आधुनिक समय में व्यक्ति अपने मनोभावों का प्रकटीकरण भाषा के माध्यम से दो रूपों में करता है। 1. मौखिक भाषा के माध्यम से 2. लिखित भाषा के माध्यम से । मौखिक रूप के अन्तर्गत भाषा का ध्वन्यात्मक रूप एवं भावों की मौखिक अभिव्यक्ति है। जब इन ध्वनियों को प्रतीकों के रूप में व्यक्त किया जाता है, और इन्हें लिपिबद्ध करके स्थायित्व प्रदान करते हैं, तो वह भाषा का लिखित रूप कहलाता है। भाषा के इस प्रतीक रूप की शिक्षा, प्रतीकों को पहचान कर उन्हें बनाने की क्रिया अथवा ध्वनि को लिपिबद्ध करना लिखना है। Show लेखन शिक्षण के उद्देश्यलेखन शिक्षण का अर्थ जानने के पश्चात यह जरूरी हो जाता है कि हम लेखन शिक्षण के उद्देश्यों को भली-भाँति जाने।
लेखन शिक्षण के गुण
लेखन शिक्षण की प्रविधियाँलेखन शिक्षण कब से प्रारम्भ किया जाये, शिक्षाशास्त्रिायों में मतैक्य नहीं है। प्रसिद्ध शिक्षा शास्त्राी फ्रोबेल ने पढ़ने की क्रिया पहले और लिखने की क्रिया को बाद में रखने का सुझाव दिया है। वहीं दूसरी तरफ श्रीमती मारिया माण्टेसरी ने ‘लिखाने सिखाने को पहले, तत्पश्चात् पढ़ना सिखाने का समर्थन किया है।’ इन दोनों मतों से भिन्न एक तीसरा मत भी है। इसे दोनों मतों का समन्वयक कह सकते हैं क्योंकि अधिकांश शिक्षाविशारदों का मत है कि पढ़ना-लिखना साथ साथ चलना चाहिए। अतः कहा जा सकता है, लेखन-शिक्षा अन्तिम सोपान है,। जब भाषा शिक्षक को यह विश्वास हो जाये कि बच्चे की हाथ की मांसपेशियाँ सुदृढ़ हो चुकी है, और वह लिखने में सक्षम है, तब थोड़े-थोड़े समय लेखन का अभ्यास कराना चाहिए। लेखन की शिक्षण विधि1. माण्टेसरी विधिः मान्टेसरी ने लिखना सिखाने में आँख, कान और हाथ- तीनों के समुचित प्रयोग पर बल दिया है। उनके मतानुसार पहले बालक को लकड़ी अथवा गत्ते या प्लास्टिक के बने अक्षरों पर ऊँगली फेरने को कहा जाये, फिर उन्हें पेंसिल को उन्हीं अक्षरों पर घुमवाना चाहिए। पेंसिल प्रायः रंगीन होनी चाहिए। इसी प्रकार बालक अक्षरों के स्वरूप से परिचित होकर उन्हें लिखना सीख जाता है। 2. रूपरेखानुकरण विधिः इस विधि में शिक्षक श्यामपट्ट या स्लेट पर चाँक या पेंसिल से बिन्दु रखते हुए शब्द या वाक्य लिख देता है और उन निशानों पर पेंसिल से लिखने के लिए बोलता है, जिससे शब्द, वाक्य या वर्ण उभर आये। इस प्रकार अभ्यास के माध्यम से वह वर्णों को लिखना सीख जाता है। 3. स्वतंत्र अनुकरण विधिः शिक्षक इस प्रविधि में श्यामपट्ट, अभ्यास पुस्तिका, या स्लेट पर अक्षरों को लिख देता है। कहा जाता है कि उन अक्षरों को देखकर उनके नीचे स्वयं इसी प्रकार के अक्षर बनाये। प्रारम्भ में बच्चे इस विधि से लिखना सीखते है। 4. जेकाॅटाॅट विधिः इस प्रणाली (विधि) में शिक्षक बालकों द्वारा पढ़े हुए वाक्य को स्वयं लिखकर लिखने के लिए दे देता है। एक-एक शब्द लिखकर अध्यापक द्वारा लिखित शब्द से मिलाते हुए स्वयं संशोधन करते चलते है। और पूरा वाक्य लिखने के पश्चात् शिक्षक मूल वाक्य को बिना देखे हुए उन्हें लिखने को कहता है, स्वयं लिखते हैं। लिखना सिखाने में ध्यान देने योग्य बातेंलिखना सिखाते वक्त अध्यापक को निम्न तथ्यों को ध्यान में रखना चाहिए।
अभ्यास को आगे तीन श्रेणियों में विभाजित किया जाता है- 1. सुलेख 2. अनुलेख 3. श्रुतलेख । 1. सुलेखः सुन्दर लेख को सुलेख कहते हैं। लिखना सिखाते वक्त इस बात का ध्यान रखना चाहिए, लिखावट खराब न होने पाये। सुलेख शिक्षित व्यक्ति का आवश्यक लक्षण है। 2. अनुलेखः सुन्दर लिखावट के लिए प्रतिलेख और अनुलेख का भी आश्रय लिया जाता है। अनुलेख का अर्थ है- किसी लिखावट के पीछे या बाद में लिखना अनुलेख के लिए अभ्यास पुस्तिका की प्रथम पंक्ति में मोटे और सुन्दर ढंग के अक्षर, शब्द या वाक्य लिखे होते हैं, उनके नीचे की पंक्तियाँ रिक्त रहती है। इस विधि में छपे हुए अक्षरों के नीचे देखकर स्वयं अक्षर बनाता है। अनुलेख का प्रारम्भिक कक्षाओं में विशेष महत्त्व है। कक्षा तीन तक अनुलेख का अभ्यास कराना चाहिए। 3. श्रुतलेखः ‘श्रुतलेख’ सुना हुआ लेख है। इस विधि में अध्यापक बोलता जाता है, छात्रा सुनकर अभ्यास-पुस्तिका या तख्ती पर लिखता जाता है। श्रुतलेख में सुन्दर लिखावट का महत्त्व नहीं हैं। महत्ता भाषा की शुद्धता का हो जाता है। श्रुतलेख वर्तनी-शिक्षण के लिए आवश्यक है। सुनकर लिखने में एक निश्चित गति से लिखना का अभ्यास हो जाता है। शैक्षणिक लेखन से आप क्या समझते है?उत्तर : लोकप्रिय शैक्षिक लेखन से आशय शिक्षा, विद्यालय, शिक्षण तथा अधिगम (सीखना) जैसे शिक्षक प्रशिक्षण के लोकप्रिय तथा विस्तार से अध्ययन/प्रशिक्षण में आने वाले पुस्तकों के अध्यायों, स्वतंत्र लेखों या निबंधों से है जो सुलिखित रूप में हों, विचारात्मक हो तथा किसी पक्ष या दृष्टिकोण को अभिव्यक्त करते हों ।
अच्छे शैक्षिक लेखन की विशेषताएं क्या है?अच्छे शैक्षिक लेखन की विशेषताएं-
(1) लोकप्रिय लेखन- लेख आदि ऐसे विषय से संबंधित हों जो शिक्षा के क्षेत्र में अपरिचित या अछूते न होकर अधिक से अधिक छात्रों, शिक्षकों को आदि को प्रिय लगे। विद्वान शिक्षाविदों के मौलिक लेखन अत्यन्त गूढ़तापूर्ण, नवीन सिद्धान्त या विषय को स्पर्श करते हुए हो सकते हैं किन्तु बी. एड.
पाठ लेखन क्या है इसकी विशेषताएं और महत्व बताइए?लेखन का उद्देश्य होता है कि इसे पढ़ा जाए, इसलिए लेखन पर ध्यान केंद्रित करने में पठन पर ध्यान केंद्रित करना हमेशा ही शामिल रहेगा। जब आप और आपके बच्चे लेखन के बारे में बात करते हैं, तो आप उनके मौखिक भाषा कौशल भी विकसित करते हैं।
लेखन से आप क्या समझते हैं?उत्तर - लिखना भावों एवं विचारों की कलात्मक अभिव्यक्ति है। वह शब्दों को क्रम से लिपिबद्ध, सुव्यवस्थित करने की कला है। भावों एवं विचारों की यह कलात्मक अभिव्यक्ति जब लिखित रूप में होती है तब उसे लेखन अथवा लिखित रचना कहत हा अभिव्यक्ति की दृष्टि से लेखन तथा वाचन परस्पर पूरक होते हैं । वाचन से लेखन काठन होता है।
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