व्यवस्थापिका की शक्तियों एवं कार्यों की व्याख्या कीजिए । - vyavasthaapika kee shaktiyon evan kaaryon kee vyaakhya keejie .

कार्यकारिणी (अंग्रेज़ी: Executive) सरकार का वह अंग होती हैं जो राज्य के क़ानून को कार्यान्वित करती हैं और उसे लागू करती हैं।

अध्यक्षीय प्रणाली में, कार्यकारिणी का प्रमुख दोनों, राज्य का प्रमुख और सरकार का प्रमुख होता हैं। संसदीय प्रणाली में, प्रधानमंत्री जो विधायिका के प्रति उत्तरदायी होता हैं, वह सरकार का प्रमुख माना जाता है, जबकि राज्य का प्रमुख आम तौर पर एक औपचारिक राजा अथवा राष्ट्रपति होता हैं। कार्यपालिका सरकार का एक महत्वपूर्ण अंग होती है।

संघीय कार्यपालिका में राष्‍ट्रप‍ति, उप राष्‍ट्रपति, प्रधानमंत्री एवं मंत्रिपरिषद शामिल हैं। इनके साथ सरकारी कर्मचारियों एवं अधिकारियों को शामिल करते है जिन्हें स्थायी कार्यपालिका के नाम से सम्बोधित किया जाता है तथा मंत्रिपरिषद को अस्थायी कार्यपालिका के नाम से जाना जाता है। अस्थायी कार्यपालिका की शक्तिया आधिक होतीं है जबकि स्थायी कार्यपालिका की शक्तियां कम होतीं है

राष्‍ट्रपति का चुनाव निर्वाचित सदस्‍यों द्वारा किया जाता है जिसमें संसद के दोनों सदनों के चयनित सदस्‍य तथा समानुपातिक प्रतिनिधित्‍व प्रणाली के अनुसार राज्‍यों में विधान सभा के सदस्‍यों के द्वारा एकल अंतरणीय मत के द्वारा होता है। राज्‍यों के बीच परस्‍पर एकरूपता लाने के लिए तथा सम्‍पूर्ण रूप से राज्‍यों और केंद्र के बीच संगतता लाने के लिए प्रत्‍येक मत को उचित महत्‍व दिया जाता है। राष्‍ट्रपति को भारत का नागरिक होना आवश्‍यक है, उनकी आयु 35 वर्ष से कम न हो और वह लोक सभा के सदस्‍य के रूप में चुने जाने के योग्‍य हो। उनके कार्य की अवधि पांच वर्ष की होती है और वह पुनर्निवाचन के लिए पात्र होता है। उन्‍हें पद से हटाने की प्रक्रिया संविधान की धारा 61 में निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार होती है। वह अपने हाथ से उप-राष्‍ट्रपति को अपने पद से इस्‍तीफा देने के लिए संबोधन करते हुए पत्र लिख सकते हैं।

केंद्र की कार्यपालिका शक्ति राष्‍ट्रपति को प्राप्‍त है और उसके द्वारा प्रत्‍यक्ष रूप से या उसके अधीन अधिकारियों के जरिए संविधान के अनुसार अधिकार का प्रयोग किया। संघ के रक्ष बलों का सर्वोच्‍च शासन भी उसी का होता है। राष्‍ट्रपति सत्रावसान का आहवान करता, संबोधित करता है, संसद को संदेश भेजता और लोकसभा भंग करता है, किसी भी समय अध्‍यादेश जारी करता जैसे समय को छोड़कर जब संसद के दोनों सदनों में सत्र चल रहा हो, वित्‍तीय और धन विधेयक लाने की सिफारिश करने, प्राणदंड स्‍थगित करने, सजा को कम करने या क्षमा करने या निलम्बित करने एवं कुछ मामलों में सजाओं को माफ करने या रूपातंरण का कार्य करता है। जब राज्‍य में संवैधानिक मशीनरी विफल हो जाती है वह राज्‍य सरकार के सभी या कुछ कार्यों को अपने ऊपर ले लेता है। यदि उसे लगता है कि गंभीर आपातकाल की स्थिति उत्‍पन्‍न हुई है तो वह देश में आपातकाल की घोषणा कर सकता है जिसके द्वारा भारत या इसके किसी किसी क्षेत्र की सुरक्षा को खतरा होता है यह या तो युद्ध के द्वारा या बाह्य आक्रमण या हथियारबंद विद्रोह के द्वारा होता है।

उप राष्‍ट्रपति का चुनाव निर्वाचिका के सदस्‍यों द्वारा होता है जिसमें एकल हस्‍तांतरीय मत द्वारा समानुपातिक प्रतिनिधित्‍व प्रणाली के अनुसार संसद के दोनों सदनों के सदस्‍य होते हैं। वह भारत का नागरिक हो उसकी आयु 35 वर्ष से कम न हो और राज्‍य सभा के सदस्‍य के रूप में चुनाव के लिए पात्रता रखता हो। उसके पद की अवधि पांच वर्ष की होती है और वह पुननिर्वाचन का पात्र होता है। अनुच्‍छेद 67 ख में निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार इसे पद से हटाया जाता है।

उप राष्‍ट्रपति राज्‍य सभा का पदेन सभापति होता है और जब बीमारी या किसी अन्‍य कारण से या नए राष्‍ट्रपति के चुनाव होने तक यह छह माह के भीतर किया जाता है यदि यह रिक्ति मृत्‍यु के कारण होती है, राष्‍ट्रपति के इस्‍तीफा देने या अन्‍यथा पद से हटाए जाने के कारण होती है। राष्‍ट्रपति के अनुपस्थित रहने के कारण अपने कार्यों का निष्‍पादन करने में असमर्थ होता है तब राष्‍ट्रपति के रूप में कार्य करता है।

राष्‍ट्रपति को उनके कार्यों में सहायता करने और सलाह देने के लिए प्रधानमंत्री के नेतृत्‍व में मंत्री परिषद होती है। प्रधानमंत्री की नियुक्ति राष्‍ट्रपति द्वारा की जाती है जिसकी सलाह पर अन्‍य मंत्रियों की भी नियुक्ति राष्ट्रपति करता है। मंत्री परिषद लोक सभा के प्रति उत्‍तरदयी होती है। संघ के प्रशासन या कार्य और उनसे संबंधित विधानों और सूचनाओं के प्रस्‍तावों से संबंधित मंत्रिपरिषद के सभी निर्णयों की सूचना राष्‍ट्रपति को देना प्रधानमंत्री का कर्तव्‍य हैं।

मंत्रिपरिषद में मंत्री, राज्‍य मंत्री (स्‍वतंत्र प्रभार), राज्‍य मंत्री और उप मंत्री होते हैं मूल संविधान के अनुच्छेद 74 मे उपबंधित है।

भारत सरकार, जो आधिकारिक तौर से संघीय सरकार व आमतौर से केन्द्रीय सरकार के नाम से जाना जाता है, 28 राज्यों तथा 8 केन्द्र शासित प्रदेशों के संघीय इकाई जो संयुक्त रूप से भारतीय गणराज्य कहलाता है, की नियंत्रक प्राधिकारी है। भारतीय संविधान द्वारा स्थापित भारत सरकार नई दिल्ली, दिल्ली से कार्य करती है।

भारत के नागरिकों से संबंधित बुनियादी दीवानी और फौजदारी कानून जैसे नागरिक प्रक्रिया संहिता, भारतीय दंड संहिता, अपराध प्रक्रिया संहिता, आदि मुख्यतः संसद द्वारा बनाया जाता है। संघ और हरेक राज्य सरकार तीन अंगो कार्यपालिका, विधायिका व न्यायपालिका के अन्तर्गत काम करती है। संघीय और राज्य सरकारों पर लागू कानूनी प्रणाली मुख्यतः अंग्रेजी साझा और वैधानिक कानून (English Common and Statutory Law) पर आधारित है। भारत कुछ अपवादों के साथ अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय के न्याय अधिकारिता को स्वीकार करता है। स्थानीय स्तर पर पंचायती राज प्रणाली द्वारा शासन का विकेन्द्रीकरण किया गया है।

भारत का संविधान भारत को एक सार्वभौमिक, समाजवादी गणराज्य की उपाधि देता है। भारत एक लोकतांत्रिक गणराज्य है, जिसका द्विसदनात्मक संसद वेस्टमिन्स्टर शैली के संसदीय प्रणाली द्वारा संचालित है। इसके शासन में तीन मुख्य अंग हैं: न्यायपालिका, कार्यपालिका और विधायिका।

राष्ट्रपति

भारत के राष्ट्रपति, जो कि राष्ट्र के प्रमुख हैं, की अधिकांशतः औपचारिक भूमिका है। उनके कार्यों में संविधान का अभिव्यक्तिकरण, प्रस्तावित कानूनों (विधेयक) पर अपनी सहमति देना और अध्यादेश जारी करना आदि हैं। वह भारतीय सेनाओं के मुख्य सेनापति भी हैं। राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति को एक अप्रत्यक्ष मतदान विधि द्वारा ५ वर्षों के लिये चुना जाता है। प्रधानमन्त्री कार्यपालिका का प्रमुख है और कार्यपालिका की सारी शक्तियां उसी के पास होती हैं। इसका चुनाव सांसदों के द्वारा प्रत्यक्ष विधि से संसद में बहुमत प्राप्त करने पर होता है। बहुमत बने रहने की स्थिति में प्रधानमंत्री का कार्यकाल ५ वर्षों का होता है। संविधान में किसी उप-प्रधानमंत्री का प्रावधान नहीं है पर समय-समय पर इसमें फेरबदल होता रहा है।

विधायिका

विधायिका संसद को कहते हैं जिसके दो सदन हैं - उच्चसदन राज्यसभा और निम्नसदन लोकसभा। राज्यसभा में २५० सदस्य होते हैं जबकि लोकसभा में ५५२। राज्यसभा के सदस्यों का चुनाव, अप्रत्यक्ष विधि से ६ वर्षों के लिये होता है, जबकि लोकसभा के सदस्यों का चुनाव प्रत्यक्ष विधि से, ५ वर्षों की अवधि के लिये। १८ वर्ष से अधिक आयु के सभी भारतीय नागरिक मतदान कर लोकसभा के सदस्यों का चुनाव कर सकते हैं।

कार्यपालिका

कार्यपालिका के तीन अंग हैं - राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और मंत्रिमंडल।[कृपया उद्धरण जोड़ें] मंत्रिमंडल का प्रमुख प्रधानमंत्री होता है। मंत्रिमंडल के प्रत्येक मंत्री को संसद का सदस्य होना अनिवार्य है।[कृपया उद्धरण जोड़ें] कार्यपालिका, व्यवस्थापिका से नीचे होता है[कृपया उद्धरण जोड़ें]

न्यायपालिका

भारत की स्वतंत्र न्यायपालिका का शीर्ष सर्वोच्च न्यायालय है, जिसका प्रमुख प्रधान न्यायाधीश होता है। सर्वोच्च न्यायालय को अपने नये मामलों तथा उच्च न्यायालयों के विवादों, दोनो को देखने का अधिकार है। भारत में 25 उच्च न्यायालय हैं, जिनके अधिकार और उत्तरदायित्व सर्वोच्च न्यायालय की अपेक्षा सीमित हैं। न्यायपालिका और विधायिका के परस्पर मतभेद या विवाद का सुलह राष्ट्रपति करता है।

संघ और राज्य

भारत की शासन व्यवस्था केन्द्रीय और राज्यीय दोनो सिद्धान्तों का मिश्रण है। लोकसभा, राज्यसभा सर्वोच्च न्यायालय की सर्वोच्चता, संघ लोक सेवा आयोग इत्यादि इसे एक संघीय ढांचे का रूप देते हैं[कृपया उद्धरण जोड़ें] तो राज्यों के मंत्रीमंडल, स्थानीय निकायों की स्वायत्ता इत्यादि जैसे तत्त्व इसे राज्यों से बनी शासन व्यवस्था की ओर ले जाते हैं।[कृपया उद्धरण जोड़ें] प्रत्येक राज्य का एक राज्यपाल होता है जो राष्ट्रपति द्वारा ५ वर्षों के लिए नियुक्त किये जाते हैं।

संघीय कार्यपालिका

संघीय कार्यपालिका में राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, मंत्रिपरिषद तथा महान्यायवादी आते है।[कृपया उद्धरण जोड़ें] रामजवाया कपूर बनाम पंजाब राज्य वाद में सुप्रीम कोर्ट ने कार्यपालिका शक्ति को निम्न प्रकार से परिभाषित किया है-

  • 1 विधायिका न्यायपालिका के कार्यॉ को पृथक करने के पश्चात सरकार का बचा कार्य ही कार्यपालिका है।
  • 2 कार्यपालिका मॅ देश का प्रशासन, विधियॉ का पालन सरकारी नीति का निर्धारण, विधेयकॉ की तैयारी करना, कानून व्यव्स्था बनाये रखना सामाजिक आर्थिक कल्याण को बढावा देना विदेश नीति निर्धारित करना आदि आता है।[कृपया उद्धरण जोड़ें]

राष्ट्रपति

राष्ट्रपति संघ का कार्यपालक अध्यक्ष है। संघ के सभी कार्यपालक कार्य उसी के नाम से किये जाते है। अनुच्छेद 53 के अनुसार संघ की कार्यपालक शक्ति राष्ट्रपति में निहित हैं इन शक्तियों/कार्यों का प्रयोग क्रियान्वन राष्ट्रपति संविधान के अनुरूप ही सीधे अथवा प्रधानमंत्री के माध्यम से करता है। वह सशस्त्र सेनाओं का सर्वोच्च सेनानायक भी होता है, सभी प्रकार के आपातकाल लगाने व हटाने वाला, युद्ध / शांति की घोषणा करने वाला होता है। वह देश का प्रथम नागरिक है तथा राज्य द्वारा जारी वरीयता क्रम में उसका सदैव प्रथम स्थान होता है। भारतीय राष्ट्रपति का भारतीय नागरिक होना आवश्यक है तथा उसकी आयु कम से कम ३५ वर्ष होनी चाहिए। राष्ट्रपति को महाभियोग द्वारा उसके पद से हटाया जा सकता है।

मंत्रिपरिषद

संसदीय लोकतंत्र के महत्वपूर्ण सिद्धांत 1. राज्य प्रमुख, सरकार प्रमुख न होकर मात्र संवैधानिक प्रमुख ही होता है।[कृपया उद्धरण जोड़ें]
2. वास्तविक कार्यपालिका शक्ति, मंत्रिपरिषद जो कि सामूहिक रूप से संसद के निचले सदन के सामने उत्तरदायी होगा, के पास होगी।
3. मंत्रीपरिषद के सदस्य संसद के सदस्यों से लिए जाएंगे।[कृपया उद्धरण जोड़ें]

परिषद का गठन

1. प्रधानमंत्री के पद पर आते ही यह परिषद गठित हो जाती है। यह आवश्यक नहीं है कि प्रधानमंत्री के साथ कुछ अन्य मंत्री भी शपथ लें। केवल प्रधानमंत्री भी मंत्रिपरिषद हो सकता है।

2 मंत्रिपरिषद की सदस्य संख्या पर मौलिक संविधान में कोई रोक नहीं थी किंतु 91 वे संशोधन के द्वारा मंत्रिपरिषद की संख्या
लोकसभा के सदस्य संख्या के 15% तक सीमित कर दी गयी वहीं राज्यों में भी मंत्रीपरिषद की
संख्या विधानसभा के 15% से अधिक नहीं होगी परंतु न्यूनतम 12 मंत्री होंगे।

मंत्रियों की श्रेणियाँ

संविधान मंत्रियों की श्रेणी निर्धारित नहीं करता यह निर्धारण अंग्रेजी प्रथा के आधार पर किया गया है
कुल तीड़्न प्रकार के मंत्री माने गये हैं

  • 1. कैबिनेट मंत्री—सर्वाधिक वरिष्ठ मंत्री है उनसे ही कैबिनेट का गठन होता है मंत्रालय मिलने पर वे उसके अध्यक्ष होते है उनकी सहायता हेतु राज्य मंत्री तथा उपमंत्री होते है उन्हें कैबिनेट बैठक में बैठने का अधिकार होता है अनु 352 उन्हें मान्यता देता है

कृप्या सभी कैबिनेट मंत्रालयों, राज्य मंत्रालय की सूची पृथक से जोड दे

  • 2. राज्य मंत्री द्वितीय स्तर के मंत्री होते है सामान्यत उन्हे मंत्रालय का स्वतंत्र प्रभार नहीं मिलता किंतु प्रधानमंत्री चाहे तो यह कर सकता है उन्हें कैबिनेट बैठक में आने का अधिकार नहीं होता।
  • 3. उपमंत्री कनिष्ठतम मंत्री है उनका पद सृजन कैबिनेट या राज्य मंत्री को सहायता देने हेतु किया जाता है वे मंत्रालय या विभाग का स्वतंत्र प्रभार भी नहीं लेते है।
  • 4. संसदीय सचिव सत्तारूढ दल के संसद सदस्य होते है इस पद पे नियुक्त होने के पश्चात वे मंत्री गण की संसद तथा इसकी समितियॉ में कार्य करने में सहायता देते है वे प्रधान मंत्री की इच्छा से पद ग्रहण करते है वे पद गोपनीयता की शपथ भी प्रधानमंत्री के द्वारा ग्रहण करते है वास्तव में वे मंत्री परिषद के सद्स्य नहीं होते है केवल मंत्री का दर्जा प्राप्त होता है।

मंत्रिमंडल

मंत्रि परिषद एक संयुक्त निकाय है जिसमॆं 1, 2, या 3 प्रकार के मंत्री होते है यह बहुत कम मिलता है चर्चा करता है या निर्णय लेता है वहीं मंत्रिमंडल में मात्र कैबिनेट प्रकार के मंत्री होते है यह समय समय पर मिलती है तथा समस्त महत्वपूर्ण निर्णय लेती है इस के द्वारा स्वीकृत निर्णय अपने आप परिषद द्वारा स्वीकृत निर्णय मान लिये जाते है यही देश का सर्वाधिक महत्वपूर्ण निर्णय लेने वाला निकाय है।

  • सम्मिलित उत्तरदायित्व अनु 75[3] के अनुसार मंत्रिपरिषद संसद के सामने सम्मिलित रूप से उत्तरदायी है इसका लक्ष्य मंत्रिपरिषद में संगति लाना है ताकि उसमे आंतरिक रूप से विवाद पैदा ना हो।
  • व्यक्तिगत उत्तरदायित्व अनु 75[2] के अनुसार मंत्री व्यक्तिगत रूप से राष्ट्रपति के सामने उत्तरदायी होते है[कृपया उद्धरण जोड़ें] किंतु यदि प्रधानमंत्री की सलाह ना हो तो राष्ट्रपति मंत्री को पद्च्युत नहीं कर सकता है।

भारत का महान्यायवादी

भारत का महान्यायवादी संसद के किसी भी सदन का सदस्य न रहते हुए भी संसद की कार्यवाही में भाग ले सकता है। वह भारत का नागरिक होना चाहिए। वह अपनी निजी वकालत कर सकता है, परन्तु वह भारत सरकार के खिलाफ कोई मुकदमा नहीं लड़ सकता है।

प्रधानमंत्री

अनु 74 स्पष्ट रूप से मंत्रिपरिषद की अध्यक्षता तथा संचालन हेतु प्रधानम्ंत्री की उपस्तिथि आवश्यक मानता है। उसकी मृत्यु या त्यागपत्र की दशा में समस्त मंत्रिपरिषद को पद छोडना पड़ता है। वह अकेले ही मंत्रिपरिषद का गठन करता है। राष्ट्रपति मंत्री गण की नियुक्ति उस की सलाह से ही करता है। मंत्री गण के विभाग का निर्धारण भी वही करता है, कैबिनेट के कार्य का निर्धारण भी वही करता है, देश के प्रशासन को निर्देश भी वही देता है, सभी नीतिगत निर्णय (विधायिका की मंजूरी से) वही लेता है, राष्ट्रपति तथा मंत्री परिषद के मध्य संपर्क सूत्र भी वही है, परिषद का प्रधान प्रवक्ता भी वही है, परिषद के नाम से लड़ी जाने वाली संसदीय बहसों का नेतृत्व करता है, संसद में परिषद के पक्ष में लड़ी जा रही किसी भी बहस में वह भाग ले सकता है, मन्त्री गण के मध्य समन्वय भी वही करता है तथा वह किसी भी मंत्रालय से कोई भी सूचना मंगवा सकता है। इन सब कारणों के चलते प्रधानमंत्री को देश का सबसे मह्त्वपूर्ण राजनैतिक व्यक्तित्व माना जाता है।

प्रधानमंत्री सरकार के प्रकार

प्रधानमंत्री सरकार संसदीय सरकार का ही प्रकार है[कृपया उद्धरण जोड़ें] जिसमे प्रधानमंत्री मन्त्री परिषद का नेतृत्व करता है वह कैबिनेट की निर्णय लेने की क्षमता को प्रभावित करता है वह कैबिनेट से अधिक शक्तिशाली है उसके निर्णय ही कैबिनेट के निर्णय है देश की सामान्य नीतियाँ कैबिनेट द्वारा निर्धारित नहीं होती है यह कार्य प्रधानमंत्री अपने निकट सहयोगी चाहे वो मन्त्री परिषद के सद्स्य ना हो की सहायता से करता है जैसे कि इंदिरा गाँधी अपने किचन कैबिनेट की सहायता से करती थी[कृपया उद्धरण जोड़ें]

प्रधानमंत्री सरकार के लाभ

  • 1 तीव्र तथा कठोर निर्णय ले सकती है
  • 2 देश को राजनैतिक स्थाईत्व मिलता है।

इससे कुछ हानि भी है

  • 1 कैबिनेट ऐसे निर्णय लेती है जो सत्ता रूढ दल के हित में हो न कि देश के हित मे
  • 2 इस के द्वारा गैर संवैधानिक शक्ति केन्द्रों का जन्म होता है

कैबिनेट सरकार

संसदीय सरकार का ही प्रकार है इस में नीति गत निर्णय सामूहिक रूप से कैबिनेट [मंत्रि मंडल ] लेता है इस में प्रधानमंत्री कैबिनेट पे छा नहीं जाता है इस के निर्णय सामान्यत संतुलित होते है लेकिन कभी कभी वे इस तरह के होते है जो अस्पष्ट तथा साहसिक नहीं होते है। 1989 के बाद देश में प्रधानमंत्री प्रकार का नहीं बल्कि कैबिनेट प्रकार का शासन रहा है।

प्रधानमन्त्री के कार्य

१- मन्त्रीपरिषद के गठन का कार्य

२- प्रमुख शासक

३- नीति निर्माता[कृपया उद्धरण जोड़ें]

४- ससद का नेता[कृपया उद्धरण जोड़ें]

५- विदेश निती का निर्धारक

कार्यकारी सरकार

बहुमत समाप्त हो जाने के बाद जब मंत्रिपरिषद त्यागपत्र दे देती है तब कार्यकारी सरकार अस्तित्व में आती है अथवा प्रधानमंत्री की मृत्यु / त्यागपत्र की दशा में यह स्थिति आती है। यह सरकार अंतरिम प्रकृति की होती है। यह तब तक स्थापित रहती है जब तक नई मंत्रिपरिषद शपथ ना ले ले।[कृपया उद्धरण जोड़ें] यह इसलिए काम करती है ताकि अनुच्छेद 74 के अनुरूप एक मंत्रिपरिषद राष्ट्रपति की सहायता हेतु रहे। वी.एन.राव बनाम भारत संघ वाद में उच्चतम न्यायालय ने माना था कि मंत्रिपरिषद सदैव मौजूद रहनी चाहिए। यदि यह अनुपस्थित हुई तो राष्ट्रपति अपने काम स्वंय करने लगेगा, जिससे सरकार का रूप बदल कर राष्ट्रपति हो जायेगा, जो कि संविधान के मूल ढाँचे के खिलाफ होगा। यह कार्यकारी सरकार कोई भी वित्तीय /नीतिगत निर्णय नहीं ले सकती है क्योंकि उस समय लोक सभा मौजूद नहीं रहती है। वह केवल देश का दैनिक प्रशासन चलाती है। इस प्रकार की सरकार के सामने सबसे विकट स्थिति तब आ गयी थी जब प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में भारत की सरकार को 1999 में कारगिल युद्ध का संचालन करना पड़ा था। किंतु विकट दशा में इस प्रकार की सरकार भी कोई भी नीतिगत निर्णय ले सकती है।

सुस्थापित परंपराए

एक संसदीय सरकार में ये पंरपराए ऐसी प्रथाएँ मानी जाती हैं जो सरकार के सभी अंगों पर वैधानिक रूप
से लागू मानी जाती हैं।[कृपया उद्धरण जोड़ें] उनका वर्णन करने के लिये कोई विधान नहीं होता है ना ही संविधान में किसी देश के शासन के बारे में पूर्ण वर्णन किया जा सकता है। संविधान निर्माता भविष्य में होने वाले विकास तथा देश के शासन पर उनके प्रभाव का अनुमान नहीं लगा सकते। अतः वे उनके संबंध में संविधान में प्रावधान भी नहीं कर सकते हैं।
इस तरह संविधान एक जीवित शरीर तो है परंतु पूर्ण वर्णन नहीं है। इस वर्णन में बिना संशोधन लाये परिवर्तन भी नहीं हो सकता है। वही पंरपराए संविधान के प्रावधानों की तरह वैधानिक नहीं होती वे सरकार के संचालन में स्नेहक का कार्य करते हैं तथा सरकार का प्रभावी संचालन करने में सहायक हैं।
पंरपराए इस लिए पालित की जाती हैं क्योंकि उनके अभाव में राजनैतिक कठिनाइया आ सकती हैं। इसी कारण उन्हें संविधान का पूरक माना जाता है। ब्रिटेन में हम इनका सबसे विकसित तथा प्रभावशाली रूप देख सकते हैं।
इनके दो प्रकार हैं:-

  • प्रथम वे जो संसद तथा मंत्रिपरिषद के मध्य संयोजन का कार्य करती है यथा अविश्वास प्रस्ताव पारित होने पर परिषद का त्यागपत्र दे देना।
  • द्वितीय वे जो विधायिका की कार्यवाहिय़ों से संबंधित है जैसे किसी बिल का तीन बार वाचन संसद के तीन सत्र राष्ट्रपति द्वारा धन बिल को स्वीकृति देना उपस्पीकर का चुनाव विपक्ष से करना जब स्पीकर सत्ता पक्ष से चुना गया हो आदि।

सरकार के संसदीय तथा राष्ट्रपति प्रकार

संसदीय शासन के समर्थन में तर्क
1. राष्ट्रपतीय शासन में राष्ट्रपति वास्तविक कार्य पालिका होता है जो जनता द्वारा निश्चित समय के लिये चुना जाता है वह विधायिका के प्रति उत्तरदायी भी नेही होता है उसके मंत्री भी विधायिका के सदस्य नहीं होते है तथा उसी के प्रति उत्ततदायी होंगे न कि विधायिका के प्रति[कृपया उद्धरण जोड़ें]
वही संसदीय शासन में शक्ति मन्त्री परिषद के पास होती है जो विधायिका के प्रति उत्तरदायी होती है

2. भारत की विविधता को देखते हुए संसदीय शासन ज्यादा उपयोगी है इस में देश के सभी वर्गों के लोग मन्त्री परिषद में लिये जा सकते है[कृपया उद्धरण जोड़ें]

3. इस् शासन में संघर्ष होने [विधायिका तथा मन्त्री परिषद के मध्य] की संभावना कम रहती है क्यॉकि मंत्री विधायिका के सदस्य भी होते है[कृपया उद्धरण जोड़ें]

4 भारत जैसे विविधता पूर्ण देश में सर्वमान्य रूप से राष्ट्रपति का चुनाव करना लगभग असंभव है[कृपया उद्धरण जोड़ें]

व्यवस्थापिका का कार्य क्या है?

Solution : व्यवस्थापिका का प्रमुख कार्य सरकार के लिए कानून या विधि-निर्माण का कार्य करना है। अध्यक्षात्मक सरकार में तो विधायिका इस कार्य को स्वतन्त्रतापूर्वक करती है, लेकिन संसदीय प्रजातन्त्र में यह कार्य कार्यपालिका के साथ मिलकर किया जाता है।

कार्यपालिका की प्रमुख शक्तियां क्या है?

मुख्य कार्यपालिका न्यायाधीशों की नियुक्ति करता है। वह सजा पाये हुए अपराधियों की सजा कम कर सकता है। मुख्य कार्यपालिका के अधीन अधिकारियों को प्रशासकीय अधिनिर्णयन के अधिकार भी मिले होते है। जिन देशों मे संविधान है उनमे राज्य की सारी कार्य पालिका संबंधी शक्तियाँ तथा कार्य मुख्य कार्यपालिका को सौंपे जाते है।

व्यवस्थापिका कितने प्रकार के होते हैं?

व्यवस्थापिका संसद को कहते हैं जिसके दो सदन हैं - उच्चसदन राज्यसभा और निम्नसदन लोकसभा।

भारत में व्यवस्थापिका क्या है?

व्यवस्थापिका संसद को कहते हैं, जिसके दो सदन हैं – उच्चसदन राज्यसभा, अथवा राज्यपरिषद् और निम्नसदन लोकसभा. राज्यसभा में २४५ सदस्य होते हैं जबकि लोकसभा में ५४५। राज्यसभा एक स्थाई सदन है और इसके सदस्यों का चुनाव, अप्रत्यक्ष विधि से ६ वर्षों के लिये होता है