हिंदी साहित्य के काल विभाजन और नामकरण में
आचार्य रामचंद्र शुक्ल द्वारा तत्कालीन युगीन प्रवृत्तियों को सर्वाधिक प्राथमिकता दी गई है। विभिन्न प्रवृत्तियों की प्रमुखता के आधार पर ही उन्होने साहित्य के अलग-अलग कालखण्डों का नामकरण किया है। इसी मापदंड को अपनाते हुए हिंदी साहित्य के उत्तर मध्य काल अर्थात 1700-1900 वि. के कालखण्ड में रीति तत्व की प्रधानता होने के कारण शुक्ल जी ने इस कालखण्ड को ‘रीति काल’ नाम दिया। इस समय अवधि में अधिकांश कवियों द्वारा काव्यांगों के लक्षण एवं उदाहरण देने वाले ग्रंथों की रचना की गई। अनेक हिंदी कवियों द्वारा आचार्यत्व की शैली अपनाते हुए लक्षण ग्रंथों की परिपाटी पर अलंकार, रस, नायिका भेद आदि काव्यांगों का विस्तृत विवेचन किया गया। रीति की यह धारणा इतनी बलवती थी कि कवियों /आचार्यों के मध्य इस बात पर भी विवाद होता थी कि अमुक पंक्ति में कौन सा अलंकार, रस, शब्दशक्ति या ध्वनि है। इन्ही सब तत्वों या प्रवृत्तियों को ध्यान में रखते हुए उत्तर मध्य काल का नामकरण ‘रीतिकाल’ के रूप में किया गया। ‘रीति’ शब्द से अभिप्रायः-
‘रीतिकाल’ नाम पर आपत्तिः-हिंदी साहित्य के अनेक आलोचक और इतिहासकार शुक्ल जी के नामकरण से पूर्णतः सहमत नहीं हैं। उनके अनुसार ‘रीति’ शब्द उत्तर मध्य काल की सभी प्रवृत्तियों अथवा विशेषताओं को व्यक्त करने में समर्थ नहीं है। विभिन्न विद्वानों द्वारा साहित्य के इस कालखण्ड को शृंगार काल, कला काल, अलंकृत काल तथा अंलकार काल आदि नाम देते हुए अपने मत व्यक्त किए गए और इनके समर्थन में अनेक तर्क प्रस्तुत दिए गए। देखा जाए तो कला काल, अलंकृत काल व अलंकार काल में कोई विशेष भिन्नता नहीं हैं तथा ‘रीति’ से भी अधिक अंतर नहीं हैं। ‘शृंगार काल’ नाम अवश्य ही ‘रीति’ से कुछ पार्थक्य सूचित करता है। कुछ विद्वानों को रीति काल में घनानंद, ठाकुर, बोधा आदि द्वारा रची गयी शृंगारिक रचनाओं को रीतिमुक्त होने के कारण रीतिकाल में लाने से हिचक है। शृंगार काल नाम देने से यह हिचक स्वत: ही समाप्त हो जाती है। आचार्य विश्वनाथ प्रसाद मिश्र तथा डा. नागेन्द्र ने ‘रीति’ शब्द को संकुचित अर्थ में ग्रहण करते हुए इसे ‘काव्य रीति’ का संक्षिप्त रूप ही माना है और इसकी अनुपयुक्तता सिद्ध करने का प्रयास किया है। आचार्य मिश्र का तर्क - ‘विचार करने पर रीति ग्रंथ प्रणेता अधिकतर आचार्य सिद्ध नहीं होते। इन्होंने रीति का पल्ला सहारे के लिए पकड़ा, कहना ये चाहते थे ‘शृंगार’ ही। समग्रता से विश्लेषण किया जाए तो मिश्र जी द्वारा दिया गया यह तर्क पूर्णता के द्योतक नहीं हैं क्योंकि रीतिकाल में वीर रस के प्रसिद्ध कवियों और नीति काव्य के प्रणेताओं में शृंगार लेशमात्र भी नहीं हैं। सूक्ष्म दृष्टि से देखने पर वीर रस, नीति अथवा स्वछंद काव्य रचयिताओं की काव्य सर्जना प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से ‘रीति’ से अवश्य प्रभावित रही हैं। रीतिकाल के अन्य नामः-अनेक विद्वान शुक्ल जी द्वारा दिए गए इस नाम से असहमत हैं और उन्होने रीतिकाल के अन्य नाम सुझाए हैं। कुछ विद्वानों ने दिए गए प्रमुख नाम निम्नलिखित हैंः-
अनेक विद्वान रीति नाम से ही सहमत हैं, यद्यपि शृंगार काल में भी विशेष अनौचित्य नहीं हैं। फिर भी कई कारणों से रीतिकाल नाम ही विशेष प्रचलित और सर्वमामन्य हो सका। अतः निष्कर्ष रूप में देखा जाए तो ‘रीतिकाल’ नाम देना ही अधिक उचित व तर्कसंगत प्रतीत होता है और संयोग से शुक्ल जी द्वारा दिया गया यह नाम ही सर्वाधिक लोकप्रिय और प्रचलित हुआ।
नमस्कार दोस्तों ! आज हम आपसे RitiKal | रीतिकाल काव्य धारा का नामकरण एवं विभाजन के बारे में चर्चा करने जा रहे है। इसमें रीतिकाल के प्रमुख कवि एवं उनकी काव्य धाराओं का तुलनात्मक अध्ययन, रीतिकाल के प्रवर्तक, रीतिकाल की कविताओं की प्रमुख विशेषताएं और इसके बारे में परीक्षा की दृष्टि से कुछ महत्वपूर्ण तथ्य आदि पर नज़र डाल रहे है। तो आइए RitiKal | रीतिकाल काव्य धारा के बारे में विस्तार से जानते है। RitiKal | रीतिकाल : हिंदी साहित्य के विकास क्रम में रीतिकाल एक महत्वपूर्ण काल है। इस काल में काव्य के कला पक्ष पर अधिक सूक्ष्मता और व्यापकता के साथ कार्य किया गया है। इस काल में श्रृंगार रस की प्रधानता है। रीति काल का समय 1643 ई. से 1843 ई. माना जाता है। रीति शब्द से तात्पर्य : काव्यांगों की बंधी बंधाई परिपाटी का अनुसरण करना। रीतिबद्ध और रीति सिद्ध कवि इस परिभाषा में आ जाते हैं। रीतिमुक्त पर जो परिभाषा लागू है : आचार्य वामन के अनुसार :
वे आगे विशिष्ट शब्द को स्पष्ट करते हुए लिखते हैं :
विशेषो गुणात्मा: अर्थात् – विशिष्ट पद रचना ही रीति है। रीतिमुक्त कविता का अंत: भाव इस परिभाषा में हो जाता है। RitiKal | रीतिकाल का नामकरणRitiKal | रीतिकाल का नामकरण : रीतिकाल का नामकरण करने वाले प्रथम विद्वान ग्रियर्सन है। आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने रीति शब्द इन्हीं से ग्रहण किया है।
RitiKal | रीतिकाल के प्रवर्तकRitiKal | रीतिकाल के प्रवर्तक : डॉ. नगेंद्र ने रीतिकाल का प्रवर्तक केशवदास को माना है। आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने रीतिकाल का अखंडित प्रवर्तक चिंतामणि त्रिपाठी को माना है।
RitiKal | रीतिकाल के कवियों का विभाजनRitiKal | रीतिकाल के कवियों का विभाजन : रीतिकाल में कवियों की तीन धाराएं बनती है :
1. रीतिबद्ध कवि | Ritibadh Kavi :रीतिबद्ध कवि से आशय है : रीति से आबंद्ध।
2. रीतिसिद्ध कवि | Ritisidh Kavi :
3. रीतिमुक्त कवि | Ritimukt Kavi :
RitiKal | रीतिकाल काव्य धारा का तुलनात्मक अध्ययन :आइये रीतिकाल के कवियों की तीनों धाराओं को अच्छे से समझने के लिए तुलनात्मक अध्ययन करते है :
Ritimukt | रीतिमुक्त कविता की विशेषताएंरीतिमुक्त कवियों को स्वच्छंद कवि कहा जाता है। स्वच्छंदतावाद से तात्पर्य : असल में स्वच्छंदतावाद एक विद्रोह है – जड़ शास्त्रीयता एवं प्रणाली बद्धता के खिलाफ; जो भावधारा को गतकालिक एवं निष्प्राण बना देता है। स्वच्छंदतावाद का मार्ग प्रकृति और लोकजीवन के मध्य से गुजरता है, जो काव्य को ताजगी प्रदान करता है। रीतिमुक्त कविता की प्रमुख विशेषताओं को निम्न बिन्दुओं के माध्यम से समझ सकते है :
RitiKal | रीतिकाल से कुछ महत्वपूर्ण तथ्यरीतिकाल से कुछ महत्वपूर्ण तथ्य आपके लिए परीक्षा की दृष्टि से बहुत उपयोगी है। जिन्हें जानना आपके लिए जरूरी है। ये कुछ इस प्रकार से है :
इसप्रकार दोस्तों ! उम्मीद करते है कि आपको रीतिकाल और उसकी प्रमुख काव्य धारा के बारे में समझ में आया होगा। अब आपको RitiKal | रीतिकाल काव्य धारा का नामकरण एवं विभाजन के सन्दर्भ में अच्छी जानकारी हो गयी होगी।हम आगे के नोट्स में रीतिकाल के प्रमुख कवियों का अध्ययन करेंगे। यह भी जरूर पढ़े :
एक गुजारिश :दोस्तों ! आशा करते है कि आपको “RitiKal | रीतिकाल काव्य धारा का नामकरण एवं विभाजन” के बारे में हमारे द्वारा दी गयी जानकारी पसंद आयी होगी I यदि आपके मन में कोई भी सवाल या सुझाव हो तो नीचे कमेंट करके अवश्य बतायें I हम आपकी सहायता करने की पूरी कोशिश करेंगे I नोट्स अच्छे लगे हो तो अपने दोस्तों को सोशल मीडिया पर शेयर करना न भूले I नोट्स पढ़ने और HindiShri पर बने रहने के लिए आपका धन्यवाद..! रीतिकाल के प्रवर्तक कौन है?नगेंद्र ने रीतिकाल का प्रवर्तक केशवदास को माना है। आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने रीतिकाल का अखंडित प्रवर्तक चिंतामणि त्रिपाठी को माना है।
रीतिकाल के प्रथम आचार्य और रीतिकाल के प्रवर्तक कौन थे?रीतिकाल का प्रवर्तक तो चिंतामणि को मानना उचित है। इसमें कोई सन्देह नहीं कि चिन्तामणि में केशव सा प्रभावशली पाण्डित्य एवं अचार्यत्व का आभाव है। पर चिंतामणि त्रिपाठी के बाद रीतिग्रंथों की अविच्छन्न परंपरा के प्रचलित हो जाने से रीतिकाव्य के प्रवर्तक हाने का श्रेय उन्हीं को मिलना चाहिए।
रीतिकाल के अंतिम बड़े आचार्य कौन है?सबको मन हर्षित करे, ज्यों विवाह में गारि।।'' आचार्य शुक्ल ने रीतिकाल का प्रर्वतक आचार्य चिन्तामणी को माना है। इस काल की मुख्य विशेषता श्रृंगारिकता एवं रीति निरूपण है। रीतिकाल का अंतिम कवि 'ग्वाल' को माना जाता है।
रीतिकाल कितने प्रकार के होते हैं?आचार्य विश्वनाथ प्रसाद मिश्र ने रीतिकाल को 'श्रृंगारकाल' नाम देते हुए उसे तीन वर्गां में विभाजित किया- 1. रीतिबद्ध 2. रीति सिद्ध 3. रीतिमुक्त।
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