संथाल जनजाति कौन सा कार्य करती है - santhaal janajaati kaun sa kaary karatee hai

संथाल जनजाति

First Published: March 7, 2019

संथाल जनजाति कौन सा कार्य करती है - santhaal janajaati kaun sa kaary karatee hai

संथाल जनजाति भारत का सबसे बड़ा आदिवासी समुदाय है। वे मुख्य रूप से झारखंड, पश्चिम बंगाल, बिहार, ओडिशा और असम राज्यों में रहते हैं। इनकी सघनता मुख्य रूप से झारखंड के दुमका, गोड्डा, देवघर, जामताड़ा और संथाल परगना और पूर्वी और पश्चिमी सिंहभूम जिलों के पाकुड़ जिलों में है। ये प्राचीन काल से एक बहादुर समुदाय रहा है।

संथाल जनजाति का इतिहास
संथाल भारत में ब्रिटिश शासन के समय में प्रसिद्ध सेनानी थे। इस समुदाय के लोगों ने वर्ष 1855 में लॉर्ड कॉर्नवॉलिस के स्थायी निपटान के खिलाफ युद्ध छेड़ा। 1850 के बाद के हिस्सों के दौरान सिद्धू नामक एक आदिवासी नायक ने अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध किया। पहले संथाल नेता बाबा तिलका माझी थे जिन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ वर्ष 1789 में हथियार उठाए थे।

संथाल जनजाति की भाषा
संथाली भाषा उनकी प्रमुख भाषा है। संथालों की अपनी लिपि है जिसे ‘ओलचिकी’ कहा जाता है। संथाली के अलावा वे बंगाली, उड़िया और हिंदी भी बोलते हैं।

संथाल जनजाति का कार्यकौशल
उनका मुख्य व्यवसाय कृषि है। संथाल जंगलों में पौधों और पेड़ों से अपनी बुनियादी आवश्यकताओं को पूरा करते हैं। इस आदिवासी समुदाय के लोगों के पास संगीत उपकरण, टोकरियाँ और पौधों से चटाई बनाने का अद्वितीय कौशल है। आधुनिक काल में वे अन्य आधुनिक व्यवसाय भी करते हैं।

संथाल जनजाति का धर्म
वे अलौकिक प्राणियों और पैतृक आत्माओं में विश्वास करते हैं। ठाकुरजी उनके पैतृक देवता हैं। संथालों की देवी और देवता जहीरा, मारंगबुरु और मांझी हैं।

संथाल जनजाति की संस्कृति
संथालों द्वारा नृत्य को बहुत पसंद किया जाता है। यह संथाल जनजाति के त्योहारों और मेलों का सबसे प्रमुख हिस्सा है। इस आदिवासी समुदाय की महिलाएं साड़ी पहनती हैं और वे एक पंक्ति के क्रम में नृत्य करती हैं। संथाल पुरुष तिरिओ, हॉटोक, ढोडो बानम, फेट बानम, तमक, तुमदक, जुन्को और सिंगा जैसे वाद्य यंत्रों के साथ संगीत बजाते हैं।

संथाल जनजाति के त्यौहार
संथाल जनजातियाँ आमतौर पर हर साल सितंबर और अक्टूबर में आने वाले करमा त्योहार मनाती हैं। संथालों द्वारा मनाए जाने वाले कुछ अन्य प्रमुख त्योहारों में बाबा बोंगा, सहराई, माघे, ईरो, नमः और असारिया शामिल हैं।

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संथाली
ᱥᱟᱱᱛᱟᱲᱤ

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पारम्परिक संथाली नृत्य

कुल जनसंख्या
7.4 मिलियन
विशेष निवासक्षेत्र
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भारत,
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बांग्लादेश,
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नेपाल
झारखण्ड2,752,723[1]
पश्चिम बंगाल2,512,331[1]
उड़ीसा894,764[1]
बिहार406,076[1]
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बांग्लादेश
300,061 (2001)[2]
असम213,139[3]
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नेपाल
42,698[4]
भाषाएँ
संताली, उड़ीया, बांग्ला, हिन्दी
धर्म
सरना धर्म
सम्बन्धित सजातीय समूह
मुण्डा  • हो  • कोल  • भूमिज

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एक जनजातीय मेले में प्रदर्शित सन्थाल घर

संथाली भाषा बोलने वाले मूल वक्ता को ही संथाल कहते हैं। किन्तु अन्य जाति द्वारा शब्द 'संताड़ी' को अपने-अपने क्षेत्रीय भाषाओं के उच्चारण स्वरूप "संथाल, संताल, संवतल, संवतर" आदि के नाम से संबोधित किए। जबकि संथाल, संताल, संवतल, संवतर आदि ऐसा कोई शब्द ही नहीं है। शब्द केवल "संथाली" है, जिसे उच्चारण के अभाव में देवनागरी में "संथाली" और रोमन में Santali लिखा जाता है।

संथाली भाषा बोलने वाले वक्ता खेरवाड़ समुदाय से आते हैं, जो अपने को "होड़" (मनुष्य) अथवा "होड़ होपोन" (मनुष्य की सन्तान) भी कहते हैं। यहां "खेरवाड़" और "खरवार" शब्द और अर्थ में अंतर है। खेरवाड़ एक समुदाय है, जबकि खरवार इसी की ही उपजाति है। इसी तरह हो, मुंडा, कुरुख, बिरहोड़, खड़िया, असुर, लोहरा, सावरा, भूमिज, महली रेमो, बेधिया आदि इसी समुदाय की बोलियां है, जो संताड़ी भाषा परिवार के अन्तर्गत आते हैं। संताड़ी भाषा भाषी के लोग भारत में अधिकांश झारखंड, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, बिहार, असम, त्रिपुरा, मेघालय, मणिपुर, सिक्किम, मिजोरम राज्यों तथा विदेशों में अल्पसंख्या में चीन, न्यूजीलैंड, नेपाल, भूटान, बंगलादेश, जवा, सुमात्रा आदि देशों में रहते हैं। संथाली भाषा भाषी के लोग भारत की प्राचीनतम जनजातियों में से एक है। किन्तु वर्तमान में इन्हे झारखंडी (जाहेर खोंडी) के रूप में जाना जाता है। झारखंडी का अर्थ झारखंड में निवास करने वाले से नहीं है बल्कि "जाहेर" (सारना स्थल) के "खोंड" (वेदी) में पूजा करने वाले लोग से है, जो प्रकृति को विधाता मानता है। अर्थात् प्रकृति के पुजारी - जल, जंगल और जमीन से जुड़े हुए लोग। ये "मारांग बुरु" और "जाहेर आयो" (माता प्रकृति) की उपासना करतें है।

वस्तुत: संथाली भाषा भाषी के लोग मूल रूप से खेरवाड़ समुदाय से आते हैं, किन्तु मानवशास्त्रियों ने इन्हें प्रोटो आस्ट्रेलायड से संबन्ध रखने वाला समूह माना है। अपितु इसका कोई प्रमाण अबतक प्रस्तुत नहीं किया गया है। अत: खेरवाड़ समुदाय (संथाली, हो, मुंडा, भूमिज, कुरुख, बिरहोड़, खड़िया, असुर, लोहरा, सावरा, महली रेमो, बेधिया आदि) में भारत सरकार को पुनः शोध करना चाहिए।

संताड़ी समाज अद्वितीय विरासत की परंपरा और आश्चर्यजनक परिष्कृत जीवन शैली है। सबसे उल्लेखनीय हैं उनके लोकसंगीत, गीत, संगीत, नृत्य और भाषा हैं। दान करने की संरचना प्रचुर मात्रा में है। उनकी स्वयं की मान्यता प्राप्त लिपि 'ओल-चिकी' है, जो खेरवाड़ समुदाय के लिये अद्वितीय है। इनकी सांस्कृतिक शोध दैनिक कार्य में परिलक्षित होते है- जैसे डिजाइन, निर्माण, रंग संयोजन और अपने घर की सफाई व्यवस्था में है। दीवारों पर आरेखण, चित्र और अपने आंगन की स्वच्छता कई आधुनिक शहरी घर के लिए शर्म की बात होगी। अन्य विषेशता इनके सुन्दर ढंग के मकान हैं जिनमें खिड़कियां नहीं होती हैं। इनके सहज परिष्कार भी स्पष्ट रूप से उनके परिवार के माता पिता, पति पत्नी, भाई बहन के साथ मजबूत संबंधों को दर्शाता है। सामाजिक कार्य सामूहिक होता है। अत: पूजा, त्योहार, उत्सव, विवाह, जन्म, मृत्यु आदि में पूरा समाज शामिल होता है। हालांकि, संताड़ी समाज पुरुष प्रधान होता है किन्तु सभी को बराबरी का दर्जा दिया गया है। स्त्री पुरुष में लिंग भेद नहीं है। इसलिए इनके घर लड़का और लड़की का जन्म आनंद का अवसर हैं। इनके समाज में स्त्री पुरुष दोनों को विशेष अधिकार प्रदान किया गया है। वे शिक्षा ग्रहण कर सकते है; वे नाच गा सकते है; वे हाट बाजार घूम सकते है; वे इच्छित खान पान का सेवन कर सकते है; वे इच्छित परिधान पहन सकते हैं; वे इच्छित रूप से अपने को सज संवर सकते हैं; वे नौकरी, मेहनत, मजदूरी कर सकते हैं; वे प्रेम विवाह कर सकते हैं। इनके समाज में पर्दा प्रथा, सती प्रथा, कन्या भ्रूण हत्या, दहेज प्रथा नहीं है बल्कि विधवा विवाह; अनाथ बच्चों; नजायज बच्चों को नाम, गोत्र देना और पंचायतों द्वारा उनके पालन का जिम्मेदारी उठाने जैसे श्रेष्ठ परम्परा है।

संताड़ी समाज मृत्यु के शोक अन्त्येष्टि संस्कार को अति गंभीरता से मनाया जाता है। इनके धार्मिक विश्वासों और अभ्यास किसी भी अन्य समुदाय या धर्म से मेल नहीं खाता है। इनमें प्रमुख देवता हैं- 'सिञ बोंगा', 'मारांग बुरु' (लिटा गोसांय), 'जाहेर एरा, गोसांय एरा, मोणे को, तुरूय को, माझी पाट, आतु पाट, बुरू पाट, सेंदरा बोंगा, आबगे बोंगा, ओड़ा बोंगा, जोमसिम बोंगा, परगना बोंगा, सीमा बोंगा (सीमा साड़े), हापड़ाम बोंगा आदि। पूजा अनुष्ठान में बलिदानों का इस्तेमाल किया जाता है। चूंकि, संताड़ी समाज में सामाजिक कार्य सामूहिक होता है। अत: इस कार्य का निर्वहन के लिए समाज में मुख्य लोग "माझी, जोग माझी, परनिक, जोग परनिक, गोडेत, नायके और परगना" होते हैं, जो सामाजिक व्यवस्था, न्याय व्यवस्था, जैसे - त्योहार, उत्सव, समारोह, झगड़े, विवाद, शादी, जन्म, मृत्यु, शिकार आदि का निर्वहन में अलग - अलग भूमिका निभाते है।

इनके चौदह मूल गोत्र हैं- हासंदा, मुर्मू, किस्कु, सोरेन, टुडू, मार्डी, हेंब्रोम, बास्के, बेसरा, चोणे, बेधिया, गेंडवार, डोंडका और पौरिया। संताड़ी समाज मुख्यतः बाहा, सोहराय, माग, ऐरोक, माक मोंड़े, जानताड़, हरियाड़ सीम, पाता, सेंदरा, सकरात, राजा साला:अा त्योहार और पूजा मनाते हैं। इनके विवाह को 'बापला' कहा जाता है। संताड़ी समाज में कुल 23 प्रकार की विवाह प्रथायें है, जो निम्न प्रकार है -

1. Madwa बापला

2. तुनकी दिपिल बापला:इस पद्धति से शादी बहुत ही निर्धन परिवार द्वारा की जाती है । इसमें लड़का दो बारातियों के साथ लड़की के घर जाता है तथा लड़की अपने सिर पर टोकरी रखकर उसके साथ आ जाती है। सिन्दूर की रस्म लड़के के घर पर पूरी की जाती है।

3. गोलयटें बापला

4. हिरोम चेतान बापला 5. बाहा बापला

6. दाग़ बोलो बापला

7. घरदी जवाई बापला: ऐसे विवाह में लड़का अपने ससुराल में घर जमाई बनकर रहता है । वह लड़की के घर 5 वर्ष रहकर काम करता है। तत्पश्चात एक जोड़ी बैल,खेती के उपकरण तथा चावल आदि सामान लेकर अलग घर बसा लेता है।

8. आपांगिर बापला

9. कोंडेल ञापाम बापला

10. इतुत बापला: ऐसा विवाह तब होता है जब कोई लड़का बलपूर्वक किसी सार्वजनिक स्थान पर लड़की के मांग में सिन्दूर भर देता है । इस स्थिति में वर पक्ष को दुगुना वधू मूल्य चुकाना पड़ता है। यदि लड़की उसे अपना पति मानने से इन्कार कर देती है तो उसे विधिवत तलाक़ देना पड़ता है।

11.ओर आदेर बापला

12. ञीर नापाम बापला

13. दुवर सिंदूर बापला

14. टिका सिंदूर बापला

15. किरिञ बापला: जब लड़की किसी लड़के से गर्भवती हो जाती है तो जोग मांझी अपने हस्तक्षेप से सम्बंधित व्यक्ति के विवाह न स्वीकार करने पर लड़की के पिता को कन्या मूल्य दिलवाता है ताकि लड़की का पिता उचित रकम से दूसरा विवाह तय कर सके।

16. छडवी बापला

17. बापला

18. गुर लोटोम बापला

19.संगे बरयात बापला।

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. ↑ अ आ इ ई "A-11 Individual Scheduled Tribe Primary Census Abstract Data and its Appendix". www.censusindia.gov.in. Office of the Registrar General & Census Commissioner, India. मूल से 7 सितंबर 2015 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2017-11-18.
  2. Cavallaro, Francesco; Rahman, Tania. "The Santals of Bangladesh" (PDF). ntu.edu.sg. Nayang Technical University. मूल (PDF) से 16 मई 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2017-11-17.
  3. "Statement 1: Abstract of speakers' strength of languages and mother tongues - 2011". www.censusindia.gov.in. Office of the Registrar General & Census Commissioner, India. मूल से 16 जुलाई 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2018-07-07.
  4. "Santhali: Also spoken in Nepal". मूल से 27 नवंबर 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2011-04-01.

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

  • संथाली भाषा
  • संथाल विद्रोह
  • झारखंड
  • हुदुर दुर्गा

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]

  • मिटने के कगार पर गौरवशाली परम्परा (भारतीय पक्ष)

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झारखंड से संबंधित यह लेख अपनी प्रारम्भिक अवस्था में है, यानि कि एक आधार है। आप इसे बढाकर विकिपीडिया की मदद कर सकते है।

संथाल क्या काम करते थे?

उनका मुख्य व्यवसाय कृषि है। संथाल जंगलों में पौधों और पेड़ों से अपनी बुनियादी आवश्यकताओं को पूरा करते हैं। इस आदिवासी समुदाय के लोगों के पास संगीत उपकरण, टोकरियाँ और पौधों से चटाई बनाने का अद्वितीय कौशल है। आधुनिक काल में वे अन्य आधुनिक व्यवसाय भी करते हैं।

संथाल का मतलब क्या है?

संथाल का हिंदी अर्थ उक्त जनजाति या आदिवासी समूह का पुरुष।

भारत में संथाल की जनसंख्या कितनी है?

संथाल लोग अब भी भारत के सबसे बड़ा और सबसे पुराना आदिवासी समुदाया माने जाते हैं. उनकी आबादी 15 करोड़ के आसपास है जो पांच राज्यों और मुख्यतः पूर्वी भारत में रहते हैं.

संथाल गांव का धार्मिक प्रधान कौन होता है?

धार्मिक जीवन :- संथाल जनजातियों में प्रधान देवता "सिंगबोंगा या ठाकुर" को माना जाता है इनका दूसरा प्रधान देवता "मरांग बुरु" है। संथालो का ग्राम देवता "जाहेर ऐरा" ,धार्मिक प्रधान "नायके" और गृह देवता "ओड़ाक बोंगा" को कहा जाता है