व्यष्टि अर्थशास्त्र के अंदर किसका अध्ययन किया जाता है? - vyashti arthashaastr ke andar kisaka adhyayan kiya jaata hai?

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यदि हम भारत में अर्थशास्त्र की बात करें तो अर्थशास्त्र को तीन भागों में विभाजित किया जाता है व्यष्टि अर्थशास्त्र समष्टि अर्थशास्त्र और भारतीय आर्थिक विकास के अंतर्गत मुद्रा का अध्ययन करते हैं मुद्रा के कैसे प्रश्न होता है किसने समुद्र का आकलन किया जाता है मुद्रास्फीति मुद्रास्फीति आदि का अध्ययन विषय के अंतर्गत किया जाता है

yadi hum bharat me arthashastra ki baat kare toh arthashastra ko teen bhaagon me vibhajit kiya jata hai vyashti arthashastra samasti arthashastra aur bharatiya aarthik vikas ke antargat mudra ka adhyayan karte hain mudra ke kaise prashna hota hai kisne samudra ka aakalan kiya jata hai mudrasfiti mudrasfiti aadi ka adhyayan vishay ke antargat kiya jata hai

इसे सुनेंरोकेंअर्थशास्त्र सामाजिक विज्ञान की वह शाखा है, जिसके अन्तर्गत वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन, वितरण, विनिमय और उपभोग का अध्ययन किया जाता है। ‘अर्थशास्त्र’ शब्द संस्कृत शब्दों अर्थ (धन) और शास्त्र की संधि से बना है, जिसका शाब्दिक अर्थ है – ‘धन का अध्ययन’।

अर्थशास्त्र के अध्ययन का क्या महत्व है?

इसे सुनेंरोकेंअर्थशास्त्र का अध्ययन हमें अपनी अर्थव्यवस्था की स्थिति के बारे में ज्ञान कराता है तथा संवृद्धि तथा विकास के ऊँचे स्तर को प्राप्त करने में मार्गदर्शन करता है। “Micro” शब्द का अर्थ अत्यंत सूक्ष्म होता है। अतः व्यष्टि अर्थशास्त्र अत्यंत सूक्ष्म स्तर पर अर्थशास्त्र के अध्ययन का अर्थ प्रकट करता है।

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1 व्यष्टि अर्थशास्त्र के अंतर्गत निम्न में से किसका अध्ययन किया जाता है?

इसे सुनेंरोकेंव्यष्टि अर्थशास्त्र यानी सूक्ष्मअर्थशास्त्र अर्थशास्त्र की एक शाखा है जो यह अध्ययन करता है कि किस प्रकार अर्थव्यवस्था के व्यक्तिगत अवयव, परिवार एवं फर्म, विशिष्ट रूप से उन बाजारों में सीमित संसाधनों के आवंटन का निर्णय करते हैं, जहां वस्तुएं एवं सेवाएं खरीदी एवं बेचीं जाती हैं।

प्रश्न : 8 व्यष्टि अर्थशास्त्र को परिभाषित करते हुए उसकी विशेषताएँ, प्रकार, क्षेत्र, महत्व व प्रयोग, दोष एवं सीमाओं का वर्णन कीजिए।

उत्तर - व्यष्टि अर्थशास्त्र का अर्थ :

‘माइक्रो' शब्द ग्रीक भाषा के ‘मिक्रोस' शब्द से बना है जिसका अर्थ छोटा होता है। इस प्रकार माइक्रो छोटी इकाइयों से सम्बन्धित है। व्यष्टिगत अर्थशास्त्र में किसी अर्थ-व्यवस्था की भिन्न-भिन्न छोटी-छोटी इकाइयों की आर्थिक क्रियाओं का विश्लेषण किया जाता है। दूसरे शब्दों में, व्यष्टिगत अर्थशास्त्र के अन्तर्गत विशेष व्यक्तियों, परिवार, फर्मों, उद्योगों, विशेष श्रमिक आदि का विश्लेषण किया जाता है। उदाहरण के लिए, एक उपभोक्ता अपनी आय तथा व्यय में किस प्रकार सन्तुलन स्थापित करता है। एक उत्पादक अपनी फैक्ट्री में उत्पादन का प्रबन्ध किसे प्रकार करता है, किसी एक वस्तु, जैसे-गेहूँ या घी की कीमत किस प्रकार निर्धारित होती है आदि। ऐसी अनेक आर्थिक समस्याएं हैं जिनका अध्ययन व्यष्टिगत अर्थशास्त्र में किया जाता है। इसमें उदाहरणार्थ निम्न प्रकार के प्रश्नों का अध्ययन किया जाता है-एक उपभोक्ता दी हुई कीमतों एवं दी हुई आमदनी से किस प्रकार अधिकतम सन्तोष प्राप्त करता है ? एक फर्म दी हुई कीमत पर कितना उत्पादन करेगी ? एक उद्योग में वस्तु की कीमत कैसे निर्धारित होगी? उत्पादन के साधनों के पारितोषण का निर्धारण कैसे होगा? विभिन्न उद्योगों में उत्पादन के साधनों का आबंटन किस प्रकार होगा ?

परिभाषाएं :

व्यष्टिगत अर्थशास्त्र की कुछ प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं

(1) प्रो. बोल्डिग ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक 'आर्थिक विश्लेषणं' में लिखा है कि “व्यष्टिगत अर्थशास्त्र के अन्तर्गत विशेष फर्मों, विशेष परिवारों, वैयक्तिक कीमतों, मजदूरियों, आयों आदि वस्तुओं का अध्ययन किया जाता है। एक अन्य पुस्तक में प्रो. बोल्डिग ने लिखा है कि “व्यष्टिगत अर्थशास्त्र विशिष्ट आर्थिक घटकों एवं उनकी पारस्परिक प्रतिक्रिया और इसमें विशिष्ट आर्थिक मात्राओं तथा उनका निर्धारण भी सम्मिलित है, का अध्ययन है।”

(2) हैण्डर्सन क्वाण्ट के शब्दों में, “व्यष्टिगत अर्थशास्त्र व्यक्तियों के सुपरिभाषित समूहों के आर्थिक कार्यों का अध्ययन है।”

(3) प्रो. मेहता ने व्यष्ट्रिगत अर्थशास्त्र को कूसो की अर्थव्यवस्था की संज्ञा दी है क्योंकि सम्बन्ध मुख्य रूप से वैयक्तिक इकाइयों से रहता है।

(4) गार्डनर एकले की मान्यता के अनुसार, “व्यष्टिगत अर्थशास्त्र उद्योगों, उत्पादनों एवं फर्मों में कुछ उत्पादन के विभाजन तथा प्रतिस्पर्धी उपभोग के लिए साधनों के वितरण का अध्ययन करता है। यह आय वितरण समस्या का अध्ययन करता है। विशेष वस्तुओं और सेवाओं के सापेक्षिक मूल्यों में इनकी रुचि रहती है।”

(5) प्रो. चेम्बरलेन के शब्दों में, “व्यष्टिगत अर्थशास्त्र पूर्णतया व्यक्तिगत व्याख्या पर आधारित है तथा इसका सम्बन्ध अन्तर्वैयक्तिक सम्बन्धों से भी होता है।”

इन परिभाषाओं से स्पष्ट है कि व्यष्टिगत अर्थशास्त्र का सम्बन्ध किसी एक इकाई से होता है, सभी इकाइयों से नहीं । व्यष्टिगत अर्थशास्त्र में भी यद्यपि योगों का अध्ययन किया जाता है किन्तु ये योग सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था से सम्बन्धित नहीं होते। संक्षेप में, जैसा विलियम फैलनर ने कहा है कि “व्यष्टिगत अर्थशास्त्र का सम्बन्ध व्यक्तिगत निर्णय निर्माता इकाइयों से हैं।“

संक्षेप में कहा जा सकता है कि व्यष्टिगत अर्थशास्त्र आर्थिक विश्लेषण की वह शाखा है जो विशिष्ट आर्थिक इकाइयों तथा अर्थव्यवस्था के छोटे भागों, उनके व्यवहार तथा उनके पारस्परिक सम्बन्धों का अध्ययन करती है। व्यष्टिगत आर्थिक इकाइयों और अर्थव्यवस्था के छोटे अंगों को ‘सूक्ष्म चरों' या ‘सूक्ष्म मात्राएं' भी कहते हैं। अतः व्यष्टिगत अर्थशास्त्र सूक्ष्म मात्राओं व सूक्ष्म चरों के व्यवहार का अध्ययन करता हैं ।

व्यष्टिगत अर्थशास्त्र को ‘कीमत सिद्धान्त' भी कहा जाता है । 18वीं-19वीं शताब्दी में इसको मूल्य का सिद्धान्त कहा जाता था । व्यष्टिगत अर्थशास्त्र को कभी-कभी ‘सामान्य सन्तुलन विश्लेषण' भी कहा जाता है । कुछ अर्थशास्त्री व्यष्टिगत अर्थशास्त्र को ‘कीमत तथा उत्पादन का सिद्धान्त' भी कहते हैं । व्यष्टिगत अर्थशास्त्र अर्थव्यवस्था को बहुत छोटे टुकड़ों या भागों में बाँटकर अध्ययन करता है, इसलिए व्यष्टिगत अर्थशास्त्र को कभी-कभी ‘फॉके या कतले करने की रीति, स्लाइसिंग की रीति' भी कहा जाता है ।

व्यष्टिगत अर्थशास्त्र की विशेषताएं

व्यष्टिगत अर्थशास्त्र की कुछ प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं

(1) व्यक्तिगत इकाइयों का अध्ययन- व्यष्टिगत अर्थशास्त्र व्यक्तिगत आय, व्यक्तिगत उत्पादन और व्यक्तिगत उपभोग की व्याख्या में सहायता करता है। इसका सम्बन्ध समूहों या व्यापारिक स्थितियों से नहीं है ।

(2) सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था पर प्रभाव का अभाव- व्यष्टिगत अर्थशास्त्र में एक इकाई का रूप इतना छोटा होता है कि इसके द्वारा किये गये परिवर्तन का सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था पर कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ता।

(3) सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था को स्थिर मान लेना- व्यष्टिगत अर्थशास्त्र में किसी एक इकाई के आर्थिक व्यवहार की जांच और विश्लेषण करते समय देश की सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था से सम्बन्धित बातों, जैसे-राष्ट्रीय आय, कीमतों का स्तर, देश का कुल पूँजी विनियोग, कुल बचत तथा सरकार की आर्थिक नीति आदि को स्थिर मान लिया जाता है।

(4) कीमत सिद्धान्त- कुछ अर्थशास्त्री इसे कीमत सिद्धान्त का नाम देकर बताते हैं कि इसके अन्तर्गत माँग एवं पूर्ति द्वारा विभिन्न वस्तुओं के व्यक्तिगत मूल्य निर्धारित किये जाते हैं ।

व्यष्टिगत अर्थशास्त्र के प्रकार

व्यष्टिगत अर्थशास्त्र को निम्नलिखित तीन वर्गों में विभाजित किया जा सकता है -

(1) व्यष्टिगत स्थैतिक- व्यष्टिगत स्थैतिक यह मानते हुए कि समय विशेष में साम्य की स्थिति रहती है, एक दिये हुए समय पर व्यष्टिगत चरों के सम्बन्धों का साम्य की स्थिति में अध्ययन करता है। उदाहरण के लिए, किसी वस्तु की कीमत एक बाजार में उस वस्तु की माँग और पूर्ति के साम्य द्वारा निर्धारित होती है। व्यष्टिगत स्थैतिक दिये हुए समय पर इस वस्तु की साम्य या सन्तुलन कीमत का अंध्ययन करेगी और पूर्ति की शक्तियों को स्थिर मान लेगी । संक्षेप में, व्यष्टिगत स्थैतिक केवल विशिष्ट चरों के सम्बन्ध के 'स्थिर या शान्त चित्रों का अध्ययन करती है। यह रीति आंशिक साम्य विश्लेषण से सम्बन्धित होती है।

(2) तुलनात्मक व्यष्टिगत स्थैतिक- तुलनात्मक व्यष्ट्रिगत स्थैतिक व्यष्टिगत चरों के सम्बन्धों की साम्य स्थितियों की तुलना करती है। विश्लेषण की यह विधि सन्तुलन की दो स्थितियों का तुलनात्मक अध्ययन करती है परन्तु इस तथ्य पर प्रकाश नहीं डालती कि व्यष्टिगत सन्तुलन की एक स्थिति से दूसरी स्थिति तक किस प्रकार पहुँचा गया है।

(3) व्यष्टिगत प्रावैगिक- व्यष्टिगत प्रावैगिक विश्लेषण उस समायोजन की प्रक्रिया का अध्ययन केरती है जिसके द्वारा विशिष्ट चरों के सम्बन्धों की एक सन्तुलन स्थिति से दूसरी सन्तुलन् की स्थिति तक पहुँचा जाता है । उदाहरण के लिए, एक बाजार में एक वस्तु की कीमत "माँग और पूर्ति के सन्तुलन का परिणाम है। यदि माँग में वृद्धि हो जाती है तो उस वस्तु के बाजार में असन्तुलन उत्पन्न हो जायेगा और असन्तुलनों की एक श्रृंखला द्वारा उस वस्तु के बाजार में कीमत की अन्तिम सन्तुलन स्थिति में पहुँचा जायेगा। व्यष्टिगत प्रावैगिक समायोजन की इसी प्रक्रिया का अध्ययन करता है अर्थात् अन्तिम सन्तुलन की स्थिति तक पहुँचने के लिए असन्तुलनों की श्रृंखलाओं का अध्ययन करता है।

व्यष्टिगत अर्थशास्त्र का क्षेत्र :

ऐक्ले के शब्दों में, “कीमत और मूल्य सिद्धान्त, परिवार, फर्म एवं उद्योग का सिद्धान्त, अधिकतम उत्पादन और कल्याण सिद्धान्त व्यष्टिगत अर्थशास्त्र के क्षेत्र हैं।”

व्यष्टिगत अर्थशास्त्र के अन्तर्गत निम्नलिखित बातों का अध्ययन किया जाता है -

(I) वस्तुओं का कीमत-निर्धारण- इसके अन्तर्गत मुख्य रूप से निम्नलिखित दो बातों का अध्ययन किया जाता है

(अ) उपभोक्ता के सन्तुलन निर्धारण की समस्या- उपभोक्ता सन्तुलन की स्थिति में वहाँ । होगा जहाँ वह अपने सीमित साधनों को विभिन्न आवश्यकताओं के बीच इस प्रकार बाँटे जिससे उसे मिलने वाली सन्तुष्टि अधिकतम हो (मार्शल) या वह उच्चतम तटस्थता वक्र पर हो (हिक्स)। न केवल उपभोक्ता के सन्दर्भ में सीमित साधनों के अनुकूलतम आबंटन का अध्ययन व्यष्टिगत अर्थशास्त्र के अन्तर्गत किया जाता है बल्कि इसी का अध्ययन उत्पादन के सन्दर्भ में किया जाता हैं ।

(ब) वस्तुओं की कीमत-निर्धारण- इसके अन्तर्गत यह अध्ययन करते हैं कि विभिन्न वस्तुओं, जैसे-चावल, चाय, दूध, घी, पंखे, स्कूटर हजारों अन्य वस्तुओं की सापेक्ष कीमतें किस प्रकार निर्धारित होती हैं ।

(II) साधन का कीमत-निर्धारण या वितरण का सिद्धान्त- इसके अन्तर्गत यह अध्ययन किया जाता है कि लगान (भूमि की उपयोगिता की कीमत), ब्याज (पूँजी के उपयोग की कीमत), लाभ (साहसी का पारितोषण) का निर्धारण किस प्रकार होता है।

चूँकि व्यष्टिगत अर्थशास्त्र में यह अध्ययन किया जाता है कि किसी वस्तु या सेवा, की कीमत किस प्रकार निर्धारित की जाती है, इसलिए इसे कीमत सिद्धान्त भी कहते हैं।

(III) साधनों के आबंटन की कुशलता- व्यष्टिगत अर्थशास्त्र यह भी अध्ययन करता है कि अर्थव्यवस्था में कितनी कुशलता के साथ विभिन्न साधनों का व्यक्तिगत उपभोक्ताओं और उत्पादकों के मध्य विभाजन होता है। साधनों के आबंटन में कुशलता को तब प्राप्त किया जाता है जबकि विभिन्न साधनों का आबंटन इस प्रकार से किया जाये कि व्यक्तियों को अधिकतम सन्तुष्टि प्राप्त हो। इस आर्थिक कुशलता में तीन कुशलताएं सम्मिलित होती हैं-उपभोग में कुशलता, उत्पादन में कुशलता और उपभोग और उत्पादन में परिपूर्ण कुशलता। उपभोग और उत्पादन कुशलताओं का सम्बन्ध व्यक्तिगत कल्याण से होता है तथा परिपूर्ण कुशलता का सम्बन्ध सामाजिक कल्याण से है। व्यष्टिगत अर्थशास्त्र से यह पता चलता है कि इन कुशलताओं को किन दशाओं में प्राप्त किया जा सकता है। इन कुशलताओं के प्राप्त न होने पर व्यक्तियों को प्राप्त होने वाली सन्तुष्टियों में किस प्रकार कमी हो जाती है । उत्पादन में कुशलता का तात्पर्य यह है कि निश्चित साधनों से विभिन्न वस्तुओं की अधिकतम मात्रा का उत्पादन किया जाये। एक व्यक्तिगत उत्पादक, उत्पादन में कुशलता तब प्राप्त करता है जब विभिन्न वस्तुओं और सेवाओं में पुनराबंटन करके, बिना किसी वस्तु के उत्पादन में कमी किये किसी अन्य वस्तु के उत्पादन में और वृद्धि करना सम्भव नहीं होता । इसी प्रकार उपभोग में कुशलता से तात्पर्य है कि समाज में उपभोक्ताओं में वस्तुओं और सेवाओं का वितरण इस प्रकार से किया जाये कि समाज की कुल सन्तुष्टि अधिकतम हो । परिपूर्ण कुशलता जो सामाजिक कल्याण पैरोटी अनुकूलतम भी कहलाती है, समाज की आर्थिक कुशलता के परिपूर्ण सुधार से सम्बन्धित होती है। एक बार इस स्थिति को प्राप्त कर लेने के बाद यदि साधनों का पुनर्विभाजन किया जाये और कुछ वस्तुएं कम व अधिक उत्पादित की जाये तो इससे सन्तुष्टि या कुशलता में गिरावट आ जायेगी।

वस्तुतः आर्थिक कुशलता की समस्या सैद्धान्तिक कल्याणवादी अर्थशास्त्र की विषय-सामग्री है जो व्यष्टिगत अर्थशास्त्र की एक महत्वपूर्ण शाखा है। प्रो. लर्नर ने उपयुक्त ही लिखा है, “व्यष्टिगत अर्थशास्त्र कुशलताओं की दशाओं को बताता है और उनको प्राप्त करने के सम्बन्ध में सुझाव देता है।”

व्यष्टिगत अर्थशास्त्र का महत्व और प्रयोग

अर्थशास्त्र में व्यष्टिगत अर्थशास्त्र का सैद्धान्तिक और व्यावहारिक दोनों ही महत्व है। जैसा कि निम्नलिखित विवरण से स्पष्ट है -

(1) अर्थव्यवस्था की कार्य-प्रणाली को समझना- प्रो. वाटसन के शब्दों में, “व्यष्टिगत अर्थशास्त्र के विभिन्न उपयोग हैं। इनमें सबसे महत्वपूर्ण तो यह है कि इसमें हम स्वतन्त्र निजी उद्यम अर्थशास्त्र के कार्य-चालन को भली प्रकार से समझ सकते हैं।”

चूंकि व्यक्तिगत आर्थिक इकाइयाँ ही परस्पर मिलकर एक अर्थव्यवस्था का निर्माण करती हैं और उन इकाइयों के आर्थिक व्यवहार का सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था पर काफी प्रभाव. भी पड़ता है; इसलिए सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था को समझने के लिए यह आवश्यक हो जाता है कि विभिन्न आर्थिक इकाइयों का व्यक्तिगत रूप से विश्लेषण किया जाये।

(2) आर्थिक नीतियों का सुझाव- व्यष्टिगत आर्थिक सिद्धान्त केवल अर्थव्यवस्था के वास्तविक कार्य-चालन का ही वर्णन नहीं करता बल्कि इसका कार्य आदर्शवादी भी है क्योंकि यह उन नीतियों का भी सुझाव देता है जिससे व्यक्तियों के कल्याण या सन्तुष्टि को अधिकतम करने के लिए आर्थिक व्यवस्था में अकार्यकुशलता को दूर किया जा सके।

यह राज्य की आर्थिक नीतियों का मूल्यांकन करने के लिए विश्लेषणात्मक उपकरण भी प्रदान करता है। कीमत या मूल्य प्रणाली एक उपकरण है जो कार्य में सहायता देता है।

(3) आर्थिक कल्याण- व्यष्टि अर्थशास्त्र द्वारा आर्थिक कल्याण की दशाओं का ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है । यह आदर्शात्मक अर्थशास्त्र का मुख्य विषय है। व्यष्टि अर्थशास्त्र इस बात का सुझाव देता है कि आर्थिक कल्याण के आदर्श को कैसे प्राप्त किया जा सकता है।

(4) प्रबन्ध सम्बन्धी निर्णय- व्यावसायिक फर्मे व्यष्टि अर्थशास्त्र का प्रयोग प्रबन्ध सम्बन्धी निर्णय लेने के लिए करती हैं। इस सम्बन्ध में लागतों तथा माँग के विश्लेषण द्वारा बनायी गयी नीतियों का बहुत महत्व है।

(5) अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में सहयोग- व्यष्टिगत अर्थशास्त्र के द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार की समस्याओं, जैसे-व्यापार-शेष असन्तुलन, विदेशी विनिमय दर आदि को समझा जा सकता ।

(6) राजस्व में उद्योग- व्यष्टिगत आर्थिक विश्लेषण की सहायता से ही उन घटकों का विश्लेषण किया जाता है तो उत्पादकों तथा विक्रेताओं या क्रेताओं के मध्य किसी वस्तु पर लगे कर के भार के वितरण को बताते हैं। व्यष्टिगत अर्थशास्त्र को एक कर के कल्याणकारी परिणामों की व्याख्या करने में उपयोग किया जाता है । यह कर साधनों को अपने अनुकूलतम स्तर से पुनर्विभाजन की ओर ले जाता है । व्यष्टिगत अर्थशास्त्र यह समझाने में सहायता करता है कि सामाजिक कल्याण की दृष्टि से एक आय कर अच्छा है या बिक्री कर। आय कर की तुलना में बिक्री कर सामाजिक कल्याण में कमी लाता है ।

(7) वास्तविक आर्थिक घटनाओं के लिए मॉडलों का निर्माण एवं प्रयोग- व्यष्टिगत अर्थशास्त्र वास्तविक आर्थिक घटनाओं को समझने के लिए मॉडलों का निर्माण करता है और उनका प्रयोग कराता है। प्रो. लर्नर के शब्दों में, “व्यष्टिगत अर्थशास्त्र यह समझने की सुविधा देता है कि बुरी तरह से जटिल अस्त-व्यस्त असंख्य तथ्यों के लिए व्यवहार के मॉडल बनकर जो काफी हद तक वास्तविक घटनाओं के समान होते हैं, उनके समझने में सहायक होगा।”

(8) व्यक्तिगत इकाइयों के आर्थिक निर्णय में सहायक- व्यष्टिगत अर्थशास्त्र व्यक्तियों, परिवारों, फर्मों आदि को अपने-अपने आर्थिक व्यवहार के सम्बन्ध में उचित निर्णय लेने की क्षमता उपलब्ध कराता है, जैसे-प्रत्येक उपभोक्ता सीमित साधनों से अधिकतम सन्तुष्टि प्राप्त करना चाहता है। आज तो प्रत्येक फर्म माँग विश्लेषण तथा रेखीय प्रोग्रामिंग का उपयोग करके अधिकतम लाभ प्राप्त करने का प्रयत्न करती है । इन सब बातों का अध्ययन सूक्ष्म अर्थशास्त्र में ही सम्भव

(9) अन्य उपयोग व महत्व-

(अ) व्यष्टिगते अर्थशास्त्र व्यापार के प्रबन्धकों को वर्तमान साधनों से अधिकतम उत्पादन प्राप्त करने में सहायक होता है । वह इसी की सहायता से उपभोक्ता की माँग को जानने और अपनी वस्तु की लागतों का आगणन करने में समर्थ होता है।

(ब) व्यष्टिगतं अर्थशास्त्र का उपयोग साधनों के अनुकूलतम उपयोग और स्थिरता के साथ विकास प्राप्त करने के लिए किया जाता है ।

(स) यह व्यक्तिगत आय, व्यय, बचत आदि के स्रोतों और स्वभाव पर प्रकाश डालता है जो सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था के विश्लेषण में भी सहायक होता है ।

(द) व्यष्टिगत अर्थशास्त्र हमें सप्रतिबन्ध भविष्यवाणियों में सहायता देता है ।

व्यष्टिगत अर्थशास्त्र के दोष एवं सीमाएं :

व्यष्टिगत अर्थशास्त्र का प्रयोग प्राचीन काल से ही होता आया है और इसे आर्थिक समस्याओं के अध्ययन के लिए एक महत्वपूर्ण शाखा के रूप में स्वीकार किया जाता रहा है। किन्तु इसके निम्नलिखित दोष या सीमाएं हैं -

(1) अर्थव्यवस्था का अधूरा चित्र- व्यष्टिगत अर्थशास्त्र में केवल व्यक्तिगत इकाइयों का ही अध्ययन किया जाता है । इसमें सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था को स्थान नहीं दिया जाता है । फलतः देश व विश्व की अर्थव्यवस्था का सही-सही चित्र नहीं मिल पाता। अन्य शब्दों में, व्यष्टिगत अर्थशास्त्र समष्टिगत दृष्टिकोण न अपनाकर संकुचित दृष्टिकोण अपनाता है।

(2) अवास्तविक मान्यताओं पर आधारित- व्यष्टिगत आर्थिक विश्लेषण कुछ ऐसी अवास्तविक मान्यताओं पर आधारित है जो वास्तविक जीवन में कदापि देखने में नहीं आतीं, जैसे-पूर्ण रोजगार, पूर्ण प्रतियोगिता इत्यादि।

(3) कुछ विशेष प्रकार की समस्याओं के लिए अनुपयुक्त- कुछ आर्थिक समस्याओं का अध्ययन व्यष्टिगत अर्थशास्त्र के अन्तर्गत नहीं किया जा सकता है, जैसे-रोजगार, प्रशुल्क नीति, आय व साधन का वितरण, मौद्रिक नीति, औद्योगीकरण, आयात-निर्यात तथा आर्थिक नियोजन से सम्बन्धित समस्याएं। इस प्रकार धीरे-धीरे व्यष्टिगत अर्थशास्त्र, वर्तमान आर्थिक समस्याओं के अध्ययन के लिए अनुपयुक्त सिद्ध होता जा रहा है।

(4) निष्कर्ष सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था की दृष्टि से ठीक नहीं होते- व्यष्टिगत अर्थशास्त्र के अध्ययन पर आधारित निष्कर्ष एवं निर्णय किसी व्यक्ति विशेष, फर्म के लिए तो ठीक हो सकते हैं लेकिन यह अनिवार्य नहीं है कि ये समस्त अर्थव्यवस्था के लिए भी सही हों । उदाहरण के लिए, व्यक्तिगत दृष्टि से बचत करना आवश्यक, उचित व वांछनीय है परंतु राष्ट्रीय दृष्टि से सामूहिक रूप से बचत अनुचित है।

व्यष्टि अर्थशास्त्र किसका अध्ययन करता है?

व्यष्टि अर्थशास्त्र : व्यष्टि अर्थशास्त्र आर्थिक क्रिया की एक इकाई अथवा अर्थव्यवस्था की एक इकाई के भाग या एक से अधिक इकाई के छोटे समूह का अध्ययन है | ग्रीक शब्द 'माइक्रोस' से लिए गए शब्द 'माइक्रोस' का अर्थ है छोटा - यह व्यक्तिगत आर्थिक ऐजेंट के व्यवहार से संबंधित है तथा वस्तुओं और सेवाओं की कीमत निर्धारण की क्रियाओं का ...

व्यष्टि अर्थशास्त्र के अध्ययन का क्या महत्व है?

अर्थव्यवस्था को समझने में सहायक- व्यष्टि अर्थशास्त्र में व्यक्तिगत इकाइयों का अध्ययन किया जाता है । संपूर्ण अर्थव्यवस्था को समझने के लिए आवश्यक है। 2. व्यक्तिगत निर्णय लेने में सहायक - व्यष्टि अर्थशास्त्र व्यक्तिगत उपभोक्ताओं तथा उत्पादकों को अपने-अपने क्षेत्र में निर्णय लेने में सहायक होता है।

व्यष्टि अर्थशास्त्र का जनक कौन है?

एडम स्मिथ (अर्थशास्त्र के जनक)