आपके अंदर देश भक्ति की भावना कब जागृत होती है? - aapake andar desh bhakti kee bhaavana kab jaagrt hotee hai?

देश भक्ति शब्द सुनते ही शरीर रोमांच से भर जाता है । एक ऐसा भाव पैदा होता है जो शब्दों में व्यक्त करना असंभव सा प्रतीत होता है । दिल ख़ुशी से भर जाता है जैसे अचानक पतझड़ में बहार आ गयी हो । एक ऐसा जोश और जिम्मेदारी का भाव पैदा हो जाता है जो समय और ऊम्र की सीमा को तोड़कर सबमे एकरूपता का बोध कराने लगता है । जाति, वर्ग, संप्रदाय और धर्म की सारी सीमायें जैसे टूट जाती है और प्रेम एवं बन्धुत्व की निर्मल धारा बहने लगती है । दिल गर्व का अनुभव करना शुरू कर देता है क्योकि देश के लिये त्याग की भावना अपने उत्कर्ष पर पहुँच जाती है फिर जबां पे ये शब्द अपने आप आने लगते हैं :-

“जो भरा नहीं है भावों से बहती जिसमे रसधार नहीं, वह ह्रदय नहीं पर पत्थर है जिसमे स्वदेश का प्यार नहीं “

यह सुनने, देखने, महसूस करने में बहुत अच्छा लगता है । पर जब हम सिक्के के दुसरे पहलुओं पर ध्यान करते है तब कुछ अनुत्तरित प्रश्न जैसे अपने आप मुहबाये खड़े हो जाते हैं । उन प्रश्नों पर गौर करने से जैसे रोमांच छीड़ होना शुरू कर देता है, प्रेम एवं बन्धुत्व के निर्मल धारा जैसे मानो अपनी तीब्रता खोना शुरू कर देती है और दिल एवं दिमाग कुंद हो जाता है । पुरे का पूरा उल्लास एवं जोश स्वतः ही जैसे समाप्ति की घोषणा करना शुरू कर देता है और साथ ही साथ मन में यह प्रश्न उठता है क्या ऐसा भी होता है ?

स्वार्थ में पड़कर किया गया कार्य और सोच देश भक्ति की राह में सबसे बड़ा रोड़ा है । कोई यह बोले की वह तो आम नागरिक है वो देश के बारे में क्या सोचे, यह उसका काम नहीं है । यह तो शाषन करने वालों का काम है । अगर कृषक कहे कि वह केवल अपने लिए अन्न पैदा करेगा, उसको देश और देश के लोगों से क्या लेना देना है । वैज्ञानिक बोले की वह तो नौकरी इसलिए कर रहा है कि उसका तथा उसके परिवार का भरण पोषण हो सके । इसी तरह शिक्षक, सैनिक और नेता भी बोलने लगे तो देश का क्या होगा ? क्षेत्रवाद, भाषावाद, जातिवाद तथा धर्म या सम्प्रदायवाद राष्ट्रीय एकता में सबसे बड़ी बाधा हैं । अराजक एवं असामाजिक तत्व देश को खोखला करने में लगे हुए हैं । कठिनाइयों से डरकर, अपने कर्तव्यों के प्रति उदासीनता भी देश भक्ति की भावना को कमजोर बनाती है । नौजवानों का भटकना असामाजिक तत्वों के वर्चस्व को दर्शाता है । अच्छे और देश भक्तों का निरादर करना तथा देश भक्ति की भावना का उपहास करना एक आम बात हो गई है ।

आज समाज ऐसे तत्वों की कमी नहीं है जो एक अपराधी को हीरो के रूप में देखते हैं । कानून तोडना, संविधान की आलोचना करना, देश के खिलाफ बोलना और किसी समाज विशेष को खुश करने के लिए देश द्रोही कृत्य करना या उसका परोक्ष या प्रत्यक्ष रूप से समर्थन करना भी देश भक्ति की राह में बहुत बड़ा अवरोध है । देश में ऐसे लोग बहुतायत से मिल जायेंगे जो गलत काम या यूँ कहें कि कानून तोडना गर्व की बात समझते हैं । क्या उनके लिए देश प्रेम और देश प्रेमी की अलग परिभाषा है ? नहीं ! यह केवल भटकाव है, एक ऐसा सन्नाटा है जो देश और समाज के अस्तित्व पर प्रश्नचिन्ह लगता है ।

यह मेरी आकांक्षा है । इन बुराइयों और अवरोधों को दूर करना होगा, यह हमारी पहली जिम्मेदारी बनती है । यह पढने, पढ़ाने या किताबों से नहीं आयेगी वल्कि इसके लिये सोच पैदा करनी होगी । अंतरमन में भाव उत्पन्न करने होगे । देश का प्रत्येक नागरिक देश के लिए सामान रूप से जिम्मेदार होता है । हर एक आदमी जो कुछ अपने लिए करता है वह केवल उसके लिए नहीं होता है अन्ततः उसका वह कार्य उसके कुटुंब, समाज और फिर देश के लिए समर्पित हो जाता है । कोई भी काम न तो छोटा होता है और न तो बड़ा । हर एक काम जो देश और समाज के काम आये वह महान होता है । आइये हम सभी आपनी जिम्मेदारियों को समझें और एक दुसरे से कन्धा मिलाकर देश और देश के विकास के राह में पड़ने वाले सारे अवरोधों को दूर करते हुये शांति और समृध्धि का वातावरण बनायें । समतामूलक समाज की स्थापना करते हुये एक ऐसी भूमि तैयार करें जो भविष्य की स्वर्णिम धरोहर बन जाये और आगे आने वाली पीढ़ी इससे प्रेरणा लेकर विश्वशांति के मार्गपर अग्रसर रहे जिससे इतिहास का यह कालखंड भारत को शांति सम्राट के रूप में अमर रखे ।

इसी उपलक्ष्य में मै अपनी कविता की चंद पंक्तियों के साथ इस लेख को विराम दे रहा हूँ :-

“”बहुत हुआ अब बंद करो, भटकन का अब अंत करो, देश हमारा ऊपर है, देश भक्ति सर्वोपरि है,
विविध बाधा आती रहती, आकांक्षा लुभाती रहती, विश्वशांति के अग्रदूत हम , “स्वामी” के अग्रज सपूत हम,
बनकर शांति सम्राट विश्व के, अमर करें यह काशी, हम हैं भारतवासी, हम हैं भारतवासी “” 

हमारे देश में राष्ट्रगान गाने या उसके सम्मान में खड़े होने को लेकर समुदाय विशेष के लोग इसलिए हिचकते हैं कि उनके धर्मग्रंथ में ईश्वर से ऊपर किसी को नहीं माना गया है।

हर नागरिक को अपने राष्ट्र पर स्वाभाविक और उचित ही गर्व होता है। देशभक्ति की भावना उसे बचपन से ही अपने परिवेश, परिवार और पाठशाला से मिलनी शुरू हो जाती है। देश पर गर्व की अभिव्यक्ति वह विभिन्न अवसरों पर अपना राष्ट्रगान या राष्ट्रगीत गाकर करता है। हर देश में राष्ट्रगान गाने या बजाने को लेकर विधि-विधान है। विशेष मुद्रा में खड़े होकर उसे सम्मान देना होता है।

मगर विचित्र है कि हमारे देश में राष्ट्रगान गाने या उसके सम्मान में खड़े होने को लेकर समुदाय विशेष के लोग इसलिए हिचकते हैं कि उनके धर्मग्रंथ में ईश्वर से ऊपर किसी को नहीं माना गया है। यही वजह है कि मदरसों में राष्ट्रगान गाना और बजाना अनिवार्य नहीं किया गया। यह उनकी स्वेच्छा पर छोड़ दिया गया था कि वे चाहें तो गाएं या न गाएं।

मगर अब उत्तर प्रदेश सरकार ने हर मदरसे में रोज प्रार्थना के बाद राष्ट्रगान गाना अनिवार्य कर दिया है। स्कूलों में नया सत्र शुरू हो गया है और यह नियम तत्काल प्रभाव से लागू कर दिया गया है। यह आदेश सभी सरकारी अनुदान प्राप्त या गैर-अनुदान प्राप्त मदरसों पर लागू होगा। कयास लगाए जा रहे हैं कि यह आदेश बहुत सारे लोगों को नागवार गुजरेगा।

हालांकि यह पहली बार नहीं है, जब राष्ट्रगान या राष्ट्रगीत गाने को लेकर कोई आदेश जारी किया गया है। कुछ साल पहले सिनेमाघरों में भी फिल्म शुरू होने से पहले राष्ट्रगान बजाने का आदेश जारी किया गया था। मगर उसे लेकर बहुत सारे लोगों ने आपत्ति जताई। मामला अदालत में भी गया था, पर अदालत ने उस आदेश में कोई वैधानिक अड़चन नहीं नोट किया था।

इसी तरह राष्ट्रगीत यानी वंदे मातरम गाने को लेकर अल्पसंख्यक समुदाय ने एतराज जताया था कि चूंकि उनके धर्मग्रंथ में ईश्वर के अलावा किसी और के सामने सिर न झुकाने की बात कही गई है, इसलिए उन्हें यह गीत गाने का दबाव न डाला जाए। मगर राष्ट्रगान यानी जन गण मन गाने में भला क्यों किसी को एतराज होना चाहिए। इस आदेश को राजनीतिक नजरिए से देखा भी नहीं जाना चाहिए। यह तो हर नागरिक का कर्तव्य होना चाहिए कि वह अपना राष्ट्रगान गर्व के साथ गाए। जिस तरह दूसरे राष्ट्रीय प्रतीक हमारी पहचान बनते हैं, उसी तरह राष्ट्रगान भी पहचान है। इसे धर्म की राह में रोड़ा क्यों माना जाना चाहिए।

मगर इन दिनों जिस तरह हमारी राजनीति हर चीज को जाति, धर्म, समुदाय के पैमाने से नापती देखी जा रही है, उसमें विपक्षी दल इस फैसले को भी सियासी रंग दे दें, तो हैरानी नहीं। जो दल इसी तरह अपना जनाधार बनाने का प्रयास करते रहे हैं, उनके लिए यह एक आसान मुद्दा हो सकता है। मगर राष्ट्रगान को लेकर राजनीति होगी, तो यह देश की छवि के साथ मजाक ही कहा जाएगा।

रही बात मदरसों की, तो उन्हें इसमें हिचक क्यों होनी चाहिए। कहीं किसी भी देश में इस तरह राष्ट्रीय अस्मिता को धार्मिक पहचान से जोड़ कर नहीं देखा जाता। कोई धर्मग्रंथ यह नहीं कहता कि राष्ट्र पर गर्व करने से ईश्वर का अपमान होता है। पुरानी और जड़ हो चुकी मान्यताओं, अवधारणाओं को तोड़ना ही तो तरक्की की निशानी है। बहुत सारे अल्पसंख्यक बड़े गर्व से राष्ट्रगान गाते मिल जाएंगे। फिर मदरसों को इससे अलग क्यों रहना चाहिए। उन्हें भी बदलते समय के अनुसार अपने को ढालना चाहिए। राष्ट्र के प्रति अभिमान गर्व का विषय है, शर्म का नहीं।

देशभक्ति की भावना कब कब जागृत होती है?

दिलों में देशभक्ति की भावना जगाने का कोई निश्चित समय नहीं हो सकता। देशभक्ति सिर्फ बात करने से नहीं होती। यह राष्ट्र के लिए प्यार और सम्मान है और राष्ट्र के नागरिक के रूप में छोटे कर्तव्यों और जिम्मेदारियों को पूरा करके ये छोटे कर्तव्य और जिम्मेदारियां राष्ट्र को प्रगति के साथ-साथ विकसित करने में मदद करेंगी।

हम देश भक्ति कैसे कर सकते हैं?

रोजमर्रा के जीवन में हम अपना देश भूल जाते हैं। 'देशभक्ति' पाठ्यक्रम की शुरुआत की जा रही है ताकि प्रत्येक नागरिक अपने देश से सच्चा प्रेम कर सके।.
अपने काम के प्रति ईमानदारी का भाव।.
किसी चिड़िया की कहानी । ... .
लोगों में जात पात का अंतर / भेदभाव न रखना ।.
ईर्ष्या, अहंकार आदि न करना ।.
नियमों का पालन करना ।.

देशभक्ति की भावना क्या है?

देशभक्ति की भावना देशभक्ति सिर्फ किसी के लिए उसके देश के प्रति प्यार और सम्मान को ही नहीं बल्कि उसकी सेवा करने की इच्छा को भी परिभाषित करता है। एक सच्चा देशभक्त एक सक्रिय कार्यकर्ता हाता है जो अपने देश की प्रगति और विकास के लिए महत्वपुर्ण कार्य करता है और अपने देश का प्रतिनिधित्व करने में गर्व महसूस करता है।

आपके लिए देश भक्ति क्या है?

अपने देश से प्रेम करना और सदा उसका कल्याण सोचना राष्ट्रभक्ति या देशभक्ति (Patriotism) कहलाता है। राजनिष्ठा से बढकर देशनिष्ठा होती है। देशभक्ति सबसे पहले आती है, उसके बाद राजनिष्ठा. लेकिन देशभक्ति और राजनिष्ठा दोनो अलग अलग शब्द है.