रात का खाना न मिलने की धमकी क्यों मिली थी? - raat ka khaana na milane kee dhamakee kyon milee thee?

10 summary with detailed explanation of the lesson ‘Kamchor’ along with the meanings of difficult words. Given here is the complete explanation of the lesson, along with summary and all the exercises, Question and Answers given at the back of the lesson

कक्षा 8 पाठ दस

कहानी  कामचोर

 

  • कामचोर पाठ प्रवेश
  • कामचोर की-पाठ-व्याख्या
  • कामचोर पाठ सार
  • कामचोर प्रश्न-अभ्यास

लेखिका इस्मत चुगताई

जन्म 15 अगस्त 1915

मृत्यु 24 अक्टूबर 1991

स्थान बदायूँ (उत्तर प्रदेश)

भाषा उर्दू।
 

कामचोर पाठ प्रवेश 

यह कहानी कामचोर अर्थात् आलसी बच्चों की है। बच्चे अक्सर काम से जी चुराते हैं उन्हें खेलने-कूदने और मस्ती करने में ही आनंद आता है। इस कहानी में बताया गया है कि अगर सही दिशा निर्देश अर्थात् सही तरीका उन्हें न बताया जाए तो बच्चे सही तरीके से काम नहीं करते हैं अर्थात् बच्चों को उन्हें काम करने का तरीका सिखाना बहुत ही जरूरी है। काम सही तरीके से न होने से क्या-क्या परेशानियाँ घरवालों को होती है, इस पाठ में बताया गया है और बहुत ही मजेदार तरीके से बता गया है कि क्या-क्या होता है, जब उन्हें काम करने के लिए कहा जाता है।
 
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कामचोर की पाठ व्याख्या 

बड़ी देर के वाद-विवाद के बाद यह तय हुआ कि सचमुच नौकरों को निकाल दिया जाए। आखिर, ये मोटे-मोटे किस काम के हैं! हिलकर पानी नहीं पीते। इन्हें अपना काम खुद करने की आदत होनी चाहिए। कामचोर कहीं के!

वाद-विवाद –  बहस

खुद – अपने आप

कामचोर – आलसी

लेखिका के घर में बच्चों के काम न करने को लेकर बहस छिड़ी हुई है, और बड़ी देर बहस करने के बाद यह फैसला हुआ कि सचमुच नौकरों को निकाल दिया जाए क्योंकि घर में नौकर-चकार है तो बच्चे किसी काम को करने में कोई रूचि नहीं रखते हैं और सारा दिन धमा-चौकाड़ी मचाते रहते हैं। कई भी काम न करने की वजह से बच्चे मोटे होते जा रहे हैं, हिलकर पानी भी नहीं पीते यानी कि वे अपने लिए पीने का पानी भी स्वयं नहीं लाते हैं। बच्चों को अपना काम अपने आप करने की आदत होनी चाहिए। यह माता-पिता का फ़र्ज है कि बच्चों में अपने काम तो स्वंय करने की आदत डाली जाए। नहीं तो वो आलसी ही बनते जाते हैं। 

‘‘तुम लोग कुछ नहीं। इतने सारे हो और सारा दिन ऊधम मचाने के सिवा कुछ नहीं करते।’’ और सचमुच हमें ख्याल आया कि हम आखिर काम क्यों नहीं करते? हिलकर पानी पीने में अपना क्या खर्च होता है? इसलिए हमने तुरंत हिल-हिलाकर पानी पीना शुरू किया।

ऊधम – मस्ती

ख्याल – सोच

लेखिका और उनके भाई-बहनों को डाँटते हुए उनके घरवाले कहते हैं कि वे लोग इतने सारे हैं लेकिन कोई भी काम नहीं करते और सारा दिन मस्ती करने के सिवा कुछ नहीं करते। लेखिका कहती हैं कि जब बड़ों ने कहा कि लेखक और उनके भाई-बहन सारा दिन ऊधम मचाते रहते हैं, शरारत करते रहते हैं, कोई काम नहीं करते हैं, किसी काम में कोई मदद नहीं करते हैं, तब बच्चों को ख्याल आया कि आखिर वे काम क्यों करते है? हिलकर पानी पीने में उनका क्या खर्च होता है? इतना तो वे कर ही सकते हैं, इसलिए लेखिका और उनके भाई-बहनों ने तुरंत हिल-हिलाकर पानी पीना शुरू किया। अर्थात वे अपना काम अब स्वयं करने लग गए। 

हिलने में धक्के भी लग जाते हैं और हम किसी के दबैल तो थे नहीं कि कोई धक्का दे, तो सह जाएँ। लीजिए, पानी के मटकों के पास ही घमासान युद्ध हो गया। सुराहियाँ उधर लुढ़कीं। मटके इधर गए। कपड़े भीगे, सो अलग।

दबैल – दब्बू

घमासान – भयानक

लेखिका कहती हैं कि जब बच्चे एक साथ एक ही काम करने के लिए निकलेगें तो आपस में धक्का-मुक्की तो होगी ही ऐसा ही कुछ नज़ारा लेखिका के घर में भी हुआ। लेखिका कहती हैं कि अब वो किसी से डरने वाले तो थे नहीं कि कोई धक्का दे, तो सह जाएँ। ऐसा तो लेखिका और उनके भाई-बहनों में कोई नहीं था। पानी के मटकों के पास ही भयानक युद्ध हो गया। सब बच्चें आपस में झगड़ा करने लगे। जो भी कुछ समान था पानी के लिए सुराहियाँ, मटके पतीलें सब इधर-उधर बिखर गए। सबके कपड़े भी इस लड़ाई-झगड़े में भीग गए। 

यह भला काम करेंगे।’ अम्मा ने निश्चय किया। ‘‘करेंगे कैसे नहीं! देखो जी! जो काम नहीं करेगा, उसे रात का खाना हरगिज नहीं मिलेगा। समझे।’’ यह लीजिए बिलकुल शाही फरमान जारी हो रहे हैं। ‘‘हम काम करने को तैयार हैं। काम बताए जाएँ”, हमने दुहाई दी।

हरगिज – बिलकुल

फरमान – राजाज्ञा

दुहाई – कसम

लेखिका की माता जी ने जब देखा कि बच्चे काम के नाम पर लड़ाई-झगड़ा कर रहे हैं और बड़ों ने कहा कि ये बच्चे कोई काम नहीं कर सकते, तो लेखिका की माता जी ने कहा कि बच्चों को अपना काम स्वयं ही करना पड़ेगा जो काम नहीं करेगा, उसे रात का खाना बिलकुल नहीं मिलेगा। लेखिका कहती हैं कि माता जी का यह आदेश बिलकुल राजाज्ञा की तरह था जिसका पालन जरूर होना था इसलिए बच्चे कसम खाने लगे कि बड़े लोग जो भी काम कहेंगे वे सब काम करेंगे।  

बहुत-से काम हैं जो तुम कर सकते हो। मिसाल के लिए यह दरी कितनी मैली हो रही है। आँगन में कितना कूड़ा पड़ा है। पेड़ों में पानी देना है और भाई मुफ्त तो यह काम करवाए नहीं जाएँगे। तुम सबको तनख्वाह भी मिलेगी।’’

मिसाल – उदाहरण

मैली – गन्दी

मुफ्त – फोकट

तनख्वाह – पगार

लेखिका कहती हैं कि उनकी माता जी ने सभी बच्चों को बहुत से काम करने का सुझाव भी दिया जो बच्चे कर सकते थे जैसे – गन्दी दरी को झाड़ कर साफ करना, आँगन में पड़े कूड़े को साफ़ करना, पेड़ों में पानी देना और लेखक की माता जी ने बच्चों को थोड़ा सा लालच भी दिया कि अगर वे यह सब काम करेंगे तो उन्हें कुछ-न-कुछ ईनाम के तौर पर मिलेगा।

अब्बा मियाँ ने कुछ काम बताए और दूसरे कामों का हवाला भी दिया – माली को तनख्वाह मिलती है। अगर सब बच्चे मिलकर पानी डालें, तो… ‘ऐ हे! खुदा के लिए नहीं। घर में बाढ़ आ जाएगी।’ अम्मा ने याचना की।

हवाला – उल्लेख करना

याचना – प्रार्थना

लेखिका के अब्बा मियाँ ने बच्चों को कुछ काम बताए और दूसरे कामों का भी उल्लेख किया अर्थात् काम को अच्छे तरीके से कैसे करना चाहिए ये बताया। लेखिका के अब्बा मियाँ ने जैसे ही कहा कि अगर सब बच्चें मिलकर पौधों में पानी डालें तो! इतना सुनते ही लेखिका की माता जी प्रर्थाना करते हुए भगवान् को यादकरके बोल पड़ी कि नहीं। अगर बच्चों को ये काम दिया तो घर में बाढ़ आ जाएगी क्योंकि बच्चे वैसे ही बदमाश है, शरारती हैं पता नहीं क्या-क्या कर बैठें। 

फिर भी तनख्वाह के सपने देखते हुए हम लोग काम पर तुल गए। एक दिन फर्शी दरी पर बहुत-से बच्चे जुट गए और चारों ओर से कोने पकड़कर झटकना शुरू किया। दो-चार ने लकड़ियाँ लेकर धुआँधार पिटाई शुरू कर दी।

तनख्वाह – पगार या वेतन

फर्शी – फर्श पर बिछी हुई

धुआँधार – ताबड़तोड़

लेखिका कहती हैं कि भले ही उन सबका मन काम करने में नहीं लगता था फिर भी पगार या पैसों के सपने देखते हुए सभी बच्चे काम करने में जुट गए। एक दिन फर्श पर बिछाई जाने वाली दरी को साफ़ करने के लिए बहुत-से बच्चे जुट गए और चारों ओर से दरी के कोने पकड़कर दरी को झटकना शुरू कर दिया। दो-चार बच्चों ने लकड़ियाँ लेकर दरी को ज़ोर-ज़ोर से पीटना शुरू कर दी। ताकि उसकी सारी गन्दगी साफ़ हो जाए। 

सारा घर धूल से अट गया। खाँसते-खाँसते सब बेदम हो गए। सारी धूल जो दरी पर थी, जो फर्श पर थी, सबके सिरों पर जम गई। नाकों और आँखों में घुस गई। 

अट – भर

बेदम – बिना दम

लेखिका कहती हैं कि जब सभी बच्चे फर्श पर बिछाई जाने वाली दरी से धूल निकालने के लिए उस पर ज़ोरदार डंडे बरसा रहे थे तब सारा घर धूल से भर गया था। खाँसते-खाँसते सब का साँस लेना मुश्किल हो गया था। जितनी भी धूल उस दरी पर थी और फर्श पर थी, अब वो सभी घर वालों के सिरों पर जम गई थी और साथ-ही-साथ सबके नाक और आँखो में भी घुस गई थी। 

बुरा हाल हो गया सबका। हम लोगों को तुरंत आँगन में निकाला गया। वहाँ हम लोगों ने फौरन झाड़ू देने का फैसला किया। झाडू़ क्योंकि एक थी और तनख्वाह लेनेवाले उम्मीदवार बहुत, इसलिए क्षण-भर में झाडू़ के पुर्जे उड़ गए। 

फौरन – तुरंत

फैसला – निश्चत

लेखिका कहती हैं कि धूल के कारण घर के सभी सदस्यों का बुरा हाल हो गया था। सभी बच्चों को इस तरह उधम मचाने के कारण तुरंत आँगन से बाहर निकाला गया। फिर धूल को देख कर बच्चों ने वहाँ तुरंत झाड़ू लगाने का निश्चय किया। अब दिक्क्त यहाँ ये हो गई कि झाडू़ केवल एक ही थी और तनख्वाह लेनेवाले उम्मीदवार बहुत, इसलिए छीना-झपटी में क्षण-भर में ही झाडू़ के पुर्जे-पुर्जे उड़ गए। अर्थात झाड़ू के टुकड़े-टुकड़े हो गए। 

जितनी सींके जिसके हाथ पड़ीं, वह उनसे ही उलटे-सीधे हाथ मारने लगा। अम्मा ने सिर पीट लिया। भई, ये बुजुर्ग काम करने दें तो इंसान काम करे। जब जरा-जरा सी बात पर टोकने लगे तो बस, हो चुका काम!

सींके – तीलियाँ

उलटे-सीधे – सही गलत

लेखिका कहती हैं कि जब झाड़ू क्र टुकड़े-टुकड़े हो गए तो जिसके हाथों में झाड़ू की जितनी तीलियाँ लगी, वह उलटे-सीधे हाथ उन तीलियों को इकठ्ठा करने लगा। ये सब नज़ारा देख कर लेखिका की अम्मा ने अपने सिर पर हाथ रख दिया। अब लेखिका कहती हैं कि ये बुजुर्ग लोग बच्चों को काम करने दें तो वे काम करे। जब जरा-जरा सी बात पर बच्चों को टोकते रहेंगे तो बेचारे बच्चे कैसे काम करेंगे। 

असल में झाड़ू देने से पहले जरा-सा पानी छिड़क लेना चाहिए। बस, यह ख्याल आते ही तुरंत दरी पर पानी छिड़का गया। एक तो वैसे ही धूल से अटी हुई थी। पानी पड़ते ही सारी धूल कीचड़ बन गई।

लेखिका कहती हैं कि बच्चों को ना जाने कहाँ से ये बात याद आ गई कि असल में झाड़ू देने से पहले जरा-सा पानी छिड़क लेना चाहिए। बस, ये विचार मन में आते ही बच्चों ने तुरंत दरी पर पानी छिड़कना शुरू कर दिया। अब एक तो वैसे ही हर जगह धूल-ही-धूल फैली हुई थी और बच्चों के पानी डालने से सारी धूल कीचड़ के रूप में बदल गई।

अब सब आँगन से भी निकाले गए। तय हुआ कि पेड़ों को पानी दिया जाए। बस, सारे घर की बालटियाँ, लोटे, तसले, भगोने, पतीलियाँ लूट ली गईं। जिन्हें ये चीजें भी न मिलीं, वे डोंगे-कटोरे और गिलास ही ले भागे।

लेखिका कहती हैं कि अब सभी बच्चों को आँगन से भी निकाला गया क्योंकि उन्होंने काम करने की जगह बहुत काम बड़ा दिया था। आँगन से निकाले जाने के बाद बच्चों ने तय किया कि अब पेड़ों को पानी दिया जाए। बस, फिर क्या था सभी बच्चों ने सारे घर की बालटियाँ, लोटे, तसले, भगोने, पतीलियाँ लूट ली और जिनके हाथ इन में से कोई भी चीज नहीं लगी उन्होंने डोंगे-कटोरे और गिलास ही ले लिए और पेड़ों को पानी देने चल पड़े।

अब सब लोग नल पर टूट पड़े। यहाँ भी वह घमासान मची कि क्या मजाल जो एक बूँद पानी भी किसी के बर्तन में आ सके। ठूसम-ठास! किसी बाल्टी पर पतीला और पतीले पर लोटा और भगोने और डोंगे। पहले तो धक्के चले। फिर कुहनियाँ और उसके बाद बरतन। फौरन बड़े भाइयों, बहनों, मामुओं और दमदार मौसियों, फूफियों की कुमक भेजी गई, फौज मैदान में हथियार फेंककर पीठ दिखा गई।

घमासान – घोर

ठूसम-ठास! – धक्का

कुमक – बुलावा

पीठ दिखा – डर जाना

लेखिका कहती हैं कि जब सब बच्चे पेड़ों के पानी देने के लिए कोई-न-कोई बर्तन ले आए थे तो फिर सभी अब पानी के लिए नल पर टूट पड़े। क्योंकि सभी एक साथ नल से पानी लेने भागे थे तो वहाँ पर भी धक्का-मुक्की शुरू हो गई। ऐसा करने के कारण किसी के भी बर्तन में एक भी बूँद पानी नहीं भर सका। वहाँ पर ऐसी धक्का-मुक्की हो रही थी कि कभी किसी की बाल्टी पर पतीला होता  और कभी पतीले पर लोटा और भगोने और डोंगे अर्थात एक पर एक बर्तन चढ़े जा रहे थे और किसी भी बर्तन में पानी नहीं भर रहा था। पहले तो सिर्फ एक दूसरे को धक्के ही दिए जा रहे थे। फिर कुहनियाँ और उसके बाद बरतनों से भी एक दूसरे पर वार किए जाने लगे। ये सब देख कर जल्दी से बड़े भाइयों, बहनों, मामुओं और दमदार मौसियों, फूफियों को बुलावा भेजा गया ताकि वे अपने-अपने बच्चों को संभल सके। जैसे ही बच्चों की फौज को पता चला वे सब अपने-अपने हथियारों को वहीं मैदान फैंककर डर के भाग गए। 

इस धींगामुश्ती में कुछ बच्चे कीचड़ में लथपथ हो गए जिन्हें नहलाकर कपड़े बदलवाने के लिए नौकरों की वर्तमान संख्या काफी नहीं थी। पास के बंगलों से नौकर आए और चार आना प्रति बच्चा के हिसाब से नहलवाए गए।

धींगामुश्ती – धक्का-मुक्की

लथपथ – भरा हुआ

लेखिका कहती हैं कि पानी भरने और फिर बड़ों की मार से बचने में हुई धक्का-मुक्की में कुछ बच्चे कीचड़ से पूरी तरह भर गए अर्थात् पूरी तरह से मिट्टी से सन गए। घर में जितने भी नौकर-चाकार थे अब उनकी संख्या बच्चों को नहलाने के लिए कम पड़ने लगी थी क्योंकि अब सब पूरी तरह से किचड़ में लथपथ हो चुके थे। सब इतने गंदे हो चुके थे कि उन्हें नहाले और साफ करने के लिए और भी नौकरों की जरूरत पड़ी। आसपास के जो बंगले थे उनके भी नौकर बुला लिए गए और चार आना प्रति बच्चे के हिसाब से नहलवाए गए। 

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हम लोग कायल हो गए कि सचमुच यह सफाई का काम अपने बस की बात नहीं और न पेड़ों की देखभाल हमसे हो सकती है। कम-से-कम मुर्गियाँ ही बंद कर दें। बस, शाम ही से जो बाँस, छड़ी हाथ पड़ी, लेकर मुर्गियाँ हाँकने लगे। ‘चल दड़बे, दड़बे।’

कायल – मान लेना

लेखिका कहती हैं कि सभी बच्चों ने जो भी काम करना चाहा कोई भी काम पूरा और सही से नहीं कर सके। अब अभी बच्चे ये मान चुके थे कि सचमुच यह सफाई का काम बच्चों के बस की बात नहीं है और न ही बच्चे पेड़ों की देखभाल करने में सक्षम हैं। फिर सभी बच्चों ने सोचा कि अगर सफाई का काम और पेड़ों की देखभाल का काम उनके बस का नहीं है तो कम-से-कम मुर्गियाँ ही बंद कर ही सकते हैं। बस, फिर क्या था शाम होते ही जिसके हाथ जो लगा, बाँस, छड़ी लेकर लगे मुर्गियों को दौड़ाने। 

पर साहब, मुर्गियों को भी किसी ने हमारे विरुद्ध भड़का रखा था। ऊट-पटाँग इधर-उधर कूदने लगीं। दो मुर्गियाँ खीर के प्यालों से जिन पर आया चाँदी के वर्क लगा रही थी, दौड़ती-फड़फड़ाती हुई निकल गईं।

 

विरुद्ध – खिलाफ

ऊट-पटाँग – अजीब

लेखिका कहती हैं कि जब सभी बच्चे को लगा कि वे चाहे कोई काम न कर सके हों परन्तु वे मुर्गियों को पकड़ने का काम बहुत ही अच्छे से कर सकते हैं, लेकिन जैसे ही सभी बच्चे मुर्गियों को पकड़ने उनके पीछे भागे तो उन्हें लग रहा था जैसे किसी ने उन मुर्गियों को भी बच्चों की बात न मानने के लिए कहा हो। मुर्गियाँ बड़े अजीब ढ़ग से इधर-उधर कूदने लगी। घर में काम करने वाली आया जहाँ खीर के प्यालों पर चाँदी के वर्क लगा रही थी दो मुर्गियाँ तो, दौड़ती-फड़फड़ाती हुई उसके ऊपर से निकल गईं।

तूफान गुजरने के बाद पता चला कि प्याले खाली हैं और सारी खीर दीदी के कामदानी के दुपट्टे और ताजे धुले सिर पर लगी हुई है। एक बड़ा-सा मुर्गा अम्मा के खुले हुए पानदान में कूद पड़ा और कत्थे-चूने में लुथड़े हुए पंजे लेकर नानी अम्मा की सफेद दूध जैसी चादर पर छापे मारता हुआ निकल गया।

कामदानी – जिस पर कढ़ाई की गई हो

लुथड़े – सने

लेखिका कहती हैं कि जैसे ही बच्चों ने मुर्गियों को दौड़ाना बंद किया तो ऐसा लग रहा था जैसे कोई तूफान गुजर गया हो और फिर सबको पता चला कि उस तूफ़ान में क्या उथल-पुथल मचा था। यह सब रुका तो देखा कि प्याले खाली हैं और सारी खीर दीदी के कढ़ाई किए हुए दुपट्टे और ताजे धुले सिर पर लगी हुई है। लेखिका कहती हैं कि अम्मा पान खाने की शौकीन थी और एक बड़ा-सा मुर्गा अम्मा के खुले हुए पानदान में कूद पड़ा और कत्थे-चूने में सने हुए पंजे लेकर नानी अम्मा की सफेद दूध जैसी धुली हुई चादर पर छापे मारता हुआ निकल गया।

एक मुर्गी दाल की पतीली में छपाक मारकर भागी और सीधी जाकर मोरी में इस तेजी से फिसली कि सारी कीचड़ मौसी जी के मुँह पर पड़ी जो बैठी हुई हाथ-मुँह धो रही थीं। इधर सारी मुर्गियाँ बेनकेल का ऊंँट बनी चारों तरफ दौड़ रही थीं। 

मोरी – नाली

बेनकेल – बिना नकेल

लेखिका कहती हैं कि घर में खाना तैयार हो रहा था और घर में चारों तरफ मुर्गियाँ ही मुर्गियाँ नजर आ रही थी। एक मुर्गी दाल की पतीली में छलाँग मारकर सीधी जाकर नाली में इस तेजी से फिसली कि सारा कीचड़ मौसी जी के मुँह पर उछला, जो बैठी हुई हाथ-मुँह धो रही थीं। मुर्गियाँ इस तरह चारों और दौड़ रही थी जैसे बिना नकेल के ऊँट। बिना नकेल के ऊँट को जिस तरह कंट्रोल नहीं किया जा सकता उसी तरह सभी मुर्गियाँ भी बिना कंट्रोल के इधर-उधर भागती जा रही थी। 

एक भी दड़बे में जाने को राजी न थी। इधर, किसी को सूझी कि जो भेड़ें आई हुई हैं, लगे हाथों उन्हें भी दाना खिला दिया जाए।

दड़बे – मुर्गी का घर

लेखिका कहती हैं कि कोई भी मुर्गी, मुर्गी-घर में जाने को राजी ही नहीं हो रही थी जैसे उन्हें मुर्गी-घर में जाना पसंद ही न हो। दूसरी ओर, अब बच्चों का ध्यान मुर्गियों से हट कर घर की ओर आती हुई भेड़ों की तरफ गया। किसी बच्चे को सूझी कि जो भेड़ें आई हुई हैं, लगे हाथों उन्हें भी दाना या भोजन खिला दिया जाए।  

दिन-भर की भूखी भेड़ें दाने का सूप देखकर जो सबकी सब झपटीं तो भागकर जाना कठिन हो गया। लष्टम-पष्टम तख्तों पर चढ़ गईं। पर भेड़-चाल मशहूर है। उनकी नजर तो बस दाने के सूप पर जमी हुई थी। पलंगों को फलाँगती, बरतन लुढ़काती साथ-साथ चढ़ गईं।

मशहूर – प्रसिद्ध 

फलाँगती – छलाँग 

लेखिका कहती हैं कि दिन-भर की भूखी भेड़ों ने जब अपना भोजन देखा तो एकदम सबकी सब उसपर एकसाथ ही झपती जिसके कारण बच्चों का वहाँ से भागकर जाना कठिन हो गया। लेखिका कहती हैं कि भेड़-चाल तो मशहूर है ही, जा;जल्दबाज़ी में भेड़ें एक-दूसरे को धक्का देती हुई तख़्ते के ही ऊपर से अपने भोजन पर टूट पड़ी। पलंगों के ऊपर से छलाँग लगती हुई, बरतनों को लुढ़काती हुई साथ-साथ चढ़ गईं। कुछ भी सामने आया उस सब से टकाराती हुई उन्हें इधर-उधर लुढ़काती हुई वह छलांग मारती हुई भेड़े अपने भोजन के पास पहुँच गई।

तख्त पर बानी दीदी का दुपट्टा फैला हुआ था जिस पर गोखरी, चंपा और सलमा-सितारे रखकर बड़ी दीदी मुगलानी बुआ को कुछ बता रही थीं। भेड़ें बहुत निःसंकोच सबको रौंदती, मेंगनों का छिड़काव करती हुई दौड़ गईं।

रौंदती – कुचलना

दौड़ – भाग

लेखिका कहती हैं कि जिस तख़्त को पार करती हुई भेड़े जा रही थी व तख्त पर बानी दीदी का दुपट्टा फैला हुआ था, उन्होंने उस पर गोखरी, चंपा और सलमा-सितारे रखे हुए थे और बड़ी दीदी मुगलानी बुआ को कुछ बता रही थीं। उसी समय वहाँ से भेड़े गुजारी तो भेड़े बिना किसी के डर के सबको कुचलती हुई और मनकों का छिड़काव करती हुई वहाँ से सीधे अपने भोजन की और भाग रही थी। 

जब तूफान गुजर चुका तो ऐसा लगा जैसे जर्मनी की सेना टैंकों और बमबारों सहित उधर से छापा मारकर गुजर गई हो। जहाँ-जहाँ से सूप गुजरा, भेड़ें शिकारी कुत्तों की तरह गंध सूँघती हुई हमला करती गईं।

लेखिका कहती हैं कि जब भेड़ों ने घर में सारा सामान इधर-उधर बिखेर दिया तो ऐसा लग रहा था जैसे जर्मनी की सेना अपने टैंकों और बमबारों के साथ छापा मारकर वहाँ से गुजर गई हो। लेखक कहता है कि जिस बर्तन में भेड़ों के लिए दाना तैयार करके रखा गया था, उसकी खुशबु पाते ही भेड़े शिकारी कुत्तों की तरह उस पर टूट पड़ी।

हज्जन माँ एक पलंग पर दुपट्टे से मुँह ढाँके सो रही थीं। उन पर से जो भेड़ें दौड़ीं तो न जाने वह सपने में किन महलों की सैर कर रही थीं, दुपट्टे में उलझी ‘मारो-मारो’ चीखने लगीं।

लेखिका कहती हैं कि उसकी हज्जन माँ एक पलंग पर दुपट्टा मुँह पर रखे हुए पता नहीं किन महलों में सैर करते हुए सो रही थी। अचानक भेड़ें उनकी पलंग के ऊपर से छलाँग मारती हुई गई और उनकी चारपाई से टकाराई तो अचानक हड़बड़ा कर उठी, घबराहट में वह अपने दुपट्टे में ही उलझ गई और मारो-मारो चीखने लगी। 

इतने में भेड़ें सूप को भूलकर तरकारीवाली की टोकरी पर टूट पड़ीं। वह दालान में बैठी मटर की फलियाँ तोल-तोल कर रसोइए को दे रही थी। वह अपनी तरकारी का बचाव करने के लिए सीना तान कर उठ गई।

तरकारीवाली – सब्ज़ीवाली

तरकारी – सब्ज़ी

लेखिका कहती हैं कि अब भेड़ों को सब्जी-वाली की सब्जियाँ नजर आ गई और वह अपना खाना भूलकर उन सब्जियों के ऊपर टूट पड़ीं। सब्जी-वाली आगन में बैठी मटर की फलियों को तोड़ कर रसोइए को दे रही थी ताकि शाम की सब्जि बनाई जा सके। जैसे ही उसने देखा कि भेड़ें उसकी तरफ सब्जियों को खाने के लिए दौड़ी चली आ रही हैं तो अपनी सब्जियों के बचाव के लिए सीना तान कर खड़ी हो गई। 

आपने कभी भेड़ों को मारा होगा, तो अच्छी तरह देखा होगा कि बस, ऐसा लगता है जैसे रुई के तकिए को कूट रहे हों। भेड़ को चोट ही नहीं लगती। बिल्कुल यह समझकर कि आप उससे मज़ाक कर रहे हैं। वह आप ही पर चढ़ बैठेगी। जरा-सी देर में भेड़ों ने तरकारी छिलकों समेत अपने पेट की कढ़ाही में झौंक दी।

कूट – पीटना

लेखिका कहती हैं कि यदि आप में से किसी ने कभी भी भेड़ों को मारा होगा, तो आपको अच्छी तरह से मालूम होगा कि जब भेड़ को पीटा जाता है तो ऐसा लगता है जैसे रुई के तकिए को पीट रहे हों। भेड़ों पर कोई असर ही नहीं होता, भेड़ को चोट ही नहीं लगती। भेड़ें यह समझकर कि आप उससे मज़ाक कर रहे है। वह आप ही पर चढ़ जाएगी। जरा-सी देर में भेड़ों ने सब्ज़ी छिलको समेत सारी की सारी अपने पेट की कढ़ाई में झौंक दी, जिस तरह से कढ़ाई में एक साथ हम सब्जियाँ झौंक देते है। भेड़ों ने भी सारी की सारी सब्जियाँ चट कर दी।

इधर यह प्रलय मची थी, उधर दूसरे बच्चे भी लापरवाह नहीं थे। इतनी बड़ी फौज थी-जिसे रात का खाना न मिलने की धमकी मिल चुकी थी। वे चार भैंसों का दूध दुहने पर जुट गए।

लेखिका कहती हैं कि इधर अभी भेड़ों द्वारा मचाया गया यह तूफान थमा भी नहीं था कि उधर दूसरे बच्चे भी लापरवाह नहीं थे। एक तो भेड़ों ने उधम मचा रखा था तो इधर बच्चें भी काम नहीं थे। बच्चों की इतनी बड़ी फौज थी – जिसे रात का खाना न मिलने की धमकी मिल चुकी थी कि  सही तरीके से कोई काम नहीं करेगें तो रात का खाना नहीं मिलेगा। तो बच्चे अब अपने अगले काम को करने में जुट गए। अब उन्हें एक नया काम सुझ गया कि चलो भैसों का दूध ही निकाल दे।

धुली-बेधुली बाल्टी लेकर आठ हाथ चार थनों पर पिल पड़े। भैंस एकदम जैसे चारों पैर जोड़कर उठी और बाल्टी को लात मारकर दूर जा खड़ी हुई।

लेखिका कहती हैं कि जैसे ही बच्चों ने भैंस का दूध निकालने की ठानी तो वे यह बिना देखे कि बाल्टी धूली है या नहीं धूली है उसे लेकर लेकर भैंस के पास पहुँच गए और आठ हाथ चार थनों से दूध निकालने के लिए बड़े। भैस भी एकदम से घबरा गई और अपने चारों पैरों से एकदम से छलाँग लगा दी और बाल्टी को लात मारकर खुद दूर खड़ी हो गई।

तय हुआ कि भैंस की अगाड़ी-पिछाड़ी बाँध दी जाए और फिर काबू में लाकर दूध दुह लिया जाए। बस, झूले की रस्सी उतारकर भैंस के पैर बाँध दिए गए।

अगाड़ी-पिछाड़ी – आगे-पीछे

दूध दुह – निकलना

लेखिका कहती हैं कि जब भैंस बाल्टी में लात मार कर दूर खड़ी हो गई तो बच्चों ने तय किया कि भैंस की आगे-पीछे की जो टाँगे बाँध दी जाए और फिर काबू में लाकर दूध दुह लिया जाए। बस, फिर क्या बच्चे अपने झूले की रस्सी उतारकर लाए और भैंस के पैर बाँध दिए गए। 

पछले दो पैर चाचा जी की चारपाई के पायों से बाँध, अगले दो पैरों को बाँधने की कोशिश जारी थी कि भैंस चौकन्नी को गई। छूटकर जो भागी तो पहले चाचा जी समझे कि शायद कोई सपना देख रहे हैं। फिर जब चारपाई पानी के ड्रम से टकराई और पानी छलककर गिरा तो समझे कि आँधी-तूफान में फँसे हैं। साथ में भूचाल भी आया हुआ है। फिर जल्दी ही उन्हें असली बात का पता चल गया और वह पलंग की दोनों पटियाँ पकड़े, बच्चों को छोड़ देनेवालों को बुरा-भला सुनाने लगे। यहाँ बड़ा मजा आ रहा था। भैंस भागी जा रही थी और पीछे-पीछे चारपाई और उस पर बैठे हुए थे चाचा जी।

भूचाल – भूकंप

लेखिका कहती हैं कि जब बच्चों ने भैंस का दूध दुने के लिए उसे बाँधना चाहा तो उन्होंने भैंस के पछले दो पैर चाचा जी की चारपाई के पायों से बाँध दिए, जिस पर चाचा जी सो रहे थे और जैसे ही अगले दो पैरों को बाँधने की कोशिश करने लगे तो भैस चौकन्नी हो गई और भैस चारपाई को अपने साथ खींच कर भागने लगी भैंस के भागते ही चाचा जी की चारपाई भी भैंस के साथ ही पीछे-पीछे घसीटने लगी और चाचा जी को ऐसा लगा कि वे कोई सपना देख रहें है उन्हें मालूम ही नहीं था कि बच्चों ने उनके साथ कैसी शरारत कर दी है। फिर जब चारपाई पानी के ड्रम से टकराई और पानी छलककर चाचा जी पर गिरा तो वे समझे कि आँधी-तूफान में फँस गए हैं और साथ में भूकंप भी आ रहा है। फिर जल्दी ही चाचा जी को असली बात का पता चल गया कि असल में क्या हुआ है? बच्चों ने भैस को चारपाई के साथ बाँध दिया था। चाचा जी ने चारपाई की दोनों तरफ की लकड़ियों की पट्टियों को पकड़ लिया और  बच्चों को इस तरह छोड़ देनेवालों को बुरा-भला सुनाने लगे कि इन शैतान बच्चों को किसने खुला छोड़ दिया। बच्चों को ऐसा दृश्य देखकर बहुत ही प्रसन्नता हो रही थी। भैंस भागी जा रही थी और पीछे-पीछे चारपाई पर चाचा जी घसीटते हुए चले आ रहे थे। 

ओहो! एक भूल ही हो गई यानी बछड़ा तो खोला ही नहीं, इसलिए तत्काल बछड़ा भी खोल दिया गया। तीर निशाने पर बैठा और बछड़े की ममता में व्याकुल होकर भैंस ने अपने खुरों को ब्रेक लगा दिए। बछड़ा तत्काल जुट गया।

तत्काल – तुरंत

व्याकुल – बेचैन

लेखिका कहती हैं कि जब बच्चों ने देखा की भैस भागी जा रही है और चारपाई पर चाचा जी उसके साथ घसीटे जा रहे हैं तब बच्चों को ध्यान आया की भैस का बछड़ा खोल दिया जाना चाहिए। इससे भैस रूक जाएगी और हुआ भी वैसा ही। बछड़े के प्यार में बेचैन होकर भैंस ने अपने खुरों को ब्रेक लगा दिए क्योंकि अगर वो ऐसा नहीं करती तो उसका बछड़ा भी घायल हो सकता था और बछड़े को देखकर उसने तुरंत अपने पाँव रोक लिए। बछड़ा भी भूखा था और अपनी माँ भैस को देखकर तुरंत दूध पीने में जूट गया।

दुहने वाले गिलास-कटोरे लेकर लपके क्योंकि बाल्टी तो छपाक से गोबर में जा गिरी थी। बछड़ा फिर बागी हो गया। कुछ दूध जमीन पर और कपड़ों पर गिरा। दो-चार धारें गिलास-कटोरों पर भी पड़ गईं। बाकी बछड़ा पी गया। यह सब कुछ, कुछ मिनट के तीन-चौथाई में हो गया।

बागी – विद्रोही

लेखिका कहती हैं कि जैसे ही बच्चों ने देखा कि भैंस शांत हो गई है वे सभी गिलास-कटोरे लेकर दूध दुहने लपके क्योंकि हड़बड़ी में बाल्टी तो छपाक से गोबर में जा गिरी थी। बछड़ा  भी अब विद्रोही हो गया था वह इधर-उधर भागने लगा था। दूध की कुछ बूंदें जमीन पर और कुछ बच्चों के कपड़ों पर गिरी। दो-चार धारें गिलास-कटोरों पर भी पड़ गईं। बाकी बछड़ा पी गया। यह सब इतनी जल्दी हुआ कि ऐसा लग रहा था जैसे कोई तूफान आया हो। सब ओर सब बिखरा हुआ था।

बच्चे बाहर किए गए। मुर्गियाँ बाग में हँकाई गईं। मातम-सा मनाती तरकारी वाली के आँसू पोंछे गए और अम्मा आगरा जाने के लिए सामान बाँधने लगीं। ‘‘या तो बच्चा-राज कायम कर लो या मुझे ही रख लो। नहीं तो मैं चली मायके,’’ अम्मा ने चुनौती दे दी।

मातम – शोक मनाना

लेखिका कहती हैं कि बच्चों ने इतना सब काम बिगड़ दिया था कि घर की हलात बहुत ही बुरी हो गई थी और बड़ों ने गुस्से में आकर सभी बच्चों को घर से बाहर निकाल दिया था। मुर्गियों को बगीचे की तरफ भेजा गया। सब्जी वाली  के आँसू पौंछे गए और उसे हौसला दिया गया क्योंकि उसकी सारी सब्जियाँ भेड़ें खा गई थी। ऐसा लग रहा था जैसे घर में शोक मनाया जा रहा हो। बच्चों ने सारा काम इतना बिगड़ दिया था कि लेखिका की अम्मा को बहुत गुस्सा आ रहा था। बच्चों से तंग आकर लेखिका की अम्मा आगरा जाने की धमकी देकर आपना सामान बाँधने लगीं। वे कहने लगी कि या तो बच्चे ही मानमानी कर लें या फिर वे घर में रहेंगी। वे इतने गुस्से में थी कि उन्होंने यहाँ तक कह दिया कि उनके और बच्चों में से एक ही घर में रहेगा नहीं तो वे मायके चली जाएँगी।

और अब्बा ने सबको कतार में खड़ा करके पूरी बटालियन का कोर्ट मार्शल कर दिया। ‘‘अगर किसी बच्चे ने घर की किसी चीज को हाथ लगाया तो बस, रात का खाना बंद हो जाएगा।’’

कतार – पंक्ति

बटालियन – पलटन

कोर्ट मार्शल – सैनिकों को मिलने वाली सज़ा

लेखिका कहती हैं कि जब लेखिका की माँ ने परेशान हो कर मायके जाने की बात कही तो लेखिका के अब्बा ने सब बच्चों को एक पंक्ति में खड़ा करके बच्चों की पूरी फौज़ को उनकी सज़ा सुनाते हुए कठोर दंड़  तौर पर कहा कि अगर अब किसी बच्चे ने घर के किसी सामान को हाथ लगाया तो उन्हें रात का खाना नहीं दिया जाएगा। 

ये लीजिए! इन्हें किसी करवट शांति नहीं। हम लोगों ने भी निश्चय कर लिया कि अब चाहे कुछ भी हो जाए, हिलकर पानी भी नहीं पिएँगे।

करवट – तरफ

लेखिका कहती हैं कि जब बच्चों ने लेखक के अब्बा की बात सुनी कि अब अगर किसी बच्चे ने घर की किसी चीज को हाथ लगाया तो बच्चों को रात का खाना नहीं मिलेगा, तो बच्चों ने सोचा की काम कारो तो भी मुश्किल है, न करो तो भी मुश्किल है। बच्चे चाहे कुछ भी कर लें बड़ों को शांति ही नहीं मिलती। इस पर बच्चों ने निश्चय कर लिया कि अब चाहे कुछ भी हो, कोई उन्हें कोई भी काम बताए वे कुछ नहीं करेगें, हिलकर पानी भी नहीं पिएँगे। अर्थात् बात जहाँ से शुरू हुई थी वहीं पर आकर खत्म हो गई।
 
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कामचोर पाठ सार

इस कहानी द्वारा लेखिका यह बताती है कि किसी कामचोर बच्चे से काम कराने से पहले सही तरीके से उसे काम करना सीखना चाहिए नहीं तो सब उल्टा-पुलटा हो जाता है। प्रस्तुत पाठ ‘कामचोर’ में भी जब बच्चों को घर के कुछ काम जैसे गन्दी दरी को झाड़ कर साफ करना, आँगन में पड़े कूड़े को साफ़ करना, पेड़ों में पानी देना आदि बताए गए और कहा गया कि अगर वे यह सब काम करेंगे तो उन्हें कुछ-न-कुछ ईनाम के तौर पर मिलेगा। ईनाम के लालच में बच्चों ने घर के काम करने की ठान ली। परन्तु बच्चों ने जब कोई भी कोई भी काम करना शुरू किया किसी भी काम को सही से खत्म करने के बजाए उन्होंने सारे कामों को और ज्यादा ख़राब कर दिया। जिससे घर के सभी सदस्य परेशान हो गए और बच्चों को घर से बाहर निकाल दिया और कहा कि अगर अब किसी भी बच्चे ने घर के किसी भी सामान को हाथ लगाया तो उन्हें रात का खाना नहीं मिलेगा। इस पर बच्चों को समझ नहीं आ रहा था कि घर वाले न तो उन्हें काम करने देते हैं और न ही बैठे रहने देते हैं। लेखिका के अनुसार ऐसा इसलिए हो रहा था क्योंकि घर वालों ने बच्चों को काम तो बता दिए थे परन्तु काम करने का सही तरीका नहीं समझाया था। 
 
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कामचोर प्रश्न अभ्यास (महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर )

प्र-1 कहानी में ‘मोटे-मोटे किस काम के हैं’? किन के बारे में और क्यों कहा गया?

उ. कहानी में ‘मोटे-मोटे किस काम के हैं’ बच्चों के बारे में कहा गया है क्योंकि वे घर के कामकाज में जरा सी भी मदद नहीं करते थे तथा दिन भर खेलते-कूदते रहते थे।

प्र-2 बच्चों के उधम मचाने के कारण घर कि क्या दुर्दशा हुई?

उ. बच्चों के उधम मचाने से घर की सारी व्यवस्था ख़राब हो गई। मटके-सुराहियाँ इधर-उधर लुढक गए। घर के सारे बर्तन अस्त-व्यस्त हो गए। पशु-पक्षी इधर-उधर भागने लगे। घर में धुल, मिट्टी और कीचड़ का ढेर लग गया। मटर की सब्जी बनने से पहले भेड़ें खा गई। मुर्गे-मुर्गियों के कारण कपड़े गंदे हो गए।

प्र-3 ‘या तो बच्चा राज कायम कर लो या मुझे ही रख लो।’ अम्मा ये कब कहा और इसका परिणाम क्या हुआ?

उ. अम्मा ने बच्चों द्वारा किए गए घर की हालत को देखकर ऐसा कहा था। जब पिताजी ने बच्चों को घर के काम काज में हाथ बँटाने की नसीहत दी तब उन्होंने किया इसके विपरीत सारे घर को तहस-नहस किया। चारों तरफ़ समान बिखरा दिया, मुर्गियों और भेड़ों को घर में घुसा दिया। जिसका परिणाम यह हुआ कि काम करने के बजाए उन्होंने घर का काम कई गुना बढ़ा दिया जिससे अम्मा जी बहुत परेशान हो गई थीं। उन्होंने पिताजी को साफ़-साफ़ कह दिया कि या तो बच्चों से करवा लो या मैं मायके चली जाती हूँ। इसका परिणाम ये हुआ कि पिताजी ने घर की किसी भी चीज़ को बच्चों को हाथ ना लगाने की हिदायत दे डाली नहीं तो सज़ा के लिए तैयार रहने को कहा।

प्र-4 ‘कामचोर’ कहानी क्या संदेश देती है ?

उ. यह एक हास्यप्रधान कहानी है। यह कहानी संदेश देती है की बच्चों को उनके स्वभाव के अनुसार, उम्र और रूचि ध्यान में रखते हुए काम करना चाहिए। जिससे वे बचपन से ही रचनात्मक कार्यों में लगन तथा रूचि का परिचय दे सकें। उनके ऊपर बड़ों की जिम्मेदारी थोपना बचपन को कुचलना है। अतः बड़ों को चाहिए की समझदार बच्चा बनकर बच्चों के बीच रहें और उन्हें सही दिशा प्रदान करें।

प्र-5 क्या बच्चों ने उचित निर्णय लिया कि अब चाहे कुछ भी हो जाए, हिलकर पानी भी नहीं पिएँगें ?

उ. बच्चों द्वारा लिया गया निर्णय उचित नहीं था क्योंकि स्वयं हिलकर पानी न पीने का निश्चय उन्हें और भी कामचोर बना देगा। उन्हें काम तो करना चाहिए पर समझदारी के साथ। बच्चों को घर-परिवार के काम धंधों को आपस में बाँट कर, बड़ों से समझ कर पूरा करना चाहिए।

उन्हें अपने खाली समय का सदुपयोग करना चाहिए तथा रचनात्मक कार्यों में मन लगाते हुए परिवार-वालों का सहयोग करना चाहिए।

भैंस के पिछले दो पैर कैसे बांधे गए?

कामचोर तय हुआ कि भैंस की अगाड़ी-पिछाड़ी बाँध दी जाए और फिर काबू में लाकर दूध दुह लिया जाए। बस, झूले की रस्सी उतारकर भैंस के पैर बाँध दिए गएपिछले दो पैर चाचा जी की चारपाई के पायों से बाँध, अगले दो पैरों को बाँधने की कोशिश जारी थी कि भैंस चौकन्नी हो गई।

कामचोर कहानी के बच्चों को रात को खाना ना मिलने की धमकी क्यों मिली थी?

बच्चों की इतनी बड़ी फौज थी – जिसे रात का खाना न मिलने की धमकी मिल चुकी थी कि सही तरीके से कोई काम नहीं करेगें तो रात का खाना नहीं मिलेगा। तो बच्चे अब अपने अगले काम को करने में जुट गए। अब उन्हें एक नया काम सुझ गया कि चलो भैसों का दूध ही निकाल दे। धुली-बेधुली बाल्टी लेकर आठ हाथ चार थनों पर पिल पड़े।

रसोई को क्या तौलकर दी जा रही थी?

इतने में भेड़ें सूप को भूलकर तरकारीवाली की टोकरी पर टूट पड़ीं। वह दालान में बैठी मटर की फलियाँ तोल-तोल कर रसोइए को दे रही थी

कामचोर कहानी से हमें क्या संदेश मिलता है?

कामचोर से यही सीख मिलती है कि काम के लिए समझदारी होना आवश्यक है। बिना सोचे समझे किया गया काम हमेशा नुकसान ही देता है, जैसे पिताजी द्वारा करने को दिए गए कामों को अपनी नासमझी से बच्चों ने बर्बाद कर दिया। अगर वो इसी काम को आराम से व समझदारी से करते तो उनके घर का बुरा हाल न होता।