रूस और यूक्रेन के बीच इसी वर्ष फरवरी में जब युद्ध आरंभ हुआ था तो अधिकांश विशेषज्ञ इस निष्कर्ष पर सहमत थे कि यह युद्ध बहुत लंबा नहीं चलेगा। रूस महज कुछ ही दिनों में यूक्रेन के अधिकतर हिस्सों पर अपना नियंत्रण स्थापित करके उसे पराजित कर देगा। Show
विवेक मिश्र। Russia-Ukraine Conflict पिछले छह माह से जारी रूस-यूक्रेन युद्ध वैश्विक चिंता को बढ़ा रहा है। युद्ध के आरंभ के समय यह माना जा रहा था कि यह महज कुछ दिनों में ही समाप्त हो जाएगा। ऐसा अनुमान शायद रूस और यूक्रेन की सैन्य क्षमताओं में अंतर को देखते हुए लगाया गया था, लेकिन हुआ इसके विपरीत। रूस और यूक्रेन दोनों ही देशों के लिए यह युद्ध अत्यंत विनाशकारी सिद्ध हो रहा है। इसकी वजह से यूक्रेन के लाखों लोगों को विस्थापित होना पड़ा। रूस द्वारा युद्ध आरंभ करने के बाद से ही अमेरिका के नेतृत्व में पश्चिमी देशों ने उस पर कठोर प्रतिबंध लगाने शुरू कर दिए जिनमें से अधिकांश आर्थिक प्रतिबंध हैं। अमेरिका तथा अन्य पश्चिमी राष्ट्रों द्वारा भारत सहित कई देशों पर रूस से व्यापार न करने तथा संबंधों में भारी कटौती करने का दबाव बनाया गया। कई देशों ने यूक्रेन पर रूसी आक्रामकता की कठोर भाषा में निंदा की। कई यूरोपीय देशों ने रूस से आ रही गैस के आयात में भारी कटौती करने का निर्णय लिया। एपल और वाल्वो जैसी कंपनियों ने रूस में दी जा रही सेवाओं की समीक्षा करने और उन्हें बंद करने का भी निर्णय ले लिया। रूस की एयरलाइंस सेवाओं को भी भारी हानि उठानी पड़ी है। इन सभी कारकों की वजह से रूस की अर्थव्यवस्था में लगभग 12 प्रतिशत की भारी गिरावट भी देखने को मिली। जो बाइडन ने रूस को कठोर भाषा में चेतावनी दीरूस-यूक्रेन युद्ध ने अगर किसी देश की प्रतिष्ठा को सबसे ज्यादा चोट पहुंचाई है तो वह अमेरिका है। अमेरिका ही वह देश है जिसने यूक्रेन को नाटो की सदस्यता के सपने दिखाए और संकट के समय यूक्रेन के साथ खड़े होने के वादे किए, लेकिन वह न तो युद्ध रोक सका और न ही प्रत्यक्ष रूप से यूक्रेन की कोई सहायता कर सका। रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध शुरू होते ही अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने रूस को कठोर भाषा में चेतावनी दी और अपने सहयोगी राष्ट्रों के साथ मिलकर रूस को सबक सिखाने की धमकी भी दे डाली। परंतु वह केवल धमकी ही साबित हुई जो रूस पर आर्थिक प्रतिबंध लगाने तक ही सीमित रह गई। इस घटना की वजह से अमेरिका अपने सहयोगी देशों के बीच एक ऐसी छवि वाले राष्ट्र के रूप में भी उभरा है जिस पर संकट के समय यह विश्वास नहीं किया जा सकता कि वह अपने मित्र देश की रक्षा कर पाएगा। अमेरिका के साथ ही नाटो जैसे संगठन की विश्वसनीयता पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं जिसका गठन ही रूसी शक्ति का मुकाबला करने के लिए किया गया था। रूस-यूक्रेन युद्ध ने संयुक्त राष्ट्र की प्रासंगिकता पर भी गंभीर प्रश्न खड़े कर दिए हैं। संयुक्त राष्ट्र की स्थापना का मूल उद्देश्य ही युद्धों को रोकना और शांति की स्थापना करना था जिसमें यह संगठन सफल होता नहीं दिखाई दे रहा। भारत के समक्ष दुविधारूस-यूक्रेन युद्ध भारतीय विदेश नीति के लिए भी चुनौती बनकर सामने आया है। रूस से अपने विशिष्ट संबंधों के कारण भारत न तो खुलकर यूक्रेन के पक्ष में बोल सकता है और न ही रूस के विरोध में। हालांकि रूस के विरुद्ध कुछ ठोस बयान देने तथा उससे व्यापारिक व सैन्य संबंधों को कम करने के लिए भारत पर अमेरिका तथा अन्य पश्चिमी देशों का दबाव है। इसके बावजूद भारत संयुक्त राष्ट्र में रूस के विरुद्ध वोटिंग से अनुपस्थित रहा। इसके अलावा भारत रूस से छूट पर भारी मात्र में तेल का भी आयात कर रहा है जो अमेरिकी गुट के उद्देश्य के विपरीत कदम है। हाल ही में भारत द्वारा रूस से खरीदे जा रहे तेल पर यूक्रेन के विदेश मंत्री ने बहुत भावुक और कठोर टिप्पणी करते हुए कहा कि भारत जाने वाले तेल में यूक्रेन के नागरिकों का खून मिला हुआ है। इस मुद्दे पर भारत का तर्क यह है कि यूरोपीय देश भी रूस से भारी मात्र में गैस और तेल का आयात करते हैं और भारत रूस से इन वस्तुओं का आयात करने वाला इकलौता देश नहीं है। भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर का इस संबंध में यह कहना है कि भारत एक निम्न आय वर्ग वाला देश है और हमें जहां से भी कम कीमत पर तेल मिलेगा, हम वहां से खरीदेंगे, क्योंकि यह हमारे राष्ट्रीय हित में है। भारत को भविष्य में भी रूस का समर्थन मिलता रहेभारत अभी भी सैन्य-सामग्री की आपूर्ति के लिए काफी हद तक रूस पर ही निर्भर है जिसमें एस-400 जैसी अत्याधुनिक रक्षा प्रणालियां तथा ब्रह्मोस जैसे संयुक्त उपक्रम शामिल हैं। इसके साथ ही रूस को भारत अपने विश्वस्त सहयोगी मित्र राष्ट्र के रूप में भी देखता है। अमेरिका के विपरीत रूस ने अभी भी पाकिस्तान के साथ मित्रवत संबंध नहीं स्थापित किए हैं। रूस अमेरिका तथा अन्य पश्चिमी राष्ट्रों की तरह भारत को मानवाधिकार जैसे मुद्दों पर भी नहीं घेरता है। इन सभी कारणों से भी भारत, रूस के विरोध में जाने से बचता है, ताकि भारत को भविष्य में भी रूस का समर्थन मिलता रहे। लंबे खिंचते जा रहे रूस-यूक्रेन युद्ध से दोनों ही देशों को भारी हानि हो रही है। यूक्रेन यदि इतने लंबे समय तक रूस से पराजित नहीं हुआ है और रूस जैसे बेहद शक्तिशाली देश को कड़ी चुनौती दे पा रहा है तो इसके केंद्र में अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों द्वारा दी जा रही भारी वित्तीय व सैन्य सहायता है। यूक्रेन भले ही इस सहायता से टिका रह जाए, पर रूस की अर्थव्यवस्था को इसकी कीमत चुकानी पड़ रही है। साथ ही चीन पर रूस की निर्भरता बढ़ती जा रही है जो भारत के लिए अच्छा संकेत नहीं है। ऐसे में युद्धविराम के लिए उन सभी देशों को मिलकर गंभीर प्रयास करने की जरूरत है जिनके रूस और यूक्रेन दोनों ही देशों के साथ अच्छे संबंध हैं। भारत इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। भारत शांति के लिए प्रयास कर रहे अन्य देशों तथा ब्रिक्स, संघाई सहयोग संगठन, संयुक्त राष्ट्र और असियान जैसे मंचों के माध्यम से इस दिशा में प्रयास कर सकता है जिसके सकारात्मक परिणाम अवश्य मिलेंगे। इस युद्ध को गुटबाजी के माध्यम से नहीं, बल्कि परस्पर सहयोग के माध्यम से ही रोका जा सकता है। [अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार] Edited By: Sanjay Pokhriyal रूस यूक्रेन युद्ध का मुख्य कारण क्या है?रूस ने कहा है कि नाटो के लिए एक संभावित यूक्रेनी परिग्रहण और नाटो का विस्तार सामान्य रूप से इसकी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा है। बदले में, यूक्रेन और अन्य यूरोपीय देशों के पड़ोसी रूस ने पुतिन पर रूसी अप्रासंगिकता का प्रयास करने और आक्रामक सैन्य नीतियों का पालन करने का आरोप लगाया।
1 रशिया और यूक्रेन की लड़ाई का भारत की अर्थव्यवस्था पर क्या प्रभाव पड़ा इस विषय पर अपने विचार व्यक्त कीजिए?रूस-यूक्रेन युद्ध ने पूरी दुनिया में महंगाई को भी कई गुना बढ़ा दिया है. कई देश इस समय सबसे ज्यादा महंगाई दर दर्ज कर रहे हैं. भारत भी इस मामले में कई रिकॉर्ड तोड़ काफी आगे निकल चुका है. आंकड़े बताते हैं कि इस साल अप्रैल में भारत में सालाना महंगाई दर 7.8 फीसदी पहुंच गई थी.
यूक्रेन से भारत क्या क्या आयात करता है?यूक्रेन से ये चीजें खरीदता है भारत
कच्चे तेल के अलावा, भारत दवा कच्चे माल, सूरजमुखी, जैविक रसायन, प्लास्टिक, लोहा और इस्पात आदि का यूक्रेन से आयात करता है जबकि भारत फल, चाय, कॉफी, दवा उत्पाद, मसाले, तिलहन, मशीनरी और मशीनरी सामान आदि का निर्यात करता है.
रूस यूक्रेन विवाद क्या है 2022?Russia-Ukraine Conflict: रूस और यूक्रेन के बीच तनाव जारी है. रूस और यूक्रेन दोनों ही सोवियत यूनियन का हिस्सा रहे हैं. 1991 में यूक्रेन के अलग होने के बाद से दोनों देशों के बीच विवाद शुरू हो गया. विवाद तब और बढ़ गया जब यूक्रेन से रूसी समर्थक राष्ट्रपति को हटा दिया गया.
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