1 में मृदुल वसंत के माध्यम से क्या कहा गया है? - 1 mein mrdul vasant ke maadhyam se kya kaha gaya hai?

‘वन में मृदुल वसंत’ पंक्ति का आशय क्या है?

  • जीवन में आशा से परिपूर्ण सुंदर समय
  • वसंत में वन का खिल जाना।
  • चारों ओर हरियाली छा जाना।
  • चारों ओर हरियाली छा जाना।


A.

जीवन में आशा से परिपूर्ण सुंदर समय

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“ऋतु परिवर्तन का जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ता है”- इस कथन की पुष्टि आप किन-किन बातों से कर सकते हैं? लिखिए।


यह सत्य है कि लोगों के जीवन पर प्रत्येक ऋतु का गहरा प्रभाव पड़ता है जिसे हम इस प्रकार स्पष्ट कर सकते है-

ग्रीष्म-इस ऋतु में झुलसा देने वाली गर्मी पड़ती है, जिससे प्राणी व्याकुल हो जाते हैं और प्रकृति भी मुरझा जाती है। लोगों को ठंडे पेय व खाने के पदार्थ लुभाते हैं। अमीर लोग कूलर व ए.सी. का प्रयोग करते हैं जबकि गरीब लोग पेड़ की ठंडी छाया में ही गरमी की तपन मिटाने का प्रयास करते हैं । सभी को सूती कपड़े पहनना अच्छा लगता है।

शीत-शीत ऋतु में बर्फीली हवाओं के कारण लोगों को, विशेषकर निर्धन वर्ग को अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। इस ऋतु में लोग गर्म चीजें खाना व गर्म कपड़े पहनना पसंद करते हैं। धूप सबको भाती है।

वर्षा- वर्षा ऋतु में काम-काज ठप्प हो जाते हैं। अमीर-गरीब सभी को कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। कई बार अधिक वर्षा हो जाने से बाढ़ भी आ जाती है जिससे सभी को हानि उठानी पड़ती है। बच्चे इस ऋतु का आनंद उठाते हैं। जबकि वसंत ऋतु में अस्वस्थ व्यक्ति भी स्वास्थ्य लाभ प्राप्त करते हैं। प्रकृति निर्मल आँचल झड़कर अपना हर्ष प्रकट करती है। चारों ओर हरियाली व सुगंधित फूलों से आनंदमय वातावरण होता है। मानव जाति के साथ-साथ पशु-पक्षी भी प्रसन्नचित्त हो जाते हैं।

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वसंत पर अनेक सुंदर कविताएं हैं। कुछ कविताओं का संकलन तैयार कीजिए।


जब वसंत आकर मुसकाय।; पीलापन व्यवहार हुआ।
खेतों में फसलें चहकी हैं: यह वसंत त्योहार हुआ।।
पंचायत मेरे गाँव की; मौन तोड़ती है अपना
और यही चर्चा चौपाल पर; ये फसलें हैं धन अपना,
आज नया दरबार लगा है; सब मौलिक अधिकार हुआ।
जब वसंत आकर मुसकाया: पीलापन व्यवहार हुआ।।
सरसों के फूले खेतों पर, खुशी मनाकर हम हँस लें
कुन्दन सी बनकर लहकी है; देखो खेतों की फसलें,
बापू की लाठी को थामे, रमुआ मग्न विचार हुआ।
जब वसंत आकर मुसकाया, पीलापन व्यवहार हुआ।। कवि-मनोहरलाल ‘रत्नम’

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 ‘हरे-हरे’, ‘पुष्प-पुष्प’ में एक शब्द की एक ही अर्थ में पुनरावृत्ति हुई है। कविता के ‘हरे-हरे ये पात’ वाक्यांश में ‘हरे-हरे’ शब्द युग्म पत्तों के लिए विशेषण के रूप में प्रयुक्त हुए हैं। यहाँ ‘पात’ शब्द बहुवचन में प्रयुक्त है। ऐसा प्रयोग भी होता है जब कर्ता या विशेष्य एक वचन में हो और कर्म या क्रिया या विशेषण बहुवचन में; जैसे-वह लंबी-चौड़ी बातें करने लगा। कविता में एक ही शब्द का एक से अधिक अर्थों में भी प्रयोग होता है- “तीन बेर खाती ते वे तीन बेर खाती है।” जो तीन बार खाती थी वह तीन बेर खाने लगी है। एक शब्द ‘बेर’ का दो अर्थो में प्रयोग करने से वाक्य में चमत्कार आ गया। इसे यमक अलंकार कहा जाता है। कभी-कभी उच्चारण की समानता से शब्दों की पुनरावृत्ति का आभास होता है जबकि दोनों दो प्रकार के शब्द होते हैं; जैसे-मन का मनका।

ऐसे वाक्यों को एकत्र कीजिए जिनमें एक ही शब्द की पुनरावृत्ति हो। ऐसे प्रयोगों को ध्यान से देखिए और निन्नलिखित पुनरावृत शब्दों का वाक्य में प्रयोग कीजिए- बातों-बातों में रह- रहकर, लाल- लाल, सुबह- सुबह. रातों- रात, घड़ी- घड़ी।


यमक अलंकार अर्थात् एक शब्द के दो अर्थ देकर वाक्य में चमत्कार उत्पन्न करने का उदाहरण निम्न दोहे मे देखिए-

नैनन काजल औ काजल मिली।
है गई स्याम स्याम की पाती।।

इसमें काजल शब्द का प्रयोग दो बार हुआ है एक नैनन काजल का अर्थ है ‘आँसू’ व दूसरे काजल का अर्थ है आँखों में डालने वाला ‘काजल’ (सुरमा)। स्याम शब्द भी दो बार है। एक स्याम का अर्थ है ‘काली’ व दूसरे स्याम का अर्थ है ‘कृष्ण’ उद्धव जब कृष्ण का पत्र लेकर गोपियों के पास जाते हैं तो गोपियों की औखों से आँसू बह निकलते हैं, जिनके साथ उनका काजल भी पत्र पर गिरने लगता है तो कृष्ण के भेजे पत्र के शब्द भी धूलने लगते हैं और पत्र काला हो जाता है।

पुनरावृत्ति शब्दों के वाक्य निम्न रूप से हैं-

1. बातों-बातों में-बातों-बातों में मोहन ने मुझ सुना ही दिया कि उसने मुझे दस हजार रुपए उधार दिए थे।

2. रह-रहकर- आज मुझे रह-रहकर सड़क पर भीख मांगने वाले बूढे की याद आ रही है।

3. लाल- लाल-लाल-लाल सेब देखकर मेरे मुँह में पानी भर आया।

4. सुबह-सुबह-सुबह-सुबह बगीचे में टहलने का आनंद ही मनभावन होता है।

5. रातों-रात-रातों-रात ही उसका पूरा मकान खाली हो गया।

6. घड़ी-घड़ी-जादूगर घड़ी-घड़ी अपने कपड़े बदल रहा था।

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कवि को ऐसा विश्वास क्यों है कि उसका अंत अभी नहीं होगा?


कवि को स्वयं पर दृढ़ विश्वास है कि वह अपनी कर्तव्यपरायणता तथा सक्रियता से विमुख होकर अपनै जीवन का अंत नहीं होने देगा। वह तो अपने यशस्वी कार्यो की आभा को वसंत की भाँति सुगंधित रूप में सब और फैलाना चाहता है।

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वसंत ऋतु में आनेवाले त्योहारों के विषय में जानकारी एकत्र कीजिए और किसी एक त्योहार पर निबंध लिखिए।


वसंत पंचमी सरस्वती पूजा, महाशिवरात्रि व होली जैसे प्रमुख त्योहारों का आगमन इसी ऋतु में होता है।

होली

हमारे देश में होली का उत्सव बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। इस त्यौहार को मनाने मैं प्रत्येक भारतीय अपना गौरव समझता है। एक ओर तो आनंद और हर्ष की वर्षा होती है, दूसरी ओर प्रेम व स्नेह की सरिता उमड़ पड़ती है। यह शुभ पर्व प्रतिवर्ष फाल्गुन मास की पूर्णिमा के सुंदर अवसर की शोभा बढ़ाने आता है ।

होली का त्योहार वसंत ऋतु का संदेशवाहक बनकर आता है। मानव मात्र के साथ-साथ प्रकृति भी अपने रंग-ढंग दिखाने में कोई कमी नहीं रखती। चारों ओर प्रकृति कै रूप और सौंदर्य के दृश्य दृष्टिगत होते हैं। पुष्पवाटिका में पपीहे की तान सुनने से मन-मयूर नृत्य कर उठता है। आम के झुरमुट से कोयल की ‘कुहू-कुहू’ सुनकर तो हदय भी झंकृत हो उठता है। ऋतुराज वसंत का स्वागत बड़ी शान से संपन्न होता है। सब लोग घरों से बाहर जाकर रंग-गुलाल खेलते हैं और आनंद मनाते हैं।

होलिकोत्सव धार्मिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। इस उत्सव का आधार हिरण्यकश्यप नामक दानव राजा और उसके ईश्वरभक्त पुत्र प्रल्हाद की कथा है। कहते हैं कि राक्षस राजा बड़ा अत्याचारी था और स्वयं को भगवान मानकर प्रजा से अपनी पूजा करवाता था; किंतु उसी का पुत्र प्रल्हाद ईश्वर का अनन्य भक्त था। हिरण्यकश्यप चाहता था कि मरा पुत्र भी मेरा नाम जपे किंतु वह इसके विपरीत उस ईश्वर का नाम ही जपता था। उसने अपने पुत्र को मरवा डालने के बहुत से यत्न किए, पर असफलता ही मिली। एक बार हिरण्यकश्यप की बहन होलिका ने इस कुकृत्य में अपने भाई का साथ देने का प्रयास किया। उसे किसी देवता से वरदान में एक ऐसा वस्त्र प्राप्त था जिसे ओढ़कर उस आग नहीं लग सकती थी। एक दिन होलिका प्रल्हाद को गोदी में लेकर चिता में बैठ गई। किंतु भगवान की इच्छा कुछ और ही थी, किसी प्रकार वह कपड़ा उड़कर प्रल्हाद पर जा पड़ा। फलत: होलिका तो भस्म हो गई और प्रल्हाद बच गया। बुराई करने वाले की उसका फल मिल गया था। इसी शिक्षा को दोहराने के लिए यह उत्सव मनाया जाता है।

इस दिन खूब रंग खेला जाता है। आपस में नर-नारी, युवा-वृद्ध गुलाल से एक-दूसरे के मुख को लाल करके हँसी-ठट्ठा करते हैं। ग्रामीण लोग नाच-गाकर इस उल्लास- भरे त्योहार को मनाते हैं । कृष्ण-गोपियों की रास-लीला भी होती है। धुलेंडी के बाद संध्या समय नए-नए कपड़े पहनकर लोग अपने मित्रगणों से मिलते हैं. एक-दूसरे को मिठाई आदि खिलाते हैं और अपने स्नेह-संबंधों की पुनर्जीवित करते हैं।

होली के शुभ अवसर पर जैन धर्म के लोग भी आठ दिन तक सिद्धचक्र की पूजा करते हैं, यह ‘अष्टाहिका’ पर्व कहलाता है। ऐसे कामों से इस पर्व की पवित्रता का परिचय मिलता है। कुछ लोग इस शुभ पर्व को भी अपने कुकर्मो से गंदा बना देते हैं। कुछ लोग इस दिन रंग के स्थान पर कीचड़ आदि गंदी वस्तुओं को एक-दूसरे पर फेंकते हैं अथवा पक्के रंगों या तारकोल से एक-दूसरे को पोतते हैं जिसके फलस्वरूप झगड़े भी हो जाते हैं। इसके अतिरिक्त कुछ लोग इस दिन भाँग, मदिरा आदि नशे की वस्तुओं का भी प्रयोग करते हैं जिनके परिणाम कभी भी अच्छे नहीं हो सकते। ऐसे शुभ पर्व को इन बातों से अपवित्र करना मानव धर्म नहीं है।

होलिकोत्सव तो हर प्राणी को स्नेह का पाठ सिखाता है। इस दिन शत्रु भी अपनी शत्रुता भूलकर मित्र बन जाते हैं। इस कारण सब उत्सवों में यदि इसे ‘उत्सवों की रानी’ कहा जाए तो अत्युक्ति न होगी।

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वन में मृदुल वसंत के माध्यम से क्या कहा गया है?

'वन में मृदुल वसंत' पंक्ति से आशय क्या है? Answer: वन में मृदुल वसंत का अभिप्राय है- वन रूपी जीवन में वसंत का आगमन होना है।

मृदुल वसंत शब्दों के माध्यम से कवि क्या कहना चाहते हैं?

Solution : . मन में मृदुल वसंत. से कवि का आशय है कि कवि अपने जीवन में सुख, शान्ति, आनन्द और आशा का संचार करके अधिक से अधिक जीने की आकांक्षा करना चाहता है।

अभी अभी ही तो आया है मेरे वन में मृदुल बसंत पंक्ति के माध्यम से कवि क्या कहना चाहता है?

कवि को स्वयं पर दृढ़ विश्वास है कि वह अपनी कर्तव्यपरायणता तथा सक्रियता से विमुख होकर अपनै जीवन का अंत नहीं होने देगा। वह तो अपने यशस्वी कार्यो की आभा को वसंत की भाँति सुगंधित रूप में सब और फैलाना चाहता है।