सामान्य मानव गतिविधियों से इतर जो कुछ भी नया और खास घटित होता है, समाचार कहलाता है। मेले, उत्सव, दुर्घटनाएं, विपदा, सरकारी बिजली, पानी, शिक्षा, स्वास्थ्य जैसी सरकारी सुविधाओं का न मिलना सब समाचार हैं। विचार घटनाएं और समस्याओं से समाचार का आधार तैयार होता है। किसी भी घटना का अन्य लोगों पर पड़ने वाले प्रभाव और इसके बारे में पैदा होने वाली सोच से समाचार की अवधारणा का विकास होता है। किसी भी घटना विचार और समस्या से जब काफी लोगों का सरोकार हो तो यह कह सकते हैं कि यह समाचार बनने योग्य है। Show
समाचार किसी बात को लिखने या कहने का वह तरीका है जिसमें उस घटना, विचार, समस्या के सबसे अहम तथ्यों या पहलुओं तथा सूचनाओं और भविष्य में पड़ने वाले प्रभावों को व्यवस्थित तरीके से लिखा या बताया जाता है। इस शैली में किसी घटना का ब्यौरा कालानुक्रम के बजाये सबसे महत्वपूर्ण तथ्य या सूचना से शुरु होता है। समाचार का सीधा अर्थ है-सूचना। मनुष्य के आस-पास और चारों दिशाओं में घटने वाली सूचना। समाचार को अंग्रेजी के न्यूज का हिन्दी समरुप माना जाता है। हालांकि ‘न्यूज’ (NEWS) शब्द इस तरह तो नहीं बना है, परंतु इत्तफाकन ही सही इसका अर्थ और प्रमुख कार्य चारों दिशाओं अर्थात नॉर्थ, ईस्ट, वेस्ट और साउथ की सूचना देना भी है। अक्सर हम समाचारों के छोटा या बढ़ा छपने पर चर्चा करते हैं। अक्सर हमें लगता है कि हमारा समाचार छपना ही चाहिए, और वह भी बड़े आकार में। साथ ही यह भी लगता है कि खासकर हमारी अरुचि के समाचार बेकार ही आवश्यकता से बड़े आकारों या बड़ी हेडलाइन में छपे होते हैं। आइए जानते हैं क्या है समाचारों के बड़ा या छोटा छपने का आधार। इससे पूर्व मेरी 1995 के दौर में लिखी एक कुमाउनी कविता ‘चिनांण’ यानी चिन्ह देखेंः यानी उस दौर में समाचारों के कम ज्ञान के बावजूद कहा गया है कि समाचार यानी कुछ अलग होने वाली गतिविधियां बड़े आकार में सामान्य गतिविधियां लोकाचार के रूप में छोटे आकार में छपती हैं। इसके अलावा भी निम्न तत्व हैं जो किसी समाचार को छोटा या बड़ा बनाते हैं। इसमें इस बात से भी फर्क नहीं पड़ता है कि उस समाचार में शब्द कितने भी सीमित क्यों ना हों। प्रथम पेज पर कुछ लाइनों की खबर भी बड़ी खबर कही जाती है। वहीं एक या डेड़-दो कालम की खबर भी ‘बड़ी’ होने पर पूरे बैनर यानी सात-आठ कालम में भी पूरी चौड़ी हेडिंग तथा महत्वपूर्ण बिंदुआंे की सब हेडिंग या क्रासरों के साथ लगाई जा सकती है। समाचार को बड़ा या छोटा यानी कम या अधिक महत्व का बनाने के लिए निम्न तत्व महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, इन्हें समाचार का मूल्य कहा जाता है। 1 व्यापकता: समाचार का विषय जितनी व्यापकता लिये होगा, उतने ही अधिक लोग उस समाचार में रुचि लेंगे, इसलिए वह बड़े आकार में छपेगा। 2 नवीनता: जिन बातों को मनुष्य पहले से जानता है वे बातें समाचार नही बनती। ऐसी बातें समाचार बनती है जिनमें कोई नई सूचना, कोई नई जानकारी हो। इस प्रकार समाचार का बड़ा गुण है-नई सूचना, यानी समाचार में नवीनता होनी चाहिये। कोई समाचार कितना नया या तत्काल प्राप्त हुआ हो, उसे जानने की उतनी ही अधिक चाहत होती है। कोई भी पुरानी या पहले से पता जानकारी को दुबारा नहीं लेना चाहता। समाचार पत्रों के मामले में एक दिन पुराने समाचार को ‘रद्दी’ कहा जाता है, और उसका कोई मोल नहीं होता। वहीं टीवी के मामले में एक सेकेंड पहले प्राप्त समाचार अगले सेकेंड में ही बासी हो जाता है। कहा जाने लगा है-News this second and History on next second. 3 असाधारणता: हर समाचार एक नई सूचना होता है, परंतु यह भी सच है कि हर नई सूचना समाचार नही होती। जिस नई सूचना में कुछ असाधारणता होगी वही समाचार कहलायेगी। अर्थात नई सूचना में कुछ ऐसी असाधारणता होनी चाहिये जो उसमें समाचार बनने की अंतरनिहित शक्ति पैदा होती है। काटना कुत्ते का स्वभाव है। यह सभी जानते हैं। मगर किसी मनुष्य द्वारा कुत्ते को काटा जाना समाचार है। क्योंकि कुत्ते को काटना मनुष्य का स्वभाव नही है। जिस नई सूचना में असाधारणता नहीं होती वह समाचार नहीं लोकाचार कहलाता है। 4 सत्यता और प्रमाणिकता: समाचार में किसी घटना की सत्यता या तथ्यात्मकता होनी चाहिये। समाचार अफवाहों या उड़ी-उड़ायी बातों पर आधारित नही होते हैं। वे सत्य घटनाओं की तथ्यात्मक जानकारी होते हैं। सत्यता या तथ्यता होने से ही कोई समाचार विश्वसनीय और प्रमाणिक होते हैं। 5 रुचिपूर्णता: किसी नई सूचना में सत्यता होने से ही वह समाचार नहीं बन जाती है। उसमें अधिक लोगों की दिलचस्पी भी होनी चाहिये। कोई सूचना कितनी ही आसाधारण क्यों न हो अगर उसमें लोगों की रुचि न हो, तो वह सूचना समाचार नहीं बन पायेगी। कुत्ते द्वारा किसी सामान्य व्यक्ति को काटे जाने की सूचना समाचार नहीं बन पायेगी। कुत्ते द्वारा काटे गये व्यक्ति को होने वाले गंभीर बीमारी की सूचना समाचार बन जायेगी क्योंकि उस महत्वपूर्ण व्यक्ति में अधिकाधिक लोगों की दिलचस्पी हो सकती है। 6 प्रभावशीलता: समाचार दिलचस्प ही नही प्रभावशील भी होने चाहिये। हर सूचना व्यक्तियों के किसी न किसी बड़े समूह, बड़े वर्ग से सीधे या अप्रत्यक्ष रुप से जुड़ी होती है। अगर किसी घटना की सूचना समाज के किसी समूह या वर्ग को प्रभावित नही करती तो उस घटना की सूचना का उनके लिये कोई मतलब नही होगा। 7 स्पष्टता: एक अच्छे समाचार की भाषा सरल, सहज और स्पष्ट होनी चाहिये। किसी समाचार में दी गयी सूचना कितनी ही नई, कितनी ही असाधारण, कितनी ही प्रभावशाली क्यों न हो, लेकिन अगर वह सूचना सरल और स्पष्ट भाषा में न हो तो वह सूचना बेकार साबित होगी। क्योंकि ज्यादातर लोग उसे समझ नहीं पायेंगे। इसलिये समाचार की भाषा सीधी और स्पष्ट होनी चाहिये। ऐतिहासिक विकासइस सिद्धांत का प्रयोग 19 वीं सदी के मध्य से शुरु हो गया था, लेकिन इसका विकास अमेरिका में गृहयुद्ध के दौरान हुआ था। उस समय संवाददाताओं को अपनी खबरें टेलीग्राफ संदेश के जरिये भेजनी पड़ती थी, जिसकी सेवायें अनियमित, महंगी और दुर्लभ थी। यही नहीं कई बार तकनीकी कारणों से टेलीग्राफ सेवाओं में बाधा भी आ जाती थी। इसलिये संवाददाताओं को किसी खबर कहानी लिखने के बजाये संक्षेप में बतानी होती थी और उसमें भी सबसे महत्वपूर्ण तथ्य और सूचनाओं की जानकारी पहली कुछ लाइनों में ही देनी पड़ती थी। लेखन प्रक्रियाउल्टा पिरामिड सिद्धांत : उल्टा पिरामिड सिद्धांत समाचार लेखन का बुनियादी सिद्धांत है। यह समाचार लेखन का सबसे सरल, उपयोगी और व्यावहारिक सिद्धांत है। समाचार लेखन का यह सिद्धांत कथा या कहनी लेखन की प्रक्रिया के ठीक उलट है। इसमें किसी घटना, विचार या समस्या के सबसे महत्वपूर्ण तथ्यों या जानकारी को सबसे पहले बताया जाता है, जबकि कहनी या उपन्यास में क्लाइमेक्स सबसे अंत में आता है। इसे उल्टा पिरामिड इसलिये कहा जाता है क्योंकि इसमें सबसे महत्वपूर्ण तथ्य या सूचना पिरामिड के निचले हिस्से में नहीं होती है और इस शैली में पिरामिड को उल्टा कर दिया जाता है। इसमें सबसे महत्वपूर्ण सूचना पिरामिड के सबसे उपरी हिस्से में होती है और घटते हुये क्रम में सबसे कम महत्व की सूचनायें सबसे निचले हिस्से में होती है।समाचार लेखन की उल्टा पिरामिड शैली के तहत लिखे गये समाचारों के सुविधा की दृष्टि से मुख्यतः तीन हिस्सों में विभाजित किया जाता है-मुखड़ा या इंट्रो या लीड, बॉडी और निष्कर्ष या समापन। इसमें मुखड़ा या इंट्रो समाचार के पहले और कभी-कभी पहले और दूसरे दोनों पैराग्राफ को कहा जाता है। मुखड़ा किसी भी समाचार का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा होता है क्योंकि इसमें सबसे महत्वपूर्ण तथ्यों और सूचनाओं को लिखा जाता है। इसके बाद समाचार की बॉडी आती है, जिसमें महत्व के अनुसार घटते हुये क्रम में सूचनाओं और ब्यौरा देने के अलावा उसकी पृष्ठभूमि का भी जिक्र किया जाता है। सबसे अंत में निष्कर्ष या समापन आता है। समाचार लेखन में निष्कर्ष जैसी कोई चीज नहीं होती है और न ही समाचार के अंत में यह बताया जाता है कि यहां समाचार का समापन हो गया है। मुखड़ा या इंट्रो या लीड : उल्टा पिरामिड शैली में समाचार लेखन का सबसे महत्वपूर्ण पहलू मुखड़ा लेखन या इंट्रो या लीड लेखन है। मुखड़ा समाचार का पहला पैराग्राफ होता है, जहां से कोई समाचार शुरु होता है। मुखड़े के आधार पर ही समाचार की गुणवत्ता का निर्धारण होता है। एक आदर्श मुखड़ा में किसी समाचार की सबसे महत्वपूर्ण सूचना आ जानी चाहिये और उसे किसी भी हालत में 35 से 50 शब्दों से अधिक नहीं होना चाहिये। किसी मुखड़े में मुख्यतः छह सवाल का जवाब देने की कोशिश की जाती है दृ क्या हुआ, किसके साथ हुआ, कहां हुआ, कब हुआ, क्यों और कैसे हुआ है। आमतौर पर माना जाता है कि एक आदर्श मुखड़े में सभी छह ककार का जवाब देने के बजाये किसी एक मुखड़े को प्राथमिकता देनी चाहिये। उस एक ककार के साथ एक-दो ककार दिये जा सकते हैं। बॉडी: समाचार लेखन की उल्टा पिरामिड लेखन शैली में मुखड़े में उल्लिखित तथ्यों की व्याख्या और विश्लेषण समाचार की बॉडी में होती है। किसी समाचार लेखन का आदर्श नियम यह है कि किसी समाचार को ऐसे लिखा जाना चाहिये, जिससे अगर वह किसी भी बिन्दु पर समाप्त हो जाये तो उसके बाद के पैराग्राफ में ऐसा कोई तथ्य नहीं रहना चाहिये, जो उस समाचार के बचे हुऐ हिस्से की तुलना में ज्यादा महत्वपूर्ण हो। अपने किसी भी समापन बिन्दु पर समाचार को पूर्ण, पठनीय और प्रभावशाली होना चाहिये। समाचार की बॉडी में छह ककारों में से दो क्यों और कैसे का जवाब देने की कोशिश की जाती है। कोई घटना कैसे और क्यों हुई, यह जानने के लिये उसकी पृष्ठभूमि, परिपेक्ष्य और उसके व्यापक संदर्भों को खंगालने की कोशिश की जाती है। इसके जरिये ही किसी समाचार के वास्तविक अर्थ और असर को स्पष्ट किया जा सकता है। निष्कर्ष या समापन : समाचार का समापन करते समय यह ध्यान रखना चाहिये कि न सिर्फ उस समाचार के प्रमुख तथ्य आ गये हैं बल्कि समाचार के मुखड़े और समापन के बीच एक तारतम्यता भी होनी चाहिये। समाचार में तथ्यों और उसके विभिन्न पहलुओं को इस तरह से पेश करना चाहिये कि उससे पाठक को किसी निर्णय या निष्कर्ष पर पहुंचने में मदद मिले। समाचार संपादनसमाचार संपादन का कार्य संपादक का होता है। संपादक प्रतिदिन उपसंपादकों और संवाददाताओं के साथ बैठक कर प्रसारण और कवरेज के निर्देश देते हैं। समाचार संपादक अपने विभाग के समस्त कार्यों में एक रूपता और समन्वय स्थापित करने की दिशा में महत्वपूर्ण योगदान देता है। संपादन की प्रक्रियारेडियो में संपादन का कार्य प्रमुख रूप से दो भागों में विभक्त होता है। 1. विभिन्न श्रोतों से आने वाली खबरों का चयन 2. चयनित खबरों का संपादन : रेडियो के किसी भी स्टेशन में खबरों के आने के कई स्रोत होते हैं। जिनमें संवाददाता, फोन, जनसंपर्क, न्यूज एजेंसी, समाचार पत्र और आकाशवाणी मुख्यालय प्रमुख हैं। इन स्रोतों से आने वाले समाचारों को राष्ट्रीय, अंतर्राष्ट्रीय और क्षेत्रीय स्तर पर खबरों का चयन किया जाता है। यह कार्य विभाग में बैठे उपसंपादक का होता है। उदाहरण के लिए यदि हम आकाशवाणी के भोपाल केन्द्र के लिए समाचार बुलेटिन तैयार कर रहे हैं तो हमें लोकल याप्रदेश स्तर की खबर को प्राथमिकता देनी चाहिए। तत् पश्चात् चयनित खबरों का भी संपादन किया जाना आवश्यक होता है। संपादन की इस प्रक्रिया में बुलेटिन की अवधि को ध्यान में रखना जरूरी होता है। किसी रेडियो बुलेटिन की अवधि 5, 10 या अधिकतम 15मिनट होती है। संपादन के महत्वपूर्ण चरण1. समाचार आकर्षक होना चाहिए। 2. भाषा सहज और सरल हो। 3. समाचार का आकार बहुत बड़ा और उबाऊ नहीं होना चाहिए। 4. समाचार लिखते समय आम बोल-चाल की भाषा के शब्दों का प्रयोग करना चाहिए। 5. शीर्षक विषय के अनुरूप होना चाहिए। 6. समाचार में प्रारंभ से अंत तक तारतम्यता और रोचकता होनी चाहिए। 7. कम शब्दों में समाचार का ज्यादा से ज्यादा विवरण होना चाहिए। 8. रेडियो बुलेटिन के प्रत्येक समाचार में श्रोताओं के लिए सम्पूर्ण जानकारी होना चाहिये । 9. संभव होने पर समाचार स्रोत का उल्लेख होना चाहिए। 10. समाचार छोटे वाक्यों में लिखा जाना चाहिए। 11. रेडियो के सभी श्रोता पढ़े लिखे नहीं होते, इस बात को ध्यान में रखकर भाषा और शब्दों का चयन किया जाना चाहिए। 12. रेडियो श्रव्य माध्यम है अतः समाचार की प्रकृति ऐसी होनी चाहिए कि एक ही बार सुनने पर समझ आ जाए। 13. समाचार में तात्कालिकता होना अत्यावश्यक है। पुराना समाचार होने पर भी इसे अपडेट कर प्रसारित करना चाहिए। 14. समाचार लिखते समय व्याकरण और चिह्नो पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता होती है, ताकि समाचार वाचक आसानी से पढ़ सके। समाचार संपादन के तत्वसंपादन की दृष्टि से किसी समाचार के तीन प्रमुख भाग होते हैं- 1. शीर्षक- किसी भी समाचार का शीर्षक उस समाचार की आत्मा होती है। शीर्षक के माध्यम से न केवल श्रोता किसी समाचार को पढ़ने के लिए प्रेरित होता है, अपितु शीर्षकों के द्वारा वह समाचार की विषय-वस्तु को भी समझ लेता है। शीर्षक का विस्तार समाचार के महत्व को दर्शाता है। एक अच्छे शीर्षक में निम्नांकित गुण पाए जाते हैं- 1. शीर्षक बोलता हुआ हो। उसके पढ़ने से समाचार की विषय-वस्तु का आभास हो जाए। 2. शीर्षक तीक्ष्ण एवं सुस्पष्ट हो। उसमें श्रोताओं को आकर्षित करने की क्षमता हो। 3. शीर्षक वर्तमान काल में लिखा गया हो। वर्तमान काल मे लिखे गए शीर्षक घटना की ताजगी के द्योतक होते हैं। 4. शीर्षक में यदि आवश्यकता हो तो सिंगल-इनवर्टेड कॉमा का प्रयोग करना चाहिए। डबल इनवर्टेड कॉमा अधिक स्थान घेरते हैं। 5. अंग्रेजी अखबारों में लिखे जाने वाले शीर्षकों के पहले ‘ए’ ‘एन’, ‘दी’ आदि भाग का प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए। यही नियम हिन्दी में लिखे शीर्षकों पर भी लागू होता है। 6. शीर्षक को अधिक स्पष्टता और आकर्षण प्रदान करने के लिए सम्पादक या उप-सम्पादक का सामान्य ज्ञान ही अन्तिम टूल या निर्णायक है। 7. शीर्षक में यदि किसी व्यक्ति के नाम का उल्लेख किया जाना आवश्यक हो तो उसे एक ही पंक्ति में लिखा जाए। नाम को तोड़कर दो पंक्तियों में लिखने से शीर्षक का सौन्दर्य समाप्त हो जाता है। 8. शीर्षक कभी भी कर्मवाच्य में नहीं लिखा जाना चाहिए। 2. आमुख- आमुख लिखते समय ‘पाँच डब्ल्यू’ तथा एक-एच के सिद्धांत का पालन करना चाहिए। अर्थात् आमुख में समाचार से संबंधित छह प्रश्न-Who, When, Where, What और How का अंतर पाठक को मिल जाना चाहिए। किन्तु वर्तमान में इस सिद्धान्त का अक्षरशः पालन नहीं हो रहा है। आज छोटे-से-छोटे आमुख लिखने की प्रवृत्ति तेजी पकड़ रही है। फलस्वरूप इतने प्रश्नों का उत्तर एक छोटे आमुख में दे सकना सम्भव नहीं है। एक आदर्श आमुख में 20 से 25 शब्द होना चाहिए। 3. समाचार का ढाँचा- समाचार के ढाँचे में महत्वपूर्ण तथ्यों को क्रमबद्ध रूप से प्रस्तुत करना चाहिए। सामान्यतः कम से कम 150 शब्दों तथा अधिकतम 400 शब्दों में लिखा जाना चाहिए। श्रोताओं को अधिक लम्बे समाचार आकर्षित नहीं करते हैं। समाचार सम्पादन में समाचारों की निम्नांकित बातों का विशेष ध्यान रखना पड़ता है- 1. समाचार किसी कानून का उल्लंघन तो नहीं करता है। 2. समाचार नीति के अनुरूप हो। 3. समाचार तथ्याधारित हो। 4. समाचार को स्थान तथा उसके महत्व के अनुरूप विस्तार देना। 5. समाचार की भाषा पुष्ट एवं प्रभावी है या नहीं। यदि भाषा नहीं है तो उसे पुष्ट बनाएँ। 6. समाचार में आवश्यक सुधार करें अथवा उसको पुर्नलेखन के लिए वापस कर दें। 7. समाचार का स्वरूप सनसनीखेज न हो। 8. अनावश्यक अथवा अस्पस्ट शब्दों को समाचार से हटा दें। 9. ऐसे समाचारों को ड्राप कर दिया जाए, जिनमें न्यूज वैल्यू कम हो और उनका उद्देश्य किसी का प्रचार मात्र हो। 10. समाचार की भाषा सरल और सुबोध हो। 11. समाचार की भाषा व्याकरण की दृष्टि से अशुद्ध न हो। 12. वाक्यों में आवश्यकतानुसार विराम, अद्र्धविराम आदि संकेतों का समुचित प्रयोग हो। 13. समाचार की भाषा में एकरूपता होना चाहिए। 14. समाचार के महत्व के अनुसार बुलेटिन में उसको स्थान प्रदान करना। समाचार-सम्पादक की आवश्यकताएँ एक अच्छे सम्पादक अथवा उप-सम्पादक के लिए आवश्यक होता है कि वह समाचार जगत में अपने ज्ञान-वृद्धि के लिए निम्नांकित पुस्तकों को अपने संग्रहालय में अवश्य रखें- 1. सामान्य ज्ञान की पुस्तकें। 2. एटलस। 3. शब्दकोश। 4. भारतीय संविधान। 5. प्रेस विधियाँ। 6. इनसाइक्लोपीडिया। 7. मन्त्रियों की सूची। 8. सांसदों एवं विधायकों की सूची। 9. प्रशासन व पुलिस अधिकारियों की सूची। 10. ज्वलन्त समस्याओं सम्बन्धी अभिलेख। 11. भारतीय दण्ड संहिता (आई.पी.सी.) पुस्तक। 12. दिवंगत नेताओं तथा अन्य महत्वपूर्ण व्यक्तियों से सम्बन्धित अभिलेख। 13. महत्वपूर्ण व्यक्तियों व अधिकारियों के नाम, पते व फोन नम्बर। 14. पत्रकारिता सम्बन्धी नई तकनीकी पुस्तकें। 15. उच्चारित शब्द समाचार के स्रोतकभी भी कोई समाचार निश्चित समय या स्थान पर नहीं मिलते। समाचार संकलन के लिए संवाददाताओं को फील्ड में घूमना होता है। क्योंकि कहीं भी कोई ऐसी घटना घट सकती है, जो एक महत्वपूर्ण समाचार बन सकती है। समाचार प्राप्ति के कुछ महत्वपूर्ण स्रोत निम्न हैं- 1. संवाददाता- टेलीविजन और समाचार-पत्रों में संवाददाताओं की नियुक्ति ही इसलिए होती हैकि वह दिन भर की महत्वपूर्ण घटनाओं का संकलन करें और उन्हें समाचार का स्वरूप दें। 2. समाचार समितियाँ- देश-विदेश में अनेक ऐसी समितियाँ हैं जो विस्तृत क्षेत्रों के समाचारों को संकलित करके अपने सदस्य अखबारों और टीवी को प्रकाशन और प्रसारण के लिए प्रस्तुत करती हैं। मुख्य समितियों में पी.टी.आई. (भारत), यू.एन.आई. (भारत), ए.पी. (अमेरिका), ए.एफ.पी. (फ्रान्स), रॉयटर (ब्रिटेन)। 3. प्रेस विज्ञप्तियाँ- सरकारी विभाग, सार्वजनिक अथवा व्यक्तिगत प्रतिष्ठान तथा अन्य व्यक्ति या संगठन अपने से सम्बन्धित समाचार को सरल और स्पष्ट भाषा में लिखकर ब्यूरो आफिस में प्रसारण के लिए भिजवाते हैं। सरकारी विज्ञप्तियाँ चार प्रकार की होती हैं। (अ) प्रेस कम्युनिक्स- शासन के महत्वपूर्ण निर्णय प्रेस कम्युनिक्स के माध्यम से समाचार-पत्रों को पहुँचाए जाते हैं। इनके सम्पादन की आवश्यकता नहीं होती है। इस रिलीज के बाएँ ओर सबसे नीचे कोने पर सम्बन्धित विभाग का नाम, स्थान और निर्गत करने की तिथि अंकित होती है। जबकि टीवी के लिए रिर्पोटर स्वयं जाता है (ब) प्रेस रिलीज-शासन के अपेक्षाकृत कम महत्वपूर्ण निर्णय प्रेस रिलीज के द्वारा समाचार-पत्र और टी.वी. चैनल के कार्यालयों को प्रकाशनार्थ भेजे जाते हैं। (स) हैण्ड आउट- दिन-प्रतिदिन के विविध विषयों, मन्त्रालय के क्रिया-कलापों की सूचना हैण्ड-आउट के माध्यम से दी जाती है। यह प्रेस इन्फारमेशन ब्यूरो द्वारा प्रसारित किए जाते हैं। (द) गैर-विभागीय हैण्ड आउट- मौखिक रूप से दी गई सूचनाओं को गैर-विभागीय हैण्ड आउट के माध्यम से प्रसारित किया जाता है। 4. पुलिस विभाग- सूचना का सबसे बड़ा केन्द्र पुलिस विभाग का होता है। पूरे जिले में होनेवाली सभी घटनाओं की जानकारी पुलिस विभाग की होती है, जिसे पुलिसकर्मी-प्रेस के प्रभारी संवाददाताओं को बताते हैं। 5. सरकारी विभाग- पुलिस विभाग के अतिरिक्त अन्य सरकारी विभाग समाचारों के केन्द्र होते हैं। संवाददाता स्वयं जाकर खबरों का संकलन करते हैं अथवा यह विभाग अपनीउपलब्धियों को समय-समय पर प्रकाशन हेतु समाचार-पत्र और टीवी कार्यालयों को भेजते रहते हैं। 6. चिकित्सालय- शहर के स्वास्थ्य संबंधी समाचारों के लिए सरकारी चिकित्सालयों अथवा बड़े प्राइवेट अस्पतालों से महत्वपूर्ण सूचनाएँ प्राप्त होती हैं। 7. कॉरपोरेट आफिस- निजी क्षेत्र की कम्पनियों के आफिस अपनी कम्पनी से सम्बन्धित समाचारों को देने में दिलचस्पी रखते हैं। टेलीविजन में कई चैनल व्यापार पर आधारित हैं। 8. न्यायालय- जिला अदालतों के फैसले व उनके द्वारा व्यक्ति या संस्थाओं को दिए गए निर्देश समाचार के प्रमुख स्रोत हैं। 9. साक्षात्कार- विभागाध्यक्षों अथवा अन्य विशिष्ट व्यक्तियों के साक्षात्कार समाचार के महत्वपूर्ण अंग होते हैं। 10. समाचारों का फॉलो-अप या अनुवर्तन- महत्वपूर्ण घटनाओं की विस्तृत रिपोर्ट रुचिकर समाचार बनते हैं। दर्शक चाहते हैं कि बड़ी घटनाओं के सम्बन्ध में उन्हें सविस्तार जानकारी मिलती रहे। इसके लिए संवाददाताओं को घटनाओं की तह तक जाना पड़ता है। 11. पत्रकार वार्ता- सरकारी तथा गैर सरकारी संस्थान अक्सर अपनी उपलब्धियों को प्रकाशित करने के लिए पत्रकारवार्ता का आयोजन करते हैं। उनके द्वारा दिए गए वक्तव्य समृद्ध समाचारों को जन्म देते हैं। उपर्युक्त स्रोतों के अतिरिक्त सभा, सम्मेलन, साहित्यिक व सांस्कृतिक कार्यक्रम,विधानसभा, संसद, मिल, कारखाने और वे सभी स्थल जहाँ सामाजिक जीवन की घटना मिलती है, समाचार के महत्वपूर्ण स्रोत होते हैं। सम्पादन व सम्पादकीय विभागसम्पादन व सम्पादकीय विभाग पत्रकारिता का सर्वाधिक महत्वपूर्ण अंग है। किसी भी समाचार पत्र-पत्रिका अथवा अन्य जनसंचार माध्यम का स्तर उसके सम्पादन व सम्पादकीय विभाग पर निर्भर करता है। सम्पादकीय विभाग जितना सक्रिय, योग्य व व्यावहारिक होगा, वह मीडिया उतना ही अधिक प्रचलित व ख्याति प्राप्त होगा। इसलिए पत्रकारिता को समझने के लिए इस कार्य व विभाग की जानकारी होना अति आवश्यक
है। विज्ञापन के माध्यम एवं प्रकारविज्ञापन का उद्देश्य अपने मकसद की पूर्ति के लिए अपने संदेश को अधिक से अधिक लोगों तक संप्रेषित करना है। ताकि विज्ञापनकर्ता को अधिक
से अधिक लाभ हो सके। विज्ञापन करने वाला यानी विज्ञापनकर्ता अपना संदेश देने के लिए विज्ञापन के विभिन्न माध्यमों का इस्तेमाल करता है। विज्ञापन का संदेश लोगों तक पहुचाने के लिए विज्ञापनकर्ता जिन प्रमुख चीजों पर निर्भर रहता है उनमें बाजार, विज्ञापन का संदेश, विज्ञापन की बनावट के साथ-साथ विज्ञापन के माध्यम की भी महत्वपूर्ण भूमिका होती है। विज्ञापन के माध्यम विज्ञापनों
के प्रकार विज्ञापन माध्यमों को उनकी विकास यात्रा के आधार पर भी दो श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है। विज्ञापन के प्रारम्भिक माध्यम और विज्ञापन के आधुनिक माध्यम। हालाँकि इस वर्गीकरण का अर्थ यह नहीं है कि विज्ञापन के जो प्रारम्भिक माध्यम थे वो अब उपयोग में नहीं लाए जाते। उनका आज भी बखूबी इस्तेमाल होता है। आधुनिक माध्यम अपेक्षाकृत नए हैं और उनमें अब भी बदलाव और विकास जारी है। विज्ञापन के प्रारम्भिक माध्यम विज्ञापन के आधुनिक माध्यम विज्ञापन के प्रकाशन माध्यम समाचार पत्र : समाचार पत्रों में विज्ञापन देने के लाभ और सीमाएँ दोनों ही हैं। समाचार-पत्र में विज्ञापन का प्रकाशन इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों (टेलीविजन तथा रेडियो) की अपेक्षा सस्ता होता है। एक निश्चित भौगालिक सीमा में रहने वाले समूह के हिसाब से विज्ञापन क्षेत्रीय अथवा प्रांतीय अखबारों में दिए जा सकते है। राष्ट्रीय स्तर पर उत्पाद तथा सेवाओं संबंधी विज्ञापन के लिए राष्ट्रीय समाचारपत्रों में विज्ञापन की भाषा और
प्रस्तुति में उपभोक्ता की मनोवृति को ध्यान में रखते हुए, समय-समय पर बदलाव लाकर अधिक प्रभावशाली बनाया जा सकता है। डायरेक्ट मेल : कैटलॉग : कलैण्डर : फोल्डर और पैम्फलेट : विज्ञापन के प्रसारण माध्यम रेडियो : माध्यम के रूप में रेडियो का उपयोग कर विज्ञापनों को अनेक स्वरूपों में प्रस्तुत किया जा सकता है, जैसे – रेडियो विज्ञापनों में लोकगीतों और संगीत का प्रयोग इन्हें अति विशिष्ट बना देता है। ऐसे अनेक रेडियो विज्ञापन हैं, जो अपनी सुरीली धुन और गेय शैली के कारण लोगों की जुबान पर चढ़ गए। हाल के वर्षों में एफएम रेडियो का तेजी से विकास होने के कारण अब शहरी क्षेत्रों में भी रेडियो विज्ञापनों की लोकप्रियता खूब बढ़ गई है। टेलीविजन टेलीविजन पर प्रसारित होने वाले विज्ञापन मुख्यतः दो प्रकार के होते है। स्पॉट एडवरटिजमेंट या समयबद्ध विज्ञापन बहुत छोटी अवधि के होते हैं। इस तरह के विज्ञापनों में उत्पाद की गुणवत्ता, खूबियों, मूल्य आदि के बारे में संक्षिप्त जानकारी दी
जाती है। इनमें उत्पाद को आकर्षक रूप में प्रस्तुत किया जाता है और प्रायः इनका प्रभाव चैंकाने वाला होता है। इस तरह के कार्यक्रम न्यूज चैनलों में समाचारों के बीच-बीच में, खेलों के प्रसारण के दौरान बीच-बीच में या अन्य चैनलों में कार्यक्रमों के बीच में कहीं भी दिखाए जा सकते हैं। क्रिकेट के मैचों में तो हर ओवर के बाद या किसी खिलाड़ी के आऊट होने पर भी इस तरह के विज्ञापन दिखा दिए जाते हैं। फिल्म व वीडियो : इंटरनेट : टेलीविजन न्यूजभारतीय पौराणिक ग्रंथ महाभारत की कथा में संजय द्वारा धृतराष्ट्र के पास बैठे-बैठे महाभारत के युद्व क्षेत्र का आंखों देखा हाल सुनाने का उल्लेख भले ही मिलता हो मगर आधुनिक टेलीविजन के इतिहास को अभी 100 वर्ष भी पूरे नहीं हुए हैं। सन् 1900 में पहली बार रूसी वैज्ञानिक कोंस्तातिन पेस्र्की ने सबसे पहली बार टेलीविजन शब्द का इस्तेमाल चित्रों को एक
स्थान से दूसरे स्थान तक भेजने वाले एक प्रारम्भिक यंत्र के लिए किया था। 1922 के आस-पास पहली बार टेलीविजन का प्रारम्भिक सार्वजनिक प्रदर्शन हुआ था। 1926 में इंग्लैण्ड के जॉन बेयर्ड और अमेरिका के चाल्र्स फ्रांसिस जेनकिंस ने मैकेनिकल टेलीविजन के जरिए चित्रों को एक स्थान से दूसरे स्थान तक भेजने का सफल प्रयोग किया। भारत में टेलीविजन का आगमन 1959 में हो गया था। प्रारम्भ में यह माना गया था कि भारत जैसे गरीब देश में इस महंगी टैक्नोलॉजी वाले माध्यम का कोई भविष्य नहीं है। लेकिन धीरे-धीरे यह धारणा खुद ब खुद बदलती चली गई। 1964 में दूरदर्शन पर पहली बार न्यूज की शुरूआत हुई। शुरू में यह रेडियो यानी आकाशवाणी के अधीन था। इसका असर दूरदर्शन के समाचारों पर भी दिखाई देता था। लेकिन 1982 में दिल्ली एशियाई खेलों के आयोजन, एशियाड के साथ
ही देश में रंगीन टेलीविजन की शुरूआत हो गई और यहीं से दूरदर्शन के समाचारों में एक नए युग की शुरूआत भी हुई। इसी दौर में हिंदी के अलावा उर्दू, संस्कृत और अन्य क्षेत्रीय भाषाओं के न्यूज बुलेटिन भी शुरू हुए। संसदीय चुनावों के कवरेज ने दूरदर्शन न्यूज को काफी लोकप्रिय बनाया मगर उसे अभी निजी चैनलों की चुनौती नहीं मिली थी। रेडियो इलेक्ट्रानिक मीडिया का पहला क्रातिकारी कदम रेडियो को माना जाता है। उन्नीसवीं सदी के अंतिम दशक में सन् 1895 में इटली के वैज्ञानिक गुगलीनो मारकोनी ने बेतार संकेतों
को इलेक्ट्रोमैग्नेटिक हार्टीजियन तरंगों द्वारा प्रसारित करने में सफलता हासिल कर रेडियो की अवधारणा को जन्म दिया। जल्द ही रेडियो, टेलीफोन और बेतार का तार समुद्री यातायात में संचार का प्रमुख साधन बन गये। प्रथम विश्व युद्ध में सैनिक संचार और प्रचार के लिए भी रेडियो का खूब इस्तेमाल हुआ था। विश्व युद्व के बाद रेडियो का इस्तेमाल जनसंचार मीडिया के तौर पर किए जाने के लिए परीक्षण शुरू हुए और 1920 में अमेरिका के पिट्सवर्ग में दुनिया का पहला रेडियो प्रसारण केन्द्र स्थापित हुआ। 23 फरवरी 1920 को मारकोनी की
कंपनी ने भी चैम्सफोर्ड, इंग्लैण्ड से अपने पहले रेडियो कार्यक्रम का सफल प्रसारण किया। 14 नवम्बर 1922 को लन्दन में ब्रिटिश ब्राडकास्टिंग कंपनी की स्थापना हुई। मारकोनी भी इसके संस्थापकों में एक थे। एक जनवरी 1927 को इस कंपनी को ब्रिटिश ब्राडकास्टिंग कार्पोरेशन, बीबीसी मंे परिवर्तित कर दिया गया। रेडियो क्योंकि बोले जाने वाले शब्दों का माध्यम है। इसलिए इसके समाचारों की भाषा भी प्रिंट्र मीडिया के समाचारों से कुछ अलग होती है। इसलिए रेडियो के लिए समाचार बनाते समय कुछ सावधानियां जरूरी हैं। इस प्रकार कहा जा सकता है कि रेडियो निःसंदेह आज भी इलेक्ट्रानिक संचार माध्यमों में अग्रणी है और एफएम की युवाओं के बीच बढ़ती लोकप्रियता ने इसे एक प्रकार से फिर से पुर्नजीवित कर दिया है और एक बार फिर लोग रेडियो की ओर से मुड़ने लगे हैं। फीचर
फीचर की विशेषतायें
फीचर लेखन की प्रक्रिया
फीचर संरचना से जुड़े अन्य महत्वपूर्ण पहलूशीर्षक किसी रचना का यह एक जरुरी हिस्सा होता है और यह उसकी मूल संवेदना या उसके मूल विषय का बोध कराता है। फीचर का शीर्षक मनोरंजक और कलात्मक होना चाहिये जिससे वह पाठकों में रोचकता उत्पन्न कर सके। छायाचित्र छायाचित्र होने से फीचर की प्रस्तुति कलात्मक हो जाती है जिसका पाठक पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है। विषय से संबंधित छायाचित्र देने से विषय और भी मुखर हो उठता है। साथ ही छायाचित्र ऐसा होना चाहिये जो फीचर के विषय को मुखरित करे फीचर को कलात्मक और रोचक बनाये तथा पाठक के भीतर विषय की प्रस्तुति के प्रति विश्वसनीयता बनाये। ब्रांड प्रबंधनब्रांड प्रबंधन को समझने से पूर्व समझें कि ब्रांड क्या है। कुछ ऐसे उत्पाद भी हैं, जिनकी कंपनियों के नाम ही उस उत्पाद के नाम के रूप में स्थापित हो गये हैं, जैसे फोटो स्टेट की जीरोक्स मशीन, टुल्लू पंप व जेसीबी मशीन। गौरतलब है कि जीरोक्स, टुल्लू व जेसीबी कंपनियों के नाम हैं, न कि उत्पाद के लेकिन उत्पाद के नाम के रूप में यही प्रचलन हैं। ब्रांड का लाभ यह है कि इसके जरिये सामान्य वस्तु को भी असामान्य कीमत पर बेचा जा सकता है। ब्रांड से एक ओर जहां उच्च गुणवत्ता की उम्मीद की जाती है, तो दूसरी ओर उसके उपभोक्ताओं को किसी ब्रांड वाले उत्पाद के प्रयोग से आम लोगों से हटकर दिखने की आत्म संतुष्टि भी मिलती है। ब्रांड को विकसित करने में गारंटी, वारंटी जैसी बिक्री बाद सेवाओं की काफी बड़ी भूमिका रहती है, जिसके जरिये उत्पाद के प्रति अपने प्रयोगकर्ताओं, ग्राहकों के मन में अपनत्व, विश्वास का भाव जागृत किया जाता है। और कोई उत्पाद यदि इन तरीकों से ब्रांड के रूप में स्थापित हो जाता है तो फिर ब्रांड की बडी धनराशि में खरीद-बिक्री भी की जाती है। क्या है ब्रांड :ब्रांड उत्पाद की कंपनी के नाम व ‘लोगो’का सम्मिश्रण है, जिसकी अपनी छवि से उपभोक्ताओं के बीच उस उत्पाद का जुड़ाव उत्पन्न होता है। ब्रांड की पहचान कंपनी के लोगो व मोनोग्राम से होती है। जैसे एडीडास, नाइकी, बाटा, टाटा आदि ब्रांड के लोगो व मोनोग्राम एक खास तरीके के चिन्ह के साथ लिखे जाते हैं। आने वाला समय ब्रांड का: ब्रांड विकसित करने की प्रक्रिया:1. गुणवत्ता : उदाहरण के लिये यदि उपभोक्ता किसी ब्रांड के सेब या आलू खरीदते हैं तो हमें हर बार समान आकार व स्वाद के सेब या आलू ही प्राप्त होंगे। लिहाजा, ब्रांड विकसित करने के लिये सबसे पहले उत्पाद की गुणवत्ता तय की जाती है। यहां ध्यान देने वाली बात यह भी है कि गुणवत्ता से तात्पर्य उत्पाद की गुणवत्ता सर्वश्रेष्ठ होना नहीं वरन तय मानकों के अनुसार होना है। 2.
श्रेष्ठ होने की आत्म संतुष्टि : इसी भाव के कारण अक्सर धनी वर्ग के उपभोक्ता खासकर वस्त्रों, जूतों व गाड़ियों जैसे प्रदर्शन करने वाले उत्पादों को बड़े शोरूम से खरीदना पसंद करते हैं, और दोस्तों के बीच स्वयं की शेखी बघारते हुऐ उस शोरूम से उत्पाद को खरीदे जाने की बात बढ़-चढ़कर बताते हैं। वहीं कई लोग जो ऐसे बड़े शोरूम से महंगे दामों में उत्पाद नहीं खरीद पाते वह उस ब्रांड के पुराने उत्पाद फड़ों से खरीदकर झूठी शेखी बघारने से भी गुरेज नहीं करते। अर्थशास्त्र के सिद्धांतों में भी खासकर लक्जरी यानी विलासिता की वस्तुओं की कीमतों के निर्धारण को मांग व पूर्ति के सिद्धांत से अलग रखा गया है। ब्रांड के नाम पर सामान्यतया उत्पाद अपने वास्तविक दामों से कहीं अधिक दाम पर बेचे जाते हैं, और उपभोक्ता इन ऊंचे दामों को खुश होकर वहन करता है, वरन कई बार कम गुणवत्ता के उत्पादों को भी अधिक दामों में खरीदने से गुरेज नहीं करता। 3. विज्ञापन एवं प्रस्तुतीकरण: 4. गारंटी एवं वारंटी : कई बार उपभोक्ता एक ब्रांड को खरीदने के बाद दूसरे ब्रांड के उत्पाद में मौजूद गुणों का लाभ न ले पाने की कमी व निराशा महसूस करता है। गारंटी व वारंटी उसके इस भाव को कम करने तथा खरीदे गये ब्रांड के प्रति उसके प्रेम को बढ़ाने में बड़ी भूमिका निभाते हैं। भूमंडलीकरण का मीडिया पर प्रभावभूमंडलीकरण यानी (Globalization) आज के दौर में कमोबेश सर्वाधिक चर्चित शब्द है। वास्तव में इस शब्द का सर्वाधिक प्राचीन उल्लेख भारतीय मिथकों, धर्मग्रंथों में “वसुधैव कुटुंबकम्” के रूप में मिलता है। “वसुधैव कुटुंबकम्” के माध्यम से एक “विश्व ग्राम” की कल्पना की गई थी, जो अपने तब के अर्थ के विपरीत इतर रूप में आज साकार होता नजर आता है। भूमंडलीकरण की चुनौतियां:आज के दौर में भूमंडलीकरण से तात्पर्य दुनिया के संचार माध्यमों से आपस में जुड़ जाने और करीब आ जाने से लिया जाता है। इस तरह अत्याधुनिक संचार माध्यमों के जरिये जहां एक सेकेंड से भी कम दूरी में संदेशों, समाचारों को दुनिया के हर कोने में प्रसारित किया जा सकता है, वहीं यह प्रक्रिया इतनी तेजी से हुई है कि इसे ‘सूचना विष्फोट” तक कहा जा रहा है। वहीं इसके कुछ बुरे प्रभाव भी पड़े हैं। भूमंडलीकरण ने बीते दो दशकों में भारत जैसे महादेश के समक्ष कई नई चुनौतियां खड़ी की हैं। अत्यधिक सूचनाओं को संभालने में अफरा-तफरी जैसा माहौल है। जन संचार माध्यम भी पल-प्रतिपल बदल रहे हैं। और व्यापक अर्थाें में भूमंडलीकरण जन संचार को बाजारीकरण में तब्दील कर रहा है। आज के दौर में मीडिया के लिये आफत बने एफडीआई भी इसी भूमंडलीकरण के परिणामस्वरूप हैं। भूमंडलीकरण और एफडीआई :उल्लेखनीय है कि भारत देश की आजादी के बाद शुरुआती नीतियां विदेशी आयात को हतोत्साहित करने वाली थीं। केवल सरकार ही गिने-चुने क्षेत्रों में आयात व विदेशी निवेश कर सकती थी। लेकिन धीरे-धीरे देश में विकास की गति बढ़ाने के नाम आयात व विदेशी निवेश को छूट मिलने लगीं। 1990 के दशक में भारत में भूमंडलीकरण की शुरुआत होने लगी, और देश की नीतियां कमोबेश विदेशी निवेश के मामले में उलट गईं। विदेशी निवेश को बढ़ावा मिलने लगा। अब कोई भी व्यक्ति विदेशी उत्पाद खरीद सकता था। 1992 में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश यानी एफडीआई (फारन डाइरेक्ट इन्वेस्टमेंट) के लिये झिझक के साथ रास्ते खुलने लगे। मीडिया को अलग रखते हुऐ कुछ क्षेत्रों में 26 प्रतिशत एफडीआई को अनुमति दे दी गई। लेकिन 1999 तक एफडीआई की हवा भूमंडलीकरण की आंधी बन चुकी थी। आकर्षक ग्लेज्ड कागज पर छपीं विदेशी पत्र-पत्रिकाऐं पहले-पहल भारत आने लगीं। बेहतर गुणवत्ता व साज-सज्जा के कारण यह भारतीय पत्र-पत्रिकाओं के मुकाबले अधिक बिकते थे, जिनसे मुकाबला करने के लिये भारतीय मीडिया भी तकनीकी संवर्धन (Technical Enhancement) के लिये एफडीआई की मांग करने लगे। परिणामस्वरूप पूर्व में इसकी धुर विरोधी रही अटल विहारी बाजपेयी के नेतृत्व वाली राजग सरकार ने पहली बार मीडिया में भी 26 प्रतिशत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की इजाजत दे दी। इसके साथ ही देश में केबल और इसके जरिये विदेशी चैनलों की बाढ़ आ गई, जिनसे मुकाबले के लिये देश के अनेक मीडिया संस्थानों ने भी बड़े एफडीआई का सहारा लिया। लेकिन एफडीआई की शर्तें काफी कठिन थीं, इस कारण अपेक्षा के विपरीत अधिक मीडिया संस्थान एफडीआई से दूर ही रहे। एफडीआई और विज्ञापनों के लिये गला काट प्रतिस्पर्धालेकिन हालात ऐसे हो गये कि एफडीआई का सहारा लेने वाले संस्थान जहां एफडीआई की कड़ी शर्ताें से छुटकारा पाने के लिये, तो अन्य बिना एफडीआई के ही विदेशी मीडिया का मुकाबला करने के लिये विज्ञापनों का सहारा लेने लगे। परिणामस्वरूप विज्ञापन लेने के लिये आज के दौर की मीडिया की सबसे बड़ी परेशानी, विज्ञापनों के लिये मीडिया संस्थानों में गला काट प्रतिस्पर्धा प्रारंभ हो गई, और इस तरह भूमंडलीकरण के कारण मीडिया का पूरा परिदृश्य ही बदल गया। भूमंडलीकरण बनाम बाजारवाद-उत्पाद बना मीडिया, बिकने को बैठा बाजार मेंवास्तव में भूमंडलीकरण को आज के परिप्रेश्य में बाजारवाद का ही एक पर्यायवाची शब्द तक कहा जाने लगा है। अधिक लाभ कमाने की होड़ में मीडिया आज जो बिकता है वही लिखता या दिखाता है। इलेक्ट्रानिक व प्रिंट दोनों तरह की मीडिया इसकी गिरफ्त में हैं। बाजारवाद के प्रभाव में एक ओर खबरें बाजार और विज्ञापनदाताओं से प्रभावित हो रही हैं, दूसरी ओर भाषा के स्तर पर जबर्दस्त ह्रास हो रहा है। एक ओर स्थानीय भाषाओं का पुट खबरों में जुड़ रहा है तो दूसरी ओर बाजार के चलताऊ शब्द तेजी से आ रहे हैं। हिंदी ने जरूर स्वयं को, स्वयं की दुनिया में सबसे बड़ी पाठक संख्या होने के कारण आगे बढ़ाया है पर अंग्रेजी को स्वयं पर हावी होने देने की शर्त पर। हिंदी मीडिया में अंग्रेजी शब्दों की इतनी भरमार है कि “हिंग्लिश” जैसे नये शब्द पैदा हो गये हैं। यह भाषा हिंदी के शुद्धतावादियों को कदापि पसंद नहीं आ रही, अलबत्ता युवा पीढ़ी जरूर ऐसी स्थितियों से गद्गद् है। लेकिन सर्वमान्य तथ्य है कि भाषा का जबर्दस्त ह्रास हुआ है। कंटेंट पर प्रभाव: इसी तरह कंटेंट के मामले में एक ओर मीडिया जहां अधिक लाभ कमाने के फेर में छोटे शहरों, कश्बों की ओर जाता चला जा रहा है, ऐसे में राष्ट्रीयता का हास भी होता जा रहा है। स्थानीय पत्र-पत्रिकाओं में अब राष्ट्रीय खबरें कम ही दिखती हैं, और इसी तरह राष्ट्रीय चैनलों, पत्रों में छोटे शहरों की बड़ी खबरों को भी जगह नहीं मिलती। अधिक लाभ की कोशिश में कम मानदेय पर संवाददाता पत्रकार रखे जा रहे हैं, और जब तक वह अनुभवी होकर अधिक वेतन की मांग करते हैं, उन्हें संस्थान से बाहर का रास्ता दिखाकर अनुभवहीन नये लोगों को कम खर्च पर लाने को वरीयता दी जाती है, इसका प्रभाव भी खबरों के कंटेंट पर साफ दिख जाता है। लाभ :भूमंडलीकरण के नुकसान ही नहीं, कई लाभ भी हैं। वास्तव में आज हम भारत में जिस तरह सूचना प्रौद्योगिकी के मामले में अमेरिका, यूरोप सहित दुनिया के किसी भी देश की बराबरी पर आ गऐ हैं। देश की बड़ी जनसंख्या इंटरनेट से जुड़ गई है। फेसबुक व ट्विटर सरीखी सोशियल साइटों पर विचार साझा कर रहे हैं, अखबारों के इंटरनेट संस्करण और ई-पेपर उनके छपने से पूर्व ही अपने कंप्यूटर और मोबाइल पर पढ़ रहे हैं। मोबाइल के जरिये ही दुर्घटना की फोटो तत्काल पहुंचाकर समाचारों में तेजी ला रहे हैं, यह प्रत्यक्ष या परोक्ष तौर पर भूमंडलीकरण के कारण ही है। डिश के माध्यम से देश-दुनिया के मनचाहे चैनलों तक हमारी पहुंच है और हम दुनिया के किसी कोने में भी अपनी लोक भाषा के कार्यक्रम तथा अपने छोटे शहरों की खबरें ले पा रहे हैं, या अपने बिछुड़ गये मित्रों से तथा दुनिया भर के अनजाने लोगों से संपर्क व दोस्ती कर पा रहे हैं। कंम्यूटर, मोबाइल पर ही लाखों रुपये के लेन-देन कर पा रहे हैं तो यह भी कहीं न कहीं भूमंडलीकरण का ही लाभ है। समुदाय संचालित विकास (Society Driven Development)समुदाय संचालित विकास यानी (Society Driven Development) को सामान्यतया CDD भी कहा जाता है। विकास की इस नई अवधारणा में समुदाय को न केवल विकास का प्रमुख अंग माना जाता है, वरन समुदाय स्वयं ही अपनी विकास योजनाओं का संचालन करता है। इसके तहत योजनाओं के संचालन की जिम्मेदारी समुदाय को दे दी जाती है, समुदाय के लोग ही योजना को बनाने से लेकर उसके क्रियान्वयन और आगे संचालन में मुख्य भूमिका निभाते हैं, जबकि सरकारी विभाग तकनीकी के स्तर पर उनकी मदद करते हैं। वर्ष 1970 से सर्वप्रथम विकास में सहभागिता यानी PARTICIPATION की बात शुरू हुई थी, जबकि 1990 के बाद से विश्व बैंक, एशियाई विकास बैंक जैसी विकास कार्यों के लिये धन देने वाली वैश्विक संस्थाओं ने समुदाय संचालित विकास के आधार पर ही योजनाएें चलानी शुरू कीं। समुदाय संचालित विकास के तहत समुदाय स्वयं अपने संसाधनों का बेहतर उपयोग करते हुऐ अपनी जरूरत की योजनाएें बनाता है। गांव के गरीब ग्रामीणों को भी साझेदार यानी पार्टनर का दर्जा दे दिया जाता है। समुदाय संचालित विकास की विशेषताएें1. समुदाय संचालित विकास आवश्यकता पर आधारित होती है। समुदाय संचालित विकास के लाभ1. Demand Driven Approach
: समुदाय संचालित विकास आवश्यकता यानी पर आधारित होता है। समुदाय संचालित विकास की हानियांहर किसी प्रविधि की भांति समुदाय संचालित विकास पद्धति में कार्य करने की भी अनेक हानियां हैं। समुदाय संचालित विकास के महत्वपूर्ण अंग: समुदाय संचालित विकास के दो महत्वपूर्ण अंग हैं। वहीं कार्ट्ज (Kartz) के अनुसार ओपिनियन लीडर्स की शख्शियत बड़ी व विश्वसनीय होती है। वह ज्ञानवान होते हैं, और समाज में उनकी बात सुनी और मानी जाती है। लोग उन्हें पसंद करते हैं। ब.Change Agents: चेंज एजेंट्स वे लोग हैं जो समुदाय संचालित विकास की नई अवधारणा को समाज के लोगों को समझाकर इसे उनके लिये ग्राह्य बनाते हैं। |