संसाधन की गतिशीलता का क्या तात्पर्य है? - sansaadhan kee gatisheelata ka kya taatpary hai?

काम कैसा भी क्यों ना हो, उसे पूरा करने के लिए संसाधन की आवश्यकता होती हैं। एक विद्यार्थी चाहे कितना भी बुद्धिमान क्यों ना हो यदि उसे किताब, कॉपी, कलम, विद्यालय, शिक्षक आदि की सुविधा नहीं दी जाए तो वह कुछ भी नहीं कर सकता है। यह सभी वस्तुएं उसकी पढ़ाई के संसाधन हैं। संसाधन कितने तरह के होते हैं तथा संसाधन से आप क्या समझते हैं इस पोस्ट में विस्तार से जानेंगे।

  • संसाधन से आप क्या समझते हैं
  • संसाधन के वर्गीकरण के प्रमुख आधार कौन-कौन से हैं
    • भौतिक संसाधन किसे कहते हैं
  • संसाधनों की गतिशीलता में उद्यमी की क्या भूमिका होती है

संसाधन से आप क्या समझते हैं

किसी व्यक्ति को अपना कार्य संपादित करने के लिए जिस माध्यमों की आवश्यकता होती है उसे “संसाधन” कहा जाता है। किसी उपक्रम को स्थापित करने के लिए कई तरह की संसाधनों की आवश्यकता होती है।

संसाधन से आप क्या समझते हैं उदाहरण देते हुए स्पष्ट करें
मानवीय आवश्यकताओं को पूर्ति करने वाले साधन संसाधन कहलाते हैं। इसके उदाहरण निम्नलिखित हैं जो कि इस प्रकार से दिए गए हैं- कलम, कापी , मोबाइल , कार आदि।

संसाधन के वर्गीकरण के प्रमुख आधार कौन-कौन से हैं

इसके वर्गीकरण के प्रमुख आधार निम्नलिखित हैं-

  1. भौतिक संसाधन
  2. मानव संसाधन
  3. तकनीकी संसाधन
  4. वित्तीय संसाधन

भौतिक संसाधन किसे कहते हैं

इसके अंतर्गत भूमि, मशीन, भवन, कच्चा माल आदि को शामिल किया जाता है। किसी भी उपक्रम को चलाने के लिए यह आधारभूत आवश्यकताएं होती हैं। इसके बिना उपक्रम का कार्य अधूरा होता है।
भौतिक संसाधन के दो उदाहरण – Land , Building , Machine

भौतिक संसाधन को प्रभावित करने वाले तत्व या कारक

  • जमीन कहां अवस्थित है? उसकी कितनी मात्रा आवश्यक। हैं?
  • उस जमीन तक पहुंचने के लिए यातायात की सुविधा, भूमि के आसपास का माहौल, मशीन, यंत्र, उपकरण की उपलब्धता, लागत,आपूर्ति में लगने वाला समय सभी प्रभावित करने वाले तत्व हैं।
  • मशीन एवं यंत्र को स्थापित करने व उसकी मरम्मत आदि की शर्तें।
  • इन संसाधनों की अल्पकालीन एवं दीर्घकालीन लागत बदलने की सुविधा
  • कच्चे माल की उपलब्धता
  • वातावरण पर प्रभाव

भौतिक संसाधनों में अधिक सावधानी बरतने की आवश्यकता होती है क्योंकि इस संसाधन में अत्यधिक पूंजी की आवश्यकता होती है एक बार गलत चुनाव हो जाने पर उपकरण के भविष्य पर प्रश्न खड़ा हो जाता हैं।

मानव संसाधन – हमारे आस-पास जितने भी संसाधन होते हैं वह सभी निष्क्रिय होते हैं। मानव उसे अपनी आवश्यकता के लिए उपयोग में लाकर सक्रिय बनाता है। इस प्रकार से मानवीय संसाधन एक सक्रिय संसाधन होता है।
इसके अंतर्गत प्रबंधकीय, गैर प्रबंधकीय, कुशल एवं अकुशल सभी तरह के कर्मचारियों को सम्मिलित किया जाता है। यह सभी उत्पादन के सक्रिय साधन है जो उत्पादन के अन्य साधनों को गतिशील बनाते हैं।

मानव संसाधन को निम्नलिखित तत्व प्रभावित करते हैं-

  1. कर्मचारियों को काम करने का उचित वातावरण दिया जाना चाहिए।
  2. कार्य के प्रति कर्मचारियों को मोटिवेट किया जाना चाहिए।
  3. समय-समय पर उन्हें ट्रेनिंग देते रहना चाहिए।
  4. कार्य के अनुसार अच्छे कर्मचारियों का चुनाव करना चाहिए।
  5. उपक्रम की प्रकृति के अनुसार कर्मचारियों की संख्या निर्धारित कर लेनी चाहिए।

तकनीकी संसाधन – इसके अंतर्गत उत्पादन की प्रक्रिया सूचना एवं संचार तंत्र आदि को शामिल किया जाता है। इनका प्रयोग एक ओर उत्पादन लागत को कम करता है तो दूसरी ओर उत्पादन की क्वालिटी बढ़ाने में मदद करता है।

इस संसाधन को निम्नलिखित तत्व प्रभावित करते हैं-

  • साहसी को स्वयं विभिन्न तकनीकों की जानकारी होने चाहिए।
  • तकनीकी के डिजाइन का अवलोकन करते हुए देखना चाहिए कि उसके लिए यह कितना उपयुक्त है।
  • उत्पाद की प्रत्येक प्रक्रिया पर कौन-कौन से तकनीकी कैसे फिट बैठेगी यह देखना चाहिए।
  • कौन सी तकनीक किस्म नियंत्रण प्रणाली में कहां तक उपयोगी होगी।
  • तकनीक की लागत तथा उसकी आवश्यकता एवं उपयोगिता कितनी है।

वित्तीय संसाधन – वैसे तो सभी संसाधनों का अपना-अपना महत्व होता है। किसी एक के बिना उपक्रम चलाने की बात नहीं सोची जा सकती है किंतु वित्तीय संसाधन इनमें अति विशेष होता है ऐसा इसलिए कि अन्य सभी संसाधनों को यह अपनी ओर चुम्बक की भांति खींचने का कार्य करता है।

कोई भी बिजनेस करना हो आप उसके लिए सारे आवश्यक संसाधन इकट्ठा कर ले लेकिन पैसे नहीं होंगे तो आप कुछ भी नहीं कर सकते हैं।

इसके अंतर्गत उपक्रम संचालित करने के लिए आवश्यक स्थायी एवं कार्यशील पूंजी को शामिल किया जाता है। किसी भी उपक्रम को आरंभ करने से लेकर तकनीक से संचालित करने से दर कदम पर इसकी आवश्यकता होती है।

संसाधनों की गतिशीलता में उद्यमी की क्या भूमिका होती है

संसाधनों की गतिशीलता में एक उद्यमी की अहम भूमिका होती है

  • संसाधनों की आवश्यकता
  • संसाधनों की पहचान करना
  • रुकावटओं का अध्ययन करना
  • आपूर्तिकर्ता से संपर्क करना
  • संसाधनों की मात्रा एवं समय
  • संसाधनों की किस्में एवं लागत
  • वित्त की व्यवस्था

संसाधनों की आवश्यकता – साहसी को सबसे पहले यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उसे किन-किन संसाधनों की आवश्यकता है।

संसाधनों की पहचान करना – संसाधनों की जरुरत  तय कर लेने के बाद साहसी द्वारा उपलब्ध विभिन्न साधनों में से अपने आवश्यकता के अनुसार पहचान किया जाता है कि उसे इस साधन की कितनी मात्रा चाहिए।

रुकावटओं का अध्ययन करना – उपलब्ध साधनों को प्राप्त करने में किन-किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। उद्यमी को इसका अध्ययन पहले से ही कर लेना चाहिए।

आपूर्तिकर्ता से संपर्क करना – उद्यमी को संसाधनों के आपूर्तिकर्ताओं के साथ संपर्क स्थापित करके उसकी समय अनुसार उपलब्धि के बातों में आस्वस्थ हो जाना चाहिए।

संसाधनों की मात्रा एवं समय – उद्यमी को किस साधन की कितनी मात्रा कितने समय के अंतराल पर आवश्यक होगी इसका निर्धारण पहले से ही तय कर लेना चाहिए।

संसाधनों की किस्में एवं लागत – संसाधन को चुनते समय उद्यमी को इसके किस्म (Quality) पर विचार करते समय इसका मिलान इसकी लागत से करना चाहिए।

वित्त की व्यवस्था – साहसी संसाधन के खरीद हेतु आवश्यक वित्त यानी कि धन की पूर्ति कहां से करेगा। इस पर भी पहले से विचार कर लेना चाहिए।

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संसाधन गतिशीलता क्या है?

इसे सुनेंरोकेंयह एक सिद्धांत है जिसका उपयोग सामाजिक आंदोलनों के अध्ययन में किया जाता है और तर्क देता है कि सामाजिक आंदोलनों की सफलता संसाधनों (समय, धन, कौशल, आदि) और उनका उपयोग करने की क्षमता पर निर्भर करती है। यह आवश्यक संसाधनों को समय पर, लागत प्रभावी तरीके से प्राप्त करने से संबंधित है।

संसाधन की परिभाषा क्या है?

हमारे पर्यावरण में उपलब्ध हर वह वस्तु संसाधन कहलाती है जिसका इस्तेमाल हम अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये कर सकते हैं, जिसे बनाने के लिये हमारे पास प्रौद्योगिकी है और जिसका इस्तेमाल सांस्कृतिक रूप से मान्य है। प्रकृति का कोई भी तत्व तभी संसाधन बनता है जब वह मानवीय सेवा करता है।

संसाधन कितने प्रकार के होते हैं?

संसाधन दो प्रकार के होते हैं- प्राकृतिक संसाधन और मानव निर्मित संसाधन

मानव संसाधन का क्या अर्थ है?

मानव संसाधन (HUMAN RESOURCES)वह अवधारणा है जो जनसंख्या को अर्थव्यवस्था पर दायित्व से अधिक परिसंपत्ति के रूप में देखती है। शिक्षा प्रशिक्षण और चिकित्सा सेवाओं में निवेश के परिणाम स्वरूप जनसंख्या मानव संसाधन के रूप में बदल जाती है। मानव संसाधन उत्पादन में प्रयुक्त हो सकने वाली पूँजी है।