दुनिया की सबसे पहली महिला शिक्षिका कौन थी? - duniya kee sabase pahalee mahila shikshika kaun thee?

पुणे। शनिवार यानि 5 सितंबर को शिक्षक दिवस पूरे देश में मनाया जा रहा है। गुरु को हमारे देश में भगवान का दर्जा दिया गया है। शिक्षकों के सम्मान के इस दिन पर dainikbhaskar.com आपको देश की पहली महिला अध्यापिका, नारी मुक्ति आंदोलन की पहली नेता, समाज सुधारक और मराठी कवयित्री सावित्रीबाई फुले के बारे में बताने जा रहे है। बालिकाओं को शिक्षित करने के लिए इन्हें समाज का कड़ा विरोध झेलना पड़ा था। कई बार तो ऐसा भी हुआ जब इन्हें समाज के  ठेकेदारों के पत्थर भी खाने पड़े।

व्यक्तिगत जीवन

सावित्रीबाई फुले का जन्म 3 जनवरी, 1831 को महाराष्ट्र के सतारा जिले के नयागांव में एक दलित परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम खन्दोजी नेवसे और माता का नाम लक्ष्मी था। सावित्रीबाई का विवाह 1840 में समाजसेवी महात्मा ज्योतिबा फुले संग हुआ था।

भारत की पहली महिला शिक्षिका

सावित्रीबाई फुले ने अपने पति महात्मा ज्योतिबा फुले संग मिलकर स्त्रियों के अधिकारों एवं उन्हें शिक्षित करने के लिए क्रांतिकारी प्रयास किए। उन्हें भारत की प्रथम कन्या विद्यालय की पहली महिला शिक्षिका होने का गौरव हासिल है। उन्हें आधुनिक मराठी काव्य का अग्रदूत भी माना जाता है। उन्होंने देश के पहले किसान स्कूल की भी स्थापना की थी। 1852 में उन्होंने दलित बालिकाओं के लिए एक विद्यालय की स्थापना की थी।

पुणे में खोला देश का पहला महिला विद्यालय

1848 में पुणे के भिड़ेवाड़ी इलाके में अपने पति के साथ मिलकर विभिन्न जातियों की नौ छात्राओं के लिए इस विद्यालय की स्थापना की। इसके बाद सिर्फ एक वर्ष में सावित्रीबाई और महात्मा फुले 5 नए विद्यालय खोलने में सफल हुए। पुणे में पहले स्कूल खोलने के बाद फूले दंपति ने 1851 में पुणे के रास्ता पेठ में लड़कियों का दूसरा स्कूल खोला और 15 मार्च 1852 में बताल पेठ में लड़कियों का तीसरा स्कूल खोला। उनकी बनाई हुई संस्था \'सत्यशोधन समाज\' ने 1876 व 1879 के अकाल में अन्न सत्र चलाया और अन्न इकट्ठा करके आश्रम में रहने वाले 2000 बच्चों को खाना खिलाने की व्यवस्था की।

समाज के ठेकेदारों ने मारे पत्थर

19वीं सदी में समाज में छुआ-छूत, सतीप्रथा, बाल-विवाह और विधवा-विवाह जैसी कुरीतियां व्याप्त थी। सावित्रीबाई फुले का जीवन बेहद ही मुश्किलों भरा रहा। दलित महिलाओं के उत्थान के लिए काम करने, छुआछूत के खिलाफ आवाज उठाने के कारण उन्हें एक बड़े वर्ग द्वारा विरोध भी झेलना पड़ा। वह स्कूल जाती थीं, तो उनके विरोधी उन्हें पत्थर मारते थे। कई बार उनके ऊपर गंदगी फेंकी गई। सावित्रीबाई एक साड़ी अपने थैले में लेकर चलती थीं और स्कूल पहुंच कर गंदी हुई साड़ी बदल लेती थीं। आज से 160 साल पहले जब लड़कियों की शिक्षा एक अभिशाप मानी जाती थी उस दौरान उन्होंने महाराष्ट्र की सांस्कृतिक राजधानी पुणे में पहला बालिका विद्यालय खोल पूरे देश में एक नई पहल की शुरुआत की।

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दोस्तों विश्व की प्रथम शिक्षक महिला जो थी वह हमारे भारत देश की थी जिनका नाम सावित्री फुले जी था धन्यवाद

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प्रथम महिला शिक्षिका - सावित्रीबाई ज्योतिराव फुले

सावित्रीबाई ज्योतिराव फुले भारत की प्रथम महिला शिक्षिका, समाज सुधारिका एवं मराठी कवयित्री थीं। उन्होंने अपने पति ज्योतिराव गोविंदराव फुले के साथ मिलकर स्त्रियों के अधिकारों एवं शिसे कार्य किए। सावित्रीबाई भारत के प्रथम कन्या विद्यालय में प्रथम महिला शिक्षिका थीं। उन्हें आधुनिक मराठी काव्य की अग्रदूत माना जाता है। 1852 में उन्होंने अछूत बालिकाओं के लिए एक विद्यालय की स्थापना की।

दुनिया की सबसे पहली महिला शिक्षिका कौन थी? - duniya kee sabase pahalee mahila shikshika kaun thee?

परिचय

सावित्रीबाई फुले का जन्म 3 जनवरी 1831 को हुआ था। इनके पिता का नाम खन्दोजी नेवसे और माता का नाम लक्ष्मी था। 1840 में 9 साल की उम्र में सावित्रीबाई की शादी 13 साल के ज्‍योतिराव फुले से हुई।

सावित्रीबाई फुले भारत के पहले बालिका विद्यालय की पहली प्रिंसिपल और पहले किसान स्कूल की संस्थापक थीं। महात्मा ज्योतिबा को महाराष्ट्र और भारत में सामाजिक सुधार आंदोलन में एक सबसे महत्त्वपूर्ण व्यक्ति के रूप में माना जाता है। उनको महिलाओं और दलित जातियों को शिक्षित करने के प्रयासों के लिए जाना जाता है। ज्योतिराव, जो बाद में ज्योतिबा के नाम से जाने गए सावित्रीबाई के संरक्षक, गुरु और समर्थक थे। सावित्रीबाई ने अपने जीवन को एक मिशन की तरह से जीया जिसका उद्देश्य था विधवा विवाह करवाना, छुआछूत मिटाना, महिलाओं की मुक्ति और दलित महिलाओं को शिक्षित बनाना। वे एक कवियत्री भी थीं उन्हें मराठी की आदिकवियत्री के रूप में भी जाना जाता था।

सामाजिक मुश्किलें

वे स्कूल जाती थीं, तो विरोधी लोग पत्थर मारते थे। उन पर गंदगी फेंक देते थे। आज से 160 साल पहले बालिकाओं के लिये जब स्कूल खोलना पाप का काम माना जाता था कितनी सामाजिक मुश्किलों से खोला गया होगा देश में एक अकेला बालिका विद्यालय।

सावित्रीबाई पूरे देश की महानायिका हैं। हर बिरादरी और धर्म के लिये उन्होंने काम किया। जब सावित्रीबाई कन्याओं को पढ़ाने के लिए जाती थीं तो रास्ते में लोग उन पर गंदगी, कीचड़, गोबर, विष्ठा तक फैंका करते थे। सावित्रीबाई एक साड़ी अपने थैले में लेकर चलती थीं और स्कूल पहुँच कर गंदी कर दी गई साड़ी बदल लेती थीं। अपने पथ पर चलते रहने की प्रेरणा बहुत अच्छे से देती हैं।

विद्यालय की स्थापना

1848 में पुणे में अपने पति के साथ मिलकर विभिन्न जातियों की नौ छात्राओं के साथ उन्होंने एक विद्यालय की स्थापना की।यह भारत में लड़कियों के लिए खुलने वाला पहला स्त्री विद्यालय था। एक वर्ष में सावित्रीबाई और महात्मा फुले पाँच नये विद्यालय खोलने में सफल हुए।उन्‍होंने पहला और अठारहवां स्कूल भी पुणे में ही खोला।तत्कालीन सरकार ने इन्हे सम्मानित भी किया। एक महिला प्रिंसिपल के लिये सन् 1848 में बालिका विद्यालय चलाना कितना मुश्किल रहा होगा, इसकी कल्पना शायद आज भी नहीं की जा सकती। लड़कियों की शिक्षा पर उस समय सामाजिक पाबंदी थी। सावित्रीबाई फुले उस दौर में न सिर्फ खुद पढ़ीं, बल्कि दूसरी लड़कियों के पढ़ने का भी बंदोबस्त किया, वह भी पुणे जैसे शहर में।

उन्‍होंने 28 जनवरी 1853 को गर्भवती बलात्‍कार पीडि़तों के लिए बाल हत्‍या प्रतिबंधक गृह की स्‍थापना की। उन्होंने विधवा पुनर्विवाह की भी शुरुआत की और 1854 में विधवाओं के लिए आश्रम भी बनाया। साथ ही उन्होंने नवजात शिशुओं के लिए भी आश्रम खोला ताकि कन्या शिशु हत्या को रोका जा सके।

उन्होंने दो काव्य पुस्तकें लिखीं-

  1. ‘काव्य फुले’
  2. ‘बावनकशी सुबोधरत्नाकर’

निधन

10 मार्च 1897 को प्लेग के कारण सावित्रीबाई फुले का निधन हो गया। प्लेग महामारी में सावित्रीबाई प्लेग के मरीज़ों की सेवा करती थीं। एक प्लेग के छूत से प्रभावित बच्चे की सेवा करने के कारण इनको भी छूत लग गया। और इसी कारण से उनकी मृत्यु हुई।