विज्ञापन : एक नजर Show विज्ञापन की भूमिका विज्ञापन की
चुनौतियाँ विज्ञापन द्वारा समाज के समक्ष उत्पन्न चुनौतियां विवेक-हीनता का विकास : उपभोक्तावादी संस्कृति का प्रभाव इतना बढ़ गया है कि आज का युवा वर्ग किसी वस्तु का चयन करने हेतु किसी विचार-विमर्श या सलाह करने की जिज्ञासा भी नहीं रखते । विज्ञापन एक तरफ समाज विभिन्न क्षेत्रों से सुपरिचित कराते है तो दूसरी तरफ समाज के लिए चुनौतियां भी खड़ी करते है, इससे हमें लड़ने का प्रयास करना चाहिए और समाज पर हावी होने से रोकना चाहिए । —— अनूप यादव “विरह प्रेमी” विज्ञापन की भाषा क्या है?विज्ञापन की भाषा सरल, संक्षिप्त और बोधगम्य होनी चाहिए। बात को सीधे-सीधे इस रूप में कहा जाए कि सुनने या पढ़ने वाले की समझ में आसानी से आ जाए। प्रिंट और इलैक्ट्रोनिक - सभी माध्यमों में अधिक विस्तार का अवकाश नहीं होता। कहीं स्थान की सीमा होती है तो कहीं समय की।
विज्ञापन में भाषा का क्या महत्व है?उनके अनुसार विज्ञापन की भाषा अर्थ का एक नया स्तर निर्मित करती है जो स्थापित अर्थ से भिन्न होता है। वह उत्पाद की विशेषताओं को इस तरह शब्दों में बाँधती है कि हमारे लिए उनके कुछ ख़ास मायने हो जाते हैं। विज्ञापन केवल वस्तु ही नहीं बेचता वह हमारे मन की आकांक्षाओं की पूर्ति करता है।
विज्ञापन क्या है विज्ञापन की भाषा पर विचार?'वि' से तात्पर्य 'विशेष' से तथा 'ज्ञापन' से आशय 'ज्ञान कराना' अथवा सूचना देना है। इस प्रकार 'विज्ञापन' शब्द का मूल अर्थ है 'किसी तथ्य या बात की विशेष जानकारी अथवा सूचना देना। ' वृहत्त हिन्दी कोष के अनुसार- विज्ञापन का अर्थ है- “समझना, सूचना देना, इश्तहार, निवेदन या प्रार्थना।”
विज्ञापन अनुवाद क्या है?An ad is an advertisement.
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