1453 में कुस्तुनतुनिया पर किस जाति ने अधिकार कर लिया था - 1453 mein kustunatuniya par kis jaati ne adhikaar kar liya tha

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इतिहास कुस्तुनतुनिया पर 1453 में किसने अधिकार किया ?

by LIFE NETWORK onApril 11, 2018

कुस्तुनतुनिया पर1453 में इसपर उस्मानी तुर्कों ने अधिकार कर लियाथा,

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1453 में कुस्तुनतुनिया पर किस जाति ने अधिकार कर लिया था - 1453 mein kustunatuniya par kis jaati ne adhikaar kar liya tha

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कुस्तुन्तुनिया की स्थापना रोमन सम्राट् कांस्टैंटाइन ने 328 ई. में प्राचीन नगर बाईज़ैंटियम को विस्तृत रूप देकर की थी। रोमन साम्राज्य की राजधानी के रूप में इसका आरंभ 11 मई 330 ई. को हुआ था। कहते हैं कि जब यूनानी साम्राज्य का विस्तार हो रहा था तो प्राचीन यूनान के नायक बाइज़ैस ने मेगारा नगर को बाइज़ैन्टियम के रूप में स्थापित किया था. यह बात 667 ईसापूर्व की है. उसके बाद जब कॉंस्टैन्टीन राजा आए तो इसका नाम कॉंस्टैंटिनोपल रख दिया गया जिसे हम कुस्तुन्तुनिया के रूप में पढ़ते आए हैं. यही आज का इस्ताम्बुल शहर है.

क़ुस्तुन्तुनिया कभी हार का मुंह ना देखने वाला शहर माना जाता था जो आज भी मूल्यवान कलात्मक‚ साहित्यिक और ऐतिहासिक धरोहरों से मालामाल समझा जाता है, 12 मीटर उंची दिवारों से घिरे इस शहर को भेदना उस समय किसी के लिए मुमकिन नही था।

इस शहर को फ़तह करने की कोशिश 559 ई. मे ही शुरु हो गई थी, सबसे पहले नाकाम कोशिश Kutrigurs ने की, फिर 626 मे Sasanian Empire ने भी हमला किया और नाकाम हुए .. फिर आया इस्लाम का दौर, दौर ए उमय्यद मे 674 से 718 के बीच दो बार कुस्तुन्तुनिया का मुहासिरा किया गया जिसमे हज़रत अबु अस्युब अंसारी (र) ख़ुद शरीक हुए, नाकामयाबी हाथ लगी.. 813 मे बुलगारिया के क्रुम मे हमला किया और नाकामयाब हुए .. इसके बाद 860 से 941 के बीच रुस ने इस शहर पर तीन बड़े हमले किए पर नाकामयाब हुए .. फिर 1203 और 1204 मे धोखे से क्रुसेडर ने इस शहर पर हमला कर लिया और ख़ुब लुट पाट किया और इसे Empire of Romania यानी लातिनी के हवाले कर दिया जिसे #SackofConstantinople के नाम से जाना गया पर 25 जुलाई 1261 मे इसे Empire of Nicaea द्वारा वापस हासिल कर लिया गया जो Byzantine Empire का ही हिस्सा था .. इस के लिए 1235 मे बुलगारियन और निकाया ने मिल कर एक नाकामयाब हमला किया था .. फिर 1248 से 1261 के बीच मे Nicaea ने एक एक कर तीन बार नाकामयाब हमला किया .. और आख़िर 25 जुलाई 1261 को बिना लड़े ही जीत हासिल कर लिया क्योंके इन्हे रोकने वाला कोई था ही नही.. इसके बाद इस शहर की ज़बर्दस्त क़िलेबंदी हुई.. फिर उस्मानीयों का दौर आया जो बड़ी तेज़ी से युरोप मे घुसे जा रहे थे पर उनके रास्ते के बीच कुस्तुन्तुनिया पड़ रहा था जिसे जीतना बहुत ज़रुरी था. सुलतान बायज़ीद I के दौर मे 1390 से 1402 के इस शहर का मुहासरा हुआ पर तैमुर की वजह कर नाकामयाबी हाथ लगी, फिर 1411 मे हमला किया गया और एक बार फिर नाकामयाबी हाथ लगी , 1422 सुलतान मुराद II ने एक बार फिर मुहासरा किया, फिर नाकामयाबी हाथ लगी, वापस लौटना पड़ा … फिर उनका बेटा सुलतान मुहम्मद II गद्दी पर बैठा और सिर्फ़ 21 साल की उमर मे उसने इस शहर को 53 दिन के मुहासरे के बाद 29 मई 1453 को फ़तह कर लिया जिसे अपने वक़्त की अज़ीम फ़ौज पिछले 1500 साल से फ़तह ना कर सकी थी और इस पुरे वाक़ियो को हम #FallofConstantinople के नाम से जानते हैं..

असल मे सुल्तान मुहम्मद II और उनके इस फ़तह की पेशनगोइ पैगम्बर अलैहि सलाम ने अपनी एक हदीस (मसनद अहमद ) में काफी पहले कर दी थी :- “निश्चित ही तुम कुस्तुनतुनिया फतह करोगे वो एक बहुत अज़ीम सिपह सालार होगा और उसकी बहुत अज़ीम सेना होगी”

ये फ़तह 53 दिन की उतार चढ़ाओ कि जंग के बाद नसीब होती है.. इसके बाद जो हुआ वो तारीख़ है 1500 साल से चली आ रही बाइजेण्टाइन साम्राज्य हमेशा के लिए ख़त्म हो जाती है.

⏩ 6 अप्रैल 1453 ई. को शुरु हुई जंग मे बाइजे़ण्टाइन लगातार भारी पड़ रहे थे, चुंके एक जगह खड़े हो कर उन्हे उस्मानीयों को रोकना था.. 22 अप्रैल 1453 एक ऐसा तारीख़ी दिन है जब दुनिया ने एक ऐसी जंगी हिकमत अमली देखी जिस पर वह आज भी हैरतज़दा हैं जब मुहासिरा कुस्तुन्तुनिया के दौरान “सुल्तान मुहम्मद फ़ातेह” ने समुंद्री जहाज़ों को ज़मीन पर चलवा दिया. बासफोरस से शहर कुस्तुन्तुनिया के अंदर जाने वाली पानी के रास्ते ‘शाख़ ज़रीं’ के दहाने पर बाइज़ेण्टाइनीयों ने एक ज़ंजीर लगा रखी थी जिस की वजह से उस्मानी समुंद्री जहाज़ शहर के करीब न जा सकते थे…. सुल्तान ने शहर के एक जानिब के इलाक़े से जहाज़ों को ज़मीन पर से गुज़ार कर दुसरी जानिब पानी में उतारने का अजीब ओ गरीब मंसूबा पेश किया और 22 अप्रैल 1453 ई. को उस्मानियों के अज़ीम जहाज़ खुश्की पर सफ़र करते हुए शाख़ जरीं में दाखिल हो गए, और इसके लिए उस्मानी फ़ौजों ने ज़मीन पर रास्ता बनाया और दरख्तों के बड़े तनों पर चर्बी मल कर जहाज़ों को उनपर चढ़ा दिया गया और हवा का रुख़ देखते हुएे जहाज़ों के बादबान भी खोल दिए गए और रात ही रात में उस्मानी बेड़े का एक बड़ा हिस्सा शाख़ जरीं में था..

सुबह कुस्तुन्तुनिया की दिवारों पर खड़े बाइजे़ण्टाइनी फौजी आँखें मलते रह गए के ये ख्वाब है या हक़ीक़त ? ज़ंजीर अपनी जगह क़ायम है और उस्मानी जहाज़ शहर के किनारे पर खड़े हैं…..

बहरहाल ये हिकमत अमली कुस्तुन्तुनिया की फ़तह में सबसे अहम रही क्यूँकि इसी की बदौलत उस्मानियों को पहली बार शहर के इतने क़रीब पहुंचने का मौक़ा मिला और 29 मई को उन्होंने कुस्तुन्तुनिया को फ़तेह कर लिया.

⏩ हर तरफ़ से 12 मीटर उंची दिवार से घिरे इस शहर मे दाख़िल होने के लिए अरबन ओस्ताद ने सुल्तान के हुक्म पर शाही तोप तोप बनाई जिसके मार की ताक़त बहुत अधिक थी.. इस तोप ने ही दिवारों मे छेद कर डाले जिससे उस्मानी फ़ौज शहर के अंदार दाख़िल हो सकी.

⏩ इस जंग मे एक बहुत मज़बुत और बहादुर सिपाही और भी था जिसे दुनिया बहुत कम जानती है , जो के सुल्तान महमद की परछाई था और इसी सिपाही को क़ुस्तुन्तुनिया के क़िले पर सबसे पहले उस्मानी झण्डा फहराने का शर्फ़ हासिल हुआ , इस सिपाही का नाम था “उलुबातली हसन” जो के क़ुस्तुन्तुनिया को फ़तह करने के बाद 25 साल की उमर मे शहीद हो गया था.

क़ुस्तुन्तुनिया को फ़तह करने के लिए 53 दिन (April 6, 1453 – May 29, 1453) तक चली जंग मे ये हमेशा मैदान मे डटे रहे और आख़िर मे वो दिन आया जब क़ुस्तुन्तुनिया फ़तह हुआ और क़ुस्तुन्तुनिया पर उस्मानी झण्डा फहरा और इसे को फहराने के वास्ते उलुबातली हसन तीर बरछे व भाले का परवाह किये बगै़र दीवार पर चढ़ गए और उस्मानी झण्डा फहरा कर शहीद हो गए ✊ उनके बदन से 27 तीर निकाली गई थीं जो उन्हे जंग के दौरान लगी.

फ़तह क़ुस्तुन्तुनिया के बाद ख़िलाफ़ते उस्मानीया की राजधानी एदिर्न (Edirne) से हटाकर क़ुस्तुन्तुनिया ला दी गयी और इस जगह को आज दुनिया इंस्तांबुल के नाम से जानती है।

यहां एक बात क़ाबिले गौर है कि… बाइज़ेण्टाइनी सल्तनत में रोमन कैथोलिक और ग्रीक ओर्थोडाक्स के बीच बहुत सालों से लड़ाई होती आ रही थी… रोमन कैथोलिक… ग्रीक ओर्थोडाक्स पर हावी रहते थे… जब सुल्तान मुहम्मद फातेह ने बाइज़ेण्टाइनी सल्तनत पर हमला किया तो ग्रीक ओर्थोडाक्स ने उस्मानीयों का साथ दिया था.. इसलिए सुल्तान ने ग्रीक चर्च को मज़हबी मामलात में आज़ादी दी…. बदले में चर्च ने उस्मानी सल्तनत को कुबूल कर लिया..! इनके अंदर 1204 के वाक़िये को लेकर भी आपस मे ना इत्तेफ़ाक़ी थी.. बहरहाल

सुलतान मोहम्मद फ़ातेह ने शहर पर फ़तह हासिल करने के बाद पहला आदेश जारी करके शहर के निवासियों को सुरक्षा और स्वतंत्रता प्रदान की, उन्होने वहां मौजुद तमाम इसाईयो को मज़हबी आज़ादी दी और यहां तक के सुलतान मुहम्मद ने इसाईयो की इज़्ज़त ओ आबरु, जान ओ माल की हिफ़ाज़त की ज़िम्मेदारी ख़ुद ली।

इस तरह उन्दलुस(स्पेन) के ज़वाल के बाद पहली बार उस्मानी फ़ौज को यूरोप में घुसने का रास्ता मिलता है और बालकन (सर्बिया , बोसनिया , अलबानिया) के इलाके़ ‘क्रीमिया’ व इटली के ओरंटो पर उस्मानियों का क़ब्ज़ा हो जाता है।

इस तरह यूरोपियों के पूर्व (चीन, भारत और पूर्वी अफ़्रीक़ा) के व्यापार का रास्ता (समुंद्री और ज़मीनी) पूरी तरह से मुस्लिम हाथों में चला जाता है और समूचे मध्य-पूर्व पर मुस्लिम शासकों का कब्ज़ा हो जाता है। पूर्व (चीन, भारत और पूर्वी अफ़्रीक़ा) से आने वाले रेशम, मसालों और आभूषणों पर अरब और अन्य मुस्लिम व्यापारियों का कब्जा हो गया था – जो मनचाहे दामों पर इसे यूरोप में बेचने लगे।

फ़तह के पहले और बाद में कई यूनानी एवं अन्य दानिशवर लोग कु़स्तुन्तुनिया छोड़कर भाग निकले। इनमें से ज़्यादातर इटली जा पहुँचे जिससे यूरोपीय पुनर्जागरण को बहुत ताक़त मिली और योरप के लोग जागरुक होने लगे और इसके बाद स्पेनी और पुर्तागली (और इतालवी) शासकों को मशरिक़ (पूर्व) के रास्तों की बैहरी (सामुद्रि) जानकारी की इच्छा और जाग उठती है ।

1475 की शुरुआत से यूरोपीय देशों की नौसेना के उरुज को देखा गया. इसी सिलसिले मे अमरीका की खोज क्रिस्टोफर कोलम्बस ने 12 अक्तुबर 1492 की थी और वास्को डी गामा कप्पड़ पर कालीकट के निकट 20 मई 1498 ईस्वी को भारत में आया था. इसी दौर मे समुद्र रास्ते से दुनिया का चक्कर लगानेवाला पहला आदमी मैगलन बना था. और फिर इसके बाद शुरु हुआ योरप के साम्राज्यवाद व उपनिवेशवाद का नंगा नाच जो आज तक जारी है।

#29May1453 को हुए इस अज़ीम वाक़िये का असर हिन्दुसान पर भी हुआ और योरप के साम्राज्यवाद व उपनिवेशवाद का नंगा नाच को अमली जामा पहनाने लोग युरोप हिन्दुस्तान आने लगे, गोवा, कालीकट पर हमला कर क़ब्ज़ा किया फिर जो हुआ वो सबको पता है।

पहली जंग ए अज़ीम यानी First World War के बाद 13 November 1918 से 23 September 1923 तक ये शहर ब्रिटिश, फ़्रंच और इटेलियन फ़ौज के क़ब्ज़े मे रहा जिसे हम #OccupationofConstantinople के नाम से जाना जाता है

कुस्तुनतुनिया पर किसका अधिकार हो गया?

29 मई 1453 की घटना कुस्तुनतुनिया के इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना है, जब 1500 साल से चले आ रहे रोमन साम्राज्य का अंत हो गया और कुस्तुनतुनिया पर उस्मानी साम्राज्य की आक्रमणकारी सेनाओं द्वारा तत्कालीन रोमन बाजेन्टाइन साम्राज्य की राजधानी कुस्तुनतुनिया पर कब्जा कर लिया गया

सल्जुक तुर्को ने कुस्तुनतुनिया पर कब अधिकार किया?

29 मई, साल 1453 की तारीख.

1453 में क्या हुआ था?

29 May 1453 को उस्मानी साम्राज्य की सेनाओं द्वारा बाइजेण्टाइन साम्राज्य की राजधानी कुस्तुन्तुनिया पर अधिकार कर लेने की घटना कुस्तुन्तुनिया विजय (Fall of Constantinople ) कहलाती है। यह एक अति महत्वपूर्ण घटना थी।

कुस्तुनतुनिया का नया नाम क्या है?

सन् 1930 में इसका नया तुर्कीयाई नाम इस्तानबुल रखा गया।