आधुनिकता के अंधानुकरण पर चिंतन की आवश्यकता - aadhunikata ke andhaanukaran par chintan kee aavashyakata

आधुनिकता पर निबन्ध | Essay on Modernity in Hindi!

आधुनिकता अतीत से स्व-प्रेरित पृथकता और नवीन भावों के अन्वेषण की प्रक्रिया है । प्राचीन समाज अंधविश्वासी, रूढ़िवादी परम्पराबद्ध व्यक्तियों और दूसरी ओर प्रगतिवादी विचारधारा वाले व्यक्तियों से बना था । विभिन्न युगों में रूढ़िवादी और आधुनिक दोनों प्रवृतियों के विकास का कारण यह है कि मनुष्य अलग-अलग सामाजिक दायरों में सोचता व कार्य करता है ।

उसने धीरे-धीरे विकास किया । आज जिसे हम रूढ़ि कहते हैं, वह प्राचीन काल में आधुनिकता का सूचक रही होगी । विकसित देश की किसी पिछड़ी जाति के व्यक्ति को यदि अफ्रीका के पिछड़े क्षेत्रों के कबीलों में भेज दिया जाए, तो वह वहाँ का सबसे आधुनिक व्यक्ति माना जाएगा । इस संदर्भ में यह कहा जा सकता है कि आधुनिकता तिथियों पर नहीं, बल्कि दृष्टिकोण पर आधारित होती है ।

सर्वप्रथम, शहरीकरण से आधुनिक युग का प्रारंभ हुआ उसके बाद औद्योगिक क्रांति से इसमें व्यापक प्रगति हुई । इससे न केवल विद्यमान रूढ़िवाद की समाप्ति हो गई, बल्कि सामाजिक स्तर पर रहन-सहन के ढंग में भारी परिवर्तन आया । विद्रोह और मुक्ति का रूप पहले से कहीं और अधिक उग्र होता गया ।

पहले विद्रोह राजवंशो के विरुद्ध होते थे, लेकिन धर्म और सामाजिक मर्यादा के प्रति उनमें दृढ़ निष्ठा की भावना थी । आधुनिक युग में यह भावना समाप्त होती जा रही है । यह भावना न केवल शिक्षित लोगों में बल्कि आधुनिकता की प्रक्रिया में प्रवाहित प्रत्येक व्यक्ति में समाप्त होती जा रही है ।

तथापि, आधुनिक समाज में कुछ अभाव होते, जिससे रूढ़िवादिता को सन्तुष्टि मिलती है । एक साधारण व्यक्ति जब तनाव से मुक्त होता है तो उसके सम्मुख विश्व और अपने सिवाय कोई और नहीं होता है । इससे उसे सान्त्वना और गौरव महसूस होता है कि वह इस विशाल संसार का एक अंग है ।

लेकिन इससे नवीन अवधारणाओं रूढ़ियों का जन्म होता है । आधुनिकता का संकट इतना सशक्त है कि वह व्यक्ति के विचारप्रवाह में बाधा डालता है । आधुनिकता से मनुष्य में असन्तुष्टि उत्पन्न होती है । आधुनिक मानव की स्थिति त्रिशंकु के समान होती है । जहाँ अर्थ का कोई सिद्धांत नहीं और घटनाओं का कोई मूल्य नहीं होता है । यहाँ कोई नैतिक संस्था नही हैं, जिससे वह राय ले सके ।

अपनी भौतिक, राजनैतिक, आर्थिक आवश्यकताओं के अतिरिक्त विश्व के कोई भी पदार्थ उसे आकर्षित नही करते है । वह विशाल आधुनिक सभ्यता का एक अंग मात्र होता है, जिसे उसकी प्रक्रिया के अनुसार चलना पड़ता है । वह इस कल्पना में डूबा रहता है कि वह सभ्यता का संचालक है, लेकिन वह इसकी अनिवार्यताओं से दूर भागने में असमर्थ है ।

उसने अपने तन और मन को पुराने समय के राजाओं और पुजारियों के समान कठोर बना दिया है । आधुनिक मानव ने प्राचीन प्रथाओं की शक्तियों के संबंध में तो ज्ञान प्राप्त कर लिया है, लेकिन उनकी नैतिकता उसकी समझ से परे की वस्तु है । प्राचीन युग में कार्य की अनिवार्यताएं कभी-कभी बहुत पीड़ादायक होती थीं, लेकिन उसके पीछे ईश्वर की देन का भाव छिपा रहता था ।

आधुनिक युग की अनिवार्यताएं उतनी ही पीड़ादायक और विडम्बनापूर्ण है । आधुनिक व्यक्ति भी उनसे बच नहीं सकता । उसकी सहज श्रद्धा विवशता की श्रुंखला में बदल गई है । जब उसका विश्वास इस बात पर था कि सभी घटनाएं ईश्वर की इच्छा पर आधारित होती हैं, तो उसका कहना था, ”सब कुछ उसकी इच्छा पर निर्भर है ।”

लेकिन आज जब घटनाएं बहुमत के आधार पर, स्वामियों के आदेश, पड़ोसियों के मते, मांग और पूर्ति के नियम और कुछ स्वार्थी व्यक्तियों के निर्णयों पर आधारित होती है तो भी उसे उन्हें पूरा करने के लिए बाध्य होना पड़ता है । वह विजय प्राप्त करने में तो समर्थ होता है, लेकिन सन्तुष्टि उसके नसीब में नही होती है ।

इस प्रगतिपरक समाज में आधुनिक व्यक्ति के पास किसी प्रकार के सतही आनंद के लिए समय और ऊर्जा का अभाव रहता है । वह अपनी आधारभूत समस्याओं को सुलझाने में ही व्यस्त रहता है । उसका जीवन दर्शन गगनचुंबी इमारत के समान है, जिसके निर्माण और भार सहने योग्य बनाने के लिए पर्याप्त परिश्रम किया जाता है, वह इतनी नयी होकर भी जल्द ही आकर्षणहीन हो जाती है ।

जबकि मध्ययुगीन स्मारकों का निर्माण कई वर्षो में पूरा हुआ था, लेकिन वे आज भी उतनी आकर्षित करती है, जितना पहले करती थी । आधुनिक व्यक्ति प्रवासी है; जो परिवर्तनमय समाज में रहता है और विरोधी परम्परा को ग्रहण करता है । वह हर बात को तर्क की तुला पर तोलता है, जबकि प्राचीनकाल के समाज में तर्क का कोई स्थान नहीं था उस समय आत्मिक भावों, कठोर नियमों पर अधिक बल दिया जाता था ।

प्राचीन समाज आदर्शो पर टिका हुआ था । इस प्रकार की व्यवस्था में यह बात स्वीकार करना स्वाभाविक ही है कि सत्य वचन बाले जाते थे, गूढ़ प्रश्नों पर वाद-विवाद होता था और मृत्यु के बाद जीवन को माना जाता था ।

लेकिन जब किसी मत को साबित करने की आवश्यकता होती थी, तो कहा जाता था कि तर्क अविश्वासी और नास्तिक करते हैं । विश्वास साक्ष्य पर आधारित नियम नहीं था, बल्कि यह मानव के अस्तित्व का आधारभूत तत्व था । उस समय का मानव केवल अपनी बौद्धिक उच्चता के सहारे ही खड़ा नहीं हो सकता था ।

बल्कि वह पूर्णत: समाज पर निर्भर था, जैसे छोटा बच्चा अपनी माँ के सहारे जिन्दा रहता है । भावनाओं की वह मिठास धीरे-धीरे कम होती गई और संदेह का जन्म हुआ । आधुनिक समाज में धर्म के प्रति अश्रद्धा की भावना इसी का विकसित रूप है । आधुनिक भाव कृत्रिम, ऊपर से ओढ़े हुए, उलझे हुए और अपरिहार्य है ।

आधुनिक सभ्यता के संबंध में बात करते समय हमारा ध्यान महानगरों की संस्कृति की ओर केन्द्रित होता है । आधुनिक सभ्यता की प्रक्रिया में महानगरों के जीवन में यांत्रिकता आ गई है, यहाँ की आर्थिक सम्पन्नता लोगों को शहरों की ओर भागने की प्रवृत्त करती है । गांवों में किसान यदि जुताई, रोपाई आदि में समर्थ हो भी जाए तो भी फसल के लिए उसे आकाश की ओर ताकना पड़ता है ।

शहर का व्यक्ति गरीबों की दयनीय दशा से बेखबर वातानुकूलित घरों में रहता है । उनके घर बौद्धिक विलास की सभी आधुनिक सुविधाओं प्रेस, रेडियो, चलचित्र, टेलीविजन से युका होते हैं । ये सब सुविधाएं उसे तथ्यपरक जानकारी तो प्रदान करती है, लेकिन उनके कारणों, परिस्थितियों की जानकारी नही देती हैं । इससे मानव की तथ्यपरकता की प्रवृति को इससे बढ़ावा मिलता है ।

आधुनिकता का सीधा प्रभाव मनुष्य के जीवन पर पड़ा है इससे उसका जीवन और अधिक एकांकी हो गया है । पहले चर्च, नगर, परिवार, समाज आदि सभी एकता के सूत्र में बंधे हुए थे । विश्व के समस्त दैविक विधान व्यक्ति के सामाजिक अधिकार एवं कर्तव्य, नैतिकता के नियम, कला का उद्देश्य, विज्ञान की उपयोगिता के सभी नियम मुक्त हो गए है ।

आधुनिक युग की सभी संस्थाएं स्वतंत्र हो गई है, जो अपने तुच्छ स्वार्थ सिद्धि में लीन है । हमारी संस्कृति विभिन्न स्वत्वों, प्रभुत्वों का जमघट बन गई है । कार्यो की पृथकता आत्मा की पृथकता बन गई है । आधुनिक व्यक्ति का जीवन आत्मिक एकता की नही बल्कि एक शरीर में कई रूपों की कहानी है ।

आधुनिकीकरण क्या है विकास में आधुनिकीकरण की भूमिका की विवेचना कीजिए?

आधुनिकीकरण का अर्थ (Modernization Meaning in Hindi) आधुनिक समाज में बढ़ते बदलावों को प्रदर्शित करने का कार्य करता हैं। यह वह व्यवस्था है जिसके अंतर्गत उद्योग और शहरीकरण को बढ़ावा देने का कार्य किया जाता हैं। इसमें तकनीकी विकास पर भी बल दिया जाता हैं। यह एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया हैं।

आधुनिकीकरण क्या है भारतीय समाज में पड़ने वाले प्रभावों की व्याख्या कीजिये?

सामाजिक दृष्टि से मोटे तौर पर इन विशेषताओं के परिणाम के रूप में, आधुनिकता किसी पूर्व सामाजिक व्यवस्था की तुलना में अधिक गतिशील है। यह एक समाज है - अधिक तकनीकी रूप से संस्थाओं का परिसर है - जो, किसी पूर्व संस्कृति के विपरीत, अतीत के बजाये भविष्य में जीता है (गिडेंस, 1998, 94).

आधुनिकता के बारे में आपकी क्या समझ है आधुनिकता की बुनियादी विशेषताएँ क्या हैं?

आधुनिकता का अभिप्राय उस व्यवस्था से हैं जिसमें ओद्योगिक क्रांति के फलस्वरूप कुछ ऐसे तत्व सम्मिलित हो गये हैं जो प्राचीन परम्पराओं में परिवर्तन ला रहैं हैंआधुनिकता एक ऐसी सामाजिक व्यवस्था का नाम हैं, जिसमें प्राचीन परम्पराओं के स्थान पर नवीन मान्यताओं को स्थान दिया गया है।

आधुनिक करण से आप क्या समझते हैं?

आधुनिकीकरण एक परिवर्तन लाने की प्रक्रिया है, जिसका तात्पर्य है- विज्ञान व तकनीकी पर आधारित समाज की प्रक्रिया में परिवर्तन आना. शैक्षिक विकास के साथ आधुनिकीकरण की प्रक्रिया प्रत्यक्ष रूप से संबंधित है। इसका उद्देश्य जनसाधारण के जीवन स्तर को ऊँचा उठाना है।