राज्यपाल Show संविधान के अनुसार, राज्यपाल राज्य स्तर पर संवैधानिक प्रमुख होता है। कार्यपालिका प्रमुख होने के नाते वह दोहरी भूमिका निभाता है-
नियुक्ति राज्यपाल की चयन नीति को लेकर संविधान सभा में व्यापक विचार-विमर्श किया गया था और इस संबंध में अनेक वैकल्पिक प्रस्ताव पेश किये गये थे। मुख्य रूप से चार विकल्पों पर विचार किया गया था- वयस्क मताधिकार के जरिए चुनाव-
निचले सदन के सदस्यों द्वारा चुनाव अथवा जन-प्रतिनिधित्व प्रणाली के जरिए विधायिका के दोनों सदनो द्वारा चुनाव-
राज्य के विधायिका के निचले सदन द्वारा सुझाए गये एक पैनल के आधार पर राष्ट्रपति द्वारा चुनाव- इस विकल्प को भी सदस्यों ने इस आधार पर अस्वीकार कर दिया कि यदि राष्ट्रपति को एक पैनल मे से ही चुनाव करना पड़ा तो उसके चुनाव का क्षेत्र सीमित हो जायेगा। राष्ट्रपति द्वारा नियुक्ति-
कार्यकाल
योग्यताएं अनुच्छेद 157 और 158 के अनुसार कोई भी व्यक्ति राज्यपाल होने के योग्य नही है यदि वह-
राज्यपाल की योग्यताओं सम्बन्धी सरकारिया आयोग की सिफारिशे- केंन्द्र तथा राज्य के परस्पर सम्बन्धों के ढांचे को विचारने के लिए जून 1983 में एक आयोग नियुक्त किया गया था, जिसकी अध्यक्षता न्यायमूर्ति आर0एस0 सरकारिया ने की थी जिसको आम तौर पर सरकारिया आयोग कहा जाता है। इस आयोग ने अक्टूबर 1987 में अपनी रिपोर्ट में राज्यपाल के योग्यता संबन्धी निम्नलिखित सिफारिशे की थी-
कुल मिलाकर इतने वर्षों में दो प्रथाएं प्रचलित हुई । पहली राज्यपाल नियुक्त किया जाने वाला व्यक्ति उसी राज्य से संबंधित न हो, जिसमें उसे राज्यपाल नियुक्त किया जाना है। दूसरी राज्यपाल पद के लिए व्यक्ति की नियुक्ति के संबंध में निर्णय लेते समय राज्य के मुख्यमंत्री को विश्वास में लेना चाहिए। आमतौर पर, किसी भी व्यक्ति की राज्यपाल पद पर नियुक्ति के बारे में अंतिम निर्णय लेने से पूर्व कंद्रीय गृहमंत्री संबंधित राज्य के मुख्यमंत्री से विचार विमर्श करता है। लेकिन अनेक उदाहरण हैं जब ऐसा नहीं किया गया। इस प्रथा का पालन विशेषतौर पर उन राज्यों के मामले में नहीं किया गया, जिन राज्यों में केंद्र से पृथक किसी अन्य दल की सरकार है। वेतन और भत्ते
न्यायिक सुविधाएं राज्यपाल को कुछ न्यायिक सुविधाएं प्रदान की गई है, जो इस प्रकार हैं -
शक्तियां और कार्य राज्यपाल राज्य में लगभग वे समस्त कार्य करता है जो केंद्र में राष्ट्रपति द्वारा किये जाते है किंतु राज्यपाल की कोई राजनयिक या सैन्य संबंधी शक्तियां नही है जैसा कि राष्ट्रपति को प्राप्त है। राज्यपाल के अधिकार और कर्तव्यों को चार भागों में बांटा जा सकता है- कार्यपालिका, विधायिका, वित्त तथा न्यायपालिका, संबंधित शक्तियां। कार्यपालिका संबन्धी शक्तियां-
विधायिका संबंधी शक्तियां
राज्यपाल की राज्य विधान पर वीटो करने की शक्तियों पर पृथक रूप से विचार किया गया है। वित्त संबन्धी शक्तियां
विवेकाधिकार संबन्धी शक्तियां संविधान में राज्यपाल के कुछ विशेष अधिकारों का वर्णन है जिनका उपयोग वह विशेष परिस्थितियों में करता है। राज्यपाल के विवेकाधिकार दो तरीके के होते हैः प्रथम संविधान में प्रत्यक्ष तौर पर लिखे हुए संवैधानिक विवेकाधिकार। दूसरे अप्रत्यक्ष विवेकाधिकार, जो कि तत्कालीक राजनैतिक परिस्थितियों से उत्पन्न होते है। उन्हें परिस्थितकीय विवेकाधिकार कहा जाता है। पहले मामले में संविधान में राज्यपाल को अपने विवेक का उपयोग करने की छूट दी गयी है, जबकि दूसरे मामले में वह इनका उपयोग राज्य की राजनीतिक परिस्थितियों को देखते हुए करता है। संवैधानिक विवेकाधिकार-
पारिस्थितिकीय विवेकाधिकार- राज्यपाल किसी विशेष परिस्थिति में अपने विवेक का इस्तेमाल कर सकता है। सामान्य परिस्थितियों में राज्यपाल अपने मंत्रिमंडल की सलाह और सहायता से काम करता है। लेकिन असमान्य परिस्थितियों में वह राष्ट्रपति के एजेण्ट के रूप में कार्य करता है और राष्ट्रपति को राज्य की परिस्थिति के सम्बंध में जानकारी देता है। निम्नलिखित परिस्थितियों में राज्यपाल अपने विवेक का इस्तेमाल कर सकता है- मुख्यमंत्री की नियुक्ति। मंत्रिमंडल की बर्खास्तगी तथा विधानसभा भंग करना। अतः राज्यपाल सामान्य स्थिति में सवैधानिक मुखिया तथा कुछ विशेष परिस्थितियों में विवेक शक्तियों का प्रयोग करने वाला राज्य का महत्वपूर्ण अधिकारी है। विशेष उत्तरदायित्व- व्यवहार में इसका अर्थ वही है जो "विवेकानुसार" का है। यद्यपि विशेष उत्तरदायित्व के मामलों में उसे मंत्रिपरिषद से परामर्श करना होता है किंतु अंतिम विनिश्चय उसका व्यक्तिगत निर्णय होता है। इसे किसी न्यायालय में प्रश्नगत नहीं किया जा सकता। ये कृत्य है-
राज्यपाल की स्थिति भारत में संसदीय प्रणाली की सरकार है जहां वास्तविक अधिकार मंत्रिमंडल के पास होते है। संविधान में राज्यपाल को अनेक अधिकार दिये गये है लेकिन वह इन सभी अधिकारों का उपयोग केवल मुख्यमंत्री की सलाह पर ही कर सकता है। इसका अपवाद केवल वे क्षेत्र होते हैं, जहां राज्यपाल अपने विवेक का इस्तेमाल कर सकता है। सिद्वांत अधिकारों की दृष्टि से राज्यपाल का पद बहुत ही महत्वपूर्ण है । लेकिन यथार्थतः इन सबका उपयोग मंत्रियों द्वारा किया जाता है। राज्यपाल को वास्तव में बहुत अधिकार प्राप्त नहीं होते है। लेकिन यह गरिमा तथा सम्मान का पद है। सामान्य परिस्थितियों में यही वस्तुस्थिति होती है, परंतु असामान्य परिस्थितियों में यह स्थिति बदल जाती है। संवैधानिक स्थिति- राज्यपाल की स्थिति के संबंध में यदि संविधान के विभिन्न उपबंधों का अवलोकन करें तो ऐसा प्रतीत होता है कि संविधान निर्माताओं ने राज्य प्रशासन सम्बंधी महत्वपूर्ण शक्तियां राज्यपाल को ही सौपी है। राज्य का शासन राज्यपाल के नाम पर ही चलाया जाता है और राज्य के महत्वपूर्ण अधिकारियों की नियुक्ति राज्यपाल द्वारा ही की जाती है। वह राज्य विधान मंडल का अधिवेशन बुलाता है और राज्य की विधान सभा को निश्चित अवधि से पूर्व भंग भी कर सकता है। राज्य विधान मंडल द्वारा पारित किया कोई भी विधेयक राज्यपाल की स्वीकृति के बिना कानून का रूप धारण नहीं कर सकता। जब राज्य विधान मंडल का अधिवेशन न हो रहा हो तो राज्यपाल अध्यादेश भी जारी कर सकता है। वित्त-विधेयक राज्यपाल की पूर्व स्वीकृति के बिना राज्य विधान सभा में पेश नहीं किया जा सकता है। संविधान के अनुच्छेद 163 में मंत्रिपरिषद की व्यवस्था की गई है, वह मंत्रिपरिषद भी संविधान के इस अनुच्छेद द्वारा एक परामर्शदात्री संस्था सी प्रतीत होती है। कुल मिलाकर, संविधान के उपबंधों के अनुसार राज्यपाल को राज्य के प्रशासन सम्बंधी कार्यकारी, संवैधानिक, न्यायिक और वित्तीय क्षेत्रों में बहुत ही महत्वपूर्ण शक्तियां प्राप्त हैं। वास्तविक स्थिति-
यदि सरकारिया आयोग द्वारा दिये गये सुझाओं को कार्यान्वित कर लिया जाता है तो राज्यपाल के पद को लेकर पैदा हुआ विवाद काफी हद तक कम किया जा सकता है। संविधान में परिवर्तन के बजाय विशेष परम्पराएं कायम करने से स्थिति ज्यादा बेहतर हो सकेगी। केंद्र और राज्य दानों को ही राज्यपाल को किसी तरह के दबाव के बिना काम करने का अवसर देना चाहिए । वर्ष 1999 में बिहार तथा पश्चिम बंगाल जैसे राजनीतिक रूप से अतिसंवेदनशील राज्यों के राज्यपालों की नियुक्ति की गई है, जबकि दोनों राज्यों में विपक्षी दलों की सरकारें है फिर भी किसी तरह का असंतोष नहीं दिखाई पड़ा है। कारण संबंधित राज्यों से नियुक्ति के पूर्व ही सहमति ले ली गई थी। अंतः संविधान को बिना बदले उसके मर्म को समझ कर कार्य किया जाय तो पूरे राजनीतिक महौल में सुधार होगा। Videos Related To Subject TopicComing Soon.... भारतीय राज्यपाल की भूमिका क्या है?संविधान के मुताबिक, राज्य का राज्यपाल दोहरी भूमिका अदा करता है। वह राज्य की मंत्रिपरिषद (CoM) की सलाह मानने को बाध्य राज्य का संवैधानिक प्रमुख होता है। इसके अतिरिक्त वह केंद्र सरकार और राज्य सरकार के बीच एक महत्त्वपूर्ण कड़ी के रूप में कार्य करता है।
एक ही राज्य में सबसे लंबे समय तक राज्यपाल कौन रहा है?नरसिम्हन ने 12 वर्षों तक राज्यपाल के रूप में कार्य किया और उन्हें भारत में सबसे लंबे समय तक कार्य करने वाला राज्यपाल बनाया।
राज्यपाल किस किसकी नियुक्ति करता है?(ख) राज्यपाल के अधीनस्थ किसी प्राधिकारी को विधि द्वारा कृत्य प्रदान करने से संसद या राज्य के विधान-मण्डल को निवारित नहीं करेगी । अनुच्छेद 155. राज्यपाल की नियुक्ति: राज्य के राज्यपाल को राष्ट्रपति अपने हस्ताक्षर और मुद्रा सहित अधिपत्र द्वारा नियुक्त करेगा । (1) राज्यपाल, राष्ट्रपति के प्रसाद पर्यन्त पद धारण करेगा ।
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