पावरोटी में क्या क्या मिलाया जाता है? - paavarotee mein kya kya milaaya jaata hai?

पावरोटी मैदे एवं आटे की बनी हुई खाद्य वस्तु है, जो आटा या मैदे को गूँधकर, खमीर युक्त कर, साँचे में ढालकर पकाकर बनाई जाती है। मनुष्य ने पावरोटी बनाना कब से प्रांरभ किया यह कहना कठिन है। प्रागैतिहासिक काल से ही मनुष्य पावरोटी बनाता चला आ रहा है। स्विट्जरलैंड की झीलों के आस पास अनेक स्थानों पर खुदाई करने पर बहुत से तथ्य प्राप्त हुए हैं, जिनके फलस्वरूप कहा जा सकता है कि मनुष्य ने पाषाणयुग में ही पावरोटी बनाना प्रारंभ कर दिया था। आटा पीसने और रोटी बनाने के पत्थरों के उपकरण और जलकर कोयला बनी हुई पाव रोटियाँ भी प्राप्त हुई हैं। घरों में आग लग जाने के फलस्वरूप कदाचित्‌ उनमें रखी हुई पावरोटी भी जलकर कोयला हो गई और धरती में दबी रह गई। माइसकोयर ने रोबेनहासन नामक स्थान पर लगभग चार सेर वजन की पावरोटी प्राप्त की थी। उसी समय एक अन्य स्थान पर एक और रोटी पाई गई थी, जो कुचले हुए अनाज से बनी थी। ये कुछ गोल आकार की हैं।

अपनी आदिम अवस्था में पावरोटी कुचले हुए अनाजों से ही बनाई जाती थी। अनाजों का आटा पीसकर बनाने की प्रथा नहीं थी। अनाजों को पानी में भिगो दिया जाता था, फिर उन्हें कुचल और ऊपर से दबाकर रोटी बना ली जाती थी। उस रोटी को धूप या आग में रखकर पका लेते थे। आगे चलकर रोटी बनाने के तरीकों में कुछ सुधार हुआ। अनाजों को ओखली में कूट कर तब भिगोया जाता था। फिर इस तरीके में और भी सुधार हुआ। अन्नों का आटा बनाकर उससे रोटी बनाई जाने लगी। अब तक मनुष्यों ने खमीरसंयुक्त पावरोटी बनाना नहीं सीखा था। कहा जाता है कि मिस्त्र के निवासियों ने सबसे पहले ख्मीरसंयुक्त पावरोटी बनाई। उनसे यूनानियों ने सीखा और रोमवासियों को सिखाया। रोमवासियों ने इसका और दूर तक प्रचार किया।

पावरोटी कई प्रकार के अनाजों से बनाई जाती है, परंतु गेहूँ के आटे से पकाई गई पावरोटी सर्वश्रेष्ठ होती है और अधिक प्रचलित है। इसके अलावा जौ, जई, राई (rye), मक्का, और चावल के आटे से भी पावरोटी बनाई जाती है। जई का स्कॉटलैड में, राई का जर्मनी तथा उत्तरी यूरोप में और मक्का का प्रचलन अमरीका में अधिक है। इन सबको पीसकर आटा बनाया जाता है और तब पावरोटी बनाई जाती है। चावल को छोड़कर अन्य सब अनाजों के पोषक तत्व प्राय: समान ही हैं, परंतु जहाँ तक अच्छी पावरोटी बनाने का प्रश्न है, इनमें अंतर है। गेहूँ के आटे की पावरोटी हलकी और स्पंजी होती है। आजकल कृत्रिम रूप से साफ किए हुए मैदा से पावरोटी बनाई जाती है। गेहूँ को मिलों में मशीन द्वारा पीसकर मैदा बनाते हैं और धोकर अलग कर देते हैं।

पावरोटी बनाने के लिए तीन वस्तुएँ नितांत आवश्यक हैं। आटा या मैदा, खमीर, खमीरी आटा या खमीरी मैदा और नमकीन पानी खमीर या खमीरी आटे या मैदे का प्रयोग आटे या मैदे में खमीर उठाने के लिए किया जाता है। लगभग सभी अन्नों के आटों में तीन चीजें होती हैं  ग्लूटेन, स्टार्च और शर्करा। यीस्ट के प्रभाव से आटे की शर्करा ऐलकोहल और कार्बोनिक एसिड गैस में परिणत हो जाती है। इनके कारण आटा फूल उठता है और उसमें हवा भरे असंख्य छिद्र हो जाते हैं। इसी कारण पावरोटी हलकी और स्पंजी होती है। प्राचीन काल से खमीर की अपेक्षा खमीरी आटे या मैदे का ही प्रयोग अधिक होता था। अब भी बहुत से देशों में पावरोटी बनाने के लिए मैदा या आटा खमीरी आटे या मैदे से संयुक्त किया जाता है। बहुत से देश खमीर का अधिक प्रयोग करते हैं। खमीरी आटा या खमीरी मैदा बनाने की प्रक्रिया यह है कि आटे या मैदे को पानी से माँड़कर गरम जगह में छह सात दिन तक रख देते हैं। कुछ समय के बाद इसमें खट्टापन आ जाता है और विशेष पूतिगंध आने लगती है। जब पावरोटी बनाने के लिए ताजा आटा या मैदा लिया जाता है, तब उसमें निश्चित मात्रा में यह खमीरी आटा या मैदा-मिला लेते हैं और उसे पानी के साथ गीला माड़ लेते हैं। यह खमीरी मैदा, या आटा मिश्रित मैदा, प्रति दिन बचाकर दूसरे दिन के लिए रख देते हैं। पावरोटी बनाने के लिए निम्नलिखित विधि काम में लाई जाती है :

सबसे पहले पानी में ज़रा-सा नमक मिलाया जाता है। फिर इस नमकीन पानी में खमीर, या खमीरी मैदा, मिलाकर मैदा मिलाया जाता है। अब मैदा को अच्छी तरह माड़ा जाता है। कुछ समय के बाद खमीर का प्रभाव होने लगता है और मैदा फूलने लगता है। जब यह मैदा पूरी तरह से फूल चुकता है तब इसमें और मैदा, पानी तथा नमक मिलाकर खूब गूँधा जाता है और कड़ी लोई तैयार की जाती है। इस लोई को फिर किसी गरम स्थान में एक या दो घंटे तक रखा रहने देते हैं। इस प्रकार मैदा पूरे तौर से फूल जाता है और हलका तथा असंख्य छेदयुक्त हो जाता है। अब इसको ऐसे साँचों में रखा जाता है जिनका आकार पावरोटी का सा होता है। इन साँचों में यह मैदा कुछ देर पड़ा रहने दिया जाता है। तदनंतर इन पाँचों में यह मैदा कुछ देर पड़ा रहने दिया जाता है। अब यह मैदा और फूल उठता है। इतने समय में तंदूर तैयार कर लेते हैं, जिसका ताप लगभग 230 सें. से 300 सेंटीग्रेड तक होता है। 230 सें. से कम ताप पर तो रोटी पकाई ही नहीं जा सकती। तंदूर को अच्छी तरह साफ कर लेते हैं। अब इस तंदूरों को गरम करने के लिए पिछले युगों की तरह आज भी साधारणतया लकड़ी जलाई जाती है। तंदूर को झाड़ पोछं कर साफ कर लेते हैं और इसके फर्श के नीचे लकड़ी की आग धधकाई जाती है जब तंदूर ठीक ताप तक गरम हो उठता है, तब इसमें पाव रोटियाँ रख देते हैं। आधुनिक प्रणाली के तदूरों में लकड़ी न जलाकर गरम करने का काम ईधन-गैसों या अतितप्त भाप से लिया जाता है। तंदूर में रखी हुई रोटियों के आटे में से पानी उड़-उड़ कर बाहर निकलने लगता है। ऐसा होने पर आटे के भीतर के छेद और बड़े हो जाते हैं और रोटी फूल उठती है। आटे का स्टार्च और ग्लूटेन तंदूर के ताप पर उबल जाता है। इस प्रकार आटा पक जाता है। यह याद रखना चाहिए कि तंदूर का ताप तो काफी ऊँचा होता है, किंतु रोटी के ऊपरी स्तर पर ही इतने ऊँचे ताप का प्रभाव पड़ता है। रोटी का भीतरी भाग तो पानी की भाप से पकता है, जिसका ताप 101 सें. से अधिक ऊँचा नहीं होता। इतने ताप पर रहने पर खमीर को किण्वन-क्रिया भी बंद हो जाती है। लगभग डेढ़ घंटे में यह पावरोटी तैयार हो जाती है। इसे तंदूर में से निकालकर ठंडा होने के लिए रख देते हैं।

बहुत पहले प्रत्येक गृहस्थ अपनी अवश्यकता के लिए स्वयं ही पावरोटी बना लेता था, परंतु आजकल तो बनी-बनाई पावरोटी बाजारों में मिलती है। बाजार में बनी बनाईं जो पावरोटी मिलती है वह बेकरों (bakers) बनाई जाती है। ये बेकर लकड़ी या कोयले द्वारा गरम किए तंदूरों का उपयोग करते हैं। ये तंदूर ईटोंं के बने होते हैं। मैदा आदि तैयार करने का काम भी हाथ से नहीं किया जाता। आधुनिक युग में नई प्रकार की बेकरियों में सब काम मशीनों से होने लगा है। बड़ी-बड़ी बेकरियों में मैदा मशीनों द्वारा छानकर बड़ी-बड़ी टंकियों में पहुँचाया जाता है। खमीर तथा पानी मिलाने के बाद यह मैदा एक प्रकार की गहरी परातों से युक्त मशीन में पहुँचाया जाता है। इस मशीन में मथानी जैसे पुर्जें लगे रहते हैं, जो इस मैदा को भयंकर सब वस्तुओं को एकसार करते हैं। अब इस मैदा को एक दूसरी मशीन में पहुँचाया जाता है और इसमें कुछ और सूखा मैदा, पानी तथा नमक मिलाकर उस मशीन द्वारा इसे कड़ा गूँधा जाता है। यह सारा काम 5-10 मिनट में पूरा हो जाता है। एक एक धान में 100 से लेकर 500 तक रोटियाँ तैयार हो जाती हैं। बाजार में आटा गूँधने की कई प्रकार की विलायती मशीनें प्रचलित हैं। जैसे टामसन (Thomson) और फ्लाइड़ेरर (Pfleiderer) की मशीनें। इन मशीनों में लोहे की एक गहरी द्रोणी या परात होती है और विपरीत दिशा में एक ही अक्ष पर, अथवा अलग अलग, घूमनेवाले फलक होते हैं। आटा जब अच्छी तरह गुँध जाए, तो इसे द्रोणी में उलट देते हैं और घंटे दो घंटे पड़ा रहने देते हैं। तब इसे मेज पर ले जाकर तौलते हैं और साँचों में न ढाली जाए, बल्कि यह काम भी मशीनों से हो, पर इसमें विशेष सफलता नहीं मिल पाई है।

तंदूर पर पावरोटियाँ सेकने का काम लगभग छोटी-छोटी बेकरियों (bakeries) में ही कर लिया जाता है। इन बेकरियों में प्रति सप्ताह 20 बोरे (अर्थात्‌ पचास मन) आटे की खपत होती है। बड़े बड़े नगरों में यह काम अधिक विस्तार से किया जाता है और बड़ी बेकरी में 1,000 से 2,000 बोरे तक आटा प्रति सप्ताह पावरोटी बनाने में लगता है। रोटियों को तैयार करने का काम बहुधा अर्धरात्रि के बाद, अर्थात्‌ ब्राह्म मुहूर्त में किया जाता है।

राई (rye) नाम के विलायती अन्न से तैयार की गई पावरोटी का प्रचार गेहूँ के आटे की पावरोटी की अपेक्षा उत्तरी यूरोप के देशों में अधिक है। गेहूँ के आटे की रोटी सफेद होती है, किंतु राई के आटे की अधिक श्यामल होती है। दोनों ही अन्नों की रोटियों में पौष्टिक भाग लगभग एक-सा रहता है। जो और जई (oats) से भी पावरोटी बनाई जाती है। चावल से पावरोटी नहीं बनाई जाती, क्योंकि इसमें पौष्टिक भाग कम होता है।

पावरोटी को चाकू से काटकर चौकोर या आयताकार टुकड़े बनाते हैं, जिन्हें सेकंकर टोस्ट तैयार करते हैं। ये मक्खन लगाकर गरम खाए जाते हैं। कच्चे टुकड़ों के बीच में टमाटर, खीरा, पनीर आदि रखकर सैंडविच (sandwich) तैयार करते हैं। पावरोटी को साफ काटने के लिए तेज चाकू बाजार में मिलते हैं और छोटी-छोटी मशीनें भी होती हैं, जिनमें काटने के लिए दाँतेदार पहिया लगा होता है। टोस्ट सेंकने के लिए साधारण तथा बिजली के टोस्टर भी बाजार में बिकते हैं। कुछ टोस्टर तो ऐसे होते हैं कि जिनमें बिजली की धारा उतने समय तक ही बहती है जितने समय में टोस्ट सिक जाए। इन टोस्टरों में रोटी जलने की आशंका नहीं होती।

पावरोटी के टुकड़ों को बेसन में लपेटकर घी में तलते हैं और पावरोटी की स्वादिष्ट पकौड़ियाँ तैयार करते हैं। शक्कर की चाशनी में पावरोटी के टुकड़े पकाकर शाही टोस्ट तैयार करते हैं, जिसे मलाई, रबड़ी या क्रीम के बीच रखकर खाते हैं। दूध में भिगोकर भी पावरोटी बहुधा खाई जाती है। टोस्ट पर जैम-जेली लगाकर भी खाते हैं।

खमीर की जगह अन्य अनेक रासायनिक द्रव्यों का उपयोग, आटा उठाने के लिए, किया जा सकता है। उदाहरण के लिए (1) सोडियम बाइकार्बोनेट और हाइड्रोक्लोरिक अम्ल, (2) सोडियम बाइकार्बोनेट और टार्टरिक अम्ल। दो किलोग्राम आटे में 20 ग्राम सोडियम बाइकार्बोनेट अच्छी तरह मिला ले और फिर इसमें 1 लीटर पानी में द्रव ड्राम, 1.16 घनत्ववाले हाइड्रोक्लोरिक अम्ल को मिलाकर डालें (16 द्रव ड्रामउ 1 आउंस, 16 आउन्सउ 1 पाउंड, दो पाउंड पानीउ 1 लीटर लगभग तथा 15 ग्रेनउ 1 ग्राम लगभग)। 20 ग्राम सोडियम कार्बोनेट के लिए 10 ग्राम टार्टरिक अम्ल लेना होगा। गूँधे आटे में यह मिश्रण मिलाकर तंदूर में रख देना चाहिए। अम्ल और सोडियम कार्बोनेट की क्रिया से कार्बन डाइऑक्साइड गैस निकलेगी। जो लवण बनेगा, वह आटे में रह जाएगा। गैस निकलने के कारण आटा स्पंजी हो जाएगा। इस रासायनिक विधि में आटे का कोई अंश बरबाद नहीं हो सकता। होल मील ब्रेड (wholemeal bread) बनाने के लिए यह बहुत अच्छा ढंग है, क्योंकि यीस्ट या खमीर के प्रयोग से आटे का कुछ उपयोगी अंश (विशेषतया चोकर अर्थात्‌ bran) विकृत हो जाता है, जिससे रोटी में खट्टापन आ जाता है।

(रामकुमार)

विकिपीडिया से (Meaning from Wikipedia)

पावरोटी में क्या क्या पड़ता है?

पॉवरोटी एक प्रकार का फास्ट फूड है जो कि यीस्ट की उपस्थिति में विशेष वातावरण में तैयार कि जाती है, यह साधारण मैदे से बनी होती है।

पावरोटी को हिंदी में क्या कहते हैं?

a loaf of bread.

डबल रोटी बनाना कौन सा व्यवसाय है?

बनाने की विधि सभ्यता के विकास के साथ-साथ रोटी ने भी अपना रूप बदला और लुगदी की रोटी की जगह, आज खमीर युक्त डबल रोटी ने ले ली है। डबलरोटी बनाने के लिए गेहूं का आटा बनाने की प्रक्रिया भी बडी मनोरंजक है। बड़ी-बड़ी कोठियों में गेहूं जमा किया जाता है और शक्तिशाली पम्पों से एक मिनट में लगभग ढाई टन गेहूं ऊपर खींच लिया जाता है।