धर्म सिद्धांत क्या है सप्तधर्म का संक्षेप में विवरण कीजिए - dharm siddhaant kya hai saptadharm ka sankshep mein vivaran keejie

Research Journal of Humanities and Social Sciences (RJHSS) is an international, peer-reviewed journal, correspondence in the fields of arts, commerce and social sciences. The aim of RJHSS is to publishes Original research Articles, Short Communications, Review Articles in Linguistics, Commerce, Anthropology, Sociology, Geography, Economics, History, Environmental Studies, Business Administration, Home Science, Public Health, Political Science, Demography, Cultural Studies, Ethnography and Sociolinguistics.

The journal is published quarterly every year in last week of March, June, September and December.    
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धर्म, दर्शन और अध्यात्म - यह तीन शब्द हमें सुनने-पढ़ने को मिलते हैं। तीनों ही शब्दों का अर्थ अलग अलग है, लेकिन यहां बात सिर्फ धर्म की करते हैं कि आखिर धर्म की परिभाषा क्या है। क्योंकि सवाल भी यही है। हिन्दू सनातन सिद्धांत धारा में धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष में धर्म का प्रमुख स्थान है। धर्मयुद्ध का अर्थ किसी संप्रदाय विशेष के लिए युद्ध नहीं। सत्य और न्याय के लिए युद्ध।

धर्म को अंग्रेजी में रिलिजन (religion) और ऊर्दू में मजहब कहते हैं, लेकिन यह उसी तरह सही नहीं ‍है जिस तरह की दर्शन को फिलॉसफी (philosophy) कहा जाता है। दर्शन का अर्थ देखने से बढ़कर है। उसी तरह धर्म को समानार्थी रूप में रिलिजन या मजहब कहना हमारी मजबूरी है। मजहब का अर्थ संप्रदाय होता है।  उसी तरह रिलिजन का समानार्थी रूप विश्वास, आस्था या मत हो सकता है, लेकिन धर्म नहीं। हालांकि मत का अर्थ होता है विशिष्ट विचार। कुछ लोग इसे संप्रदाय या पंथ मानने लगे हैं, जबकि मत का अर्थ होता है आपका किसी विषय पर विचार।

यतो ऽभ्युदयनिःश्रेयससिद्धिः स धर्मः।

धर्म वह अनुशासित जीवन क्रम है, जिसमें लौकिक उन्नति (अविद्या) तथा आध्यात्मिक परमगति (विद्या) दोनों की प्राप्ति होती है।

धर्म का शाब्दिक अर्थ : धर्म एक संस्कृत शब्द है। धर्म का अर्थ बहुत व्यापक है। ध + र् + म = धर्म। ध देवनागरी वर्णमाला 19वां अक्षर और तवर्ग का चौथा व्यंजन है। भाषाविज्ञान की दृष्टि से यह दन्त्य, स्पर्श, घोष तथा महाप्राण ध्वनि है। संस्कृत (धातु) धा + ड विशेषण- धारण करने वाला, पकड़ने वाला होता है। जो धारण करने योग्य है, वही धर्म है। पृथ्वी समस्त प्राणियों को धारण किए हुए है। जैसे हम किसी नियम को, व्रत को धारण करते हैं इत्यादि। इसका मतलब धर्म का अर्थ है कि जो सबको धारण किए हुए है अर्थात धारयति- इति धर्म:!। अर्थात जो सबको संभाले हुए है। सवाल उठता है कि कौन क्या धारण किए हुए हैं? धारण करना सही भी हो सकता है और गलत भी।

धारण करने योग्य क्या है?

सत्य, अहिंसा, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह, शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय, क्षमा आदि।...बहुत से लोग कहते हैं कि धर्म के नियमों का पालन करना ही धर्म को धारण करना है जैसे ईश्वर प्राणिधान, संध्या वंदन, श्रावण माह व्रत, तीर्थ चार धाम, दान, मकर संक्रांति-कुंभ पर्व, पंच यज्ञ, सेवा कार्य, पूजा पाठ, 16 संस्कार और धर्म प्रचार आदि।... लेकिन उत्त सभी कार्य व्यर्थ है जबकि आप सत्य के मार्ग पर नहीं हो। सत्य को जाने से अहिंसा, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह, शौचादि सभी स्वत: ही जाने जा सकते हैं। अत: सत्य ही धर्म है और धर्म ही सत्य है।...जो संप्रदाय, मजहब, रिलिजन और विश्वास सत्य को छोड़कर किसी अन्य रास्ते पर चल रही है वह सभी अधर्म के ही मार्ग हैं। इसीलिए हित्दुत्व में कहा गया है सत्यंम शिवम सुंदरम।

मनु ने धर्म के दस लक्षण बताए हैं:-

धृतिः क्षमा दमोऽस्तेयं शौचमिन्द्रियनिग्रहः।

धीर्विद्या सत्यमक्रोधो, दशकं धर्मलक्षणम् ॥

(धृति (धैर्य), क्षमा (दूसरों के द्वारा किए गए अपराध को माफ कर देना, क्षमाशील होना), दम (अपनी वासनाओं पर नियन्त्रण करना), अस्तेय (चोरी न करना), शौच (आंतरिक और बहारी शुचिता), इन्द्रिय निग्रहः (इन्द्रियों को वश में रखना), धी (बुद्धिमत्ता का प्रयोग), विद्या (अधिक से अधिक ज्ञान की पिपासा), सत्य (मन, वचन और कर्म से सत्य का पालन) और अक्रोध (क्रोध न करना); ये दस धर्म के लक्षण हैं।)

स्वभाव और गुण?

कुछ लोगों के अनुसार आग का धर्म है जलना, धरती का धर्म है धारण करना और जन्म देना, हवा का धर्म है जीवन देना उसी तरह प्रत्येक व्यक्ति का धर्म गुणवाचक है। अर्थात गुण ही है धर्म। इसका मतलब की बिच्छू का धर्म है काटना, शेर का धर्म है मारना। तब प्रत्येक व्यक्ति के गुण और स्वभाव को ही धर्म माना जाएगा। यदि कोई हिंसक है तो उसका धर्म है हिंसा करना। और फिर तब यह क्यों ‍नहीं मान लिया जाता है कि चोर का स्वभाव है चोरी करना? यदि बिच्छू का धर्म काटना नहीं है तो फिर बिच्छू को धर्म की शिक्षा दी जानी चाहिए और उसे भी नैतिक बनाया जाना चाहिए?

दरअसल, धर्म मूल स्वभाव की खोज है। धर्म एक रहस्य है, संवेदना है, संवाद है और आत्मा की खोज है। धर्म स्वयं की खोज का नाम है। जब भी हम धर्म कहते हैं तो यह ध्वनीत होता है कि कुछ है जिसे जानना जरूरी है। कोई शक्ति है या कोई रहस्य है। धर्म है अनंत और अज्ञात में छलांग लगाना। धर्म है जन्म, मृत्यु और जीवन को जानना।

हिन्दू संप्रदाय में धर्म को जीवन को धारण करने, समझने और परिष्कृत करने की विधि बताया गया है। धर्म को परिभाषित करना उतना ही कठिन है जितना ईश्वर को। दुनिया के तमाम विचारकों ने -जिन्होंने धर्म पर विचार किया है, अलग-अलग परिभाषाएं दी हैं। इस नजरिए से वैदिक ऋषियों का विचार सबसे ज्यादा उपयुक्त लगता है कि सृष्टि और स्वयं के हित और विकास में किए जाने वाले सभी कर्म धर्म हैं।

धर्म का सिद्धांत क्या है समझाइए?

धर्म का सिद्धांत है- अपने को पूर्ण स्वाधीन रखना, अनैतिक कार्य न करना, किसी जीव को दुख न देना, हिंसा न करना, प्राणीमात्र को अपने समान समझना, क्रोध न करना, सहनशील बनना, परनारी पर कुदृष्टि न डालना, संकट आ जाने पर धीरज धारण किए रहना, द्वेष न रखना और अभिमान न रखना आदि-आदि। उपर्युक्त बातें सभी धर्मो के सिद्धांत हैं।

धर्म का धार्मिक सिद्धांत क्या है?

उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर संक्षेप में कहा जा सकता है कि धर्म किसी-न-किसी प्रकार की अतिमानवीय या अलौकिक या समाजोपरि शक्ति पर विश्वास है जिसका आधार भय, श्रद्धा, भक्ति और पवित्रता की धारणा है और जिसकी अभिव्यक्ति प्रार्थना, पूजा या आराधना आदि के रूप में की जाती है।

हिंदू धर्म के प्रमुख सिद्धांत क्या है?

(1) देवऋण, (2) ऋषिऋण, (3) पितृऋण, (4) अतिथि ऋण तथा (5) जीव ऋण। एक सिद्धांत के रूप में यह माना गया है कि उपर्युक्त ऋणों को चुकाने के लिए हम जो कर्तव्य करते हैं कि उसी को तप या यज्ञ कहा जाता है। (4) आध्यात्मवाद- यह हिन्दू धर्म का एक मौलिक सिद्धांत कहा जा सकता है।

धर्म क्या है और इसकी विशेषताएं?

धर्म की पहली विशेषता यह है कि यह शक्ति मे विश्वास पर आधारित है। धर्म शक्ति पर आधारित है वह मनुष्य निर्मित न होकर प्राकृतिक होता है। धर्म से जिस शक्ति मे विश्वास किया जाता है, उसकी प्रकृति अलौकिक होती है। चूंकि यह चरित्र दिव्य होता है, अतः मानव समाज से परे होती है।