Written By : केशव कुमार | Edited By : Keshav Kumar | Updated on: 08 Sep 2022, 02:52:35 PM
नागरिकों के मौलिक कर्तव्य क्या हैं (Photo Credit: News Nation) highlights
नई दिल्ली: सेंट्रल विस्टा (Central Vista) की शुरुआत के साथ ही राजधानी दिल्ली में राजपथ का नाम बदलकर कर्तव्य पथ (Kartavya Path) कर दिया गया है. इसके बाद कर्तव्य पथ लगातार सुर्खियों में है. हालांकि, इसे गुलामी की निशानियों को हटाने के बारे में प्रचारित किया गया. फिर भी लोगों को नागरिक कर्तव्यों की याद दिलाने से जोड़कर भी इस सरकारी पहल को देखा जा रहा है. हमारे संविधान (Constitution Of India) में नागरिकों के मौलिक अधिकारों के साथ ही मौलिक कर्तव्यों (Fundamental Duties) को भी जगह दी गई है. आइए, जानते हैं कि नागरिकों के मौलिक कर्तव्य क्या हैं, कितने हैं और इसमें कब-क्या जोड़ा गया है. मौलिक कर्तव्य क्या है भारतीय संविधान में राष्ट्र निर्माण के लिए आवश्यक नागारिक के कुछ सामान्य मुल्यों के आधार पर देशप्रेम और राष्ट्रीय विचारों को बढ़ाने के लिए मौलिक कर्तव्य से संबंधित अनुच्छेद-2 और भाग चार (क) और संशोधन अधिनियम 1976 द्वारा जोड़े गए. संविधान में मौलिक कर्तव्य को अनुच्छेद 51 के भाग 4 में जोड़ा गया है. मूल संविधान में मौलिक कर्तव्यों की संख्या 10 थी. 86 वें संविधान संशोधन अधिनियम 2002 धारा 11वां मौलिक कर्तव्य जोड़ दिया गया. वर्तमान में भारतीय संविधान में 11 मौलिक कर्तव्य हैं. ये हैं 11 मौलिक कर्तव्य भारत के प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य होगा कि – 1. संविधान के नियमों का पालन करें और उसके आदर्शों संस्थाओं राष्ट्रध्वज और राष्ट्रगान का पालन करें. मौलिक कर्तव्य की खासियत संविधान में मूल या मौलिक कर्तव्य के अंतर्गत नैतिक और नागरिक दोनों प्रकार के कर्तव्यों को शामिल किया गया है. जैसे नैतिक कर्तव्य - स्वतंत्रता के लिए प्रेरित करने वाले महान कर्तव्य को पालन करना और नागरिक कर्तव्य - राष्ट्रीय गान, राष्ट्रीय ध्वज एवं संविधान का पालन करना नागरिक कर्तव्य है. मौलिक कर्तव्य केवल भारत के नागरिकों पर लागू होता है, लेकिन कुछ मूल कर्तव्य भारतीय नागरिकों के साथ विदेशी नागरिकों के लिए भी है. हालांकि, राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों की तरह मूल कर्तव्य के हनन के खिलाफ कोई कानूनी प्रावधान परिभाषित नहीं है. मौलिक कर्तव्य की उपयोगिता यह निर्विवाद है. इन मौलिक कर्तव्यों के प्रति विभिन्न राजनीतिक विचारधाराओं में कोई विवाद नहीं है. यह दलगत राजनीति से ऊपर है. इनका आदर्श देश हित की भावना को नागरिकों के हृदय में जागृत करना है. आदर्श और पथ प्रदर्शक भी है. यह कर्तव्य जनता का मार्गदर्शन करेंगे और व्यवहार के लिए आदर्श उपस्थित करने वाले हैं. यह 11 कर्तव्य नागरिकों में जागृति पैदा करने वाले हैं. इन कर्तव्य की पूर्ति का आधार स्वविवेक है. स्वर्गीय श्रीमती इंदिरा गांधी ने इस बारे में संसद में कहा था कि अगर मौलिक कर्तव्य को केवल अपने दिमाग में रख लेते हैं तो हम तुरंत एक शांतिपूर्ण क्रांति देखेंगे. ये भी पढ़ें - रुपये में कैसे होगा अंतरराष्ट्रीय व्यापार? केंद्र सरकार का जोर क्यों मौलिक कर्तव्यों की आलोचना संविधान में वर्णित मौलिक कर्तव्यों की कुछ आलोचना भी की जाती है. प्रमुख तौर पर आपातकाल के दौरान इसके सृजन होने, 42वें संशोधन के जरिए इन कर्त्तव्यों को एकांगी रूप में संविधान में जोड़ने, न्यायालय के अधिकार-क्षेत्र से बाहर होने, कर्त्तव्यों के रुप का अस्पष्ट या अपरिभाषित होना और कुछ कर्तव्यों को संविधान में दोहराए जाने को लेकर इसकी आलोचना की जाती है. क्योंकि इनमें से कुछ कर्तव्यों का आदर्शों के रूप में भी संविधान की प्रस्तावना में भी वर्णन किया हुआ है. संबंधित लेखFirst Published : 08 Sep 2022, 02:49:32 PM For all the Latest Specials News, Explainer News, Download News Nation Android and iOS Mobile Apps. |