उत्पादन के तीन प्रमुख तत्व कौन से हैं? - utpaadan ke teen pramukh tatv kaun se hain?

उत्पादन के कारक

Updated on November 14, 2022 , 50580 views

प्रोडक्शन के कारक क्या हैं?

सामान और सेवाएं दो स्तंभ हैं जिन पर कंपनी कठिन समय में पनपती है और टिकती है। अधिकांश कंपनियाँ और फर्में उत्पादन के चार मुख्य कारकों पर निर्भर करती हैं, जो हैं:भूमि, श्रम,राजधानी, और उद्यमिता।

उत्पादन के तीन प्रमुख तत्व कौन से हैं? - utpaadan ke teen pramukh tatv kaun se hain?

इन विशेषताओं की अवधारणा केवल नई नहीं है, यह इतिहास की रेखा से नीचे की यात्रा करती है। नव-शास्त्रीय समय के अर्थशास्त्रियों, अर्थात् एडम स्मिथ, कार्ल मार्क्स ने इन कारकों की पहचान की जो किसी भी व्यवसाय में उत्पादकता को बढ़ाते हैं। बढ़ने के बावजूदअर्थव्यवस्था और प्रौद्योगिकी ने किसी भी व्यवसाय के उत्पादन क्षेत्र में बड़े बदलाव लाए हैं, प्रमुख घटकों में कुछ या कोई बदलाव नहीं किया गया है।

उत्पादन के प्रमुख कारक

जब यह आज के समग्र व्यापार परिदृश्य तक स्क्रॉल करता है, तो कोई स्पष्ट रूप से इंगित कर सकता है कि विभिन्न उत्पादन कारकों की बात आती है तो पूंजी और श्रम का बहुत बड़ा हाथ होता है। आज के समय की तुलना में उत्पादन के अन्य तत्व और उनके मूल्य निम्नलिखित हैं:

1) भूमि

यह किसी भी व्यावसायिक भूमि के लिए शीर्ष स्थान प्राप्त करता है जब यह महत्वपूर्ण होता हैफ़ैक्टर का उत्पादन। भूमि का एक व्यापक वर्गीकरण है क्योंकि यह विभिन्न भूमिकाओं को निबंधित कर सकता है। किसी विशेष भूमि पर उपलब्ध कृषि से लेकर वाणिज्यिक संसाधनों तक सब कुछ वास्तव में उच्च के लिए जिम्मेदार हैआर्थिक मूल्य. हालांकि, आज समय काफी बदल गया है, और एक महत्वपूर्ण विशेषता के रूप में संपत्ति का उपयोग करने का महत्व काफी हद तक कम हो गया है। प्रौद्योगिकी क्षेत्र इस श्रेणी के अंतर्गत आता है क्योंकि इसका भूमि के एक टुकड़े पर कम प्रभाव पड़ता है, लेकिन अन्य क्षेत्रों के लिए ऐसा नहीं कहा जा सकता है।

2) पूंजी या धन

आर्थिक दृष्टिकोण से अलग करते समय, पूंजी की तुलना आमतौर पर पैसे से की जाती है। लेकिन एकमात्र इकाई के रूप में धन को वास्तव में उत्पादन का प्राथमिक कारक नहीं माना जा सकता है। पैसा विभिन्न उत्पादन प्रक्रियाओं को चैनलाइज़ करने में मदद करता है, जो बदले में आपको अपना व्यावसायिक साम्राज्य बनाने में मदद कर सकता है।

उत्पादन के कारक में दो मुख्य प्रकार की पूंजी शामिल होती है। निजी पूंजी में वे सभी चीजें या सामान शामिल हैं जो किसी के लाभ के लिए खरीदे गए हैं, जबकि सार्वजनिक पूंजी वाणिज्यिक उद्देश्यों के लिए किया गया निवेश है।

3) उद्यमिता

संपूर्ण रूप से उद्यमिता को उत्पादन के एक अन्य कारक के रूप में देखा जा सकता है। लेकिन जब हम शब्द के गहरे अर्थ में उतरते हैं, तो कोई आसानी से कह सकता है कि उद्यमिता वह है जो उत्पादन के सभी कारकों को एक साथ जोड़ती है।

4) श्रम

अंतिम लेकिन कम से कम, सूची में प्रवेश करने वाला लेबर है। उत्पादन श्रम के कारक के रूप में किसी व्यक्ति द्वारा अपनी कंपनी या उत्पाद को सुर्खियों में लाने के लिए दिया गया मानवीय प्रयास है। श्रमिक विभिन्न संदर्भों में समग्र रूप से भिन्न हो सकते हैं; वे आपके अधीन काम करने वाले कर्मचारियों के कौशल का उल्लेख करते हैं।

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निष्कर्ष

विभिन्न उत्पादन कारक और उनके उपयोग महत्वपूर्ण हैं क्योंकि वे वर्तमान में इसे बड़ा बनाने का प्रयास करने वाली प्रत्येक कंपनी की मूलभूत आवश्यकता हैं।मंडी परिदृश्य। कारकों को सही ढंग से विकसित करके, व्यक्ति अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है और कम समय में सफलता की सीढ़ी चढ़ सकता है।

प्रश्न 28 : उत्पादन के साधनों की व्याख्या करते हुए उत्पादन के साधनों की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।

उत्तर - उत्पादन का अर्थ

साधारण बोलचाल की भाषा में उत्पादन का अर्थ वस्तु या पदार्थ का निर्माण करना होता है, पर विज्ञान हमें यह बताता है कि मनुष्य न तो किसी वस्तु का निर्माण कर सकता है और न ही उसे नष्ट कर सकता है। मनुष्य केवल वस्तु का रूप बदलकर या अन्य किसी तरीके से वस्तु को उपभाग योग्य बना सकता है। इस प्रकार कुछ अर्थशास्त्री, जैसे मार्शल आदि उत्पादन का अर्थ उपयोगिता का सृजन अतलाते हैं। वस्तु में उपयोगिता का सृजन करना ही उत्पादन है, ऐसा कुछ अर्थशास्त्री मानते हैं।

उत्पादन को यदि केवल उपयोगिता में वृद्धि ही माना जाये तो भी गलत होगा, क्योंकि ‘उपयोगिता में सृजन' या “उपयोगिता में वृद्धि के ऐसे अनेक उदाहरण दिये जा सकते हैं, जिन्हें उत्पादन कहना हास्यास्पद होगा । उदाहरण के लिए प्यासे को पानी देकर ‘उपयोगिता में वृद्धि की जा सकती है, किन्तु किसी को पानी दे देना आर्थिक अर्थ में उत्पादन नहीं हो सकता इसीलिए अधिकांश आधुनिक अर्थशास्त्रियों के अनुसार, केवल उपयोगिता का सृजन या वृद्धि उत्पादन में नहीं है, वरन् उसके साथ ही विनिमय मूल्य का सृजन या उसमें वृद्धि भी आवश्यक है। इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि वस्तु में आर्थिक उपयोगिता का सृजन या वृद्धि करना ही उत्पादन है । इस सम्बन्ध में उत्पादन की निम्न परिभाषाओं का उल्लेख करना भी आवश्यक है।

फेयर चाइल्ड के अनुसार, ‘धन में उपयोगिता का सृजन करना ही उत्पादन है।

मेयर्स के अनुसार, ‘‘उत्पादन कोई भी वह क्रिया है, जिसका परिणाम विनिमय हेतु वस्तुएँ एवं सेवाएँ होती हैं।”

यहाँ एक बात यह याद रखने की है कि उत्पादन की क्रिया तब तक समाप्त नहीं होती, जब तक कि वस्तु का रूप उपभाग के योग्य नहीं हो पाता।

उत्पादन के साधन

प्रो. बेन्हम के अनुसार, “कोई भी वस्तु जो उत्पादन में मदद पहुँचाती है, उत्पादन का साधन है।” अर्थात् उपयोगिताओं या मूल्यों के सृजन में जो तत्व मददगार होते हैं वे उत्पादन के साधनों के रूप में जाने जाते हैं। प्रो. मार्शल के अनुसार, “मानव भौतिक वस्तुओं का निर्माण नहीं कर सकता । वह तो अपने श्रम से उपयोगिताओं का सृजन कर सकता है।” भौतिक वस्तुयें प्रकृति की नि:शुल्क देन होती हैं। इन्हें भूमि कहते हैं । इस तरह मुख्य रूप से भूमि एवं श्रम . उत्पादन के दो साधन होते हैं।

प्रतिष्ठित अर्थशास्त्रियों ने भूमि एवं श्रम के अतिरिक्त पूँजी को भी उत्पादन का साधन मानकर उत्पादन के तीन साधन बताये थे। उनके विचार में भूमि उत्पादन का आधारभूत साधन होता है जिसे आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु श्रम की मदद से प्रयोग किया जाता है। उन्होंने भूमि को उत्पादन का निष्क्रिय साधन माना एवं श्रम को सक्रिय साधन माना। आगे चलकर उन्होंने पूँजी को उत्पादन का एक साधन बताया। उनके अनुसार उत्पादन में सबसे पहले भूमि को हिस्सा मिलता है, इसके पश्चात् श्रम को तथा अंत में पूँजी को।

बड़े पैमाने की अर्थव्यवस्था की सफलता को ध्यान में रखकर मार्शल ने संगठन को भी उत्पादन का एक साधन माना। संगठन की व्याख्या उन्होंने प्रबन्ध एवं साहस के रूप में की। इस तरह भूमि, श्रम, पूजी, प्रबन्ध एवं साहस उत्पादन के पाँच साधन होते हैं।

(1) भूमि- अर्थशास्त्र में भूमि शब्द का बड़ा व्यापक अर्थ होता है। पृथ्वी की ऊपरी सतह की भूमि नहीं कहलाती वरन् भू-गर्भ में एवं भू के ऊपर जो-जो भी प्रकृति द्वारा प्रदत्त निःशुल्क देन विद्यमान हैं वे भूमि की श्रेणी में आती हैं। प्रो. मार्शल के अनुसार, “भूमि का अभिप्राय उन सब पदार्थों एवं शक्तियों से है जो प्रकृति के मानव को निःशुल्क उपहार के रूप में प्रदान की हैं। इस तरह सूर्य, चन्द्रमा, जंगल, नदी, पहाड़, समुद्र, भूमि की ऊपर सतह एवं खनिज, सम्पदा आदि सभी भूमि के अन्तर्गत आते हैं।

(2) श्रम- मनुष्य द्वारा धनोत्पादन की दृष्टि से किये गये सभी मानसिक तथा शारीरिक प्रयत्न श्रम की श्रेणी में आते हैं। मार्शल के अनुसार, “ये प्रयत्न प्रत्यक्ष आनन्द की दृष्टि से न किये जाकर पूर्णतः अथवा आंशिक रूप से धनोत्पादन की दृष्टि से किये जाते हैं।” भूमिं तो उत्पादन का एक निष्क्रिय साधन है। इसके प्रयोग से उपयोगिताओं का सृजन श्रम द्वारा होता है । इस तरह श्रम उत्पादन का एक सक्रिय तथा अपरिहार्य साधन है।

(3) पूँजी- उत्पत्ति का कुछ भाग अप्रत्यक्ष रूप से आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु बचाकर रख लिया जाता है, जिसकी मदद से भविष्य में उत्पादन के लिए यन्त्र, मशीनें, कच्चा माल, श्रम के पारिश्रमिक भुगतान आदि की व्यवस्था की जाती है। इस तरह उपार्जित धन का वह भाग जो ज्यादा धन उत्पादन प्राप्त करने हेतु प्रयोग किया जाता है, पूँजी कहलाता है। प्रो. मार्शल के शब्दों में प्रकृति की निशुल्क देन के अतिरिक्त पूँजी मनुष्य द्वारा उत्पादित सम्पत्ति का वह भाग है जो ज्यादा धन उत्पादन के लिए प्रयोग किया जाता है। वर्तमान बड़े पैमाने की अर्थव्यवस्था में पूँजी भी उत्पादन का एक अति महत्वपूर्ण साधन है।

(4) प्रबन्ध अथवा संगठन- बड़े पैमाने की अर्थव्यवस्था में उत्पादन के साधन बहुत बड़ी मात्रा में प्रयोग किये जाते हैं। इनसे सुचारु रूप से काम लेने के लिए एक ऐसे व्यक्ति की जरूरत होती है जो उत्पत्ति के पैमाने के अनुसार, भूमि, श्रम एवं पूँजी की व्यवस्था करके कम से कम लागत पर अच्छे-से-अच्छा उत्पादन कर सकता है। वह व्यक्ति ही संगठनकर्ता के रूप में जाना जाता है। इस तरह आधुनिक बड़े पैमाने की प्रतिस्पर्धात्मक अर्थव्यवस्था में संगठनकर्ता उत्पादन की सफलता हेतु उत्पादन का एक अनिवार्य साधन बनता जा रहा है ।

(5) साहस- उत्पादन के बड़े पैमाने की अर्थव्यवस्था में उत्पादक के व्यक्तिगत साधन अपर्याप्त रहते हैं। इसलिए इन्हें विभिन्न व्यक्तियों से जुटाकर उत्पादन चलाया जाता है। उत्पादन में भूमि, श्रम, पूँजी एवं प्रबन्ध के रूप में जिन-जिन व्यक्तियों ने सहायता पहुँचाई है उन्हें उनकी सहायतानुसार प्रतिफल चुकाते रहने की जोखिम जो व्यक्ति उठाता है एवं हानि-लाभ का उत्तरदायित्व लेता वह साहसी कहलाता है। बड़े पैमाने की अर्थव्यवस्था में अनिश्चितता एवं जोखिम बनी रहती है। साहसी इन्हें वहन करके उत्पादन के अन्य साधनों को उनके पारिश्रमिक की दृष्टि से निश्चित करने का जो गुरुतर भार उठाता है उसके कारण वह भी उत्पादन का एक अत्यावश्यक साधन हो ।

उत्पादन के साधनों की विशेषताएं

(1) मात्रा में सीमित- हवा एवं प्रकाश को छोड़कर उत्पादन के सभी साधन मात्रा में सीमित होते हैं। व्यक्तिगत दृष्टि से इन सब के लिए विनिमय मूल्य देना पड़ता है। इसलिए इन्हें आर्थिक कहा जाता है।

(2) वैकल्पिक प्रयोग- उत्पादन के साधनों को उत्पादन के विभिन्न कार्यों में प्रयोग किया जा सकता है। उदाहरणार्थ, भूमि का प्रयोग कृषि, ईट तथा भवन निर्माण, खेल का मैदान, हवाई का पट्टी आदि निर्माण के लिए किया जा सकता है । अतः इन्हें सर्वोन्मुखी कहा गया है। लेकिन आज के विशिष्टीकरण के युग में उत्पादन के साधनों का यह गुण सीमित होता जाता है। नगर के आस-पास की भूमि का प्रयोग कृषि करने के बजाय भवन निर्माण, क्रीड़ा-स्थल, सिनेमाघर, कारखांना निर्माण आदि के लिए करना अधिक लाभकारी होता है।

(3) परिवर्तनीय अनुपात में प्रयोग- अधिकांश वस्तुओं का उत्पादन, उत्पादन के विभिन्न साधनों को विभिन्न मात्राओं में मिश्रित कर, किया जा सकता है। स्थिर अनुपात में साधनों के मिश्रण की बहुत कम आवश्यकता पड़ती है। उदाहरणार्थ, श्रम के स्थान पर पूँजी की मात्रा बढ़ाकर उत्पादन उसी सफलता से चलाया जा सकता है। हाथ से लिखने के स्थान पर टाइपराइटर के प्रयोग द्वारा अधिक छपाई की जा सकती है। इसलिए श्रमिकों की संख्या कम करके टाइपराइटर के रूप में पूँजी का अनुपात बढ़ाकर उत्पादन चलाया जा सकता हैं ।

उत्पादन के 3 घटक कौन से हैं?

उत्पादन के मूलभूत कारक ये तीन हैं- भूमि, श्रम और पूँजी।

उत्पादन के 4 तत्व कौन से हैं?

अधिकांश कंपनियाँ और फर्में उत्पादन के चार मुख्य कारकों पर निर्भर करती हैं, जो हैं:भूमि, श्रम,राजधानी, और उद्यमिता।.
1) भूमि.
2) पूंजी या धन.
3) उद्यमिता.
4) श्रम.

उत्पादन किसे कहते हैं इसके विभिन्न तत्व कौन कौन से हैं?

भूमि, श्रम, ट्रैक्टर, बीज, खाद, पानी आदि को गेंहू उत्पन्न करने में उपयोग करता है। एक कार निर्माता भूमि का फैक्टरी के लिये उपयोग करता है तथा मशीनों, श्रम और दूसरे विभिन्न आगतों (स्टील, एल्यूमीनियम, रबर आदि) का कारों के उत्पादक के लिये। एक रिक्शाचालक रिक्शे और स्वयं के श्रम का उपयोग करता है।

उत्पादन के मुख्य घटक क्या है?

उत्पादन के मुख्यतः चार घटक होते हैं: भूमि (सभी प्राकृतिक संसाधनों सहित), श्रम (सभी मानव संसाधन सहित), पूंजी (सभी मानव निर्मित संसाधनों सहित), और। एंटरप्राइज (जो उत्पादन के लिए पिछले सभी संसाधनों को एक साथ लाता है)।