परिवार कल्याण कौन सी सूची में आता है? - parivaar kalyaan kaun see soochee mein aata hai?

समवर्ती सूची का विषय बने जन स्वास्थ्य: महामारी के समय लोगों के स्वास्थ्य की रक्षा करना राज्यों की अधिक जिम्मेदारी

कोरोना महामारी के कारण हमें यह सोचना होगा कि जनहित में जन स्वास्थ्य को समवर्ती सूची में शामिल करें। राज्यों की स्वायत्तता को ध्यान में रखते हुए इसके क्रियान्वयन के लिए समग्र नीति तैयार करें। इसके अलावा एक अखिल भारतीय चिकित्सा संवर्ग का भी गठन करें।

[ डॉ. सूर्यकांत ]: कोविड-19 महामारी ने उन कमियों को उजागर किया है, जो भारत में सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली में व्याप्त हैं। कई मसलों पर केंद्र और राज्यों के बीच असहमति पैदा हो जा रही है। महामारी को रोकने के लिए केंद्र और राज्यों के बीच सहयोग एक गंभीर आवश्यकता है और भारत में इसकी अनुपस्थिति एक बड़ी चुनौती है। कोरोना महामारी के चलते सार्वजनिक स्वास्थ्य पूर्णत: केंद्र का विषय हो या राज्य का, देश में इस पर बहस शुरू हो गई है। संविधान की सातवीं अनुसूची की दूसरी सूची के अनुसार जन स्वास्थ्य और सफाई, अस्पताल एवं औषधालय राज्यों के अधिकार में आते हैं। इस कारण महामारी के समय लोगों के स्वास्थ्य की रक्षा करना और उन्हें महामारी से बचाने की जिम्मेदारी राज्यों की अधिक हो जाती है। हालांकि चिकित्सा एवं स्वास्थ्य संबंधी कुछ कार्यक्रम जैसे चिकित्सा शिक्षा, परिवार नियोजन तथा जनसंख्या नियंत्रण केंद्र सरकार के अधिकार क्षेत्र में आते हैं। समग्र रूप से देखें तो देश में जन स्वास्थ्य कुछ मायनों में केंद्र की जिम्मेदारी है और ज्यादातर मामलों में राज्यों की। इन्हीं जिम्मेदारियों में केंद्र और राज्यों के बीच तालमेल न होने के कारण टकराव होता है और जिसका नुकसान जनता को उठाना पड़ता है।

जन स्वास्थ्य राज्यों के अधिकार क्षेत्र में आता है, लेकिन प्राथमिकता में नहीं 

सभी राष्ट्रीय स्वास्थ्य कार्यक्रम जैसे टीबी, एचआइवी, मलेरिया उन्मूलन कार्यक्रम भारत सरकार द्वारा चलाए जा रहे हैं। केंद्र सरकार के पास जन स्वास्थ्य कार्यक्रमों एवं नीतियों को सुचारु रूप से बनाने के लिए बड़े पैमाने पर आधारभूत ढांचा एवं तकनीकी विशेषज्ञ हैं। दूसरी ओर राज्यों के पास सार्वजनिक स्वास्थ्य नीतियों को स्वतंत्र रूप से आकार देने की तकनीकी विशेषज्ञता नहीं है। इसके साथ ही केंद्र सरकार के पास बजट, संसाधन, शोध एवं अंतरराष्ट्रीय सहयोग की अपार संभावनाएं रहती हैं, जबकि प्रदेश सरकारें इन मामलों में काफी पीछे रह जाती हैं। जन स्वास्थ्य राज्यों के अधिकार क्षेत्र में आता जरूर है, लेकिन वह प्राथमिकता में नहीं रहता।

केंद्र और राज्यों में तालमेल न बैठ से कठिनाई

केंद्र ने संवैधानिक दायित्व की अस्पष्टता के बावजूद सार्वजनिक स्वास्थ्य नीतियों का निर्धारण करने में सक्रिय भूमिका निभाई है। लोक स्वास्थ्य को विशेष रूप से राज्यों के अधिकार तक सीमित करके संविधान जमीनी हकीकत की अनदेखी करता है। राज्यों में मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल खोलने, जांच सुविधा, उपचार सुविधा, बीमारियों से बचाव के तरीके, चिकित्सकों एवं स्वास्थ्य कर्मियों की सेवा शर्तों में से किसी में भी एकरूपता देखने को नही मिलती। स्पष्ट है कि इससे तालमेल बैठाने में कठिनाई होती है। कई राज्यों में चिकित्सा शिक्षा एवं चिकित्सा स्वास्थ्य, दो अलग-अलग विभाग होते हैं, जिनके बीच में कोई तालमेल नहीं होता। ऐसे में यह बिल्कुल उचित समय है कि सार्वजनिक स्वास्थ्य के संबंध में संवैधानिक शक्ति के वितरण पर फिर से विचार किया जाए और एक ऐसा दृष्टिकोण अपनाया जाए, जिससे राज्य और केंद्र सहकारी भाव से काम कर सकें। इस पर एक बहस शुरू हो और जनता के बेहतर एवं समग्र्र स्वास्थ्य के लिए ‘वन नेशन वन हेल्थ पॉलिसी’ पर विचार किया जाए। यह और भी उचित होगा कि जन स्वास्थ्य के विषय को संविधान की समवर्ती सूची में डालने की पहल हो।

केंद्र की राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति: बड़े शहरों में स्वास्थ्य ढांचा अच्छा, लेकिन  ग्रामीण क्षेत्रों में ठीक नहीं

हाल में भारत सरकार द्वारा एक राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति तैयार की गई है। इसमें और 13वें स्वास्थ्य संबंधी कॉमन रिव्यू मिशन के निष्कर्षों से यह साफ जाहिर हुआ कि बड़े शहरों एवं जिला अस्पतालों में तो स्वास्थ्य ढांचा एवं स्वास्थ्य सुविधाएं काफी अच्छी हैं, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में इन सबका बहुत अभाव है। इसीलिए यह अनुशंसा की गई कि ग्रामीण स्वास्थ्य ढांचे को सुदृढ़ करने के लिए संभावनाएं विकसित की जाएं। 15वें वित्त आयोग को सलाह देने के लिए गठित स्वास्थ्य पर एक उच्चस्तरीय समिति ने केंद्र और राज्यों के बीच अधिकारों को संतुलित करने के लिए जन स्वास्थ्य को राज्य सूची से समवर्ती सूची में करने का सुझाव दिया था। यह सुझाव इस मकसद से दिया गया कि राज्य केंद्र की स्वास्थ्य नीति एवं राष्ट्रीय कार्यक्रमों को पूरी तरह लागू करने के लिए प्रतिबद्ध हों। इसके साथ ही ऐसे तरीके अपनाएं जाने चाहिए, जिससे राज्यों की स्वायत्तता भी बनी रहे।

संवैधानिक ढांचा सार्वजनिक स्वास्थ्य के विषय पर सहकारी संघवाद को बाधित करता

2014 में भारतीय सुरक्षा संघ बनाम भारत संघ के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि संवैधानिक सिद्धांतों को राष्ट्रीय एकता की आवश्यकता के साथ क्षेत्रीय विविधता के हिसाब से बनाया जाना चाहिए। सहकारी संघवाद, विधायी विषयों विशेष रूप से जन कल्याणकारी विषयों के अनुरूप शासन ढांचे को सक्षम करने की आवश्यकता है। कोरोना ने हमें दिखाया है कि वर्तमान संवैधानिक ढांचा सार्वजनिक स्वास्थ्य के विषय पर सहकारी संघवाद को कैसे बाधित करता है? सार्वजनिक स्वास्थ्य को राज्य सूची से समवर्ती सूची में रखना विकेंद्रीकरण की अवधारणा के लिए विरोधाभासी नहीं होगा, क्योंकि इस अवस्था में राज्यों को केंद्र से सार्वजनिक स्वास्थ्य हेतु वित्त के लिए बेहतर सौदेबाजी की शक्ति प्रदान करेगा और उन्हें यह अवसर देगा कि वे अनुचित आवंटन के लिए केंद्र को जिम्मेदार ठहरा सकें। यह बदलाव राष्ट्रीय लक्ष्यों का अनुपालन करते हुए राज्यों की सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रक्रियाओं को अंतिम रूप देने में सक्षम होगा। यद्यपि सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए संवैधानिक ढांचे को फिर से आकार देने की प्रक्रिया राजनीतिक और सामाजिक चुनौतियों से भरी हुई है, लेकिन कोरोना के प्रकोप ने हमें अहसास दिलाया है कि यह सही समय है जब हम इस पर चर्चा शुरू कर सकते हैं।

कोरोना महामारी के चलते जनहित में जन स्वास्थ्य को समवर्ती सूची में शामिल करना चाहिए

कोरोना महामारी के कारण ही सही, अब हमें यह सोचना होगा कि जनहित में हम जन स्वास्थ्य को समवर्ती सूची में शामिल करें। साथ ही राज्यों की स्वायत्तता को ध्यान में रखते हुए इसके क्रियान्वयन के लिए समग्र नीति तैयार करें। इसके अलावा एक अखिल भारतीय चिकित्सा संवर्ग का भी गठन करें।

परिवार कल्याण कौन सी सूची में आता है? - parivaar kalyaan kaun see soochee mein aata hai?

( लेखक आइएमए के नेशनल वाइस चेयरमैन हैं )

Edited By: Bhupendra Singh

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