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संसाधन की परिभाषा एवं वर्गीकरणपर्यावरण में उपलब्ध सभी वस्तुएँ जिसका उपयोग हमारी आवश्यकता पूरा करने में की जा सकती है तथा उसे बनाने के लिए तकनीकि उपलब्ध है साथ ही आर्थिक रूप से संभाव्य है और सांस्कृतिक रूप से मान्य है, एक संसाधन है। अर्थात संसाधन वह है, जो (क) पर्यावरण में उपलब्ध सभी वस्तुएँ जिससे हमारी आवश्यकता पूरी हो सकती है (ख) उपलब्ध वस्तु को आवश्यकता पूरी करने के अनुकूल बनाने के लिए हमारे पास आवश्यक तकनीकि उपलब्ध हो (ग) उस उपलब्ध वस्तु को आवश्यकता पूरी करने योग्य बनाने में पूर्ण होने वाली आवश्यकता से अधिक व्यय की आवश्यकता नहीं हो। अर्थात वह आर्थिक रूप से संभाव्य हो। (घ) वस्तु के उपयोग की सांस्कृतिक रूप से मान्यता हो। हमारे पर्यावरण में उपलब्ध वस्तु को संसाधन में बदलने की प्रक्रिया प्रकृति, प्राद्योगिकी और संस्थानों के बीच परस्पर संबंध पर निहित है तथा निर्भर करता है। मानव प्रकृति के साथ तकनीकि के माध्यम से संबंध बनाकर संसाधन उपलब्ध कराते हैं जो कि मानव के विकास को गति देता है। संसाधन का वर्गीकरण: संसाधनों के प्रकारसंसाधन को विभिन्न आधार पर वर्गीकृत किया जा सकता है। (1) उत्पत्ति के आधार पर : जैव (Biotic) और अजैव (Abiotic) (2) समाप्यता के आधार पर : नवीकरण योग्य और अनवीकरण योग्य (3) स्वामित्व के आधार पर : व्यक्तिगत, सामुदायिक, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय (4) विकास के स्तर के आधार पर : संभावी, विकसित भंडार और संचित कोष (1) उत्पत्ति के आधार पर संसाधन का वर्गीकरणसंसाधनों को उत्पत्ति के आधार पर दो वर्गों में बाँटा जा सकता है: जैव (Biotic) संसाधन एवं अजैव (Abiotic) संसाधन (a) जैव संसाधनहमारे पर्यावरण में उपस्थित वैसी सभी वस्तुएँ जिनमें जीवन है, को जैव संसाधन कहा जाता है। जैव संसाधन हमें जीवमंडल से मिलती हैं। उदाहरण: मनुष्य सहित सभी प्राणि। इसके अंतर्गत मत्स्य जीव, पशुधन, मनुष्य, पक्षी आदि आते हैं। (b) अजैव संसाधनहमारे वातावरण में उपस्थित वैसे सभी संसाधन जिनमें जीवन व्याप्त नहीं हैं अर्थात निर्जीव हैं, अजैव संसाधन कहलाते हैं। उदाहरण चट्टान, पर्वत, नदी, तालाब, समुद्र, धातुएँ, हवा, सभी गैसें, सूर्य का प्रकाश, आदि। (2) समाप्यता के आधार पर संसाधन का वर्गीकरणसमाप्यता के आधार पर हमारे वातावरण में उपस्थित सभी वस्तुओं को जो दो वर्गों में बाँटा जा सकता है: नवीकरण योग्य (Renewable) और अनवीकरण योग्य (Non-renewable) (a) नवीकरण योग्य (Renewable) संसाधनवैसे संसाधन जो फिर से नवीकृत किया जा सकता है, नवीकरण योग्य संसाधन (Renewable Resources) कहा जाता है। जैसे सौर उर्जा, पवन उर्जा, जल, वन तथा वन्य जीव। इस संसाधनों को इनके सतत प्रवाह के कारण नवीकरण योग्य संसाधन के अंतर्गत रखा गया है। (b) अनवीकरण योग्य संसाधन (Non Renewable Resources)वातावरण में उपस्थित वैसी सभी वस्तुएँ, जिन्हें उपयोग के बाद नवीकृत नहीं किया जा सकता है या उनके विकास अर्थात उन्हें बनने में लाखों करोड़ों वर्ष लगते हैं, को अनवीकरण योग्य संसाधन कहा जाता है। उदाहरण (i) जीवाश्म ईंधन जैसे पेट्रोल, कोयला, आदि। जीवाश्म ईंधन का विकास एक लम्बे भू वैज्ञानिक अंतराल में होता है। इसका अर्थ यह है कि एक बार पेट्रोल, कोयला आदि ईंधन की खपत कर लेने पर उन्हें किसी भौतिक या रासायनिक क्रिया द्वारा प्राप्त नहीं किया जा सकता है। अत: इन्हें अनवीकरण योग्य संसाधन के अंतर्गत रखा गया है। (ii) धातु: धातु हमें खनन के द्वारा खनिज के रूप में मिलता है। हालाँकि धातु का एक बार उपयोग के बाद उन्हें फिर से प्राप्त किया जा सकता है। जैसे लोहे के एक डब्बे से पुन: लोहा प्राप्त किया जा सकता है। परंतु फिर से उसी तरह के धातु को प्राप्त करने के लिए खनन की ही आवश्यकता होती है। अत: धातुओं को भी अनवीकरण योग्य संसाधन में रखा जा सकता है। (3) स्वामित्व के आधार पर संसाधन का वर्गीकरणस्वामित्व के आधार पर संसाधनों को चार वर्गों में बाँटा जा सकता है: व्यक्तिगत संसाधन, सामुदायिक संसाधन, राष्ट्रीय संसाधन तथा अंतर्राष्ट्रीय संसाधन। (a) व्यक्तिगत संसाधनवैसे संसाधन, जो व्यक्तियों के निजी स्वामित्व में हों, व्यक्तिगत संसाधन कहलाते हैं। जैसे घर, व्यक्तिगत तालाब, व्यक्तिगत निजी चारागाह, व्यक्तिगत कुँए आदि। (b) सामुदायिक संसाधनवैसे संसाधन, जो गाँव या शहर के समुदाय अर्थात सभी व्यक्तियों के लिए उपलब्ध हों, सामुदायिक स्वामित्व वाले संसाधन कहलाते हैं। जैसे सार्वजनिक पार्क, सार्वजनिक खेल का मैदान, सार्वजनिक चरागाह, श्मशान, सार्वजनिक तालाब, नदी, आदि सामुदायिक स्वामित्व वाले संसाधन के कुछ उदाहरण हैं। (c) राष्ट्रीय संसाधनवैसे सभी संसाधन जो राष्ट्र की संपदा हैं, राष्ट्रीय संसाधन कहलाते हैं। जैसे सड़कें, नदियाँ, तालाब, बंजर भूमि, खनन क्षेत्र, तेल उत्पादन क्षेत्र, राष्ट्र की सीमा से 12 नॉटिकल मील तक समुद्री तथा महासागरीय क्षेत्र तथा उसके अंतर्गत आने वाले संसाधन आदि। वैसे तो देश के अंदर आने वाली सभी वस्तुओं पर राष्ट्र का ही अधिकार होता है। चाहे वह कोई भूमि हो या कोई तालाब। सभी प्रकार की संसाधनों को राष्ट्र लोक हित में अधिग्रहित कर सकती है। जैसे कि सड़क, नहर, रेल लाईन आदि बनाने के लिए निजी भूमि का भी अधिग्रहण किया जाता है। भारत में 1978 में 44 वें संविधान संशोधन के द्वारा मौलिक अधिकारों में से सम्पत्ति के अधिकार को हटा दिया गया। इस संशोधन के अनुसार सरकार लोकहित में किसी भी सम्पत्ति को अधिग्रहित कर सकती है। भूमि अधिग्रहण का अधिकार शहरी विकास प्राधिकरणों को प्राप्त है। (d) अंतर्राष्ट्रीय संसाधनतटरेखा से 200 समुद्री मील के बाद खुले महासागर तथा उसके अंतर्गत आने वाले संसाधन अंतर्राष्ट्रीय संसाधन के अंतर्गत आते हैं। इनके प्रबंधन का अधिकार कुछ अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों को दिये गये हैं। अंतर्राष्ट्रीय संसाधनों का उपयोग बिना अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों की सहमति के नहीं किया जा सकता है। (4) विकास के आधार पर संसाधन का वर्गीकरणविकास के आधार पर संसाधनों को चार भाग में बाँटा गया है। ये भाग हैं, संभावी संसाधन, विकसित संसाधन, भंडार तथा संचित कोष। (a) संभावी संसाधनवैसे संसाधन जो विद्यमान तो हैं परंतु उनके उपयोग की तकनीकि का सही विकास नहीं होने के कारण उनका उपयोग नहीं किया गया है, संभावी संसाधन कहलाते हैं। जैसे राजस्थान तथा गुजरात में पवन और सौर उर्जा की अपार संभावना है, परंतु उनका उपयोग पूरी तरह नहीं किया जा रहा है। कारण कि उनके उपयोग की सही एवं प्रभावी तकनीकि अभी विकसित नहीं हुई है। (b) विकसित संसाधनवैसे संसाधन जिनके उपयोग के लिए प्रभावी तकनीकि उपलब्ध हैं तथा उनके उपयोग के लिए सर्वेक्षण, गुणवत्ता और मात्रा निर्धारित की जा चुकी है, विकसित संसाधन कहलाते हैं। (c) भंडारवैसे संसाधन जो प्रचूरता में उपलब्ध हैं परंतु सही तकनीकि के विकसित नहीं होने के कारण उनका उपयोग नहीं हो पा रहा है, भंडार कहलाते हैं। जैसे वायुमंडल में हाइड्रोजन उपलब्ध है, जो कि उर्जा का एक अच्छा श्रोत हो सकता है, परंतु सही तकनीकि उपलब्ध नहीं होने के कारण उनका उपयोग नहीं हो पा रहा है। (d) संचित कोषवैसे संसाधन जिनके उपयोग के लिए तकनीकि उपलब्ध हैं, लेकिन उनका उपयोग अभी आरंभ नहीं किया गया है, तथा वे भविष्य में उपयोग के लिए सुरक्षित रखे गये हैं, संचित कोष कहलाते हैं। संचित कोष भंडार के भाग हैं। जैसे भारत के कई बड़ी नदियों में अपार जल का भंडार है, परंतु उन सभी से विद्युत का उत्पादन अभी प्रारंभ नहीं किया गया है। भविष्य में उनके उपयोग की संभावना है। अत: बाँधों तथा नदियों का जल, वन सम्पदा आदि संचित कोष के अंतर्गत आने वाले संसाधन हैं। विकास के आधार पर संसाधन कितने प्रकार के होते हैं?संसाधनों के प्रकार उत्पत्ति के आधार पर - जैव संसाधन इन संसाधनों की प्राप्ति जीवमंडल से होती है और इनमें जीवन व्याप्त है, जैसे मनुष्य, वनस्पतिजात, प्राणिजात, मत्स्य जीवन, पशुधन आदि । - - अजैव संसाधन वे सारे संसाधन जो निर्जीव वस्तुओं से बने हैं, अजैव संसाधन कहलाते हैं। उदाहरणार्थ, चट्टानें और धातुएँ।
संसाधन कितने प्रकार के होते हैं?संसाधन दो प्रकार के होते हैं- प्राकृतिक संसाधन और मानव निर्मित संसाधन।
संभाव्यता के आधार पर संसाधन कितने प्रकार के होते हैं?संसाधन एवं विकास/संसाधन. वास्तविक संसाधन:-जिनकी मात्रा ज्ञात होती है। तथा जिनका उपयोग किया जा रहा है। ... . संभाव्य संसाधन:-वे संसाधन जिनकी सम्पूर्ण मात्रा ज्ञात नहीं हो सकती है और इस समय पर्याप्त प्रौद्दोगिकी के अभाव में इनका प्रयोग नहीं किया जा रहा है। इनका उपयोग भविष्य में किया जा सकता है।. संसाधनों का वर्गीकरण कितने प्रकार से किया जा सकता है?संसाधनों को दो श्रेणियों, नवीकरणीय तथा अनवीकरणीय में विभाजित किया गया है। नवीकरणीय संसाधन ऐसे संसाधन हैं जिनका पुन: नवीनीकरण और पुनरुत्पादन किया जा सकता है जबकि अनवीकरणीय संसाधन वे संसाधन हैं जिनका दोबारा नवीनीकरण तथा पुनरुत्पादन नहीं किया जा सकता है। सौर तथा पवन ऊर्जा, जल तथा वन आदि नवीकरणीय संसाधनों के उदाहरण हैं।
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