पृथ्वी की उत्पत्ति के संबंध में विभिन्न दार्शनिकों व वैज्ञानिकों ने अनेक परिकल्पनाएं प्रस्तुत की हैं। जिन्हें मोटे तौर पर दो वर्गों में रखा जा सकता है। कांट, लाप्लॉस, आल्फवेन के मत पहले वर्ग के हैं और चेंबरलिन-मोल्टन, जींस-जेफ़्रीज़, रसेल, होयल-लिट्लटन, ओटो शिमिड आदि के मत दूसरे वर्ग के। Show
पृथ्वी की उत्पत्तिअद्वैत संकल्पना1.काण्ट की वायब्य राशि संकल्पना 2.लाप्लास की नेबुला संकल्पना समर्थक रॉस लॉकियर द्वैत संकल्पना1.चैम्बरलीन की ग्रहाणु परिकल्पना 2. जेम्स जीन्स एवं जेप्रफीज की ज्वारीय संकल्पना 3.रसेल की द्वैतारक परिकल्पना आधुनिक सिद्धांत1. अन्तर तारक धूल परिकल्पनाः आटो स्मिड 2. पफोटो प्लेनेटरी संकल्पना: जी॰ पी॰ कीपर 3. अन्तर तारक बादल परिकल्पना: अल्पफवेन 4. चक्रण एवं ज्वारीय परिकल्पना: रॉसजन 5. चुम्बकत्व सिद्धांत: प्रेफड होयल 6. सीफीड परिकल्पना: के॰ सी॰ बनर्जी 7. वृहस्पति सूर्य द्वैतं परिकल्पनाः ई॰ एम॰ द्रौबिस्की 8. बिगबैग सिद्धांत: जार्ज लेमटर और राबर्ट वेगनर कांट की गैसीय या निहारिका परिकल्पनाकांट ने 1755 में पृथ्वी की उत्पत्ति के संबंध में अपना मत प्रस्तुत किया। आदिकाल में ठोस और ठण्डे कणों से बने आद्य पदार्थ या आदिकालिक पदार्थ ब्रह्यांड में छितराये हुये थे। ये आद्य पदार्थ गुरूत्वाकर्षण से एकत्र होकर आपस में टकराने लगे। कणों के आपस में टकराने से ताप या उर्जा उत्पन्न हुई, फलस्वरूप आद्य पदार्थ द्रव और पिफर गैसीय अवस्था में परिवर्तित हुये। गैसीय पुंज केंद्रित होकर परिभ्रमण करने लगा। परिभ्रमण गति में केंद्रमुखी बल, अर्थात् गुरूत्व बल की अपेक्षा केन्द्र-बहिर्मुखी अर्थात् अपकेन्द्र बल अधिक बढ़ने लगा जिससे गैसीय पुंज में उभार आया। इस उभार में गोलाकार छल्ले बनने लगे और उनकी संख्या 9 पहुंच गई। ये छल्ले निहारिका के रूप में अलग हो गये और इनमें से प्रत्येक ने ठण्डा होकर एक-एक ग्रह का रूप ले लिया। मूल निहारिका का बचा भाग; अवशेष सूर्य बना। इस प्रकार, सौर परिवार की रचना हुई। लाप्लॉस की निहारिका परिकल्पनाआदिकाल में एक गतिशील गर्म निहारिका ब्रह्यांड में परिभ्रमण कर रही थी। गर्म निहारिका धीरे-धीरे ठण्डी हुई। पहले उपरी भाग ठण्डा हुआ, जिससे उसमें सिकुड़न पड़ने लगी और उसका आयतन घटने लगा। निहारिका के आयतन में कमी आने पर उसकी परिभ्रमण गति बढ़ गई। निहारिका से एक छल्ला निकलकर उसका चक्कर काटने लगा।फिर, बारी-बारी से छल्ले निकलकर निहारिका की परिभ्रमण-दिशा में उसका चक्कर काटने लगे। प्रत्येक छल्ला एक-एक ग्रह बना। प्रत्येक ग्रह पहले गैसीय अवस्था में था और बाद में तरल अवस्था में आया और अंत में ठोस भूपटल का निर्माण हुआ। निहारिका का अवशिष्ट पुंज सूर्य बना। उपर्युक्त प्रक्रिया की पुनरावृत्ति से ग्रहों से उपग्रहों की उत्पत्ति हुई। चेंबरलिन-मोल्टन की ग्रहाणु परिकल्पनाचेंबरलिन और मोल्टन ने 20वीं सदी के आरंभ में ;1904 में दो तारों से उत्पत्ति-सम्बन्धी परिकल्पना प्रस्तुत की। ब्रह्यांड में एक विशाल तारा, जो स्वयं चक्कर काट रहा था, सूर्य के समीप आ पहुंचा जिससे उसमें एक तीव्र ज्वारीय शक्ति उत्पन्न हुई। इस ज्वारीय शक्ति से सूर्य के पदार्थ अलग होने लगे और आकाश में दूर फैल गये। विशाल तारे ने; गुरूत्वाकर्षण द्वारा सूर्य से निकले पदार्थ को; गैस के अणुओं को अपनी ओर खींचा जो एक केन्द्रक में एकत्र हो गया। केन्द्रक के चारों ओर ग्रहाणुओं के एकत्रकरण से ही पृथ्वी तथा अन्य ग्रहों की रचना हुई। ज्यों-ज्यों केन्द्रक में ग्रहाणु जुटते गये, पृथ्वी का आकार बढ़ता गया। पहले तीव्र गति से बढ़ा और बाद में मंद गति से। कालांतर में पृथ्वी वर्तमान रूप में आई। पृथ्वी के विकास काल में आंतरिक उष्मा की उत्पत्ति हुई। ग्रहाणुओं के आपसी टकराव और आंतरिक भागों में दबाव बढ़ने से अणुओं का पुनः संगठन हुआ, जिससे आंतरिक भाग का घनत्व बढ़ गया। जींस-जेफ़्रीज़ की ज्वारीय परिकल्पनाजेम्स जींस और हैरोल्ड जेफ़्रीज़, ने 1919-26 में अपनी ज्वारीय परिकल्पना का प्रतिपादन किया। सौरमण्डल का निर्माण सूर्य और एक अन्य बड़े तारे के संयोग से हुआ है। बड़ा तारा सूर्य की समीप में आकर आगे बढ़ गया। समीप आकर आगे बढ़ने से उसकी आकर्षण शक्ति के कारण सूर्य पर ज्वार उत्पन्न हुआ और सूर्य का एक भाग लंबे सिगार के रूप में उपर उठ गया। यह सूर्य का गैसीय भाग था। इसका आकार जीभ ;जिव्हा की तरह था। यह ज्वारीय पदार्थ ;सिगार के रूप में सूर्य से पृथक हुआ गैसीय भाग तारे की दिशा में बढ़ता गया, किन्तु तारे के दूर निकल जाने पर सूर्य का चक्कर लगाने लगा। सिगार के रूप में निकला भाग धीरे-धीरे ठण्डा होकर टूट गया या कई खण्डों में बँट गया। बाद में ये खण्ड घनीभूत होकर ग्रह बन गये और सूर्य की परिक्रमा करने लगे। इसी तरह, ग्रहों से कुछ पदार्थ पृथक होकर उपग्रह बन गये। रसेल की द्वैतारक परिकल्पनासूर्य ग्रहों का जन्मदाता नहीं है। आदिकालीन सूर्य आकाश में अकेला तारा नहीं था। उसका एक साथी भी था। दोनों मिलकर द्वैतारक प्रणाली बनाते थे। एक तीसरा तारा सूर्य के साथी तारे के निकट से गुजरा जिससे साथी तारे में ज्वार उत्पन्न हो गया और ग्रहों का निर्माण हुआ। ग्रहों के पारस्परिक आकर्षण से जो ज्वार उत्पन्न हुआ उससे उपग्रहों की उत्पत्ति हुई। सूर्य बहुत दूर था, अतः वह तीसरे तारे के प्रभाव से अछूता रहा। ओटो श्मिड की अंतर-तारक धूल परिकल्पनाब्रह्माण्ड में गैस और धूलकण बिखरे पड़े हैं। सूर्य ने गुरूत्वाकर्षण के कारण कुछ गैसों और धूलकणों को आकर्षित कर लिया। ये सूर्य के चारों ओर मेघ के समान फैलकर सूर्य की परिक्रमा करने लगे। अपेक्षाकृत भारी धूलकण केन्द्र तल पर एकत्र होते गये जिससे धूल की चक्रिका बनने लगी। धूलकणों के टकराने से उनकी गतिज उर्जा का पर्याप्त भाग उर्जा में परिणत होकर अंतरिक्ष में विकीर्ण होने लगा। कणों के टकराने के साथ-साथ उनकी आपेक्षिक गति में कमी आई, जो चक्रिका बनाने में सहायक हुई। चक्रिका रूप में एकत्र धूलकण पहले ग्रहों के भू्रण ;प्रारंभिक रूप में आये और बाद में क्षुद्रग्रह बन गये। ये क्षुद्र ग्रह सूर्य की परिक्रमा करने लगे। पृथ्वी तथा अन्य ग्रहों का निर्माण ठोस पदार्थों से हुआ। क्षुद्र ग्रहों के बिखरे पदार्थों के आपस में मिल जाने पर उनका आकार बड़ा हो गया और वे ग्रह बन गये। ग्रहों के निर्माण के बाद बचे पदार्थ ग्रहों की परिक्रमा करने लगे। कालांतर में उनके घनीभूत होने पर उपग्रह बने। ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति का आधुनिक सिद्धांतवर्तमान समय में बिग-बैंग सिद्धांत ब्रह्मांड की उत्पत्ति संबंधी सिद्धांत है। इसे विस्तारित ब्रह्मांड परिकल्पना भी कहा जाता है। 1920 ई. में एडविन हब्बल ने प्रमाण दिये कि ब्रह्मांड का विस्तार हो रहा है। समय बीतने के साथ आकाशगंगाएं एक-दूसरे से दूर हो रही हैं। बिग-बैंग की घटना आज से 13.7 अरब वर्षों पहले हुई थी। ब्रह्मांड का विस्तार आज भी जारी है। विस्तार के कारण कुछ ऊर्जा पदार्थ में परिवर्तित हो गई। विस्फोट के बाद एक सेकंड के अल्पांश के अंतर्गत ही वृहत् विस्तार हुआ और इसके बाद विस्तार की गति धीमी पड़ गई। बिग-बैंग होने के आरंभिक तीन मिनट के अंतर्गत ही पहले परमाणु का निर्माण हुआ। बिग-बैंग से 3 लाख वर्षों के दौरान, तापमान 4500 डिग्री केल्विन तक गिर गया और परमाणवीय पदार्थ का निर्माण हुआ। ब्रह्मांड पारदर्शी हो गया। ब्रह्मांड के विस्तार का अर्थ है, आकाशगंगाओं के बीच की दूरी में विस्तार का होना। हॉयल ने इसका विकल्प ‘स्थिर अवस्था संकल्पना’ के नाम से प्रस्तुत किया। इस संकल्पना के अनुसार ब्रह्मांड किसी भी समय में एक ही जैसा रहा है। महाविस्फोट या बिग बैंग परिकल्पनाआद्य पदार्थ या आदिकालिक पदार्थ से निर्मित एक विशालकाय आग के गोले के भीतर महाविस्पफोट हुआ और ब्रह्यांड की उत्पत्ति हुई। तब से इसका निरंतर प्रसार होता जा रहा है। विस्फोट के फलस्वरूप अतिसघन पिंड छिन्न-भिन्न होकर अंतरिक्ष में छिटक गया, जहाँ इसके अंश अभी तक हजारों किलोमीटर प्रति सेकंड की दर से गतिमान हैं। इन्हीं गतिशील अंशों से मंदाकिनियों, आकाशगंगाओं, ताराओं और ग्रहों ;जिनमें पृथ्वी तथा चंद्रमा आते हैं की उत्पत्ति हुई। हब्बल ने भी आकाशगंगाओं का निरीक्षण कर बताया है कि वे एक-दूसरे से दूर जा रही हैं। सिद्धांत यदि प्रक्रिया उलट दी जाये तो वे एक केन्द्र पर एकत्र होकर महाविस्फोट कर सकती हैं। यह महाविस्फोट ;बिग बैंग सिद्धांत बताता है कि अरबों वर्ष पूर्व घने आदिकालिक पदार्थों के एक केन्द्र पर एकत्र होने से महाविस्फोट के फलस्वरूप सृष्टि की रचना हुई। केन्द्र में दाब और तापमान के बढ़ने से आण्विक प्रतिक्रियाएँ आरंभ हुईं। हाइड्रोजन का संलयन हीलियम में होने पर भारी मात्रा में उर्जा विमुक्त हुई और गैसों का विस्फोट हुआ। विस्फोट से अभिनव तारों की उत्पत्ति हुई। सूर्य इसी तरह बना। पृथ्वी की उत्पत्ति लगभग 4.5 अरब वर्ष पूर्व हुई। इसके बाद इस पर वायुमण्डल, जलमण्डल, स्थलमण्डल और जीवमण्डल बने। जीवों का जन्म लगभग 50 करोड़ वर्ष पूर्व हुआ। जीवों का विकास पहले जल में और तब स्थल पर हुआ। मानव का प्रादुर्भाव 10 लाख वर्ष पूर्व माना जाता है। नये तारों का निर्माणपूर्व में ब्रह्मांड में ऊर्जा व पदार्थ का वितरण एक समान नहीं था। घनत्व में आरंभिक भिन्नता से गुरुत्वाकर्षण बलों में भिन्नता आई, जिसके परिणामस्वरूप पदार्थ का एकत्रण हुआ। यही एकत्रण आकाशगंगाओं के विकास का आधार बना। असंख्य तारों के समूह को आकाशगंगा कहा गया है। इतना अधिक विस्तार आकाशगंगाओं का होता है। उनकी दूरी हजारों प्रकाश वर्षों में मापी जाती है। एक अकेली आकाशगंगा का व्यास 80 हजार से 1 लाख 50 हजार प्रकाश वर्ष के बीच हो सकता है। एक आकाशगंगा के निर्माण की शुरूआत हाइड्रोजन गैस से बने विशाल बादल के संचयन से होती है, जिसे निहारिका कहा गया। क्रमशः इस बढ़ती हुई निहारिका में गैस के झुंड विकसित हुए। ये झुंड बढ़ते-बढ़ते घने गैसीय पिंड बने, जिनसे तारों का निर्माण आरंभ हुआ। ग्रहों का निर्माणग्रहों के विकास की विभिन्न अवस्थाएँ मानी जाती हैं तारे निहारिका के अंदर गैस के गुंथित झुंड हैं। इन गुंथित झुंडों में गुरुत्वाकर्षण बल से गैसीय बादल में क्रोड का निर्माण हुआ और इस गैसीय क्रोड के चारों तरफ गैस व धूलकणों की घूमती हुई तश्तरी विकसित हुई। अगली अवस्था में गैसीय बादल का संघनन आरंभ हुआ और क्रोड को ढकने वाला पदार्थ छोटे गोलों के रूप में विकसित हुआ। ये छोटे गोले संसंजन ;अणुओं में पारस्परिक आकर्षणप्रक्रिया द्वारा ग्रहाणुओं में विकसित हुए। संघटन की क्रिया द्वारा बड़े पिंड बनने शुरू हुए और गुरुत्वाकर्षण बल के परिणामस्वरूप ये आपस में जुड़ गए। छोटे पिंडों की अधिक संख्या ही ग्रहाणु हैं। अंतिम अवस्था में इन अनेक छोटे ग्रहाणुओं के सहवर्धित होने पर कुछ बड़े पिंड ग्रहों के रूप में बने। सौरमंडलहमारे सौरमंडल में आठ ग्रह हैं। निहारिका को सौरमंडल का जनक माना जाता है उसके ध्वस्त होने व क्रोड के बनने की शुरूआत लगभग 5 से 5.6 अरब वर्ष पहले हुई व ग्रह लगभग 4.3 से 4.6 अरब वर्ष पहले बने। हमारे सौरमंडल में सूर्य ;तारा, 8 ग्रह, 63 उपग्रह, लाखों छोटे पिंड जैसे-क्षुद्र ग्रह, धूमवेफतु एवं वृहत् मात्रा में धूलकण व गैस हैं। इन ग्रहों में बुध, शुक्र, पृथ्वी व मंगल भीतरी ग्रह कहलाते हैं, क्योंकि ये सूर्य व छुद्रग्रहों की पट्टी के बीच स्थित हैं। अन्य ग्रह बाहरी ग्रह कहलाते हैं। पहले चार ग्रह पार्थिव ग्रह भी कहे जाते हैं। इसका अर्थ है कि ये ग्रह पृथ्वी की भाँति ही शैलों और धातुओं से बने हैं और अपेक्षाकृत अधिक घनत्व वाले ग्रह हैं। अन्य चार ग्रह गैस से बने विशाल ग्रह या जोवियन ग्रह कहलाते हैं। जोवियन का अर्थ है बृहस्पति की तरह। इनमें से अधिकतर पार्थिव ग्रहों से विशाल हैं और इनका हाइड्रोजन व हीलीयम से बना सघन वायुमंडल है। पार्थिव व जोवियन ग्रहों में अंतर निम्न परिस्थितियों के फलस्वरूप हो सकता हैः 1. पार्थिव ग्रह जनक तारे के बहुत समीप बने, जहाँ अत्यधिक तापमान के कारण गैसें संघनित नहीं हो पाईं और घनीभूत भी न हो सकीं। जोवियन ग्रहों की रचना अपेक्षाकृत अधिक दूरी पर हुई 2. पार्थिव ग्रहों के छोटे होने से इनकी गुरुत्वाकर्षण शक्ति भी कम रही जिसफ परिणामस्वरूप इनसे निकली हुइ गैस इन पर रुकी नहीं रह सकी। चंद्रमाचंद्रमा पृथ्वी का अकेला प्राकृतिक उपग्रह हैं। सन् 1838 ई. में, सर जार्ज डार्विन ने सुझाया कि प्रारंभ में पृथ्वी व चंद्रमा तेजी से घूमते एक ही पिंड थे। यह पूरा पिंड डंबल ;बीच से पतला व किनारों से मोटा की आकृति में परिवर्तित हुआ और अंततोगत्वा टूट गया। उनके अनुसार चंद्रमा का निर्माण, उसी पदार्थ से हुआ है, जहाँ आज प्रशांत महासागर एक गर्त के रूप में मौजूद है। ऐसा विश्वास किया जाता है कि पृथ्वी के उपग्रह के रूप में चंद्रमा की उत्पत्ति एक बड़े टकराव का नतीजा है जिसे ‘द बिग स्प्लैट’ कहा गया है। ऐसा मानना है कि पृथ्वी के बनने के कुछ समय बाद ही मंगल ग्रह के 1 से 3 गुणा बड़े आकार का पिंड पृथ्वी से टकराया। इस टकराव से पृथ्वी का एक हिस्सा टूटकर अंतरिक्ष में बिखर गया। टकराव से अलग हुआ यह पदार्थ फिर पृथ्वी के कक्ष में घूमने लगा और क्रमशः आज का चंद्रमा बना। यह घटना या चंद्रमा की उत्पत्ति लगभग 4. 44 अरब वर्ष पहले हुई । पृथ्वीप्रारंभ में पृथ्वी चट्टानी, गर्म और वीरान ग्रह थी, जिसका वायुमंडल विरल था, जो हाइड्रोजन व हीलीयम से बना था। यह आज की पृथ्वी के वायुमंडल से बहुत अलग था। पृथ्वी की संरचना परतदार है। वायुमंडल के बाहरी छोर से पृथ्वी के क्रोड तक जो पदार्थ है, वे एक समान नहीं है। वायुमंडलीय पदार्थ का घनत्व सबसे कम है। पृथ्वी की सतह से इसके भीतरी भाग तक अनेक मंडल हैं और हर एक भाग के पदार्थ की अलग विशेषताएँ हैं। स्थलमंडल का विकासग्रहणुव दूसरे गेलीय पिंड ज्यादातर एक जैसे ही घने और हलके पदार्थो के मिश्रण से बने हैं। उल्काओ के अध्ययन से हमें इस बात का पता चलता है। ग्रह बहुत से गृहाणुओ के इकट्ठा हाने से बने। पृथ्वी की रचना भी इसी प्रक्रम के अनुरूप हुई है। अत्यधिक ताप के कारण, पृथ्वी आंशिक रूप से द्रव अवस्था में रह गई और तापमान की अधिकता के कारण हीहलके और भारी घनत्व के मिश्रण वाले पदाथ घनत्व के अंतर के कारण अलग हेना शुरू हे गए। इसी अलगाव से भारी पदार्थ पृथ्वी के केंद्र में चले गए और हलके पदार्थ पृथ्वी की सतह या ऊपरी भाग की तरफ आ गए। हलके व भारी घनत्व वाले पदाथे के पृथक हेने की इस प्रक्रिया का विभेदन कहा जाता है। चंद्रमा की उत्पत्ति के दौरान, भीषण टक्कर के कारण, पृथ्वी का तापमान पुनः बढ़ा या फिर ऊर्जा उत्पन्न हुई। यह विभेदन का दूसरा चरण था। विभेदन की इस प्रक्रिया द्वारा पृथ्वी का पदार्थ अनेक परतों में अलग हो गया। पृथ्वी के धरातल से क्रोड तक कई परतें पाई जाती हैं। जैसे भू-पर्पटी, मेन्टल, बाह्य क्रोड और आंतरिक क्रोड | वायुमंडल व जलमंडल का विकासपृथ्वी के वायुमंडल की वर्तमान संरचना में नाइट्रोजन एवं ऑक्सीजन का प्रमुख योगदान है। वर्तमान वायुमंडल के विकास की तीन अवस्थाएँ हैं। इसकी पहली अवस्था में आदि कालिक वायुमंडलीय गैसों का ह्रास है। दूसरी अवस्था में, पृथ्वी के भीतर से निकली भाप एवं जलवाष्प ने वायुमंडल के विकास में सहयोग किया। अंत में वायुमंडल की संरचना को जैव मंडल की प्रकाश संश्लेषण प्रक्रिया ने संशोधित किया। प्रारंभिक वायुमंडल जिसमें हाइड्रोजन व हीलियम की अधिकता थी, सौर पवन के कारण पृथ्वी से दूर हो गया। पृथ्वी के ठंडा होने और विभेदन के दौरान, पृथ्वी के अंदरूनी भाग से बहुत सी गैसें व जलवाष्प बाहर निकले। इसी से आज के वायुमंडल का उद्भव हुआ। आरंभ में वायुमंडल में जलवाष्प, नाइट्रोजन, कार्बन डाई ऑक्साइड, मीथेन व अमोनिया अधिक मात्रा में और स्वतंत्र ऑक्सीजन बहुत कम थी। वह प्रक्रिया जिससे पृथ्वी के भीतरी भाग से गैसें धरती पर आईं, इसे गैस उत्सर्जन कहा जाता है। जीवन की उत्पत्तिआधुनिक वैज्ञानिक, जीवन की उत्पत्ति को एक तरह की रासायनिक प्रतिक्रिया बताते हैं, जिससे पहले जटिल जैव कार्बनिक अणु बने और उनका समूहन हुआ। यह समूहन ऐसा था, जो अपने आपको दोहराता था; पुनःबनने में सक्षम था, और निर्जीव पदार्थ को जीवित तत्व में परिवर्तित कर सका। 300 करोड़ साल पुरानी भूगर्भिक शैलों में पाई जाने वाली सूक्ष्मदर्शी संरचना आज की शैवाल की संरचना से मिलती जुलती है। यह कल्पना की जा सकती है कि इससे पहले समय में साधारण संरचना वाली शैवाल रही होगी। यह माना जाता है कि जीवन का विकास लगभग 380 करोड़ वर्ष पहले आरंभ हुआ। दोस्तों हमें कमेन्ट के ज़रिए बतायें कि आपको हमारा आर्टिकल कैसा लगा, यदि अच्छा लगा हो तो आप इसे सोशल मीडिया पर अवश्य शेयर करें | यदि इससे सम्बंधित कोई प्रश्न हो तो नीचे कमेन्ट करके हमसे पूंछ सकते है | धन्यबाद ! पृथ्वी की उत्पत्ति का आधुनिक सिद्धान्त क्या है?यह परिकल्पना 1904 ई. में चैम्बरलीन एवं मोल्टन के द्वारा प्रस्तुत किया गया। उनके अनुसार पृथ्वी एवं अन्य ग्रहो की उत्पत्ति सूर्य के साथ-साथ एक अन्य विशालकाय तारे के सहयोग से हुआ है। इस संकल्पना के अनुसार ग्रहो के निर्माण से पूर्व सूर्य ठोस कणो से निर्मित एक चक्राकार एवं शीतल तारा था।
पृथ्वी की उत्पत्ति किसने कब और कैसे हुई समझाइए?पृथ्वी के इतिहास का पहला युग, जिसकी शुरुआत लगभग 4.54 बिलियन वर्ष पूर्व (4.54 Ga) सौर-नीहारिका से हुई अभिवृद्धि के द्वारा पृथ्वी के निर्माण के साथ हुई, को हेडियन (Hadean) कहा जाता है। यह आर्कियन (Archaean) युग तक जारी रहा, जिसकी शुरुआत 3.8 Ga में हुई।
वैज्ञानिकों के अनुसार पृथ्वी की उत्पत्ति कैसे हुई?(1).
इनके अनुसार ग्रह निर्माण तप्त गैसीय निहारिका से नहीं वरन् ठोस पिंड से हुआ है। प्रारंभ में दो विशाल तारे थे- सूर्य एवं उसका साथी अन्य तारा। जब यह अन्य विशाल तारा सूर्य के पास पहुंचा तो उसकी आकर्षण शक्ति के कारण सूर्य के धरातल से असंख्य कण अलग हो गए। यही आपस में मिलकर पृथ्वी व अन्य ग्रहों के निर्माण का कारण बने।
पृथ्वी की उत्पत्ति कैसे हुई प्रश्न?विस्तार के कारण कुछ ऊर्जा पदार्थ में परिवर्तित हो गई। विस्फोट (Bang) के बाद एक सैकेंड के अल्पांश के अंतर्गत ही वृहत् विस्तार हुआ। इसके बाद विस्तार की गति धीमी पड़ गई। बिग बैंग होने के आरंभिक तीन मिनट के अंर्तगत ही पहले परमाणु का निर्माण हुआ ।
पृथ्वी की उत्पत्ति से आप क्या समझते हैं?वैज्ञानिकों का मानना है कि बिग बैंग की घटना आज से 13.7 अरब वर्ष पहले हुई होगी तथा ब्रह्मांड का विस्तार आज भी जारी है। विस्तार की वजह से कुछ ऊर्जा पदार्थों में परिवर्तित हो गई। बिग बैंग से 3 लाख वर्षों के बाद, तापमान 4500० केल्विन तक गिर गया तथा परमाणवीय पदार्थों का निर्माण हुआ तथा ब्रह्मांड पारदर्शी हो गया।
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