दलित शब्द की उत्पत्ति कैसे हुई? - dalit shabd kee utpatti kaise huee?

दलित… यह एक ऐसा शब्द है जिसे ना तो संवैधानिक दर्जा प्राप्त है और न ही इसके प्रयोग की इज़ाजत। खास तौर से मीडिया जगत में… दलित शब्द प्रयोग करने की मनाही है। वो बात अलग है कि मीडिया आज भी इस बात से कोई सरोकार नहीं रखता और कोर्ट के फैसले के बाद भी पीड़ितों की जाति बताते हुए उन्हें दलित बता देता है। आज मैं आपको बताने जा रहा हूं कि दलित शब्द का क्यों, किसलिए और किसके द्वारा इस्तेमाल किया गया… क्यों अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लोगों को दलित शब्द से जोड़ा जाता है…और क्या वाकई बहुजन समाज के लिए दलित शब्द का इस्तेमाल किया जाना चाहिए?

दलित शब्द की उत्पत्ति कैसे हुई? - dalit shabd kee utpatti kaise huee?
कैसे हुई दलित शब्द की उत्पत्ति ?

जब हमने इसकी खोज करनी शुरू की तो इंटरनेट पर हमें बहुत सी सामग्री प्राप्त हुई। जिसमें कई ब्लॉग, न्यूज वेबसाइट और शोध पत्र प्राप्त हुए। इन्हीं में से एक ब्लॉग मिला जिसका नाम है DSP मुनार्ची, इस ब्लॉग में शब्दकोष के अनुसार दलित का अर्थ है मसला हुआ, मर्दित, दबाया हुआ, रौंदा हुआ, कुचला हुआ या फिर विनिष्ट किया हुआ। इसके अलावा शोध पत्र प्रकाशित वेबसाइट शोधगंगा पर हमें एक शोध पत्र भी प्राप्त हुआ जिसके पांचवे अध्याय “दलित साहित्य की अवधारणा” में दलित शब्द का अर्थ बताया गया है। इसके अनुसार हिंदू समाज व्यवस्था के अंतर्गत परंपरागत रूप से निम्न यानी कि शूद्र माने जाने वाली जातियों के लिए दलित शब्द का प्रयोग होता है। हिंदू धर्म में दलित को शूद्र नाम से पहचाना जाता है।

सबसे पहले ऋग्वेद में शूद्र शब्द का स्पष्ट स्पष्ट उल्लेख पुरुष सूक्त में हुआ है जिसे इस प्रकार लिखा गया है- ब्राह्मणोस्य मुखमासीद बाहु राजन्य: कृत:। उरू तैस्य यद् वैश्य: पद्भया शूद्रो: अजायत: । यानी ब्रह्मा के मुख से ब्राह्मण पैदा हुए, भुजाओं से क्षत्रिय, जांघों से वैश्य और पैरों से शूद्र… इसी घटिया सिद्धांत ने दलितों को हजारों साल से गुलाम बना रखा है… लेकिन अब सवाल यह उठता है कि दलित शब्द सबसे पहले कहां और किसके दवारा प्रयोग किया गया। दलित शब्द को प्रयोग करने का कारण क्या था.. आईए आपको बताते हैं।

दलित शब्द के इस्तेमाल का सबसे पहले विवरण साल 1831 में ईस्ट इंडिया कंपनी के आर्मी अफसर जे.जे. मोल्सवर्थ द्वारा मिलता है। अंग्रेजी फौज के इस अफसर द्वारा एक मराठा-इंग्लिश डिक्शनरी में इस शब्द का इस्तेमाल किया गया था।

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दलित शब्द का प्रय़ोग दलित उद्धारक महात्मा ज्योतिबा फुले ने भी किया था और फिर ब्रिटिश सरकार ने इसका उल्लेख किया

इसके अलावा दलित शब्द का प्रय़ोग राष्ट्रपिता महात्मा ज्योतिबा फुले ने भी किया था और फिर ब्रिटिश सरकार ने इसका उल्लेख किया। जेएनयू में समाज शास्त्र के प्रोफेसर विवेक कुमार इस शब्द के इतिहास को लेकर कहते हैं ‘दलित शब्द का जिक्र सबसे पहले 1831 की मोल्सवर्थ डिक्शनरी में पाया जाता है. फिर बाबा भीमराव अंबेडकर ने भी इस शब्द को अपने भाषणों में प्रयोग किया’

दलित शब्द पर द क्विंट वेबसाइट पर एक लेख में बताया गया है कि 1921 से 1926 के बीच ‘दलित’ शब्द का इस्तेमाल ‘स्वामी श्रद्धानंद’ ने भी किया था. दिल्ली में दलितोद्धार सभा बनाकर उन्होंने दलितों को सामाजिक स्वीकृति की वकालत की थी. दलित शब्द का संविधान में कोई जिक्र नहीं, 2008 में नेशनल एससी कमीशन ने सारे राज्यों को निर्देश दिया था कि राज्य अपने आधिकारिक दस्तावेजों में दलित शब्द का इस्तेमाल न करें। भारतीय संविधान में दलित शब्द के स्थान पर अनुसूचित जाति/ अनुसूचित जनजाति का प्रयोग हुआ है। उच्चतम न्यायलय ने भी दलित शब्द को असंवैधानिक घोषित किया है।

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साल 1972 में महाराष्ट्र में दलित पैंथर्स नाम का एक सामाजिक-राजनीतिक संगठन बनाया गया

लेकिन दलित शब्द को राष्ट्रीय पटल पर पहचान मिली दलित पैंथर्स के उदय से…. साल 1972 में महाराष्ट्र में दलित पैंथर्स नाम का एक सामाजिक-राजनीतिक संगठन बनाया गया…. अमेरिका के ब्लैक पैंथर्स मूवमेंट की तर्ज़ पर बने दलित पैंथर्स ने आगे चलकर एक आंदोलन का रूप ले लिया। नामदेव ढसाल, राजा ढाले और अरुण कांबले इसके शुरुआती प्रमुख नेताओं में शामिल हैं। यहीं से ‘दलित’ शब्द को महाराष्ट्र में सामाजिक स्वीकृति मिल गई…. लेकिन उत्तर भारत में इस शब्द को प्रचलित होने में और समय लगा…

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दलित पैंथर्स और डीएस4 ने दलित शब्द को राष्ट्रीय फलक पर स्थापित कर दिया था।

नॉर्थ इंडिया में दलित शब्द को प्रचलित कांशीराम ने किया. DS4 जिसका मतलब है दलित शोषित समाज संघर्ष समिति. इसका गठन कांशीराम ने किया था और महाराष्ट्र के बाद नॉर्थ इंडिया में अब पिछड़ों और अति-पिछड़ों को दलित कहा जाने लगा था. ठाकुर, ब्राह्मण, बनिया छोड़ बाकी सब DS4 – कांशीराम का नारा था… लंबे समय से ये शब्द इस्तेमाल में रहा है… दलित पैंथर्स और डीएस4 ने दलित शब्द को राष्ट्रीय फलक पर स्थापित कर दिया था। डॉ आंबेडकर ज्यादातर डिप्रेस्ड क्लास शब्द का ही इस्तेमाल करते थे, अंग्रेज भी इसी शब्द का इस्तेमाल करते थे… आगे चलकर यही डिप्रेस्ड शब्द दलित शब्द में प्रचलित हुआ।

1929 में लिखी एक कविता में राष्ट्रकवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला ने भी ‘दलित’ शब्द का इस्तेमाल किया था, जो इस बात की पुष्टि करता है कि ये शब्द प्रचलन में तो था, लेकिन बड़े पैमाने पर इस्तेमाल नहीं किया जाता था. 1943 में ‘अणिमा’ नाम के काव्य संग्रह में उनकी ये कविता छपी। दलित जन पर करो करुणा। दीनता पर उतर आये प्रभु, तुम्हारी शक्ति वरुणा।

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बहुजन साहित्यकार मानते हैं कि दलितों के बारे में अब तक सवर्ण नज़रिए से ही किताबें लिखी गई हैं

आज दलित शब्द साहित्य की दुनिया में भी ख़ास पहचान रखता है… ख़ास कर हिंदी साहित्य में बहुजन लेखकों ने ब्राह्मणवादी साहित्य के मुक़ाबले अपना ख़ुद का साहित्य रचा है… दिल्ली में तो अब राष्ट्रीय दलित साहित्य सम्मेलन तक आयोजित होते हैं… बहुजन साहित्यकार मानते हैं कि दलितों के बारे में अब तक सवर्ण नज़रिए से ही किताबें लिखी गई हैं…लेकिन अब हम ख़ुद अपनी आपबीती सुना रहे हैं।

साहित्य के अलावा राजनीति में भी दलित शब्द की कहानी बड़ी रोचक है… बीएसपी की स्थापना के शुरुआती दौर में अनुसूचित जातियों को गांधी के दिए ‘हरिजन’ शब्द से बुलाने पर बीएसपी ने ज़बदस्त विरोध किया था…मायावती तो सीधे मंच पर जाकर भिड़ गई थी… मान्यवर कांशीराम हरिजन के मुकाबले दलित शब्द के इस्तेमाल पर जोर देते हुए कहते थे, ‘यदि हम भगवान की संतान हैं तो क्या अन्य हिंदू शैतान की औलाद हैं?’ कांशीराम और उनकी सहयोगी मायावती ने इस शब्द को तेजी से आगे बढ़ाया और फिर कुछ सालों में ही हरिजन के मुकाबले दलित शब्द का प्रचलन बढ़ गया।

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कांशीराम और उनकी सहयोगी मायावती ने इस शब्द को तेजी से आगे बढ़ाया और फिर कुछ सालों में ही हरिजन के मुकाबले दलित शब्द का प्रचलन बढ़ गया

ख़ासकर राजनीति में दलित शब्द किसी क्रांति की तरह सामने आया… बीएसपी के गठन ने इस शब्द की जड़ें ऐसी जमा दी कि वंचित तबके ने देश के सबसे बड़े सूबे में अपनी सरकार बना दी… दलित शब्द ने बिखरे पड़े शोषित समाज को एक पहचान सी दी जिसका राजनीति में बहुत महत्व है। आज दलित राजनीति के बिना राष्ट्रीय राजनीति की कल्पना भी नहीं की जा सकती।

दलित शब्द के राजनीतिक महत्व के कारण ही कई लोग इस शब्द को बैन करने का विरोध भी करते हैं। इन लोगों का कहना है कि चूँकि दलित शब्द एससी-एसटी में एक राष्ट्रीय पहचान का काम करता है, इसीलिए इस शब्द को बैन कर इनकी आपसी एकता को तोड़ने की साज़िश की जा रही है।

साथ ही दलित शब्द अकादमिक भाषा में वंचितों की स्थिति को दर्शाने वाला शब्द भी है। आज देश और दुनिया में एससी-एसटी और ओबीसी समाज पर जातिवादियों की क्रूरता को बयां करने के लिए दलित शब्द का ही इस्तेमाल होता है। अमेरिका में Black Lives Matters की तर्ज पर Dalit Lives Matters की बात हो रही है। दुनिया भर की यूनिवर्सिटी में आज जाति की समस्या और उसके दुष्प्रभाव पर जो भी अध्ययन हो रहा है, वो दलित शब्द के तहत ही हो रहा है। यानी एक तरह से दलित शब्द बहुजन समाज की अंतर्राष्ट्रीय पहचान है। इस शब्द को हटाने का मतलब है आपसे आपकी पहचान भी हटा ली जाएगी।

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Cover Page – Outlook India

राजनीति और सामाजिक आंदोलनों ने नाम, प्रतीकों और नारों का बहुत ख़ास महत्व होता है। ये महज़ नाम या प्रतीक नहीं होते बल्कि एक विचारधारा होते हैं जो सीधे लोगों को एक सूत्र में बांध देते हैं। ऐसे ही दलित शब्द भी एक आंदोलन का शब्द है जो वंचित समाज को एकजुट रहने और संघर्ष करने की प्रेरणा देता है।

वहीं कुछ लोग मानते हैं कि हमें ख़ुद को दलित नहीं कहना चाहिए… ये अपमान करने वाला शब्द है… लेकिन इसके जवाब में अक्सर सुनने को मिलता है कि जो शब्द आपको एकजुट करे, वो अपमान करने वाला कैसे हो सकता है? साथ ही ये भी तर्क दिया जाता है कि किसी शब्द को देखने का एक तरीक़ा होता है… ये आप पर निर्भर करता है कि आप दलित शब्द सुनकर ग्लानि महसूस करते हैं या फिर आप में एक सामाजिक चेतना उभरती है।

द शूद्र के लिए तरुण कुमार के साथ टीम..

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दलित शब्द कहाँ से आया?

कहां से आया दलित शब्द हरिजन शब्द के विरोध में उन्होंने बंबई विधानसभा से वॉकआउट भी किया था. इसके बावजूद दलित समाज की इच्छा के ख़िलाफ़ उसे हाल-हाल तक हरिजन के तौर पर चिन्हित किया जाता रहा है.

दलित शब्द का अर्थ क्या होता है?

दलित शब्‍द का शाब्दिक अर्थ है- दलन किया हुआ। इसके तहत वह हर व्‍यक्ति आ जाता है जिसका शोषण-उत्‍पीडन हुआ है। रामचन्द्र वर्मा ने अपने शब्‍दकोश में दलित का अर्थ लिखा है, मसला हुआ, मर्दित, दबाया, रौंदा या कुचला हुआ, विनष्‍ट किया हुआ।

दलितों के भगवान कौन है?

संघर्ष से मिली सफलता उन्हें वर्ष 1927 में और फिर 1932 में मुंबई विधान परिषद का सदस्य मनोनीत किया गया. विधान परिषद में उन्होंने दलित समाज के लिए आवाज उठाई. वर्ष 1929 में उन्होंने समता समाज संघ की स्थापना की और फिर 1930 में नासिक के कालाराम मंदिर में अछूतों के प्रवेश बैन को खत्म करने के ​लिए सत्याग्रह किया.

भारत में दलितों की संख्या कितनी है?

ठीक 10 साल बाद हिंदुओं की आबादी बढ़कर 96.63 करोड़, जबकि मुस्लिमों की आबादी 17.22 करोड़ हो गई। इस दौरान मुस्लिमों की आबादी 24.78% की रफ्तार से जबकि हिंदुओं की 16.77% की रफ्तार से बढ़ी है। इस तरह भारत की कुल जनसंख्या में मुस्लिम आबादी 2001 में 13.4% थी जो 10 साल बाद बढ़कर 14.2% हो गई।