स्थानीय स्वशासन का क्या महत्व है इसकी संरचना को स्पष्ट कीजिए? - sthaaneey svashaasan ka kya mahatv hai isakee sanrachana ko spasht keejie?

नगरीयस्थानीयस्वशासन

नगरीय (शहरी) स्वशासन व्यवस्था के सम्बन्ध में मूल संविधान मे कोई प्रावधान नहीं किया गया है। लेकिन सातवीं अनुसूची की राज्य सूची में शामिल करके यह स्पष्ट कर दिया था कि इस सम्बन्ध में केवल राज्य द्वारा ही कानून बना सकता है ।

74 वें संवैधानिकसंशोधनअधिनियमद्वारानगरीयस्व-शासनकेसम्बन्धमेंप्रावधान

संसद 74 वाँ संवैधानिक संशोधन अधिनियम,1992  द्वारा, स्थानीय नगरीय शासन को, सवैंधानिक दर्जा प्रदान किया गया है-

  • 74 वें संविधान संशोधन के द्वारा एक नया भाग 9 ए तथा 12 वीं अनुसूची को जोड़ा गया |
  • नगर पंचायत का गठन उस क्षेत्र के लिए होगा, जो ग्रामीण क्षेत्र से नगरीय क्षेत्र में परिवर्तन हो रहा है।
  • नगर-पालिका परिषद् का गठन छोटे नगरीय क्षेत्रों के लिए किया जाएगा।
  • नगर-निगम का गठन बडे नगरों के लिए होगा ।
  • नगरीय (शहरी) स्थानीय स्वशासी संस्थाओं में अनुसूचित जाातियों, अनुसूचित जनजातियों तथा अन्य पिछडे वर्गो के लिये आरक्षित स्थानों की संख्या, नगर में उनकी जनसंख्या  के अनुपात में निर्धारित की जायेगी ।
  • नगरीय संस्थाओं की अवधि 5 वर्ष होगी, लेकिन इन संस्थाओं का 5वर्ष के पहले भी विघटन किया जा सकता है। और विघटन की स्थिति में 6 माह के अंदर चुनाव कराना आवश्यक होगा।
  • नगरीय स्वायत्तशासी संस्थाओं में एक तिहाई स्थान महिलाओं के लिए आरक्षित होगा। अनुसुचित जाति, अनुसूचित जनजातियों,पिछडे वर्गो के लिये आरक्षित स्थानों की जो संख्या होगी उनमें से भी एक तिहाई स्थान उन जातियों की महिलाओं के लिये आरक्षित होगा।

नगरीय स्थानीयस्वशासन की संरचना  

1. नगर-निगम

बड़े नगरों में स्थानीय स्व-शासन संस्थाओं को नगर-निगम कहते हैं । नगर-निगम की स्थापना राज्य शासन द्वारा  विशेष अधिनियम द्वारा की जाती  है। सामान्यत: नगर-निगम की संरचना निर्वाचित पार्षदों, राज्य सरकार द्वारा मनोनीत, क्षेत्रीय संसद व विधायकों से होती है। किन्तु निर्वाचित पार्षदों के अतिरिक्त अन्य सदस्यों का सामान्य परिषद् मे मत देने का अधिकार नहीं होता है। निगम का कार्य संचालन तीन प्रधिकरणों के अधीन होता है-

  • सामान्य परिषद्
  • स्थायी समिति,
  • निगम आयुक्त ।

सामान्य परिषद् को नगर-निगम की विधायिका कहा जाता हैं, इसके सदस्यों को जनता वयस्क मताधिकार के आधार पर 5 वर्ष के लिये निर्वाचित करती है। जिसे नगर पार्षद कहा जाता है। नगर को उतने वार्डो या निर्वाचन क्षेत्रों में विभाजित किया जाता है, जितने सदस्य चुने जाते है। नगर निगम में वार्डो की संख्या का निर्धारण राज्यपाल के अधिकार में होता है। अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, पिछडे वर्ग व महिलाओं के लिये नियमानुसार आरक्षण की व्यवस्था होती है।

पार्षद पदहेतुयोग्यता

  • भारत का नागरिक हो।
  • उसका नाम मतदाता सूची में हो ।
  • अन्य योग्यताएँ जो कानून द्वारा निर्धारित की गई हो।

 नगर-निगम के अध्यक्ष को महापौर (मेयर) कहा जाता है। महापौर का चुनाव जनता द्वारा प्रत्यक्ष रूप से किया जाता है। उसका कार्य निगम की बैठकों की अध्यक्षता करना और उसका संचालन करना है । नगर-निगम के महापौर का कार्यकाल 5 वर्ष है नगर-निगम के पार्षद, महापौर को अविश्वास प्रस्ताव द्वारा हटा सकते है। किन्तु ये प्रस्ताव कुछ  पार्षदों के बहुमत तथा उपस्थित सदस्यों के 2/3 बहुमत से पारित होना आवश्यकता है ।

नगरनिगम केकार्य

नगर निगम एक व्यवस्थपिका तरह कार्य करती है। इसके कार्यों को अनिवार्य और एच्छिक में बांट सकते है।इसके कार्य हैं :-

  • भूमि उपयोग एवं भवन निमार्ण करना, गंदी बस्तियों में सुधार करना ।
  • स्वच्छ जल, सड़क, प्रकाश, एवं स्वास्थ्य सेवा उपलब्ध कराना ।
  • जल निकासी एवं सफाई व्ययस्था ।
  • शैक्षिक एवं उद्यान, खेल के मैदान की व्यवस्था कराना ।
  • जन्म मृत्यु पंजीयन एवं शवदाह गृह  की व्यवस्था ।
  • अग्निशमन सेंवाएं इत्यादि।

आय के स्रोत 

निगम अपने स्तर पर संसाधनों से आय जुटाती है जैसे सम्पत्ति कर, जलकर, अग्निकर, सम्पत्ति हस्तांतरण कर, बाजारकर, दुकान कर, चुंगीकर विज्ञापन कर, आदि। इसके अतिरिक्त ये निकाय सरकार से अनुदान प्राप्त करते हैं ।

2. नगरपालिका

छोटे शहरी स्थानीय स्वशासन सस्थायें नगर पालिका कहलाती है। नगर पालिका गठन एवं उसकी कार्य शक्ति के लिए राज्य सरकार अधिनियम बनाती है ।

गठन

नगर पालिका के सदस्यों की संख्या नगर की जनसंख्या के आधार पर निर्धारित होता है। नगर को वार्ड में बांट दिया जाता है। इसमें से कुछ वार्ड में बांट दिया जाता है। इसमें मे कुछ वार्ड अनुसूचित जाति, जनजाति एवं महिलाओं के लिए सुरक्षित किए जो निम्न है-

  • आयु 25 वर्ष से कम न हो ।
  • उसका नाम उस नगर के मतदाता सूची  में हो ।
  • किसी विधि द्वारा अयोग्य घोषित न किया गया हो।
  • केन्द्र या राज्य सरकार के अधीन किसी लाभकारी पद पर न हो।

नगर पालिका के ‘अध्यक्ष’ का चुनाव प्रत्यक्ष रूप से वयस्क जनता द्वारा किया जाता है। इसी प्रकार प्रत्यक्ष रूप से वयस्क जनता ही पार्षदों को चुनती है। नगरपालिका के पार्षद अपने में से गुप्त मतदान द्वारा एक ‘उपाध्य़क्ष’ चुनते है नगरपालिका के अध्य़क्ष व उपाध्यक्ष को  पार्षद अविश्वास प्रस्ताव द्वारा हटा भी सकते है। नगरपालिका की एक परिषद होती है जिसकी  बैठक 1 माह में एक बार होना आवश्यक है इसकी अध्यक्षता ‘नगरपालिका अध्यक्ष’ करता है।

नगर पालिकापरिषद्काप्रशासन

प्रशासनिक व्यवस्था हेतु एक अधिकारी की व्यवस्था की गई है, जो विभिन्न राज्यों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है | ये विभिन्न परिषदों व समितियों द्वारा लिये गये निर्णयों को  कार्यान्वित करता  है । नगरपालिका अपने विभिन्न कार्यो के सम्पादन हेतु समितियों, उपसमितियाँ, गठिन करती है। इस समिति मे निर्वाचित सदस्यों के अतिरिक्त कुछ स्थायी सदस्य भी होते है। जैसे- कार्यपालन अधिकारी, स्वास्थ्य अधिकारी, सफाई अधिकारी, म्यूनिसीपल इंजीनियर, ओवरसियर, चुंगी अधिकारी, शिक्षा विशेषज्ञ आदि।

नगरपालिकाकीचारश्रेणियाँ

प्रथम श्रेणी- 50 हजार जनसंख्या वाले नगरों में ।

द्वितीय श्रेणी- 50 हजार से कम, 20 हजार से अधिक जनसंख्या वाले नगर।

तृतीय श्रेणी- 20 हजार से कम, 10 हजार से अधिक जनसंख्या वाले नगर ।

चतुर्थ श्रेणी- 10 हजार से कम जनसंख्या वाले नगर ।

नगरपालिका केकार्य

सामानयत: नगर-निगम और नगरपालिका के कार्य लगभग समान है। सार्वजनिक स्वास्थ्य, शिक्षा आदि क्षेत्र में इसके महत्वपूर्ण कार्य हैं -

  • सार्वजनिक सड़कों,भवनों आदि पर प्रकाश की व्यवस्था कराना ।
  • अग्निशमन (आग बुझाने ) की व्यवस्था करना ।
  • नगर की सफाई कराना ।
  • काँजी हाउस खोलना ।
  • जन्म-मुत्यु का पंजीयन ।
  • संक्रामक रोगों से बचाव करना आदि कार्य नगरपालिका द्वारा किये जाते हैं |

3. नगर-पंचायत

नगर-पंचायत नगरीय क्षेत्र की पहली स्वायत्त संस्था है। ‘नगर-पंचायत’ की व्यवस्था संक्रमणशील क्षेत्रों में की जाती है,अर्थात् ऐसे क्षेत्र जो ग्रामीण से नगरीय क्षेत्र की ओर बढ़  रहे हैं । इस प्रकार ग्रामीण और नगरीय के बीच की श्रेणी वाले क्षेत्रों  के लिए नगर पंचायतों की व्यवस्था की गई है। विभिन्न राज्यों में इनके भिन्न-भिन्न नाम दिए गये है जैसे-उत्तर प्रदेश में “नगर पंचायत’, बिहार मे इसे ‘अधिसूचित क्षेत्र समिति’,छत्तीसगढ में इसे ‘नगर पंचायत’ कहा जाता है। नगर पंचायत के सदस्यों का पार्षद कहा जाता है। नगर पंचायत के प्रधान को अध्यक्ष कहा जाता है। पार्षद व अध्यक्ष का निर्वाचन, उस नगर की जनता द्वारा प्रत्यक्ष रूप से होता है। पार्षद अपने में से एक को उपाध्यक्ष चुनते है। नगर पंचायत का कार्यकाल पाचँ वर्ष होता है पाँच वर्ष के पूर्व भी यह भंग हो सकती है किन्तु 6 माह के अंदर पुन: निर्वाचन होना आवश्यक है।

नगर पंचायतकेकार्य

  • सड़क, नाली, गली आदि की सफाई करना।
  • सार्वजनिक स्थानों व सडकों, गली आदि में बिजली की व्यवस्था करना।
  • जल आपूर्ति सुनिश्चित करना।
  • सार्वजनिक शौचालय, स्नानागार आदि की व्यवस्था करना ।
  • सार्वजनिक बाजारों की व्यवस्था करना।
  • आग बुझाने के लिए अग्निशमन की व्यवस्था करना।
  • श्मशान घाट (स्थल) की व्यवस्था करना।
  • जन्म व मुत्यु का पंजीकरण करना।
  • स्वच्छता, पार्कों  का विकास, वाचनालय आदि की व्यवस्था इत्यादि।

आयके स्रोत 

राज्य की व्यवस्थापिका इन संस्थाओं को कर, शुल्क, पथकर, बाजार एवं दुकान पर कर निर्धारित करने, संग्रहित करने एवं व्यय करने का अधिकार देती है। राज्य सरकार की ओर से इन्हें  अनुदान प्रदान किया जाता है।

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स्थानीय स्वशासन क्या है और इसका महत्व क्या है?

स्थानीय स्वशासन का अर्थ है नागरिकों का अपने ऊपर स्वयं का शासन अर्थात लोगों की अपनी शासन व्यवस्था। प्राचीन काल में स्थानीय स्वशासन विद्यमान था तथा ग्रामीण शासन प्रबन्ध न के लिए लोगों के अपने कायदे कानून होते थे। इन नियमों के पालन में प्रत्येक व्यक्ति स्वैच्छिक भूमिका निभाता था।

स्थानीय शासन का महत्व क्या है?

स्थानीय स्वशासन की सबसे महत्त्वपूर्ण विशेषता यह होती है कि यह देश के आम नागरिकों के सबसे करीब होती है और इसलिये यह लोकतंत्र में सबकी भागीदारी सुनिश्चित करने में सक्षम होती है। स्थानीय सरकार का क्षेत्राधिकार एक विशेष क्षेत्र तक सीमित होता है और यह उन्हीं लोगों के लिये कार्य करती है जो उस क्षेत्र विशेष के निवासी हैं।

स्थानीय स्वशासन के कार्य क्या है?

यदि स्थानीय क्षेत्र का प्रशासन केन्द्र या राज्य सरकारों के अधिकारियों द्वारा चलाया जाए तो वह स्थानीय प्रशासन होगा न कि स्थानीय स्वशासनस्थानीय स्तर की समस्याओं का स्थानीय स्तर पर समाधान करने के लिए प्रायः सभी देशों में स्थानीय स्वशासन की संस्थाएं स्थापित की जाती हैं।

स्थानीय स्वशासन संस्थाओं की क्या आवश्यकता है कोई तीन कारण बताइए?

स्थानीय शासन द्वारा स्वशासन की वुवस्था को स्थानीय स्वायत्त शासन कहते हैं। स्थानीय स्वायत्त शासन के दो मूल कारण हैं- पहला, यह व्यवस्था शासन को निचले स्तर तक लोकतांत्रिक बनाती है; दूसरा, स्थानीय लोगों की भागीदारी सक्षम बनती है, साथ ही लोगों को शासन की कला का ज्ञान होता है।