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जीत तो जीत है। इसका जश्न मनाना स्वाभाविक है। फिर चाहे बुराइयों पर अच्छाई की जीत हो या फिर असत्य पर सत्य की। विजय दशमी का पर्व भी जीत का पर्व है। अहंकार रूपी रावण पर मर्यादा के पर्याय राम की विजय से जुड़े पर्व का जश्न
पान खाने खिलाने और नीलकण्ठ के दर्शन से जुड़ा है। विजय का सूचक पान :- बीड़ा (पान) का एक महत्व यह भी है इस दिन हम सन्मार्ग पर चलने का बीड़ा उठाते हैं। वहीं नीलकण्ठ अर्थात् जिसका गला नीला हो। यह जनश्रुति भी इसी रूप में जुड़ी है। धर्मशास्त्रों के
मुताबिक भगवान शंकर को नीलकण्ठ माना गया है इस पक्षी को पृथ्वी पर भगवान शिव का प्रतिनिधि माना गया है। जनश्रुति तो और भी हैं लेकिन कई स्थानों पर दोनों बातों का विशेष महत्व है। दरअसल प्रेम का पर्याय है पान। दशहरे में रावण दहन के बाद पान का बीड़ा खाने की परम्परा है। ऐसा माना जाता है दशहरे के दिन पान खाकर लोग असत्य पर हुई सत्य की
जीत की खुशी को व्यक्त करते हैं, और यह बीड़ा उठाते हैं कि वह हमेशा सत्य के मार्ग पर चलेंगे। इस विषय पर ज्योतिषाचार्य पंडित हनुमान प्रसाद दुबे का कहना है कि पान का पत्ता मान और सम्मान का प्रतीक है। इसलिए हर शुभ कार्य में इसका उपयोग किया जाता है
नीलकंठ के दर्शन होने से क्या होता है?अगर नीलकंठ पुरुष को दशहरा के दिन दिखाई दे तो उसके दर्शन मात्र से ही पुरुष को विजय प्राप्त होती है ये एक शुभ प्रतीक होता है। नीलकंठ के दर्शन से बिगड़े काम बन जाते हैं।
नीलकंठ कब देखा जाता है?नीलकंठ एक कीड़ा भक्षी चिड़िया है, जो छोटे सांप, गिरगिट छोटे मेंढक, कीड़े-मकोड़े, छिपकली और छोटे चूहों को मारकर खा जाता है। हिमालय से नीचे के मैदानों में इसे सर्वत्र देखा जा सकता है। हालांकि दशहरा और दीपावली के बाद यह कम दिखाई देता है। यह अकेला रहता है और दिन भर खाने की तलाश में घात लगाए बैठा रहता है।
घर में नीलकंठ आने से क्या होता है?नीलकंठ को श्री राम का सन्देश वाहक माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि यदि दशहरे वाले दिन घर में नीलकंठ पक्षी का आगमन हो जाए तो ये हमारे घर की सुख समृद्धि में बढ़ोत्तरी करेगा। नीलकंठ, भगवान श्री राम का सन्देश लेकर आता है और इस बात को दिखाता है कि घर के सभी कष्ट दूर होने वाले हैं।
नीलकंठ किसका प्रतीक है?वर्तमान समय में नीलकंठ नामक पक्षी को भगवान शिव (नीलकंठ) का प्रतीक माना जाता है। उड़ते हुए नीलकंठ पक्षी का दर्शन करना सौभाग्य का सूचक माना जाता है। ब्रह्मलीन पं. तृप्तिनारायण झा शास्त्री द्वारा रचित पुस्तक 'खगोपनिषद्' के ग्यारहवें अध्याय के अनुसार नीलकंठ साक्षात् शिव का स्वरूप है तथा वह शुभ-अशुभ का द्योतक भी है।
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