इसे सुनेंरोकेंपुंकेसर और स्त्रीकेसर के विभिन्न भागों का अध्ययन कीजिए। ऐसे पुष्प, जिनमें या तो केवल पुंकेसर अथवा केवल स्त्रीकेसर उपस्थित होते हैं, एकलिंगी पुष्प कहलाते हैं। जिन पुष्पों में पुंकेसर और स्त्रीकेसर दोनों ही होते हैं, वे द्विलिंगी पुष्प कहलाते हैं। सभी सजीव प्रजनन करते हैं। प्रजनन को उस प्रक्रिया के रूप में परिभाषित
किया जा सकता है जिसके द्वारा कोई जीव अपनी जाति को बनाये रखता है। स्त्री और पुरूष प्रजनन प्रणाली का अंतर प्रजनन चक्र में प्रत्येक व्यक्ति की भूमिका के कार्य निष्पादन पर आधारित है। स्त्री के शरीर के जिन अंगों में गर्भधान एवं शिशु का विकास होता है उसे प्रजनन अंग कहा जाता है. क्या कहते हैं सजीव प्रजनन? प्रजनन क्या हैं? सभी सजीव प्रजनन करते हैं। प्रजनन को उस प्रक्रिया के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जिसके द्वारा कोई जीव अपनी जाति को बनाये रखता है। स्त्री और पुरूष
प्रजनन प्रणाली का अंतर प्रजनन चक्र में प्रत्येक व्यक्ति की भूमिका के कार्य निष्पादन पर आधारित है। क्या है फैलोपियन ट्यूब्स? फैलोपियन ट्यूब्सः यह गर्भाशय के उपरी भाग से निकलने वाली दो नलिकाएं है जो अंडाशय से गर्भाशय को जोडती है. इससे हीं स्त्री के अंडाशय से अंडा निकलकर गर्भाशय तक पहुंचता है. यहीं वह जगह है जहां अंडे के साथ पुरुष का शुक्राणु मिलकर उसे निषेचित करता है. 5. अंडाशयः यह पेट के निचले हिस्से, जिसे पेडु के नाम से भी जाना जाता है, मे स्थित दो अंडाकार अंग है.
शिश्नः यह पुरुष का वह प्रजनन अंग है जो संभोग क्रिया में भाग लेता है. जब पुरुष को यौन उत्तेजना होती है तो उसके शिश्न के नसों मे खुन भर जाता है. शिश्न बडे आकार का होकर सख्त और कडा हो जाता है. उत्तेजना की चरम स्थिती मे वीर्यपात हो सकता है और यदी इस दौरान पुरुष का शुक्राणु, स्त्री के अंडाणु से मिल जाता तो स्त्री गर्भवती हो जाती है. सभी सजीव प्रजनन करते हैं। प्रजनन को उस प्रक्रिया के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जिसके द्वारा कोई जीव अपनी जाति को बनाये रखता है। स्त्री और पुरूष प्रजनन प्रणाली का अंतर प्रजनन चक्र में
प्रत्येक व्यक्ति की भूमिका के कार्य निष्पादन पर आधारित है। स्त्री के शरीर के जिन अंगों में गर्भधान एवं शिशु का विकास होता है उसे प्रजनन अंग कहा जाता है. प्रजनन क्या हैं? सभी सजीव प्रजनन करते हैं। प्रजनन को उस प्रक्रिया के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जिसके द्वारा कोई जीव अपनी जाति को बनाये रखता है। स्त्री और पुरूष प्रजनन प्रणाली का अंतर प्रजनन चक्र में प्रत्येक व्यक्ति की भूमिका के कार्य निष्पादन पर आधारित है। फैलोपियन ट्यूब्सः यह गर्भाशय के उपरी भाग से निकलने वाली दो नलिकाएं
है जो अंडाशय से गर्भाशय को जोडती है. इससे हीं स्त्री के अंडाशय से अंडा निकलकर गर्भाशय तक पहुंचता है. यहीं वह जगह है जहां अंडे के साथ पुरुष का शुक्राणु मिलकर उसे निषेचित करता है. 5. अंडाशयः यह पेट के निचले हिस्से, जिसे पेडु के नाम से भी जाना जाता है, मे स्थित दो अंडाकार अंग है. शिश्नः यह पुरुष का वह प्रजनन अंग है जो संभोग क्रिया में भाग लेता है. जब पुरुष को यौन उत्तेजना होती है तो उसके शिश्न के नसों मे खुन भर जाता है. शिश्न बडे आकार का होकर सख्त और कडा हो जाता है. उत्तेजना की चरम स्थिती मे
वीर्यपात हो सकता है और यदी इस दौरान पुरुष का शुक्राणु, स्त्री के अंडाणु से मिल जाता तो स्त्री गर्भवती हो जाती है. इसे सुनेंरोकेंपौधे के पुष्प के मुख्य रूप से चार भाग होते हैं- अंतिम तीसरे व चौथे पुष्प के चक्र में तीसरा चक्र नर जनन अंग पुंकेसर (पुमंग) कहते हैं जो संख्या में एक या एक से अधिक होते हैं। चौथा अंतिम चक्र मादा जनन अंग स्त्रीकेसर या जायांग कहलाता है जिसमें फल व बीज की उत्पत्ति होती है। जनक पौधों द्वारा अपनी सेक्स कोशिकाओं या युग्मकों (Gametes) का प्रयोग कर नए पौधे को जन्म देने की क्रिया ‘लैंगिक प्रजनन’ कहलाती है| पादपों या पौधों में भी नर और मादा जनन अंग होते हैं। पौधों के ये जनन अंग पुष्पों और फलों के भीतर पाए जाने वाले बीजों में पाये जाते हैं। पुष्प का नर अंग ‘पुंकेसर’ (Stamen) और मादा अंग ‘अंडप/कार्पेल’ (Carpel) कहलाता है। जनक पौधों द्वारा अपनी सेक्स कोशिकाओं या युग्मकों (Gametes) का प्रयोग कर नए पौधे को जन्म देने की क्रिया ‘लैंगिक प्रजनन’ कहलाती है| पादपों या पौधों में भी नर और मादा जनन अंग होते हैं। पौधों के ये जनन अंग पुष्पों और फलों के भीतर पाए जाने वाले बीजों में पाये जाते हैं। ऐसे पौधों को ‘आवृत्तबीजी’ (Angiosperms) या ‘पुष्पीय पौधे’ कहते हैं, क्योंकि ये लैंगिक प्रजनन पद्धति द्वारा प्रजनन करते हैं। ज्यादातर पौधों के फूलों में ही नर और मादा प्रजनन अंग होते हैं। एक ही पुष्प में नर और मादा प्रजनन अंग होते हैं। ऐसे पुष्प नर और मादा युग्मक बनाकर निषेचन को सुनिश्चित करते हैं, ताकि पौधे के प्रजनन के लिए नए बीज तैयार हो सकें। पुष्प के अंग पौधों में लैंगिक प्रजनन के चरण • पुष्प का नर अंग ‘पुंकेसर’ (Stamen) कहलाता है। यह पौधे के नर युग्मकों के बनने में मदद करता है और परागकणों (Pollen Grains) में पाया जाता है। • पुष्प का मादा अंग ‘अंडप/ कार्पेल’ (carpel) कहलाता है। यह पौधे के मादा युग्मकों या अंड कोशिकाओं को बनाने में मदद करता है और बीजांड (Ovules) में पाया जाता है। • नर युग्मक मादा युग्मक से निषेचन करता है। • निषेचित अंड कोशिकाएं बीजांड (ovules) में विकसित होती हैं और बीज बन जाती हैं। • अंकुरित होने पर ये बीज ही नए पौधे बनते हैं। पुष्प के अलग–अलग भाग • रेसप्टकल (Receptacle): यह पुष्प के तने या डंठल के ऊपर पाया जाने वाला पुष्प का आधार होता है। यह रेसप्टकल ही होता है, जिससे पुष्प के सभी भाग इससे जुड़े होते हैं। • बाह्यदल (Sepals): ये हरे पत्ते जैसे भाग होते हैं, जो पुष्प के सबसे बाहरी हिस्से में मौजूद रहते हैं। पुष्प जब कली के रूप में होता है, तब बाह्यदल उसकी रक्षा करते हैं। पुष्प के सभी बाह्यदलों को एक साथ बाह्यदल पुंज (Calyx) कहते हैं। • पंखुड़ियां (Petals): पंखुड़ियां पुष्पों की रंगीन पत्तियां होती हैं। एक पुष्प की सभी पंखुड़ियों को दलपुंज (Corolla) कहते हैं। फूलों की पंखुड़ियों में खुशबू होती है और परागण के लिए वे कीटों को आकर्षित करते हैं। इनका काम पुष्प के मध्य भाग में उपस्थित प्रजनन अंगों की रक्षा करना है। • पुंकेसर (Stamen): पुंकेसर पौधे का नर प्रजनन अंग होता है। ये पंखुड़ियों के छल्ले के भीतर उपस्थित होते हैं और फूले हुए ऊपरी हिस्सों के साथ इनमें थोड़ी डंठल होती है। पुंकेसर दो हिस्सों से बना होता है – ‘परागकोष’ (Anther) और ‘तंतु’ (Filament)। पुंकेसर का डंठल ‘तंतु’ कहलाता है और फूला हुआ ऊपरी हिस्सा ‘परागकोष’। पुंकेसर का परागकोष परागकण उत्पन्न करता है और उन्हें अपने भीतर रखता है। परागकणों में पौधे के नर युग्मक पाये जाते हैं। एक पुष्प में बहुत सारे पुंकेसर होते हैं। पुंकेसर: एक पौधे का नर प्रजनन अंग • अंडप/कार्पेल (Carpel): अंडप मादा प्रजनन अंग है और पौधे के मध्य में पाया जाता है। अंडप का आकार सुराही (flask) जैसा होता है और यह तीन हिस्सों से बना होता है– स्टिग्मा (Stigma), वर्तिका (Style) और अंडाशय (Ovary)। अंडप के शीर्ष हिस्से को ‘स्टिग्मा’ कहा जाता है। यह चिपचिपा होता है और पुंकेसर के परागकोष से परागकण प्राप्त करता है। परागकण स्टिग्मा से चिपक जाते हैं। अंडप का मध्य भाग ‘वर्तिका’ (style) कहलाता है। वर्तिका एक नली है जो स्टिग्मा को अंडाशय से जोड़ती है। अंडप का निचला हिस्सा, जो फूला हुआ होता है, ‘अंडाशय’ कहलाता है। यहीं पर बीजांड बनाए और रखे जाते हैं। अंडाशय में कई ‘बीजांड’ होते हैं और प्रत्येक अंडाशय में पौधे का एक मादा युग्मक पाया जाता है। अंडाशय के भीतर मौजूद पौधे का मादा युग्मक ‘अंडा’ या ‘डिंब’ कहलाता है। इसलिए, अंडप के अंडाशय में मादा युग्मक बनती हैं। पौधे के मादा अंग को ‘जायांग’ (Pistil) भी कहते हैं। इसके अलावा अंडप कई पुंकेसरों से घिरा होता है। कार्पेल:एक पौधे का मादा प्रजनन अंग। कई पुष्प एकलिंगी भी होते हैं। ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि उनमें या तो ‘पुंकेसर’ होता है या ‘अंडप’। पपीता और तरबूज के पुष्प एकलिंगी पुष्पों के उदाहरण हैं। वैसे पुष्प जिनमें नर और मादा, दोनों ही प्रकार के यौन अंग पाए जाते हैं, ‘द्विलिंगी पुष्प’ कहलाते हैं। गुड़हल (Hibiscus) और सरसो के पौधे द्विलिंगी पुष्प के उदाहरण हैं। नए बीज बनाने के क्रम में परागगण में मौजूद नर युग्मक बीजाणु में मौजूद मादा युग्मकों से मिलते हैं। यह प्रक्रिया दो चरणों में होती है • परागण • निषेचन परागण जब पुंकेसर से परागकण अंडप के स्टिग्मा में आता है, तो इसे ‘परागण’ कहते हैं। यह महत्वपूर्ण होता है क्योंकि परागण की वजह से ही नर युग्मक मादा युग्मकों के साथ मिल पाता है। परागण मधुमक्खियों, तितलियों और पक्षियों जैसे कीटों, हवा और पानी से होता है। परागण दो प्रकार के होते हैं– स्व–परागण (Self-Pollination ) और संकर–परागण (Cross-Pollination)। जब एक पुष्प के परागकण उसी पुष्प के स्टिग्मा या उसी पौधे के दूसरे पुष्प के स्टिग्मा तक ले जाए जाते हैं, तो इसे ‘स्व–परागण’ कहते हैं। जब एक पौधे के पुष्प के परागकण को उसी के जैसे दूसरे पौधे के पुष्प के स्टिग्मा तक ले जाया जाता है, तो उसे ‘संकर–परागण’ (Cross-Pollination) कहते हैं। परागण परागण में कीट मदद करते हैं। जब कोई कीट एक पौधे के पुष्प पर पराग को पीने के लिए बैठता है तो दूसरे का परागकण उसके शरीर से चिपक जाता है। अब, जब यह कीट उड़ता है और ऐसे ही किसी दूसरे पौधे के पुष्प पर जा कर बैठ जाता है, तब परागकण एक जगह से दूसरी जगह पहुँच जाते हैं और दूसरे पौधे के पुष्प के स्टिग्मा से चिपक जाते हैं। इस प्रकार कीट संकर–परागण (Cross-Pollination) में मदद करते हैं। हवा भी संकर–परागण (Cross-Pollination) में मदद करती है। निषेचन परागण के बाद अगला चरण होता है-निषेचन। इस चरण में, परागकणों में उपस्थित नर युग्मक बीजाणु में मौजूद मादा युग्मकों से मिलते हैं। पुष्प में निषेचन फलों और बीजों का बनना बीजाणु में, निषेचित अंडा कई बार विभाजित होता है और भ्रूण बनाता है। बीजाणु के चारो तरफ कठोर परत बन जाती है और धीरे–धीरे यह बीज में विकसित हो जाता है। पुष्प का अंडाशय विकसित होकर फल का रूप लेता है, जिसके भीतर बीज होते हैं। फूलों के अन्य हिस्से जैसे बाह्यदल, पुंकेसर, स्टिग्मा और वर्तिका सूखकर गिर जाते हैं। फूलों की जगह फल ले लेते हैं। बीजों की रक्षा फल करते हैं। कुछ फल मुलायम और रसीले होते हैं, जबकि कुछ फल कठोर और सूखे होते हैं। फल अपने भीतर पौधे के बीज रखता है। बीज पौधे की प्रजनन इकाई होता है। इस बीज से ही नए पौधे विकसित हो सकते हैं, क्योंकि बीज अपने भीतर नवीन पौधे और उसके लिए भोजन रखता है। बीज में नवीन पौधे का हिस्सा, जो पत्तियों का रूप लेता है, ‘प्लूम्यूल’ (Plumule) कहलाता है। जड़ों के रूप में विकसित होने वाला हिस्सा ‘मूलांकुर’ (Radicle) कहलाता है। शिशु पौधे के लिए भोजन संरक्षित कर रखने वाले बीज के हिस्से को बीजपत्र (Cotyledon) कहते हैं। बीज के भीतर रहने वाला शिशु पौधा निष्क्रिय अवस्था में होता है। जब हम उसे उपयुक्त वातावरण जैसे पानी, हवा, रोशनी आदि प्रदान करते हैं, तभी वह अंकुरित होता है और एक नया पौधा उगता है। गेहूं, चना, मक्का, मटर, सेम आदि बीज के उदाहरण हैं। बीज के अंग बीजों का अंकुरण पौधे से मिला बीज सूखा और निष्क्रिए अवस्था में होता है। जब उन्हें पानी, हवा, मिट्टी आदि मिलती है, तभी वे नए पौधे के रूप में विकसित होना शुरु करते हैं। एक बीज के विकास की शुरुआत ‘बीजों का अंकुरण’ कहलाता है। बीजों का अंकुरण तब शुरु होता है, जब बीज पानी को सोखना शुरू करता है, फूलता है और बीजावरण (Seed Coat) को तोड़कर फट जाता है। पानी की मदद से बीजों में एंजाइम कार्य करना शुरु करते हैं। एंजाइम संचयित भोजन को पचाते हैं और उसे घुलनशील बना देते हैं। घुलनशील भोजन की मदद से मूलांकुर (Radicle) और प्लूम्यूल (Plumule) विकसित होता है। नए पौधे को उत्पन्न करने के लिए बीज उपयुक्त परिस्थितियों में अंकुरित होते हैं। ये तस्वीरें सेम के एक बीज के अंकुरण के जरिए नए नवीन पौधे में बदलने की प्रक्रिया दर्शा रही हैं। सबसे पहले बीज का मूलांकुर (Radicle) जड़ बनाने के लिए विकसित होता है। ये जड़ें मिट्टी के भीतर बढ़ती हैं और मिट्टी से पानी एवं खनिज पदार्थ अवशोषित करती हैं। इसके बाद प्लूम्यूल उपर की तरफ बढ़ते हैं और कोपलें बनती हैं। ये कोपलें हरी पत्तियों का रूप ले लेती हैं। प्रकाशसंश्लेषण की प्रक्रिया द्वारा पत्तियां भोजन बनाना शुरु करती हैं और धीरे– धीरे एक नया पौधा विकसित हो जाता है। अन्य संबन्धित लेख: जंतुओं में लैंगिक प्रजनन पुरुष प्रजनन प्रणाली पुष्प के नर भाग को क्या कहते हैं?पुष्प का नर अंग 'पुंकेसर' (Stamen) और मादा अंग 'अंडप/कार्पेल' (Carpel) कहलाता है।
फूल में नर प्रजनन अंग कौन सा है?पुंकेसर: फूल के नर प्रजनन भागों को पुंकेसर कहा जाता है। इसमें पराग-कोश और तन्तु होते हैं।
पुष्प के मादा जनन को क्या कहते हैं?UPLOAD PHOTO AND GET THE ANSWER NOW! Solution : स्त्रीकेसर।
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