शारीरिक विकास के प्रमुख नियम कौन कौन से हैं? - shaareerik vikaas ke pramukh niyam kaun kaun se hain?

Online Question Bank For All Competitive Exams Preparation

Advertisement :


Q.78 :  निम्न में से कोनसा शारीरिक विकास का एक प्रमुख नियम है?

(a) मानसिक विकास से भिन्नता का नियम
(b) अनियमित विकास का नियम
(c) द्रुतगामी विकास का नियम
(d) कल्पना और संवेगानात्मक विकास से सम्बन्ध का नियम
View Answer
Answer :द्रुतगामी विकास का नियम


Prev Que.

Next Que.

Provide Comments :

शारीरिक विकास की परिभाषा :-

शारीरिक विकास मतलब बालक की शारीरिक संरचना एवं उसमें होने वाला परिवर्तन है। शारीरिक विकास के अंतर्गत बालक के शरीर का भार उसकी लंबाई उसकी हड्डियों का विकास एवं मजबूती आदि चीजों का विकास सम्मिलित है।

गामक विकास क्या है ?

गामक विकास एक तरीके से बालक के शारीरिक विकास से ही जुड़ा हुआ है, जिसके अंतर्गत मांसपेशियों एवं हड्डियों की क्षमता और उन पर नियंत्रण संबंधित विषय शामिल हैं। गामक विकास के अंतर्गत बालक द्वारा विभिन्न क्रियाओं को करने का तरीका और कौशल शामिल हैं। गामक विकास के अंतर्गत ही हम बालक के अंदर चलना, कूदना, दौड़ना, भोजन करना, कपड़े पहनना इत्यादि कौशलों को सम्मलित किया गया है। गामक विकास और शारीरिक विकास एक तरीके से आपस में जुड़े हुए हैं, गामक विकास के उत्तम होने के लिए पहले शरीर का विकास का उत्तम होना आवश्यक है।

शारीरिक विकास के प्रमुख तत्व :-

  • शरीर की संरचना
  • बालक के शरीर का कद
  • शरीर का भार
  • शरीरिक अनुपात
  • आन्तरिक अवयव
  • शारीरिक विकास को प्रभावित करने वाले कारक

1. शरीर की संरचना :-

बालक के शारीरिक विकास की प्रक्रिया में बहुत से आंतरिक और बाहरी अंगों का विकास शामिल है। विभिन्न अवस्थाओं में बालक के शरीर की संरचना के विकास की गति बदलती रहती है। शरीर की रचना मांसपेशियां, पाचन क्रिया, श्वसन क्रिया, शरीर का विकास परिपक्वता आज विषय शामिल हैं और एक दूसरे से संबंधित भी हैं।

अलग-अलग शारीरिक विकास :-

शारीरिक विकास सभी बालकों में अलग अलग हो सकता है लेकिन उसकी प्रक्रिया लगभग समान होती है। शारीरिक विकास में किन्ही दो बालकों में शरीर की रचना कद आदि अलग-अलग हो सकते हैं, किसी बालक में विकास की वृद्धि पहले धीमी होती है बाद में तेज हो जाती है, और किसी दूसरे बालक में विकास की वृद्धि पहले तेज रहती है बाद में धीमी हो जाती है।

2. बालक के शरीर का कद :-

● जब भी हम किसी बालक के शारीरिक आकार की बात करते हैं, तो हम बालक के शरीर के भार और लंबाई दोनों की बात कर रहे होते हैं। इसका मतलब शरीर का भार और शरीर का कद मिलकर के शरीर का आकार बनता है।

● जन्म के समय किसी बालक कि शरीर की लंबाई लगभग 20 इंच होती है जो जोकि औसतन आधा इंच जन्म के समय किसी बालिका की लंबाई से ज्यादा है। 10 से 14 वर्ष की आयु के बीच में लड़कियों का शारीरिक विकास बहुत ही तेज गति से होता है। 21 वर्ष की आयु तक लड़कियां वह लड़के अपनी अधिकतम ऊंचाई प्राप्त कर लेते हैं। बालकों की ऊंचाई बालकों के वंशक्रम, सामाजिक व आर्थिक स्थिति, रहन सहन, भौगोलिक स्थिति आदि पर भी निर्भर करती है।

3. शरीर का भार :-

जन्म के समय किसी भी शिशु का भार ढाई किलो से साडे 3 किलो के बीच होता है। किसी भी बालक या बालिका का भार उसकी 1 वर्ष की आयु तक में उसके जन्म के समय के भार का लगभग 5 गुना हो जाता है। किसी भी बालक एवं बालिकाओं के शरीर का भार उसके शरीर की प्रकृति रहन सहन आर्थिक स्थिति आदि पर भी निर्भर करता है।

4. शरीरिक अनुपात :-

किसी भी बालक के जन्म के समय उसके शरीर के अंगों का आपस में अनुपात बालक के 21 वर्ष तक की आयु में उसके शरीर के अंगों का अनुपात से भिन्न होता है। मतलब जन्म के बाद से जैसे-जैसे शिशु की उम्र बढ़ती जाती है उसके शरीर के अंगों के आकार का आपस में अनुपात भी भिन्न होता जाता है।

  • दांत :- बच्चों में 3 माह की उम्र से ही उसके अस्थाई या दूध के दांत निकलने लगते हैं। बच्चों में अस्थाई या दूध के दांतों की संख्या 30 होती है, जब किसी बालक या बालिका की उम्र 6 वर्ष हो जाती है, तो धीरे-धीरे उसके अस्थाई दांत उखड़़ जाते हैंं, और उनकी जगह स्थाई दांत आ जाते हैं। लगभग 25 वर्ष की उम्र तक सभी स्थाई दांत निकल आतेे हैं। मनुष्य में स्थाई दातों की संख्या 32 होती है।
  • चेहरा :- बच्चे में 8 वर्ष की आयु तक उसके जबड़ा, मुंह, नाक, ठोढ़ी अंगों का विकास जन्म की तुलना से काफी ज्यादा हो जाता है। इसीलिए बच्चे के चेहरे का ढांचा जन्म के समय उसके चेहरे के ढांचे की तुलना में बहुत बड़ा हो जाता है।
  • हड्डियां :- जन्म के समय किसी नवजात शिशु की शिशु में हड्डियों की संख्या 300 होती है, और उस समय उसकी हड्डियां काफी छोटी, कोमल और लचकदार होती हैं। जैसे-जैसे बच्चे की उम्र बढ़ती जाती है उसकी हड्डियों की संख्या कम होती जाती हैं, ऐसा इसलिए होता है क्योंकि उम्र बढ़ने के साथ-साथ बच्चों की कुछ हड्डियां आपस में जुड़ जाती हैं। एक वयस्क व्यक्ति में हड्डियों की संख्या 206 होती है।

5. आन्तरिक अवयव :-

शरीर के आंतरिक अवयव का विकास भी उम्र के साथ-साथ होता रहता है एक बच्चे के पाचन अंग बचपन में कोमल होते हैं और प्रौढ़ावस्था आते आते हैं कठोर हो जाते हैं। आंतरिक विकास के अंतर्गत मांस पेशियों का विकास, गामक क्रियाओं की क्रिया में संतुलन, श्वास प्रणाली, मूत्राशय, गुदा और मस्तिष्क का विकास आदि शामिल हैं।

शारीरिक विकास को प्रभावित करने वाले कारक :-

किसी भी बच्चे के शरीर के विकास को प्रभावित करने वाले कारक कई तरह के होते हैं। बच्चों के शरीर का विकास भोजन की गुणवत्ता, रहने का स्थान, वंशानुक्रम आदि चीजों से प्रभावित होता है। नीचे कुछ महत्वपूर्ण कारकों के बारे में बताया गया है–

● वातावरण :-

बालक के शारीरिक विकास में वातावरण का प्रभाव पड़ता है। वातावरण के प्रमुख तत्व जैसे हवा, धूप, स्वच्छता, आदि का असर बालक के शारीरिक विकास में अनुकूल या प्रतिकूल असर डालता है।

● भोजन की गुणवत्ता :-

बालक के शरीर के उत्तम विकास के लिए पौष्टिक भोजन बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है बिना पौष्टिक भोजन के भारत के शारीरिक विकास को उत्तम बनाना असंभव है।

● वंशानुक्रम का प्रभाव :-

बालक के शारीरिक विकास में उनके माता-पिता की शारीरिक संरचना का सीधा प्रभाव पड़ता है। अगर माता-पिता स्वस्थ नहीं है तो उनकी संतान का शारीरिक विकास सर्वोत्तम नहीं हो पाएगा।

● सही नींद :-

शरीर के स्वास्थ्य को अच्छा रखने के लिए सही नींद लेना बहुत ही आवश्यक है। बाल्यावस्था में लगभग 10 घंटे की नींद पर्याप्त होती है, और बाल्यावस्था के बाद किशोरावस्था में 8 घंटे की नींद पर्याप्त मानी जाती है।

● सही दिनचर्या :-

सही दिनचर्या उत्तम स्वास्थ्य की कुंजी है। बालक के खाने, खेलने, सोने और पढ़ने आदि का समय निश्चित और सही होना चाहिए।

● व्यायाम :-

शारीरिक विकास के लिए खेल और व्यायाम के प्रति विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए। छोटा शिशु भी पलंग पर पड़े-पड़े अपने हाथों और पैरों को इधर उधर चला कर पर्याप्त व्यायाम कर लेता है, लेकिन बालकों और किशोरों के लिए खुली हवा में खेल और व्यायाम की उचित व्यवस्था होनी चाहिए।

● बालक के शारीरिक विकास को प्रभावित करने वाले अन्य कारकों में प्रेम, सुरक्षा, रोग और दुर्घटना के कारण किसी अंग को नुकसान, जलवायु, परिवार का रहन सहन और और आर्थिक स्थिति आदि हैं, जिनका बालक के शारीरिक विकास में अनुकूल या प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

Free Download BTC/ DELEd First Semester Book PDF in Hindi

शारीरिक विकास के प्रमुख नियम क्या है?

शारीरिक विकास का एक प्रमुख नियम द्रुतगामी विकास है। ये शैशव काल (Infancy Period) के बाद शैशवावस्था की अवधि होती है, जो 2 वर्ष या 24 महीने की आयु तक जारी रहती है। द्रुतगामी विकास इस चरण की विशेषता है।

शारीरिक विकास कितने प्रकार के होते हैं?

शारीरिक विकास के चार प्रमुख चरण.
स्वास्थ्य.
बाल स्वास्थ्य.
शैशवावस्था : शारीरिक, पेशीय एवं स्नायविक विकास.
शारीरिक विकास के चार प्रमुख चरण.

शारीरिक विकास की कितनी अवस्थाएं हैं?

हम सभी में होने वाला यह विकास कुछ अवस्थाओं से होकर गुजरता है। बाल विकास की तीन मुख्य अवस्थाएं मानी गयीं हैं जो इस प्रकार हैं – शैशवावस्था, बाल्यावस्था, और किशोरावस्था।

शारीरिक विकास की परिभाषा क्या है?

शारीरिक विकास की परिभाषा :- शारीरिक विकास मतलब बालक की शारीरिक संरचना एवं उसमें होने वाला परिवर्तन है। शारीरिक विकास के अंतर्गत बालक के शरीर का भार उसकी लंबाई उसकी हड्डियों का विकास एवं मजबूती आदि चीजों का विकास सम्मिलित है।