामीणों को नहीं मिल पाता। इसके अतिरिक्त भ्रष्ट शासन तन्त्र के कारण जनता तक पहुँचने के पहले ही योजनाओं के लिए निर्धारित राशि में से दो-तिहाई तक बिचैलिए खा जाते हैं। फलतः योजनाएँ या तो कागज तक सीमित रह जाती हैं या फिर वे पूर्णतः निरर्थक साबित होती हैं। 1. बेरोजगारी की समस्या का पूर्ण समाधान नहीं होने के कारण के रूप में निम्नलिखित में से किसकी चर्चा नहीं की गई है? 2. योजनाओं का पूरा-पूरा लाभ ग्रामीणों को क्यों नहीं मिल पाता? 3. किस कारण व्यक्ति को मानसिक रूप से प्रताङित होना पङता है? 4. प्रस्तुत गद्यांश के माध्यम से लेखक क्या बताना चाहता है? 5. प्रस्तुत गद्यांश में किसके महत्त्व पर जोर दिया गया है? 6. ’रोजगारोन्मुखी’ का सन्धि-विच्छेद है- 7. निम्नलिखित में से कौन-सा कथन सत्य है? 8. बेरोजगारी और अपराध के सम्बन्ध के बारे में लेखक क्या कहना चाहता है? 9. ’क्रियान्वयन’ का विशेषण है- हिंदी गद्यांश-13 (Hindi paragraph-13)भारत में वैश्वीकरण की आवश्यकता तब महसूस की गई जब 1991 में वित्तीय संकट के कारण इसे अपना सोना गिरवी रखकर विदेशों से ऋण लेना पङा। भारत में वैश्वीकरण को स्वीकृति देने के बाद से विदेशी निवेशकों ने भारत में अत्यधिक पूँजी निवेश किया है। इससे आयात-निर्यात को भी अत्यधिक बढ़ावा मिला है। सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी तथा ऑटोमोबाइल जैसे क्षेत्रों में असाधारण प्रगति हुई है एवं इन क्षेत्रों के भारतीय विशेषज्ञों की माँग दुनिया भर में बढ़ी है। आज बङी संख्या में भारत के विशेषज्ञ विश्व के अनेक देशों में कार्यरत है। संचार एवं सूचना क्रान्ति के कारण दुनिया आज ग्लोबल विलेज का रूप ले चुकी है। ऐसी स्थिति में सही तौर पर देखा जाए तो वैश्वीकरण समय की माँग है एवं आर्थिक प्रगति के दृष्टिकोण से यह अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है। वर्तमान समय में जटिल आर्थिक परिस्थितियों को देखते हुए विश्व का कोई भी देश सभी मामलों में पूर्णतया आत्मनिर्भर होने का दावा नहीं कर सकता, उसे किसी-न-किसी कारण से किसी अन्य देश पर अवश्य निर्भर रहना पङता है। यही कारण है कि अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार एवं सहयोग को बढ़ावा देकर तेजी से आर्थिक प्रगति हासिल करने के लिए वैश्वीकरण आवश्यक है। वैश्वीकरण ने पूरे विश्व को आर्थिक सुधार का एक सुनहरा अवसर प्रदान किया है। भले ही इससे कुछ नुकसान सम्भव हैं किन्तु किसी भी देश का अन्य देशों के सहयोग के बिना अकेले प्रगति पथ पर अग्रसर रहना लगभग असम्भव है। अतः राष्ट्रीयता की भावना का सम्मान करते हुए यदि अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग एवं सौहार्द की भावना को बढ़ावा दिया जाए तो इससे निस्सन्देह विकासशील ही नहीं विकसित देशों को भी लाभ होगा। यदि आपस में व्यापार करने वाले देश एक-दूसरे को बाजार के दृष्टिकोण से न देखकर आर्थिक प्रगति हासिल करने के लिए सहयोगी के तौर पर देखें तो इससे न केवल वैश्विक अर्थव्यवस्था में तेजी से सुधार होगा, बल्कि अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति एवं सौहार्द में भी वृद्धि होगी। 1. विदेशी निवेशकों ने भारत में अत्यधिक पूँजी क्यों निवेश की है? 2. वैश्वीकरण से भारत को निम्नलिखित में से कौन-सा लाभ प्राप्त नहीं हुआ है? 3. वैश्वीकरण के फलस्वरूप होने वाले परिणाम के रूप में निम्नलिखित में से किसकी चर्चा इस गद्यांश में नहीं की गई है? 4. प्रस्तुत गद्यांश का सर्वाधिक उपयुक्त शीर्षक निम्नलिखित में से कौन-सा होगा? 5. प्रस्तुत गद्यांश के अनुसार वैश्वीकरण क्यों आवश्यक नहीं है? 6. ’राष्ट्रीयता’ शब्द है- हिंदी गद्यांश-14 (Hindi paragraph-14)निर्देश (प्र.सं. 55-60) निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर इस पर आधारित प्रश्नों के उत्तर दीजिए। 1. निम्नलिखित में से कौन-सा कथन असत्य है? 2. परम्परागत आस्था में- 3. प्रस्तुत गद्यांश द्वारा लेखक कहना चाहता है कि- 4. अस्तित्ववादियों के अनुसार जीवन में आई प्रतिकूल परिस्थितियों के लिए कौन दोषी है? 5. प्रस्तुत गद्यांश का सर्वाधिक उपयुक्त शीर्षक निम्नलिखित में से क्या होगा? 6. ’सापेक्ष’ का विपरीतार्थक शब्द है- 7. ’नास्तिकता’ की तरह कौन-सा विशेषण शब्द प्रस्तुत गद्यांश में प्रयुक्त हुआ है? 8. ’कर्मफल’ में कौन-सा समास है? 9. ’इस विचारधारा के अनुयायियों………….’ वाक्य में रेखांकित शब्द है। हिंदी गद्यांश-15 (Hindi paragraph-15)दुनिया को जितना नुकसान दो विश्वयुद्धों से नहीं हुआ है उससे अधिक नुकसान यदि किसी कारण हुआ है तो वह है आतंकवाद। आतंकवाद की शुरुआत बहुत पहले हो चुकी थी और इसके उदाहरण विश्व इतिहास में भरे पङे हैं, किन्तु 11 सितम्बर, 2001 को अमेरिका के न्यूयार्क स्थित व्यावसायिक केन्द्रों पर आतंकी हमले के बाद दुनिया को लगा कि आतंकवादी कितने भयानक कुकृत्यों को अन्जाम दे सकते हैं। इसके बाद पूरी दुनिया आतंकवाद से निपटने के लिए चिन्तित दिखाई पङने लगी। आज लगभग पूरा विश्व आतंकवाद की चपेट में है। 1. दुनिया को अब तक सर्वाधिक नुकसान किससे हुआ है? 2. निम्नलिखित में से किस संगठन को धार्मिक कट्टरता की श्रेणी में रखा जाता है? 3. पूरी दुनिया आतंकवाद से निपटने के लिए चिन्तित कब से दिखाई पङने लगी? 4. प्रस्तुत गद्यांश में निम्नलिखित में से किस देश की चर्चा नहीं की गई है? 5. ’आतंकवाद’ शब्द है- हिंदी गद्यांश-16 (Hindi paragraph-16)राष्ट्रीय रोजगार गारण्टी अधिनियम के अन्तर्गत राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी योजना का शुभारम्भ प्रधानमन्त्री मनमोहन सिंह द्वारा 2 फरवरी, 2006 को आन्ध्र प्रदेश के अनन्तपुर जिले से किया गया था। पहले चरण में वर्ष 2006-07 की अवधि में देश के 27 राज्यों के उन चुनिन्दा 200 जिलों में इस योजना का कार्यान्वयन किया गया था 1. गद्यांश में वर्णित रोजगार योजना गाँवों के विकासमें किस प्रकार सहायक सिद्ध हुई है? 2. इस गद्यांश में लेखक ने किसका वर्णन किया है? 3. किसके दूरगामी सकारात्मक परिणाम देश के सन्तुलित विकास के रूप में शीघ्र ही दिखाई पङने लगेंगे? 4. रोजगार की गारण्टी मिलने से निम्नलिखित में से कौन-सा लाभ नहीं हुआ है? 5. राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी देश के कितने जिलों में लागू की जा चुकी है? 6. ’प्रावधान’ का तात्पर्य है- 7. ’कार्यशील’ की तरह कौन-सा विशेषण शब्द ठीक है? 8. ’इन दृष्टिकोणों से भी…………… वाक्य में रेखांकित शब्द है- 9. ’विषमता’ का विपरीतार्थक शब्द है- हिंदी गद्यांश-17 (Hindi paragraph-17)हरा-भरा हो जीवन अपना स्वस्थ रहे संसार, 1. ’हरा-भरा जीवन’ का अर्थ है- 2. कौन-सी चीजें बहार लेकर आती हैं? 3. कवि ने सृष्टि का उपहार किसे कहा है? 4. कवि यह सन्देश देना चाहता है कि- 5. ’जग से तुम और तुम से है ये प्यारा संसार’ पंक्ति के माध्यम से कवि कहना चाहता है कि- 6. ’अनुपम’ से अभिप्राय है- हिंदी गद्यांश-18 (Hindi paragraph-18)चमकीले सूरज पर धब्बे शुरू से ही पाए जाते हैं। खगोलवेत्ताओं ने सैकङों वर्षों की खोज के बाद यह पाया था कि सूरज पर इन धब्बों का एक चक्र लगभग ग्यारह वर्ष का होता है, लेकिन पिछले लगभग दो साल से सूरज पर ये धब्बे दिखने बन्द हो गए हैं। इस से दुनिया भर के खगोल वैज्ञानिक चकित है। 2. इस गद्यांश में लेखक ने किसका वर्णन करना चाहा है? 3. सूरज यदि अपनी चुम्बकीय क्षमता खो देगा तो इसका क्या परिणाम होगा? 4. हाल के वर्षों में किसमें तेजी आई है? 5. पृथ्वी पर जीवन असम्भव क्यों हो जाएगा? 6. ’खगोल’ का तात्पर्य है- 7. ’अध्ययन’ का सन्धि-विच्छेद है- 8. ’सूरज पर धब्बे बिल्कुल न दिखाई पङें हों’ में रेखांकित शब्द में कौन-सा कारक है? 9. ’जो दो बेल्ट सूरज की परिक्रमा करते हैं…………वाक्य में रेखांकित शब्द है। हिंदी गद्यांश-19 (Hindi paragraph-19)प्रगतिवाद का सम्बन्ध जीवन और जगत के प्रति नये दृष्टिकोण से है। इस भौतिक जगत को सम्पूर्ण सत्य मानकर, उसमें रहने वाले मानव समुदाय के मंगल की कामना से प्रेरित होकर प्रगतिवादी साहित्य की रचना की गई है। जीवन के प्रति लौकिक दृष्टि इस साहित्य का आधार है और सामाजिक यथार्थ से उत्पन्न होता है, लेकिन उसे बदलने और बेहतर बनाने की कामना के साथ। प्रगतिवादी कवि न तो इतिहास की उपेक्षा करता है, न वर्तमान का अनादर, न ही वह भविष्य के रंगीन सपने बुनता है। इतिहास को वैज्ञानिक दृष्टि से जाँचते-परखते हुए, वह वर्तमान को समझने की कोशिश करता है और उसी के आधार पर भविष्य के लिए अपना मार्ग चुनता है। यही कारण है कि प्रगतिवादी काव्य में ऐतिहासिक चेतना अनिवार्यतः विद्यमान रहती है। प्रगतिवादी कवि की दृष्टि सामाजिक यथार्थ पर केन्द्रित रहती है, वह अपने परिवेश और प्रकृति के प्रति गहरे लगाव से प्रेरित होता है तथा जीवन के प्रति उसका दृष्टिकोण सकारात्मक होता है। मानव को वह सर्वोपरि मानता है। 1. प्रगतिवादी कवि किससे जुङाव महसूस करता है? 2. लेखक क्या कहना चाहता है? 3. कौन-सा कथन असत्य है? 4. प्रगतिवादी काव्य में ऐतिहासिक चेतना विद्यमान रहने का क्या कारण है? 5. प्रस्तुत गद्यांश का सर्वाधिक उपयुक्त शीर्षक निम्नलिखित में से क्या होगा? 6. ’अत्याचार’ का सन्धि-विच्छेद है- 7. ’स्थानिक’ की तरह कौन-सा विशेषण शब्द प्रस्तुत गद्यांश में प्रयुक्त नहीं हुआ है? 8. ’सात्विक’ है- 9. ’दमन’ का तात्पर्य है- हिंदी गद्यांश-20 (Hindi paragraph-20)एक नये भौगोलिक अध्ययन का दावा है कि प्रशान्त महासागर में निचले समुद्र तल में पङने वाले कई द्वीप डूब रहे हैं बल्कि उनका विस्तार हो रहा है। अध्ययन के अनुसार तुवालू, किरिबास और माइक्रोनेशिया गणराज्य ऐसे द्वीपीय देश हैं जिनका आकार मूँगे की चट्टानों और समुद्र के भीतर कणों आदि जमा होने से बनी अवसादी चट्टानों के कारण बढ़ गया है। 1. प्रशान्त महासागर में निचले समुद्र तल में पङने वाले कई द्वीपों का विस्तार कैसे हो रहा है? 2. प्रस्तुत गद्यांश में निम्नलिखित में से किस देश की चर्चा नहीं की गई है? 3. प्रशान्त महासागर के कई द्वीपों के निवासी क्यों चिन्तित हैं? 4. प्रस्तुत गद्यांश में चर्चित द्वीपांे के कब तक बने रहने की सम्भावना है? 5. भूगर्भशास्त्रियों ने किसका अध्ययन किया? 6. ’अस्तित्व’ शब्द है- हिंदी गद्यांश-21 (Hindi paragraph-21)स्पीति हिमाचल प्रदेश के लाहुल-स्पीति जिले की तहसील है। लाहुल-स्पीति का यह योग भी आकस्मिक ही है। इनमें बहुत योगायोग नहीं है। ऊँचे दर्रों और कठिन रास्तों के कारण इतिहास में भी रहा है। अलंघ्य भूगोल यहाँ इतिहास का एक बङा कारक है। अब जबकि संचार में कुछ सुधार हुआ है तब भी लाहुल-स्पीति का योग प्रायः ’वायरलेस सेट’ के जरिए है जो केलंग और काजा के बीच खङकता रहता है। फिर भी केलंग के बादशाह को भय लगा रहता है कि कहीं काजा का सूबेदार उसकी अवज्ञा तो नहीं कर रहा हैं? कहीं बगावत तो नहीं करने वाला है? लेकिन सिवाय वायरलेस सेट पर सन्देश भेजने के वह कर भी क्या सकता है? वसन्त में भी 170 मील जाना-आना कठिन है। शीत में प्रायः असम्भव है। 1. लाहुली किसे कहा गया है? 2. लाहुल और स्पीति के आपस में जुङने का माध्यम है- 3. लाहुल-स्पीति का भूगोल अलंघ्य क्यों है? 4. कौन-सा कथन असत्य है? 5. ’अप्रतिकार’ का अर्थ है- 6. प्रस्तुत गद्यांश में किस ऋतु की चर्चा नहीं की गई है? 7. ’’उसने स्पीति को और वहाँ के विहारों को लूटा।’’ इस वाक्य में रेखांकित शब्द है- 8. ’अलंघ्य’ का तात्पर्य है- 9. स्पीति की स्वायत्तता, इसकी और इसके संहार का कारण है- हिंदी गद्यांश-22 (Hindi paragraph-22)सन् 1936 के लगभग की बात है। मैं पूर्वक्रमानुसार कौशाम्बी गया हुआ था। वहाँ का काम निबटाकर सोचा कि दिनभर के लिए पसोवा हो आऊँ। ढाई मील तो है। सौभाग्य से गाँव में कोई सवारी इक्के पर आई थी। उस इक्के को ठीक कर लिया और पसोवे के लिए रवाना हो गया। पसोवा एक बङा जैन तीर्थ है। वहाँ प्राचीन काल से प्रतिवर्ष जैनों का एक बङा मेला लगता है जिसमें दूर-दूर से हजारों जैन यात्री आकर सम्मिलित होते हैं। यह भी कहा जाता है कि इसी स्थान पर एक छोटी-सी पहाङी थी जिसकी गुफा में बुद्धदेव व्यायाम करते थे। वहाँ एक विषधर सर्प भी रहता था। 1. कौशाम्बी है- 2. लेखक ने चतुर्मुख शिव की मूर्ति कहाँ देखी? 3. ’छूँछे हाथ नहीं लौटना’ का तात्पर्य है- 4. ’चतुर्मुख’ में कौन-सा समास है? 5. ’यहाँ कोई विशेष महत्त्व………कुछ बढ़िया मृण्मूर्तियाँ……..’वाक्य में रेखांकित शब्द है- 6. ’किंवदन्ती’ का तात्पर्य है- हिंदी गद्यांश-23 (Hindi paragraph-23)आचार्य शुक्ल हिन्दी आलोचना और साहित्य के आधार स्तम्भ हैं। उन्होंने हिन्दी आलोचना को आधुनिक बनाने में काफी महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया। शास्त्र और द्विवेदी युगीन कोरे रचनाकर से सन्दर्भ से हटकर उन्होंने रचना को अपने विवेचन का केन्द्र बिन्दु बनाया, जिसके लिए इतिवृत्त कथन से आगे संश्लिष्ट छायावादी विधान में अपने को प्रस्तुत किया। रामचन्द्र शुक्ल न संस्कृत के पाण्डित थे और न उनके पास अंग्रेजी की डिग्री थी। अपनी मानसिकता बनाने में उन पर कोई दबाव न था, यों इन दोनों प्रतिष्ठित भाषाओं का ज्ञान उन्हें था कि उनसे काम भर की सामग्री बराबर ले सकते थे। अंग्रेजी में तो वे तत्कालीन प्रसिद्ध पत्रों में लिखते भी थे और उससे उन्होंने अनुवाद भी कई प्रकार के किए थे। अंग्रेजी के अलावा कुछ थोङा अनुवाद बंगला से किया था, पर संस्कृत-ज्ञान उनका शायद ऐसा व्यवस्थित न था कि वहाँ से कुछ अनुवाद करते। 1. यदि काव्य का एक पक्ष सुन्दर है, तो दूसरा पक्ष- 2. शुक्ल जी के चिन्तन का केन्द्रीय निबन्ध है- 3. रामचन्द्र शुक्ल- 4. कौन-सा कथन असत्य है? 5. शुक्ल जी ने अपने अधिकतिर काव्यमूल्य किससे विकसित किए? 6. ’साधनावस्था’ का सन्धि-विच्छेद है- 7. रामचन्द्र शुक्ल किस भाषा में लिखते थे? 8. ’लोकमंगल’ में कौन-सा समास है? 9. शुक्ल जी ने रचना को स्वायत्त रूप में प्रतिष्ठित करने के लिए क्या किया? हिंदी गद्यांश-24 (Hindi paragraph-24)यह सर्वविदित है कि मानवता का सबसे घोर शत्रु विज्ञान नहीं वरन् युद्ध है, विज्ञान मात्र विद्यमान सामाजिक शक्तियांे को प्रतिबिम्बित करता है, स्पष्टता विज्ञान शान्ति के दौर में रचनात्मक होता है और युद्धकाल में यही विनाश का रूप ले लेता है, प्रायः विज्ञान द्वारा प्रदत्त अस्त्र युद्ध के लिए जिम्मेदार नहीं है, हालाँकि वे युद्ध को अत्यधिक भयावह बना सकते हैं, अभी तक ये अस्त्र हमें विनाश के कगार तक ले आए हैं। अतः हमारी मुख्य समस्या विज्ञान को प्रतिबन्धित करना नहीं बल्कि युद्ध रोकना है। बल प्रयोग के स्थान पर विधि एवं राष्ट्रों के पारस्परिक सम्बन्धों में अराजकता के स्थान पर अन्तर्राष्ट्रीय सरकार की स्थापना करना है। ऐसे प्रयास में सभी लोगों की भागीदारी आवश्यक है जिनमें वैज्ञानिक भी शामिल हैं। अब हमारे समक्ष यह प्रश्न मुँह खोले खङा है क्या शिक्षा एवं सहिष्णुता, सौहार्द एवं रचनात्मक सोच हमारी विनाशकारी क्षमताओं के साथ जारी प्रतिस्पद्र्धा में कभी जीत सकती है? 1. मानवता का वास्तविक शत्रु विज्ञान नहीं बल्कि युद्ध है, क्योंकि- 2. युद्ध रोका जा सकता है यदि- 3. प्रस्तुत गद्यांश के अनुसार हमारी समस्या है- 4. विनाशकारी प्रवृत्तियों को नियन्त्रित करने हेतु क्या आवश्यक है? 5. ’’विनाश की दहलीज पर खङा करना’’ का क्या तात्पर्य है? 6. ’युद्धकाल’ में कौन-सा समास है? हिंदी गद्यांश-25 (Hindi paragraph-25)मोतीलाल चट्टोपाध्याय चैबीस परगना जिले में काँचङपाङा के पास मामूदपुर के रहने वाले थे। उनके पिता बैकुण्डनाथ चट्टोपाध्याय सम्भ्रान्त राढ़ी ब्राह्मण परिवार के एक स्वाधीनचेता और निर्भीक व्यक्ति थे और वह युग था प्रबल प्रताप जमींदारों के अत्याचार का, लेकिन वे कभी किसी से दबे नहीं। उन्होंने सदा प्रजा का ही पक्ष लिया। इसीलिए एक दिन उनके क्रोध का शिकार हो गए। सुना गया कि एक दिन जमींदार ने उन्हें बुलाकर किसी मुकदमे में गवाही देने के लिए कहा। उन्होंने उत्तर दिया, ’’मैं गवाही कैसे दे सकता हूँ? उसके बारे में मैं कुछ भी नहीं जानता।’’ 1. बैकुण्ठनाथ ने मुकदमे की गवाही देने से इन्कार क्यों कर दिया? 2. जमींदार के क्रोध का क्या कारण था? 3. अपने पति की मृत्यु के बाद भी बहू माँ क्यों नहीं रोई? 4. मोतीलाल के मामा कहाँ रहते थे? 5. कौन-सा कथन असत्य है? 6. ’हाथ धो बैठना’ का अर्थ है- 7. ’स्नानघाट’ में कौन-सा समास है? 8. ’एक दिन अचानक वे घर से गायब हो गए।’ इस वाक्य में रेखांकित शब्द है- 9. ’हतप्रभ’ का तात्पर्य है- हिंदी गद्यांश-26 (Hindi paragraph-26)मैंने आज तक जिन अत्यन्त सच्चे एवं महान व्यक्तियों से मुलाकात की है, उनमें से एक सरदार दयाल सिंह मजीठिया थे। शायद उन्हें समझना एवं उनके हृदय की गहराइयों तक पहुँचना कठिन था, क्योंकि उनकी ख्याति एक तरह की अल्पभाषित प्रकृति की थी, जो उनकी प्रकृति में छिपे स्वर्ण को लोगों की निगाह से ओझल रखती थी। मैं जिस कार्य के लिए उनके पास गया था, उसमें उन्होंने अपनी सक्रियता स्वयं की दर्शाई। मैंने उनसे लाहौर में एक समाचार-पत्र शुरू करने के लिए आग्रह किया। मैंने उनके लिए कलकत्ता में ट्रिब्यून समाचार-पत्र के लिए पहला प्रेस खरीदा और उन्होंने मुझे पहले सम्पादक का चुनाव करने की जिम्मेदारी सौंपी। मैंने उस पद के लिए ढ़ाका के शीतला कान्त चटर्जी के नाम की सिफारिश की और पहले सम्पादक के रूप में उनके सफल कैरियर ने मेरे चुनाव को बहुत अधिक न्यायोचित ठहराया। उनकी निर्भीकता, प्रत्येक वस्तु की गहराई से परख करने, बुद्धि और इससे भी बढ़कर, अपने उद्देश्य के प्रति उनकी सर्वोकृष्ट ईमानदारी, जो भारतीय पत्रकारिता की सबसे पहली और अन्तिम योग्यता है, ने शीघ्र ही उन्हें उन लोगों की श्रेणी की प्रथम पंक्ति में ला खङा किया, जो अपनी लेखनी को अपने देश के हित की रक्षा करने के लिए चलाते हैं। ट्रिब्यून शीघ्र ही लोक-भावना का एक सशक्त माध्यम बन गया, शायद अब यह पंजाब में सर्वाधिक प्रभावशाली भारतीय जर्नल है और इसका सम्पादन एक ऐसे महापुरुष द्वारा किया जा रहा है, जो अपने कैरियर के शुरुआती दिनों में मेरे साथ बंगाली के कार्यकर्ता के रूप में संलग्न रहे। 1. सरदार दयाल सिंह मजीठिया कौन थे? 2. ट्रिब्यून समाचार-पत्र के पहले सम्पादक कौन थे? 3. लोक-भावना का एक सशक्त माध्यम कौन बना? 4. प्रस्तुत गद्यांश के अनुसार भारतीय पत्रकारिता की सबसे पहली और अन्तिम योग्यता है? 5. पहले सम्पादक का चुनाव करने की जिम्मेदारी किसकी थी? 6. ’महापुरुष’ में कौन-सा समास है? हिंदी गद्यांश-27 (Hindi paragraph-27)जाकिर साहब से मिलने के लिए समय प्राप्त करने में देर नहीं लगती थी। एक बार मेरी एक सहेली ऑस्ट्रेलिया से भारत की यात्रा करने आई। अपने देश में वे भारतीयों की शिक्षा के लिए धन एकत्र किया करती थी। एक भारतीय को उन्होंने गोद भी ले लिया था। जाकिर साहब ने तुरन्त मिलने का समय दिया और देर तक बैठ उनसे, उनके कार्य, उनकी यात्रा के बारे में सुनते रहे। हिन्दी सीखने के बारे में एक बार जब उनसे प्रश्न किया गया, तो उन्होंने कक्षा ’’मेरे परिवार के एक बच्चे ने जब गाँधीजी से ऑटोग्राफ माँगा, तो उन्होंने अपने हस्ताक्षर उर्दू में किए। उसी दिन से मैंने अपने मन में निश्चय कर लिया कि हिन्दी भाषियों को अपने हस्ताक्षर हिन्दी में ही दिया करुँगा। एक बार रामलीला में जनता ने उनसे रामचन्द्रजी का तिलक करने के लिए कहा। जाकिर साहब ने खुशी से तिलक कर दिया। कुछ उर्दू अखबारों ने ऐतराज किया। जाकिर साहब ने जवाब दिया ’इन नादानों को मालूम नहीं है कि मैं भारत का राष्ट्रपति हूँ किसी खास धर्म का नहीं।’ 2. जब बच्चे द्वारा गाँधीजी से ऑटोग्राफ माँगा गया, तो उन्होंने किस भाषा में हस्ताक्षर किए? 3. रामलीला में रामचन्द्र का तिलक करना किस बात का प्रतीक है? 4. ऐतराज शब्द का शब्दार्थ है- 5. सहेली ऑस्ट्रेलिया में क्या काम करती थी? 6. ’धर्म’ का विलोम शब्द है- 7. जाकिर हुसैन कौन थे? 8. ’गोद लेना’ का अर्थ है- 9. लेखिका की सहेली निम्नलिखित में से किस देश से सम्बन्धित है? हिंदी गद्यांश-28 (Hindi paragraph-28)नन्हीं-सी नदी हमारी टेढ़ी-मेढ़ी धार, गर्मियों में घुटने भर भिगों कर जाते पार। 1. शब्द ’ढोर-डंगर से तात्पर्य है- 2. नन्हीं-सी नदी के किनारे कैसे हैं? 3. कविता का उपयुक्त शीर्षक हो सकता है- 4. शब्द ’धाम’ का अर्थ क्या होगा? 5. ’किचपिच-किचपिच करती मैना’ से तात्पर्य है? 6. कवि ने ’काँस’ की तुलना किससे की है? हिंदी गद्यांश-29 (Hindi paragraph-29)दैन्य दुःख अपमान ग्लानि 1. इस पद्यांश में किस समस्या का वर्णन किया गया है? 2. इस पद्यांश में ’बस्ती के बनिए’ की समानता किससे स्थापित की गई है? 3. ’मृत’ का विलोम है- 4. इनमें से कौन-सा शब्द ’अभिलाषा’ का पर्याय नहीं है? 5. ’जङ’ का विलोम होता है- 6. अपमान में उपसर्ग है- हिंदी गद्यांश-30 (Hindi paragraph-30)देशभक्ति के गीतों की परम्परा में महेन्द्र कपूर का नाम महत्त्वपूर्ण है। जब भी हम महेन्द्र कपूर का जिक्र करते हैं, तो हमारे मन में उनकी छवि देशराग के एक अहम् गायक के रूप में कौंधती है। यह सच है कि देशभक्ति और परम्परागत मूल्यों के जितने लोकप्रिय अनूठे गाने महेन्द्र कपूर ने गाए हैं उतनी संख्या में उतने श्रेष्ठ गाने दूसरे गायक ने नहीं गाए होंगे। महेन्द्र कपूर के नाम का स्मरण करते ही हमारे जेहन में एक ऐसे गायक की छवि कौंध जाती है तो मद्धिम स्वरों में भी उतनी ही खूबसूरती से गाता है जितना की ऊँचे सुरो में। एक ऐसा गायक जिसका नाम लेते ही हमारे मन में एक साथ तमाम वे गीत आने-जाने लगते हैं जिनका देश से वास्ता होता है, जिनका मान-मर्यादा से वास्ता होता है, जिनका संस्कारों से वास्ता होता है। महेन्द्र कपूर न सिर्फ गायक बल्कि एक ऐसी शख्सियत हैं जिनकी छवि बेहद सहज और शालीन इन्सान की है। वे बेहद अनुशासन के साथ अपने सुरों को साधते हैं। सचमुच वे दिलांे को जीत लेते हैं, जब वे गर्व से कहते हैं-जीते हैं तुमने देश तो क्या हमने तो दिलों को जीता है। 2. महेन्द्र कपूर की छवि किस प्रकार की है? 3. वे गीत जिनका देश से वास्ता होता है, कहलाते हैं- 4. शब्द ’देशभक्त’ में प्रयुक्त समास है- 5. इस गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक दीजिए- 6. ’मद्धिम स्वर’ का तात्पर्य है- 7. ’शख्सियत’ का तात्पर्य है- 8. महेन्द्र कपूर ने किस तरह के गाने गाए हैं? 9. ’जिक्र’ का प्रर्याय होगा- हिंदी गद्यांश-31 (Hindi paragraph-31)सिमी एक मादा पिल्ला थी। वह बङी आकर्षक थी। आशा को वह एक पार्क में रोती हुई मिली थी। जब उसने उसे ऊपर उठाया तो सिमी ने रोना बन्द कर दिया और उसे देखने लगी। आशा को उसका देखना अच्छा लगा और उसने उसे घर ले जाने का निश्चय कर लिया। उसकी माँ ने भी इस विचार को मान लिया। उन दोनों ने उसका नाम रखा ’सिमी’ और उसे खुशी-खुशी घर ले आए। 1. पिल्ले का नाम ’सिमी’ किसने रखा? 2. पिल्ले को सभ्य बनने में कितना समय लगा? 3. पंक्ति ’सिखाने वाले को कुछ कठोर होना ही पङता है’ में कठोर शब्द से पर्याय है- 4. ’आकर्षक’ शब्द का समानार्थी शब्द है- 5. शब्द ’सुबह’ का पर्यायवाची है- 6. आशा सिमी को घर ले आई, क्योंकि उसे- 7. ’’उसने बात नहीं मानी’’ यहाँ ’उसने’ का अर्थ है- 8. ’इनाम’ विपरीतार्थक शब्द क्या है? 9. ’’वह जो चाहती थी, कर दिखाया………उपरोक्त के लिए निम्नलिखित में से कौन-सा शब्द ठीक है? हिंदी गद्यांश-32 (Hindi paragraph-32)एक पढ़क्कू बङे तेज थे, तर्कशास्त्र पढ़ते थे, 1. ’ढब’ शब्द का पर्यायवाची है- 2. पढ़क्कू बहुत तेज थे, क्योंकि वह- 3. आपके अनुसार, इस कविता का नायक कौन है? 4. ’फिक्र’ शब्द का सही अर्थ नहीं है- 5. ’तर्कशास्त्र’ में प्रयुक्त समास है- 6. ’निश्चय’ का विपरीतार्थक शब्द है- हिंदी गद्यांश-33 (Hindi paragraph-33)हमारी आन का झण्डा, भरा अभिमान है इसमें 1. ’कभी दुनिया में औरों का नहीं हम छीनकर खाएँ’- 2. ’गौरव’ शब्द का पर्यायवाची है- 3. राष्ट्रीय झण्डा प्रतीक नहीं है- 4. झण्डे को प्रेरणा का बल किसलिए कहा गया है? 5. ’हरा है देश का अंचल’ पंक्ति में ’हरा’ शब्द वाचक है- 6. संबल में उपसर्ग है- हिंदी गद्यांश-34 (Hindi paragraph-34)तुम सुबह से रात तक अपने आस-पास अनेक परिवर्तन होते हुए देखते हो। ये परिवर्तन तुम्हें घर, विद्यालय, खेल के मैदान अथवा किसी अन्य स्थान पर दिखाई देते हैं। उदाहरण के लिए, तुम्हें कुछ ऐसे परिवर्तन दिखाई देते है, जैसे मौसम में आकस्मिक परिवर्तन, वर्षा, पौधों पर फूल आना, बीजों का अंकुरित होना, फलों का पकना, वस्त्रों का सूखना, दिन-रात में परिवर्तन, बर्फ का पिघलना, पानी का भाप बनना, ईंधन का जलना, चावल को पकाना, दूध से दही का बनना, लोहे में जंग लगना, आतिशबाजी का जलना आदि। परिवर्तन से वस्तुओं में विभिन्न प्रकार के प्रत्यावर्तन भी हो सकते हैं: जैसे स्थिति, आकृति, आकार, रंग, अवस्था, तापमान, बनावट तथा संरचना में बदलाव। परिवर्तन का सदैव कोई-न-कोई कारण होता है। 1. उपरोक्त गद्यांश के लिए कौन-सा शीर्षक सबसे अधिक उपयुक्त है? 2. ’विद्यालय शब्द में प्रयुक्त समास है- 3. ’दिन-रात’ में प्रयुक्त समास है- 4. दूध का पर्यायवाची है- 5. अचानक घटित होने वाला- 6. ’’तुम अपने आस-पास अनेक परिवर्तन देखते हो।’’ इस वाक्य में ’अपने आस-पास’ से तात्पर्य है- 7. इस गद्यांश में जिन परिवर्तनों का सल्लेख किया गया है उनमें ऐसे कारकों को सम्मिलित नहीं किया है, जैसे- 8. परिवर्तन सम्भव नहीं है- 9. हमारे आस-पास होने वाले परिवर्तनों में से नीचे किसका उल्लेख नहीं किया गया है? हिंदी गद्यांश-35 (Hindi paragraph-35)1732 ई. में जब मुगल शासक मुहम्मद शाह था, जयसिंह को मालवा का शासक बनाया गया। उसे नियुक्त करने का उद्देश्य मराठों को मालवा से भागना था, लेकिन जयसिंह इस कार्य को करने में विफल रहा और जयपुर लौट गया। इसी समय मराठों ने मालवा पर आक्रमण कर, उसे अपने अधिकार में कर लिया। इस प्रदेश को सुव्यवस्थित रखने के लिए पेशवा ने जागीर प्रथा प्रारम्भ की तथा स्थानीय सरदारों को जागीरें प्रदान की। इसी समय सिन्धिया को उज्जैन, आनन्दराव पवार को धार, होल्कर को मालवा तथा तुकोजी को देवास की जागीरें प्रदान की गईं। इस प्रकार सिन्धिया, होल्कर तथा पवार की नवीन रियासतों की स्थापना का मार्ग प्रशस्त हुआ। ये नवीन रियासत मालवा क्षेत्र के नवयुग के पथ प्रदर्शक बने। इन रियासतों ने मालवा की सांस्कृतिक चेतना को भी प्रभावित किया। 1741 ई. के बाद मुगल साम्राज्य का सम्बन्ध सदा के लिए मालवा से समाप्त हो गया। 1. कौन मलावा में नवयुग के पथ प्रदर्शक बने? 2. शब्द ’विफल’ का विपरीतार्थक शब्द है- 3. ’प्रथा’ शब्द से तात्पर्य है- 4. सुव्यवस्थित में प्रयुक्त उपसर्ग है- 5. नवीन रियासतें किस क्षेत्र की पथ प्रदर्शक बनीं? 6. मुगल शासक मुहम्मद शाह ने 1732 ई. में किसे मालवा का शासक नियुक्त किया है? 7. मालवा पर अधिकार करने के बाद पेशवा ने वहाँ कौन-सी प्रथा प्रारम्भ की? 8. मालवा में पेशवा ने किसे जागीर प्रदान नहीं की? 9. किस वर्ष मुगलों का सम्बन्ध मालवा के सदा के लिए समाप्त हो गया? हिंदी गद्यांश-36 (Hindi paragraph-36)नये समाज के लिए, नये जवान है। 1. देशवासियों में अलगाव की समाप्ति का उपाय है- 2. भारतीयों को गर्व है- 3. ’रामराज्य’ का अर्थ है- 4. ’नया विहान’ का अभिप्राय है- 5. नया विहान देश में क्या लाया है? 6. गुमान का समानार्थक है- हिंदी गद्यांश-37 (Hindi paragraph-37)संकटों से वीर घबराते नहीं 1. कवि के अनुसार किस विशेषता की कमी होने पर जीवन व्यर्थ है? 2. ’गिरिशृंग’ शब्द का अर्थ है- 3. पद्यांश में कौन-सा ’रस’ का प्रयोग हुआ है? 4. इस पद्यांश का उचित शीर्षक है- 5. वीरों की एक विशेषता है- 6. ’कठिन’ का विलोम है- हिंदी गद्यांश-38 (Hindi paragraph-38)वैज्ञानिक प्रयोग की सफलाता ने मनुष्य की बुद्धि का अपूर्व विकास कर दिया है। द्वितीय महायुद्ध में एटम बम की शक्ति ने कुछ क्षणों में ही जापान की अजेय शक्ति को पराजित कर दिया। इस शक्ति की युद्धकालीन सफलता ने अमेरिका, रूस, ब्रिटेन, फ्रांस आदि सभी देशों को ऐसे शास्त्रास्त्रों के निर्माण की प्रेरणा दी कि सभी भयंकर और सर्वविनाशकारी शस्त्र बनाने लगे। अब सेना को पराजित करने तथा शत्रु देश पर पैदल सेना द्वारा आक्रमण करने के लिए शस्त्र निर्माण के स्थान पर देश के विनाश करने की दिशा में शस्त्रास्त्र बनने लगे हैं। इन हथियारों का प्रयोग होने पर शत्रु देशों की अधिकांश जनता और सम्पत्ति थोङे समय में ही नष्ट की जा सकेगी। चूँकि ऐसे शस्त्रास्त्र प्रायः सभी स्वतन्त्र देशों के संग्रहालयों में कुछ-न-कुछ आ गए हैं। अतः युद्ध की स्थिति में उनका प्रयोग भी अनिवार्य हो जाएगा, जिससे बङी जनसंख्या प्रभावति हो सकती है। इसीलिए निशस्त्रीकरण की योजनाएँ बन रही हैं। अतः युद्ध की स्थिति में उनका प्रयोग भी अनिवार्य हो जाएगा, जिससे बङी जनसंख्या प्रभावित हो सकती है। इसीलिए निशस्त्रीकरण की योजनाएँ बन रही हैं। शस्त्रास्त्रों के निर्माण की जो प्रक्रिया अपनाई गई, उसी के कारण आज इतने उन्नत शस्त्रास्त्र बन गए हैं, जिनके प्रयोग से व्यापक विनाश आसन्न दिखाई पङता है। अब भी परीक्षणों की रोकथाम तथा बने शस्त्रों का प्रयोग रोकने के मार्ग खोजे जा रहे है। इन प्रयासों के मूल में एक भयंकर आतंक और विश्व-विनाश का भय कार्य कर रहा है। प्रेरित धारा की दिशा कैसे ज्ञात की जा सकती है?फ्लेमिंग का दाहिना हाथ नियम -
इस नियम के अनुसार यदि हम दाहिने हाथ के अंगूठे, मध्यमा और तर्जनी को एक दूसरे के लंबवत व्यवस्थित करते हैं, तो अंगूठा चुंबकीय बल की दिशा,मध्यमा प्रेरित धारा की दिशा और तर्जनी चुंबकीय क्षेत्र की दिशा को इंगित करते हैं। फ्लेमिंग के दाहिने हाथ का नियम प्रेरित धारा की दिशा दर्शाता है।
किसी कुंडली में प्रेरित धारा कब अधिकतम होती है?Solution : प्रेरित धारा अधिकतम तब होती है जब कुंडली की गति चुंबकीय क्षेत्र के लंबवत होती है।
प्रेरित धारा का मुख्य कारण क्या है?Solution : चुम्बक एवं कुण्डली के मध्य सापेक्ष गति के कारण कुण्डली में उत्पन्न विद्युत धारा प्रेरित विद्युत धारा कहलाती है। <br> चुम्बक एवं कुण्डली के मध्य सापेक्षिक गति के कारण चुम्बक के फ्लक्स में परिवर्तन होता है, जिसका विरोध करने के लिए कुण्डली में प्रेरित विद्युत धारा उत्पन्न होती है।
कौन सा नियम बंद लूप में प्रेरित धारा की दिशा देता है?प्रेरण का नियम कहते हैं । इस नियम को निम्न प्रकार से अभिव्यक्त किया गया है। प्रेरित विद्युत वाहक बल का परिमाण चुंबकीय फ्लक्स में समय के साथ होने वाले परिवर्तन की दर के बराबर होता है। € = - d B dt (6.3) ε ऋण चिह्न की दिशा तथा परिणामतः बंद लूप में धारा की दिशा व्यक्त करता है।
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