संचार की भाषा क्या होनी चाहिए? - sanchaar kee bhaasha kya honee chaahie?

संचार की भाषा क्या होनी चाहिए? - sanchaar kee bhaasha kya honee chaahie?
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  • संचार प्रक्रिया की विशेषताएँ 
  • संचार की बाधाएँ
  • सूचना के गुण
  • महत्वपूर्ण लिंक

संचार (Communication)

संचार प्रक्रिया की विशेषताएँ 

(Characteristics of Communication)

संचार एक निरन्तर चलने वाली प्रक्रिया है। यह सर्वव्यापी प्रक्रिया है। इससे वर्तमान समय का कोई भी क्षेत्र अछूता नहीं रह गया है। इसकी कुछ विशेषताएँ निम्न हैं-

  1. स्पष्टता का सिद्धान्त

    संदेश या सूचना समझने योग्य भाषा में भेजी जानी चाहिए और साथ ही संदेश स्पष्ट होना चाहिए। क्योंकि इस प्रक्रिया में अस्पष्ट शब्दों का कोई महत्व नहीं होता है।

  2. ध्यानाकर्षण का सिद्धान्त

    संचार प्रक्रिया ऐसी हो जो लोगों का ध्यान आकर्षित कर सके। सूचना आकर्षक होने के साथ-साथ सूचना देते समय प्राप्त करने वाले की रुचि एवं आवश्यकता को भी ध्यान में रखना चाहिए। इसी प्रकार लोगों को सूचना एवं प्रचार का महत्व भी बताया जाना चाहिए। इसी प्रकार सूचना से सम्बन्धित प्रभावों को भी स्पष्ट कर देना चाहिए।

  3. संगतता का सिद्धान्त

    यह सिद्धान्त बात पर बल देता है कि प्रेषित की जाने वाली सूचनाएँ प्राप्त करने वाले के उद्देश्यों एवं लक्ष्यों के समान्तर होनी चाहिए।

  4. उचित प्रसारण का सिद्धान्त

    संचार का यह सिद्धान्त इस बात पर जोर देता है कि प्रेषित सूचना या संदेश उपयुक्त व्यक्ति, विभाग के पास उपयुक्त साधन द्वारा उपयुक्त समय पर पहुँचना चाहिए। तभी उसका उचित एवं सार्थक उपयोग किया जा सकता है। दूसरे शब्दों में, संचारकर्ताओं को संचार प्रक्रिया के दौरान समय, साधन एवं परिस्थितियों पर पूर्ण विचार करके ही कोई निर्णय लेना चाहिए।

संचार की बाधाएँ

(Barriers of Communication)

संचार प्रौद्योगिकी को प्रभावी रूप से प्रयोग करने के लिए व्यक्ति को उसकी बाधाओं से अवगत होना भी आवश्यक है। क्योंकि यदि व्यक्ति को संचार प्रक्रिया से सम्बन्धित बाधाओं का ज्ञान होगा तो वह उससे बचते हुए उस प्रक्रिया की सहायता से आवश्यक सूचनाओं का अदान-प्रदान कर सकता है।

संक्षेप में संचार की प्रमुख बाधाएँ निम्न हैं-

  1. भाषा सबन्धी बाधाएँ

    भाषा की समस्या संचार की सर्वाधिक महत्वपूर्ण बाधा मानी जाती है। भाषा के कारण संवाददाता द्वारा प्रेषित संवाद, संवाद प्राप्तकर्ता को भली-भाँति समझने में कठिनाइयाँ उत्पन्न कर देता है। इन कठिनाइयों को भाषा के कारण उत्पन्न बाधायें कहा जायेगा। ये बाधायें उस समय उत्पन्न होती हैं जब संवाददाता संवाद प्राप्तकर्ता की योग्यता की पूर्ण जानकारी किए बिना ही संवाद का प्रेषण कर देता है और संवाद में ऐसे शब्दों का प्रयोग करता है जिनके अनेक अर्थ निकलते हैं ऐसी परिस्थिति में संवाद प्राप्तकर्ता संवाद का अपनी सुविधा, योग्यता एवं अनुभव के आधार पर अर्थ लगाता है।

  2. संगठनात्मक संरचना

    संस्थाओं में संचार की प्रभावशीलता काफी हद तक उनकी संगठन संरचना पर निर्भर करती है। किसी संगठन संरचना में जितने अधिक स्तर होंगे उतनी ही अधिक बाधाएँ संवाद को भेजने और समझने में उत्पन्न होंगी, क्योंकि संदेश को प्रसारित होने के लिए इन सभी स्तरों से गुजरना पड़ता है। विद्यालय प्रशासन में ऊपर की ओर संचार में जब अधीनस्थ अपने निकटतम अधिकारी के अतिरिक्त अन्य अधिकारियों से प्रत्यक्षतया नहीं मिल पाते तो उन्हें घुटन एवं बेचैनी का अनुभव होने लगता है। यह परेशानी या बाउस समय और उग्र रूप धारण कर लेती है जब उनका संवाद उच अधिकारी तक विभिन्न स्तरों की वजह से उसी रूप में नहीं पहुँच पाता है।

  3. दोषपूर्ण उद्देश्य

    कई बार संचार का उद्देश्य ही दोषपूर्ण या विकृत होने से संचार में अनेक बाधाएँ उत्पन्न हो जाती हैं। कभी-कभी संचार का वास्तविक उद्देश्य, प्रकट उद्देश्य से भिन्न होता है जिससे संचार के इच्छित उद्देश्यों की प्राप्ति नहीं होती। उदाहरणार्थ, विद्यालय में छात्रों को दिए जाने वाले प्रशिक्षण का उद्देश्य उन्हें शिक्षा सम्बन्धी प्रशिक्षण देना न होकर उनके मनोरंजनात्मक विकास को बढ़ाना हो तो प्रशिक्षण योजनाओं का सफल होना असम्भव नहीं तो दुष्कर अवश्य ही होगा।

  4. स्थिति सम्बन्ध

    संचार की एक मुख्य बाधा स्थिति सम्बन्ध से उत्पन्न होती है। विद्यालय संगठन संरचना में विभिन्न व्यक्तियों का पारस्परिक सम्बन्ध अधिकारी एवं अधीनस्थ का होता है। यह स्थिति सम्बन्ध संचार की प्रभावशीलता को पर्याप्त मात्रा में प्रभावित करता है। संगठन में व्यक्ति की स्थिति और पद उसकी भावनाओं एवं दूसरे व्यक्तियों के प्रति उसके व्यवहार को प्रभावित करते हैं। फलतः ऊपर की ओर एवं नीचे की ओर दोनों ओर संचार पक्षपातपूर्ण हो जाता है। अधिकारी सदैव पद भिन्नता बनाये रखना चाहते हैं। वह अधीनस्थों पर अपने पद का प्रभाव बनाये रखने के कारण ऐसे सुझाव एवं सूचनायें स्वीकार नहीं करते जो उनकी निर्णय योग्यता को कमजोर साबित करती हैं। इसके विपरीत अधीनस्थ अधिकारी एवं कर्मचारी प्रायः उच्च अधिकारी की दृष्टि एवं आचरण की ओर ध्यान रखते हैं।

  5. समयावभाव

    अनेक अवसरों पर यह देखने को मिलता है कि संवाददाता संवाद को समयाभाव के कारण यथासमय संवाद प्राप्तकर्ता को प्रेषित नहीं कर पाते जिससे संवाद की प्रभावशीलता पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। इसके अतिरिक्त यह भी आवश्यक है कि संवाद को ऐसे समय प्रेषित किया जाए जब संवाद प्राप्तकर्ता उसे ग्रहण करने के लिए मानसिक एवं शारीरिक दृष्टि से तैयार हो।

सूचना के गुण

(Qualities of Information)

उपयोगी सूचना के बिना हम कोई भी निर्णय स्वतंत्र रूप से नहीं ले सकते हैं। सूचना आधारित निर्णयों में सूचना की गुणवत्ता अत्यन्त महत्वपूर्ण होती है। यदि हमें

उपयुक्त सूचना सही समय पर नहीं प्राप्त होती तो, उस पर आधारित परिणाम पर इसका दुष्प्रभाव पड़ना अपेक्षित है, जो कि कष्टप्रद तथा हानिकारक हो सकता है।

सूचना में निम्नलिखित गुणों का होना अति आवश्यक है-

  1. शुद्धता

    शुद्धता से हमारा अभिप्राय यह है कि सूचना जिस डेटा पर आधारित हो, वह सटीक एवं शुद्ध हो। शुद्ध सूचना किसी के दबाव में तोड़-मरोड़ कर गलत ढंग से प्रदान नहीं की गयी हो। शुद्ध सूचना की अपनी निर्णायक भूमिका होती है।

  2. समय से

    यदि प्राप्तकर्ता को आवश्यकतानुसार समय से सूचना प्राप्त हो जाती है तो वह उचित निर्णय लेने में सहायक होती है। उदाहरण के लिए, समाचार-पत्रों में प्रतिदिन स्टॉक एक्सचेंज में शेयरों के भाव में उतार-चढ़ाव, निवेशकों एवं ब्रोकरों को शेयर बेचने खरीदने में सहायक होते हैं।

  3. अर्थपूर्ण

    सूचना अर्थपूर्ण और विषय के अनुरूप ही होनी चाहिए, ताकि वह उपयोगी सिद्ध हो सके।

  4. संक्षिप्तता

    संक्षिप्तता, सूचना का महत्वपूर्ण गुण है। कोई भी सूचना बहुविस्तारित न होकर अनिवार्य रूप से संक्षिप्त ही होनी चाहिए।

  5. उपलब्धता

    सूचना हमें कम-से-कम समय (त्वरित रूप में उपलब्ध रहनी चाहिए। जब भी हमें सूचना के आधार पर कोई निर्णय लेने की आवश्यकता होगी तो यदि वह तुरन्त कम-से-कम समय में उपलब्ध होगी तो उस पर आधारित निर्णय लेने में सुविधा होगी, अन्यथा हमें सूचना प्राप्त होने का ही इंतज़ार करना पड़ सकता है।

महत्वपूर्ण लिंक

  • विशेष शिक्षा की आवश्यकता | Need for Special Education
  • New Education Policy 1986- Characteristics & Objectives in Hindi
  • राष्ट्रीय शिक्षा नीति-1992 की संकल्पनाएँ या विशेषताएँ- NPE 1992
  • अनुसंधान (Research)- अर्थ, परिभाषा, उद्देश्य और वर्गीकरण
  • साक्षात्कार (Interview)- परिभाषा, प्रकार, भाग (Definition, Types, Parts)
  • सूक्ष्म-शिक्षण- प्रकृति, प्रमुख सिद्धान्त, महत्त्व, परिसीमाएँ
  • Barriers/ Obstacles of Effective Distance Education
  • Distance Learning: Meaning and its Characteristics
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संचार में भाषा क्या महत्वपूर्ण है?

क्योंकि भाषा ही वह संचार व्यवस्था है जिसमें मानव के सारे क्रियाकलाप आ जाते हैं। भाषिक आचरण ने ही मनुष्य को मनुष्येतर प्राणियों से अलग प्रमाणित किया है। इसलिए संचार माध्यमों - चाहे वह प्रेस हो या इलैक्ट्रॉनिक माध्यम- उनके विकास की कल्पना भाषा के बिना नहीं की जा सकती है।

संचार की भाषा क्या है?

जनसंचार माध्यमों की सबसे बड़ी शक्ति है, संचार भाषा। मीडिया द्वारा प्रसारित भाषा में लक्ष्यीभूत श्रोता, दर्शक, पाठक विभिन्न बौद्धिक स्तरों के होते हैं। जन-माध्यमों का यह प्रयास होता है कि वे भाषिक सम्प्रेषण को सर्व सुलभ बनायें। इसके लिए एक-एक शब्द को बड़ी सावधानी के साथ प्रयुक्त करना होता है।

संचार और भाषा में क्या संबंध है?

संचार के रूप में भाषा भाषा संचार की एक प्रणाली है जो सूचना को स्थानांतरित करने के लिए मौखिक या गैर-मौखिक कूट पर निर्भर करती है। संचार संदेश पर ध्यान केंद्रित करते हुए दो या दो से अधिक लोगों के बीच संदेश या सूचना को विनिमय करने का एक तरीका है। एक भाषा संचार का एक उपकरण है।

संचार की विशेषताएं क्या है?

संचार यथासमय अर्थात् सही समय पर होना चाहिये । संचार करने के पूर्व सम्बन्धित विषय में पूर्ण जानकारी का ज्ञान होना आवश्यक है । संचार करने से पूर्व परस्पर विश्वास स्थापित करना आवश्यक है । संचार में लोचशीलता होनी चाहिये अर्थात् आवश्यकतानुसार उसमें परिवर्तन किया जा सके ।