राजभाषा समिति के अध्यक्ष कौन थे? - raajabhaasha samiti ke adhyaksh kaun the?

राजभाषा समिति 1957

संविधान के अनुच्‍छेद 344 के खंड (4) में किये गए प्रावधान के अनुसार सितंबर 1957 में 30 सदस्‍यों(20 लोकसभा और 10 राज्‍य सभा से ) की संसदीय समिति गठित की गई जिसे राजभाषा आयोग की सिफारिशों की समीक्षा करके उन पर अपनी राय का प्रतिवेदन राष्‍ट्रपति को प्रस्‍तुत करना था ।तदनुसार तत्‍कालीन गृहमंत्री श्री गोविंद बल्‍लभ पंत की अध्‍यक्षता में समिति ने व्‍यापक विचार विमर्श के पश्‍चात 8 फरवरी 1959 को राष्‍ट्रपति को अपना प्रतिवेदन प्रस्‍तुत किया । प्रतिवेदन की कुछ महत्‍वपूर्ण जानकारी जिनसे समिति के सामान्‍य दृष्टिकोण का परिचय मिलता है वह इस प्रकार है -

क) राजभाषा के बारे में संविधान में बड़ी समन्वित योजना दी गयी है इसमें योजना केदायरे सेबाहर जाए बिना स्थिति के अनुसार परिवर्तन की गुजांइश है ।

ख) विभिन्‍न प्रादेशिक भाषाएं राज्‍यों में शिक्षा और सरकारी कामकाज के माध्‍यम के रूप में तेजी से अग्रेंजी का स्‍थान ले रही है ।यह स्‍वभाविक ही है कि प्रादेशिक भाषाएं अपना उचित स्‍थान प्राप्‍त करें। अत: व्‍यवहारिक दृष्टि से यह बात आवश्‍यक हो गयी हे कि संघ के प्रयोजनों के लिए कोई एक भारतीय भाषा काम में लाई जाए किन्‍तु यह आवश्‍यक नहीं है कि यह परिवर्ततन किसी नियत तारीख को ही वह परिवर्तन धीरे धीरे इस प्रकार किया जाना चाहिए कोई गड़बड़ न हो । कम से कम असुविधा हो ।

ग) 26 जनवरी 1965 तक अग्रेंजी मुख्‍य राजभाषा और हिन्‍दी सहायक राजभाषा के रूप में चलती रहनी चाहिए । 1965 में हिन्‍दी संघ की मुख्‍य राजभाषा हो जाएगी, किन्‍तु उसके उपरान्‍त अग्रेंजी सहायक राजभाषा के रूप में चलती रहनी चाहिए ।

घ) संघ के प्रयोजना में किसी के लिए अग्रेंजी के प्रयोग पर रोक इस समय नही लगाई जानी चाहिए और अनुच्‍छेद 343 के खंड (3) के अनुसार इस बात की व्‍यवस्‍था की जानी चाहिए कि 1965 के उपरान्‍त भी अग्रेंजी का प्रयोग इन प्रयोजना के लिए , जिन्‍हें संसद विधि द्वारा उल्लिखित करें, जब तक होता रहे तब तक कि वैसा करना आवश्‍यक हो ।

ड.) अनुच्‍छेद 351 का यह उपबंध कि हिन्‍दी का विकास ऐसे किया जाए कि वह भारत की सामासिक संस्‍कृति के तत्‍वों की अभिव्‍यक्ति का माध्‍यम बन सके, अत्‍यन्‍त महत्‍वपूर्ण है और इस बात के लिए पूरा प्रोत्‍साहन दिया जाना चाहिए कि सरल और सुबोध शब्‍द काम में जाए जाएं ।

प्रतिवेदन पर विचार विमर्श लोकसभा में 2 से 4 सितंबर ,1959 और राज्‍यसभा में 8-9 सितबंर 1959 को हुआ । इस पर विचार विमर्श के समय तत्‍कालीन प्रधानमंत्री ने 4 सितंबर 1959को लोकसभा में एक वक्‍तव्‍य दिया और राजभाषा के प्रति सरकार का दृष्टिकोण उन्‍होने अपनी भाषा में मोटे तौर पर व्‍यक्‍त करते हुए यह बात फिर से दोहराई कि अग्रेंजी को एक सहयोगी भाषा अथवा अतिरिक्‍त भाषा बनायाजाना चाहिए और किसी भी राज्‍य सरकार द्वारा भारत सरकार के साथ अथवा अन्‍य राज्‍यों के साथ पत्र व्‍यवहार के लिए उसका प्रयोग किया जा सकेगा । उन्‍होने आगे यह भी स्‍पष्‍ट किया कि जब तक हिंदीतर भाषी क्षेत्र अंग्रेजी भाषा के प्रयोग को समाप्‍त करने के लिए सहमत न हो जाएं , तब तक इस संबंध में समय सीमा का कोई बंधन नही होगा ।

संसदीय राजभाषा समिति के अध्‍यक्ष कौन होते है?

July 13, 2018

(A) राष्ट्रपति
(B) उपराष्ट्रपति
(C) प्रधानमंत्री
(D) गृहमंत्री

राजभाषा समिति के अध्यक्ष कौन थे? - raajabhaasha samiti ke adhyaksh kaun the?

Answer : गृहमंत्री

राजभाषा आयोग के प्रथम अध्यक्ष बाल गंगाधर खरे थे। संविधान के अनुच्छेद 344 में राष्ट्रपति को राजभाषा आयोग को गठित करने का अधिकार दिया गया है। इसलिए राष्ट्रपति ने 1955 में राजभाषा आयोग का गठन किया था। बी. जी. खेर को उस समय राजभाषा आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किया गया था। इस आयोग ने 1956 में अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति को सौंपी थी।....अगला सवाल पढ़े

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संसदीय राजभाषा समिति भारत में राजभाषा अधिनियम, 1963 की धारा (4) के तहत गठित की गई एक प्रमुख समिति है। इसका गठन वर्ष 1976 में किया गया। राजभाषा के क्षेत्र में यह सर्वोच्च अधिकार प्राप्त समिति है। यह समिति केन्द्र सरकार के अधीन आने वाले (या सरकार द्वारा वित्तपोषित) सभी संस्थानों का समय-समय पर निरीक्षण करती है और राष्ट्रपति को अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करती है। राष्ट्रपति इस रिपोर्ट को संसद के प्रत्येक सदन में रखवाते हैं और राज्य सरकारों को भिजवाते हैं।

इसमें लोक सभा के 20 तथा राज्य सभा के 10 सदस्य होते हैं जिनका चुनाव एकल संक्रमणीय तरीके से किया जाता है। लोकसभा चुनावों के बाद प्रायः इस समिति का पुनर्गठन होता है। इस समिति में 10-10 सदस्यों वाली 3 उपसमितियाँ बनाईं गई हैं, प्रत्येक उपसमिति का एक समन्वयक होता है।

समिति के कार्यकलाप और गतिविधियां मुख्यतः राजभाषा अधिनियम, 1963 की धारा 4 में दी गई हैं।

राजभाषा अधिनियम १९६३ की धारा ४[संपादित करें]

संसदीय राजभाषा समिति का गठन राजभाषा अधिनियम, 1963 की धारा (4) के तहत वर्ष 1976 में किया गया। सुलभ संदर्भ के लिए इस धारा को नीचे उद्धृत किया गया है:

(1) जिस तारीख को धारा 3 प्रवृत्त होती है उससे दस वर्ष की समाप्ति के पश्चात् राजभाषा के सम्बन्ध में एक समिति, इस विषय का संकल्प संसद के किसी भी सदन में राष्ट्रपति की पूर्व मंजूरी से प्रस्तावित और दोनों सदनों द्वारा पारित किए जाने पर, गठित की जाएगी।

(2) इस समिति में तीस सदस्य होंगे, जिनमें 20 लोकसभा के सदस्य होंगे तथा 10 राज्यसभा के सदस्य होंगे, जो क्रमश: लोकसभा के सदस्यों तथा राज्यसभा के सदस्यों द्वारा आनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति के अनुसार एकल संक्रमणीय मत द्वारा निर्वाचित होंगे।

(3) इस समिति का कर्तव्य होगा कि संघ के राजकीय प्रयोजनों के लिए हिंदी के प्रयोग में की गई प्रगति का पुनर्विलोकन करे और उस पर सिफारिशें करते हुए राष्ट्रपति को प्रतिवेदन प्रस्तुत करे। राष्ट्रपति उस प्रतिवेदन को संसद के हर सदन के समक्ष रखने के लिए आदेश जारी करते हैं और उसे सभी राज्य सरकारों को भिजवाया जाता है।

(4) राष्ट्रपति उपधारा (3) में निर्दिष्ट प्रतिवेदन पर और उस पर राज्य सरकारों ने यदि कोई मत अभिव्यक्त किए हों तो उस पर विचार करने के पश्चात् उस समस्त प्रतिवेदन या उसके किसी भाग के अनुसार निदेश जारी करते हैं। "परन्तु इस प्रकार निकाले गए निदेश धारा 3 के उपबन्धों से असंगत नहीं होंगे। "

(5) समिति के अध्यक्ष का चुनाव समिति के सदस्यों द्वारा किया जाता है। परम्परा के अनुसार केन्द्रीय गृह मंत्री जी को समय समय पर समिति का अध्यक्ष चुना जाता रहा है।

(6) अपने प्रेक्षण के आधार पर केन्द्रीय सरकार के कार्यालयों में हिन्दी के प्रयोग से संबंधित स्थिति की समीक्षा करते हुए समिति द्वारा अपना प्रतिवेदन सिफारिशों सहित राष्ट्रपति को प्रस्तुत किया जाता है ताकि केन्द्र सरकार के कार्यालयों को हिन्दी का अधिकतम प्रयोग करने के लिए प्रोत्साहित किया जा सके जिससे संवैधानिक उपबंधों के लक्ष्य प्राप्त हो सकें। वस्तुस्थिति का मूल्यांकन करने के लिए समिति ने अन्य तरीकों के साथ-साथ केन्द्रीय सरकार के विभिन्न कार्यकलापों का निरीक्षण करने का भी निर्णय लिया था। इस प्रयोजन के लिए समिति ने तीन उप समितियां गठित की और भारत सरकार के विभिन्न मंत्रालयों/विभागों आदि को तीनों उप समितियों द्वारा निरीक्षण के उद्देश्य से तीन समूहों में बांट दिया गया। अब तक इन तीनों उप समितियों ने केन्द्रीय सरकार के कुल 8649 कार्यालयों का निरीक्षण किया है जिनमें विदेशों में स्थित कुछ कार्यालय भी शामिल है।

(7) इसके अतिरिक्त विभिन्न प्रयोजनों तथा तत्संबंधी अन्य विषयों में राजभाषा के प्रयोग का आकलन करने के उद्देश्य से यह भी निर्णय लिया गया था कि शिक्षा, विधि एवं स्वयंसेवी संगठनों, मंत्रालयों/विभागों के सचिवों आदि जैसे विभिन्न क्षेत्रों से सम्बद्ध गण्यमान्य व्यिक्तयों को मौखिक साक्ष्य के लिए आमंत्रित किया जाए। अभी तक विभिन्न क्षेत्रों के लगभग 826 गण्यमान्य व्यिक्त समिति के सम्मुख साक्ष्य देने के लिए उपस्थित हो चुके हैं।

(8) समिति द्वारा केन्द्रीय सरकार के कार्यालयों में हिन्दी के प्रगामी प्रयोग की समीक्षा राजभाषा से सम्बन्धित संवैधानिक उपबन्धों, राजभाषा अधिनियम, 1963 और उसके अन्तर्गत बनाए गए नियमों की पृष्ठभूमि में की जा रही है। सरकार द्वारा समय-समय पर जारी किए गए तत्सम्बन्धी परिपत्रों/अनुदेशों आदि को तो समिति ध्यान में रखती ही है साथ ही, चूंकि समिति के विचारार्थ विषयों का क्षेत्र बहुत व्यापक है, इसलिए वह विद्यालयों, महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों में शिक्षा का माध्यम, केन्द्रीय सरकारी सेवाओं में भर्ती की विधि, केन्द्रीय सरकार के कर्मचारियों का सेवाकालीन प्रशिक्षण और विभागीय परीक्षाओं का माध्यम आदि जैसे अन्य संगत पहलुओं की भी जांच करती रही है। राजभाषा नीति की व्यापकता के विभिन्न पहलुओं को देखते हुए तथा वर्तमान परिस्थितियों को सामने रखते हुए समिति ने जून, 1985 और अगस्त, 1986 में हुई अपनी बैठकों में निर्णय लिया था कि राष्ट्रपति को एक प्रतिवेदन देने के बजाए उसे विभिन्न खंडों में प्रस्तुत किया जाए। प्रत्येक खंड राजभाषा नीति के पहलू विशेष के संबंध में हो।

(9) समिति ने यह भी निर्णय लिया कि अपने प्रतिवेदन के पहले खण्ड में केन्द्रीय सरकार के कार्यालयों के लिए अनुवाद व्यवस्था और उसके विभिन्न पहलुओं की जांच की जाए और आवश्यक सिफारिशें की जाएं। तदनुसार, समिति ने जनवरी, 87 में राष्ट्रपति जी को अपने प्रतिवेदन का पहला खण्ड प्रस्तुत किया जो केन्द्रीय सरकार के कार्यालयों में अनुवाद व्यवस्था से सम्बन्धित है। संसद के दोनों सदनों के पटल पर रखे जाने तथा राज्य सरकारों को भेजे जाने के पश्चात सरकार द्वारा इस खण्ड में की गई सिफारिशों पर आवश्यक कार्यवाही की गई है। इस संबंध में 30 दिसम्बर 1988 राष्ट्रपति जी का आदेश राजभाषा विभाग द्वारा जारी कर दिया गया है।

(10) केन्द्रीय सरकार के कार्यालयों में यांत्रिक सुविधाओं में हिन्दी तथा अंग्रेजी के प्रयोग से सम्बन्धित प्रतिवेदन का दूसरा खण्ड राष्ट्रपति जी को जुलाई, 87 में प्रस्तुत कर दिया गया। यह प्रतिवेदन संसद के दोनों सदनों के पटल पर रखा जा चुका है और इसमें की गई सिफारिशों के संबंध में सरकार द्वारा आवश्यक कार्यवाही की गई है। इस सम्बन्ध में भी 29 मार्च 1990 को राष्ट्रपति जी का आदेश राजभाषा विभाग द्वारा जारी कर दिया गया है।

(11) केन्द्रीय सरकार के कर्मचारियों के हिन्दी शिक्षण और उनके हिन्दी माध्यम से प्रशिक्षण आदि से सम्बन्धित व्यवस्थाओं के बारे में समिति के प्रतिवेदन का तीसरा खण्ड फरवरी, 89 में राष्ट्रपति जी को प्रस्तुत किया गया। इस संबंध में 04 नवम्बर 1991 को राष्ट्रपति जी का आदेश राजभाषा विभाग द्वारा जारी कर दिया गया है।

(12) समिति की तीनों उप समितियों द्वारा जुलाई, 89 तक किए गए निरीक्षणों के आधार पर देश के विभिन्न भागों में सरकारी कार्यालयों और उपक्रमों आदि में हिन्दी के प्रयोग की स्थिति से सम्बन्धित चौथा खंड राष्ट्रपति जी को नवम्बर, 89 में प्रस्तुत किया गया। इस संबंध में 28 जनवरी 1992 को राष्ट्रपति जी का आदेश राजभाषा विभाग द्वारा जारी कर दिया गया है।

(13) समिति द्वारा प्रस्तुत प्रतिवेदन का पांचवां खंड विधायन की भाषा और विभिन्न न्यायालयों तथा न्यायाधिकरणों आदि में प्रयोग की जाने वाली भाषा से सम्बन्धित है। उक्त खंड राष्ट्रपति जी को मार्च, 92 में प्रस्तुत किया गया है। इस पर 24 नवम्बर 1998 को महामहिम राष्ट्रपति जी के आदेश जारी हो चुके हैं।

(14) संसदीय राजभाषा समिति के प्रतिवेदन का छठा खंड समिति द्वारा 27.11.97 को राष्ट्रपति जी को प्रस्तुत किया गया है। यह खंड संघ सरकार के कार्यालयों में हिन्दी के प्रयोग, संघ तथा राज्य सरकारों के बीच और संघ तथा संघ राज्य क्षेत्रों के बीच पत्राचार में हिन्दी के प्रयोग और राज्यों व संघ राज्य क्षेत्रों के बीच परस्पर पत्र-व्यवहार में उनकी राजभाषाओं के प्रयोग से संबंधित है। इसके अतिरिक्त, इसमें विदेशों में स्थित केन्द्र सरकार के कार्यालयों में हिन्दी के प्रयोग के बारे में भी समीक्षा की गई है। इस पर 17 सितम्बर 2004 को राष्ट्रपति जी के आदेश भी जारी हो चुके हैं।

(15) संसदीय राजभाषा समिति के प्रतिवेदन का सातवां खण्ड 3 मई 2002 को राष्ट्रपति जी को प्रस्तुत किया गया। इस खण्ड में समिति ने सरकारी काम-काज में मूल रूंप से हिन्दी में लेखन कार्य, विधि संबंधी कार्यों में राजभाषा हिन्दी की स्थिति, सरकारी कामकाज में राजभाषा के प्रयोग हेतु प्रचार-प्रसार, प्रशासनिक और वित्तीय कार्यों से जुड़े प्रकाशनों की हिन्दी में उपलब्धता, राज्यों में राजभाषा हिन्दी की स्थिति, वैश्वीकरण और हिन्दी, कम्प्यूटरीकरण एक चुनौती इत्यादि विषयों को समाहित कर संघ सरकार में हिन्दी के प्रयोग की वर्तमान स्थिति के संबंध में अपनी सिफारिशें प्रस्तुत की। इस पर 13 जुलाई 2005 को राष्ट्रपति जी के आदेश जारी हो चुके हैं।

(16) दिनांक 16 अगस्त 2005 को संसदीय राजभाषा समिति ने महामहिम राष्ट्रपति जी को समिति के प्रतिवेदन का आठवां खण्ड समर्पित किया। समिति द्वारा समर्पित प्रतिवेदन के आठवें खण्ड में चार भाग हैं। पहले भाग में समिति के गठन एवं कार्यकलापों पर प्रकाश डालते हुए पिछले सात खण्डों पर की गई कार्यवाही तथा आठवें खण्ड की रूंपरेखा को दर्शाया गया है। प्रतिवेदन के दूसरे भाग में समिति द्वारा 01 जनवरी 2002 से 31 मार्च 2005 तक किए गए निरीक्षणों आदि के आधार पर प्राप्त सूचनाओं का विश्लेषण किया गया है। राजभाषा अधिनियम, 1963 की धारा 3(3) राजभाषा अधिनियम 1976 के नियम 5(हिन्दी में पत्राचार, प्रकाशन, कोड-मैनुअल एवं प्रशिक्षण इत्यादि से संबंधित राष्ट्रपति जी के आदेशों के अनुपालन की स्थिति का मंत्रालय एवं क्षेत्रवार मूल्यांकन किया गया है। इसके अलावा विभिन्न नगर राजभाषा कार्यान्वयन समितियों के साथ विचार-विमर्श का सार भी प्रस्तुत किया गया है। प्रतिवेदन के तीसरे एवं महत्वपूर्ण भाग में समिति ने केन्द्रीय कार्यालयों (पुस्तकों की खरीद, कम्प्यूटरीकरण, भर्ती नियमों में हिन्दी ज्ञान की अनिवार्यता, हिन्दी पदों की स्थिति, शिक्षण और प्रशिक्षण संस्थानों में हिन्दी माध्यम की उपलब्धता, हिन्दी विज्ञापनों पर व्यय तथा सार्वजनिक उपक्रमों के वाणिज्यिक कार्यों में हिन्दी के प्रयोग जैसे विषयों पर अपने अनुभवों के आधार पर समीक्षा प्रस्तुत की है। तीनों भागों में शामिल किए गए विभिन्न अध्यायों के निष्कर्षों के आधार पर समिति ने प्रतिवेदन के चौथे भाग में अपनी सिफारिशें प्रस्तुत की हैं।

(17) समिति सचिवालय जो 11 तीन मूर्ति मार्ग, नई दिल्ली में स्थित है, एक बहुत छोटा कार्यालय है जिसकी प्रधान समिति की सचिव हैं और उनकी सहायता के लिए तीन अवर सचिव एवं अन्य कार्मिक हैं। ये सभी समिति के विभिन्न कार्यकलापों में अपेक्षित सहयोग प्रदान करते हैं। यह सचिवालय प्रशासनिक प्रयोजनों की दृष्टि से राजभाषा विभाग, गृह मंत्रालय के अधीन आता है।

संसदीय समिति द्वारा प्रस्तुत प्रतिवेदन का ९वाँ खण्ड[संपादित करें]

संसदीय समिति ने राष्‍ट्रपति को वर्ष 1959 से अब तक नौ रिपोर्टें दी हैं। आखिरी बार इस तरह की रिपोर्ट (नौवाँ खण्ड) जून 2011 में दी गई थी जिसकी बहुत सी सोफारिशों को भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने अप्रैल २०१७ में स्वीकार कर लिया।[1] 2011 में पूर्व वित्त मंत्री पी. चिदंबरम इस समिति के अध्यक्ष थे।

स्वीकृत संस्तुतियाँ[संपादित करें]

  • (१) संसदीय समिति की सिफारिशों में राष्ट्रपति समेत मंत्रियों के हिन्दी में भाषण देने की बात कही गई थी जिसे राष्ट्रपति ने स्वीकार कर लिया। इस सिफारिश में कहा गया है कि राष्ट्रपति, मंत्री और अधिकारियों को हिंदी में ही भाषण देना चाहिए। हालांकि, इसमें ये जोड़ा गया है कि जो हिन्दी बोल या पढ़ सकते हैं, उन्हें ऐसा करना होगा।
  • (२) संसदीय समिति ने सीबीएसई से जुड़े सभी स्कूलों और केंद्रीय विद्यालयों में कक्षा 10 तक हिंदी को अनिवार्य विषय के रूप में पढ़ाने का प्रस्ताव भी दिया था। अभी इन स्कूलों में कक्षा 8 तक ही हिंदी पढ़ना अनिवार्य है। वहीं गैर-हिन्दी भाषी राज्यों के विश्वविद्यालयों को कहा गया है कि परीक्षाओं और इंटरव्यू में हिन्दी में उतर देने का विकल्प दें।
  • (३) एयर इंडिया की टिकटों पर भी हिंदी का उपयोग करने की सिफारिश को भी मान लिया गया है। एयर इंडिया के विमानों में आधी से ज्यादा हिंदी की पत्रिकाएं और अखबार देने और केंद्र सरकार के कार्यालयों में अंग्रेजी की तुलना में हिंदी की पत्र-पत्रिकाओं और किताबों की ज्यादा खरीदारी करने की बात भी स्वीकार कर ली गयी है।
  • (४) सभी सरकारी और अर्धसरकारी संगठनों को अपने उत्पादों की जानकारी हिंदी में भी देनी होगी।
  • (५) गैर हिंदीभाषी राज्यों के विश्वविद्यालयों से मानव संसाधन विकास मंत्रालय कहेगा कि वे विद्यार्थियों को परीक्षाओं और साक्षात्कारों में हिंदी में उत्तर देने का विकल्प दें। यह सिफारिश भी स्वीकार की गई है कि सरकार सरकारी संवाद में कठिन हिंदी शब्दों के उपयोग से बचे और हिंदी शब्दों के अंग्रेजी लिप्यांतरण का एक शब्दकोश तैयार करे। सभी मंत्रालय ऐसा शब्दकोश बनाएंगे और मानव संसाधन विकास मंत्रालय की ओर से तैयार किए जाने वाले 15,000 शब्दों के शब्दकोश का भी उपयोग करेंगे। उदाहरण देते हुए बताया गया है कि 'डीमॉनेटाइजेशन' जैसे शब्दों के लिए 'विमुद्रीकरण' या आम बोलचाल में प्रचलित 'नोटबंदी' जैसे शब्द का उपयोग किया जा सकता है।

अस्वीकृत संस्तुतियाँ[संपादित करें]

  • (१) सरकारी हिस्‍सेदारी वाली और निजी कंपनियों में बातचीत के लिए हिंदी को अनिवार्य करने की सिफारिश को राष्ट्रपति ने स्वीकार नहीं किया।
  • (२) सरकारी नौकरी के लिए हिंदी के न्‍यूनतम ज्ञान की अनिवार्यता की सिफारिश को भी अस्वीकार कर दिया गया।

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. "20012/01/2017-रा.भा.(नीतत)" (PDF). मूल (PDF) से 18 जून 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 24 जनवरी 2018.

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]

  • संसदीय राजभाषा समिति का जालघर
  • संसदीय राजभाषा समिति की पृष्ठभूमि

राजभाषा समिति के अध्यक्ष कौन होते हैं?

परम्परा के अनुसार केन्द्रीय गृह मंत्री जी को समय समय पर समिति का अध्यक्ष चुना जाता रहा है।

राजभाषा आयोग का गठन किसकी अध्यक्षता में किया गया?

प्रथम राजभाषा आयोग का गठन 1955 में बी. जी. खेर की अध्यक्षता में हुआ। अनुच्छेद-343 के अनुसार संघ की राजभाषा हिन्दी तथा लिपि देवनागरी होगी।

वर्ष 1957 में संसदीय राजभाषा समिति का गठन किसकी अध्यक्षता में किया गया?

वामिव में संवविान के अनुच्छेद 344 (4) के अनुसार, 1957 में भी िहठि संसदीय राजभाषा सभमनि के अध्यक्ष ित्कालीन िृह मंत्री श्री िोववन्द बल्लभ पंि ही थे।

हिंदी राजभाषा आयोग का गठन कब हुआ *?

राजभाषा संबंधी विवाद के निपटारे के लिए संविधान ने 1955 में राजभाषा आयोग का गठन किया जिसने 1956 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की I.