सूरज कैसे और क्यों डूबता है? - sooraj kaise aur kyon doobata hai?

सूरज हमें कई बार लाल क्यों दिखाई देता है

13 अगस्त 2020

सूरज कैसे और क्यों डूबता है? - sooraj kaise aur kyon doobata hai?

इमेज स्रोत, Getty Images

तेज़ चमकने वाले सूरज को लाल रंग में बदलते आपने कई बार देखा होगा. ऐसा अक्सर सूरज के उगते और ढलते समय होता है.

सूरज लाल हो जाता है, आसमान संतरी, गहरा लाल या बैंगनी हो जाता है.

ये बेहद ख़ूबसूरत और रूमानी नज़ारा होता है. आसमान चलायमान होता है. लेकिन, असल में इसके पीछे पूरी तरह वैज्ञानिक कारण हैं.

इसका जवाब रेली स्कैटरिंग (प्रकाश का प्रकीर्णन) में छुपा है. 19वीं सदी में ब्रिटिश भौतिक विज्ञानी लॉर्ड रेली प्रकाश के प्रकीर्णन की घटना की व्याख्या करने वाले पहले व्यक्ति थे.

प्रकाश का प्रकीर्णन वह प्रक्रिया होती है, जिसमें जब सूर्य का प्रकाश सूर्य से बाहर निकलकर वायुमंडल में प्रवेश करता है, तो धूल और मिट्टी के कणों से टकराकर चारों तरफ फैल जाता है.

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सूरज को सीधे आँखों से ना देखें

इस ख़ूबसूरत दृश्य के बीच सूरज को सीधे आँखों से ना देखें और ना ही इसके लिए दूरबीन का इस्तेमाल करें. इससे आपकी आँखों को नुक़सान पहुँच सकता है या आप अंधे हो सकते हैं.

रॉयल म्यूज़ियम्स ग्रीनिच में खगोल विज्ञानी एडवर्डी ब्लूमर कहते हैं, "सूर्य के प्रकाश के प्रकाशीय गुण पृथ्वी के वातावरण से होकर गुज़रते हैं."

सबसे पहले हमें प्रकाश को समझने की ज़रूरत है, जो दृश्यमान प्रकाश स्पेक्ट्रम के सभी रंगों यानी लाल, नारंगी, पीला, हरा, नीला, गहरा नीला और बैंगनी से बना है.

ब्लूमर कहते हैं, ''ये सूरज की रोशनी के बिखरने से जुड़ा है. लेकिन, ये समान रूप से बिखरी हुई नहीं होती.''

हर रंग की अपनी वेवलेंथ होती है, जो उस रंग को वैसे ही दिखाता है, जिस रंग का वो है.

उदाहरण के लिए बैंगनी रंग की सबसे छोटी वेवलेंथ होती है जबकि लाल रंग की सबसे लंबी.

अब जानते हैं कि वातावरण क्या होता है. विभिन्न गैसों की वो परतें, जो हमारे ग्रह में फैली हुई हैं और जो हमें ज़िंदा रखती हैं. इसमें ऑक्सीजन भी शामिल है,जिससे हम साँस ले पाते हैं.

बिखरी हुई रोशनी

जैसे-जैसे सूरज की रोशनी अलग-अलग हवा की परतों से गुज़रती है, इन परतों में अलग-अलग घनत्व की गैसें होती हैं. इनसे गुज़रते हुए रोशनी दिशा बदलती है और बँट भी जाती है.

वातावरण में कुछ कण भी होते हैं, जो विभाजित रोशनी में उछाल लाते हैं या उसे प्रतिबिंबित करते हैं.

जब सूरज डूबता या उगता है, इसकी किरणें वातावरण की सबसे ऊपर की परत से एक निश्चित कोण से टकराती हैं और यहीं पर ये 'जादू' शुरू होता है.

जब सूरज की किरणें इस ऊपरी परत से होकर गुज़रती हैं, तो नीली वेवलेंथ बँट जाती है और अवशोषित होने की वजह से प्रतिबिंबित होने लगती है.

ब्लूमर कहते हैं, "जब क्षितिज पर सूर्य का ताप कम होता है, तो प्रकाश की नीले और हरे रंग की तरंगें बिखर जाती हैं, और ऐसे में हमें बची हुईं प्रकाश की नारंगी और लाल तरंगें ही दिखाई देती है."

बैंगनी और नीले रंग की किरणें अपनी छोटी वेवलेंथ के कारण ज़्यादा लंबी दूरी तक नहीं जा पातीं और ज़्यादा बिखर जाती हैं. जबकि संतरी और लाल रंग की किरणें लंबी दूरी तय करती हैं. ऐसे में आसमान पर ये ख़ूबसूरत मंज़र बन जाता है.

आसमान लाल क्यों होता है

ये भले ही लाल लगता है, लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि सूरज का रंग बदल गया है.

ब्लूमर कहते हैं, ''धूल के बादल, धुंआ और इसी तरह के अन्य तत्व आसमान के रंग पर असर डालते हैं.''

अगर आप भारत, कैलिफॉर्निया, चिली, ऑस्ट्रेलिया या अफ़्रीका के कुछ हिस्सों या लाल रेत वाले इलाक़ों के नज़दीक रहते हैं, तो आपका वातावरण मौसम की स्थिति के आधार पर प्रकाश को प्रतिबिंबित करने वाले कणों से भरा हो सकता है.

ब्लूमर कहते हैं, ''ये कुछ ऐसा ही है, जैसा मंगल ग्रह पर होता है. जब लाल रंग की धूल हवा में उड़ती है, तो लगता है कि आसमान लाल-गुलाबी सा हो गया है.''

कई बार रेगिस्तान से दूर रहने वालों को भी अलग-अलग रंगों वाले ऐसे आसमान देखने को मिल सकते हैं. जैसे सहारा रेगिस्तान की रेत वायुमंडल की उच्च परतों में चली जाती है. फिर वहाँ से ये यूरोप, साइबेरिया और यहाँ तक कि अमरीका भी पहुँच जाती है.

लॉकडाउन और प्रकृति से क़रीबी

ऐसा होना बहुत अलग बात नहीं है. प्रकृति में ऐसा होता आ रहा है लेकिन बात ये है कि अब हम इस पर ज़्यादा ध्यान देने लगे हैं.

ब्लूमर एक मुस्कुराहट के साथ कहते हैं, ''लॉकडाउन के इस समय में लोग आसमान पर बहुत ध्यान दे रहे हैं. लोग इस समय दूसरे कामों में व्यस्त नहीं हैं.''

लॉकडाउन में सिनेमा, थियेटर और पार्टी जैसे मनोरंजन के साधन बंद हैं. लोग घरों में रह रहे हैं और प्रकृति से जुड़ पा रहे हैं.

ब्लूमर कहते हैं कि ट्रैफ़िक कम होने से प्रदूषण का स्तर भी कम हो गया है और लोग बाहर ज़्यादा अच्छा महसूस कर रहे हैं.

आसमान का रंग नीला क्यों

आसमान का रंग दिन में ज़्यादा नीला क्यों हो जाता है. इसका जवाब भी भौतिक विज्ञानी लॉर्ड रेली की प्रकीर्णन घटना की व्याख्या में ही छिपा है.

सूरज आसमान में बहुत ऊँचाई पर होता है. इसकी रोशनी वायुमंडल से होकर बिना टूटे ही गुज़रती है. ये वायुमंडल में आते ही अवशोषित हो जाती है और प्रमुखता से दिखाई देने वाला रंग नीला होता है.

हालाँकि, ये मौसम पर भी निर्भर करता है.

जैसे इंद्रधनुष बनने की बात करें, तो जब सूरज के चमकते समय बारिश होती है, तो प्रकाश बारिश की हर बूँद से होकर अलग-अलग वेवलेंथ में फैल जाता है और इसके कारण अपवर्तन (प्रकाश तरंग की दिशा बदलना) सभी रंगों को वातावरण में बिखेर देता है.

रात में सूरज क्यों डूब जाता है?

आसमान का रंग नीला क्यों सूरज आसमान में बहुत ऊँचाई पर होता है.

सूर्य कौन सी दिशा में डूबता है?

सूरज की फेवरेट दिशा है पूर्व, इसलिए उसे कहीं और से आना पसंद नहीं है। उत्तर और दक्षिण में बर्फ है और सूरज को ठंड पसंद नहीं। पश्चिम में सूरज शाम बिताता है, इसलिए वह सुबह पूर्व से ही आता है।

सूरज क्या खाता है?

सूरज की सतह हाइड्रोजन, हिलियम, सल्फर, मैग्निसियम, कार्बन, हिलियम, लोहा, हाइड्रोजन, निकेल, नियोन, कैल्सियम, क्रोमियम, ऑक्सीजन, सिलिकन तत्वों से मिलकर बनी है। जिसमे से सूरज पर सबसे ज्यादा मात्रा में हाइड्रोजन और हीलियम मौजदू है। सूरज को जब दूरदर्शी यंत्र द्वारा देखा जाता है, तो इसकी सतह पर छोटे बड़े धब्बे दिखाई देते है।

सूर्य किसका बना होता है?

सूर्य एक विशाल आणविक बादल के हिस्से के ढहने से करीब 4.57 अरब वर्ष पूर्व गठित हुआ है जो अधिकांशतः हाइड्रोजन और हीलियम का बना है और शायद इन्ही ने कई अन्य तारों को बनाया है। यह आयु तारकीय विकास के कंप्यूटर मॉडलो के प्रयोग और न्यूक्लियोकोस्मोक्रोनोलोजी के माध्यम से आकलित हुई है।