रीतिकाल के प्रवर्तक आचार्य कौन हैं? - reetikaal ke pravartak aachaary kaun hain?

रीतिकाल का नामकरण और औचित्य


हिंदी साहित्य के काल विभाजन और नामकरण में आचार्य रामचंद्र शुक्ल द्वारा तत्कालीन युगीन प्रवृत्तियों को सर्वाधिक प्राथमिकता दी गई है। विभिन्न प्रवृत्तियों की प्रमुखता के आधार पर ही उन्होने साहित्य के अलग-अलग कालखण्डों का नामकरण किया है। इसी मापदंड को अपनाते हुए हिंदी साहित्य के उत्तर मध्य काल अर्थात 1700-1900 वि. के कालखण्ड में रीति तत्व की प्रधानता होने के कारण शुक्ल जी ने इस कालखण्ड को ‘रीति काल’ नाम दिया।

रीतिकाल के प्रवर्तक आचार्य कौन हैं? - reetikaal ke pravartak aachaary kaun hain?

इस समय अवधि में अधिकांश कवियों द्वारा काव्यांगों के लक्षण एवं उदाहरण देने वाले ग्रंथों की रचना की गई। अनेक हिंदी कवियों द्वारा आचार्यत्व की शैली अपनाते हुए लक्षण ग्रंथों की परिपाटी पर अलंकार, रस, नायिका भेद आदि काव्यांगों का विस्तृत विवेचन किया गया। रीति की यह धारणा इतनी बलवती थी कि कवियों /आचार्यों के मध्य इस बात पर भी विवाद होता थी कि अमुक पंक्ति में कौन सा अलंकार, रस, शब्दशक्ति या ध्वनि है। इन्ही सब तत्वों या प्रवृत्तियों को ध्यान में रखते हुए उत्तर मध्य काल का नामकरण ‘रीतिकाल’ के रूप में किया गया।



‘रीति’ शब्द से अभिप्रायः-

  • भारतीय काव्य शास्त्र में प्रचलित काव्य के छ: संप्रदायों में से एक प्रमुख संप्रदाय है, जिसके प्रवर्तक ‘आचार्य वामन’ हैं।
  • आचार्य वामन ने ‘विशिष्टपद रचना रीति:’ कहते हुए ‘विशेष पद रचना’ को रीति माना है।
  • उन्होने ‘रीति’ शब्द को व्यापक रूप में अर्थ ग्रहण करते हुए काव्य रचना संबंधी समस्त नियमों और सिद्धांतों, रस, अलंकार, ध्वनि आदि विभिन्न तत्वों को ग्रहण करते हुए इसे काव्य की आत्मा घोषित किया है।
  • संभवतः रीति कालीन आचार्यों द्वारा रीति का यही व्या‍पक रूप ग्रहण किया गया और उन्होने इसी आधार पर विभिन्न काव्यांगों का निरूपण करने वाले काव्य ग्रंथों की रचना की।
  • अत: हिंदी में ‘रीति’ शब्द का संस्कृत अर्थ न लेते हुए यहां ‘काव्यांग निरूपण’ करने वाले लक्षण ग्रंथों से ही लिया गया है।

‘रीतिकाल’ नाम पर आपत्तिः-

हिंदी साहित्य के अनेक आलोचक और इतिहासकार शुक्ल जी के नामकरण से पूर्णतः सहमत नहीं हैं। उनके अनुसार ‘रीति’ शब्द उत्तर मध्य काल की सभी प्रवृत्तियों अथवा विशेषताओं को व्यक्त करने में समर्थ नहीं है। विभिन्न विद्वानों द्वारा साहित्य के इस कालखण्ड को शृंगार काल, कला काल, अलंकृत काल तथा अंलकार काल आदि नाम देते हुए अपने मत व्यक्त किए गए और इनके समर्थन में अनेक तर्क प्रस्तुत दिए गए।

देखा जाए तो कला काल, अलंकृत काल व अलंकार काल में कोई विशेष भिन्नता नहीं हैं तथा ‘रीति’ से भी अधिक अंतर नहीं हैं। ‘शृंगार काल’ नाम अवश्य ही ‘रीति’ से कुछ पार्थक्य सूचित करता है। कुछ विद्वानों को रीति काल में घनानंद, ठाकुर, बोधा आदि द्वारा रची गयी शृंगारिक रचनाओं को रीतिमुक्त होने के कारण रीतिकाल में लाने से हिचक है। शृंगार काल नाम देने से यह हिचक स्वत: ही समाप्त हो जाती है।

आचार्य विश्वनाथ प्रसाद मिश्र तथा डा. नागेन्द्र ने ‘रीति’ शब्द को संकुचित अर्थ में ग्रहण करते हुए इसे ‘काव्य रीति’ का संक्षिप्त रूप ही माना है और इसकी अनुपयुक्तता सिद्ध करने का प्रयास किया है। आचार्य मिश्र का तर्क - ‘विचार करने पर रीति ग्रंथ प्रणेता अधिकतर आचार्य सिद्ध नहीं होते। इन्होंने रीति का पल्ला सहारे के लिए पकड़ा, कहना ये चाहते थे ‘शृंगार’ ही।

समग्रता से विश्लेषण किया जाए तो मिश्र जी द्वारा दिया गया यह तर्क पूर्णता के द्योतक नहीं हैं क्योंकि रीतिकाल में वीर रस के प्रसिद्ध कवियों और नीति काव्य के प्रणेताओं में शृंगार लेशमात्र भी नहीं हैं। सूक्ष्म दृष्टि से देखने पर वीर रस, नीति अथवा स्वछंद काव्य रचयिताओं की काव्य सर्जना प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से ‘रीति’ से अवश्य प्रभावित रही हैं।


रीतिकाल के अन्य नामः-

अनेक विद्वान शुक्ल जी द्वारा दिए गए इस नाम से असहमत हैं और उन्होने रीतिकाल के अन्य नाम सुझाए हैं। कुछ विद्वानों ने दिए गए प्रमुख नाम निम्नलिखित हैंः-

  1. मिश्रबंधु:अलंकृत काल
  2. आचार्य विश्वनाथ प्रसाद मिश्र:शृंगार काल
  3. आचार्य चतुरसेन शास्त्री :अलंकार काल
  4. रमाशंकर शुक्ल ‘रसाल’:कला काल

अनेक विद्वान रीति नाम से ही सहमत हैं, यद्यपि शृंगार काल में भी विशेष अनौचित्य नहीं हैं। फिर भी कई कारणों से रीतिकाल नाम ही विशेष प्रचलित और सर्वमामन्य हो सका। अतः निष्कर्ष रूप में देखा जाए तो ‘रीतिकाल’ नाम देना ही अधिक उचित‍ व तर्कसंगत प्रतीत होता है और संयोग से शुक्ल जी द्वारा दिया गया यह नाम ही सर्वाधिक लोकप्रिय और प्रचलित हुआ।

  • RitiKal | रीतिकाल काव्य धारा का नामकरण एवं विभाजन
  • RitiKal | रीतिकाल का नामकरण
  • RitiKal | रीतिकाल के प्रवर्तक
  • RitiKal | रीतिकाल के कवियों का विभाजन
    • 1. रीतिबद्ध कवि | Ritibadh Kavi :
    • 2. रीतिसिद्ध कवि | Ritisidh Kavi :
    • 3. रीतिमुक्त कवि | Ritimukt Kavi :
    • RitiKal | रीतिकाल काव्य धारा का तुलनात्मक अध्ययन :
  • Ritimukt | रीतिमुक्त कविता की विशेषताएं
  • RitiKal | रीतिकाल से कुछ महत्वपूर्ण तथ्य
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नमस्कार दोस्तों ! आज हम आपसे RitiKal | रीतिकाल काव्य धारा का नामकरण एवं विभाजन के बारे में चर्चा करने जा रहे है। इसमें रीतिकाल के प्रमुख कवि एवं उनकी काव्य धाराओं का तुलनात्मक अध्ययन, रीतिकाल के प्रवर्तक, रीतिकाल की कविताओं की प्रमुख विशेषताएं और इसके बारे में परीक्षा की दृष्टि से कुछ महत्वपूर्ण तथ्य आदि पर नज़र डाल रहे है। तो आइए RitiKal | रीतिकाल काव्य धारा के बारे में विस्तार से जानते है।



RitiKal | रीतिकाल : हिंदी साहित्य के विकास क्रम में रीतिकाल एक महत्वपूर्ण काल है। इस काल में काव्य के कला पक्ष पर अधिक सूक्ष्मता और व्यापकता के साथ कार्य किया गया है। इस काल में श्रृंगार रस की प्रधानता है।

रीति काल का समय 1643 ई. से 1843 ई. माना जाता है। रीति शब्द से तात्पर्य : काव्यांगों की बंधी बंधाई परिपाटी का अनुसरण करना।
काव्यागं अर्थात :रस, छंद, अलंकार, दोष, गुण, लक्षण, नायिका भेद ,प्रभेद आदि के लक्षण ग्रंथों का निर्माण।

रीतिबद्ध और रीति सिद्ध कवि इस परिभाषा में आ जाते हैं। रीतिमुक्त पर जो परिभाषा लागू है :

आचार्य वामन के अनुसार :

” विशिष्टा पद रचना रीति:”

वे आगे विशिष्ट शब्द को स्पष्ट करते हुए लिखते हैं :

” विशेषो गुणात्मा:”

विशेषो गुणात्मा: अर्थात् – विशिष्ट पद रचना ही रीति है। रीतिमुक्त कविता का अंत: भाव इस परिभाषा में हो जाता है।


RitiKal | रीतिकाल का नामकरण


RitiKal | रीतिकाल का नामकरण : रीतिकाल का नामकरण करने वाले प्रथम विद्वान ग्रियर्सन है। आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने रीति शब्द इन्हीं से ग्रहण किया है।

  • रामचंद्र शुक्ल : रीतिकाल (प्रवृति मूलक) । हजारी प्रसाद द्विवेदी और नगेंद्र ने समर्थन किया है।
  • विश्वनाथ प्रसाद मिश्र : श्रृंगार काल
  • मिश्र बंधु : अलंकृत काल (पूर्व अलंकृत काल, उत्तर अलंकृत काल)
  • त्रिलोचन : अंधकार काल
  • रमाशंकर शुक्ल (रसाल) : कलाकाल
  • विश्वनाथ प्रसाद मिश्र के अनुसार :

“रीतिकाल का साहित्य विशुद्ध साहित्य सर्जना का काल है।”


— आदिकाल और रीतिकाल दोनों में दरबारी साहित्य लिखा गया। आदिकाल के राजा संप्रभु और शक्ति संपन्न थे, युद्ध और शांति के निर्णय उनके हाथों में थे, लेकिन रीतिकाल में सामंत या राव राजा मोहम्मद सत्ता के अधीन थे। यह संप्रभु नहीं थे। यही कारण है कि आदिकाल में अंगीरस वीर बना और रीतिकाल में श्रृंगार रस अंगीरस के रूप में स्थापित हुआ।


RitiKal | रीतिकाल के प्रवर्तक


RitiKal | रीतिकाल के प्रवर्तक : डॉ. नगेंद्र ने रीतिकाल का प्रवर्तक केशवदास को माना है। आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने रीतिकाल का अखंडित प्रवर्तक चिंतामणि त्रिपाठी को माना है।

  • केशवदास अलंकार वादी आचार्य हैं। और चिंतामणि रसवादी आचार्य हैं।


RitiKal | रीतिकाल के कवियों का विभाजन


RitiKal | रीतिकाल के कवियों का विभाजन : रीतिकाल में कवियों की तीन धाराएं बनती है :

  1. रीतिबद्ध कवि
  2. रीतिसिद्ध कवि
  3. रीतिमुक्त कवि

1. रीतिबद्ध कवि | Ritibadh Kavi :

रीतिबद्ध कवि से आशय है : रीति से आबंद्ध

  • डॉ. बच्चन सिंह के अनुसार : कव्यशास्त्रीय विधानों के प्रति आत्मचेतस कवि रीतिबद्ध कवि कहलाते हैं।
  • इन कवियों ने संस्कृत ग्रंथों का सीधे-सीधे अनुसरण करते हुए लक्षण ग्रंथों का निर्माण किया है। रीतिबद्ध काव्य धारा के कवि काव्यागं परिपाटी का प्रत्यक्ष अनुसरण करते हैं। इनमें प्रमुख कवि इस प्रकार है :
केशवदास चिंतामणि त्रिपाठी मतिराम भूषण देव पद्माकर
सोमनाथ प्रताप साही विक्रम साही भिखारीदास जसवंत सिंह दूलह
कवि ग्वाल सुरति मिश्र करनेस रसलीन तोष कुलपति मिश्र

2. रीतिसिद्ध कवि | Ritisidh Kavi :

  • ये वे कवि है, जिन्होंने रीति की बंधी हुई परिपाटी का सीधे-सीधे अनुसरण तो नहीं किया लेकिन रीति यहां स्वंय सिद्ध हो गई। अतः यह सिद्ध कवि कहलाए।
  • इन कवियों ने भले ही रीति की परिपाटी का प्रत्यक्ष अनुसरण नहीं किया लेकिन कहीं न कहीं इनके मन में रीति के प्रति आस्था जरूर रही होगी अथवा अप्रत्यक्ष रूप से रीति यहां विराजमान हो गई। इनमें प्रमुख कवि इस प्रकार है :
कवि बिहारी सेनापति वृद्ध नेवाज पजनेश रसनिधि

3. रीतिमुक्त कवि | Ritimukt Kavi :

  • रीति के शास्त्रीय बंधनों को तोड़कर जिन कवियों ने स्वच्छंद रूप से कविता लिखी है, उन्हें रीतिमुक्त कवि कहते हैं। इनमें प्रमुख कवि इस प्रकार है :
आलम घनानंद बोधा ठाकुर द्विजदेव

Sr.काव्य धाराकवि
1. रीतिकाल के प्रतिनिधि कवि पद्माकर
2. रीतिबद्ध धारा के प्रतिनिधि कवि पद्माकर
3. रीतिसिद्ध काव्य धारा के प्रतिनिधि कवि बिहारी
4. रीतिमुक्त काव्य धारा के प्रतिनिधि कवि घनानंद


रीतिकाल की प्रधान मनोवृति को ध्यान में रखते हुए कवि बिहारी को रीतिकाल के प्रतिनिधि कवि कह सकते हैं। रीतिकाल में वीर रस के संदर्भ में कवि भूषण को प्रतिनिधि कवि कहा जा सकता है।


RitiKal | रीतिकाल काव्य धारा का तुलनात्मक अध्ययन :

आइये रीतिकाल के कवियों की तीनों धाराओं को अच्छे से समझने के लिए तुलनात्मक अध्ययन करते है :

Sr.रीतिबद्ध रीतिसिद्ध रीतिमुक्त
1. आचार्य कवि काव्य कवि स्वच्छंद कवि
2. मुख्यतः कलापक्ष
गौणतः भावपक्ष
कलापक्ष और भावपक्ष
बराबर
मुख्यतः कलापक्ष
गौणतः भावपक्ष
3. ये आचार्य ज्यादा थे,
कवि कम
ये आचार्य और कवि
दोनों थे
ये केवल
कवि थे
4. यहाँ स्थल-स्थल पर
यांत्रिकता एवं श्रम साध्यता की
प्रचुरता मिलती है।

अनुकरण की प्रवृति पर विशेष बल है।
अतः मौलिक उद्भावनाओं का प्रायः अभाव मिलता है।
(देव, पद्माकर अपवाद है)

स्वानुभूति की प्रवृति मिलने के कारण
यहाँ व्यक्तिकता एवं मौलिकता की
सृष्टि देखी जा सकती है।
यहाँ व्यक्तिकता, भावानुभूति एवं
मौलिकता का प्रबल वेग
मिलता है।
5. रीतिबद्ध कविता के मुहावरे
आसक्ति मूलक है।
रीतिसिद्ध कविता के मुहावरे
आसक्ति मूलक है।
रीतिमुक्त कविता के मुहावरे
पीडामूलक है।
6. सौंदर्य के शारीरिक पक्ष पर बल सौंदर्य के शारीरिक पक्ष पर बल सौंदर्य के आत्मिक पक्ष पर बल
7. संयोग श्रृंगार पर बल संयोग श्रृंगार पर बल वियोग श्रृंगार पर बल


Ritimukt | रीतिमुक्त कविता की विशेषताएं


रीतिमुक्त कवियों को स्वच्छंद कवि कहा जाता है। स्वच्छंदतावाद से तात्पर्य : असल में स्वच्छंदतावाद एक विद्रोह है – जड़ शास्त्रीयता एवं प्रणाली बद्धता के खिलाफ; जो भावधारा को गतकालिक एवं निष्प्राण बना देता है। स्वच्छंदतावाद का मार्ग प्रकृति और लोकजीवन के मध्य से गुजरता है, जो काव्य को ताजगी प्रदान करता है।

रीतिमुक्त कविता की प्रमुख विशेषताओं को निम्न बिन्दुओं के माध्यम से समझ सकते है :

  • व्यक्तिकता व अनुभूति परकता।
  • कल्पना प्रवणता ।
  • लाक्षणिक वक्रता।
  • प्रेम और सौंदर्य पर बल ।
  • संगीतात्मकता।
  • भावपरक गहराई।
  • व्यंजना सौंदर्य पर बल।
  • उदात्त नारी सौंदर्य की अभिव्यक्ति।
  • ध्वन्यात्मकता व नाद सौंदर्य।
  • वियोग श्रृंगार की प्रधानता।
  • पीड़ा एवं वेदना का आयोग।
  • जिज्ञासा भाव के कारण कोतुहलता व रहस्यात्मकता की सृष्टि।

RitiKal | रीतिकाल से कुछ महत्वपूर्ण तथ्य


रीतिकाल से कुछ महत्वपूर्ण तथ्य आपके लिए परीक्षा की दृष्टि से बहुत उपयोगी है। जिन्हें जानना आपके लिए जरूरी है। ये कुछ इस प्रकार से है :

1. डॉ. नगेंद्र के अनुसार प्रथम रीतिवादी ग्रंथ कृपाराम की हित तरंगिणी
2. सतसई परंपरा का पहला ग्रंथ हाल कृत गाहा सतसई
3. हिंदी में सतसई परंपरा का पहला ग्रंथ कृपाराम की हित तरंगिणी
4. रीतिकाल के प्रवर्तक चिंतामणि त्रिपाठी
5. रीतिकाल की अखंडित परंपरा के प्रवर्तक चिंतामणि त्रिपाठी
6. प्रभाव ख्याति एवं असाधारण व्यक्तित्व
के दृष्टिकोण से रीतिकाल के प्रवर्तक
केशवदास
7. रीतिकाल के अंतिम कवि ग्वाल कवि
8. रीतिकाल के अंतिम आचार्य ग्वाल कवि
9. रीतिकाल के अंतिम प्रसिद्ध कवि पद्माकर
10. रीतिकाल के अंतिम प्रसिद्ध आचार्य भिखारी दास

इसप्रकार दोस्तों ! उम्मीद करते है कि आपको रीतिकाल और उसकी प्रमुख काव्य धारा के बारे में समझ में आया होगा। अब आपको RitiKal | रीतिकाल काव्य धारा का नामकरण एवं विभाजन के सन्दर्भ में अच्छी जानकारी हो गयी होगी।हम आगे के नोट्स में रीतिकाल के प्रमुख कवियों का अध्ययन करेंगे।


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एक गुजारिश :

दोस्तों ! आशा करते है कि आपको “RitiKal | रीतिकाल काव्य धारा का नामकरण एवं विभाजन” के बारे में हमारे द्वारा दी गयी जानकारी पसंद आयी होगी I यदि आपके मन में कोई भी सवाल या सुझाव हो तो नीचे कमेंट करके अवश्य बतायें I हम आपकी सहायता करने की पूरी कोशिश करेंगे I

नोट्स अच्छे लगे हो तो अपने दोस्तों को सोशल मीडिया पर शेयर करना न भूले I नोट्स पढ़ने और HindiShri पर बने रहने के लिए आपका धन्यवाद..!


रीतिकाल के प्रवर्तक कौन है?

नगेंद्र ने रीतिकाल का प्रवर्तक केशवदास को माना है। आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने रीतिकाल का अखंडित प्रवर्तक चिंतामणि त्रिपाठी को माना है।

रीतिकाल के प्रथम आचार्य और रीतिकाल के प्रवर्तक कौन थे?

रीतिकाल का प्रवर्तक तो चिंतामणि को मानना उचित है। इसमें कोई सन्देह नहीं कि चिन्तामणि में केशव सा प्रभावशली पाण्डित्य एवं अचार्यत्व का आभाव है। पर चिंतामणि त्रिपाठी के बाद रीतिग्रंथों की अविच्छन्न परंपरा के प्रचलित हो जाने से रीतिकाव्य के प्रवर्तक हाने का श्रेय उन्हीं को मिलना चाहिए।

रीतिकाल के अंतिम बड़े आचार्य कौन है?

सबको मन हर्षित करे, ज्यों विवाह में गारि।।'' आचार्य शुक्ल ने रीतिकाल का प्रर्वतक आचार्य चिन्तामणी को माना है। इस काल की मुख्य विशेषता श्रृंगारिकता एवं रीति निरूपण है। रीतिकाल का अंतिम कवि 'ग्वाल' को माना जाता है।

रीतिकाल कितने प्रकार के होते हैं?

आचार्य विश्वनाथ प्रसाद मिश्र ने रीतिकाल को 'श्रृंगारकाल' नाम देते हुए उसे तीन वर्गां में विभाजित किया- 1. रीतिबद्ध 2. रीति सिद्ध 3. रीतिमुक्त।