राधा अष्टमी का व्रत करने से क्या होता है? - raadha ashtamee ka vrat karane se kya hota hai?

श्रीकृष्ण भक्ति के अवतार देवर्षि नारद ने एक बार भगवान सदाशिव के श्री चरणों में प्रणाम करके पूछा कि श्री राधा देवी लक्ष्मी, देवपत्नी, महालक्ष्मी, सरस्वती, अंतरंग विद्या, वैष्णवी प्रकृति, वेदकन्या, मुनिकन्या आदि में से कौन हैं?

इस प्रश्न के उत्तर में भगवान ने कहा कि किसी एक की बात क्या कहें, कोटि-कोटि महालक्ष्मी भी उनके चरणकमलों की शोभा के सामने नहीं ठहर सकतीं, इसलिए श्री राधाजी के रूप, गुण और सुन्दरता का वर्णन किसी एक मुख से करने में तीनों लोकों में भी कोई सामर्थ्य नहीं रखता। उनकी रूपमाधुरी जगत को मोहने वाले श्रीकृष्ण को भी मोहित करने वाली है इसी कारण अनंत मुख से भी मैं उनका वर्णन नहीं कर सकता।

भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी के दिन श्री राधाजी के श्री चरणों के दर्शन होते हैं। उनके चरणकमलों की सुंदरता का वर्णन कर पाना भी किसी के लिए संंभव नहीं है।

श्री राधाष्टमी व्रत विधि : अन्य व्रतों की भांति इस दिन भी प्रात: सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नानादि क्रियाओं से निवृत होकर श्री राधा जी का विधिवत पूजन करना चाहिए। इस दिन श्री राधा-कृष्ण मंदिर में ध्वजा, पुष्पमाला, वस्त्र, पताका, तोरणादि व विभिन्न प्रकार के मिष्ठान्नों एवं फलों से श्री राधाजी की स्तुति करनी चाहिए।

मंदिर में पांच रंगों से मंडप सजाएं, उनके भीतर षोडश दल के आकार का कमलयंत्र बनाएं, उस कमल के मध्य में दिव्य आसन पर श्री राधा-कृष्ण की युगलमूर्ति पश्चिमाभिमुख करके स्थापित करें। बंधु-बांधवों सहित अपनी सामर्थ्यानुसार पूजा की सामग्री लेकर भक्तिभाव से भगवान की स्तुति गाएं।

दिन में हरिचर्चा में समय बिताएं तथा रात्रि को नाम संकीर्तन करें। एक समय फलाहार करें। मंदिर में दीपदान करें।

श्री राधाष्टमी व्रत का पुण्यफल :- श्री राधा-कृष्ण जिनके इष्टदेव हैं, उन्हें राधाष्टमी का व्रत अवश्य करना चाहिए क्योंकि यह व्रत श्रेष्ठ है। श्री राधाजी सर्वतीर्थमयी एवं ऐश्वर्यमयी हैं। इनके भक्तों के घर में सदा ही लक्ष्मीजी का वास रहता है। जो भक्त यह व्रत करते हैं उन साधकों की जहां सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं मनुष्य को सभी सुखों की प्राप्ति होती है। इस दिन राधाजी से मांगी गई हर मुराद पूरी होती है।


जो मनुष्य श्री राधाजी के नाम मंत्र का स्मरण एवं जाप करता है वह धर्मार्थी बनता है। अर्थार्थी को धन की प्राप्ति होती है, मोक्षार्थी को मोक्ष मिलता है। राधाजी की पूजा के बिना श्रीकृष्ण जी की पूजा अधूरी रहती है।

राधा अष्टमी का व्रत करने से क्या होता है? - raadha ashtamee ka vrat karane se kya hota hai?
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भाद्रपद माह की शुक्ल पक्ष की अष्टमी को श्रीकृष्ण की बाल सहचरी, जगजननी भगवती शक्ति राधाजी का जन्म हुआ। राधा के बिना श्रीकृष्ण का व्यक्तित्व अपूर्ण है।

> > यदि श्रीकृष्ण के साथ से राधा को हटा दिया जाए तो श्रीकृष्ण का व्यक्तित्व माधुर्यहीन हो जाता। राधा के ही कारण श्रीकृष्ण रासेश्वर हैं।
राधा अष्टमी का व्रत कैसे करें - 

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प्रातःकाल स्नानादि से निवृत्त हो जाएं।

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इसके बाद मंडप के नीचे मंडल बनाकर उसके मध्यभाग में मिट्टी या तांबे का कलश स्थापित करें।

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श्री राधा अष्टमी पर जहां लोग व्रत करके सभी सुख पाते हैं, वहीं गौड़ीय विधान के अनुसार श्री राधा अष्टमी को विशेष उत्सव मनाया जाता है। उनके अनुसार भगवद भक्त तत्व अर्थात भगवान श्री कृष्ण

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Radha Ashtami 2022: श्री राधा अष्टमी पर जहां लोग व्रत करके सभी सुख पाते हैं, वहीं गौड़ीय विधान के अनुसार श्री राधा अष्टमी को विशेष उत्सव मनाया जाता है। उनके अनुसार भगवद भक्त तत्व अर्थात भगवान श्री कृष्ण जन्माष्टमी और श्री रामनवमी आदि दिनों पर व्रत किया जाता है तथा शक्ति तत्व राधा जी के जन्म के उपलक्ष्य में विशेष उत्सव मनाने का विधान है। वैष्णव जन दोपहर 12 बजे तक श्री राधा जी के प्रकट होने तक हरिनाम संकीर्तन करते हुए उत्सव मनाते हैं तथा उनका अभिषेक होने के पश्चात चरणामृत लेकर खुशी मनाते हैं।

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कैसे करें व्रत
अन्य व्रतों की भांति इस दिन भी प्रात: सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नानादि क्रियाओं से निवृत होकर श्री राधा जी का विधिवत पूजन करना चाहिए। इस दिन श्री राधा कृष्ण मंदिर में ध्वजा, पुष्पमाला, वस्त्र, पताका, तोरणादि व विभिन्न प्रकार के मिष्ठानों एवं फलों से श्री राधा जी की स्तुति करनी चाहिए। मंदिर में पांच रंगों से मण्डप सजाएं, उनके भीतर षोडश दल के आकार का कमलयंत्र बनाएं, उस कमल के मध्य में दिव्य आसन पर श्री राधा कृष्ण की युगलमूर्ति पश्चिमाभिमुख करके स्थापित करें। बंधु बांधवों सहित अपनी सामर्थ्यानुसार पूजा की सामग्री लेकर भक्तिभाव से भगवान की स्तुति गाएं। दिन में हरिचर्चा में समय बिताएं तथा रात्रि को नाम संकीर्तन करें। एक समय फलाहार करें। मंदिर में दीपदान करें।  

राधा अष्टमी का व्रत करने से क्या होता है? - raadha ashtamee ka vrat karane se kya hota hai?

व्रत का पुण्यफल
श्री राधा कृष्ण जिनके इष्टदेव हैं, उन्हें राधाष्टमी का व्रत अवश्य करना चाहिए क्योंकि यह व्रत श्रेष्ठ है। श्री राधाजी सर्वतीर्थमयी एवं ऐश्वर्यमयी हैं। श्रीराधा जी के भक्तों के घर में सदा ही लक्ष्मी जी का वास रहता है। जो भक्त यह व्रत करते हैं, उन साधकों की जहां सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं, वहीं मनुष्य को सभी सुखों की प्राप्ति होती है। वह धनवान भी बनता है। जो मनुष्य श्री राधा जी के नाम मंत्र का स्मरण एवं जाप करता है वह धर्मार्थी बनता है। अर्थार्थी को धन की प्राप्ति होती है, कामार्थी पूर्णकामी होता है मोक्षार्थी को मोक्ष मिलता है। कृष्णभक्त वैष्णव सर्वदा अनन्य शरण होकर श्री राधा जी की भक्ति प्राप्त करता है तो वह सुखी, विवेकी और निष्काम हो जाता है। राधा जी की पूजा के बिना श्रीकृष्ण जी की पूजा अधूरी रहती है, तभी तो भक्त गाते हैं-

‘राधे राधे जपो चले आएंगे मुरारी’

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राधा अष्टमी का व्रत रखने से क्या होता है?

राधाष्टमी व्रत का धार्मिक महत्व हिंदू धर्म में श्री कृष्ण को राधा जी के बगैर अधूरा माना गया है। राधा के साथ में श्रीकृष्ण की पूजा करने से दोहरा फल मिलता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार राधा अष्टमी की पूजा करने से विवाहित महिलाओं को अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है और अविवाहितों को मनचाहा जीवनसाथी प्राप्त होता है।

राधा अष्टमी का व्रत कैसे रखना चाहिए?

सर्वप्रथम राधा अष्टमी व्रत का संकल्प लें। बिना संकल्प के व्रत अधूरा माना जाता है।.
उपवास के दौरान मन में किसी प्रकार के गलत विचार न लाएं, किसी की निंदा न करें।.
व्रत में क्रोध में मुख से अपशब्द न निकालें, अन्यथा आपका पूरा व्रत विफल हो जाएगा।.
राधा अष्टमी व्रत के दौरान ब्रह्मचर्य का पालन करें।.

राधा अष्टमी 2022 व्रत कैसे करें?

राधा अष्टमी की पूजन विधि राधा अष्टमी के दिन सवेरे-सवेरे स्नानादि के बाद साफ-सुथरे वस्त्र धारण करें। इसके राधा-कृष्ण की मूर्ति स्थापित करें और उनकी आराधना करते हु व्रत का संकल्प लें। राधा रानी की पूजा षोडशोपचार विधि से करें। देवी को फूल, फल और मिठाई अर्पित करें

राधा अष्टमी का मतलब क्या होता है?

Radha Ashtami 2022 भाद्र मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को श्री राधा जी के प्राकट्य दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस दिन बरसाने में वृषभानु जी और माता कीर्ति जी के घर राधाजी ने जन्म लिया था। श्री राधा के जन्म दिवस एवं अवतरण दिवस को राधा अष्टमी के नाम से जाना जाता है।