उत्साह कविता में विद्युत छवि उर में से क्या तात्पर्य है? - utsaah kavita mein vidyut chhavi ur mein se kya taatpary hai?

Jharkhand Board JAC Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 5 उत्साह और अट नहीं रही Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 5 उत्साह और अट नहीं रही

JAC Class 10 Hindi उत्साह और अट नहीं रही Textbook Questions and Answers

1. उत्साह

प्रश्न 1.
कवि बादल से फुहार, रिमझिम या बरसने के स्थान पर ‘गरजने’ के लिए कहता है, क्यों?
उत्तर :
निराला विद्रोही कवि थे। वे समाज में क्रांति के माध्यम से परिवर्तन लाना चाहते थे। वे क्रांति चेतना का आह्वान करने में विश्वास रखते थे, जो ओज और जोश पर निर्भर करती है। ओज और जोश के लिए ही कवि बादलों को गरजने के लिए कहता है।

प्रश्न 2.
कविता का शीर्षक उत्साह क्यों रखा भया है।
उत्तर :
यह एक आहवान गीत है, जिसमें कवि ने मत्साहपूर्ण उग में अपने प्रगतिवादी स्वर को प्रकट किया है। वह बादलों को गरज-गरजकर सारे संसार को नया जीवन प्रदान करने के लिए प्रेरित करता है, जिनके भीतर वज्रपात की शक्ति छिपी हुई है। वे संसार को नई प्रेरणा और जीवन प्रदान करने की क्षमता रखते हैं, इसलिए कवि ने बादलों के विशेष गुण के आधार पर इस कविता का शीर्षक उत्साह रखा है।

उत्साह कविता में विद्युत छवि उर में से क्या तात्पर्य है? - utsaah kavita mein vidyut chhavi ur mein se kya taatpary hai?

प्रश्न 3.
कविता में बादल किन-किन अर्थों की ओर संकेत करता है?
उत्तर :
कविता में बादल ललित कल्पना और क्रांति चेतना की ओर संकेत करता है। एक तरफ़ यह पीड़ित-प्यासे लोगों की आशाओं और आकांक्षाओं को पूरा करने वाला है, वहीं दूसरी तरफ़ वह नई कल्पना और नए अंकुर के लिए विध्वंस, विप्लव और क्रांति चेतना की ओर संकेत करता है।

प्रश्न 4.
शब्दों का ऐसा प्रयोग जिससे कविता के किसी खास भाव या दृश्य में ध्वन्यात्मक प्रभाव पैदा हो, नाद-सौंदर्य कहलाता है। उत्साह कविता में ऐसे कौन-से शब्द हैं जिनमें नाद-सौंदर्य मौजूद है, छाँटकर लिखें।
उत्तर :

  1. घेर घेर घोर गगन, धाराधर ओ।
  2. ललित ललित, काले धुंघराले।
  3. विद्युत-छवि उर में, कवि नवजीवन वाले।
  4. विकल विकल, उन्मन थे उन्मन।

रचना और अभिव्यक्ति –

प्रश्न 5.
जैसे बादल उमड़-घुमड़कर बारिश करते हैं वैसे ही कवि के अंतर्मन में भी भावों के बादल उमड़-घुमड़कर कविता के रूप में अभिव्यक्त होते हैं। ऐसे ही कभी प्राकृतिक सौंदर्य को देखकर अपने उमड़ते भावों को कविता में उतारिए।
उत्तर :
विद्यार्थी स्वयं करें।

उत्साह कविता में विद्युत छवि उर में से क्या तात्पर्य है? - utsaah kavita mein vidyut chhavi ur mein se kya taatpary hai?

पाठेतर सक्रियता –

प्रश्न 1.
बादलों पर अनेक कविताएँ हैं। कुछ कविताओं का संकलन करें और उनका चित्रांकन भी कीजिए।
उत्तर :
अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं कीजिए।

2. अट नहीं रही है।

प्रश्न 1.
छायावाद की एक खास विशेषता है-अंतर्मन के भावों का बाहर की दुनिया से सामंजस्य बिठाना। कविता की किन पंक्तियों को पढ़कर यह धारणा पुष्ट होती है ? लिखिए।
उत्तर :
पत्तों से लदी डाल कहीं हरी, कहीं लाल कहीं पड़ी है उर में मंद-गंध-पुष्प-माला पाट-पाट शोभा-श्री पट नहीं कही है। कवि कहता है कि हरे पत्तों और लाल कोंपलों से भरी डालियों के बीच खिले सुगंधित फूलों की शोभा बिखरी है। ऐसा प्रतीत होता है कि उनके कंठों में सुगंधित फूलों की मालाएँ पड़ी हुई हैं। कवि के अज्ञात सत्तारूपी प्रियतम वन की शोभा के वैभव को कूट-कूटकर भर रहे हैं पर अपनी पुष्पलता के कारण उसमें समा न सकने के कारण वह चारों ओर बिखर रही है। कवि ने अपने मन के भावों को प्रकृति के माध्यम से व्यक्त किया है।

प्रश्न 2.
कवि की आँख फागुन की सुंदरता से क्यों नहीं हट रही है?
अथवा
‘अट नहीं रही है’ कविता में ‘उड़ने को नभ में तुम पर-पर कर देते हो’ के आलोक में बताइए कि फागुन लोगों के मन में किस तरह प्रभावित करता है?
उत्तर :
कवि के अज्ञात सत्तारूपी प्रियतम प्रभु फागुन की सुंदरता के कण-कण में व्याप्त हैं। उनके श्वास के द्वारा प्रकृति का कोना-कोना सुगंध से आपूरित था। वही कवि के मन में तरह-तरह की कल्पनाएँ भरते थे। उनमें विशेष आकर्षण था, जिससे कवि अपनी आँख नहीं हटाना चाहता। उसकी दृष्टि हट ही नहीं रही है।

प्रश्न 3.
प्रस्तुत कविता में कवि ने प्रकृति की व्यापकता का वर्णन किन रूपों में किया है?
उत्तर :
कवि ने प्रकृति की व्यापकता को फागुन की सुंदरता के रूप में प्रकट किया है। प्रकृति की सुंदरता और व्यापकता फागुन में समा नहीं पाती, इसलिए वह सब तरफ़ फूटी पड़ती दिखाई देती है। प्रकृति के माध्यम से परमात्मा की सर्वव्या किया है। वह परम सत्ता अपनी श्वासों से प्रकृति के कोने-कोने में सुगंध के रूप में व्याप्त है।

प्रकृति ही कवि को कल्पना की ऊँची उड़ान भरने के लिए प्रेरित करती है और उसकी रचनाओं में सर्वत्र दिखाई देती है। प्रकृति की व्यापकता ही कवि के मन में तरह-तरह की कल्पनाओं को जन्म देती है। वन का प्रत्येक पेड़-पौधा इसी सुंदरता से भरकर शोभा देता है। प्रकृति की व्यापकता नैसर्गिक सौंदर्य का मूल आधार है।

उत्साह कविता में विद्युत छवि उर में से क्या तात्पर्य है? - utsaah kavita mein vidyut chhavi ur mein se kya taatpary hai?

प्रश्न 4.
फागुन में ऐसा क्या होता है जो बाकी ऋतुओं से भिन्न होता है ?
उत्तर :
फागुन का महीना मस्ती से भरा होता है, जो प्रकृति को नया रंग प्रदान कर देता है। पेड़-पौधों की शाखाएँ हरे-हरे पत्तों से लद जाती हैं। लाल-लाल कोंपलें अपार सुंदर लगती हैं। रंग-बिरंगे फूलों की बहार-सी छा जाती है। इससे वन की शोभा का वैभव पूरी तरह से प्रकट हो जाता है। प्रकृति ईश्वरीय शोभा को लेकर प्रकट हो जाती है, जो बाकी ऋतुओं से भिन्न होती है। इस ऋतु में न गरमी का प्रकोप होता है और न ही सरदी की ठिठुरन। इसमें न तो हर समय की वर्षा होती है और न ही पतझड़ से ,ठ बने वृक्ष। यह महीना अपार सुखदायी बनकर सबके मन को मोह लेता है।

प्रश्न 5.
इन कविताओं के आधार पर निराला के काव्य-शिल्प की विशिष्टताएँ लिखिए।
उत्तर :
निराला विद्रोही कवि थे, इसलिए उनके काव्य-शिल्प में भी विद्रोह की छाप स्पष्ट दिखाई देती है। उन्होंने कला के क्षेत्र में रूढ़ियों और परंपराओं को स्वीकार नहीं किया था। उन्होंने भाषा, छंद, शैली-प्रत्येक क्षेत्र में मौलिकता और नवीनता का समावेश करने का प्रयत्न किया था। वे छायावादी कवि थे, इसलिए शिल्प की कोमलता उनकी कविता में कहीं-न-कहीं अवश्य बनी रही थी। उनकी कविताओं के शिल्प में विद्यमान प्रमुख विशेषताएँ अग्रलिखित हैं –

1. भाषागत कोमलता – उनकी भाषा में एकरसता की कमी है। उन्होंने सरल, व्यावहारिक, सुबोध, सौष्ठव प्रधान और अलंकृत भाषा का प्रयोग :
किया है। उनकी भाषा पर संस्कृत का विशेष प्रभाव है –

विकल विकल, उन्मन थे उन्मन
विश्व के निदाघ के सकल जन,
आए अज्ञात दिशा से अनंत के घन!
तप्त धरा, जल से फिर

शीतल कर दो –

2. कोमलता-निराला की कविताओं में कोमलता है। उन्होंने विशिष्ट शब्दों के प्रयोग से कोमलता को उत्पन्न करने में सफलता प्राप्त की है –

घेर घेर घोर गगन, धाराधर ओ!
ललित ललित, काले धुंघराले,
बाल कल्पना के-से पाले,
विदयुत-छबि उर में, कवि नवजीवन वाले!

उत्साह कविता में विद्युत छवि उर में से क्या तात्पर्य है? - utsaah kavita mein vidyut chhavi ur mein se kya taatpary hai?

3. शब्दों की मधुर योजना – निराला ने अन्य छायावादी कवियों की तरह भाषा को भाषानुसारिणी बनाने के लिए शब्दों की मधुर योजना की है। यथा –

शिशु पाते हैं माताओं के
वक्ष-स्थल पर भूला गान,
माताएँ भी पातीं शिशु के
अधरों पर अपनी मुसकान।

4. लाक्षणिक प्रयोग – निराला की भाषा में लाक्षणिक प्रयोग भरे पड़े हैं। उन्होंने परंपरा के प्रति अपने विरोध-भाव को प्रकट करते समय भी लाक्षणिकता का प्रयोग किया था –

कठिन श्रंखला बज-बजाकर
गाता हूँ अतीत के गान
मुझ भूले पर उस अतीत का
क्या ऐसा ही होगा ध्यान?

5. संगीतात्मकता – छायावादी कवियों की तरह निराला ने भी प्रायः तुक के संगीत का प्रयोग नहीं किया था और उसके स्थान पर लय-संगीत को अपनाया था। उन्हें संगीत का अच्छा ज्ञान था। कविता में उनकी यह विशेषता स्थान-स्थान पर दिखाई देती है –

कहीं पड़ी है उर में
मंद-गंध पुष्प-माल
पाट-पाट शोभा-श्री
पट नहीं रही है।

उत्साह कविता में विद्युत छवि उर में से क्या तात्पर्य है? - utsaah kavita mein vidyut chhavi ur mein se kya taatpary hai?

6. चित्रात्मकता – निराला ने शब्दों के बल पर भाव चित्र प्रस्तुत किए हैं। उन्होंने बादलों का ऐसा शब्द चित्र खींचा है कि वे काले घुघराले बालों के समान आँखों के सामने झूमते-गरजते-चमकते से प्रतीत होने लगते हैं।

7. लोकगीतों जैसी भाषा – निराला ने अनेक गीतों की भाषा लोकगीतों के समान प्रयुक्त की है। कहीं-कहीं उन्होंने कजली और गज़ल भी लिखी हैं। इसमें कवि ने देशज शब्दों का खुलकर प्रयोग किया है अट नहीं रही है आभा फागुन की तन सट नहीं रही है।

8. मुक्त छंद – निराला ने मुख्य रूप से अपनी भावनाओं को मुक्त छंद में प्रकट किया है। उन्होंने छंद से मुक्त रहकर अपने काव्य की रचना की है। इनके मुक्त छंद को अनेक लोगों ने खंड छंद, केंचुआ छंद, रबड़ छंद, कंगारू छंद आदि नाम दिए हैं।

9. अलंकार योजना – कवि ने समान रूप से शब्दालंकारों और अर्थालंकारों का प्रयोग किया है। इससे इनके काव्य में सुंदरता की वृद्धि हुई है।
(i) पुनरुक्ति प्रकाश-घेर घेर घोर गगन, धाराधर ओ! ममा ललित ललित, काले घुघराले।
(ii) उपमा-बाल कल्पना के-से पाले।
(iii) वीप्सा-विकल विकल, उन्मन थे उन्मन
(iv) प्रश्न-क्या ऐसा ही होगा ध्यान?
(v) अनुप्रास-कहीं हरी, कहीं लाल
(vi) यमक-पर-पर कर देते हो।

वास्तव में निराला ने मौलिक-शिल्प योजना को महत्व दिया है, जिस कारण साहित्य में उनकी अपनी ही पहचान है।

रचना और अभिव्यक्ति –

प्रश्न 6.
होली के आसपास प्रकृति में जो परिवर्तन दिखाई देते हैं, उन्हें लिखिए।
उत्तर :
होली के आसपास मौसम में एकदम परिवर्तन आता है। सरदी समाप्त होने लगती है और सूर्य की तपन बढ़ने लगती है। सरदियों में जिस गर्म धूप की इच्छा होती है, वह इच्छा कम हो जाती है। पेड़-पौधों पर हरियाली छाने लगती है। वनस्पतियों पर नई-नई कोंपलें दिखाई देने लगती हैं। घास पर सुबह-सुबह दिखाई देने वाली ओस की बूंदें गायब हो जाती हैं। पक्षियों के जो झुंड सरदियों में न जाने कहाँ चले जाते हैं, वे वापस पेड़ों पर लौटकर चहचहाने लगते हैं। होली के आसपास प्रकृति की शोभा नया-सा रूप प्राप्त कर लेती है।

पाठेतर सक्रियता –

प्रश्न 1.
फागुन में गाए जाने वाले गीत जैसे होरी, फाग आदि गीतों के बारे में जानिए।
उत्तर :
अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से कीजिए। इस कविता में भी निराला फागुन के सौंदर्य में डूब गए हैं। उनमें फागुन की आभा रच गई, ऐसी आभा जिसे न शब्दों से अलग किया जा सकता है, न फागुन से।

फूटे हैं आमों में बौर – भर गये मोती के झाग,
भौर वन-वन टूटे हैं। – जनों के मन लूटे हैं।
होली मची ठौर-ठौर, – माथे अबीर से लाल,
सभी बंधन छूटे हैं। – गाल सेंदुर के देखे,
फागुन के रंग राग, – आँखें हुए हैं गुलाल,
बाग-वन फाग मचा है, – गेरू के ढेले कूटे हैं।

JAC Class 10 Hindi उत्साह और अट नहीं रही Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
पाठ में संकलित निराला की कविताओं के आधार पर विद्रोह के स्वर को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
निराला की कविताओं में विद्रोह का स्वर प्रधान है। कवि ने परंपराओं का विरोध करते हुए हिंदी काव्य को मुक्त छंद का प्रयोग प्रदान किया था। उसे लगा था कि ऐसा करना आवश्यक है, क्योंकि नई काव्य परंपराएँ साहित्य का विस्तार करती हैं –

शिशु पाते हैं माताओं के
वक्षःस्थल पर भूला गान
माताएँ भी पाती शिशु के
अधरों पर अपनी मुसकान।

कवि ने बादलों के माध्यम से विद्रोह के स्वर को ऊँचा उठाया है। वे समझते थे कि इसी रास्ते पर चलकर समाज का कल्याण किया जा सकता है –

विकल विकल, उन्मन थे उन्मन,
विश्व के निदाघ के सकल जन,
आए अज्ञात दिशा से अनंत के घन!
तप्त धरा, जल से फिर
शीतल कर दो –

वास्तव में निराला जीवनपर्यंत कविता के माध्यम से विद्रोह और संघर्ष के स्वर को प्रकट करते रहे थे।

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प्रश्न 2.
‘अट नहीं रही’ के आधार पर बसंत ऋतु की शोभा का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
कवि ने बसंत में प्रकृति की शोभा का सुंदर उल्लेख किया है। ऐसा लगता है, जैसे इस ऋतु में प्रकृति के कण-कण में सुंदरता समा-सी जाती है। प्रकृति के कोने-कोने में अनूठी-सी सुगंध भर जाती है, जिससे कवियों की कल्पना ऊँची उड़ान लेने लगती है। चाहकर भी प्रकृति की सुंदरता से आँखें हटाने की इच्छा नहीं होती। नैसर्गिक सुंदरता के प्रति मन बँधकर रह जाता है। जगह-जगह रंग-बिरंगे और सुगंधित फूलों की शोभा दिखाई देने लगती है।

प्रश्न 3.
‘अट नहीं रही’ कविता में विद्यमान रहस्यवादिता को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
निराला जी को प्रकृति के कण-कण में परमात्मा की अज्ञात सत्ता दिखाई देती है। वे उसका रहस्य जानना चाहते हैं; पर जान नहीं पाते। उन्हें यह तो प्रतीत होता है कि प्रकृति के परिवर्तन के पीछे कुछ-न-कुछ अवश्य है। वह ईश्वर ही हो सकता है, जो परिवर्तन का कारण बनता है।

कहीं साँस लेते हो,
घर-घर भर देते हो,
उड़ने को नभ में तुम
पर-पर कर देते हो,
आँख हटाता हूँ तो
हट नहीं रही है।

कवि निराला को प्रकृति के कण-कण में ईश्वरीय सत्ता की छवि के दर्शन होते हैं। उन्हें प्रकृति के आँचल में छिपे उसी परमात्मा का रूप दिखाई देता है।

प्रश्न 4.
कवि ने बादलों की सुंदरता के लिए क्या उपमान चुना है?
उत्तर :
कवि ने बादलों की सुंदरता के लिए उन्हें सुंदर काले धुंघराले बालों के समान माना है, जो बालकों की अबोध कल्पना के समान पाले गए हैं। बादलों के अंतर में छिपी बिजली चमक-चमककर उनकी शोभा को और भी अधिक आकर्षक बना देती है।

उत्साह कविता में विद्युत छवि उर में से क्या तात्पर्य है? - utsaah kavita mein vidyut chhavi ur mein se kya taatpary hai?

प्रश्न 5.
बादल से मानव जीवन को क्या प्रेरणा मिलती है?
उत्तर :
कवि ने बादलों को मानव जीवन को हरा-भरा बनाने वाला मानते हुए मनुष्य को सामाजिक क्रांति के लिए प्रेरित किया है। जैसे बादल सबको समान रूप से वर्षा का जल देकर उनकी प्यास बुझाते हैं तथा धरती को अन्न उपजाने योग्य बनाकर मानव-मात्र को सुख प्रदान करते हैं, वैसे ही वह मानव को भी सामाजिक जीवन में विषमताएँ दूर कर सुख व समृद्धिपूर्ण जीवन जीने के लिए प्रेरित करता है।

प्रश्न 6.
उत्साह किस प्रकार की कविता है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
उत्साह एक आह्वान गीत है। इस गीत में कवि ने बादलों को संबोधित किया है और उनके माध्यम से अपने मन के भावों को प्रकट किया है। कवि ने बादलों को जीवनदाता तथा प्रेरणादायक माना है। कवि ने बादलों को बालकों की अबोध कल्पना के समान माना है।

प्रश्न 7.
निराला के काव्य में वेदना एवं करुणा की अनुभूति होती है, स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
वेदना, दुख एवं करुणा की अभिव्यक्ति छायावाद की एक प्रमुख विशेषता है। निराला जी ने वेदना एवं दुख को कई प्रकार से प्रकट किया है। इसका मूल हेतु जीवन की निराशा है।

तप्त धरा, जब से फिर
शीतल कर दो
बादल, गरजो!

सामाजिक विषमताओं को देखकर कवि निराला का मन खिन्न हो जाता है। उसके मन में वेदना और निराशा के भाव भर जाते हैं।

उत्साह कविता में विद्युत छवि उर में से क्या तात्पर्य है? - utsaah kavita mein vidyut chhavi ur mein se kya taatpary hai?

प्रश्न 8.
कवि निराला ने ‘उत्साह’ कविता में प्रकृति पर चेतना का आरोप किया है, सिद्ध कीजिए।
उत्तर :
निराला ने ‘उत्साह’ कविता में सर्वत्र चेतना का आरोप किया है। उन्होंने प्रकृति का मानवीकरण किया है। उनकी दृष्टि में बादल चेतना है। वे बादल से कहते हैं कि –

बादल, गरजो!
घेर घेर घोर गगन, धाराधर
ओ!
ललित ललित, काले धुंधराले
बाल कल्पना के-से पाले।

प्रश्न 9.
निराला ने अपने भावों को कैसे और किस माध्यम से प्रकट किया है?
उत्तर :
कवि ने नवजीवन और नई कविता के संदर्भो में विचार करते हुए बादलों के माध्यम से अपने मन के भावों को प्रकट किया है। वे नई चेतना एवं जागृति लाना चाहते हैं; प्रकृति का सहारा लेकर जनजागरण करना चाहते हैं।

प्रश्न 10.
कवि ने ‘उत्साह’ कविता में बादलों का कैसा रूप-सौंदर्य दिखाया है?
उत्तर :
कवि ने ‘उत्साह’ त्रित करते हुए उन्हें घना तथा प को काले बादल ऐसे लगते हैं, जैसे किसी बच्चे के काले धुंघराले बाल हों। कवि को बादलों का रूप-रंग भी बच्चों के बालों के समान दिखाई पड़ता है।

प्रश्न 11.
मनुष्य के मन पर फागुन की मस्ती का क्या प्रभाव दिखाई देता है?
उत्तर :
फागुन अपने आप में अत्यंत रंगीन तथा आकर्षक दिखाई देता है। उसकी मस्ती अनूठी है, जिससे मनुष्य का मन हर्षित
तथा प्रसन्नचित्त रहता है। इसके कारण उसके मन में खुशी का संचार होता है। उसका मन दूर नील मान में उड़ने को छ का रहता है। फागुन की सुंदरता उसे अपनी ओर इतना अधिक आकर्षित करती है कि वह चाहकर भी अपना ध्यान दूसरी ओर नहीं कर पता।

पठित काव्यांश पर आधारित बहुविकल्पी प्रश्न –

दिए गए काव्यांशों को पढ़कर पूछे गए बहुविकल्पी प्रश्नों के उचित विकल्प चुनकर लिखिए –

1. विकल विकल, उन्मन थे उन्मन
विश्व के निदाघ के सकल जन,
आए अज्ञात दिशा से अनंत के घन!
तप्त धरा, जल से फिर
शीतल कर दो –
बादल, गरजो!

(क) प्रस्तुत काव्यांश में कवि ने किसका आह्वान किया है?
(i) लोगों का
(ii) विश्व का
(iii) बादलों का
(iv) दिशाओं का
उत्तर :
(iii) बादलों का

उत्साह कविता में विद्युत छवि उर में से क्या तात्पर्य है? - utsaah kavita mein vidyut chhavi ur mein se kya taatpary hai?

(ख) विकल और उन्मन कौन थे?
(i) बादल-नभ
(ii) प्रकाश-तारा
(iii) धरा-जल
(iv) विश्व-जन
उत्तर :
(iv) विश्व-जन

(ग) बादल किसका प्रतीक हैं?
(i) क्रांति और नवचेतना के
(ii) भीषण गरमी के
(iii) दुखीं धरा के
(iv) शीतल नभ के
उत्तर :
(i) क्रांति के नवचेतना के

(घ) प्रस्तुत काव्यांश किस कविता से लिया गया है?
(i) फ़सल
(ii) अट नहीं रही है
(iii) बादल
(iv) उत्साह
उत्तर :
(iv) उत्साह

(ङ) कवि ने ‘निदाघ’ से किस ओर संकेत किया है?
(i) तप्त धरा
(ii) सांसारिक सुखों
(iii) सांसारिक दुखों
(iv) भीषण गरमी
उत्तर :
(iii) सांसारिक दुखों

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2. कहीं साँस लेते हो,
पत्तों से लदी डाल
घर-घर भर देते हो,
कहीं हरी, कहीं लाल,
उड़ने को नभ में तुम
कहीं पड़ी है उर में
पर-पर कर देते हो,
मंद-गंध-पुष्प-माल
आँख हटाता हूँ तो
पाट-पाट शोभा-श्री
हट नहीं रही है।
पट नहीं रही है।

(क) कविता में किस माह के सौंदर्य का चित्रण है?
(i) पौष
(ii) फागुन
(iii) चैत्र
(iv) वैशाख
उत्तर :
(ii) फागुन

(ख) पत्तों से लदी डाल पर किन रंगों की छटा बिखरी हुई है?
(i) लाल-पीली
(ii) लाल-हरी
(iii) हरी-पीली
(iv) लाल-नीली
उत्तर :
(ii) लाल-हरी

(ग) कवि का साँस लेने से क्या तात्पर्य है?
(i) जीवित होना
(ii) सुगंध फैलाना
(iii) सुगंधित पवन का चलना
(iv) पत्तों का हिलना
उत्तर :
(iii) सुगंधित पवन का चलना

(घ) कवि की आँख कहाँ से हट नहीं रही?
(i) फागुन का सुंदरता से
(ii) नीले आसमान से
(iii) तेज़ सूरज से
(iv) शीतल चाँद से
उत्तर :
(i) फागुन का सुंदरता से

उत्साह कविता में विद्युत छवि उर में से क्या तात्पर्य है? - utsaah kavita mein vidyut chhavi ur mein se kya taatpary hai?

(ङ) प्रस्तुत कविता के कवि कौन हैं?
(i) प्रसाद
(ii) दिनकर
(iii) निराला
(iv) जायसी
उत्तर :
(iii) निराला

काव्यबोध संबंधी बहुविकल्पी प्रश्न –

काव्य पाठ पर आधारित बहुविकल्पी प्रश्नों के उत्तर वाले विकल्प चुनिए –

(क) बादलों को किसके समान सुंदर कहा गया है?
(i) सफ़ेद बालों के समान
(ii) भूरे बालों के समान
(iii) काले-घुघराले बालों के समान
(iv) बच्चों के समान
उत्तर :
(iii) काले-धुंघराले बालों के समान

(ख) कवि ने बादलों के माध्यम से किसका आह्वान किया है?
(i) समृद्धि का
(ii) आपदा का
(iii) सामाजिक क्रांति व नवचेतना का
(iv) वर्षा का
उत्तर :
(iii) सामाजिक क्रांति व नवचेतना का

(ग) ‘अट नहीं रही है’ कविता में पाट-पाट पर क्या बिखरा है?
(i) कण
(ii) ओस
(iii) बादल
(iv) शोभा-श्री
उत्तर :
(iv) शोभा-श्री

उत्साह कविता में विद्युत छवि उर में से क्या तात्पर्य है? - utsaah kavita mein vidyut chhavi ur mein se kya taatpary hai?

(घ) कवि ने बादल को क्या कहा है?
(i) विद्युतमय
(ii) वज्रमय
(iii) कल्पनामय
(iv) (i) और (ii) दोनों
उत्तर :
(iii) कल्पनामय

सप्रसंग व्याख्या, अर्थग्रहण संबंधी एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

1. उत्साह

बादल, गरजो!
घेर घेर घोर गगन, धाराधर ओ!
ललित ललित, काले घुघराले,
बाल कल्पना के-से पाले,
विद्युत-छवि उर में, कवि, नवजीवन वाले!
वज्र छिपा, नूतन कविता
फिर भर दो –
बादल, गरजो! विकल विकल, उन्मन
थे उन्मन विश्व के निदाघ के सकल जन,
आए अज्ञात दिशा से अनंत के घन!
तप्त धरा, जल से फिर
शीतल कर दो –
बादल, गरजो!

शब्दार्थ : गगन – आकाश। धाराधर – मूसलाधार, लगातार। ललित – सुंदर। विद्युत-छवि – बिजली की चमक (शोभा)। उर – हृदय, भीतर। कवि – स्रष्टा। विकल – व्याकुल। उन्मन – अनमना, उदास। निदाघ – गरमी का ताप। तप्त – गर्म। धरा – पृथ्वी! अनंत – आकाश।

प्रसंग : प्रस्तुत कविता ‘उत्साह’ हमारी पाठ्य-पुस्तक क्षितिज (भाग-2) में संकलित की गई है, जिसके रचयिता सप्रसिदध छायावादी कवि श्री सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ हैं। कवि ने अपनी कविता में बादलों का आह्वान किया है कि वे पीड़ित-प्यासे लोगों की आकांक्षाओं को पूरा करें। उन्होंने बादलों को नए अंकुर के लिए विध्वंस और क्रांति चेतना को संभव करने वाला भी माना है।

व्याख्या : कवि बादलों से गरज-बरस कर सारे संसार को नया जीवन देने की प्रेरणा देते हुए कहता है कि बादलो! तुम गरजो। तुम सारे आकाश को घेरकर मूसलाधार वर्षा करो; घनघोर बरसो। हे बादलो! तुम अत्यंत सुंदर हो। तुम्हारा स्वरूप सुंदर काले घुघराले बालों के समान है तथा तुम अबोध बालकों की मधुर कल्पना के समान पाले गए हो। तुम हृदय में बिजली की शोभा धारण करते हो। तुम नवीन सृष्टि करने वाले हो।

तुम जलरूपी नया जीवन देने वाले हो और तुम्हारे भीतर वज्रपात करने की अपार शक्ति छिपी हुई है। तुम इस संसार को नवीन प्रेरणा और जीवन प्रदान कर दो। बादलो! तुम गरजो और सबमें नया जीवन भर दो। गरमी के तेज ताप के कारण धरती के सारे लोग बहुत ल्याकुल और बेचैन हैं, वे उदास हो रहे हैं। अरे बादलो! तुम सीमाहीन आकाश में पता नहीं किस ओर से आकर सब तरफ़ फैल गए हो। तुम इस गरमी के ताप से तपी हुई धरती को बरसकर शीतलता प्रदान करो। हे बादलो! तुम गरज-गरज कर बरसो और फिर धरती को शीतल करो!

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
1. कविता में निहित भावार्थ स्पष्ट कीजिए।
2. कवि ने किसका आह्वान किया है और क्यों?
3. बादलों को किसके समान संदर माना गया है ?
4. बादल किसकी कल्पना के समान पाले गाए हैं ?
5. बादलों के हृदय में किस प्रकार की शोभा छिपी हुई है?
6. बादल मानव-जीवन और कवि को क्या प्रदान करते हैं ?
7. धरती के लोग किस कारण व्याकुल और बेचैन थे?
8. बादल कहाँ छा जाते हैं ?
9. कवि बादलों से बरसकर क्या करने को कहता है ?
उत्तर :
1. कवि ने प्यास और पीड़ित लोगों के कष्टों को दूर कर उनकी इच्छाओं-आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए बादलों का आग्रह भा आहवान किया है ! साथ-ही-साथ उसने बादलों को नई कल्पना और नए अंकुर के लिए विध्वंस, विप्लव और क्रांति चेतना को संपन्न करने वाला माना है। बादल ही धरती को हरा-भरा बनाते हैं और कवि को कविता लिखने की प्रेरणा प्रदान करते हैं।
2. कवि ने बादलों का आह्वान किया है, ताकि वे अपने जल से धरती तथा सारे संसार को नया जीवन प्रदान करें।
3. बादलों को काले धुंघराले बालों के समान सुंदर माना गया है।
4. बादल अबोध बालकों की कल्पना के समान पाले गए हैं।
5. बादलों के हृदय में बिजली की शोभा छिपी हुई है, जो समय-समय पर जगमगाकर प्रकट हो जाती है।
6. बादल मानव-जीवन और कवि को नवीन प्रेरणा व जीवन प्रदान करते हैं।
7. धरती के लोग गरमी के ताप के कारण व्याकुल और बेचैन थे।
8. बादल न जाने सीमाहीन आकाश के किस कोने से आकर सब ओर छा गए थे।
9. कवि बादलों से बरसकर गरमी के ताप से तपी धरती को शीतलता प्रदान करने को कहता है।

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सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
1. कवि ने बादलों के माध्यम से किस प्रकार प्रतीकात्मकता को प्रस्तुत किया है ?
2. किस बोली का प्रयोग किया गया है।
3. किस प्रकार की शब्दावली का अधिक से प्रयोग किया गया है?
4. किस छंद का प्रयोग किया गया है?
5. किस शब्द-शक्ति का प्रयोग है?
6. प्रयुक्त काव्य-गुण का नाम लिखिए।
7. प्रयुक्त बिंब कौन-सा है?
8. कविता में प्रयुक्त किन्हीं दो तद्भव शब्दों को लिखिए।
9. कविता में प्रयुक्त किन्हीं दो तत्सम शब्दों को लिखिए।
10. कविता हिंदी साहित्य की किस काव्यधारा से संबंधित है?
11. शैली का नाम लिखिए।
12. कविता में प्रयुक्त अलंकारों का निरूपण कीजिए।
उत्तर :
1. कवि ने बादलों के माध्यम से सामाजिक क्रांति का आहवान किया है। बादल सृजन और संहार दोनों कर सकते हैं।
2. खड़ी बोली।
3. तत्सम शब्दावली की अधिकता है।
4. अतुकांत छंद का प्रयोग किया है, पर फिर भी लयात्मकता की सृष्टि हुई है।
5. लाक्षणिकता की विशेषता विद्यमान है।
6. ओज गुण विद्यमान है।
7. गतिशील चाक्षुक बिंब का प्रयोग है।
8. बादल, काले।
9. विधुत, ललित।
10. छायावाद।
11. आहवान शैली/संबोधन शैली।
12. अनुप्रास –

  • घेर घेर घोर गगन
  • ललित ललित
  • बाल कल्पना के-से पाले

मानवीकरण –

  • बादल गरजो!
  • घेर घेर घोर गगन, धाराधर ओ!

पुनरुक्ति प्रकाश –
घेर घेर, ललित ललित, विकल-विकला

उपमा –
बाल कल्पना के-से पाले

2. अट नहीं रही है।

अट नहीं रही है
आभा फागुन की तन
सट नहीं रही है।
कहीं साँस लेते हो,
घर-घर भर देते हो,
उड़ने को नभ में तुम
पर-पर कर देते हो,
आँख हटाता हूँ तो
हट नहीं रही है।
पत्तों से लदी डाल
कहीं हरी, कहीं लाल,
कहीं पड़ी है उर में
मंद-गंध-पुष्प-माल,
पाट-पाट शोभा-श्री
पट नहीं रही है।

शब्दार्थ : अट – समाना, प्रविष्ट। आभा – चमक, सौंदर्य। नभ – आकाश। उर – हृदय। मंद – धीमी। पुष्प-माल – फूलों की माला। पाट-पाट -जगह-जगह। शोभा-श्री – सौंदर्य से भरपूर। पट – समा नहीं रही है।

प्रसंग : प्रस्तुत कविता हमारी पाठ्य-पुस्तक क्षितिज (भाग-2) में संकलित है, जिसके रचयिता छायावादी काव्यधारा के प्रमुख कवि श्री सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ हैं। इसे मूल रूप से उनकी काव्य-रचना ‘राग-विराग’ में संकलित किया गया है। कवि ने इसमें फागुन की मादकता को प्रकट किया है, जिसकी सुंदरता और उल्लास सभी दिशाओं में फैला हुआ है।

व्याख्या : कवि कहता है कि फागुन की यह सुंदरता शरीर में किसी भी से प्रकार समा नहीं पा रही है। वह प्रकृति के कण-कण से फूट रही है। अपने रहस्यवादी भावों को प्रकट करते हुए कवि कहता है कि हे प्रिय! पता नहीं तुम कहाँ बैठकर अपनी साँस के द्वारा प्रकृति के कोने-कोने को सुगंध से भर रहे हो। तुम कल्पना के आकाश में ऊँचा उड़ने तुम्हारी के लिए मन को पंख प्रदान करते हो। तुम मन में तरह-तरह की कल्पनाओं को जन्म देते हो। सब तरफ़ तुम्हारी सुंदरता ही व्याप्त है।

वह अत्यधिक आकर्षक और सुंदर है। कवि कहता है कि मैं उसकी ओर से अपनी आँख हटाना चाहता हूँ, पर वह वहाँ से हट नहीं पा रही। इस सुंदरता में मन बँधकर रह गया है। पेड़ों की सभी डालियाँ पत्तों से पूरी तरह से लद गई हैं। कहीं तो पत्ते हरे हैं और कहीं कोंपलों में लाली छाई है। उनके बीच सुंदर-सुगंधित फूल खिल रहे हैं। ऐसा लगता है कि उनके कंठों में सुगंध से भरे फूलों की मालाएँ पड़ी हैं। हे प्रिय! तुम जगह-जगह शोभा के वैभव को कूट-कूटकर भर रहे हो पर वह अपनी पुष्पलता के कारण उसमें समा नहीं पा रही और चारों ओर बिखरी पड़ी है।

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अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
1. कवि में निहित भावार्थ स्पष्ट कीजिए।
2. कवि ने अपनी कविता में किसे अपनी बात कहनी चाही है?
3. कवि ने किस महीने की सुंदरता का वर्णन किया है?
4. कवि के प्रिय किसे और किसके द्वारा सुगंध से आपूरित कर देते हैं ?
5. कवि को मन के पंख क्यों प्रदान किए गए हैं ?
6. चारों ओर किसका सौंदर्य व्याप्त है ?
7. कवि किसकी ओर से अपनी आँख नहीं हटा पाता और क्यों ?
8. पेड़-पौधों की डालियाँ किस प्रकार के पत्तों से लद गई हैं ?
9. वन के वैभव में कूट-कूटकर क्या भरा हुआ है ?
10. कविता के शिल्प-सौंदर्य को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
1. कवि ने फागुन महीने की अद्भुत प्राकृतिक सुंदरता का वर्णन किया है, जिसे देखकर कवि के हृदय में अनेक कल्पनाओं का जन्म होता है। कवि के अनुसार ईश्वर की रहस्यमयी शोभा सब तरफ़ व्याप्त है।
2. कवि ने कविता में रहस्यवादी भाव प्रकट करते हुए अपने प्रियतम से अपनी बात कहनी चाही है।
3. कवि ने फागुन के महीने की प्राकृतिक सुंदरता का वर्णन किया है।
4. कवि के प्रिय अपनी श्वास से प्रकृति के कोने-कोने को सुगंध से आपूरित कर देते हैं।
5. कवि के मन को उसके प्रियतम द्वारा पंख इसलिए प्रदान किए गए, ताकि वह कल्पना के आकाश में स्वतंत्रतापूर्वक ऊँचा उड़ सके।
6. चारों ओर प्रकृति का सौंदर्य व्याप्त है।
7. कवि अपने चारों ओर फैले परमात्मा के सौंदर्य से आँख नहीं हटा पाता। उसका मन नैसर्गिक सौंदर्य में बँधकर रह गया है।
8. पेड़-पौधों की डालियाँ हरे-भरे पत्तों और नई-नई लाल कोंपलों से लद गई हैं।
9. वन के वैभव में शोभा और सौंदर्य कूट-कूटकर भरा हुआ है।
10. खड़ी बोली में रचित इस कविता में तत्सम और तद्भव शब्दावली का अधिक प्रयोग किया गया है। प्रसाद गुण का प्रयोग है। अतुकांत छंट है। विशेषोक्ति, असंगति, पुनरुक्ति प्रकाश, रूपक, पदमैत्री और स्वाभावोक्ति अलंकारों का सहज प्रयोग सराहनीय है।

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सिौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
1. कवि ने किस प्रकार की भावना को व्यक्त किया है?
2. कविता में किस सुंदर छटा को मुखरित किया गया है?
3. भाषा में कौन-सा गुण विद्यमान है?
4. किस छंद का प्रयोग किया है ?
5. किस शब्द-शक्ति ने कवि के कथन को गहनता-गंभीरता प्रदान की है?
6. काव्य-गुण लिखिए।
7. किस बोली का प्रयोग किया गया है?
8. किस प्रकार के शब्दों का अधिक प्रयोग है?
9. दो तद्भव शब्द लिखिए।
10. एक मुहावरे का उल्लेख कीजिए।
11. अलंकारों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
1. कवि ने रहस्यवादी भावना को प्रकट किया है। उसे सब दिशाओं में फागुन की सुंदरता और उल्लास समान रूप से फैला हुआ प्रतीत होता है।
2. प्रकृति की सुंदर छटा मुखरित हुई है।
3. भाषा में गेयता का गुण विद्यमान है।
4. अतुकांत छंद का प्रयोग है।
5. लाक्षणिकता के प्रयोग ने कवि के कथन को गहनता-गंभीरता प्रदान की है।
6. प्रसाद गुण विद्यमान है।
7. खड़ी बोली।
8. तत्सम शब्दावली की अधिकता है।
9. माँस, आँख।
10. पट जाना, अट जाना।
11. अनुप्रास –

  • नहीं रही है
  • घर-घर भर
  • पर-पर कर
  • पाट-पाट
  • शोभा-श्री

विशेषोक्ति –

  • आँख हटाता हूँ तो
  • हट नहीं रही है।

पुनरुक्ति प्रकाश –
घर-घर, पर-पर, पाट-पाट

मानवीकरण –

  • कहीं साँस लेते हो
  • घर-घर भर देते हो
  • उड़ने को नभ में तुम
  • पर-पर कर देते हो।

उत्साह और अट नहीं रही Summary in Hindi

कवि-परिचय :

हिंदी साहित्य जगत में ‘महाप्राण निराला’ नाम से प्रसिद्ध सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ का जन्म सन 1899 ई० में बंगाल के मेदिनीपुर जिले के महिषादल नामक स्थान पर हुआ था। इनके पिता रामसहाय त्रिपाठी उत्तर-प्रदेश के उन्नाव जिले के गाँव गढ़ाकोला के निवासी थे। वे तत्कालीन महिषादल रियासत में कोषाध्यक्ष थे। जब निराला जी तीन वर्ष के थे, तो इनकी माता का देहावसान हो गया था।

इनकी अधिकांश शिक्षा घर पर ही हुई। इन्होंने बाँग्ला, संस्कृत, अंग्रेजी, हिंदी आदि में रचित साहित्य का गहन अध्ययन किया था। पारिवारिक उत्तरदायित्वों को वहन करने के लिए इन्होंने महिषादल रियासत में नौकरी प्रारंभ की, किंतु कुछ कारणों से त्याग-पत्र देकर वहाँ से चले आए। कुछ समय तक वे रामकृष्ण मिशन कलकत्ता (कोलकाता) के पत्र ‘समन्वय’ का संपादन करते रहे।

बाद में इन्होंने ‘मतवाला’ पत्रिका का संपादन भी किया। 15 अगस्त 1961 ई० को इनका देहावसान हो गया। निराला जी अत्यंत उदार, स्वाभिमानी, अध्ययनशील, प्रकृति-प्रेमी तथा त्यागी व्यक्ति थे। वे स्वयं संगीत-प्रेमी थे। अतिथि-सत्कार करने में वे अत्यंत संतोष का अनुभव करते थे। वे विद्रोही प्रवृत्ति तथा पुरातन में नवीनता का समावेश करने वाले साहित्यकार थे।

रचनाएँ – निराला जी बहमुखी प्रतिभा संपन्न साहित्यकार थे। इन्होंने गद्य और पद्य दोनों में लिखा। इनकी प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं –

काव्य रचनाएँ-अनामिका, परिमल, गीतिका, कुकुरमुत्ता, अणिमा, बेला, नए पत्ते, अपरा, अराधना, अर्चना, तुलसीदास, सरोज स्मृति, राम की शक्ति-पूजा, राग-विराग, वर्षा गीत आदि।
उपन्यास – अप्सरा, अलका, प्रभावती, निरूपमा, चोटी की पकड़, काले कारनामे, चमेली आदि।
कहानी संग्रह – लिली, सखी, चतुरी चमार तथा सुकुल की बीबी।
रेखाचित्र-कुल्ली भाट और बकरिहा।
निबंध संग्रह – प्रबंध पद्य, प्रबंध प्रतिमा, चाबुक, प्रबंध परिचय एवं रवींद्र कविता कानन।
जीवनियाँ – ध्रुव, भीष्म तथा राणा प्रताप।

अनुवाद – आनंदपाठ, कपाल कुंडला, चंद्रशेखर, दुर्गेश नंदिगी, कृष्णकांत का विल, युगलांगुलीय, रजनी, देवी चौधरानी, राधा रानी, विष वृक्ष, राजसिंह, महाभारत आदि। साहित्यिक विशेषताएँ-निराला जी हिंदी की छायावादी कविता के आधार-स्तंभ माने जाते हैं, किंतु इनकी कविता में छायावाद के अतिरिक्त प्रगतिवादी तथा प्रयोगवादी कविता की विशेषताएँ भी परिलक्षित होती हैं। इनके काव्य की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –

1. वैयक्तिकता – छायावादी कवियों के समान निराला के काव्य में भी वैयक्तिकता की अभिव्यक्ति है। जूही की कली, हिंदी के सुमनों के प्रति, मैं अकेला, राम की शक्ति-पूजा, विफल वासना, स्नेह निर्झर बह गया है, सरोज-स्मृति आदि अनेक कविताओं में हमें निराला की वैयक्तिक भावना की सफल अभिव्यक्ति मिलती है।

उत्साह कविता में विद्युत छवि उर में से क्या तात्पर्य है? - utsaah kavita mein vidyut chhavi ur mein se kya taatpary hai?

2. निराशा, वेदना, दुखवाद एवं करुणा की विवृत्ति-छायावादी कवि वेदना एवं दुख को जीवन का सर्वस्व मानते हैं। निराला जी ने वेदना एवं दुखवाद को कई प्रकार से प्रकट किया है। इसका मूल हेतु जीवन की निराशा है –

“दिए हैं मैंने जगत को फूल फल, किया है अपनी प्रभा से चकित-चल,
यह अनश्वर था सफल पल्लवित तल, ठाट जीवन का वही जो ढह गया है।”

सामाजिक विषमताओं को देखकर कवि निराला का मन खिन्न हो जाता है। उनके मन में वेदना और निराशा के भाव भर जाते हैं।

3. प्रकृति-चित्रण-निराला ने प्रकृति पर सर्वत्र चेतना का आरोप किया है। उनकी दृष्टि में बादल, प्रपात, यमुना-सभी कुछ चेतना है। वे यमुना से पूछते हैं –

“तू किस विस्मृत की वीणा से, उठ उठ कर कातर झंकार।
उत्सुकता से उकता-उकता, खोल रही स्मृति के दृढ़ द्वार?”

4. मानवतावादी जीवन-दर्शन – निराला के काव्य में मानवतावादी जीवन-दर्शन की अभिव्यक्ति हुई है। बादल राग’ में कवि समाज की विषमता से पीड़ित होकर कहता है –

“विप्लव रव से छोटे ही हैं शोभा पाते।
अट्टालिका नहीं है रे, आतंक भवन।”

‘तोड़ती पत्थर’ तथा ‘भिक्षुक’ जैसी कविताओं में निराला जी ने मानव में छिपे हुए देवता का दर्शन किया है। यथा –

“ठहरो अहो मेरे हृदय में है अमृत, मैं सींच दूंगा
अभिमन्यु जैसे हो सकोगे तुम।”

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5. नारी का विविध एवं नवीन रूपों में चित्रण – नारी के प्रति उनके हृदय में गहरी सहानुभूति है। कहीं वह जीवन की सहचरी एवं प्रेयसी है और कहीं उन्हें वह प्रकृति में व्याप्त होकर अलौकिक भावों से अभिभूत करती हुई दिखाई देती है। कहीं वे उसके दिव्यदर्शन की झलक पाते हैं और कहीं नारी को लक्ष्य करके वे कवि प्रेमोन्माद की अस्फुट मनोवृत्ति का चित्रण करते हैं। ‘तोड़ती पत्थर’ कविता में ‘मज़दूरिनी’ के प्रति गहरी सहानुभूति प्रदर्शित करते हुए निराला यह लिखना नहीं भूलते हैं कि –

“श्याम तन, भर बंधा यौवन…,
देख मुख उस दृष्टि से…,
ढुलक माथे से गिरे सीकर।”

6. सामाजिक चेतना – निराला जी चाहते हैं कि समाज का प्रत्येक प्राणी सुखी हो। निराला ने अपने प्रसिद्ध वंदना गीत ‘वीणा वादिनी वर दे’ में प्रार्थना की है कि मानव-समाज में नवीन शक्तियों का आविर्भाव हो, जिससे प्रत्येक व्यक्ति अपने कर्तव्य का पालन कर सके। निराला ने अपनी पैनी दृष्टि से समाज के सच्चे रूप को देखा था और अपने गरीब जीवन को सहा था।

7. देश-प्रेम की अभिव्यक्ति – देश के सांस्कृतिक पतन की ओर निराला जी ने बड़ी ओजस्विनी भाषा में इंगित किए हैं। इनका कहना है कि देश के भाग्याकाश को विदेशी शासक के राहू ने ग्रस रखा है। वे चाहते हैं कि किस प्रकार देश का भाग्योदय हो और भारतीय जन-मन आनंद-विभोर हो उठे। भारती वंदना, जागो फिर एक बार, तुलसीदास, छत्रपति शिवाजी का पत्र आदि कविताओं में निराला जी ने देश-भक्ति के भाव प्रकट किए हैं।

8. विद्रोह का स्वर एवं स्वच्छंदता – अन्य छायावादी कवियों की अपेक्षा निराला जी कहीं अधिक विद्रोही एवं स्वच्छंदता के प्रेमी थे। वस्तुतः वे जीवनपर्यंत विद्रोह एवं संघर्ष ही करते रहे। अपनी संस्कृति का दंभ भरने वालों को ललकारते हुए निराला जी ने लिखा है-‘हज़ार वर्ष से सलाम ठोकते-ठोकते नाक में दम हो गया, अपनी संस्कृति लिए फिरते हैं। ऐसे लोग संसार की तरफ़ से आँखें बंदकर अपने ही विवर में व्याघ्र बन बैठे रहते हैं। अपनी ही दिशा में ऊँट बनकर चलते हैं।’

9. कला पक्ष-निराला जी ने अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति के लिए जिस छंद को चुना है, उसे मुक्त छंद कहा जाता है। काव्य के कला पक्ष के अंतर्गत हम मुक्तक छंद को निराला की सबसे बड़ी देन कह सकते हैं। निराला की भाषा की प्रमुख विशेषताएँ कोमलता, शब्दों की मधुर योजना, भाषा का लाक्षणिक प्रयोग, संगीतात्मकता, चित्रात्मकता, प्रकृतिजन्य प्रतीकों की प्रचुरता आदि हैं। निराला को संगीत शास्त्र का अच्छा ज्ञान था। वे स्वयं भी अच्छे गायक थे। उनकी कविता में संगीतात्मकता का सुंदर निर्वाह मिलता है।

उत्साह कविता में विद्युत छवि उर में से क्या तात्पर्य है? - utsaah kavita mein vidyut chhavi ur mein se kya taatpary hai?

कविता का सार :

करते हुए निराला जी ने बादलों के माध्यम से अपने भावों को प्रकट किया है। कविता में बादल एक ओर भूखे-प्यासे और पीड़ित लोगों की इच्छाओं-आकांक्षाओं को पूरा करते दिखाए गए हैं, तो दूसरी ओर उसे नए अंकुर के लिए विध्वंस, विप्लव और क्रांति की चेतना को वाले तत्व के रूप में प्रस्तुत किया है। कवि ने जीवन को व्यापक और समग्र दृष्टि से देखते हुए अपने मन की कल्पना और क्रांति चेतना की ओर ध्यान दिया है। साहित्य की सामाजिक परिवर्तन में सदा ही महत्त्वपूर्ण भूमिका रहती है।

कवि बादलों से गरज-गरजकर : बरसने की बात कहता है। सुंदर और काले बादल अबोध बालकों की कल्पना के समान हैं। वे नई सृष्टि की रचना करते हैं। उनके भीतर वज्रपात की शक्ति छिपी हुई है। कवि बादलों का आह्वान करता है कि वे बरसकर गरमी के ताप से तपी हुई धरती को शीतलता प्रदान करें। अट नहीं रही है-निराला जी ने अपनी इस रहस्यवादी कविता में फागुन मास की मादकता का सुंदर चित्रण किया है। जब व्यक्ति के मन में प्रसन्नता हो, तो हर तरफ़ फागुन की सुंदरता और उल्लास भरा रूप ही दिखाई देता है।

कवि को सारी प्रकृति में सुंदरता फूटती-सी प्रतीत होतो है; उसके कोने-कोने में सुगंध प्रतीत होती है। इससे मन में तरह-तरह की लेती हैं। वनों के सभी पेड़ नए-नए पत्तों से लद गए हैं। वे पत्ते कहीं हरे हैं, तो कहीं केवल कोंपलों के रूप में लाल हैं। उनके बीच में सुगंधित फूल खिल रहे हैं। सारे वन का वैभव अति आकर्षक और मधुर है।

उत्साह कविता में विद्युत छवि उर में से क्या तात्पर्य है *?

(ख) बादल के हृदय को 'विद्युत-छवि' इसलिए कहा है क्योंकि बादलों के भीतर बिजली के रूप में अपार क्षमता और शक्ति विद्यमान है जो विद्युत-छवि क्रांति, ओजस्विता एवं जनचेतना का प्रतीक है। कवि ने बादलों को 'नवजीवन वाले इसलिए कहा है क्योंकि बादल की गर्जन का क्रांतिकारी रूप नई चेतना और जागृति से भर देता है।

विद्युत छवि उर में का क्या तात्पर्य है?

हृदय मे बिजली रूपी छवि का हेना।

विद्युत छवि उर में पंक्ति के माध्यम से कवि क्या कहना चाहता है?

कवि ने 'बादल के उर में विद्युत छवि को किन संदर्भो में जोड़ा है? घने काले बादलों के बीच में चमकती बिजली की रेखा नया जीवन देने वाली है। प्रचंड गर्मी से जब समस्त प्राणी जगत त्राहि-त्राहि करने लगता है तब बादल बरस कर उनमें नई स्फूर्ति और नया जीवन डालते हैं।

उत्साह कविता में निराला जी ने विद्युत छवि उर में कवि नवजीवन वाले कथन से क्या कहना?

बादलों को नवजीवन वाले इसलिए कहा गया है क्योकि वे वर्षा करके मुरझाई-सी धरती में नया जीवन फूंक देते हैं। वे धरती को उपजाऊ बना देते हैं और गर्मी से मुक्ति दिलाते हैं।