विभिन्न स्रोतों के जल में अनेक रासायनिक पदार्थ, मल-मूत्र तथा दूसरे अवांछित पदार्थ जैसे कूड़ा-करकट, नालियों का गंदा पानी आदि मिल जाते हैं। Show जिससे यह पीने तथा घरेलू कार्यों को करने के योग्य नहीं रहता। ऐसे जल को प्रदूषित जल कहते हैं। जल को प्रदूषित करने वाले पदार्थ प्रदूषक तथा इनके द्वारा जल का दूषित हो जाना “जल-प्रदूषण” कहलाता है। बढ़ते औद्योगिकीकरण के कारण जल प्रदूषण एक गंभीर समस्या के रूप में सामने आया है। जल प्रदूषण के कारण –1 मनुष्यों के कार्यकलाप – मनुष्यों के बहुत से कार्यकलाप जल को प्रदूषित करते हैं। आपने देखा होगा प्रायः लोग अपने घरों का कचरा, सड़ी-गली वस्तुएँ आदि नाली में फेंक देते हैं। नालियों का यह जल तालाब, नदियों में मिलकर उसे प्रदूषित करता है। इसी प्रकार नदी-तालाबों में नहाकर, कपड़े धोकर, जानवरों तथा गाड़ियों को साफ कर जल को गंदा करते हैं। कुछ स्थानों पर शवों को भी जल में बहा दिया जाता है। देवी-देवताओं की मूर्तियों के जल में विसर्जन से उनके निर्माण में उपयोग किए गए रंगों के कारण जल प्रदूषित हो जाता है। अस्पतालों से फेंका गया अपशिष्ट,जंतुओं का मल-मूत्र भी जल को प्रदूषित करता है। इससे जल में अनेक रोगों के जीवाणु मिल जाते हैं। 2 खेती से – फसलों को नष्ट होने से बचाने के लिए तथा पैदावार बढ़ाने के लिए कीटनाशी, खरपतवारनाशी दवाइयों तथा अनेक प्रकार की खादों का उपयोग किया जाता है। इनमें प्रयुक्त घातक पदार्थ जल में घुलकर नदी, तालाबों में पहुँच जाते हैं तथा जल को प्रदूषित करते हैं। 3 उद्योगों से – विभिन्न उद्योग धंधों में मुख्य पदार्थ के निर्माण के साथ-साथ कुछ अनुपयोगी पदार्थ (अपशिष्ट पदार्थ) भी बनते हैं। ये अपशिष्ट पदार्थ प्रायः हानिकारक होते हैं। जब कारखानों में इन अपशिष्ट पदार्थों के निकासी की व्यवस्था उचित नहीं होती तब वे उसे नदी, तालाबों में छोड़ देते हैं जिससे जल प्रदूषित हो जाता है। जब यह जल पेड़-पौधों तथा जीव-जंतुओं द्वारा उपयोग किया जाता है तब उन्हें हानि पहुंचाता है। अपशिष्ट पदार्थों में यदि लैड, मरकरी, क्रोमियम, कैडमियम आदि उपस्थित हों तो वे घातक रोग उत्पन्न करते हैं। जल प्रदूषण की रोकथाम –* शासन द्वारा पर्यावरण प्रदूषण रोकने के लिए कुछ नियम बनाये हैं । जिनका सभी नागरिकों, संस्थानों तथा उद्योग धंधों को अनिवार्यतः पालन करना चाहिए। * प्रत्येक घर में सेप्टिक टैंक होना चाहिए । * शोधन के पूर्व औद्योगिक अपशिष्टों को जल में नहीं छोडना चाहिए। जल स्रोतों में पशुओं को भी नहीं धोना चाहिए। * कीटनाशियों, कवकनाशियों इत्यादि के रूप में निम्नीकरण योग्य पदार्थों का प्रयोग करना चाहिए । * खतरनाक कीटनाशियों के उपयोग में प्रतिबन्ध लगाना चाहिए। * जल स्रोतों के जल के शोधन पर विशिष्ट ध्यान देना चाहिए। * बड़ी-बड़ी फैक्ट्रियों में जल शोधन संयन्त्रों को लगाना चाहिए, जिससे इनके द्वारा निकला जल शुद्ध होने के बाद ही जल स्रोतों में जा सके । * नगरों के वाहित मल को आबादी से दूर छोड़ना चाहिए। वाहित मल में कार्बनिक पदार्थों को कम करने के लिए ऑक्सीकरण तालाब या फिल्टर बेड का प्रयोग करना चाहिए । * पशुओं के प्रयोग के लिए अलग जल स्रोत का प्रयोग करना चाहिए । * समय-समय पर जल स्रोतों से हानिकारक पौधों को निकाल देना चाहिए । * कीटनाशियों, खरपतवारनाशियों का कम से कम प्रयोग करना चाहिए । * ताप तथा परमाणु बिजली घरों से निकलने वाले जल को ठण्डा होने के बाद शुद्ध करके ही जल स्रोतों में छोड़ना चाहिए। जल प्रदूषण को रोकने के उपाय अथवा सुझावपिछेले लेख मे बताई गई जल की कमी तथा प्रदूषित जल के दुष्प्रभावों के परिप्रेक्ष्य मे जलस्त्रोतों के प्रदूषण को रोकने की आवश्यकता स्वयं सिद्ध है। जल प्रदूषण को रोकने के उपाय तथा सुझाव निम्न प्रकार है-- 1. जहाँ तक संभव हो किसी भी प्रकार के अपशिष्ट या अपशिष्टयुक्त बहि:स्त्राव को जलाशयों मे मिलने नही दिया जाना चाहिए। यह भी पढ़ें; जल प्रदूषण क्या है? कारण/स्त्रोत, प्रभाव 2. घरों से निकलने वाले मलिन जल तथा वाहितमल को एकत्रित एक शोधन संयंत्रो से पूर्ण उपचार के उपरान्त ही नदी या तालाबों मे विसर्जित किया जाना चाहिए। संभव हो तो इस प्रकार से उपचारित जल का प्रयोग खेतो मे सिंचाई के लिए किया जाना चाहिए। 3. पेय जल स्त्रोतों जैसे तालाब, नदी इत्यादि के चारो ओर दीवार बनाकर विभिन्न प्रकार की गंदगी के प्रवेश को रोका जाना चाहिए। 4. जलाशयों के आस-पास गंदगी करने, उनमे नहाने, कपड़े धोने इत्यादि को रोका जाना चाहिए जिससे गंदगी, साबुन तथा अन्य प्रक्षालक पदार्थ जल मे न मिलने पायें। 5. नदी तथा तालाबो मे पशुओं को नहलाने पर भी पाबंदी होना चाहिए क्योंकि इससे अनेक प्रकार के रोगाणुओं के जल मे फैलने की संभावना रहती है तथा जल भी प्रदूषित होता है। 6. जल की आवश्यकता की सुगम पूर्ति के उद्देश्य से अधिकतर उद्योगों को नदियो या तालाबों के किनारे स्थापित किया जाता है। ये उद्योग अपने अ-उपचारित बहि:स्त्राव को निकटस्थ उपलब्ध जलाशय मे विसर्जित करना आर्थिक तथा अन्य कारणों से सुविधाजनक मानते है तथा इस प्रकार जल प्रदूषण का कारण बनते है। इस दृष्टि से रासायनिक उद्योग सबसे अधिक हानिकारक होते है। इन उद्योगों से निकला विभिन्न विषैले रासायनिक पदार्थों से युक्त बहिःस्त्राव नदी के जल को ही प्रभावित नही करता अपितु मछलियों व अन्य उपयोगी जलीय जीवो के नाश का कारण भी बनता है। अतः प्रथमतः उद्योगो को, सैद्धान्तिक रूप से जलाशयों के निकट स्थापित उद्योगो को अपने अपशिष्ट जल का बिना उपचार किये जलाशयों मे विसर्जित करने से रोका जाना चाहिए। 7. कस्बों, नगरो तथा महानगरों मे शौचालयों की स्थापना की जानी चाहिए। 8. विद्युत शवदाह-गृहों की स्थापना की जाये जिससे बिना जले, अधजले शव व कार्बनिक पदार्थ नदियों मे प्रवाहित न हों। 9. मृतक पशुओं के जलाशयो मे विसर्जिन पर पूर्ण प्रतिबन्ध लगाया जाना चाहिए। 10. नगर पालिकाओं को सीवर-शोधन संयन्त्रो की व्यवस्था करनी चाहिए। 11. सरकार को जल प्रदूषण के नियंत्रण से संबंधित उपयोगी एवं कारगर नियम एवं कानून भी बनाने चाहिए। व्यक्तियों, समुदायों, सामाजिक संगठनों, व्यापारिक प्रतिष्ठानों के कर्मचारियों, सरकारी अधिकारियों तथा मिल-मालिको को इन नियमों एवं कानूनो का सख्ती से पालन करना होगा। इन नियमों एवं कानूनों का उल्लंघन करने वालों को सख्त सजा मिलनी चाहिए एवं उनसे भारी आर्थिक दण्ड वसूल किया जाना चाहिए। 12. उर्वरकों एवं कीटनाशकों का उपयोग आवश्यकतानुसार ही किया जाये। डी. डी. टी. तथा इसी प्रकार के स्थाई प्रकृति के कीटनाशियों एवं पेस्टनाशियों के उपयोग पर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए। 13. जल प्रदूषण के कारणों, दुष्प्रभावों एवं रोकथाम की विधियों की जानकारी जनसाधारण को दी जाये। इसके लिए रेडियो, दूरदर्शन, समाचार-पत्र, गैर सरकारी संस्थाएं महत्वपूर्ण योगदान कर सकती है। 14. जल प्रदूषण (निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1974 को प्रभावी ढंग से लागू किया जाए। अधिनियम की समीक्षा के लिए पर्यावरणविदों एवं विधि विशेषज्ञों की एक समिति बनाई जाये। समिति की संस्तुतियों एवं सुझावो के आधार पर आवश्यकतानुसार अधिनियम को संशोधित किया जाये। 15. पशुओं को जल मे नहलाने से रोगाणुओं के फैलने की संभावना रहती है जिससे जल प्रदूषित हो जाता है इसलिए पशुओं को नदियो, तालाबों मे नहलाने पर प्रतिबंध लगाया जाये। शायद यह जानकारी आपके के लिए बहुत ही उपयोगी सिद्ध होगी जल प्रदूषण रोकने के कौन कौन से उपाय हैं?1. भारत में बहुत सारे उद्योग और पावर प्लांट हैं जहाँ से दूषित धुएँ का उत्सर्जन होता है और यह धुआँ हवा में मिलकर हवा को भी प्रदूषित करता है। यही कारण है कि पावर प्लांट और उद्योगों के कारण अत्यधिक मात्रा में वायु प्रदूषण होता है।
जल प्रदूषण को कैसे दूर किया जा सकता है?भारत में औसत रूप से 1900 करोड़ घन मीटर जल उपयोग के लिये उपलब्ध है। इस उपलब्ध जल का लगभग 86 प्रतिशत सतही नदियों, झीलों, सरोवरों एवं तालाबों का है। भूमिगत जल का पर्याप्त भाग सिंचाई एवं पीने तथा अन्य कार्यों के लिये किया जाता है। आदि काल से ही मानव द्वारा जल का प्रदूषण किया जाता रहा है।
जल प्रदूषण क्या है इसके कारण एवं रोकने के उपाय लिखिए?भारत में जल प्रदूषण के बढ़ते स्तर के प्रमुख कारण निम्नानुसार हैं:. औद्योगिक कूड़ा. कृषि क्षेत्र में अनुचित गतिविधियां. मैदानी इलाकों में बहने वाली नदियों के पानी की गुणवत्ता में कमी. सामाजिक और धार्मिक रीति-रिवाज, जैसे पानी में शव को बहाने, नहाने, कचरा फेंकने. जहाजों से होने वाला तेल का रिसाव. |