जब स्वर के साथ स्वर का मेल होता है, तब जो परिवर्तन होता है, उसे स्वर संधि कहते हैं। हिंदी में स्वरों की संख्या ग्यारह होती है। बाकी के अक्षर व्यंजन होते हैं। जब दो स्वर मिलते हैं, तब उससे जो तीसरा स्वर बनता है, उसे स्वर संधि कहते हैं। उदाहरणार्थ - Show विद्या + आलय = विद्यालय (आ + आ = आ) स्वर संधि पांच प्रकार की होती हैं-
(क) दीर्घ संधि- जब (अ, आ) के साथ (अ, आ) हो तो ‘आ‘ बनता है, जब (इ, ई) के साथ (इ, ई) हो तो ‘ई‘ बनता है, जब (उ, ऊ) के साथ (उ, ऊ) हो तो ‘ऊ‘ बनता है। अर्थात सूत्र- अकः सवर्ण दीर्घः- मतलब अक् प्रत्याहार के बाद अगर सवर्ण हो तो दानों मिलकर दीर्घ बनते हैं। दूसरे शब्दों में कहें, तो जब दो सजातीय स्वर आसपास आते हैं, तब जो स्वर बनता है, उसे सजातीय दीर्घ स्वर कहते हैं। इसी को स्वर संधि की दीर्घ संधि कहते हैं। इसे ह्रस्व संधि भी कहते हैं। उदाहरण-
(ख) गुण संधि- जब (अ, आ) के साथ (इ, ई) हो तो ‘ए‘ बनता है, जब (अ, आ) के साथ (उ, ऊ) हो तो ‘ओ‘ बनता है, जब (अ, आ) के साथ (ऋ) हो तो ‘अर‘ बनता है। इसे गुण संधि कहते हैं। उदाहरण-
(ग) वृद्धि संधि- जब (अ, आ) के साथ (ए, ऐ) हो तो ‘ऐ‘ बनता है और जब (अ, आ) के साथ (ओ, औ) हो तो ‘औ‘ बनता है। इसे वृद्धि संधि कहते हैं। उदाहरण-
(घ) यण संधि- जब (इ, ई) के साथ कोई अन्य स्वर हो तो ‘य‘ बन जाता है, जब (उ, ऊ) के साथ कोई अन्य स्वर हो तो ‘व्‘ बन जाता है, जब (ऋ) के साथ कोई अन्य स्वर हो तो ‘र‘ बन जाता है। यण संधि के तीन प्रकार के संधि युक्त पद होते हैं- (1) य से पूर्व आधा व्यंजन होना चाहिए। (2) व् से पूर्व आधा व्यंजन होना चाहिए। (3) शब्द में त्र होना चाहिए। यण स्वर संधि में एक शर्त भी दी गयी है कि य और त्र में स्वर होना चाहिए और उसी से बने हुए शुद्ध व सार्थक स्वर को + के बाद लिखें। इसे यण संधि कहते हैं। उदाहरण-
(च) अयादि संधि- जब (ए, ऐ, ओ, औ) के साथ कोई अन्य स्वर हो तो ‘ए - अय‘ में, ‘ऐ - आय‘ में, ‘ओ - अव‘ में, ‘औ - आव‘ में बदल जाता है। य, व् से पहले व्यंजन पर अ, आ की मात्रा हो तो अयादि संधि हो सकती है, लेकिन और कोई विच्छेद न निकलता हो तो _ के बाद वाले भाग को वैसा का वैसा लिखना होगा। इसे अयादि संधि कहते हैं। उदाहरण-
(2) व्यंजन संधिदो व्यंजनों के परस्पर मेल किसी स्वर के साथ मिलने पर जो परिवर्तन होता है, उसे व्यंजन संधि कहा जाता है। जैसे - तत् + अनुसार = तदनुसार
(1) जब किसी वर्ग के पहले वर्ण क्, च्, ट्, त्, प् का मिलन किसी वर्ग के तीसरे या चैथे वर्ण से या य्, र्, ल्, व्, ह से या किसी स्वर से हो जाये तो क् को ग्, च् को ज्, ट् को ड्, त् को द्, और प् को ब् में बदल दिया जाता है। अगर स्वर मिलता है तो जो स्वर की मात्रा होगी, वह हलन्त वर्ण में लग जाएगी, लेकिन अगर व्यंजन का मिलन होता है, तो वे हलन्त ही रहेंगे। उदाहरण-
(2) यदि किसी वर्ग के पहले वर्ण (क्, च्, ट्, त्, प्) का मिलन न या म वर्ण (ङ, ञ, ज, ण, न, म) के साथ हो, तो क् को ङ्, च् को ज्, ट् को ण्, त् को न्, तथा प् को म् में बदल दिया जाता है। उदाहरण:- क् के ङ् में बदलने के- (3) जब त् का मिलन ग, घ, द, ध, ब, भ, य, र, व से या किसी स्वर से हो, तो द् बन जाता है। म के साथ क से म तक के किसी भी वर्ण के मिलन पर ‘म‘ की जगह पर मिलन वाले वर्ण का अंतिम नासिक वर्ण बन जायेगा। उदाहरण-
(4) त् से परे च् या छ् होने पर च, ज् या झ् होने पर ज्, ट् या ठ् होने पर ट्, ड् या ढ् होने पर ड् और ल होने पर ल् बन जाता है। म् के साथ य, र, ल, व, श, ष, स, ह में से किसी भी वर्ण का मिलन होने पर ‘म्’ की जगह पर अनुस्वार ही लगता है। उदाहरण- म + य, र, ल, व्, श, ष, स, ह के उदाहरण- (5) जब त् का मिलन अगर श् से हो तो त् को च् और श् को छ् में बदल दिया जाता है। जब त् या द् के साथ च या छ का मिलन होता है तो त् या द् की जगह पर च् बन जाता है। उदाहरण- उत् + चारण = उच्चारण (6) जब त् का मिलन ह् से हो तो त् को द् और ह् को ध् में बदल दिया जाता है। त् या द् के साथ ज या झ का मिलन होता है, तब त् या द् की जगह पर ज् बन जाता है। उदाहरण- सत् + जन = सज्जन (7) स्वर के बाद अगर छ् वर्ण आ जाए, तो छ् से पहले च् वर्ण बढ़ा दिया जाता है। त् या द् के साथ ट या ठ का मिलन होने पर त् या द् की जगह पर ट् बन जाता है। त् या द् के साथ ‘ड’ या ढ का मिलन होने पर त् या द् की जगह पर ‘ड्’ बन जाता है। उदाहरण- तत् + टीका = तट्टीका (8) अगर म् के बाद क् से लेकर म् तक कोई व्यंजन हो, तो म् अनुस्वार में बदल जाता है। त् या द् के साथ जब ल का मिलन होता है तब त् या द् की जगह पर ‘ल्’ बन जाता है। उदाहरण- उत् + लास = उल्लास (9) म् के बाद म का द्वित्व हो जाता है। त् या द् के साथ ‘ह’ के मिलन पर त् या द् की जगह पर द् तथा ह की जगह पर ध बन जाता है। उदाहरण- उत् + हार = उद्धार (10) म् के बाद य्, र्, ल्, व्, श्, ष्, स्, ह् में से कोई व्यंजन आने पर म् का अनुस्वार हो जाता है। ‘त् या द्’ के साथ ‘श’ के मिलन पर त् या द् की जगह पर ‘च्’ तथा ‘श’ की जगह पर ‘छ’ बन जाता है। उदाहरण - उत् + ष्वास = उच्छ्वास (11) ऋए र्ए ष् से परे न् का ण् हो जाता है। परन्तु चवर्ग, टवर्ग, तवर्ग, श और स का व्यवधान हो जाने पर न् का ण् नहीं होता। किसी भी स्वर के साथ 'छ' के मिलन पर स्वर तथा 'छ' के बीच 'च' आ जाता है। उदाहरण - आ + छादन = आच्छादन (12) स् से पहले अए आ से भिन्न कोई स्वर आ जाए, तो स् को ष बना दिया जाता है। उदाहरण - वि + सम = विषम (13) यदि किसी शब्द में कही भी ऋ, र या ष हो एवं उसके साथ मिलने वाले शब्द में कहीं भी 'न' हो तथा उन दोनों के बीच कोई भी स्वर कए खए गए घए पए फए बए भए मए यए रए लए व में से कोई भी वर्ण होए तो सन्धि होने पर 'न' के स्थान पर 'ण' हो जाता है। जब द् के साथ क, ख, त, थ, प, फ, श, ष, स, ह का मिलन होता है, तब द की जगह पर त् बन जाता है। उदाहरण- राम + अयन = रामायण
मनः + योग = मनोयोग
विसर्ग संधि के 10 नियम होते हैं- (1) विसर्ग के साथ च या छ के मिलन से विसर्ग के जगह पर ‘श्’ बन जाता है। विसर्ग के पहले अगर ‘अ’ और बाद में भी ‘अ’ अथवा वर्गों के तीसरे, चैथे, पांचवें वर्ण, अथवा य, र, ल, व हो तो विसर्ग का ‘ओ‘ हो जाता है। उदाहरण- मनः + अनुकूल = मनोनुकूल
(2) विसर्ग से पहले अ, आ को छोड़कर कोई स्वर हो और बाद में भी कोई स्वर हो, वर्ग के तीसरे, चौथे, पांचवें वर्ण अथवा य्, र, ल, व, ह में से कोई हो तो विसर्ग कार र्या हो जाता है। विसर्ग के साथ ‘श’ के मेल पर विसर्ग के स्थान पर भी ‘श्’ बन जाता है। उदाहरण-
(3) विसर्ग से पहले कोई स्वर हो और बाद में च, छ या श हो तो विसर्ग का श हो जाता है। विसर्ग के साथ ट, ठ या ष के मेल पर विसर्ग के स्थान पर ‘ष्’ बन जाता है। उदाहरण- धनुः + टंकार = धनुष्टंकार
(4) विसर्ग के बाद यदि त या स हो तो विसर्ग स् बन जाता है। यदि विसर्ग के पहले वाले वर्ण में अ या आ के अतिरिक्त अन्य कोई स्वर हो तथा विसर्ग के साथ मिलने वाले शब्द का प्रथम वर्ण क, ख, प, फ में से कोई भी हो तो विसर्ग के स्थान पर ‘ष्’ बन जायेगा। उदाहरण- निः + कलंक = निष्कलंक
(5) विसर्ग से पहले इ, उ और बाद में क, ख, ट, ठ, प, फ में से कोई वर्ण हो तो विसर्ग का ष हो जाता है। यदि विसर्ग के पहले वाले वर्ण में अ या आ का स्वर हो तथा विसर्ग के बाद क, ख, प, फ हो तो सन्धि होने पर विसर्ग भी ज्यों का त्यों बना रहेगा। उदाहरण- संधि कितने कितने प्रकार के होते हैं?स्वर संधि. दीर्घ संधि. गुण संधि. वृद्धि संधि. यण संधि. अयादि संधि. संधि कितने प्रकार की होती है ?`?संधि के भेद
वर्ण के आधार पर संधि 3 प्रकार के होते हैं।
संधि कितने प्रकार के होते हैं 1 Point?संधि 'तीन' प्रकार की होती हैं – स्वर संधि, व्यंजन संधि तथा विसर्ग संधि। अतः सही विकल्प तीन है।
संधि कितने प्रकार के होते हैं PDF?वर्णों के आधार पर संधि के तीन भेद है-. स्वर संधि. व्यंजन संधि. विसर्ग संधि. |