Show सन् १८६० के आस-पास जर्मनी के एक औद्योगिक कारखाने का दृष्य औद्योगीकरण का प्रभाव 19वीं शताब्दी में आय के बढ़ते स्तरों में देखा जा सकता है। इसमें 1750 और 1900 के बीच यूरोप, संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, जापान आदि तथाकथित प्रम विश्व राष्ट्रों और तीसरी दुनिया के देशों (पूर्वी यूरोप, दक्षिणी एशिया, अफ्रीका, लैटिन अमेरिका) के प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय उत्पाद का अन्तर देखा जा सकता है। औद्योगीकरण एक सामाजिक तथा आर्थिक प्रक्रिया का नाम है। इसमें मानव-समूह की सामाजिक-आर्थिक स्थिति बदल जाती है जिसमें उद्योग-धन्धों का बोलबाला होता है। वस्तुत: यह आधुनीकीकरण का एक अंग है। बड़े-पैमाने की उर्जा-खपत, बड़े पैमाने पर उत्पादन, धातुकर्म की अधिकता आदि औद्योगीकरण के लक्षण हैं। एक प्रकार से यह निर्माण कार्यों को बढ़ावा देने के हिसाब से अर्थप्रणाली का बड़े पैमाने पर संगठन है। औद्योगीकरण [1] तथा नगरीकरण एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। ये दोनों ही एक दूसरे सें सम्बन्धित प्रक्रियाएं करते हैं। जहां नगरों के विकास में औद्योगीकरण एक महत्वपूर्ण साधन हैं वहीं नगरों में औद्योगीकरण के प्रसार हेतु अनुकूल परिस्थियां पायी जाती है। सांख्यिकी[संपादित करें]नीचे तीन विभिन्न क्षेत्रों के देशों की सकल घरेलू उत्पाद दिये गये हैं-[1] अफ्रीका[संपादित करें]अफ्रीका के कृषि-प्रधान देशों में तृतीयक क्षेत्र का योगदान द्वितीयक क्षेत्र से अधिक होता है, जैस कि नीचे की तालिका से स्पष्ट है।
दक्षिण अमेरिका[संपादित करें]दक्षिण अमेरिका में औद्योगीकरण काफी सीमा तक पूरा हो चुका है:
एशिया[संपादित करें]एशिया एक बहुत ही अलग चित्र दिखाता है:
में इन्हें भी देखें[संपादित करें]
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