राजनीतिक संस्थाएं क्यों महत्वपूर्ण है स्पष्ट कीजिए? - raajaneetik sansthaen kyon mahatvapoorn hai spasht keejie?

19वीं शताब्दी में राज्य और समाज के आपसी सम्बन्ध पर वाद-विवाद शुरू हुआ तथा 20वीं शताब्दी में, द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद सामाजिक विज्ञानों में विभिन्नीकरण और विशिष्टीकरण की उदित प्रवृत्ति तथा राजनीति विज्ञान में व्यवहारवादी क्रान्ति और अन्तः अनुशासनात्मक उपागम के बढ़े हुए महत्व के परिणामस्वरूप जर्मन और अमरीकी विद्वानों में राजनीतिक विज्ञान के समाजोन्मुख अध्ययन की एक नूतन प्रवृत्ति शुरू हुई। इस प्रवृत्ति के परिणामस्वरूप राजनीतिक समस्याओं की समाजशास्त्रीय खोज एवं जांच की जाने लगी। ये खोजें एवं जांच न तो पूर्ण रूप से समाजशास्त्रीय थीं और न ही पूर्णतः राजनीतिक। अतः ऐसे अध्ययनों को ‘राजनीतिक समाजशास्त्र’ के नाम से पुकारा जाने लगा।

परिचय[संपादित करें]

एक स्वतन्त्र और स्वायत्त अनुशासन के रूप में ‘राजनीतिक समाजशास्त्र’ का उद्भव और अध्ययन-अध्यापन एक नूतन घटना है। प्रथम विश्वयुद्ध के बाद फेंज न्यूमा, सिमण्ड न्यूमा, हेन्स गर्थ, होरोविज, जेनोविटस, सी.राइट मिल्स, ग्रियर ओरलिन्स, रोज, मेकेंजी, लिपसेट जैसे विद्वानों और चिन्तकों की रचनाओं में ‘राजनीतिक समाजशास्त्र’ ने एक विशिष्ट अनुशासन के रूप् में लोकप्रियता अर्जित की है। लेकिन आज भी यह विषय अपनी बाल्यावस्था में ही है। यहां तक कि इस विषय के नामकरण के बारे में भी आम सहमति नहीं पायी जाती है। कतिपय विद्वान इसे ‘राजनीतिक समाजशास्त्र’ (Political Sociology) कहकर पुकारते हैं जबकि अन्य विद्वान इसे ‘राजनीति का समाजशास्त्र’ (Sociology of Politics) कहना पसन्द करते हैं। एस. एन. इसे ‘राजनीतिक प्रक्रियाओं और व्यवस्थाओं का समाजशास्त्रीय अध्ययन’ (Sociological study of Political Processes and Political Systems) कहकर पुकारते हैं। ‘राजनीतिक समाजशस्त्र’ वस्तुतः समाजशास्त्र और राजनीतिशास्त्र के बीच विद्यमान सम्बन्धों की घनिष्ठता का सूचक है। इस विषय की व्याख्या समाजशास्त्री और राजनीतिशास्त्री अपने-अपने ढंग से करते हैं। जहां समाजवादी के लिए यह समाजशास्त्र की एक शाखा है, जिसका सम्बन्ध समाज के अन्दर या मध्य में निर्दिष्ट शक्ति के कारणों एवं परिणामों तथा उन सामाजिक और राजनीतिक द्वन्द्वों से है जो कि सत्ता या शक्ति में परिवर्तन लाते हैं; राजनीतिशास्त्री के लिए यह राजनीतिशास्त्र की शाखा है जिसका सम्बन्ध सम्पूर्ण समाज व्यवस्था के बजाय राजनीतिक उपव्यवस्था को प्रभावित करने वाले अन्तःसम्बन्धों से है। ये अन्तःसम्बन्ध राजनीतिक व्यवस्था तथा समाज की दूसरी उपव्यवस्थाओं के बीच में होते हैं। राजनीतिशास्त्री की रूचि राजनीतिक तथ्यों की व्याख्या करने वाले सामाजिक परिवर्त्यों तक रहती है जबकि समाजशास्त्री समस्त सम्बन्धी घटनाओं को देखता है।

परिभाषा[संपादित करें]

एक नया विषय होने के कारण ‘राजनीतिक समाजशास्त्र’ की परिभाषा करना थोड़ा कठिन है। राजनीतिक समाजशास्त्र के अन्तर्गत हम सामाजिक जीवन के राजनीतिक एवं सामाजिक पहलुओं के बीच होने वाली अन्तःक्रियाओं का विश्लेषण करते हैं; अर्थात् राजनीतिक कारकों तथा सामाजिक कारकों के पारस्परिक सम्बन्धों तथा इनके एक-दूसरे पर प्रभाव एवं प्रतिच्छेदन का अध्ययन करते हैं।

‘राजनीतिक समाजशास्त्र’ की निम्नलिखित परिभाषाएं की जाती हैं :

डाउसे तथा ह्यूज : राजनीतिक समाजशास्त्र, समाजशास्त्र की एक शाखा है जिसका सम्बन्ध मुख्य रूप से राजनीति और समाज में अन्तःक्रिया का विश्लेषण करना है।

जेनोविट्स : व्यापकतर अर्थ में राजनीतिक समाजशास्त्र समाज के सभी संस्थागत पहलुओं की शक्ति के सामाजिक आधार से सम्बन्धित है। इस परम्परा में राजनीतिक समाजशास्त्र स्तरीकरण के प्रतिमानों तथा संगठित राजनीति में इसके परिणामों का अध्ययन करता है।

लिपसेट : राजनीतिक समाजशास्त्र को समाज एवं राजनीतिक व्यवस्था के तथा सामाजिक संरचनाओं एवं राजनीतिक संस्थाओं के पारस्परिक अन्तःसम्बन्धों के अध्ययन के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।

बेंडिक्स : राजनीति विज्ञान राज्य से प्रारम्भ होता है और इस बात की जांच करता है कि यह समाज को कैसे प्रभावित करता है। राजनीतिक समाजशास्त्र समाज से प्रारम्भ होता है और इस बात की जांच करता है कि वह राज्य को कैसे प्रभावित करता है।

पोपीनो : राजनीतिक समाजशास्त्र में वृहत् सामाजिक संरचना तथा समाज की राजनीतिक संस्थाओं के पारस्परिक सम्बन्धों का अध्ययन किया जाता है।

सारटोरी : राजनीतिक समाजशास्त्र एक अन्तःशास्त्रीय मिश्रण है जो कि सामाजिक तथा राजनीतिक चरों को अर्थात् समाजशास्त्रियों द्वारा प्रस्तावित निर्गमनों को राजनीतिशास्त्रियों द्वारा प्रस्तावित निर्गमनों से जोड़ने का प्रयास करता है। यद्यपि राजनीतिक समाजशास्त्र राजनीतिशास्त्र तथा समाजशास्त्र को आपस से जोड़ने वाले पुलों में से एक है, फिर भी इसे ‘राजनीति के समाजशास्त्र’ का पर्यायवाची नहीं समझा जाना चाहिए।

लेविस कोजर : राजनीतिक समाजशास्त्र, समाजशास्त्र की वह शाखा है जिसका सम्बन्ध सामाजिक कारकों तथा तात्कालिक समाज में शक्ति वितरण से है। इसका सम्बन्ध सामाजिक और राजनीतिक संघर्षो से है जो शक्ति वितरण में परिवर्तन का सूचक है।

टॉम बोटामोर : राजनीतिक समाजशास्त्र का सरोकर सामाजिक सन्दर्भ में सत्ता (पॉवर) से है। यहां सत्ता का अर्थ है एक व्यक्ति या सामाजिक समूह द्वारा कार्यवाही करने, निर्णय करने व उन्हें कार्यान्वित करने और मोटे तौर पर निर्णय करने के कार्यक्रम को निर्धारित करने की क्षमता जो यदि आवश्यक हो तो अन्य व्यक्तियों और समूहों के हितों और विरोध में भी प्रयुक्त हो सकती है।

राजनीति विज्ञान के परम्परावादी विद्वान अपने अध्ययन विषय का सम्बन्ध ‘राज्य’ और ‘सरकार’ जैसी औपचारिक संस्थाओं से जोड़ते थे। राजनीति विज्ञान में व्यवहारवादी क्रान्ति के परिणामस्वरूप ‘राजनीति’ शब्द का प्रयोग व्यक्तियों के राजनीतिक व्यवहार, हित समूहों की क्रियाओं तथा विभिन्न हित समूहों में संघर्ष के समाधान के लिए किया जाने लगा। डेविड ईस्टन ने इसे किसी समाज में मूल्यों के प्राधिकारिक वितरण से सम्बन्धित क्रिया कहा है। संक्षेप में, राजनीति के अध्ययन से अभिप्राय केवल राज्य और सरकार की औपचारिक राजनीतिक संस्थाओं का अध्ययन करना ही नहीं अपितु यह एक सामाजिक क्रिया है क्योंकि सभी प्रकार के सामाजिक सम्बन्धों में राजनीति पायी जाती है।

निष्कर्षतः राजनीतिक समाजशास्त्र का उपागम सामाजिक एवं राजनीतिक कारकों को समान महत्व देने के कारण, समाजशास्त्र तथा राजनीतिशास्त्र दोनों से भिन्न है तथा इसलिए यह एक पृथक् सामाजिक विज्ञान है। प्रो.आर.टी. जनगम के अनुसार राजनीतिक समाजशास्त्र को समाजशास्त्र एवं राजनीतिशास्त्र के अन्तःउर्वरक की उपज माना जा सकता है जो राजनीति को सामाजिक रूप में प्रेक्षण करते हुए, राजनीति पर समाज के प्रभाव तथा समाज पर राजनीति के प्रभाव का अध्ययन करता है। संक्षेप, में राजनीतिक समाजशास्त्र समाज के सामाजिक आर्थिक पर्यावरण से उत्पन्न तनावों और संघर्षो का अध्ययन कराने वाला विषय है। राजनीति विज्ञान की भांति राजनीतिक समाजशास्त्र समाज में शक्ति सम्बन्धों के वितरण तथा शक्ति विभाजन का अध्ययन हैं इस दृष्टि से कतिपय विद्वान इसे राजनीति विज्ञान का उप-विषय भी कहते है।

उपर्युक्त परिभाषाओं का विश्लेषण करने से ‘राजनीतिक समाजशास्त्र’ की निम्नलिखित विशेषताएं स्पष्ट होती हैं-

  • (1) राजनीतिक समाजशास्त्र राजनीति विज्ञान नहीं है क्योंकि इसमें मात्र राज्य और सरकार की औपचारिक संरचनाओं का अध्ययन नहीं होता।
  • (2) यह समाजशास्त्र भी नहीं है क्योंकि इसमें मात्र सामाजिक संस्थाओं का ही अध्ययन नहीं किया जाता।
  • (3) इसमें राजनीति का समाजशास्त्रीय परिवेश में अध्ययन किया जाता है।
  • (4) इसमें राजनीतिक समस्याओं को आर्थिक और सामाजिक परिवेश में देखा जाता है।
  • (5) इसकी विषय-वस्तु और कार्यपद्धति को समाजशास्त्र तथा राजनीतिशास्त्र, दोनों विषयों से लिया जाता है।

अतः यह स्पष्ट हो जाता है कि ‘राजनीतिक समाजशास्त्र’ राजनीति विज्ञान और समाजशास्त्र दोनों के गुणों को अपने में समाविष्ट करते हुए यह दोनों का अधिक विकसित रूप में प्रतिनिधित्व करता है। एस.एस. लिपसेट इसी बात को स्पष्ट करते हुए लिखते हैं : यदि समाज-व्यवस्था का स्थायित्व समाजशास्त्र की केन्द्रीय समस्या है तो राजनीतिक व्यवस्था का स्थायित्व अथवा जनतन्त्र की सामाजिक परिस्थिति राजनीतिक समाजशास्त्र की मुख्य चिन्ता है।

राजनीतिक संस्था से आप क्या समझते हैं?

इस परम्परा में राजनीतिक समाजशास्त्र स्तरीकरण के प्रतिमानों तथा संगठित राजनीति में इसके परिणामों का अध्ययन करता है। लिपसेट : राजनीतिक समाजशास्त्र को समाज एवं राजनीतिक व्यवस्था के तथा सामाजिक संरचनाओं एवं राजनीतिक संस्थाओं के पारस्परिक अन्तःसम्बन्धों के अध्ययन के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।

राजनीति का उद्देश्य क्या है?

(राज मतलब शासन और नीति मतलब उचित समय और उचित स्थान पर उचित कार्य करने की कला) अर्थात् नीति विशेष के द्वारा शासन करना या विशेष उद्देश्य को प्राप्त करना राजनीति कहलाती है। दूसरे शब्दों में कहें तो जनता के सामाजिक एवं आर्थिक स्तर (सार्वजनिक जीवन स्तर)को ऊँचा करना राजनीति है ।

राजनीतिक सिद्धांत क्या है इसके महत्व की विवेचना करें?

(२) राजनीतिक सिद्धान्त सामान्यतः मानव जाति, उसके द्वारा संगठित समाजों और इतिहास तथा ऐतिहासिक घटनाओं से संबंधित प्रश्नों के उत्तर देने का प्रयत्न करता है। वह विभेदों को मिटाने के तरीके भी सुझाता है और कभी-कभी क्रांतियों की हिमायत करता है। बहुधा भविष्य के बारे में पूर्वानुमान भी दिए जाते हैं।

राजनीति विज्ञान के अध्ययन का महत्व क्या है?

राजनीति विज्ञान का अध्ययन उसे अपनी स्वयं की विचारधारा विकसित करने में सहायता करता है । के अर्थ, स्वरूप व प्रकारों से सम्बन्धित विविध विचार व अवधारणों को विद्यार्थियों के अध्ययन हेतु प्रस्तुत किया गया है।