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सरदार पटेल उनका जन्म 31 अक्टूबर 1875 को गुजरात के खेड़ा जिले में हुआ था. उन्होंने अपनी आखिरी सांस 15 दिसंबर 1950 को मुंबई में ली. किसान परिवार में पैदा हुआ पटेल पटेल अपनी कूटनीतिक क्षमताओं के लिए भी याद किए जाते हैं.आज मुल्क के पहले वजीरे दाखिला (गृह मंत्री) सरदार वल्लभ भाई पटेल की 71 वीं पुण्यतिथी है. सरदार वल्लभ भाई पटेल एक ऐसी महान हस्ती थे कि उन्होंने किस्मत नहीं सिर्फ संकल्पशक्ति (अज़्म), और मेहनत के दम पर वो मुकाम बनाया जिसे किसी के लिए भी छू पाना मुमकिन नहीं है. उनकी गैर मामूली (असाधारण) काबिलियत ही थी कि एक साथ 562 रियासतों का एकीकरण करके उन्होंने भारतवर्ष को एक अज़ीम मुल्क (विशाल देश) की शक्ल दी. सरदार पटेल उनका जन्म 31 अक्टूबर 1875 को गुजरात के खेड़ा जिले में हुआ था. उन्होंने अपनी आखिरी सांस 15 दिसंबर 1950 को मुंबई में ली. किसान परिवार में पैदा हुआ पटेल पटेल अपनी कूटनीतिक क्षमताओं के लिए भी याद किए जाते हैं. साल 1946 में जैसे-जैसे हिंदुस्तान को आजादी मिलने की उम्मीदें बढ़ रहीं थी वैसे ही कांग्रेस के ज़रिए सरकार के कयाम का अमल भी शुरू हो चुका था. सभी की निगाहें कांग्रेस के अध्यक्ष के पद पर टिकी हुई थीं क्योंकि ये लगभग तय हो चुका था कि जो कांग्रेस का अध्यक्ष बनेगा वही हिंदुस्तान का अगला प्रधानमंत्री भी चुना जाएगा. गांधी जी के कहने पर छोड़ा ये ख्यालदूसरी आलमी जंग, भारत छोड़ो आंदोलन और ज्यादातर कांग्रेसी लीडरों के जेल में बंद होने जैसे कई वजहों से आजाद अप्रैल 1946 तक अध्यक्ष बने रहे और जब कांग्रेस ने अध्यक्ष पद के लिए चुनाव का ऐलान किया तो आजाद ने दोबारा चुनाव लड़ने की ख्वाहिश जाहिर की थी लेकिन गांधी जी के कहने पर उन्हें यह ख्याल छोड़ना पड़ा. मौलाना आजाद को मना करने के साथ-साथ गांधी जी ने पंडित नेहरू की भी खुलकर हिमायत कर दी थी. गांधी जी की खुली हिमायत के बावजूद 15 में से 12 प्रदेश कांग्रेस कमेटियों ने सरदार वल्लभभाई पटेल को पार्टी अध्यक्ष चुना था. इसके बाद गांधी ने सरदार पटेल से मुलाकात कर कांग्रेस अध्यक्ष पद से हटने की गुज़ारिश की. सरदार पटेल ने इस गुजारिश को कुबूल की और कांग्रेस अध्यक्ष के ओहदे की कुर्बानी दी. कहा यह भी जाता रहा है कि जवाहरलाल नेहरू इत्तेफाक राए से मुल्क के पहले पीएम चुने गए थे और वे पूरे देश के चहेते थे. भोपाल के नवाब ने सरदार पटेल के आगे मानी हारआजादी के बाद जब हैदराबाद और जूनागढ़ ने भारत में मिलने से मना कर दिया. इसके पीछे पाकिस्तान और मोहम्मद अली जिन्ना की चाल थी, लेकिन हैदराबाद में सरदार पटेल ने सेना भेजकर वहां के निजाम का आत्मसमर्पण करवा लिया. वहीं, जूनागढ़ में जनता के विद्रोह से घबराकर वहां का नवाब भागकर पाकिस्तान चला गया. इसी तरह भोपाल के नवाब हमीदुल्ला खान ने भी शर्त रख दी कि वो या तो आजाद रहेंगे या पाकिस्तान में मिल जाएंगे. इसके बाद सरदार पटेल की वजह से ही भोपाल के नवाब ने हार मान ली.1 जून 1949 को भोपाल भारत का हिस्सा बन गया. दिल का दौरा पड़ने से हुई मौत15 दिसंबर, 1950 की सुबह तीन बजे पटेल को दिल का दौरा पड़ा और वो बेहोश हो गए. चार घंटों बाद उन्हें थोड़ा होश आया. उन्होंने पानी मांगा. मणिबेन ने उन्हें गंगा जल में शहद मिलाकर चम्मच से पिलाया. रात 9 बजकर 37 मिनट पर सरदार पटेल ने आखिरी सांस ली. वहीं भारत के वर्तमान गृह मंत्री अमित शाह ने सरदार पटेल को याद करते हुए लिखा था, ‘मातृभूमि के लिए सरदार साहब का समर्पण, निष्ठा, संघर्ष और त्याग हर भारतवासी को देश की एकता और अखंडता के लिए ख़ुद को समर्पित करने की प्रेरणा देता है. अखंड भारत के ऐसे महान शिल्पी की जयंती पर उनके चरणों में वंदन और समस्त देशवासियों को ‘राष्ट्रीय एकता दिवस’ की शुभकामनाएं.’ ये भी पढ़ें-Jammu Kashmir Encounter: जम्मू कश्मीर के पुलवामा में सुरक्षा बलों और आतंकियों के बीच मुठभेड़, एक आतंकी ढेर आज सरदार पटेल की 143वीं जयंती है.सरदार वल्लभ भाई पटेल को एक बेटा और एक बेटी थीं. दोनों सांसद बने, लेकिन कांग्रेस में उनकी जगह बस यहीं तक थी.
15 दिसंबर 1950 को सुबह 09.37 बजे मुंबई के बिरला हाउस में सरदार वल्लभभाई पटेल को लंबी बीमारी के बाद दिल का जबरदस्त दौरा पड़ा, जिससे उनका निधन हो गया. उनके निधन के बाद भारतीय राजनीति में उनके परिवार यानी बेटे और बेटी का प्रभामंडल कम होता चला गया. उन्हें वो महत्व नहीं मिल पाया, जो मिलना चाहिए था. ऐसा नहीं है कि पटेल का परिवार राजनीति में सक्रिय नहीं था, बल्कि कहना चाहिए कि खासा सक्रिय था. उनके बड़े बेटे दहया मुंबई में कांग्रेस के अग्रणी नेताओं में थे. वहीं बेटी मनिबेन पटेल अच्छे संपर्कों वाली सक्षम राजनीतिज्ञ थीं. ये कहा जा सकता है कि नेहरू परिवार ने वल्लभ भाई पटेल के बेटे और बेटी को सांसद तो बनाए रखा, लेकिन वो महत्व नहीं दिया, जिसके वो हकदार थे. ये भी पढ़ें - खतरनाक भूकंप के झटके भी झेल सकती है 'स्टैच्यू ऑफ यूनिटी', 10 बड़ी बातें ये कहना भी सही नहीं होगा कि उन्होंने अपने पिता के नाम को भुनाने की कोशिश नहीं की. दोनों जब तक राजनीति में रहे, उनकी पहचान सरदार पटेल के ही नाम पर थी. सत्तर के दशक में पटेल के बेटा और बेटी दोनों का कांग्रेस से मोहभंग हो गया. उनका मानना था कि कांग्रेस को नेहरू परिवार ने हड़प लिया है. पटेल की बेटी मनिबेन पटेल ज्यादा प्रखर और सक्रिय थीं. बेहद ईमानदार.आजीवन अविवाहित रहीं. वर्ष 1988 में उनका निधन हुआ. आचार्य जेबी कृपलानी के साथ सरदार पटेल और उनकी बेटी मनिबेन (फाइल फोटो) पटेल की बेटी ने नेहरू को क्या सौंपा था ये भी पढ़ें - 562 रियासतों को एकजुट करने वाला, देश का सबसे असरदार सरदार कांग्रेस के दिग्गज नेता मनिबेन से काटने लगे कन्नी कूरियन ने उनसे पूछा, आप नेहरू से क्या सुनने की उम्मीद कर रही थीं, जवाब था- मैंने सोचा शायद वह ये पूछेंगे कि मैं अब कैसे काम चला रही हूं या मुझको किसी मदद की जरूरत तो नहीं, लेकिन ये उन्होंने कभी पूछा ही नहीं. निःसंदेह वह आहत हुईं. हैरानी है कि उस दौर में कांग्रेस के ज्यादातर दिग्गज नेता भी उनसे कन्नी काटने लगे. इसमें ज्यादातर ऐसे नेता भी थे, जिनकी कभी न कभी सरदार पटेल ने मदद की थी. मनिबेन सांसद रहीं लेकिन बाद में 1977 में उन्होंने जनता पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा (फाइल फोटो) अहमदाबाद में सड़कों पर दिख जाती थीं ये भी पढ़ें - सरदार पटेल से उस मुलाकात के बाद कश्मीर के महाराजा का चेहरा फक पड़ गया मनिबेन ने युवावय से ही खुद को कांग्रेस और महात्मा गांधी के प्रति समर्पित कर दिया था. वह लंबे समय तक उनके अहमदाबाद स्थित आश्रम में भी रहीं. बाद के बरसों में वह पटेल के साथ दिल्ली में रहने लगीं. वह पिता के रोजमर्रा के कामों को देखती और सचिव के रूप में उनकी मदद करती थीं. लिहाजा कांग्रेस के तकरीबन सभी नेता उन्हें अच्छी तरह जानते थे. सांसद बनीं और असरदार पदों पर रहीं जनता पार्टी के टिकट पर चुनाव जीता ये भी पढ़ें - दुनियाभर में भारतीय पायलटों की मांग, उड़ाते हैं दुनिया का सबसे महंगा प्लेन 1977 में उन्होंने जनता पार्टी के टिकट पर मेहसाणा से लोकसभा चुनाव लड़ा और निर्वाचित हुईं. उन्हें मोरारजी देसाई से बहुत उम्मीदें थीं लेकिन उन्होंने उनके साथ न जाने क्यों अजीबोगरीब व्यवहार किया. जब भी वह मिलने जाती थीं तो वह उन्हें बहुत इंतजार कराते थे. सरदार पटेल के बेटे दहयाभाई पटेल एक बार लोकसभा के लिए जीते और अगली बार राज्यसभा सदस्य बने (फाइल फोटो) बेटे दाहिया भी दो बार रहे सांसद दहयाभाई आजादी की लड़ाई में भी कूदे. जेल गए. आजादी के बाद उन्होंने 1957 का लोकसभा चुनाव लड़ा. 1962 में राज्यसभा सदस्य चुने गए. पटेल बच्चों को क्या देते थे सुझाव गौतम अपने पितामह वल्लभ भाई के बारे में कोई विचार या दृष्टिकोण सार्वजनिक तौर पर रखना नहीं चाहते. उन्हें लगता है कि इसे हर सियासी दल अपने अपने तरीके से भुनाने लगेगा. पटेल के नाम पर इन दिनों हो रही सियासत पर भी उन्हें आपत्ति है. पटेल के परिवार से जुड़े कुछ और लोग आणंद में रहते हैं, वो बिजनेस में हैं. ये भी पढ़ें - रक्तदान के बाद कहां जाता है ब्लड और किस प्रक्रिया से होती है इसकी जांचundefined ब्रेकिंग न्यूज़ हिंदी में सबसे पहले पढ़ें News18 हिंदी| आज की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट, पढ़ें सबसे विश्वसनीय हिंदी न्यूज़ वेबसाइट News18 हिंदी| Tags: Congress, Gujarat, Sardar patel, Sardar Vallabhbhai Patel, Statue of unity FIRST PUBLISHED : October 31, 2018, 09:15 IST सरदार बल्लभ भाई पटेल की मृत्यु कैसे हुई?दिल का दौरासरदार वल्लभ भाई पटेल / माैत की वजहnull
सरदार पटेल की मृत्यु कब और कहां हुई थी?वल्लभ भाई पटेल. भाई पटेल का मृत्यु कब हुआ था?15 दिसंबर 1950सरदार वल्लभ भाई पटेल / मृत्यु तारीखnull
सरदार वल्लभ भाई पटेल की पत्नी का क्या नाम था?झावेरबा पटेलसरदार वल्लभ भाई पटेल / पत्नीnull
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