विनिमय पत्र और प्रतिज्ञा पत्र में क्या अंतर है? - vinimay patr aur pratigya patr mein kya antar hai?

विनिमय पत्र और प्रतिज्ञा-पत्र में अंतर

vinimay patra or pratigya patra me antar;विनियम पत्र तथा प्रतिज्ञा पत्र मे अनेक समानताएं होते हुए भी कुछ असमानताएं भी है। प्रतिज्ञा पत्र और विनिमय पत्र की समानताएं है कि दोनो लिखित हस्ताक्षरयुक्त विलेख होते है, दोनो मे विश्चित पक्षकार होते है, उनका देय धन निश्चित होता है; दोनों मे निश्चित धन के भुगतान का आदेश होता है तथा यह आदेश शर्त-रहित रहता है और भुगतान सदैव देश की चलन मुद्रा मे ही होता है। 

इसके विपरीत विनियम पत्र एवं प्रतिज्ञा पत्र के बीच निम्न अंतर है--

1. विनिमय पत्र के तीन पक्षकार होते है--

(अ) लेखक अथवा आहर्ता

(ब) देनदार अथवा आहार्यी 

(स) लेनदार अथवा प्राप्तकर्ता।

प्रतिज्ञा पत्र मे केवल दो पक्षकार ही होते है--

(अ) लेखक

(ब) देनदार।

2. विनिमय पत्र मे लेखक लेनदार भी हो सकता है, अर्थात् लेखक तथा लेनदार दोनों एक ही व्यक्ति हो सकते है। प्रतिज्ञा पत्र मे लेखक स्वयं लेनदार नही बन सकता।

3. विनिमय पत्र मे शर्त-रहित आज्ञा या आदेश होता है। प्रतिज्ञा पत्र मे शर्त-रहित वचन या प्रतिज्ञा होती है।

4. विनिमय पत्र मे देनदार द्वारा स्वीकृत की आवश्यकता रहती है। प्रतिज्ञा पत्र मे स्वीकृति की कोई आवश्यकता नही रहती। 

5. विनिमय पत्र मे देनदार की स्वीकृति शर्त-सहित हो सकती है। प्रतिज्ञा पत्र मे शर्त-सहित स्वीकृति का प्रश्न ही नही उठता। 

6. विनियम पत्र मे स्वीकृति के लिए प्रस्तुत करने आलोकन एवं प्रमाणन कई प्रतियों मे विनिमय-विपत्र को तैयार करने के संबंध मे विशेष नियम लागू होते है। प्रतिज्ञा पत्र इन विशेष नियमों से पूरी तरह मुक्त है। 

7. विनिमय पत्र मे लेखक का दायित्व गौण होता है, अर्थात् वह तभी उत्तरदायी होता है जबकि स्वीकर्ता उसका भुगतान करने मे असफल रहता है। प्रतिज्ञा पत्र मे लेखक का दायित्व प्रधान तथा पूर्ण रूप से होता है।

8. विनिमय पत्र मे लेखक का संबंध सीधे स्वीकर्ता अथवा देनदार से रहता है। प्रतिज्ञा पत्र मे लेखक का संबंध सीधे लेनदार से रहता है।

9. विनिमय पत्र के अप्रतिष्ठित होने पर धारक का यह कर्तव्य हो जाता है कि वह लेखक तथा समस्त पूर्व पृष्ठांकन को सूचना दे। प्रतिज्ञा पत्र अप्रतिष्ठित होने पर इसकी सूचना देने की कोई आवश्यकता नही रहती।

10. विनिमय पत्र के प्रतिष्ठित होने पर इसका आलोकन एवं प्रमाणन होना आवश्यक होता है। विशेषतः जब विनिमय-पत्र विदेशी हो, तो आलोकन एवं प्रमाणन करना अनिवार्य हो जाता है। प्रतिज्ञा पत्र के अप्रतिष्ठित होने की दशा मे इसके आलोकन एवं प्रमाणन कराने की कोई आवश्यकता नही रहती।

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  • चेक, विनिमय बिल एवं प्रतिज्ञा पत्र में अन्तर
  • Disclaimer

चेक, विनिमय बिल एवं प्रतिज्ञा पत्र में अन्तर

अन्तर चेक विनिमय विपत्र प्रतिज्ञा पत्र
प्रकृति चेक सदैव बैंकर पर लिखा जाता है। विनिमय विपत्र किसी भी व्यक्ति जिसमें बैंक भी सम्मिलित है, पर लिखा जा सकता है। प्रतिज्ञा पत्र किसी भी व्यक्ति पर लिखा जा सकता है।
स्वीकृति इसमें स्वीकृति की आवश्यकता नहीं होती।  इसमें देनदार अथवा आहार्यी की स्वीकृति आवश्यक है। इस पर स्वीकृति की आवश्यकता नहीं होती।
अवधि चेक माँग पर देय होता है। विनिमय विपत्र माँग पर अथवा निश्चित अवधि बाद देय होता है। प्रतिज्ञा पत्र बिना शर्त देने की प्रतिज्ञा होती है जो कि एक निश्चित तिथि के बाद देय होता है।
मुद्रांक चेक पर मुद्रांक नहीं लगाया जाता । विनिमय विपत्र पर नियमानुसार मुद्रांक लगाया जाता है। प्रतिज्ञा पत्र पर नियमानुसार मुद्रांक लगाया जाता है।
प्रयोग चेक का प्रयोग व्यापारिक एवं व्यक्तिगत दोनों प्रकार के लेन-देन के लिए होता है। विनिमय विपत्र का प्रयोग केवल व्यापारिक कार्यों के लिए होता है। प्रतिज्ञा पत्र का प्रयोग व्यक्तिगत तथा व्यापारिक दोनों प्रकार के लेन-देन के लिए किया जाता है।

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प्रतिज्ञा पत्र तथा विनिमय पत्र में मुख्य अंतर - Main difference between promissory note and bill of exchange

(1) प्रतिज्ञा पत्र में दो पक्ष होते है जबकि विनिमय पत्र में तीन पक्ष होते है। (2) प्रतिज्ञा पत्र को देनदार लिखता है जबकि विनिमय बिल लेनदार द्वारा लिखा जाता है। ( 3 ) प्रतिज्ञा पत्र पर स्वीकृति की आवश्यकता नहीं होती जबकि बिल पर स्वीकृति होना आवश्यक होता है। (4) प्रतिज्ञा पत्र में भुगतान करने की प्रतिज्ञा होती है जबकि बिल में भुगतान का आदेश होता है (5) प्रतिज्ञा पत्र में भुगतान की जिम्मेदारी लिखने वाले की होती है, बिल में स्वीकार करने वाला भुगतान का जिम्मेदार होता है। (6) प्रतिज्ञा पत्रों को व्यक्तिगत तथा व्यापारिक दोनों प्रकार के लेन-देन के लिए प्रयोग किया जाता है जबकि विनिमय बिलों का प्रयोग केवल व्यापारिक कार्यों के लिए ही होता है।

प्रतिज्ञा पत्र तथा चैक में अंतर ये हैं- (1) प्रतिज्ञा पत्र में दो पक्ष होते है, जबकि चैक में तीन पक्ष होते हैं। (2) प्रतिज्ञा पत्र स्वयं पर लिखा जाता है, चैक किसी बैंक पर लिखा जाता है। (3) प्रतिज्ञा पत्र एक प्रतिज्ञा है चैक एक आदेश है। (4) प्रतिज्ञा पत्र का भुगतान माँग या कुछ समय बाद किया जाता है, चैक का भुगतान माँग पर होता है (5) प्रतिज्ञा पत्र ऋणी द्वारा लिखा जाता है चैक लिखने वाले व्यक्ति की रकम बैंक में जमा होती हैं (6) प्रतिज्ञा पत्र पर स्टाम्प लगता है चैक पर स्टाम्प नहीं लगाना पडता । (4) हुण्डी

हुण्डी एक भारतीय साख पत्र है जिसका चलन देश में लगभग दसवीं शताब्दी से होता आया है। यह विभिन्न क्षेत्रों में भिन्न-भिन्न भाषाओं में तथा विभिन्न रीतियों में लिखी जाती है

तथा इसका रूप सुनिश्चित नहीं होता। हुण्डी भारतीय साध्य विपत्र अधिनियम के अंतर्गत नहीं आती। विनिमय बिल के समान हुण्डी पर भी स्टाम्प होता है। समय की दृष्टि से हुण्डी दो प्रकार की होती है- (1) दर्शनी हुण्डी, जिसका माँगने पर तुरंत भुगतान कर दिया जाय, इस पर स्टाम्प की आवश्यकता नहीं होती तथा (2) मुद्दती हुण्डी, जिसका भुगतान एक निश्चित मुद्दत अथवा अवधि के बाद किया जाता है इसमें भुगतान की तिथि लिख दी जाती है परंतु इसमें रियायती दिन देने की प्रथा है।

भुगतान पाने वाले की दृष्टि से हुण्डी चार प्रकार की होती है - (1) देखनहार हुण्डी, जिसका भुगतान वाहक को कर दिया जाता है तथा हस्तांतरण के लिए बेचान की आवश्यकता नहीं होती।

(2) धनी जोग हुण्डी, जिसका भुगतान हुण्डी में लिखित व्यक्ति अथवा धनी को या उसके आदेशानुसार अन्य व्यक्ति को किया जाता है और जिसके हस्तांतरण के लिए इसकी पीठ पर बेचान करना आवश्यक होता है, (3) नाम जोग हुण्डी, जिसका भुगतान केवल हुण्डी में लिखित व्यक्ति को ही किया जाता है तथा (4) शाह जोग हुण्डी, जिसका भुगतान किसी प्रतिष्ठित व्यापारी को ही किया जाता है।

(5) बैंक ड्राफ्ट

बैंक ड्राफ्ट ऐसा साख पत्र है जिसके द्वारा एक बैंक अपनी किसी शाखा अथवा किसी अन्य बैंक को लिखित आदेश देता है कि ड्राफ्ट में लिखी हुई रकम लिखित व्यक्ति को या उससे आदेश प्राप्त व्यक्ति को दे दी जाय।

बैंक ड्राफ्ट में विनिमय बिल तथा चैक दोनों के गुण पाए जाते हैं। बैंक ड्राफ्ट द्वारा एक स्थान से दूसरे स्थान को रकम भेजने के लिए बैंक में रकम जमा करा दी जाती है। ड्राफ्ट बनाने के लिए बैंक कमीशन वसूल करता है। बैंक द्वारा ड्राफ्ट रकम देने वाले को दिया जाता है जो कि डाक द्वारा इसे उस व्यक्ति को भेज देता हैं। जिसकों भुगतान प्राप्त करना होता है और वह चैक के समान ही ड्राफ्ट बैंक में प्रस्तुत करके रकम वसूल कर लेता है।

(6) साख प्रमाण पत्र

साख प्रमाण पत्र किसी व्यक्ति फर्म अथवा बैंक द्वारा किसी अन्य व्यक्ति, फर्म अथवा बैंक पर लिखा गया साख पत्र होता है जो यह प्रार्थना करता है

कि वह पत्र में अंकित व्यक्ति को एक निश्चित रकम का भुगतान कर दे। इसमें एक तिथि लिख दी जाती है और रकम उसी तिथि तक प्रदान की जाती है। ये प्रमाण पत्र दो प्रकार के होते है: (1) साधारण साख प्रमाण पत्र, जो किसी एक बैंक या एक व्यक्ति के नाम ही लिखा जाता है, (2) चलायमान साख प्रमाण पत्र, जो एक ही साथ बैंक की विभिन्न शाखाओं तथा संबंधित बैंकों को लिखा जाता है। विभिन्न स्थानों पर लिए गए ऋण की रकम प्रमाण पत्र की पीठ पर लिख दी जाती है।

विदेशी व्यापार में साख प्रमाण पत्रों का काफी अधिक प्रयोग किया जाता हैं। आयातकर्ता की ओर से उसका बैंक दूसरे निर्यातकर्ता को उस देश में किसी बैंक के माध्यम से निश्चित शर्तें पूरी करने पर विशिष्ट भुगतान करने का आश्वासन देता है। (7) बुक क्रेडिट

बुक क्रेडिट अथवा किताबी साख वह है जिसमें जब कोई व्यापारी अपना माल उधार बेचता है या कोई बैंक ऋण देता है तो दी गयी रकम को खाते में लिख लिया जाता है। साख के लिए अलग से कोई पत्र अथवा रूक्का नहीं लिखा जाता, खाते मे लिखे हुए साख के विवरण को वैधानिक रूप मे भी स्वीकार कर लिया जाता है। आधुनिक युग में व्यापारी किताबी साख का बहुत अधिक प्रयोग करते हैं। प्रायः इस प्रकार के ऋणों का आपसी लेन-देन द्वारा ही समायोजन हो जाता है, इसके बाद जो कुछ बचत है उसका नकद भुगतान कर दिया जाता है। बैंक अपने आपसी लेन-देन किताबी साख द्वारा की करते हैं और उनके खातों के समायोजन का कार्य समाशोधन गृह करते हैं। (8) यात्री चैक

यात्री चैकों का प्रयोग यात्रियों द्वारा किया जाता है,

जो उन्हें प्रस्तुत करके चैक जारी करने वाले बैंक की किसी शाखा अथवा किसी अन्य संबंधित संस्था से रकम वसूल कर सकते है। इनको एक निश्चित अवधि तक ही प्रयोग किया जा सकता है, इसके बाद रकम केवल जारी करने वाले बैंक से ही प्राप्त की जा सकती है। चैक जारी करने वाला बैंक चैक पर उस व्यक्ति के हस्ताक्षर करा लेता है जिसे भुगतान लेना होता है। यह हस्ताक्षर भुगतान करने के पहले मिला लिए जाते है। इसलिए इनके खो जाने पर भी गलत व्यक्ति को भुगतान होने की संभावना नहीं रहती।

(9) क्रेडिट कार्ड

क्रेडिट कार्ड बैंक द्वारा जारी किया गया ऐसा कार्ड है जिसका प्रयोग करके कार्ड का धारक विभिन्न प्रकार की वस्तुओं तथा सेवाओं का एक निश्चित सीमा तक क्रय कर सकता है।

क्रेडिट कार्ड के आधार पर की गई बिक्री का भुगतान विक्रेताओं द्वारा बैंक से प्राप्त कर लिया जाता है। कार्ड का धारक इस राशि का भुगतान बैंक को करता है। यदि भुगतान करने में निर्धारित समय से विलंब होता है तो बैंक इस पर ब्याज प्राप्त करता है। अधिकांश क्रेडिट कार्ड धारक को यह सुविधा देते है कि वह बैंक की किसी शाखा से एक निश्चित सीमा तक नकदी प्राप्त कर सकता है। भारत में पिछले कुछ वर्षों से क्रेडिट कार्ड का अधिक प्रयोग किया जाने लगा है। यहाँ तक कि किसानों की सुविधा के लिए अलग से किसान क्रेडिट कार्ड भी जारी किए गए हैं। अनेक बैंकों द्वारा जारी किए गए एटीएम का प्रयोग डेबिट कार्ड के रूप में भी किया जा सकता है। यह क्रेडिट कार्ड से इस बात में भिन्न है कि इसका प्रयोग करने पर विक्रेता कार्ड धारक के बैंक खाते से रकम प्राप्त कर लेता है।

(10) ट्रेजरी बिल्स अथवा कोषागार विपत्र

जब सरकार को अल्पकाल के लिए ऋण की आवश्यकता होती है तो वह ट्रेजरी बिल्स जारी करती है, जिनकी अवधि प्रायः 3, 6, 9 अथवा 12 मास होती है। निश्चित अवधि के समाप्त होने पर इनका भुगतान सरकार से प्राप्त किया जाता है। इनके बेचने के लिए सरकार टेण्डर माँगती है और जिस टेण्डर में ब्याज व बट्टे की दर कम माँगी जाती है उसी को बिल बेच दिए जाते है। बट्टे की रकम ऋणदाता पहले से ही काट लेता है।

उपर्युक्त साख पत्रों के अतिरिक्त अनुग्रह बिल तथा मिश्रित पूँजी कंपनियों के ऋण पत्र तथा बॉण्ड आदि भी उल्लेखनीय हैं।


विनिमय विपत्र तथा प्रतिज्ञा पत्र में क्या भेद है?

विनिमय विपत्र एक शर्त रहित लिखित आदेश होता है, जिसमें उसको लिखने वाला किसी व्यक्ति विशेष को एक निश्चित अवधि में भुगतान की शर्तविहीन आज्ञा देता है जबकि प्रतिज्ञा - विपत्र एक लिखित हस्ताक्षर सहित बिना शर्त का प्रपत्र है जिसमें देनदार निश्चित तिथि पर प्रदत्त मूल्य का भुगतान करने की प्रतिज्ञा करता है।

प्रतिज्ञा पत्र का अर्थ क्या है?

प्रतिज्ञा-पत्र किसे कहते हैं? Solution : भारतीय पराक्रम्य विलेख अधिनियम 1881 के अनुसार प्रतिज्ञा-पत्र एक लिखित हस्ताक्षर सहित विपत्र है। (बैंक या करेंसी नोट नहीं) जिसको लिखने वाला बिना शर्त के एक निश्चित राशि किसी व्यक्ति को अथवा उसके आदेशानुसार किसी अन्य व्यक्ति को अथवा उस विपत्र के धारक को देने की प्रतिज्ञा करता है।

विनिमय पत्र से आप क्या समझते हैं?

विनिमय-पत्र -- “विनिमय-पत्र'' ऐसी लेखबद्ध लिखत है जिसमें एक निश्चित व्यक्ति को यह निदेश देने वाला उसके रचयिता द्वारा हस्ताक्षरित अशर्त आदेश, अन्तर्विष्ट हो कि वह एक निश्चित व्यक्ति को या उसके आदेशानुसार या उस लिखत के वाहक को ही धन की एक निश्चित राशि संदत्त करे ।

चेक और विनिमय बिल में क्या अंतर है?

विनिमय पत्र हमेशा या तो किसी एक व्यक्ति द्वारा या किसी एक फर्म द्वारा दिया जाता है जबकि एक चेक हमेशा एक बैंक के द्वारा दिया जाता है. यह जरुरी है कि विनिमय पत्र को इसके भुगतान से पूर्व ही स्वीकृत किया जाना चाहिए. जबकि चेक के सन्दर्भ में इस तरह का कोई भी प्रावधान नहीं होता है.