थीसिस का शीर्षक क्या था जिसके लिए उन्हें 1923 में डॉक्टरेट की उपाधि दी गई थी? - theesis ka sheershak kya tha jisake lie unhen 1923 mein doktaret kee upaadhi dee gaee thee?

KBC 2021, Season 13, Episode 7: डॉ बी आर अम्बेडकर द्वारा लंदर स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में प्रस्तुत किये गए थीसिस का शीर्षक क्या था जिसके लिए उन्हें 1923 में डॉक्टरेट की उपाधि दी गई थी?

KBC 2021, Season 13, Episode 7: डॉ बी आर अम्बेडकर द्वारा लंदर स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में प्रस्तुत किये गए थीसिस का शीर्षक क्या था जिसके लिए उन्हें 1923 में डॉक्टरेट की उपाधि दी गई थी?

ऑप्शन:

A. द वांट्स एंड मीन्स ऑफ इंडिया

B. द प्रॉब्लम ऑफ द रूपी

C. नेशनल डिविडेंड ऑफ इंडिया

D. द लॉ एंड लॉयर्स

उत्तर- B. द प्रॉब्लम ऑफ द रूपी

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सन 1922 में एक बैरिस्टर के रूप में डॉ॰ भीमराव आम्बेडकर

अक्टूबर 1916 में डॉ भीमराव अंबेडकर लंदन चले गये और वहाँ उन्होंने ग्रेज़ इन में बैरिस्टर कोर्स के लिए प्रवेश लिया. इसके साथ ही लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स में भी प्रवेश लिया जहां उन्होंने अर्थशास्त्र की डॉक्टरेट थीसिस पर काम करना शुरू किया. जून 1917 में विवश होकर उन्हें अपना अध्ययन अस्थायी तौरपर बीच में ही छोड़ कर भारत लौट आए क्योंकि बड़ौदा राज्य से उनकी छात्रवृत्ति समाप्त हो गई थी. लौटते समय उनके पुस्तक संग्रह को उस जहाज से अलग जहाज पर भेजा गया था जिसे जर्मन पनडुब्बी के टारपीडो द्वारा डुबो दिया गया. ये प्रथम विश्व युद्ध का समय था. उन्हें चार साल के भीतर अपने थीसिस के लिए लंदन लौटने की अनुमति मिली.

बड़ौदा राज्य के सेना सचिव के रूप में काम करते हुये अपने जीवन में अचानक फिर से आये भेदभाव से डॉ॰ भीमराव आम्बेडकर निराश हो गये और अपनी नौकरी छोड़ एक निजी ट्यूटर और लेखाकार के रूप में काम करने लगे. यहाँ तक कि उन्होंने अपना परामर्श व्यवसाय भी आरम्भ किया जो उनकी सामाजिक स्थिति के कारण विफल रहा. अपने एक अंग्रेज जानकार मुंबई के पूर्व राज्यपाल लॉर्ड सिडनेम के कारण उन्हें मुंबई के सिडनेम कॉलेज ऑफ कॉमर्स एंड इकोनोमिक्स मे राजनीतिक अर्थव्यवस्था के प्रोफेसर के रूप में नौकरी मिल गयी. 1920 में कोल्हापुर के शाहू महाराज, अपने पारसी मित्र के सहयोग और कुछ निजी बचत के सहयोग से वो एक बार फिर से इंग्लैंड वापस जाने में सफ़ल हो पाए तथा 1921 में विज्ञान स्नातकोत्तर प्राप्त की, जिसके लिए उन्होंने 'प्रोवेन्शियल डीसेन्ट्रलाईज़ेशन ऑफ इम्पीरियल फायनेन्स इन ब्रिटिश इण्डिया' खोज ग्रन्थ प्रस्तुत किया था.

1922 में, उन्हें ग्रेज इन ने बैरिस्टर-एट-लॉज डिग्री प्रदान की और उन्हें ब्रिटिश बार में बैरिस्टर के रूप में प्रवेश मिल गया. 1923 में, उन्होंने अर्थशास्त्र में डी. एससी. (डॉक्टर ऑफ साईंस) उपाधि प्राप्त की. उनकी थीसिस "दी प्राब्लम आफ दि रुपी: इट्स ओरिजिन एंड इट्स सॉल्यूशन" पर थी. लंदन का अध्ययन पूर्ण कर भारत वापस लौटते हुये भीमराव आम्बेडकर तीन महीने जर्मनी में रुके, जहाँ उन्होंने अपना अर्थशास्त्र का अध्ययन, बॉन विश्वविद्यालय में जारी रखा. किंतु समय की कमी से वे विश्वविद्यालय में अधिक नहीं ठहर सकें. उनकी तीसरी और चौथी डॉक्टरेट्स सम्मानित उपाधियां थीं.

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थीसिस का शीर्षक क्या है?

थीसिस वाक्य अनुसंधान का मुख्य जोर है। आपकी थीसिस को आपके पेपर के मुख्य बिंदु या विचार को अपने पाठक को बताना चाहिए। एक अच्छी थीसिस कागज के भीतर स्पष्ट रूप से पहचानी जा सकेगी और संकीर्ण, उद्देश्यपूर्ण और विशिष्ट होगी।

डॉ अम्बेडकर के थीसिस का शीर्षक क्या था जिसके लिए उन्हें 1923 में डॉक्टरेट की उपाधि दी गई थी?

आर आंबेडकर द्वारा लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में प्रस्तुत हुए थीसिस का शीर्षक क्या था जिसके लिए उन्हें 1923 में डॉक्टरेट की उपाधि दी गई थी ? इस सवाल का सही जवाब था 'द प्रॉब्लम ऑफ रूपी'। 1 अप्रैल 1935 को RBI की स्थापना की गई थी

डॉक्टर भीमराव अंबेडकर को डॉक्टर की उपाधि क्यों मिली थी?

बाबा साहेब को मिली डाॅक्टर की उपाधि 1923 में उन्होंने एक शोध पूरा किया था, जिसके लिए उन्हें लंदन यूनिवर्सिटी ने डॉक्टर ऑफ साइंस की उपाधि दी थी। बाद में साल 1927 में अंबेडकर ने कोलंबिया यूनिवर्सिटी से भी पीएचडी पूरी की।

डॉ अम्बेडकर ने अपनी थीसिस में कितने साल उजागर किए?

- इस प्रकार डॉ. अम्बेडकर वैश्विक युवाओं के लिये प्रेरणा बन गए, क्योंकि उनके नाम के साथ बीए, एमए, एम. एससी, पीएच.डी, बैरिस्टर, डीएससी आदि कुल 26 उपाधियां जुड़ी हैं.